अशोक के अभिलेखों की भाषा कौन सी है? - ashok ke abhilekhon kee bhaasha kaun see hai?

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Contents

  • 1 अशोक के अभिलेख Ashok ke abhilekh
    • 1.1  अशोक के अभिलेख Ashok ke abhilekh
    • 1.2 अशोक के अभिलेखों को सर्वप्रथम किसने पढ़ा
      • 1.2.1  अशोक के अभिलेखों में वर्णित विषय 
      • 1.2.2 The subject mentioned in the records of Ashoka
      • 1.2.3   सम्राट अशोक के बौद्ध धर्म स्वीकार का वर्णन 
      • 1.2.4  Description of Ashoka’s adoption of Buddhism
      • 1.2.5 सम्राट अशोक द्वारा भारत के बाहर बौद्ध धर्म के प्रचार का वर्णन 
      • 1.2.6  Ashoka describes the promotion of Buddhism abroad
  • 2 मगध का इतिहास 
  • 3 पाकिस्तान में मिला 1,300 साल पुराना मंदिर
  • 4 बुद्ध कालीन भारत के गणराज्य
    • 4.1              स्तम्भ लेख (Piller-Edicts )
    • 4.2  दिल्ली टोपरा स्तंभ लेख– Delhi Topra Pillar Articles-
  • 5 तक्षशिला | तक्षशिला विश्वविद्यालय किस शासक द्वारा स्थापित किया गया
      • 5.0.1  दिल्ली -Meerut column article
      • 5.0.2 रमपुरवा स्तंभ लेख- Rampurwa column article-
      • 5.0.3  लौरिया अरराज का स्तंभ लेख – Lauria Arraj column article –
      • 5.0.4  लौरिया नंदनगढ़ का स्तंभ लेख – Lauria Nandangarh Pillar Articles –
      • 5.0.5  सांची सारनाथ– Sanchi Sarnath –
      • 5.0.6  सांची सारनाथ– Sanchi Sarnath –
      • 5.0.7  प्रथम कलिंग शिलालेख –  First Kalinga inscription –
      • 5.0.8  भाब्रू शिलालेख-  Bhabru inscription-
      • 5.0.9              गुहा लेख ( Cave Inscription )
      • 5.0.10 Related

अशोक के अभिलेख Ashok ke abhilekh

        मौर्य सम्राट अशोक के विषय में सम्पूर्ण समूर्ण जानकारी उसके अभिलेखों से मिलती है। यह मान्यता है कि , अशोक को  अभिलेखों की प्रेरणा डेरियस (ईरान के शासक ) से मिली थी।  अशोक के 40 से भी अधिक अभिलेख भारत के बिभिन्न स्थानों से प्राप्त हुए हैं। ‘अशोक के अभिलेख Ashok ke abhilekh‘ ब्राह्मी , खरोष्ठी और आरमेइक-ग्रीक लिपियों में लिखे गए हैं। अशोक के ये शिलालेख हमें अशोक द्वारा बौद्ध धर्म के प्रसार हेतु किये गए उन प्रयासों का पता चलता है जिनमें अशोक ने बौद्ध धर्म को भूमध्य सागर तक से लेकर मिस्र तक बुद्ध धर्म को पहुँचाया। अतः यह भी स्पष्ट हो जाता है कि मौर्य कालीन राजनैतिक संबंध मिस्र और यूनान से जुड़े हुए थे। इन शिलालेखों में बौद्ध धर्म की बारीकियों पर कम सामन्य मनुष्यों को आदर्श जीवन जीने की सीखें अधिक मिलती हैं। पूर्वी क्षेत्रों में यह आदेश प्राचीन मागधी में ब्राह्मी लिपि के प्रयोग  लिखे गए थे। पश्चिमी क्षेत्रों के शिलालेख खरोष्ठी लिपि में हैं। एक शिलालेख में यूनानी भाषा प्रयोग की गयी है, जबकि एक अन्य शिलालेख में यूनानी और आरमेइक भाषा में द्वभाषीय आदेश दर्ज है। इन शिलालेखों में सम्राट स्वयं को “प्रियदर्शी” ( प्रकृत में  “पियदस्सी”) और देवानाम्प्रिय ( अर्थात डिवॉन को प्रिय , प्राकृत में “देवनंपिय”) की उपाधि से सम्बोधित किया है।

