वर्तमान में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य क्या है? - vartamaan mein shiksha ka mukhy uddeshy kya hai?

शिक्षा का अर्थ : इस शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के शब्द Educatum से हुई है। जिसका अंग्रेजी अनुवाद Education है। Education का अर्थ शिक्षण की कला। या इसे दुसरे शब्दों में समझे तो Education दो शब्दों से मिलकर बना है। E+Duco E का अर्थ आन्तरिक Duco का अर्थ बाहर की ओर ले जाना।

वर्तमान में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य क्या है? - vartamaan mein shiksha ka mukhy uddeshy kya hai?

जब हम शिक्षा (education development in india) शब्द के प्रयोग को देखते हैं तो मोटे तौर पर यह दो रूपों में प्रयोग में लाया जाता है, व्यापक रूप में तथा संकुचित रूप में। शिक्षा से ही हर किसी का विकास होता है तथा इस काम में सहयोग करना देश के विकास में योगदान देना है।

शिक्षा का उद्देश्य (Education in hindi) :

हमारे देश के संविधान निर्माता बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर जी ने कहा था की शिक्षा ही आपको हमेशा इज्जत की जिंदगी जीने को दे सकती है। आपको लोग किस नजर से देखते है जब आप शिक्षित हो जाओगे तो लोग उस नजर से नही देखेंगे जैसे आप सोचते हो। इसलिए आपका शिक्षित होना अतिआवश्यक है।

शिक्षा ही वहीँ हथियार है जिससे आज हम तकनीक के ज़माने में काफी आगे बढ़ चुके है। इसलिए इसमें कोई दो राय नही है की किसी भी राष्ट्र के विकास की गति उसके नागरिको के बीच शिक्षा (education development essay) के प्रसार से होती है। इसके अलावा शिक्षा ही एक ऐसा साधन है जिसका व्यक्तित्व के विकास में महत्वपूर्ण योगदान होता है।

वर्तमान समय में शिक्षा का महत्व :

जैसा की हम सब जानते है की आज के समय में शिक्षा और समाज (Relation between education and society in hindi) दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। शिक्षा के बिना समाज अधूरा है, और समाज के बिना शिक्षा। क्योंकि मानव एक सामाजिक प्राणी है वह समाज में रहता है और अपने क्रियाकलापों का निर्वाह करता है। समाज में धार्मिक , सांस्कृतिक, राजनैतिक, आर्थिक रूप से मानव का संबंध स्थापित होता है।

वैसे ये बात भी सच है की प्रत्येक समाज अपने सदस्यों में अपनी संस्कृति का संक्रमण शिक्षा (education and society essay) के द्वारा ही करता है। इस प्रकार हम यह समझ सकते है की शिक्षा किसी समाज की संस्कृति का संरक्षण करती है। और इस प्रकार जब मनुष्य शिक्षित हो जाता है तो वह अपने अनुभव के आधार पर अपनी संस्कृति में परिवर्तन करता है। इस प्रकार शिक्षा समाज की संस्कृति में विकास करती है।

शिक्षा के प्रकार (Types of education) :

व्यवस्था की दृष्टि से देखें तो शिक्षा के तीन रूप होते हैं, जो निम्नलिखित प्रकार से है....

1. औपचारिक शिक्षा :

वह शिक्षा जो विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में चलती हैं, औपचारिक शिक्षा कही जाती है। इस शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यचर्या और शिक्षण विधियाँ, सभी निश्चित होते हैं। यह योजनाबद्ध होती है और इसकी योजना बड़ी कठोर होती है। इसमें सीखने वालों को विद्यालय, महाविद्यालय अथवा विश्वविद्यालय की समय सारणी के अनुसार कार्य करना होता है।

इसमें परीक्षा लेने और प्रमाण पत्र प्रदान करने की व्यवस्था होती है। इस शिक्षा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। यह व्यक्ति में ज्ञान और कौशल का विकास करती है और उसे किसी व्यवसाय अथवा उद्योग के लिए योग्य बनाती है। परन्तु यह शिक्षा बड़ी व्यय-साध्य होती है। इससे धन, समय व ऊर्जा सभी अधिक व्यय करने पड़ते हैं।

2. निरौपचारिक शिक्षा :

