यूक्रेन से भारत के नागरिकों को निकालने वाला भारत सरकार का मिशन क्या था? - yookren se bhaarat ke naagarikon ko nikaalane vaala bhaarat sarakaar ka mishan kya tha?

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यूक्रेन से भारतीयों को निकालने के लिए चला 'ऑपरेशन गंगा' क्या काफ़ी है?

  • सरोज सिंह
  • बीबीसी संवाददाता

3 मार्च 2022

यूक्रेन से भारत के नागरिकों को निकालने वाला भारत सरकार का मिशन क्या था? - yookren se bhaarat ke naagarikon ko nikaalane vaala bhaarat sarakaar ka mishan kya tha?

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शमा मोहम्मद

साल 1990 की बात है. तब शमा मोहम्मद 17 साल की थीं. वो कुवैत में रह रही थीं जब इराक़ ने हमला बोला. उस वक़्त भारत सरकार ने उनको सुरक्षित वहाँ से कैसे निकाला, इस बारे में उन्होंने बीबीसी से अपना अनुभव साझा किया.

"1990 के अप्रैल में 11वीं क्लास की पढ़ाई पूरी कर मैं 12वीं में बस दाख़िल ही हुई थी. अगस्त के महीने में वहाँ स्कूलों में तब छुट्टियाँ होती थी. इस वजह से अपने पूरे परिवार, माता-पिता और दो छोटे भाई बहन के साथ मैं कुवैत में अपने घर पर ही थी. पापा वहाँ एक बैंक में काम करते थे.

2 अगस्त को सुबह-सुबह परिवार के जानने वालों ने घर पर फ़ोन कर बताया कि आज घर से बाहर नहीं निकलना, गोलीबारी शुरु हो गई है. तब तक पापा ऑफ़िस के लिए निकल चुके थे. परिवार परेशान था कि वो घर वापस कैसे लौटेंगे, लेकिन वो सुरक्षित घर लौटे.

फिर कुवैत से बस से हम बग़दाद गए. वहाँ कोई दिक़्क़त नहीं हुई. लोगों के अंदर भारतीयों के प्रति कोई ग़ुस्सा नहीं था. बग़दाद से हवाई जहाज़ से हम जॉर्डन की राजधानी अम्मान पहुँचे. फिर ओमान के रास्ते हमें भारत लाया गया. भारत में हमारा पूरा परिवार मुंबई एयरपोर्ट पहुँचा. फिर वहाँ से हमें केरल ट्रेन से भेजा गया. हमारा पूरा ख़र्चा भारत सरकार ने उठाया. तब हमारे बैंक अकाउंट तक फ्रीज़ कर दिए गए थे."

अब शमा का पूरा परिवार केरल में रहता है. वो पेशे से डेंटिस्ट हैं, साथ ही कांग्रेस की प्रवक्ता भी हैं.

1990 की उस घटना को अब 32 साल गुज़र चुके हैं. अब साल 2022 है.

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यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई करने वाली छात्र बिंदु जो बुधवार को भारत पहुँची.

भारत सरकार अब यूक्रेन में फँसे भारतीयों को निकालने के लिए 'ऑपरेशन गंगा' चला रही है. बीबीसी ने यूक्रेन में फँसे छात्र से वहाँ के हालात और सुरक्षित भारत आने के इंतज़ाम के बारे में जानने की कोशिश की. उत्तर प्रदेश के झांसी की रहने वाली बिंदु यूक्रेन की टेरनोपिल नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में मेडिकल की पढ़ाई कर रही हैं. बिंदु ने फोन पर यूक्रेन से भारत आने के संघर्ष की पूरी कहानी सुनाई.

''शाम का वक्त था. यूक्रेन के टेरनोपिल शहर से पोलैंड बॉर्डर पहुंचने के लिए बहुत मुश्किल से मुझे दो हज़ार रुपये में बस की टिकट मिली. बस ने बीच रास्ते में ही मुझे छोड़ दिया. तापमान माइनस में था, सर्दी बर्दाश्त नहीं हो रही थी. मैं करीब 45 किलोमीटर पैदल चलकर यूक्रेन-पौलेंड सीमा के चेक पोस्ट पर पहुंची. वहाँ कहा गया, 'इंडियन आर नॉट अलाउड टू गो'.

