भारत छोड़ो आंदोलन का क्या महत्व है? - bhaarat chhodo aandolan ka kya mahatv hai?

भारत छोडो आंदोलन का महत्व क्या है?...

Show

भारत छोड़ो आंदोलन का क्या महत्व है? - bhaarat chhodo aandolan ka kya mahatv hai?

चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये।

भारत छोड़ो आंदोलन का महत्व क्या है भारत छोड़ो आंदोलन विश्वयुद्ध के समय 9 अगस्त 1942 को आरंभ किया गया था जिसे अगस्त क्रांति भी बोला जाता है इस आंदोलन का लाखों भारत से साम्राज्य को समाप्त करना था यह आंदोलन महात्मा गांधी द्वारा अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुंबई अधिवेशन में शुरू किया गया था

Romanized Version

भारत छोड़ो आंदोलन का क्या महत्व है? - bhaarat chhodo aandolan ka kya mahatv hai?

4 जवाब

Vokal App bridges the knowledge gap in India in Indian languages by getting the best minds to answer questions of the common man. The Vokal App is available in 11 Indian languages. Users ask questions on 100s of topics related to love, life, career, politics, religion, sports, personal care etc. We have 1000s of experts from different walks of life answering questions on the Vokal App. People can also ask questions directly to experts apart from posting a question to the entire answering community. If you are an expert or are great at something, we invite you to join this knowledge sharing revolution and help India grow. Download the Vokal App!

BA-III-History I
प्रश्न 16भारत छोड़ो आन्दोलन पर एक निबन्ध लिखिए।
अथवा ''उन कारकों तथा परिस्थितियों की विवेचना कीजिए जो सन् 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के लिए उत्तरदायी थीं। इस आन्दोलन का क्या महत्त्व था?

अथवा ''भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ करने के क्या कारण थे आन्दोलन की प्रगतिकार्यक्रम तथा उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।

अथवा ''सन् 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन की विस्तृत व्याख्या कीजिए तथा भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में उसका महत्त्व बताइए।

अथवा ''भारत छोड़ो आन्दोलन (1942) की परिस्थितियों का वर्णन करते हुए उसकी असफलता के कारण बताइए। अथवा

भारत छोड़ो आंदोलन का क्या महत्व है? - bhaarat chhodo aandolan ka kya mahatv hai?

उत्तर  क्रिप्स मिशन की असफलता के कारण भारतीयों में घोर निराशा का वातावरण छा गया। अत: गांधीजी ने देश की समस्याओं के विषय में गम्भीरतापूर्वक सोचना प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि भारतीय समस्याओं का वास्तविक समाधान तभी हो सकता है जब अंग्रेज भारत छोड़कर चले जाएँ। उन्होंने अपने समानार-पत्र 'हरिजनमें ब्रिटिश सरकार को चेतावनी देते हुए लिखा था

"भारत को ईश्वर के भरोसे छोड़कर चले जाओ। हमें अराजकता में छोड़ दोकिन्तु चले जाओ। भारत के लिए उसके परिणाम कुछ भी होंकिन्तु भारतीयों के हितों की सुरक्षा अंग्रेजों द्वारा भारत छोड़ने में निहित है।"

इन विचारों के आधार पर गांधीजी ने सरकार के विरुद्ध भारत छोड़ो आन्दोलन चलाने का निश्चय किया।

भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ करने के कारण

गांधीजी ने निम्नलिखित कारणों से भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ किया-

(1) क्रिप्स मिशन की असफलता - 

क्रिप्स मिशन की असफलता ने सारे देश में निराशा की भावना को जन्म दिया। भारतीयों ने यह अनुभव किया कि क्रिप्स को केवल अमेरिका और चीन के दबाव के कारण भेजा गया था और क्रिप्स मिशन से सम्बन्धित समस्त क्रियाकलाप एक 'राजनीतिक धूर्ततामात्र थी। इसके अतिरिक्त चर्चिल के मन में भारत को स्वतन्त्रता प्रदान करने की कोई इच्छा नहीं थी। मौलाना आजाद लिखते हैं, "अनेक राजनीतिक दलों और क्रिप्स में जो लम्बी बातचीत चलीवह संसार के सम्मुख यह सिद्ध करने के लिए थी कि कांग्रेस भारत की सच्ची प्रतिनिधि संस्था नहीं है और भारतीयों में एकता के अभाव के कारण ही ब्रिटेन भारत को सत्ता हस्तान्तरण नहीं कर सकता।" ऐसी स्थिति में क्रिप्स मिशन की असफलता का प्रभाव भारत और ब्रिटेन के सम्बन्धों पर पड़ा।

