ऊर्जा का कौन सा रूप पर्यावरण की समस्या पैदा नहीं करता है - oorja ka kaun sa roop paryaavaran kee samasya paida nahin karata hai

Solution : किसी भी प्रकार के ऊर्जा स्रोत के उपयोग से किसी-न-किसी रूप में वातावरण असंतुलित होता है। इसलिए। हम कह सकते हैं कि कोई भी ऊर्जा स्रोत प्रदूषण मुक्त नहीं हो सकता है। केवल प्रदूषण की मात्रा और प्रकार घटते बढ़ते हैं। उदाहरणार्थ, यदि हम लकड़ी को ऊर्जा स्रोत की तरह उपयोग करते हैं, तब पर्यावरणीय असंतुलन उत्पन्न होता है। वायु में `CO_2` और `O_2` का भी संतुलन प्रभावित होता है। लकड़ी जलने से उत्पन्न `CO_2, SO_2` और `NO_2` वायु प्रदूषण करते हैं। प्रदूषण मुक्त होने पर भी सौर सेलों का निर्माण प्रदूषण उत्पन्न करता है।

बांध के निर्माण में पहाड़ी क्षेत्र का विशाल भूभाग जल-मग्न हो जाता है। लाखों पेड़, दुर्लभ वनस्पतियों तथा जीव-जंतुओं की प्रजातियां समाप्त हो जाती हैं। बांधों से अन्य पर्यावरण संबंधी हानियां जैसे दलदल होना, लवणीयता बढ़ना उत्पन्न होती है। बांध के कारण विस्थापित परिवारों के पुनर्वास तथा उनके आजीविका की समस्या पैदा होती है। इन सबके रहते यह सभी स्वीकारते हैं कि जल-ऊर्जा विद्युत उत्पादन के लिए सबसे सस्ता तथा सुलभ साधन है। बड़े बांधों के निर्माण में अधिक हानि होती है। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में विद्युत की आवश्यकता प्रतिवर्ष लगभग 10 प्रतिशत बढ़ जाती है। बढ़ती जनसंख्या तथा स्थापित हो रहे नए-नए उद्योगों ने विद्युत की मांग बढ़ा दी है। अनुमानतः 2 लाख मेगावाट अतिरिक्त विद्युत उत्पादन (1 मेगावाट 10x10x10x10x10x10 वाट) का लक्ष्य लेकर अगले 20 वर्षों में विद्युत की संभावित कमी को पूरा किया जा सकता है। इसको ध्यान में रखते हुए लगभग 52 हजार मेगावाट अतिरिक्त विद्युत उत्पादन का लक्ष्य नवीं पंच-वर्षीय योजना में प्रस्तावित था जिसमें लगभग दो लाख इकतालीस हजार करोड़ रुपयों की लागत आने का अनुमान लगाया गया।

चूंकि इतनी बड़ी धनराशि का खर्च भारत सरकार वहन करने में सक्षम नहीं थी इसलिए प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी तलाशने के प्रयास भी किए गए। पूरे देश की दो-तिहाई ऊर्जा की आवश्यकता की पूर्ति मुख्यतः व्यावसायिक स्रोतों से होती है, ये हैं पत्थर का कोयला, भूरा कोयला, 60% कार्बन), तेल, प्राकृतिक गैस, जल स्रोत, तथा नाभिकीय ऊर्जा, शेष एक तिहाई मांग अव्यावसायिक स्रोतों जैसे जलाने की लकड़ी, कृषि से प्राप्त कचरा तथा जीव-जंतुओं से प्राप्त कचरे से पूरी होती है।

नवीनीकरण ऊर्जा प्राप्त करने में विगत कुछ वर्षों में गैर-पारंपरिक स्रोतों जैसे वायु, सूर्य तथा भूतापीय को अपनाने का प्रयास किया गया है परंतु इनका कोई विशेष महत्त्वपूर्ण योगदान नहीं रहा। व्यावसायिक ऊर्जा-स्रोतों में आज भी तेल ही विश्व के सभी ऊर्जा-स्रोतों में सबसे अधिक लोकप्रियता हासिल कर सका है। संभवतः अगली शताब्दी में सारे तेल-भंडार सूख जाएंगे। तभी तक तेल आपूर्ति होगी तत्पश्चात् अन्य विकल्पों पर निर्भर रहना हमारी मजबूरी हो जाएगी।