रात में तापमान माइनस चार डिग्री तक चला गया था. हमारे पास ना खाने के लिए कुछ था और ना रुकने के लिए कोई शेल्टर था. हम लोग आग जला रहे थे लेकिन यूक्रेन के सैनिक बार बार आग बुझा देते थे''

फिलहाल बिंदु सुरक्षित भारत लौट आई हैं. लेकिन यूक्रेन से निकलने के अपने संघर्ष की कहानी याद कर वो आज भी सिहर उठती हैं.

साल 1990 और साल 2022 - दोनों ही समय जंग के हालात हैं.

लेकिन सोशल मीडिया, न्यूज़ चैनलों, फेसबुक और ट्विटर के इस जमाने में साफ़ पता चल रहा है कि यूक्रेन में फँसे भारतीयों की परेशानी काफ़ी ज़्यादा है. कर्नाटक के छात्र नवीन की खारकीएव में गोलीबारी में मौत के बाद मामला और गंभीर हो गया है.

ज़िम्मेदार पदों पर बैठे कई नेता और विश्लेषक इस समय भारत सरकार द्वारा उठाए गए क़दमों को नाकाफ़ी करार दे रहे हैं. लेकिन कई इसकी सराहना भी कर रहे हैं और कई ये सुझाव भी दे रहे हैं कि सरकार और क्या कर सकती है.

इसलिए ये जानना ज़रूरी है कि मोदी सरकार आख़िर कर क्या रही है?

भारत सरकार ने क्या-क्या किया?

भारत सरकार ने यूक्रेन में फँसे भारतीयों को वापस बुलाने के लिए समय समय पर कई एडवाइज़री जारी की हैं. वहाँ से छात्रों को भारत लाने के लिए 'ऑपरेशन गंगा' भी केंद्र सरकार चला रही है. इसके तहत कुछ छात्र भारत आ चुके हैं और कुछ अगले 3 दिनों में 26 फ़्लाइट्स के जरिए भारत लाए जाएंगे.

पीएम मोदी ने चार मंत्रियों को यूक्रेन से लगे चार देशों में भेजा है, ताकि फँसे लोगों को सुरक्षित वापस भारत लाया जा सके. इसके साथ जो छात्र फ़्लाइट से दिल्ली मुंबई लैंड कर रहे हैं, उन्हें रिसीव करने के लिए भी मंत्री प्लेन के अंदर पहुँच कर स्वागत और अभिनंदन कर रहे हैं.

भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला के मुताबिक़, "यूक्रेन में भारत के 20 हज़ार लोग रह रहे थे. उसमें से तक़रीबन 12 हज़ार अब तक यूक्रेन छोड़ चुके हैं यानी 60 फ़ीसदी लोग. बचे हुए 40 फ़ीसदी में से आधे कॉन्फ़्लिक्ट ज़ोन में हैं और बाक़ी बचे आधे या तो यूक्रेन की पश्चिमी सीमा पर पहुँच चुके हैं या फिर उस रास्ते में हैं."

यानी भारत सरकार की मानें तो केवल 20 फ़ीसदी भारतीय संघर्ष वाले इलाके में बचे हैं. बुधवार देर शाम तक सरकार ने 12 हज़ार की संख्या को बढ़ा कर 17 हज़ार कर दिया.

लेकिन विपक्ष सरकार के इस बयान से संतुष्ट नहीं है.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट कर तीन सवाल पूछे हैं - "कितने छात्र भारत लौट आए, कितने अब भी फंसे हैं और आगे के लिए सरकार का प्लान क्या है."

ऐसा इसलिए भी क्योंकि 12 हज़ार भारतीय कब और कैसे यूक्रेन छोड़ चुके हैं, इसका ब्रेकअप सरकार ने नहीं दिया गया है.