प्रश्न 15असहयोग आन्दोलन पर निबंध लिखिए ।

(2) बर्मा में भारतीयों के साथ अमानुषिक व्यवहार - 

बर्मा पर जापान की विजय के पश्चात् बर्मा से जो भारतीय शरणार्थी आ रहे थेउन्होंने यहाँ आकर अपनी दुःखपूर्ण कहानियाँ सुनाईं। अंग्रेजों को और भारतीयों को बर्मा से भारत आने के लिए पृथक्-पृथंक मार्ग दिए गए। वायसराय की कार्यकारिणी के सदस्य एम. एस. अणेजो कि बाहर रहने वाले भारतीयों की देखभाल करने वाले विभाग के इंचार्ज थेपं. हृदयनाथ कुंजरू और मि. डाम के साथ बर्मा में भारतीयों की दशा को देखने गए। उन्होंने बाद में एक वक्तव्य में कहा था कि भारतीय शरणार्थियों से ऐसा अपमानजनक व्यवहार किया जा रहा है जैसे वे किसी निम्न जाति से सम्बन्धित हों। गांधीजी को इससे अत्यधिक दुःख हुआ और उन्होंने लिखा, "भारतीय और यूरोपियन शरणार्थियों से व्यवहार में जो भेद किया जा रहा है और सेनाओं का जो खराब व्यवहार हैउससे अंग्रेजों के इरादों और घोषणाओं के प्रति अविश्वास बढ़ रहा है।"

(3) पूर्वी बंगाल में भय और आतंक का वातावरण -

 पूर्वी बंगाल में इस समय भय और आतंक का राज्य था। सरकार ने वहाँ सैनिक उद्देश्यों के लिए अनेकों किसानों की जमीन पर अधिकार कर लिया था। इसी प्रकार हजारों देशी नावों को नष्ट कर दिया गयाजिनसे सैकड़ों परिवार अपनी आजीविका कमाते थे। शासन के इन कार्यों से जनता के दु:खों में अत्यधिक वृद्धि हुई।

(4) शोचनीय आर्थिक स्थिति और शासन के प्रति अविश्वास - 

इस समय वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि हो जाने के कारण लोगों की परेशानियों में और भी वृद्धि हो गई। ऐसी स्थिति में लोगों का कागज के नोटों पर से विश्वास उठता जा रहा था। मध्य वर्ग में सरकार के प्रति अविश्वास दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था।

(5) जापानी आक्रमण का भय - 

जापान बड़ी तेजी से आगे बढ़ रहा था और उसने सिंगापुरमलाया और बर्मा में अंग्रेजों को पराजित कर दिया थाजिसने महात्मा गांधी के इस विश्वास को दृढ़ कर दिया कि अंग्रेज भारत की रक्षा करने में असमर्थ हैं। इसके साथ ही उनका यह विचार था कि यदि अंग्रेज भारत को छोड़कर चले जाएँतो शायद जापान का आक्रमण न हो। उन्होंने 5 जुलाई, 1942 के 'हरिजनपत्र में लिखा था, "अंग्रेजोंभारत को जापान के लिए मत छोड़ोअपितु भारत को भारतीयों के लिए व्यवस्थित रूप से छोड़ जाओ।"

आन्दोलन की पृष्ठभूमि  

14 जुलाई, 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने ब्रिटिश सरकार की नीतियों के सम्बन्ध में तथा आन्दोलन को भावी दिशा प्रदान करने के उद्देश्य से निम्न प्रस्ताव पारित किए-

(1) भारत से ब्रिटिश शासन का अन्त अति शीघ्र होना चाहिए।

(2) भारत की स्वतन्त्रता न केवल भारत के हित में आवश्यक हैबल्कि संसार की सुरक्षा के लिए भी अनिवार्य है।