वह शिक्षा जो औपचारिक शिक्षा की भाँति विद्यालय, महाविद्यालय, और विश्वविद्यालयों की सीमा में नहीं बाँधी जाती है। परन्तु औपचारिक शिक्षा की तरह इसके उद्देश्य व पाठ्यचर्या निश्चित होती है, फर्क केवल उसकी योजना में होता है जो बहुत लचीली होती है। इसका मुख्य उद्देश्य सामान्य शिक्षा का प्रसार और शिक्षा की व्यवस्था करना होता है। इसकी पाठ्यचर्या सीखने वालों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर निश्चित की गई है।

3. अनौपचारिक शिक्षा :

यह इस प्रकार की शिक्षा है जिसकी कोई योजना नहीं बनाई जाती है जिसके न उद्देश्य निश्चित होते हैं न पाठ्यचर्या और न शिक्षण विधियाँ और जो आकस्मिक रूप से सदैव चलती रहती है, उसे अनौपचारिक शिक्षा कहते हैं। यह शिक्षा मनुष्य के जीवन भर चलती है और इसका उस पर सबसे अधिक प्रभाव होता है।

मनुष्य जीवन के प्रत्येक क्षण में इस शिक्षा को लेता रहता है, प्रत्येक क्षण वह अपने सम्पर्क में आए व्यक्तियों व वातावरण से सीखता रहता है। बच्चे की प्रथम शिक्षा अनौपचारिक वातावरण में घर में रहकर ही पूरी होती है। जब वह विद्यालय में औपचारिक शिक्षा ग्रहण करने आता है तो एक व्यक्तित्त्व के साथ आता है जो कि उसकी अनौपचारिक शिक्षा का प्रतिफल है।

 शिक्षा की परिभाषा

 उपनिषद के अनुसार :- "सा विद्या या विमुक्तये।"

शंकराचार्य के अनुसार:- शिक्षा स्वयं की अनुभूति है।

कौटिल्य के अनुसार :- शिक्षा का अर्थ है देश के लिए प्रशिक्षण तथा राष्ट्रीय के प्रति प्यार।

शिक्षा का उपनिषद:- शिक्षा का अंतिम लक्ष्य निवारण है

टी पी नन के अनुसार:- शिक्षा बालक संपूर्ण व्यक्तित्व का पूर्व विकास है।

लोर्ज के अनुसार:- जीवन ही शिक्षा है और शिक्षा ही जीवन है

रोस के अनुसार :- शिक्षा का उद्देश्य अमूल्य व्यक्तित्व तथा आध्यात्मिक व्यक्तित्व का विकास है।

वर्तमान में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य क्या है? - vartamaan mein shiksha ka mukhy uddeshy kya hai?

शिक्षा का उद्देश्य aims of education

विभिन्न दर्शनिक समाज सुधारको तथा शिक्षामित्रों ने व्याक्ति तथा समाज की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए शिक्षा के विभिन्न उद्देश्यों को निर्धारित किया है।

१. ज्ञान अर्जन का उद्देश्य

२. सांस्कृतिक विकास का उद्देश्य

३. चरित्र निर्माण का उद्देश्य या चरित्र का विकास

४. जीविकोपार्जन का उद्देश्य व्यवसायिक

५. सम विकास का उद्देश्य

६. नागरिकता का उद्देश्य

७. पूर्ण जीवन का उद्देश्य

८. शारीरिक विकास का उद्देश्य

९. अवकाश के सदुपयोग का उद्देश्य

१०. समायोजन का उद्देश्य या अनुकूलन उदेश्य

११. आत्मा अभिव्यक्ति का उद्देश्य

१२. आत्मा अनुभूति का उद्देश्य

१. ज्ञान अर्जन का उद्देश्य :- 

शिक्षा में ज्ञानार्जन के उद्देश्य के प्रतिपादक सुकरात, प्लेटो, अरस्तु, दांते, तथा बेकन आदि आदर्शवादी संप्रदायिक के विद्वानों ने किया है इन सभी का मानना है कि ज्ञान से ही सभी मनुष्यों का संपूर्ण विकास होता है वह ज्ञान से ही अपने जीवन में सुखी से एवं शांतिपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करता है इस प्रकार कह सकते हैं कि ज्ञान अर्जन हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है और या शिक्षा के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है अतः शिक्षा जगत में ज्ञान अर्जन का महत्वपूर्ण स्थान है।

