विवाह के प्रमुख उद्देश्य क्या है? - vivaah ke pramukh uddeshy kya hai?

विवाह का अर्थ समझाइए और उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए


विवाह का अर्थ समझाइए और उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए 

मानव की विभिन्न प्राणीशास्त्रीय आवश्यकताओं में यौन संतुष्टि एक आधारभूत आवश्यकता है मानव के अतिरिक्त अन्य प्राणी भी यौन इच्छाओं की पूर्ति करते हैं लेकिन उनमें इसका केवल दैहिक आधार है। मानव में यौन इच्छाओं की पूर्ति का आधार अंशतः दैहिक ,अंशतः सामाजिक एवं सांस्कृतिक है। यौन इच्छाओं की संतुष्टि ने ही विवाह, परिवार तथा नातेदारी को जन्म दिया है। परिवार के बाहर भी यौन संतुष्टि संभव है, किंतु समाज ऐसे संबंधों को अनुचित मानता है। कभी-कभी कुछ समाजों में परिवार के बाहर यौन संबंधों को संस्थात्मक रूप में स्वीकार किया जाता है किंतु वह भी एक निश्चित सीमा तक ही। यौन इच्छाओं की पूर्ति स्वास्थ्य जीवन एवं सामान्य रूप से जीवित रहने के लिए भी आवश्यक मानी गई है। इसके अभाव में कई मनोविकृतियां पैदा हो जाती है। योन इच्छा की पूर्ति किस प्रकार की जाए,यह समाज और संस्कृति वारा निश्चित होता है। विवाह का उद्देश्य यौन संतुष्टि नहीं होता है वरन कभी-कभी तो यह केवल सामाजिक सांस्कृतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ही किया जाता है। उदहारण के लिए , नागाओं में एक पुत्र अपनी सगी मां को छोड़कर पिता की अन्य विधवा स्त्रियों से विवाह कर लेता हैं। इसका कारण यौन संतुष्टि नहीं, वरन स्त्रियों को मिलने वाली संपत्ति में उत्तराधिकार को प्राप्त करना है। हम यहां विवाह के अर्थ परिभाषा प्रकार आदि पर विचार करेंगे ।

विवाह का अर्थ एवं परिभाषा

विवाह का शाब्दिक अर्थ है ' उद्वह ' अर्थात वधू को वर के घर ले जाना । विवाह को परिभाषित करते हुए लूसी मेयर लिखते हैं, विवाह की परिभाषा यह है कि वह स्त्री पुरुष का ऐसा योग है जिससे स्त्री से जन्मा बच्चा माता पिता की वैध संतान माना जाए ।

इस परिभाषा में विवाह को स्त्री व पुरुष के ऐसे संबंधों के रूप में स्वीकार किया गया है जो संतानों को जन्म देते हैं उन्हें वैध घोषित करते हैं तथा इसके फलस्वरूप माता पिता एवं बच्चों को समाज में कुछ अधिकार एवं प्रस्थितियाँ प्राप्त होती है

डब्लयू एच आर रिवर्स के अनुसार जिन साधनों द्वारा मानव समाज यौन संबंधों का नियमन करता है उन्हें विवाह की संज्ञा दी जा सकती है।

वेस्टरमार्क के अनुसार विवाह एक या अधिक पुरुषों का एक या अधिक स्त्रियों के साथ होने वाला वह संबंध है जिसे प्रथा या कानून स्वीकार करता है और जिसमें इस संगठन में आने वाले दोनों पक्षों एवं उनसे उत्पन्न बच्चों के अधिकार एवं कर्तव्यों का समावेश होता है। वेस्टरमार्क ने विवाह बंधन में एक समय में एकाधिक स्त्री पुरुषों के संबंधों को स्वीकार किया है जिन्हें प्रथा एवं कानूनों की मान्यता प्राप्त होती है। पति पत्नी और उनसे उत्पन्न संतानों को कुछ अधिकार और दायित्व प्राप्त होते हैं।

बोगार्डस के अनुसार विवाह स्त्री और पुरुष के पारिवारिक जीवन में प्रवेश करने की संस्था है।

मजूमदार एवं मदान लिखते हैं विवाह मैं कानूनी या धार्मिक आयोजन के रूप में उन सामाजिक स्वीकृतियों का समावेश होता है जो विषम लिंगियों की यौन क्रिया और उससे सम्बंधित सामाजिक आर्थिक संबंधों में सम्मिलित होने का अधिकार प्रदान करती है।

जॉनसन ने लिखा है , विवाह के संबंध में अनिवार्य बात यह है कि यह एक स्थाई संबंध है जिसमें एक पुरुष और एक स्त्री समुदाय में अपनी प्रतिष्ठा को खोए बिना संतान उत्पन्न करने की सामाजिक स्वीकृति प्राप्त करते हैं।