(3) कांग्रेस की यह इच्छा है कि यदि ब्रिटिश सरकार चाहे तो अपने शत्रुओं की सेना का मुकाबला करने के लिए वह कुछ समय के लिए अपनी सेना भारत में रख सकती  

(4) यदि सरकार ने उपर्युक्त प्रस्तावों को स्वीकार नहीं कियातो कांग्रेस अनिच्छा से राष्ट्रव्यापी अहिंसक आन्दोलन प्रारम्भ करने को बाध्य होगीजिसका नेतृत्व गांधीजी करेंगे।

इन प्रस्तावों के आधार पर पूरे देश में आन्दोलन की तैयारियां पूरे उत्साह से की गईं। 1 अगस्त, 1942 को पं. नेहरू ने अपने भाषण में कहा था।

"हम आग के साथ खेलने जा रहे हैं। हमारे हाथ में दुधारी तलवार हैजिसकी उल्टी चोट हमारे ऊपर भी पड़ सकती हैलेकिन हम क्या करेंविवश है।

भारत छोड़ो आन्दोलन (8 अगस्त, 1942) - 

जब सरकार ने उपर्युक्त प्रस्तावों पर कोई ध्यान नहीं दियातो कांग्रेस कार्य समिति का अधिवेशन बम्बई में बुलाया गयाजिसमें उपर्युक्त सभी प्रस्तावों का समर्थन करते हुए 'भारत छोड़ो प्रस्तावपारित किया गया। इस प्रस्ताव में यह तय किया गया कि भारत में ब्रिटिश शासन का तत्काल अन्त होना चाहिए। यह भी घोषणा की गई कि अंग्रेज भारत छोड़कर चले जाएँ। इसी अवसर पर गांधीजी ने देशवासियों को 'करो या मरोका नारा दिया था।

आन्दोलन का प्रारम्भ और अगस्त क्रान्ति

कांग्रेस के अधिवेशन में यह निर्णय लिया गया था कि आन्दोलन प्रारम्भ करने से पूर्व गांधीजी सरकार से वार्ता करेंगेकिन्तु वार्ता से पूर्व सरकार ने गांधीजी तथा कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को बन्दी बना लिया। सरकार ने यह आरोप लगाया कि कांग्रेसी कार्यकर्ता अराजकता फैलाने वाले कार्यों में संलग्न होने का प्रयास कर रहे थे। अतः सरकार के पास उन्हें बन्दी बनाने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं था।

व्यापक पैमाने पर हुई गिरफ्तारियों के कारण जनता का आक्रोश फूट पड़ा। जुलूसहड़ताल और सभाओं के माध्यम से जनता ने अपना रोष प्रकट कियाकिन्तु सरकार ने लाठीगोली आदि दमनकारी साधनों का प्रयोग किया। कुछ कार्यकर्ताओं ने विवश होकर हिंसात्मक कार्यों को प्रारम्भ कर दिया। बम्बईअहमदाबाददिल्लीमद्रासबंगलौरअमृतसर आदि बड़े नगरों में जनजीवन ठप्प हो गया। 

रेलवे स्टेशनोंपुलिस स्टेशनों को जलानारेलगाड़ियों को लूटनापुलों को बमों से उड़ाना आदि घटनाएँ निरन्तर बढ़ती गईं। ऐसा प्रतीत होने लगा कि ब्रिटिश सरकार भारतीय प्रशासन को सँभाल नहीं पाएगी। प्रो. अम्बा प्रसाद ने 'The Indian Revolt of 1942' में लिखा है कि इस आन्दोलन में पुलिस ने 538 बार गोलियाँ चलाईं और कम-से-कम 7,000 व्यक्ति मारे गए तथा 60,229 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया। 

