वन काटने से पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है? - van kaatane se paryaavaran par kya prabhaav padata hai?

वृक्षों की कटाई से पड़ रहा पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव

जागरण संवाददाता, अरवल

स्वस्थ्य जीवन के लिए पर्यावरण का स्वच्छ रहना अनिवार्य है। इसके लिए हमारे आसपास पेड़ पौधों की अधिकता बेहद जरुरी है। वृक्षों की अंधाधूंध कटाई से पर्यावरण पर इसका बुरा असर पड़ने की संभावना तीव्र हो गयी है। जहां एक ओर हरियाली योजना के तहत सरकार द्वारा चंद सिक्कों के खातिर वृक्षों को काटकर हरियाली खत्म की जा रही है। चंद लोग अपनी निजी आर्थिक लाभ के कारण हरे भरे पौधों को भी काटने से बाज नहीं आ रहे हैं। वन विभाग के अधिकारियों क लापरवाही के कारण जिले में वृक्षों की कटाई बदस्तूर जारी है। अधिकारियों द्वारा किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं किये जाने से ऐसे लोगों का हौसला बुलंद होता जा रहा है। पेड़ लगाओ पर्यावरण बचाओ अभियान के तहत सरकार करोड़ों रुपये पौधे लगाने में खर्च कर रही है। लेकिन वर्षो पुराने लगे पेड़ों की कटाई सरकार के सपनों को चकनाचूर कर दिया है। अंधाधूंध हो रही पेड़ों की कटाई से आने जाने में काफी रोष देखा जा रहा है। अगर समय रहते पेड़ों की कटाई पर रोक नहीं लगायी गयी तो वनों के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो जाएगा। वृक्षों के इस अंधाधूंध कटाई से जहां एक ओर वातावरण गर्म हो रहा है वहीं प्रदूषण के कारण लोगों को श्वास, आंख,फेफड़ा एंव अन्य बीमारियों से ग्रसित होना पड़ रहा है।

पेड़ों के कटने से बिगड़ रही जैव विविधता

पेड़ों के बेतहाशा कटान से दुर्लभ जीव-जन्तु विलुप्त होने के कगार पर जल स्तर गिरने के साथ ही बंजर हो

पेड़ों के बेतहाशा कटान से दुर्लभ जीव-जन्तु विलुप्त होने के कगार पर

जल स्तर गिरने के साथ ही बंजर हो रही जमीन

जागरण संवाददाता, रामपुर : पेड़ों के कटने से पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। इसकी वजह से जैव विविधता की स्थिति लगातार खराब होती जा रही है। दुर्लभ जीव-जन्तु विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुके हैं। लिहाजा, पर्यावरण को सहेजने के लिए वृक्षों को बचाना होगा।

विकास की बयार में औद्योगिकरण तेजी से बढ़ रहा है। उद्योगों का बढ़ता यही दायरा प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है। दरअसल, वृक्षों के कटान सीधे पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इससे ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या बढ़ती जा रही है, जिसका सीधा असर मौसम पर दिखाई दे रहा है। बेमौसम बरसात और सर्दी के दिनों में गर्म होते मौसम से साफ है कि यदि पर्यावरण के प्रति सचेत नहीं हुए तो परिणाम और भी भयावह होंगे। यही नहीं कम होते पेड़ों का असर जैव विविधता पर भी साफ दिखाई दे रहा है। हर 10 साल में स्तनधारी जीव जंतुओं की एक श्रेणी विलुप्त हो जाती है। जमीन कमजोर हो रही है। कहीं जलस्तर गिरने की समस्या है तो कहीं बंजर होती जमीन। रासायनिक प्रयोगों ने किसानों की फसलों को जहरीला बना दिया है। यही नहीं उद्योगों से निकलने वाले दूषित पानी से भी जमीन की ताकत गुम होती जा रही है। पॉलीथीन, प्लास्टिक जैसी वस्तुओं से भी जैव विविधता बिगड़ रही है। ऐसे में यदि पर्यावरण को बचाने के लिए जमीनी स्तर पर कार्य नहीं हुए तो जीवन भी खतरे में पड़ जाएगा। लिहाजा, समाज के हर व्यक्ति को वृक्षों को काटने से बचना होगा। साथ ही पौधारोपण के प्रति ध्यान देना होगा, ताकि पर्यावरण को संतुलित स्तर पर लाया जा सके। लोगों को ऐसे पौधे लगाने होंगे, जो ऑक्सीजन फ्रेंडली हों। मसलन, पीपल, पाखड़, बबूल, शीशम आदि ऐसे वृक्ष हैं, जिससे पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। आगामी दिनों में होली भी आने वाली है। ऐसे में लोगों को चाहिए कि होलिका दहन के लिए हरे भरे वृक्षों को न काटा जाए। धरती की जैव विविधता को वसुधैव कुटुम्बकम, जियो और जीने दो, जैसी सीख पर चलकर संरक्षित किया जा सकता है। इससे ही प्रकृति, पेड़-पौधे, जीव-जंतु और मनुष्य के बीच सामंजस्य बनाया जा सकता है।