अशोक के अभिलेखों की भाषा कौन सी है? - ashok ke abhilekhon kee bhaasha kaun see hai?
अशोक स्तम्भ


 

 

          अनुक्रम

 अशोक के अभिलेखों में वर्णित विषय 

बौद्ध धर्म को ग्रहण करने का वर्णन 

विदेश में धर्म प्रचार का वर्णन 

शिलालेख

लघु शिलालेख

स्तम्भ लेख

गुहालेख

खरोष्ठी लिपि 

ब्राह्मी लिपि

 

 

 अशोक के अभिलेख Ashok ke abhilekh

     सम्राट अशोक का इतिहास हमें मुख्यतः उसके अभिलेखों से ही ज्ञात होता है। उसके अभी तक 40 से भी अधिक अभिलेख प्राप्त हो चुके हैं, जो देश के एक कोने से दूसरे कोने तक विस्तृत हैं। जहां एक ओर  यह अभिलेख उसके साम्राज्य कीसीमा के निर्धारण में हमारी सहायता करते हैं। वहीं दूसरी ओर इनसे उसके धर्मएवं प्रशासन सम्बन्धी अनेक महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त होती हैं। इनअभिलेखों का इतना अधिक महत्व है कि डी०आर० भंडारकर जैसे चोटी के विद्वान ने केवल अभिलेखों के आधार पर ही अशोक का इतिहास लिखने का सफल प्रयास किया है। कहा जा सकता है कि यदि यह अभिलेख प्राप्त नहीं होते तो अशोक जैसे महान सम्राट के विषय में हमारा ज्ञान सर्वथा अपूर्ण ही रहता।

अशोक के अभिलेखों को सर्वप्रथम किसने पढ़ा

     अशोक के अभिलेख भारत के प्राचीनतम सर्वाधिक सुरक्षित एवं सुनिश्चित तिथियुक्त आलेख हैं।1837 ईस्वी में जेम्स प्रिंसेप ने इन अभिलेखों की ब्राह्मी लिपि का गूढ़वाचन करके इनके रहस्य को उद्घाटित किया।  

       परंतु उस समय एक भ्रांति भी उत्पन्न हो गई जब उन्होंने लेखों केदेवानांपियाकी पहचान सिंगल (श्रीलंका) के राजा तिस्स से कर डाली। कालांतर में यह तथ्य प्रकाश में आया कि सिंहली अनुश्रुतियों–दीपवंश तथा महावंश में यह उपाधि अशोक के लिए प्रयुक्त की गई है। अंततः 1915 ईस्वी में मास्की से प्राप्त लेख में अशोक नाम भी पढ़ लिया गया। शहनाज गढ़ी एवं मानसेहरा (पाकिस्तान) के अभिलेख खरोष्ठी लिपि में उत्कीर्ण हैं।  तक्षशिला एवं लघमान (काबुल) के समीप अफगानिस्तान अभिलेख आरमेइक एवं ग्रीक में उत्कीर्ण हैं।  इसके अतिरिक्त अशोक के समस्त शिलालेख ,लघुस्तम्भ लेख एवं  लघु लेख ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण हैं। अशोक का इतिहास भी हमें इन अभिलेखों होता है 

 अशोक के अभिलेखों में वर्णित विषय 

The subject mentioned in the records of Ashoka

  सम्राट अशोक के बौद्ध धर्म स्वीकार का वर्णन 

 Description of Ashoka’s adoption of Buddhism

      अशोक अपने शिलालेखों में इस बात का वर्णन करता है कि कलिंग को 261 ईसा पूर्व में विजयी  करने के पश्चात् उसने पश्चाताप किया जिसके फलस्वरूप उसने बौद्ध धर्म ग्रहण किया:

    देवों के प्रिय सम्राट प्रियदर्शी ने अपने राज्याभिषेक के आठ वर्ष बाद कलिंग को पराजित किया। डेढ़ लाख लोगों को निर्वासित किया, एक लाख लोग मरे गए और अन्य कारणों से और बहुत मारे गए। कलिंगों को अपने अधीन करके देवोँ के प्रिय को बौद्ध धर्म की ओर आकर्षण हुआ , धर्म और धर्म शिक्षा से प्रेम हुआ।  अब देवों के प्रिय को कलिंगों को परास्त करने का गहरा पछतावा है। (शिलालेख संख्या 13)

  बौद्ध धर्म स्वीकार करने  के बाद सम्राट अशोक ने धार्मिक यात्राओं का शुभारम्भ किया। जिन-जिन स्थानों पर अशोक ने धार्मिक यात्राएं की वहां पर बौद्ध धर्म से संबंधित आदर्शों और अपनी राजाज्ञाओं को शिलालेखों के माध्यम से जनता तक पहुँचाया, जिससे लोगों को अशोक और बौद्ध धर्म के विषय में विस्तार से जानकारी मिली।

   अपने राज्याभिषेक के बीस वर्ष बाद देवों के प्रिय सम्राट प्रियदर्शी इस स्थान ( लुम्बिनी ) पर आये और पूजा की क्योंकि यहाँ शाक्यमुनि बुद्ध पैदा हुए थे। लुम्बिनी की यात्रा दौरान सम्राट अशोक ने एक पाषाण मूर्ति और एक स्तम्भ लेख की स्थापना कराई, क्योंकि यह भगवान बुद्ध के जन्म से जुड़ा स्थान है जिसका नाम लुम्बिनी है। लुंबनी के गांव को लगान में छूट दी गयी और फसल का केवल आठवां हिस्सा कर के रूप में देना पड़ा। ( छोटा स्तम्भ, शिलालेख संख्या 1)

सम्राट अशोक द्वारा भारत के बाहर बौद्ध धर्म के प्रचार का वर्णन 

 Ashoka describes the promotion of Buddhism abroad

     सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के के प्रचार एवं प्रसार हेतु अपने धार्मिक दूत भारत के साथ-साथ भूमध्यसागर तक भेजे। सम्राट अशोक के शिलालेखों में और स्तम्भलेखों में यूनान से लेकर उत्तरी अफ्रीका तक के समकालीन शासकों के वास्तविक नाम अंकित मिलते हैं जिससे सिद्ध होता है मौर्य शासक विषेशकर सम्राट अशोक विदेश नीति में निपुण था और वह राजनैतिक गतिविधियों पर पैनी नजर रखे हुए था।

      अब धर्म की जीत को ही देवों-के-प्रिय सबसे उत्तम जीत मानते मानते हैं। और यही यहाँ सीमाओं पर जीती गयी है, छह सौ योजन दूर भी, जहाँ यूनानी राजा एण्टियोकस (अम्तियोकस) का शासन है और उस से आगे जहाँ चार टॉलेमी (तुरमाये), अम्तिकिनी (अन्तिगोनस), माका (मागस) और अलिकसुदारो (एलेक्ज़ेंडर) नामक राजा शासन करते हैं और उसी तरह दक्षिण में चोल, पाण्ड्य, और ताम्रपर्णी (श्रीलंका) तक।(शिलालेख संख्या 13)

     हर योजन सात मील होता है इसलिए छः सौ योजन का अर्थ लगभग चार हज़ार मील है जो इस समय के लगभग समान है, जो भारत के केंद्र से लगभग यूनान के केंद्र की दूरी है। जिन शासकों का यहाँ वर्णन है वह इस प्रकार है —

 