गैर-सरकारी सूत्रों के अनुसार मरने वालों की संख्या 10,000 से 40,000 के मध्य थी। इन आँकड़ों से आन्दोलन की प्रबलता का अनुमान लगाया जा सकता है। इस आन्दोलन के विषय में माइकेल ब्रेचर ने लिखा है, "आन्दोलन के प्रति सरकार की दमन नीति बहुत कठोर थी। 1857 ई. के विद्रोह के बाद भारत में पहली बार ब्रिटिश सरकार को सन् 1942 के विद्रोह को दबाने में अपनी शक्ति लगानी पड़ी। ऐसा प्रतीत होता था कि देश में पुलिस का शासन स्थापित हो गया था।"

सरकार की कठोर दमन नीति के कारण जनता का खुला विद्रोह तो दब गयाकिन्तु आन्दोलन पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ। जयप्रकाश नारायणडॉ. राममनोहरलोहियाअरुणा आसफ अली आदि समाजवादी नेताओं के नेतृत्व में यह आन्दोलन भूमिगत हो गया और शासन की दृष्टि से छिपकर इसका संचालन किया जाने लगा।

भारत छोड़ो आन्दोलन की असफलता के कारण

भारत छोड़ो आन्दोलन की असफलता के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे

(1) आन्दोलन के संगठन और आयोजन में कमियाँ - 

भारत छोड़ो आन्दोलन एक जन-आन्दोलन था। इस प्रकार के जन-आन्दोलन को सफल बनाने के लिए व्यापक तैयारियां की जानी चाहिए थीं। आन्दोलन के नेताओं द्वारा अपनी रणनीति निश्चित कर ली जानी चाहिए थी और इसके पूर्व कि शासन उनको गिरफ्तार करेउन्हें अज्ञात स्थान पर चले जाना चाहिए था। वस्तुतः इस प्रकार की कोई तैयारी नहीं की गई थी। ऐसी स्थिति में जब शासन द्वारा दमन कार्य की पहल की गईतो आन्दोलनकारी आश्चर्यचकित रह गए और प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी के कारण आन्दोलन नेतृत्व विहीन हो गया।

 (2) सरकारी कर्मचारियों की वफादारी -

 यह आन्दोलन इसलिए भी असफल रहा क्योंकि नेतापुलिसदेशी राजाउच्च वर्ग तथा सरकारी कर्मचारी सरकार के प्रति वफादार रहे। इसलिए सरकार का काम निर्विघ्न रूप से चलता रहा।

(3) शासन के पास कई गुना शक्ति होना - 

भारत छोड़ो आन्दोलन की असफलता का एक अन्य कारण यह भी था कि आन्दोलनकारियों की तुलना में शासन की शक्ति कई गुना थी। आन्दोलनकारियों के पास कोई गुप्तचर व्यवस्था नहीं थी। उनके पास एक-दूसरे को सन्देश भेजने के अच्छे साधन नहीं थे। उनकी आर्थिक स्थिति भी ब्रिटिश सरकार की तुलना में काफी कमजोर थी।  

यद्यपि यह आन्दोलन तात्कालिक रूप से असफल रहालेकिन इस आन्दोलन के केवल पाँच वर्ष पश्चात् ही भारत को स्वतन्त्रता प्राप्त हो गई।

भारत छोड़ो आन्दोलन का महत्त्व

भारत छोड़ो आन्दोलन के महत्त्व को निम्न बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट कर सकते हैं

(1) भारत छोड़ो आन्दोलन ने भारतीय जनता को पूर्ण स्वतन्त्रता का दीप प्रज्ज्वलित करने की प्रेरणा दी। ए. सी. बनर्जी के शब्दों में, "इस विद्रोह के परिणामस्वरूप अधिराज्य की पुरानी माँग सर्वथा समाप्त हो गई और इसका स्थान पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग ने ले लिया।" इसी प्रकार के विचार प्रकट करते हुए ईश्वरी प्रसाद ने लिखा है कि "सन् 1942 के विद्रोह की अग्नि में औपनिवेशिक स्वराज्य की बात भस्म हो गई। भारत अब पूर्ण स्वतन्त्रता से कम के लिए तैयार नहीं था। अंग्रेजों का भारत छोड़ना निश्चित हो गया। यह ब्रिटिश साम्राज्यवाद को महान् धक्का था।"