हॉबल के अनुसार , विवाह सामाजिक आदर्श मानदंडों की वह समग्रता हैं जो विवाहित व्यक्तियों के आपसी संबंधों को ,उनके रक्त संबंधियों ,सन्तानो तथा समाज के साथ संबंधों को परिभाषित और नियन्त्रित करती हैं।
उपरोक्त परिभाषा के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि विवाह दो विषम लिंगियों को पारिवारिक जीवन में प्रवेश करने की सामाजिक धार्मिक अथवा कानूनी स्वीकृति है। इस्त्री पुरुषों एवं बच्चों को विभिन्न सामाजिक व आर्थिक क्रियाओं में सहभागी बनाना संतानोत्पत्ति करना तथा उनका लालन-पालन एवं सामाजिकरण करना विवाह के प्रमुख कार्य हैं। विवाह के परिणाम स्वरूप माता पिता एवं बच्चों के बीच कई अधिकारों एवं दायित्वों का जन्म होता है।

विवाह के उद्देश्य

जब हम विवाह के उद्देश्य पर विचार करते हैं तो पाते हैं कि विवाह दो विषम लिंगियों को यौन संबंध स्थापित करने की सामाजिक या कानूनी स्वीकृति प्रदान करता है। विवाह है परिवार की आधारशिला है और परिवार में ही बच्चों का सामाजिकरण एवं पालन पोषण होता है। समाज की निरंतरता विवाह एवं परिवार से ही संभव है। यह नातेदारी का भी आधार है। विवाह के कारण कई नातेदारी संबंध पनपते हैं। विवाह आर्थिक हितों की रक्षा एवं भरण पोषण के लिए भी आवश्यक है। विवाह संस्था व्यक्ति को शारीरिक, सामाजिक एवं मानसिक सुरक्षा प्रदान करती है।

मरडॉक ने 250 समाजो का अध्ययन करने पर सभी समाजों में विवाह के तीन उद्देश्यों का प्रचलन पाया 1. यौन सन्तुष्टि, 2. आर्थिक सहयोग, 3. सन्तानो का समाजीकरण एव लालन पालन । संक्षेप में विवाह उद्देश्यों को हम इस प्रकार से प्रकट कर सकते हैं

यौन इच्छाओं की पूर्ति एवं समाज में यौन क्रियाओं का नियमन करना।

परिवार का निर्माण करना एवं नातेदारी का विस्तार करना ।

वैध संतानोत्पत्ति करना व समाज की निरंतरता को बनाए रखना।

संतानों का लालन-पालन एवं सामाजिकरण करना।

स्त्री पुरुषों में आर्थिक सहयोग उत्पन्न करना

मानसिक संतोष प्रदान करना

माता पिता एवं बच्चों में नवीन अधिकारों एवं दायित्वों को जन्म देना ।

संस्कृति का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरण करना ।

धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक उद्देश्यों की पूर्ति करना ।

सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना ।

स्पष्ट है कि विवाह केवल वैयक्तिक संतुष्टि का साधन मात्र ही नहीं है, वरन एक सामाजिक क्रियाविधि भी है जिससे समाज की संरचना को सुदृढ़ता प्राप्त होती है। मजूमदार और मदान 30 शब्दों में विवाह से वैयक्तिक स्तर पर शारीरिक ( यौन) और मनोवैज्ञानिक (संतान प्राप्ति) संतोष प्राप्त होता है तो व्यापक सामूहिक स्तर पर इससे समूह और संस्कृति के अस्तित्व को बनाए रखने में सहायता मिलती है।

विवाह का संस्यात्मक महत्व ( Institutional Importance of Marriage ) -

विवाह के उद्देश्यों से विवाह का महत्व एवं कार्य स्वतः ही स्पष्ट हो जाते हैं। फिर भी विद्यार्थियों की सुविधा के लिए हम यहां विवाह के संस्यात्मक महत्व एवं कार्यों पर विचार करेंगे जो इस प्रकार है

विवाह का महत्व इसी बात से स्पष्ट है कि यह बैध तरीके से यौन इच्छाओं की पूर्ति में योग देता है। योन इच्छा एक स्वाभाविक इच्छा है जो सभी प्राणियों में पाई जाती है। विवाह इस इच्छा की पूर्ति का समाज द्वारा मान्य तरीका है। यदि विवाह की अदृति योन संबंधों की छूट दी जाए तो समाज में काम आचार की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी, ईर्ष्या, द्वेष, और संघर्ष की नौबत आ जायेगी । विवाह यौन इच्छा की पूर्ति का समाज द्वारा स्वीकृत तरीका है ।

विवाह संस्था संतानोत्पत्ति द्वारा समाज की निरंतरता को बनाए रखने में योग देती है। प्रत्येक समाज अपने अस्तित्व और निरंतरता को बनाए रखने के लिए नवीन संतानों को जन्म देने की व्यवस्था करता है और यह कार्य विवाह संस्था के माध्यम से ही किया जाता है।

