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अनुकूलन किसी विशेष वातावरण में सुगमता पूर्वक जीवन व्यतीत करने एवं वंशवृद्धि के लिए जीवों के शरीर में रचनात्मक एवं क्रियात्मक स्थायी परिवर्तन उत्पन्न होने की प्रक्रिया है। यह शरीर का अंग या स्थिति नहीं बल्कि एक प्रक्रिया है[1] अनुकूलन द्वारा होने वाले स्थायी बदलावों को इस प्रक्रिया से भिन्न स्पष्ट करने के लिए उन्हें अनुकूलन जन्य लक्षण कहा जा सकता है।[2][3] सन्दर्भ[संपादित करें]
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सब्सक्राइब करे youtube चैनल Adaptation definition in hindi अनुकूलन की परिभाषा क्या है : जीव का ऐसा गुण जो उसे अपने आवेश में जीवित बने रहने जनन करने के योग्य बनाता है उसे अनुकूलन कहलाता है | अनुकूलन के उदाहरण (Adaptation examples) :
अगर आप जानना चाहते हैं कि “अनुकूलन क्या है(Anukulan Kya hai)?अनुकूलन किसे कहते है(Anukulan Kise kahte hai)? अनुकलन का अर्थ और व्याख्या उदाहरण सहित व अनुकूलन कितने प्रकार का होता है?” Adaptation Meaning in hindi तो आप बिल्कुल सही पोस्ट पर है ,आज इस आर्टिकल में हम अनुकूलन के बारे में विस्तार से जानेगे। अनुकूलन किसे कहते है?
अनुकूलन क्या है? (Adaptation Meaning In Hindi)जीवो में होने वाले शारीरिक, संरचनात्मक एवं व्यवहारात्मक परिवर्तन जिनके कारण ये जीव किसी विशेष आवास , परिस्थिति में रहने हेतु विशेष लक्षण प्राप्त कर लेते हैं, अनुकूलन (Adaptation) कहलाता है। जैसे – मरुस्थलीय पौधों में शुष्क परिस्थितियों का सामना करने हेतु पर्ण/leaves का काँटो में रूपांतरण, जंतुओं के शरीर में अलग-अलग उत्सर्जी पदार्थों का होना। अनुकूलन के प्रकार (Types Of Adaptation In Hindi)संरचनात्मक अनुकूलन / Structural Adaptation –ऐसे अनुकूलन में जीवों के शरीर में ऐसे संरचनात्मक परिवर्तन होते है जो बाहर से दिखाई देते है। जैसे- ठंडे प्रदेशों के जंतुओं के शरीर का आकार तो बड़ा लेकिन पंजे व कान छोटा होना जबकि गर्म प्रदेशों के जीवो में कान व पंजे बड़े आकार का होना। व्यवहारात्मक अनुकूलन/ Behavioural Adaptationइस अनुकूलन में जिव शरीर में कोई नई संरचना विकसित नहीं होती लेकिन वातावरण के प्रति अनुकुल होने के लिए जीव अन्य क्षेत्रों की और प्रवास/ migration करते हैं। जैसे – साइबेरियाइ क्रेन हजारों मील उड़कर साइबेरिया से राजस्थान में पहुंचते हैं तथा यह जंतु प्रवास ना कर पाए तो शीत निष्क्रियता (Hibernation) या ग्रीष्म निष्क्रियता /Aestivation दर्शाते है। शारीरिक अनुकूलन / Physiological Adaptationऐसे अनुकूलन सामान्यतया बाहर से दिखाई नहीं देते हैं तथा इनको पहचानना मुश्किल होता है लेकिन परिवर्तन जीव जैविक क्रियाओं में विशेष अनुकूलन लाते हैं। जैसे – कंगारू चूहे में जल के उत्सर्जन को रोकने के लिए विशेष रूप से दक्ष किडनी पाई जाना / मच्छर, जोक आदि की लार में प्रतिस्कंदक पदार्थों का पाया जाना। जंतुओं में अनुकूलन / Adaptations In Animalsअपने आवास/Habitat, वातावरण के प्रति अनुकूल दर्शाने हेतु जंतुओं में