भक्तिन हनुमान जी से स्पर्धा क्यों करती है? - bhaktin hanumaan jee se spardha kyon karatee hai?

इसे सुनेंरोकेंलेखिका का नाम था-महादेवी। उसके घर काम करने वाली भक्तिन का नाम था लछमिन अर्थात् लक्ष्मी। दोनों को नामों के विरोधाभास में जीना पड़ रहा था। लेखिका महान देवी न होकर सामान्य नारी थी और भक्तिन लक्ष्मी जैसी समृद्ध न होकर अत्यंत गरीब, दीन-हीन थी।

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मेरे नाम की विशालता मेरे लिए दुर्वह है लेखिका के इस कथन में मूलतः क्या आशय निहित है *?

इसे सुनेंरोकें’महादेवी’ नाम लेखिका के लिए दुर्वह है। लेखिका चाहकर भी अपने नाम महादेवी के अनुरूप महान देवी नहीं बन पाई। इस नाम की विशालता का वहन करना उसके लिए सरल काम नहीं है।

भक्तिन के नाम और उसके जीवन में क्या विरोधाभास था *?

इसे सुनेंरोकेंउसके नाम व भाग्य में विरोधाभास है। वह सिर्फ़ नाम की लक्ष्मी है। समाज उसके नाम को सुनकर उसका उपहास न उड़ाए इसीलिए वह अपना वास्तविक नाम लोगों से छुपाती थी। भक्तिन को यह नाम लेखिका ने दिया।

भक्तिन का मूल लक्ष्य क्या होता था?

इसे सुनेंरोकेंवह परिश्रमी तथा तेजस्विनी थी। उसका पति उससे सच्चा प्रेम करता था, क्योंकि लड़कियाँ पैदा होने के बाद भी उसके प्रेम में कोई कमी नहीं आई। (घ) भक्तिन का ज्ञान गाय, भैंस, खेत-खलिहान, अमराई के पेड़ आदि के संबंध में बहुत अधिक था। इस ज्ञान के फलस्वरूप ही वह आर्थिक रूप से समृद्ध थी।

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अंगार शय्या के प्रयोग से महादेवी वर्मा क्या बताना चाहती हैं?

इसे सुनेंरोकें(ग) कवयित्री क्रांतिकारी को अपनी कोमल भावनाओं का बलिदान देने के लिए कहती है। ‘अंगार शय्या’ में रूपक अलंकार का प्रयोग है। ‘अंगार शय्या पर मधुर कलियाँ बिछाना’ में विरोध का आभास होता है। अतः यहाँ विरोधाभास अलंकार है।

भक्तिन को उसकी सास व जेठानी ताना देते हुए क्या कहती थी?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर-(ख) सास द्वारा प्यार से नैहर भेजना। हर बात पर लड़ने वाली सास प्यार से तैयार कर के भेजने के लिए तैयार थी। व्याख्यात्मक हल- भक्तिन की सास दिन रात उसे ताने और गालियां देती थी जब वह भक्तिन को प्यार से पहना, ओढ़ाकर अच्छी तरह तैयार कर मायके भेजने को कहती है तो यह अप्रत्याशित अनुग्रह ही था।

लेखिका ने यह क्यों कहा कि सभी को अपने अपने जीवन में नाम का विरोधाभास लेकर जीना ही पड़ता है?

इसे सुनेंरोकेंवैसे तो जीवन में प्राय: सभी को अपने-अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है; पर भक्तिन बहुत समझदार है, क्योंकि वह अपना समृद्धि-सूचक नाम किसी को बताती नहीं। केवल जब नौकरी की खोज में आई थी, तब ईमानदारी का परिचय देने के लिए उसने शेष इतिवृत्त के साथ यह भी बता दिया; पर इस प्रार्थना के साथ कि मैं कभी नाम का उपयोग न करूँ।

5 विमाता ने भक्तिन को उसके पिताजी की मृत्यु का समाचार देर से क्यों भेजा?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर- (क) भक्तिन की विमाता स्वभाव से ईष्र्यालु और लालची थी इसलिए जानबूझ कर उसने भक्तिन के पिता की गम्भीर बीमारी और रोग का समाचार उसकी ससुराल में तब भेजा जब उनकी ;पिताजीद्ध मृत्यु हो चुकी थी क्योंकि विमाता नहीं चाहती थी कि वह अपने पिता की सम्पत्ति में हिस्सा माँगे।

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भक्तिन पाठ की मूल समस्या क्या है?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर-भक्तिन का वास्तविक नाम लक्ष्मी था, हिन्दुओं के अनुसारलक्ष्मी धन की देवीहै। चूँकि भक्तिन गरीब थी| उसके वास्तविक नाम के अर्थ और उसके जीवन के यथार्थ में विरोधाभास है, निर्धन भक्तिन सबको अपना असली नाम लक्ष्मी बताकर उपहास का पात्र नहीं बनना चाहती थी इसलिए वह अपना असली नाम छुपाती थी।

भक्तिन द्वारा सेवक धर्म में हनुमान जी से स्पर्धा लेने का क्या तात्पर्य है?

इसे सुनेंरोकेंमहादेवी वर्मा सेवक-धर्म में हनुमान जी से स्पर्द्धा करने वाली भक्तिन किसी अंजना की पुत्री न होकर एक अनामधन्या गोपालिका की कन्या है-नाम है लछमिन अर्थात् लक्ष्मी। पर जैसे मेरे नाम की विशालता मेरे लिए दुर्वह है, वैसे ही लक्ष्मी की समृद्धि भक्तिन के कपाल की कुंचित रेखाओं में नहीं बँध सकी।

छोटी बहू कौन थी?