यही वजह है कि सवाल पूछे जा रहे हैं कि क्या ऑपरेशन गंगा काफ़ी है.

ऑपरेशन गंगा क्या काफ़ी है ?

द हिंदू अख़बार की डिप्लोमैटिक एडिटर सुहासिनी हैदर ने जंग जैसी आपात स्थिति में भारत सरकार द्वारा दूसरे देशों में फँसे भारतीय नागरिकों को बाहर निकालने के कई ऑपरेशन कवर किए हैं.

बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "पहली एडवाइज़री जो 15 फरवरी को जारी की थी, उसकी भाषा भी ऐसी थी कि जिनको यूक्रेन में रूकने की ज़रूरत ना हो वो भारत वापस आ जाएं. भाषा ऐसी नहीं थी कि लोग स्थिति की गंभीरता को समझ पाते."

बुधवार को भी यूक्रेन स्थित भारतीय दूतावास ने खारकीएव शहर में रहने वाले भारतीयों के लिए एक और एडवाइज़री जारी की है. दूतावास का कहना है कि अगर उनके पास कोई वाहन नहीं है, बस उपलब्ध नहीं है, तो पैदल ही वहाँ से निकल लें.

यही बात भारत सरकार में वित्त और विदेश मंत्री रह चुके यशवंत सिन्हा भी कहते हैं. फिलहाल ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के साथ जुड़े हैं.

बीबीसी से बातचीत में वो कहते हैं, "अगर रूस भारत का मित्र देश है और मॉस्को में भारतीय दूतावास है तो उसके ज़रिए भारत सरकार को पता होना चाहिए था कि रूस के क्या इरादे हैं. अगर सरकार जानती थी कि रूस कुछ रॉकेट दाग कर नहीं मानेगा और पूरा हमला करेगा, जिसमें भारतीय लोगों को भी नुक़सान होगा तो समय रहते भारतीयों को निकालना चाहिए था.

"भारत सरकार को अपने लोगों को गंभीर चेतावनी देने की ज़रूरत थी. ये कहना चाहिए था कि नहीं निकलेंगे तो आपकी जान को ख़तरा है. ऐसा कह कर पहले ही अपने लोगों को निकालना चाहिए था. रूस की फ़ौज के वहाँ पहुँचने से पहले ये सब कर लेना चाहिए था. ये मौलिक प्रश्न है."

सुहासिनी भी मानती हैं कि पीएम मोदी ने जब पुतिन से बात की तो उन्हें भी अंदाजा नहीं हो पाया कि मामला दो प्रांतों से आगे भी बढ़ेगा.

कब तक चल सकता है ऑपरेशन गंगा?

1990 में खाड़ी युद्ध के समय 1 लाख 70 हजार फँसे लोगों को निकालने का काम भारत सरकार ने किया था. उस वक़्त पूरी प्रक्रिया में क़रीब तीन महीने का वक़्त लगा था. इस बार बात 20 हज़ार भारतीयों की हो रही है.

सुहासिनी हैदर कहती हैं, "सरकार जिस तरह का ऑपरेशन चला रही है, ऐसे में सभी भारतीयों को निकालने में हफ़्ते से दस दिन का वक़्त और लग सकता है. हर दिन 5 कमर्शियल फ़्लाइट में 250 लोगों को भी लाया जा सके तो, 10 दिन तो लगेगा ही. बुधवार को एक C17 विमान निकला है, लेकिन आगे ऐसे कितने विमान जा पाएंगे, वो देखना होगा."

C17 ग्लोबमास्टर वही विमान है जिसके ज़रिए अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान से अपने लोगों को रेस्क्यू किया था. इसमें एक साथ तक़रीबन 800 लोग लाए जा सकते हैं.