अम्तियोको का तारतम्य सीरिया के अन्तियोकस second से जोड़ा गया है (antiochus second  जिसका शासनकाल 261-246 ईसापूर्व तक माना गया है )

 

तुरमाये नामक नाम के शासक का तारतम्य मिस्र के टॉलेमी द्व्तीय फिलाडेल्फस ( Ptolemy II Philadelphos, शासनकाल 278-247 ईसापूर्व) के साथ जोड़ा गया है।

 

अम्तिकिनी मासेदोन (यूनान) के अन्तिगोनस सेकंड गोनातस ( Antigonus II Gona tas शासनकाल 278-250 ईसापूर्व)

 

एक अन्य शासक माका सएरीन का तारतम्य (लीबिया) के मागस (Magas of Cyrene शासनकाल 276-250 ईसापूर्व के साथ जोड़ा गया है 

 

 इसी प्रकार यूनान और अल्बानिया के बीच का एक क्षेत्र के शासक अलिकसुदारो इपायरस का तारतम्य अलेक्सेंडर द्वितीय (Alexander II शासनकाल 272-258 ईसापूर्व)के साथ जोड़ा गया है  

    अशोक के अभिलेखों का विभाजन तीन वर्गों में किया जा सकता है 

1-शिलालेख, 2- स्तम्भलेख और 3- गुहालेख 

 

शिलालेख 

शिलालेख चौदह विभिन्न लेखों का एक समूह है। ये चौदह शिलालेख आठ भिन्न-भिन्न स्थानों से प्राप्त हुए हैं —–

1 – शहबाजगढ़ी – वर्तमान पाकिस्तान के पेशावर जिले में स्थित 

2 – मानसेहरा  – हजारा जिले में स्थित 

3 – कालसी    – उत्तराखंड के देहरादून जिले में स्थित

4 -गिरनार – गुजरात राज्य के काठीयाबाड़ में जूनागढ़ के समीप स्थित गिरनार की पहाड़ी

5- धौली – उड़ीसा राज्य केपुरी जिले में स्थित एक गांव 

6- जौगढ़ – उड़ीसा राज्य के गंजाम जिले में स्थित 

7 – एर्रागुड़ी -आंध्र प्रदेश राज्य के कर्नूल जिले में स्थित 

8 – सोपारा – महाराष्ट्र जिले के थाना जिले में स्थित 

     धौली तथा जौगढ़ के शिलालेखों पर ग्यारहवें, बारहवें तथा तेरहवें शिलालेख उत्कीर्ण नहीं किये गए हैं। उनके स्थान दो अन्य लेख खुदे पाए जाते हैं उन्हें पृथक कलिंग-प्रज्ञापन ( separate kalinga Edicts ) kaha gya hai . इनमें अन्य बातों के अलाबा कलिंग राज्य के प्रति सम्राट अशोक की शासन नीति के विषय में बताया गया है। वह कलिंग के नगर ‘व्यवहारिक़ों’ को न्याय के मामले में उदार तथा निष्पक्ष होने का आदेश देता है। 

 यह भी पढ़िए 

चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय की उपलब्धियां तथा इतिहास मगध का इतिहास पाकिस्तान में मिला 1,300 साल पुराना मंदिरबुद्ध कालीन भारत के गणराज्य

 लघु शिलालेख 

इनलघु शिलालेखों को चौदह शिलालेखों के मुख्य वर्ग में सम्मलित नहीं किया किया जाता है और इसी कारण इन्हें लघु शिलालेख कहा जाता है।ये विभिन्न स्थानों से प्राप्त हुए हैं जिनका विवरण इस प्रकार है —