२. सांस्कृतिक विकास का उद्देश्य:-

शिक्षा का उद्देश्य हमारी संस्कृति को बचाना तथा उसका विकास एवं उन्नति करना भी है। संस्कृति शब्द का अर्थ अलग-अलग देशों में अलग-अलग तरह से बताया जाता है जैसे कहीं वहां के रहन-सहन आचार विचार आदि को संस्कृति बताई जाती है तो कहीं सिगरेट शराब एवं युवा आधी को संस्कृति के अंतर्गत शामिल किया जाता है तो किसी देश में संगीत वहां की कला संस्कृति परंपरा रीति रिवाज आदि को संस्कृति में शामिल किया जाता है कुछ देशों में संगीत कला वस्तु कला साहित्य में रुचि रखना एवं चरित्रवान बनाना आदि संस्कार आदि संस्कृति के विशेष लक्षण है संस्कृति से तात्पर्य है व्यक्ति के रहन-सहन, चाल ढाल, आचार विचार,विशेष आदतें, संस्कार आदि उनके अंदर हो तभी उन्हें सही मायने में संस्कारी या उनकी संस्कृति कह सकते हैं। यह सभी उन्हें शिक्षा के माध्यम से ही प्राप्त होता है। शिक्षा प्राप्त करके ही व्यक्ति का आदर होता है। अंत में कह सकते है कि संस्कृति का अभिप्राय सर्वोच्च विचारों की जानकारी प्राप्त करके उन्हें अपने दैनिक जीवन में प्रयोग करना है। इस प्रकार संस्कृति का अर्थ संपूर्ण सामाजिक संपत्ति से है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होती रहती है।

३. चरित्र निर्माण का उद्देश्य या चरित्र का विकास: - 

शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य बालक का चरित्र का विकास करना होता है। चरित्र का अर्थ है आंतरिक दृढ़ता और एकता। चरित्रवान व्यक्ति अपने जीवन में जो भी कार्य करता है वह उसके आदेशों से तथा सिद्धांतों के अनुसार होता है। शिक्षा का उद्देश्य यह होना चाहिए कि मानव की प्रवृत्तियों का परिमार्जन हो। जिससे उसके आचरण नैतिक बन जाए। हरबर्ट का इस बारे में यह विचार है कि बालक जन्म से ही कभी सदाचारी नहीं होता। उसकी सारी प्रवृतियां मानवीय होती है। बालक का नैतिक विकास करने के लिए उसकी दानवीयें प्रवृत्तियों को छोड़ना आवश्यक होता है। शिक्षा ही एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा उसके मन में पुण्य के प्रति प्रेम, पाप के प्रति घृणा, उत्पन्न करके बालक के अंदर प्रेम, सहानुभूति, दया, सद्भावना, न्याय आदि सामाजिक एवं नैतिक गुणों को विकसित करके उसको चरित्रवान बनाया जा सकता है।

४. जीविकोपार्जन का उद्देश्य व्यवसायिक :-

शिक्षा को केवल ज्ञान और संस्कृति से ही अलंकृत करना उचित नहीं है शिक्षा का उद्देश्य व्यवसायिक भी होना चाहिए। वर्तमान युग में व्यक्ति के समक्ष जीविका का समस्या प्रमुख समस्या है रोटी कपड़ा और मकान यह एक प्रमुख समस्या है अगर व्यक्ति स्वयं के लिए शिक्षा ग्रहण करने के बावजूद भी यह सभी प्राप्त नहीं कर सकता है तो उनकी शिक्षा व्यर्थ है। अतः आधुनिक शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य व्यवसायिक अथवा जीविकोपार्जन होना चाहिए। इस उद्देश्य को सामने रखकर अधिकांश माता-पिता अपने बालकों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्कूल भेजते हैं। जिससे वे शिक्षा प्राप्त करके किसी नौकरी में आ जाए और अपने परिवार का भरण पोषण कर सके।