चार वरिष्ठ मंत्रियों की तैनाती

ऑपरेशन गंगा, क्या काफ़ी है. या भारत सरकार को और भी कुछ करने की ज़रूरत है? यही सवाल बीबीसी ने लीबिया, जॉर्डन, माल्टा में भारत के राजदूत रहे अनिल त्रिगुणायत से पूछा.

लीबिया में भारत सरकार के ऑपरेशन के बारे में वो कहते हैं, "बहुत सारे लोगों को स्थितियाँ बिगड़ने से पहले ही सरकार तब निकालने में कामयाब रही थी. वहाँ पहले आंतरिक लड़ाई शुरू हो गई थी. लीबिया में लोग काम की तलाश में ज्यादा गए थे और कंपनियों में तैनात थे. तो कंपनियों के रास्ते ऐसा करना हमारे लिए आसान था. लेकिन यूक्रेन में स्थिति बहुत तेज़ी से बदल रही है."

कर्नाटक के रहने वाले नवीन की मौत के बाद अनिल त्रिगुणायत मानते हैं कि जंग के इस माहौल में लोगों को निकालने के लिए सीज़फ़ायर होना ज़रूरी है ताकि आम नागरिकों को सुरक्षित निकाला जा सके.

वो कहते हैं कि भारत सरकार इस दिशा में दोनों देशों से रास्ता निकालने के लिए बात भी कर रही है. भारत को दूसरे देशों में फँसे नागरिकों को निकालने का सबसे बड़ा अनुभव है.

1992 से अब तक भारत सरकार ने 30 अलग-अलग देशों से अपने लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला है.

अनिल आगे कहते हैं, "भारत ने यमन से 45 से ज़्यादा देशों के नागरिकों को निकालने में मदद की थी. तब जनरल वीके सिंह को वहाँ भेजा गया था. इस बार भी भारत के 4 मंत्री गए हुए हैं. किसी भी विपरीत परिस्थितियों में इन मंत्रियों को दूसरे देशों के मंत्रियों से बात करने की सहूलियत होगी और वो उनकी सुनेंगे भी, जो अधिकारी शायद नहीं कर पाएं."

लेकिन सुहासिनी कहती हैं, "सरकार के चार मंत्रियों के वहाँ जाने की बात समझ से परे है. मंत्रियों के वहाँ जाने से मिशन के कुछ स्टाफ़ उनके साथ लगेंगे. ट्रांसलेटर की ज़रूरत पड़ेगी. पब्लिसिटी की वजह से मिशन के संसाधनों पर भी दबाव बढ़ेगा. शायद सरकार दिखाना चाहती है कि अपने नागरिकों को लेकर वो ज़्यादा चिंतित है."

भारत सरकार और क्या कर सकती है

सुहासिनी आगे कहती हैं, "लीबिया में जहाज़ से एक साथ बहुत लोगों को निकाला गया था. लेकिन यूक्रेन में ऐसा कोई पोर्ट नहीं है जहाँ से लोगों को एक साथ निकाला जा सके. इस वजह से परिस्थितियाँ थोड़ी अलग हैं.

एक और विकल्प है जिस पर सरकार विचार कर सकती है वो है अस्थाई तौर पर पड़ोसी देशों में भारतीय नागरिकों को सुरक्षित रखने की व्यवस्था. ऐसा उन क्षेत्रों में किया जाता है, जहाँ जंग जल्द ख़त्म होने के आसार हों और लोग कामकाज की तलाश में जाते हों, ताकि काम पर लौटने पर टिकट के लिए पैसों की दिक़्क़त ना हो. उदाहरण के लिए लीबिया से भारतीयों को निकालने के लिए ट्यूनीशिया में उन्हें कुछ दिनों के लिए सुरक्षित रखा था."

वो कहती हैं कि हालांकि पश्चिम के देशों की शरणार्थियों को लेकर अपनी अलग तरह की नीति है. ऐसे में भारतीयों को ये देश अपने यहाँ बतौर शरणार्थी रहने दें, इसके आसार कम ही हैं, और शायद ये वजह हो कि भारत सरकार इस पर विचार नहीं कर रही होगी.