इसे सुनेंरोकेंछोटी बहू बड़े घर की, अत्याधिक पढ़ी-लिखी बेटी थी। शादी के पूर्व वह अपने मायके में राज करती आई थी। परंतु अब उसे यहाँ पर अपने ससुराल में हर एक का आदर करना पड़ता था, हर एक से दबना पड़ता था, और हर एक का आदेश मानना पड़ता था इसलिए यहाँ उसका व्यक्तित्व एक प्रकार से दब-सा गया था और इसी कारण उसका मन नहीं लगता था।

भक्तिन को किस कारण कौन कौन से कष्ट सहने पड़े?

इसे सुनेंरोकेंवह असमय विधवा हो गई। दुर्भाग्य को हठी इसलिए कहा गया है क्योंकि बेटी के विधवा होने के दुख से पहले भक्तिन को बचपन से ही माता का बिछोह, अल्पायु में विवाह, विमाता का दंश, पिता की अकाल मृत्यु व असमय पति की मृत्यु से जीवन में अनेक कष्ट सहने पड़े।

2 भक्तिन और महादेवी वर्मा के पारस्परिक संबंधों को सेवक स्वामी संबंध क्यों नहीं कहा जा सकता?`?

इसे सुनेंरोकेंभक्तिन और लेखिका के पारस्परिक संबंधों को सेवक-स्वामी संबंध इसलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि उन दोनों में आत्मीय संबंध थे। भक्तिन अपनी स्वामी की तन-मन से सेवा करती थी। वह उनके दिल से ही नहीं बल्कि घर की हर वस्तु से आत्मिक रूप से जुड़ी थी।

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शेष इतिवृत्त से महादेवी वर्मा का क्या अभिप्राय है?

इसे सुनेंरोकेंवैसे तो जीवन में प्राय: सभी को अपने-अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है; पर भक्तिन बहुत समझदार है, क्योंकि वह अपना समृद्धि सूचक नाम किसी को बताती नहीं। केवल जब नौकर की खोज में आई थी, तब ईमानदारी का परिचय देने के लिए उसने शेष इतिवृत्त के साथ यह भी बता दिया; पर इस प्रार्थना के साथ कि मैं कभी नाम का उपयोग न करूँ।

छोटी बहू कौन थी उसने कौन सा अपराध किया था?

इसे सुनेंरोकेंछोटी बहू के लीक छोड्कर चलने के कारण उसे दंड मिलना आवश्यक हो गया था। जिठानियाँ बैठकर लोक-चर्चा करतीं और उनके कलूटे लड़के धूल उड़ाते; वह मट्ठा फेरती, कूटती पीसती, राँधती और उसकी नन्ही लड़कियाँ गोबर उठातीं, कडे पाथतीं।

भक्तन के प्रति सास का अप्रत्याशित अनुग्रह क्या था?

इसे सुनेंरोकेंहर बात पर लड़ने वाली सास प्यार से तैयार कर के भेजने के लिए तैयार थी। व्याख्यात्मक हल- भक्तिन की सास दिन रात उसे ताने और गालियां देती थी जब वह भक्तिन को प्यार से पहना, ओढ़ाकर अच्छी तरह तैयार कर मायके भेजने को कहती है तो यह अप्रत्याशित अनुग्रह ही था।

पिता की मृत्यु का समाचार भक्तिन को उसकी सौतेली मां ने कब भेजा और क्यों?

भक्तिन हर वीरवार को क्या करती थी?

इसे सुनेंरोकेंभक्तिन हर हफ्ते बृहस्पतिवार को गंगाजल से धुले उस्तरे से अपने बाल उतरवाती थी। भक्तिन विधवा थी। उसकी समझ के अनुसार शास्त्रो में ऐसा लिखा है कि विधवा को सिर मुँडाए बिना सिद्धि नहीं मिलती। वह शास्त्र में बताए नियम का पालन करती थी।

भक्तिन को हनुमान जी से स्पर्धा करने वाली क्यों कहा गया है?

(ii) महान सेविका- भक्तिन एक महान सेविका है। वह अपना प्रत्येक कार्य पूर्ण श्रद्धा, मनोयोग, कर्मठता और कर्तव्य भावना से करती है। उसकी सेवा-भावना को देखकर ही महादेवी वर्मा जी ने उसे हनुमान जी से स्पर्धा करनेवाली बताया है।

भक्ति के संदर्भ में हनुमान जी का उल्लेख क्यों हुआ है?

भक्तिन के संदर्भ में हनुमान जी का उल्लेख इसलिए हुआ है क्योंकि भक्तिन लेखिका महादेवी वर्मा की सेवा उसी नि:स्वार्थ भाव से करती थी, जिस तरह हनुमान जी श्री राम की सेवा नि:स्वार्थ भाव से किया करते थे।

सेवक धर्म में भक्तिन की तुलना हनुमान जी से क्यों की गई है?

भक्तिन की तुलना हनुमान जी से की गई है। हनुमान जी राम के अनन्य सेवक थे। इसी प्रकार भक्तिन लेखिका की अनन्य सेविका थी।

भक्तिन को सेवक धर्म में हनुमानजी की स्पर्द्धा करने वाली कहने में लेखिका का निहितार्थ क्या है?

1. भक्तिन की तुलना हनुमान जी से की गई है। हनुमान जी राम के अनन्य सेवक थे। इसी प्रकार भक्तिन लेखिका की अनन्य सेविका थी।