(2) भारत छोड़ो आन्दोलन ने भारत की स्वतन्त्रता के लिए पृष्ठभूमि तैयार की।

(3) इस आन्दोलन के परिणामस्वरूप द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् इंग्लैण्ड तथा अमेरिका में लोकमत भारत के पक्ष में इतना अधिक हो गया था कि अंग्रेजों को विवश होकर भारत छोड़ना पड़ा। 

(4) इस आन्दोलन से उत्पन्न जन-चेतना के परिणामस्वरूप सन् 1946 में जल सेना का विद्रोह हुआजिसने भारत में ब्रिटिश शासन पर भयंकर चोट की।

भारत छोड़ो आन्दोलन का मूल्यांकन

यद्यपि भारत छोड़ो आन्दोलन अपने वास्तविक उद्देश्य में सफल नहीं हो सकातथापि यह मानना पड़ेगा कि इस आन्दोलन के फलस्वरूप देश की जनता में उत्साह और जागृति की अभूतपूर्व लहर दौड़ गई। कुछ अंग्रेज इतिहासकार इस आन्दोलन की आलोचना करते हुए कांग्रेस पर यह आरोप लगाते हैं कि इसके कार्यकर्ताओं ने गांधीजी के अहिंसा के सन्देश को भुलाकर हिंसात्मक तरीकों को अपनाया था। इस प्रकार कांग्रेस अपने सिद्धान्तों से हट गई थी। किन्तु उनका यह आरोप मिथ्या और अनुचित हैक्योंकि जब ब्रिटिश सरकार ने बिना किसी पूर्व सूचना के गांधीजी तथा अन्य नेताओं को बन्दी बना लियातो सरकार के इस गलत कार्य के विरोध में जनता को हिंसा का मार्ग अपनाना पड़ा। गांधीजी का 'करो या मरोका सन्देश पूर्ण रूप से अहिंसात्मक था। आन्दोलन का महत्त्व स्वीकार करते हुए डॉ. ईश्वरी प्रसाद ने लिखा है, "अगस्त क्रान्ति ब्रिटिश अत्याचार और दमन के विरुद्ध भारतीय जनता का विद्रोह था। इसकी तुलना फ्रांस के इतिहास में बास्तील के पतन या सोवियत रूस की अक्टूबर क्रान्ति से की जा सकती है। यह क्रान्ति जनता में उत्पन्न नवीन उत्साह तथा गरिमा की सूचक थी।" *


भारत छोड़ो आंदोलन का क्या महत्व?

Solution : भारत छोड़ो आंदोलन की विशेषता यह थी कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अन्य सभी प्रमुख नेता जेलों मे बंद थे। अतः इसे समाजवादियों तथा नौजवानों के नेतृत्व ने सफलतापूर्वक चलाया जिसने यह सिद्ध कर दिया कि भारत अब जाग गया है। अब इसे स्वतंत्र होने से नही रोका जा सकता। इस आंदोलन के अनुभव बहुत लाभकारी थे।

भारत छोड़ो आंदोलन की मुख्य विशेषता क्या थी?

समानांतर सरकार अथवा “प्रति-सरकार” का गठन : भारत छोड़ो आंदोलन की जो सबसे उल्लेखनीय विशेषता थी वह थी देश के कई भागों में समानांतर सरकारों का गठन | सबसे पहले अगस्त 1942 में ही उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में चित्तू पांडे के नेतृत्व में प्रथम समानांतर सरकार की घोषणा की गई | चित्तू पांडे एक गांधीवादी स्वतंत्रता सेनानी थे | ...

भारत छोड़ो का मुख्य उद्देश्य क्या है?

परिचय: 8 अगस्त, 1942 को महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन को समाप्त करने का आह्वान किया और मुंबई में अखिल भारतीय काँन्ग्रेस कमेटी के सत्र में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया। गांधीजी ने ग्वालिया टैंक मैदान में अपने भाषण में "करो या मरो" का आह्वान किया, जिसे अब अगस्त क्रांति मैदान के नाम से जाना जाता है

भारत छोड़ो आंदोलन का दूसरा नाम क्या है?

आजादी की लड़ाई में दो पड़ाव सबसे ज्यादा अहम हैं- पहला 1857 की क्रांति और दूसरा 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन, जिसे अगस्त क्रांति के नाम से भी जाना जाता है.