ह्यूमैनिटेरियन कॉरिडोर या सीज़फ़ायर का विकल्प

यमन, लीबिया, लेबनान में भारत सरकार के मिशन को याद करते हुए सुहासिनी कहती हैं, "तब भारत सरकार वहां की सरकारों से बात करके ये तय करने में कामयाब रही थी कि कुछ टाइम ज़ोन ऐसा हो जहाँ फ्लाइट्स आ जा सके और लोगों को ज़ल्दी निकाला जा सके. लेबनान में तो युद्धग्रस्त क्षेत्रों में घुस कर लोगों को भारत सरकार ने निकाला था. लीबिया में तो गद्दाफी ने केवल भारत को ही अंदर जा कर बचाने की इजाज़त दी थी. यूक्रेन में अंदर अभी कोई देश नहीं जा सका है.

लेकिन इस बार रूस और नेटो की तनातनी इतनी ज़्यादा है कि रूस के साथ इस तरह से मानवीय आधार पर शायद ही कोई गुंजाइश बन सके, ऐसी कोई कोशिश हो भी नहीं रही है." UNGA में भारत ने इसकी बात ज़रूर की है.

भारत सरकार की आगे की चुनौतियां

यशवंत सिन्हा कहते हैं सरकार के सामने अब तीन चुनौतियाँ हैं. "अब कीएव में भारत का दूतावास बंद हो चुका है. इस वजह से यूक्रेन के अंदर भारत कुछ ज़्यादा नहीं कर सकता है. जो लोग बच गए हैं वो ख़ुद को सुरक्षित रखने के लिए मजबूर हैं. लेकिन जो लोग निकल चुके हैं और किसी तरह बॉर्डर पर पहुँच पा रहे हैं, उनको निकालने के पूरे इंतजाम करने चाहिए.

दूसरा काम जो भारत सरकार को करना चाहिए वो है रूस पर दबाव बनाने का. भारत सरकार को रूस को कहना चाहिए कि आप सैन्य कार्रवाई को रोकिए. तीसरा काम है भारत की अर्थव्यवस्था को इसके असर से बचाने का."

यूक्रेन से भारतीय नागरिकों को निकालने वाला भारत सरकार का मिशन क्या था?

विदेश मंत्री ने कहा कि यूक्रेन की सरकार ने तब कहा था कि ''दहशत में नहीं आएं, हम स्थिति संभाल लेंगे।'' उन्होंने कहा, '' कुल मिलाकर संकेत हमारे नागरिकों, छात्रों को दुविधा में डालने वाला था। इसलिए संघर्ष से पहले 4,000 लोग लौट आए बाकी करीब 18,000 लोग रुके रहे।''

यूक्रेन से भारतीयों को सुरक्षित वापस लाने के लिए भारत सरकार द्वारा चलाए गए अभियान का ऑपरेशन का नाम क्या था?

भारत सरकार अब यूक्रेन में फँसे भारतीयों को निकालने के लिए 'ऑपरेशन गंगा' चला रही है.

यूक्रेन से कितने छात्र वापस आए?

यूक्रेन संकट: 16,000 भारतीय लौटे, सूमी में फंसे 700 भारतीय छात्र किस हाल में- प्रेस रिव्यू इमेज कैप्शन, यूक्रेन से दिल्ली पहुंचने पर परिवार को देख भावुक होती छात्रा. यूक्रेन में फंसे भारतीयों की वतन वापसी के लिए चलाए गए ऑपरेशन गंगा के तहत अब तक 76 विमानों से 16,000 नागरिकों को भारत लाया जा चुका है.

यूक्रेन से भारतीय नागरिकों को निकालने के लिए भारत सरकार ने हाल ही में कौन से मिशन की शुरूआत की हैं?

वहीं, भारत सरकार की ओर से अपने नागरिकों के लिए 'ऑपरेशन गंगा' (Operation Ganga) चलाया जा रहा है, जिसमें यूक्रेन में फंसे भारतीयों को निकाला जा रहा है.