1- रूपनाथ – मध्यप्रदेश राज्य के जबलपुर जिले में 

2- गुर्जर – मध्यप्रदेश राज्य के दतिया जिले में 

3- सहसाराम – बिहार राज्य में स्थित 

4- भब्रू( वैराट ) -राजस्थान के जयपुर जिले में स्थित 

5- मास्की – कर्नाटक के रायपुर जिले में स्थित 

6- ब्रह्मगिरि – कर्नाटक के चित्तलदुर्ग जिले में स्थित 

7- सिद्धपुर – ब्रह्मगिरि के एक मील पश्चिम में स्थित 

8- जटिंगरामेश्वर – ब्रह्मगिरि के तीन मील उत्तर-पश्चिम में स्थित 

9- एर्रागुडी – आंध्र प्रदेश के कर्नुल जिले में स्थित 

10- गोविमठ – कर्नाटक के मैसूर के कोपबल नामक स्थान के समीप स्थित 

11- पालकिगुंडु – गोविमठ से चार मील की दुरी पर स्थित 

12- राजुल मंडगिरि – आंध्र प्रदेश के कर्नूल जिले में स्थित 

13- अहरिरा उत्तर प्रदेश राज्य के मिर्जापुर जिले  स्थित 

   सारो मारो ( शहडोल मध्य प्रदेश ), पंनगुडरिया ( सिहोर मध्य प्रदेश ) तथा नेत्तूर नामक स्थानों से लघु शिलालेख की दो अन्य प्रतियां प्राप्त हुई हैं। एक अन्य लेख उडेगोलम ( बेलाड़ी कर्नाटक ) से मिला है। के० डी० बाजपेयी को पनगुडरिया ( सिहोर मध्य प्रदेश ) से अशोक का एक लघु शिलालेख मिला है। जनवरी 1989 में कर्नाटक के गुलबर्गा जिले में स्थित सन्नाती नामक स्थान से अशोक-कालीन शिलालेख प्राप्त किया है। 

* मास्की, गुजर्रा, नेत्तूर तथा उडेगोलम के लेखों में अशोक का व्यक्तिगत नाम ( अशोक ) भी मिलता है।

 

    उत्तरी शिलालेख- Northern inscription-

          दो उत्तरी शिलालेखों में तक्षशिला से (पाकिस्तान) भग्न दशा में प्राप्त यह शिलालेख आरमाइक भाषा में है। दूसरा शिलालेख अफगानिस्तान में कंधार नगर के समीप मिला है , जो यूनानी (ग्रीक)और आरमाइक दो भाषाओं में है। चूंकि इस प्रदेश में यूनानी भाषा बोलने वाले लोग रहते थे अतः इसे यूनानी एवं स्थानीय आरमाइक भाषा में उत्कीर्ण कराया गया। तीसरा उत्तरी शिलालेख लभगान ( जलालाबाद के निकट अफगानिस्तान ) से प्राप्त हुआ है जो आरमाइक भाषा में है। इस शिलालेख में भी देवानाम्प्रिय के धर्म संबंधी प्रयासों का उल्लेख है। चौथा उत्तरी शिलालेख 1963 में स्ट्रॉसबुर्ग विश्वविद्यालय जर्मनी के प्रोफ़ेसर श्लुम्बर्गर को प्राप्त हुआ था। इस शिलालेख की भाषा साहित्यिक यूनानी है। लिपि अत्यंत सुंदर है।

अशोक के अभिलेखों की भाषा कौन सी है? - ashok ke abhilekhon kee bhaasha kaun see hai?
अशोक स्तम्भ


 

             स्तम्भ लेख (Piller-Edicts )

इन स्तंभ लेखों की संख्या सात है जो छः भिन्न-भिन्न स्थानों में पाषाण-स्तंभों पर उत्कीर्ण कराए गए थे। यह इस प्रकार हैं——-

 दिल्ली टोपरा स्तंभ लेख– Delhi Topra Pillar Articles-

       यह प्रारंभ में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर (खिज्राराबाद) जिले में गड़ा था। मध्यकाल में वह तुगलक शासक फिरोशाह द्वारा अपनी नवीन राजधानी फिरोजशाह कोटला ( दिल्ली) लाया गया। इस स्तम्भ लेख पर सम्राट अशोक के सातों अभिलेख उत्कीर्ण है, जबकि अन्य  स्तंभों पर केवल छः लेख ही उत्कीर्ण पाए जाते हैं।