किडस गार्डन जूनियर हाईस्कूल में बच्चों को दिलाई शपथ

रामपुर : किडस गार्डन जूनियर हाई स्कूल में पर्यावरण संरक्षण के लिए शपथ दिलाई गई। प्रधानाचार्या यामिनी ओझा ने बच्चों को पेड़ों के महत्व के बारे में बताया। साथ ही पेड़ों को काटने की बजाए उन्हें सहेजने का संकल्प दिलाया।

गुरूवार को स्कूल में हुई शपथ में प्रधानाचार्या ने कहा कि वातावरण मानवीय भूलों के कारण ही बिगड़ रहा है। लोग अंधाधुंध तरीके से वृक्ष काट रहे हैं, जिससे पर्यावरण असंतुलन बढ़ रहा है। ऐसे में हमें वृक्ष लगाने के प्रति ध्यान देना होगा। समाज के हर वर्ग को पौधे लगाने के लिए ध्यान देना होगा। कहा कि पेड़ पौधे कार्बनडाई ऑक्साइड ग्रहण करके हमारे लिए प्राण वायु ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। बिना ऑक्सीजन के कोई जीव जन्तु जीवित नहीं रह सकता। बच्चों से कहा कि हमें कोई हरा पेड़ नहीं काटना चाहिए। हमें आदत डालनी चाहिए कि हम समय-समय पर पौधा रोपण करें और उसकी देखभाल करें। दूसरों को भी ऐसा करने के लिए जागरूक किया जाए।

खेतों में कीटनाशक के प्रयोग से कम हो रहीं गौरैया

रामपुर : डीएफओ गजेन्द्र ¨सह ने कहा कि क्षेत्र में गौरेया काफी कम दिखाई दे रही है। बढ़ते प्रदूषण और खेतों में कीटनाशक आदि के प्रयोग के कारण गांव में गौरेया की संख्या कम हो गई है। इसे बचाने के लिए जिले में वन विभाग के द्वारा गौरैया बचाओ, गौरैया बसाओ का संकल्प दिलाकर अभियान भी चलाया जा रहा है। यह कार्य जन सहभागिता से कराया जा रहा है। इसमें शहर के गणमान्य व्यक्ति, उद्योग, आरामशीन व विनियर मालिकों तथा स्वयंसेवी संस्थाओं के सहयोग से 1000 से अधिक घोंसले बनवाकर इच्छुक लोगों को देने की तैयारी चल

रही है। स्कूलों में जाकर बच्चों को भी इसके लिए जागरूक किया जा रहा है। पर्यावरण संरक्षण में गौरैया के महत्व व भूमिका के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस भी मनाया जायेगा। इसके अलावा वन्य क्षेत्र और शहर से दूर स्थित गांवों में तो गिद्ध हैं, लेकिन शहर में मनुष्य द्वारा किए गए प्रदूषण के कारण यह कम हो गए हैं। इनको विलुप्त होने से बचाने के लिए लोगों का जागरुक होना बहुत जरूरी है।

हैवी मेटल से बिगड़ रही जैव विविधता

रामपुर : राजकीय रजा महाविद्यालय की जंतु विज्ञान की प्रोफेसर डॉ. तबस्सुम पिछले कई सालों से पर्यावरण प्रदूषण के कारणों को लेकर कार्य कर रही हैं। वह कई अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय सेमिनार में भी शामिल हुई हैं, जहां उन्होंने बिगड़ते पर्यावरण को लेकर अपने शोध प्रस्तुत किए। वह कहती हैं कि पेड़ों के काटने से ग्लोबल वार्मिंग हो रही है। इससे पृथ्वी का तापमान बिगड़ रहा है। साथ ही जैव विविधता भी प्रभावित हो रही है। हैवी मेटल जैसे इलेक्ट्रानिक वाय¨रग आदि भी इसकी प्रमुख वजह हैं। दरअसल, लोग जहां तहां इलेक्ट्रानिक वाय¨रग, प्लास्टिक, अनुपयोगी धातु आदि फेंक देते हैं। इससे वह जमीन में दब जाता है और गलता भी नहीं है। उद्योगों से निकलने वाले पानी में भी केमिकल और धातु का अंश होता है। यह पानी जमीन में मिल जाता है। बाद में यह पानी नदियों में मिल जाता है, जिससे नदी का पानी जहरीला तो हो ही जाता है जमीन भी कमजोर हो जाती है। नदियों के जीव जंतु भी इसी जहर की वजह से विलुप्त होते जा रहे हैं। यही नहीं कई स्थानों पर इसी केमिकल के पानी से सब्जियों और अनाज की फसलों की ¨सचाई होती है। यह हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं और इससे हमारा स्वास्थ्य भी बुरी तरह प्रभावित होता है। वहीं, वृक्षों में यह जहरीले तत्व सोखने की ताकत होती है। पेड़ कटने की वजह से ऐसा नहीं हो पा रहा है और जमीन के साथ ही इंसान की सेहत भी प्रभावित होती जा रही है। ऐसे में पर्यावरण को बचाने के लिए वृक्ष काटने से परहेज करना होगा और पौधारोपण करने पर जोर देना होगा।