निम्नलिखित क्रियाएं देखी जाती है – प्रवास/ Migrationइसमे जंतु अपने मूल आवास को छोड़कर अस्थायी रूप से किसी अन्य स्थान पर चले जाते है तथा जब मूल आवास में परिस्थितिया रहने लायक हो जाये तो पुनः अपने मूल आवास में लौट आते है। जैसे :- साइबेरियाई क्रेन का प्रवास, कुछ मछलियों का ठंड के समय गरम क्षेत्रो की और प्रवास शीत निष्क्रियता / Hibernation व ग्रीष्म निष्क्रियता / Aestivationयदि जंतु प्रवास न कर सके तो मौसम विशेष में ये जंतु अपनी शारीरिक सक्रियता में कमी लाते है तथा इनकी उपापचयी क्रियाएँ धीमी हो जाती है जिससे के विपरीत वातावरण में भी अपने को सुरक्षित रख पाते है। शीत निष्क्रियता – शीत ऋतु में जन्तु का निष्क्रियता दर्शाना। ग्रीष्म निष्क्रियता – ग्रीष्म ऋतु में जंतु का निष्क्रियता दर्शाना। ■ उपरोक्त निष्क्रियताए सामान्यतया ठंडे रुधिर वाले प्राणियों में देखी जाती है क्योंकि इन जंतुओं में अपने शरीर के तापमान नियमन की क्षमता नहीं पाई जाती है। ◆ इनके विपरीत गरम रुधिर के प्राणी अपने शरीर के तापमान को नियमित बनाए रख सकते हैं (हालांकि भालू , गिलहरी में गर्म रुधिर होते हुए भी शीत निष्क्रियता देखी जाती है।) ◆अक़्शेरुपि जीव जैसे – घोंघा, कशेरुकी जीव जैसे मेढ़क , छिपकली, साँप आदि ऐसी निष्क्रियता दर्शाते हैं। छद्मावरण / Camouflageकुछ जंतु अपने परभक्षी /Predators से बचने हेतु अपने सारे शारीरिक अंग व बनावट इस प्रकार कर लेते हैं कि इन्हें पहचान पाना मुश्किल होता है।यह अपने आप आसपास के वातावरण रंग व संरचनाएं विकसित कर लेते हैं। जैसे – गिरगिट, छिपकलिया,टिड्डे के द्वारा छद्म आवरण ग्रहण करना। अनुहरण / Mimicryएक जंतु जो अनुहारक /mimic होता है वह अपनी ही प्रजाति के अन्य जंतु (प्रतिरूप/ modal) की नकल करता है अर्थात उसके जैसा ही दिखता है, इसे अनुहरण कहते हैं। जंतुओं में दो प्रकार का अनुहरण-
Note:- ★बर्गमान का नियम :- ठंडे क्षेत्रो में रहने वाले गर्म रुधिर वाले प्राणियों के शरीर का आकार बड़ा होता है। ★एलन का नियम :- ठंडे क्षेत्रों में रहने वाले जंतुओं के पंजे, कान छोटे आकार के होते हैं। ★गलोगर का नियम :- गर्म तथा आर्द्र परिस्थितियों में रहने वाले जंतुओं में मिलेनिन का निर्माण ज्यादा होने से इनकी त्वचा गहरे रंग की होती है। पादपों में अनुकूलन (Adaptation In Plants)पौधे किसी विशेष आवास, तापमान, पोषक पदार्थों की उपलब्धता , जल एवं प्रकाश के मात्रा के अनुसार स्वयं में इस प्रकार परिवर्तन करते हैं कि ऐसी परिस्थितियों में आसानी से रह पाए। पोषण के लिए★पहाड़ी क्षेत्रों में जिम्नोस्पर्म के पादपों की जड़ों में खनिज लवण के अवशोषण को बढ़ाने तथा जड़ों की सुरक्षा हेतु कवक के साथ सहजीवी संबंध दर्शाती है (कवकमूल /माईकोराइजा) ★सामान्यतया N की कमी वाली मृदा में कीटहारी पादप/ Insectivore Plants पाए जाते हैं, इनमें पत्तियां विशेष संरचनाओं का निर्माण करके कीटो का शिकार करती है। ★ परजीवीमूल (अमरबेल / कस्कुटा) में पाए जाने वाले चूषकांग/Haustoria इस परजीवी पादप के पोषण में सहायक। ★ फलीदार पौधों की जड़ों में