५. सम विकास का उद्देश्य : -

शिक्षा के सम विकास के उद्देश्य का अर्थ यह है कि प्रत्येक बालक की शारीरिक, मानसिक, भावात्मक, कलात्मक, नैतिकता तथा सामाजिक आदि सभी शक्तियों का समान रूप से विकास करना है। यह उद्देश्य मनोवैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित हैं। शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन करने से पता चलता है कि प्रत्येक बालक कुछ जन्मजात शक्तियों को लेकर जन्म लेता है। बालक के व्यक्तित्व को को संतुलित रूप से विकसित करने के लिए इन सभी शक्तियों का समान रूप से विकसित होना आवश्यक है। यदि शिक्षा के द्वारा बालक की इन सभी शक्तियों का विकास समान रूप से ना किया गया अर्थात् उसकी किसी प्रवृत्ति तथा शक्ति का कम तथा किसी का अधिक विकास कर दिया गया तो उसके व्यक्तित्व का संतुलन बिगड़ जाएगा इसलिए बालक की सभी शक्तियों का सम विकास करना परम आवश्यक है इसके लिए सही रणनीति एवं शिक्षा की आवश्यकता होती है बालक के सम विकास में शिक्षा का बहुत बड़ा योगदान है।

६. नागरिकता का उद्देश्य :

 जनतंत्र में या प्रजातंत्र में बालक को सभ्य तथा ईमानदार नागरिक बनना आवश्यक है इस उद्देश्य का अनुसार शिक्षा की व्यवस्था इस प्रकार से की जानी चाहिए कि प्रत्येक बालक में इन सभी गुणों, रुचियों, योग्यताओं तथा क्षमताओं के अनुसार विकसित हो जाए। इसके लिए उसे ऐसे अवसरों कीअधिकारों का पालन करते हुए राज्य की सामाजिक,स्वतंत्र रुप से चिंतन कर सके।एवं उन्हें सफलतापूर्वक सुलझते हुए अपने भार स्वयं वाहन कर सके या उठा सके। बालक की शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिससे प्राप्त करके वाह अपनी स्वतंत्र व्यक्तित्व को विकसित करते हुए अपनी योग्यता तथा क्षमताओं के अनुसार स्वतंत्र नागरिक के रूप में राष्ट्रीय के तन मन और धन से सेवा कर सके। आधुनिक काल में राष्ट्रों में नागरिकता की शिक्षा पर है विशेष बल दिया जाता है।

७. पूर्ण जीवन का उद्देश्य : 

शिक्षा का उद्देश्य जीवन को पूर्णता प्रदान करने पर बल दिया जाता है शिक्षा के द्वारा व्यक्ति के जीवन में विभिन्न अंगों का विकास इस प्रकार से होना चाहिए कि वह अपने भावी जीवन की समस्त समस्याओं को आसानी से सुलझा सके। पूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिए शिक्षा हमें यह बताता है कि शरीर के प्रति हमें कैसा व्यवहार करना चाहिए मन के प्रति हमें कैसा व्यवहार करना चाहिए किस प्रकार अपनी योजना ना चाहिए किस प्रकार अपने परिवार का भरण पोषण करना चाहिए किस प्रकार नागरिक के रूप में व्यवहार करना चाहिए किस प्रकार सुख के उन प्रसाधनों का प्रयोग करना चाहिए जो प्रकृति ने हमें प्रदान किए हैं। किस प्रकार समस्त शक्तियों को अपने में तथा दूसरे के हित में प्रयोग करना चाहिए। ये सभी गुण हम शिक्षा के माध्यम से ही प्राप्त करते हैं और अपने भावी जीवन में व्यक्त करते हैं।

८. शारीरिक विकास का उद्देश्य : 

बालक की शिक्षा इस प्रकार की होनी चाहिए जिसको प्राप्त करके उसका शरीर स्वस्थ, सुदृढ़, सुंदर एवं बलवान बन जाए। प्राचीन तथा मध्यकालीन इतिहास इस बात की पुष्टि करता है कि अनेक देशों में शिक्षा के पूर्ण उद्देश्य को मान्यता प्रदान की गई है ग्रिस के प्राचीन सभ्य स्पार्टा में शारीरिक उद्देश्य को शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य माना करते थे।

९. अवकाश के सदुपयोग का उद्देश्य : 