तेल विशेषज्ञों के अनुसार विश्व के लगभग 90 प्रतिशत तेल के कुएं खोजे जा चुके हैं तथा निकट भविष्य में नए तेल के कुओं को खोज पाना संभव नहीं है। हाल में किए गए सर्वेक्षण में इस समय विश्व का कुल तेल भंडार लगभग 1020 बिलियन (1 बिलियन=100 करोड़) बचा है जो अनुमानतः अधिक से अधिक अगले 43 वर्षों में समाप्त हो जाएगा। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार प्रतिवर्ष 23.6 बिलियन बैरल तेल की विश्व में खपत हो जाती है। कुछ विशेषज्ञों ने स्वीकारा है कि वर्ष 2005 से 2010 के बीच तेल की आपूर्ति खपत की अपेक्षा बहुत कम रहेगी जिससे तेल की कीमत अप्रत्याशित रूप से बढ़ेगी। भारत तेल का आयात करने वाला देश होने के कारण तेल की कमी से बुरी तरह प्रभावित होगा।

पेट्रोलियम उत्पादक देशों में अमेरिका, इंडोनेशिया, रूस, सऊदी अरब, कुवैत, ईराक, ईरान, कनाडा प्रमुख हैं। पेट्रोल, डीजल तथा मिट्टी के तेल का उपयोग मानव जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में शामिल हो चुका है। वाहनों, उद्योगों में, विद्युत-निर्माण में ईंधन के रूप में इनका महत्व बढ़ता जा रहा है। इनके दहन की प्रक्रिया में उत्सर्जित विषाक्त गैसें वायुमंडल को प्रदूषित कर रही हैं।

कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड्स वायुमंडल में पहुंचकर उसका तापमान बढ़ा रहे हैं। एक हजार लीटर सीसा युक्त पेट्रोल के जलने पर 350 किग्रा. कार्बन मोनोऑक्साइड, 0.6 किग्रा. सल्फर डाइऑक्साइड, 0.1 किग्रा. लैड तथा 1.6 किग्रा. एस.पी.एम. उत्सर्जित होते हैं। लैड की मात्रा 1.5 पी.पी.एम. से अधिक होने पर गुर्दे खराब होने लगते हैं। पूरे विश्व में प्रतिवर्ष ग्रीन-हाउस गैसें जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड प्रमुख है, वायुमंडल के तापमान में अप्रत्याशित वृद्धि कर देती हैं। इसका दुष्परिणाम ग्लेशियरों के पिघलने के रूप में प्रकट हो रहा है विश्व के बड़े-बड़े ग्लेशियर तीव्र गति से सिकुड़ रहे हैं।

मानव को बाढ़ के रूप में इसका परिणाम भुगतना पड़ रहा है। तेल के धुएं में उपस्थित नाइट्रोजन के ऑक्साइड ओजोन की परत को क्षीण कर रहे हैं। जिससे पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर पहुंचकर कैंसर जैसी बीमारियों को जन्म दे रही हैं। पर्यावरण की दृष्टि से ऊर्जा का यह स्रोत मानव को लाभ पहुंचाने के साथ-साथ हानि भी पहुंचा रहा है।

जल ऊर्जा का एक जाना माना ऊर्जा स्रोत है। एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में जल-ऊर्जा से 84044 मेगावाट विद्युत उत्पादन की क्षमता है। इसमें केवल हिमालय के क्षेत्र में ही 75 प्रतिशत ऊर्जा संग्रहित है। वर्ष 1996-97 तक केवल 20900 मेगावाट जल-विद्युत का उत्पादन हो पाया है। भूकंप के कारण हिमालयी क्षेत्र इतना अस्थिर हो चुका है कि वहां निर्मित या निर्माणाधीन बांध खतरे की घंटी साबित हो रहे हैं। यद्यपि जल-ऊर्जा के अनेक लाभ भी हैं। यह स्वच्छ है तथा नवीकरणीय स्रोत है। इसमें कृषि-योग्य भूमि का बहुत बड़ा भाग सिंचित होता है परंतु इसके दुष्प्रभाव भी हैं।