यह भी पढ़िए 

मोहम्मद साहब की बेटी का क्या नाम था | फाइमाही/ फ़ातिमा – पैग़म्बर मुहम्मद साहब की बेटी

इल्तुतमिश | Iltutmish

तक्षशिला | तक्षशिला विश्वविद्यालय किस शासक द्वारा स्थापित किया गया

 दिल्ली -Meerut column article

 मेरठ स्तंभ लेख- यह स्तंभ लेख मेरठ में था तथा बाद में फिरोज तुगलक द्वारा दिल्ली में लाया गया। कहा जाता है कि मुग़ल सम्राट फर्रूखसियर के शासन दौरान (1713-19) बारूदखाने में रखे विस्फोटक में विस्फोट होने के कारण यह स्तंभ खंडित हो गया और बाद में 1867 में इसे पुनर्स्थापित किया गया।                  

प्रयाग इलाहाबाद स्तंभ लेख- Prayag Allahabad Pillar Articles-

 यह स्तंभ लेख पहले कौशांबी मैं था तथा बाद में अकबर द्वारा लाकर इलाहाबाद के किले में रखवाया गया। सम्राट अशोक द्वारा उत्कीर्ण इस स्तंभ लेख में कौशांबी के महामात्र के नाम से आदेश के रूप में हैं। इसमें यह चेतावनी दी गई है कि यदि कोई भिक्षु या भिक्षुणी संघ को भंग करने का प्रयास करेगा तो उसे श्वेत वस्त्र पहनाकर संघ से बाहर निकाल दिया जाएगा। इसी स्थान पर अशोक का दूसरा अभिलेख भी उत्कीर्ण है जिसमें सम्राट अशोक की द्वितीय पत्नी देवी या रानी कारूवाकी ( चरुवाकि अथवा कालुवाकी ) जिसे राजकुमार तीवर की माता कहा गया है, द्वारा बौद्ध संघ कोप्रदत्त दान का उल्लेख हैयही कारण है कि इसे इसे रानी अभिलेख ( या Queen Edict ) कहा जाता है।

      इसी स्तंभ पर परवर्ती काल में दो अन्य अभिलेख उत्कीर्ण कराए गए। पहलाअभिलेख गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त की प्रसिद्ध प्रयाग प्रशस्ति है जिसकीरचना कवि हरिषेण ने की थी और जिस में समुद्रगुप्त की विजयों का विस्तृतउल्लेख है। इसी स्तम्भ पर दूसरा अभिलेख जहांगीर द्वारा उत्कीर्ण कराया गया।

रमपुरवा स्तंभ लेख- Rampurwa column article-

 बिहार के चंपारण जिले में बेतिया के उत्तर में रामपुरवा नामक स्थान से यह स्तंभ प्राप्त हुआ है। इसके शीर्ष पर सिंह की मूर्ति को सिल्पित किया गया था, परंतु यह अब उपलब्ध नहीं है। इस स्तम्भ पर भी पूर्वोक्त 6 अभिलेखों को उत्कीर्ण किया गया है।

 लौरिया अरराज का स्तंभ लेख – Lauria Arraj column article –

       यह स्तम्भ लेख वर्तमान उत्तरी बिहार के चंपारण जिले के लौरिया अरराज नामक ग्राम में इस स्तम्भ की स्थापना की गई, जिस पर दिल्ली-टोपरा वाले छ: स्तम्भ लेखों उत्कीर्ण कराया गया।

 लौरिया नंदनगढ़ का स्तंभ लेख – Lauria Nandangarh Pillar Articles –

 यह स्तंभ लेख भी बिहार के चंपारण जिले में है। इस स्तंभ का शीर्ष कमलाकार है जिसके ऊपर उत्तर की ओर मुख किए हुए सिंह की मूर्ति उत्कीर्ण है और शीर्ष के नीचे उपकण्ठ पर राजहंसों की पंक्तियों को मोती चुगते दिखाया गया है। इस स्तंभ पर भी दिल्ली-टोपरा वाले छ: अभिलेख उत्कीर्ण हैं।