विवाह संतानों की वैधता प्राप्त करने और उनकी स्थिति निर्धारण में योग देता है। अवैध संतानों को समाज में मान्यता प्राप्त नहीं होती। उन्हें वह सम्मान नहीं मिलता जो बैध संतानों को मिलता है । साथ ही विवाह के माध्यम से वेद संतानों को सामाजिक स्थिति भी प्राप्त होती है जो कि अवैध संतानों की तुलना में ऊंची होती है। इस प्रकार नवीन संतानों की स्थिति प्रदान करने की दृष्टि से भी विवाह का काफी महत्व है।

बालकों के सामाजिकरण और व्यक्तित्व के विकास की दृष्टि से भी विवाह का विशेष महत्व पाया जाता है। पति पत्नी के बीच विवाह के आधार पर पनपने वाले स्थाई संबंधों के माध्यम से ही बालकों का ठीक से पालन पोषण, सामाजिकरण एवं व्यक्तित्व का विकास हो पाता है। इसका मूल कारण यह है कि अन्य पशु पक्षियों की तुलना में बालक का शैशव काल काफी लंबा होता है ।

विवाह संस्था का पारिवारिक जीवन की सुदृढ़ता की दृष्टि से विशेष महत्व है। विवाह के आधार पर ही परिवार की स्थापना होती है। इसीलिए तो विवाह को परिवार का प्रवेश द्वार कहा गया है। परिवार की स्थापना एवं संतानोत्पत्ति के बाद ही व्यक्ति पूर्णता को प्राप्त करता है । पत्नी और संतानों के अभाव में पुरुष को अपूर्ण माना गया है । विवाह के माध्यम से स्थापित होने वाला परिवार ही वह अनुपम स्थल है जहां व्यक्ति जीवन की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करता हुआ समाज का एक योग्य सदस्य बनता है। पारिवारिक जीवन की सुदृढ़ता पर ही समाज रूपी भवन निर्मित होता है और सुदृढ़ता को आधार प्रदान करता है विवाह ।

विवाह का सामाजिक संबंधों की सुदृढ़ता प्रदान करने की दृष्टि से विशेष महत्व है। विवाह संबंध के आधार पर व्यक्ति के अनेक व्यक्तियों के साथ नाते रिश्तेदारी के संबंध बनते हैं। इससे उसके सामाजिक संबंधों का दायरा बढ़ता है। अब वह रक्त संबंधियों के अलावा विवाह के आधार पर अनेक अन्य संबंधियों से भी संबंधित हो जाता है। वह विभिन्न प्रकार के रिश्तेदारों के साथ न केवल संबंधों के आधार पर भेद करना वर्ण व्यवहार करना भी सीखता है। विवाह विभिन्न प्रकार के संबंधों की व्यवस्था को दृढ़ बना कर नैतिक व्यवस्था के विकास और समाज के निर्माण में योग देता है ।

विवाह संस्था का संस्कृति के हस्तांतरण में काफी योग पाया जाता है। इस प्रकार न केवल जैविक की है बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी विवाह का विशेष महत्व है। व्यक्ति विवाह के पश्चात अपने अनुभवों को अपनी संतानों को हस्तांतरित करता है और उसके यह अनुभव समाज और संस्कृति को समृद्ध बनाते हैं। अतः विवाह के माध्यम से वंश परंपरा बनती है और माता-पिता से सांस्कृतिक विशेषताएं संतानों को हस्तांतरित होती है ।

विवाह के क्या उद्देश्य है?

विवाह के उद्देश्य परिवार का निर्माण करना एवं नातेदारी का विस्तार करना। वैध सन्तानोत्पत्ति करना व समाज की निरन्तरता को बनाये रखना। सन्तानों का लालन-पालन एवं समाजीकरण करना। स्त्री-पुरुषों में आर्थिक सहयोग उत्पन्न करना।

हिन्दू विवाह का मुख्य उद्देश्य क्या है?

विवाह का प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति को अपने धार्मिक एवं सामाजिक कर्तव्यों को पूरा करने के अवसर प्रदान करना है। विवाह का उद्देश्य अत्यन्त पवित्र और गौरवशाली है। इसके माध्यम से मनुष्य अपने समस्त अपेक्षित कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों का निर्वाह करता है।

विवाह क्या है इसके महत्व बताइए?

विवाह, जिसे शादी भी कहा जाता है, दो लोगों के बीच एक सामाजिक या धार्मिक मान्यता प्राप्त मिलन है जो उन लोगों के बीच, साथ ही उनके और किसी भी परिणामी जैविक या दत्तक बच्चों तथा समधियों के बीच अधिकारों और दायित्वों को स्थापित करता है। एक विवाह के समारोह को विवाह उत्सव (वेडिंग) कहते है।

हिंदू विवाह के तीन उद्देश्य क्या है?

स्मृतिकारों के अनुसार हिन्दू विवाह के तीन उद्देश्य माने गये हैं- 1. धर्म, 2, प्रजा, 3. रति। यहाँ यह स्मरणीय है कि धर्म पालन को विवाह का प्रमुख आदर्श व उद्देश्य माना गया है तथा रति (यौन क्रिया) के सुख को गौण ।