कारखानों और वाहनों से निकलने वाले धुएं से लगातार वायूमंडल प्रदूषित होता जा रहा है। पृथ्वी पर सांस लेने के लिए ऑक्सीजन मुहैया कराने के लिए पेड़ ही एकमात्र ऐसा साधन है जो मानव जाति के लिए हितकारी है। परंतु जिस तेजी के साथ हरे पेड़ों का कटान हो रहा है वह ¨चता का विषय है।

अर्जित सक्सेना, प्रबंधक, किड्स गार्डन जूनियर हाईस्कूल, रामपुर।

पेड़ों के लगातार कटान के चलते मनुष्य के साथ जीव-जन्तुओं के लिए भी खतरा है। बहुत सी प्रजातियों पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है। ये हमें आक्सीजन ही नहीं देते बल्कि कार्बन डाई आक्साइड भी खत्म करते हैं। यह पर्यावरण को संतुलित करने में मदद करते हैं। हरे-भरे पेड़ों को कभी नहीं काटना चाहिए।

शोभना गुप्ता, शिक्षिका।

पेड़ों को बचाने के लिए लोगों को आगे आने की जरुरत है। पेड़ हमें जीवन देते हैं। हमें पेड़ों का कटान रोकना होगा। लोगों को चाहिए कि वह ज्यादा से ज्यादा पौधारोपण करें। क्योंकि पेड़ नहीं होंगे तो पर्यावरण प्रदूषण बढेगा। इससे समस्त मानव जाति के साथ सभी जीव-जन्तुओं को हानि होगी।

कुलदीप ¨सह, शिक्षक।

लोग जरुरतें पूरी करने के लिए तेजी से पेड़ों का कटान कर रहे हैं। भविष्य की ¨चता किसी को नहीं है। लोगों को चाहिए कि लोग मिलजुल कर ही परंपरा का निर्वाहन करें। ताकि अधिक लकड़ी खर्च न हो। पर्यावरण संरक्षण के लिए लोगों जागरूक होना पड़ेगा।

मनीषा आहूजा, शिक्षिका।

वनों की कटाई से पर्यावरण को क्या नुकसान होते हैं?

वनों की कटाई का अन्य जगहों पर उगने वाले जंगलों पर गहरा प्रभाव पड़ता है, क्योंकि इसके कारण क्षेत्र के हवा के तापमान और वर्षा पर असर पड़ता हैं

वनों को काटने का परिणाम क्या होता है?

वनों की कटाई की वजह से भूमि का क्षरण होता है क्योंकि वृक्ष पहाड़ियों की सतह को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं तथा तेजी से बढ़ती बारिश के पानी में प्राकृतिक बाधाएं पैदा करते हैं। नतीजतन नदियों का जल स्तर अचानक बढ़ जाता है जिससे बाढ़ आती है।

पेड़ के काटने से पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है?

वह कहती हैं कि पेड़ों के काटने से ग्लोबल वार्मिंग हो रही है। इससे पृथ्वी का तापमान बिगड़ रहा है। साथ ही जैव विविधता भी प्रभावित हो रही है। हैवी मेटल जैसे इलेक्ट्रानिक वाय¨रग आदि भी इसकी प्रमुख वजह हैं।

वनों के काटने से क्या होता है?

जब वन कम हो जाते हैं तब उस क्षेत्र में वर्षा कम होती है। इससे वृक्ष कम संख्या में उग पाते हैं। इस प्रकार एक दुष्चक्र आरंभ हो जाता है और वह क्षेत्र रेगिस्तान भी बन सकता है। वृक्षों के बहुत अधिक मात्रा में कटने से जैव पदार्थों से समृद्ध मिट्टी की सबसे ऊपरी परत वर्षा के पानी के साथ बहकर लुप्त होने लगती है।