      इसी प्रकार तीन अन्य महत्वपूर्ण लघु स्तंभ लेख- सारनाथ, सांची तथा कौशांबी सेप्राप्त हुए हैं सारनाथ के स्तंभ लेख में भी अशोक द्वारा चेतावनी स्वरुप बौद्ध संघ में फूट डालने वालेभिक्षु या भिक्षुणियों के लिए दंड की व्यवस्था की गई है। इलाहाबाद स्तंभ लेखपर उत्कीर्ण रानी अभिलेखको भी लघु स्तम्भ लेखों की श्रेणी में गिना जाताहै। 

    सम्राट अशोक की राजकीय राजाज्ञाएं जिन तीन पाषाण स्तम्भों पर उत्कीर्ण हैं उन्हें सामन्यतः लघु स्तम्भ लेख(Minor Pillar Edicts) कहा जाता है यह निम्नलिखित स्थानोंसे मिलते हैं-

सांची- रायसेन जिला मध्य प्रदेश।

सारनाथ- वाराणसी उत्तर प्रदेश।

कौशांबी- इलाहाबाद के समीप उत्तर प्रदेश।

रुम्मिनदेई- नेपाल की तराई में स्थित।

निग्लीवा ( निगाली सागर)- यह भी नेपाल की तराई में स्थित है।

 सांची सारनाथ– Sanchi Sarnath –

   कौशांबी के लघु स्तंभ लेख में अशोक अपने महामात्रों को संघ-भेद रोकने काआदेश देता है। कौशांबी तथा प्रयाग के स्तम्भों में अशोक की रानी कारूवाकीद्वारा दान दिए जाने का उल्लेख है। इसे रानी का अभिलेख भी कहा गया हैरूम्मिनदेई स्तंभ में अशोक द्वारा इस स्थान की धर्म यात्रा पर जाने काविवरण है, तथा निग्लीवा के लघु स्तम्भ लेख में कनक मुनि के स्तूप के संवर्द्धन के विषय का वर्णन है।

 सांची सारनाथ– Sanchi Sarnath –

   कौशांबी के लघु स्तंभ लेख में अशोक अपने महामात्रों को संघ-भेद रोकने काआदेश देता है। कौशांबी तथा प्रयाग के स्तम्भों में अशोक की रानी कारूवाकीद्वारा दान दिए जाने का उल्लेख है। इसे रानी का अभिलेख भी कहा गया हैरूम्मिनदेई स्तंभ में अशोक द्वारा इस स्थान की धर्म यात्रा पर जाने काविवरण है, तथा निग्लीवा के लघु स्तम्भ लेख में कनक मुनि के स्तूप के संवर्द्धन के विषय का वर्णन है।

अशोक के अभिलेखों की भाषा कौन सी है? - ashok ke abhilekhon kee bhaasha kaun see hai?
अशोक स्तम्भ लेख

                            

 प्रथम कलिंग शिलालेख –  First Kalinga inscription –

    सम्राट अशोक का प्रथम कलिंग शिलालेख को नवविजित कलिंग प्रदेश में धौली ( यह स्थान भुवनेश्वर से 8 किलोमीटर दक्षिण में स्थित उड़ीसा ) और जौगड़ यह दो शिलालेख 14 वृहद् शिलालेखों की श्रंखला का अनुपूरक हैं इन शिलालेखों में अशोक की पैतृक राजतंत्र की अवधारणा का वर्णन है। इन पृथक शिलालेखों की प्रमुख विशेषता यह है कि इनमें शासन संचालन के उन मानवोचित सिद्धांतों का भी चित्रण मिलता है जिनके आधार पर नवविजित कलिंग प्रांत पर प्रशासन किया जाना था।

