अंगरेज राज सुख साज सजे सब भारी पै धन बिदेश चलि जात इहै अति ख़्वारी क्यों सखी साजन नही अंगरेज.. ख अंगरेज राज सुख साज सजे सब भारी पै धन विदेश चलि जात इहै अति रूवारी अथवा अपना कहने को क्या था धन धान नहीं था?"अंग्रेज राज सुख साज सजे सब भारी। पै धन विदेश चलि जात इहै अति ख्वारी।।" (अंग्रेजी राज में सुख के सारे साधन उपलब्ध हैं। पर देश का धन विदेश चला जा रहा है यही सबसे बड़ी चिंता का विषय है।)
अंग्रेज राज सुख साज सजे सब भारी किसकी पंक्ति है?आज ऊपर की पंक्तियों के लेखक भारतेंदु हरिश्चंद्र जी की पुण्यतिथि है।
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