आकाश का अर्थ है फुर्सत के समय अथवा ऐसे समय जिसमें व्यक्ति जीविकोपार्जन संबंधित कार्य ना करता हो। वर्तमान युग में विज्ञान में ऐसे आश्चर्य जनक मशीन का आविष्कार कर दिया गया है जिनके प्रयोग से मानव कम से कम समय में अधिक से अधिक कार्य कर लेता है। फलस्वरूप अब सभी लोगों को पर्याप्त मात्रा में अवकाश मिलने लगा है ऐसे दशा में अवकाश काल की सदुपयोग करने की समस्या एक महत्वपूर्ण समस्या बन गई है। यही कारण है कि कुछ शिक्षा शास्त्रियों ने अवकाश का समय का सदुपयोग करना है शिक्षा का एकमात्र उदेश्य माना है।

१०. किसी भी परिस्थिति या वातावरण के समायोजन का उद्देश्य या अनुकूलन उद्देश्य : 

शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य बालक में ऐसी शक्ति या क्षमता का उत्पन्न करना है जिसे वह अपने आप को किसी भी परिस्थिति अथवा वातावरण के अनुकूल बना सके। संसार के प्रत्येक प्राणी को जीवित रहने के लिए अपने परिस्थितियों अथवा प्राकृतिक एवं सामाजिक वातावरण से सदैव संघर्ष करना पड़ता है। जो प्राणी इस संघर्ष में सफल हो जाता है वही जीवित रहता है इसके विपरीत जो प्राणी वातावरण से अनुकूलन नहीं कर पाता वह नष्ट हो जाता है शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिससे वह अपने भावी जीवन में विभिन्न प्रकार के वातावरण से अनुकूलन कर सके।

शिक्षा का अर्थ एवं उद्देश्यपूर्ण

११. आत्मा अभिव्यक्ति का उद्देश्य :

 व्यक्तिवादी विचारकों ने आत्मा व्यक्ति तथा आत्मा प्रकाशन का समर्थन किया है। आत्म प्रकाशन का अर्थ है मूल प्रवृत्तियों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने का अवसर प्रदान करना इस उद्देश्य के अनुसार बालक की मूल प्रवृत्तियों को इस प्रकार से विकसित किया जाना चाहिए कि वह उनको स्वतंत्र रूप से व्यक्त कर सकें। जब समाज में ऐसी स्वतंत्रता रीति रिवाज तथा परिस्थितियां हो जिनके सहायता से बालक अपनी काम जिज्ञासा तथा आत्म गौरव आदि जन्मजात प्रवृत्तियों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त कर सकें।

१२. आत्मा अनुभूति का उद्देश्य : 

आत्मा अनुभूति अथवा आत्मबोध का अर्थ है प्रकृति मानव अथवा परमपिता परमेश्वर को समझना। शिक्षा का उद्देश्य बाला का आत्मिक विकास करना है जिसे वह समाज के माध्यम से अपने सर्वोच्च गोन की अनुभूति कर सके।

निष्कर्ष

निष्कर्ष के तौर पर कह सकते हैं कि शिक्षा का उद्देश्य मानव जीवन किस संपूर्ण विकास का एक साधन है जो मानव को सही पथ पर ले चलता है। अगर मानव जीवन का कोई उद्देश्य नहीं होगा तो शिक्षा का भी कोई उद्देश्य नहीं होगा क्योंकि शिक्षा के द्वारा ही मानवता का विकास होता है इसलिए शिक्षा का उद्देश्य का पूर्णता से पालन करना मानवता का अधिकार है।

शिक्षा का अर्थ एवं उद्देश्य

वर्तमान में शिक्षा के क्या उद्देश्य है?

राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 के मुताबिक, शिक्षा के व्यापक लक्ष्य हैं, बच्चों के भीतर विचार और कर्म की स्वतंत्रता विकसित करना, दूसरों के कल्याण और उनकी भावनाओं के प्रति संवेदनशीलता पैदा करना, और बच्चों को नई परिस्थितियों के प्रति लचीले और मौलिक ढंग से पेश आने में मदद करना।

शिक्षा का सबसे व्यापक उद्देश्य क्या है?

व्यापक अर्थ में शिक्षा किसी समाज में सदैव चलने वाली सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का विकास, उसके ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि एवं व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है और इस प्रकार उसे सभ्य, सुसंस्कृत एवं योग्य नागरिक बनाया जाता है।