N2 स्थरीकरण बढ़ाने हेतु ग्रंथिल जड़े पाई जाती है जिनमें राइजोबियम जीवाणु सहजीवी रूप में वायुमंडलीय N2 का स्थरीकरण करता है। जैविक एवं यांत्रिक अनुकूलन★पौधों में प्रकाश के प्रति अनुकूलन पाए जाते हैं जैसे :- निम्न विकसित पौधें जैसे:- ब्रायोफाइटा व टेरिडोफाइटा के सदस्य छायादार स्थानों पर पाए जाते हैं, इनमें प्रकाश संश्लेषण व उपापचयी क्रियाओं की दर धीमी अतः कम प्रकाश में भी सामान्य वृद्धि दर्शाते हैं। ★स्थलीय व काष्ठीय पौधे जो विकसित होते हैं जैसे जिम्नोस्पर्म और एंजियोस्पर्म में प्रकाश की मात्रा ज्यादा प्राप्त अतः इनकी उपापचयी क्रियाएँ व प्रकाश संश्लेषण दोनों अधिक होती है। ★ गर्म, शुष्क व मरुस्थलिय क्षेत्र जहां जलाभाव रहता है, ऐसे क्षेत्रों में पौधों में जल की कमी से बचने हेतु मोटी क्यूटिकल पत्तियों का काँटो में बदल जाना, माँसल/ गूदेदार तने पाए जाना तथा धँसे हुए रंद्र पाए जाते हैं ताकि वाष्प उत्सर्जन की क्रिया कम से कम हो। ★ जलीय पौधों को प्लवी अवस्था में बनाएं रखने के लिए इनमें वायु से भरे उत्तक /Air Pockets पाए जाते हैं ★ लवणीय मृदा में रहने वाले पादकों जैसे:- रायजोफ़ोर्स तथा मैंग्रोव वनस्पति में पौधे में लवणों का जमा होने लगता है ताकि जल संतुलन बना रहे तथा ऐसे पौधे जब दलदली भूमि में होते हैं तो इनकी जड़े भूमि से बाहर “श्वसन मूल / Respiratory Roots” के रूप में निकलती है ताकि पर्याप्त O2 मिल सके। ★गन्ने में अवस्तम्भ मूल तथा बरगद में स्तंभ मूल पौधे के तने एवं इसकी शाखाओं का यांत्रिक सहारा प्रदान करती है। तो आज की पोस्ट “अनुकूलन क्या है (Anukulan Kya Hai)? अनुकूलन कितने प्रकार का होता है?” के बारे जाना अगर पंसद आया हो तो शेयर करना न भूले। अनुकूलन क्या है इसका सोदाहरण वर्णन करें?अनुकूलन किसी विशेष वातावरण में सुगमता पूर्वक जीवन व्यतीत करने एवं वंशवृद्धि के लिए जीवों के शरीर में रचनात्मक एवं क्रियात्मक स्थायी परिवर्तन उत्पन्न होने की प्रक्रिया है।
अनुकूलन का उदाहरण क्या है?अनुकूलन क्या है? (Adaptation Meaning In Hindi)
जैसे – मरुस्थलीय पौधों में शुष्क परिस्थितियों का सामना करने हेतु पर्ण/leaves का काँटो में रूपांतरण, जंतुओं के शरीर में अलग-अलग उत्सर्जी पदार्थों का होना।
अनुकूलन क्या है इसका क्या महत्व है?"अनुकूलन को जीवों की भौतिक या व्यवहारिक विशेषता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो उन्हें समकालीन दुनिया में बेहतर जीवित रहने में मदद करता है।" जीव विभिन्न जैविक कारकों जैसे आनुवंशिकी, शरीर विज्ञान, प्रजनन और कई अन्य के आधार पर अपने पर्यावरण के अनुकूल होते हैं। यह अनुकूलन का जैविक अर्थ है।
अनुकूलन क्या है यह कैसे होता है संक्षिप्त उत्तर?सभी सजीवों में कुछ विशिष्ट संरचनाएं होती हैं, जिनके कारण अथवा स्वभाव की उपस्थिति के कारण पौधे अथवा जंतु को उसके परिवेश में रहने के योग्य बनाती है। उसे अनुकूलन कहते हैं। विभिन्न जंतु भिन्न प्रकार के परिवेश के प्रति अलग-अलग रूप से अनुकूलित हो सकते हैं।
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