 भाब्रू शिलालेख-  Bhabru inscription-

यह एक शिलाखंड पर उत्कीर्ण है जो कि अब कोलकाता में है। इसे वैराट की एक पहाड़ी की चोटी से हटाकर यहां लाया गया था। इससे बौद्ध धर्म के प्रति अशोक की श्रद्धा प्रकट होती है।

             गुहा लेख ( Cave Inscription )

     दक्षिणीबिहार के गया जिले में स्थित बाराबर नामक पहाड़ी की तीन गुफाओं की दीवारोंपर अशोक के लेख उत्कीर्ण पाए गए हैं। इनमें अशोक द्वारा आजीवक संप्रदाय केसाधुओं के निवास के लिए गुहा-दान में दिए जाने का विवरण सुरक्षित है। अशोकके समय में बाराबर पहाड़ी का नाम खलतिक पहाड़ी था। समीपवर्ती नागार्जुनीगुफा में अशोक के पौत्र दशरथ के तीन गुहा लेख हैं । यह सभी अभिलेख प्राकृतभाषा में तथा ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं।

खरोष्ठी लिपि Kharoshthi script- यह लिपि दाएं से बाएं लिखी जाने वाली शीघ्र लिपि है। अशोक के शिलालेखों में केवल शाहबाजगढ़ी और मानसेहरा स्थित अभिलेख इस लिपि में लिखित हैं।

ब्राह्मी लिपि Brahmi script यह लिपि बाएँ से दाएँ लिखी जाती थी। अशोक के अन्य सभी अभिलेख ब्राह्मी लिपि में लिखे हुए मिलते हैं।

      तक्षशिला तथा कंधार से प्राप्त दो उत्तरी अभिलेख यूनानी एवं आरमाइक लिपियों में अभिलिखित हैं पूर्वोक्त इन अभिलेखों के अतिरिक्त अशोक के अभिलेखों की भाषा प्राकृत है। परन्तु विभिन्न अभिलेखों की प्राकृत भाषा में क्षेत्रीय अन्तर स्पष्टतः दिखाई देता है।

निष्कर्ष 

          इस प्रकार अशोक के शिलालेख मौर्य साम्राज्य के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं। ये शिलालेख मौर्य शासकों की धार्मिक, सामाजिक, और राजनैतिक परिस्थितियों को वास्तविक रूप में प्रस्तुत करते हैं। बौद्ध धर्म के प्रसार में अशोक के शिलालेखों  महत्वपूर्ण स्थान है।  इन शिलालेखों में जनसामान्य की भाषा का प्रयोग किया गया ताकि जनसामान्य को भलीभांति समझाया जा सके।

अशोक के अभिलेखों की कौन सी भाषा थी?

अशोक के गुहा-लेख इन सभी की भाषा प्राकृत तथा लिपि ब्राह्मी है।

सबसे बड़ा अभिलेख कौन सा है?

Notes: अशोक के 13वें शिलालेख सबसे लंबा शिलालेख है। इसमें अशोक की कलिंग विजय का वर्णन है। इसके अलावा अशोक के धम्म की ग्रीक, यवन, सीलोन आदि राजाओं पर विजय का वर्णन है। और अनेक राजाओं का वर्णन है।

विश्व का सबसे प्राचीन अभिलेख कौन सा है?

सबसे प्राचीन अभिलेख बोगजकोई अभिलेख है। इस अभिलेख का निर्माण मितन्वी शासकों द्वारा किया गया था। जिस कारण इसे मितन्वी अभिलेख भी कहा जाता है। बोगजकोई या मितन्वी यह सबसे प्राचीन अभिलेख एशिया माइनर अर्थात मध्य एशिया से प्राप्त हुआ है। जिसका समय लगभग 1400 ई.

अशोक का सबसे छोटा शिलालेख कौन सा है?

अशोक के प्रमुख लघु अभिलेख साँची सारनाथ, कौशाम्बी, तथा निगालीसागर से प्राप्त हुए हैं। रुम्मीदेई अभिलेख अशोका का सबसे छोटा अभिलेख है।