These NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 17 बाज और साँप Questions and Answers are prepared by our highly skilled subject experts. शीर्षक और नायक प्रश्न 1. कहानी से प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. कहानी से आगे प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. अनुमान और कल्पना
बैल को खूटे पर बँधा हुआ देखकर तोता हँसा-“भाई तुम्हारे तो ठाठ हैं। दिन भर हल खींचना पड़ता है। किसान के डण्डे भी खाए। तब जाकर तुम्हें चारा मिला। दिन की चिलचिलाती धूप भी तुम्हें अपनी पीठ पर झेलनी पड़ी।” बैल चारा खाते-खाते रुका-“तुम्हारी तरह दिन भर चार दानों के लिए मीलों-मील मरमार तो नहीं करनी पड़ती। घर लौटने पर इतना तो तय रहता है कि पेट भरने के लिए पूरा चारा मिल जाएगा। फिर जो चारा खिलाएगा, वह काम तो लेगा ही। बिना काम किये खाना भी तो पाप है। तुम कोई काम नहीं करते। चुपके से किसी के मक्का के खेत में घुस जाते हो। किसी के बाग में चोरी-छिपे जाकर फल कुतरने लगते हो।” “इस तरह खाने का अपना ही आनन्द है। तरह-तरह के बढ़िया फल खाने को मिल जाते हैं। अच्छे फल ढूँढ़ने के लिए भी तो कर्म करना पड़ता है। हमें जो आज़ादी मिली हुई है, उसका तो मज़ा ही कुछ अलग है। हम अपनी मर्जी के मालिक हैं। तुम अपनी मर्जी से कहीं भी नहीं जा सकते। अपनी मर्जी का खा भी नहीं सकते। तुम्हारे मालिक जो चने की बढ़िया दाल खाते हैं, हम उनके आँगन में जाकर कुछ दाने उसमें से खा लेते हैं। तुम्हारे आँगन में इस आम पर हर साल बढ़िया आम लगते हैं। तुमने कभी चखे भी नहीं होंगे। हमें देखिए-पके हुए आमों का आनन्द हम सबसे पहले उठाते हैं। तुम्हारे मालिक से भी पहले”-तोते ने आँखें मटका कर कहा। बैल कहाँ चुप रहने वाला था। वह अपने थूथन को हिलाकर बोला-“ठण्ड और बारिश में मुझे अलग कोठरी में बाँध देते हैं। तुम्हें तो ठण्ड, बारिश और ओलों की मार झेलनी पड़ती है।” “अरे भाई! हम भी किसी मकान के कोने में जाकर दुबक जाते हैं। हमारा भी समय कट जाता है। दिक्कत तो सभी के साथ है। हमें शिकारी मार गिराते हैं। चिड़ीमार पकड़ कर पिंजरे में बंद कर लेते हैं। बाज भी झपट्टा मार कर हमें मार देता है। आज़ादी मिली है तो उसकी कुछ कीमत तो चुकानी पड़ेगी। आनन्द और आज़ादी कोई मुफ़्त में थोड़े ही मिलते हैं?” तोते ने अपनी बात को महत्त्व देते हुए कहा-“खुली हवा में साँस लेने का आनन्द ही कुछ और है।” “तुम सही कहते हो”-बैल ने सिर हिलाकर कहा-“परन्तु मेरा जीवन केवल मेरे लिए नहीं है। मैं जिस फसल को उगाने में मदद करता हूँ, उससे पूरे परिवार का पालन पोषण होता है। मेरा मालिक मुझे चारा खिलाने के बाद ही खाना खाता है। वह सुबह उठकर मुझे पहले चारा खिलाता है तब खुद कुछ खाता है। मेरा जीवन तुम्हारी तरह आज़ाद भले ही न हो, परन्तु एकदम निरर्थक भी नहीं है।” तोते को बैल की बात सही लगी। वह बोला- “हम दोनों ही अपनी-अपनी जगह सही हैं। ईश्वर ने हमारा जीवन जैसा बनाया है, हमें वैसा ही जीवन जीना है। अच्छा चलता हूँ” कहकर तोता फुर्र से उड़ गया। बैल बहुत देर तक सिर उठाए आकाश की तरफ देखता रह गया। ‘हिमांशु’ भाषा की बात प्रश्न 1. प्रश्न 2. वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. बोध-प्रश्न निम्नलिखित अवतरणों को पढ़िए एवं पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (क) बाज में एक नयी आशा जग उठी। वह दूने उत्साह से अपने घायल शरीर को घसीटता हुआ चट्टान के किनारे तक खींच लाया। खुले आकाश को देखकर उसकी आँखें चमक उठीं। उसने एक गहरी, लंबी साँस ली और अपने पंख फैलाकर हवा में कूद पड़ा। किंतु उसके टूटे पंखों में इतनी शक्ति नहीं थी कि उसके शरीर का बोझ सँभाल सकें। पत्थर-सा उसका शरीर लुढ़कता हुआ नदी में जा गिरा। एक लहर ने उठकर उसके पंखों पर जमे खून को धो दिया, उसके थके-माँदे शरीर को सफ़ेद फेन से ढक दिया, फिर अपनी गोद में समेटकर उसे अपने साथ सागर की ओर ले चली। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. (ख) पक्षी भी कितने मूर्ख हैं! धरती के सुख से अनजान रहकर आकाश की ऊँचाइयों को नापना चाहते थे। किंतु अब मैंने जान लिया कि आकाश में कुछ नहीं रखा। केवल ढेर-सी रोशनी के सिवा वहाँ कुछ भी नहीं, शरीर को सँभालने के लिए कोई स्थान नहीं, कोई सहारा नहीं। फिर वे पक्षी किस बूते पर इतनी डींगें हाँकते हैं, किसलिए धरती के प्राणियों को इतना छोटा समझते हैं। अब मैं कभी धोखा नहीं खाऊँगा, मैंने आकाश देख लिया और खूब देख लिया। बाज तो बड़ी-बड़ी बातें बनाता था, आकाश के गुण गाते थकता नहीं था। उसी की बातों में आकर मैं आकाश में कूदा था। ईश्वर भला करे, मरते-मरते बच गया। अब तो मेरी यह बात और भी पक्की हो गई है कि अपनी खोखल से बड़ा सुख और कहीं नहीं है। धरती पर रेंग लेता हूँ, मेरे लिए यह बहुत कुछ है। मुझे आकाश की स्वच्छंदता से क्या लेना-देना? न वहाँ छत है, न दीवारें हैं, न रेंगने के लिए जमीन है। मेरा तो सिर चकराने लगता है। दिल काँप-काँप जाता है। अपने प्राणों को खतरे में डालना कहाँ की चतुराई है?” प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न
5. प्रश्न 6. (ग) हमारा यह गीत उन साहसी लोगों के लिए है जो अपने प्राणों को हथेली पर रखे हुए घूमते हैं। चतुर वही है जो प्राणों की बाजी लगाकर जिंदगी के हर खतरे का बहादुरी से सामना करे। ओ निडर बाज! शत्रुओं से लड़ते हुए तुमने अपना कीमती रक्त बहाया है। पर वह समय दूर नहीं है, जब तुम्हारे खून की एक-एक बूंद जिंदगी के अँधेरे में प्रकाश फैलाएगी औरी साहसी, बहादुर दिलों में स्वतंत्रता और प्रकाश के लिए प्रेम पेदा करेगी। तुमने अपना जीवन बलिदान कर दिया किंतु फिर भी तुम अमर हो। जब कभी साहस और वीरता के गीत गाए जाएँगे, तुम्हारा नाम बड़े गर्व और श्रद्धा से लिया जाएगा। “हमारा गीत जिंदगी के उन दीवनों के लिए है जो मृत्यु से भी नहीं डरते।” प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. बाज और साँप Summaryपाठ का सार समद्र के किनारे पर्वत की अँधेरी गफा में एक साँप रहता था। अँधेरी घाटियों में एक नदी भी बहती थी जो शोर मचाती हुई समुद्र में जाकर मिल जाती थी। सॉप अपनी हालत से खुश था। वह अपनी गुफा का स्वामी है, उसे किसी से कुछ लेन-देना नहीं है। एक दिन उड़ता हुआ एक घायल बाज़ गुफा में आ गिरा। वह पीड़ा से चीखा और धरती पर लोटने लगा साँप पहले उससे डरा परन्तु उसकी बेदम हालत को देख कर वह बाज के पास पहुँचा। बाज ने साँप को बताया कि उसने जीवन का आनन्द उठा लिया है। आकाश की ऊँचाइयों को अपने पंखों से नापा है। वह आनन्द तुम्हें नहीं मिलेगा। साँप ने आकाश की तुलना में अपनी गुफा में रहना अच्छा बताया। साँप का सोचना था-चाहे आकाश में उड़ो, चाहे धरती पर रेंगकर चलो, एक दिन सबको मरना है। बाज ने सीलन भरी गुफा देखी और उड़ने की नाकामी पर दुखी हुआ। उसके दुख को देखकर साँप ने कहा की तुम उड़ने की कोशिश कर सकते हो। बाज गहरी साँस लेकर हवा में कूद पड़ा। पंख कमज़ोर थे। वह सँभल न सका और नदी में गिरकर बह गया। बाज की मृत्यु और आकाश के प्रति उसके प्रेम पर साँप सोचता रहा। साँप ने सोचा-आकाश में ऐसा क्या खज़ाना है। मुझे पता लगाना चाहिए। यह सोचकर साँप ने अपना शरीर सिकोड़ा और खुद को शून्य में छोड़ दिया। वह चट्टान पर जा गिरा लेकिन बच गया। उसने सोचा आकाश में कुछ नहीं सिवाय ढेर सारी रोशनी के। पक्षी पता नहीं क्यों शेखी बघारते हैं। मैं किसी तरह बच गया। अब धोखा नहीं खाऊँगा। मुझे आकाश से क्या लेना ? बाज़ अभागा था जिसने आकाश की आज़ादी के लिए जान दे दी। तभी साँप ने चट्टानों के नीचे एक मधुर संगीत सुना। लहरें गा रही थीं यह गीत उन लोगों के लिए था जिन्होंने जिन्दगी के हर खतरे का सामना किया। बाज भी उन्हीं में से एक था। वह जान देकर अमर हो गया। “हमारा गीत ज़िन्दगी के उन दीवानों के लिए है जो मर कर भी मृत्यु से नहीं डरते। शब्दार्थ : मिलाप-मेल; गर्जन-गरजना; तर्जन-डाँटना, धमकाना; अंतिम साँसें गिनना-मरने के निकट होना; आखिरी घड़ी आ पहुँचना-मृत्यु निकट होना; भोगा-आनंद उठाया, आरामदेह-आराम प्रदान करने वाला; मिट्टी में मिलना-मरना; सिटपिटा गया-घबरा गया; वियोग-बिछुड़ना; फेन-झाग; शून्यता-खालीपन; विस्तार-फैलाव; असीमसीमा रहित; आँखों से ओझल होना -गायब होना, दिखाई न देना; आँसू बहाना-दुखी होना; भरपाया-छक गया; प्राणों की बाजी लगाना-मरने के लिए तैयार होना; प्राणों को हथेली पर रखकर घूमना-मरने से बिल्कुल न डरना। |