बांध के निर्माण में पहाड़ी क्षेत्र का विशाल भूभाग जल-मग्न हो जाता है। लाखों पेड़, दुर्लभ वनस्पतियों तथा जीव-जंतुओं की प्रजातियां समाप्त हो जाती हैं। बांधों से अन्य पर्यावरण संबंधी हानियां जैसे दलदल होना, लवणीयता बढ़ना उत्पन्न होती है। बांध के कारण विस्थापित परिवारों के पुनर्वास तथा उनके आजीविका की समस्या पैदा होती है। इन सबके रहते यह सभी स्वीकारते हैं कि जल-ऊर्जा विद्युत उत्पादन के लिए सबसे सस्ता तथा सुलभ साधन है। बड़े बांधों के निर्माण में अधिक हानि होती है। इस कारण छोटे-छोटे जल विद्युत संयंत्र जिनकी विद्युत उत्पादन क्षमता 3 से 15 मेगावाट के बीच है, के निर्माण को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।

अन्य ऊर्जा स्रोतों में पत्थर का कोयला प्रमुख है जो अधिकतर उद्योगों में व्यावसायिक ईंधन के रूप में प्रयुक्त होता है। इसे जीवाश्म ईंधन भी कहते हैं। कोयले में कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा अन्य तत्व जैसे सल्फर, आर्सेनिक, बैरीलियम, कैडनियम, तांबा, सीसा, मरकरी, नाइट्रोजन, सिलीनियम तथा जिंक उपस्थित होते हैं। बिजली घरों में कोयले की कितनी अधिक खपत होती है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि यू.पी. के ताप बिजली घर प्रतिदिन 24 हजार मीट्रिक टन से अधिक कोयला फूंक डालते हैं।

अनपरा बिजली घर में ही प्रतिदिन 16 हजार मीट्रिक टन कोयला जलाया जाता है तथा ओबरा में 8 हजार मीट्रिक टन कोयला फुंकता है। ओबरा और अनपरा बिजली घरों को कोयले की आपूर्ति सिंगरौली की खदानों से की जाती है जबकि पनकी, पारीछा और टांडा बिजली घरों को कोयला बिहार की खदानों से पहुंचता है। इतनी बड़ी मात्रा में कोयले के दहन से वातावरण में पहुंचने वाले नाइट्रोजन के ऑक्साइड्स, कणीय पदार्थ की मात्रा दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है जो चिंता का विषय है। ओजोन परत के क्षरण में नाइट्रोजन के ऑक्साइड का बहुत बड़ा हाथ है।

अम्लीय वर्षा उत्पन्न करने में सल्फर तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड प्रमुख माने जाते हैं। एन.टी.पी.सी. (नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन) द्वारा साढ़े पांच वर्ष की अवधि में प्रस्तावित तापीय विद्युत गृह उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में रिहंद जलाशय के दक्षिणी और स्थित भू-भाग पर निर्मित हो रहा है। इसकी अनुमानित लागत 4049 करोड़ रुपए हैं तथा 1000 मेगावाट विद्युत उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित है। इससे प्राप्त विद्युत में से 400 मे.वा. पंजाब को, 365 मे.वा. उत्तर प्रदेश को 95 मे.वा. राजस्थान को तथा 35 मे.वा. हिमाचल प्रदेश को दी जाएगी।

पूरी परियोजना कोयले पर आधारित होगी। इन उपलब्धियों के साथ-साथ पर्यावरण प्रदूषण भी फैलेगा। कोयले की तीन किस्में 1. Anthracite (80% carbon) 2. Bituminous (80% carbon) 3. lignite (60% carbon) उपलब्ध हैं। Anthracite coal सख्त कोयला है जो अत्यधिक काले रंग का तथा घरेलू ईंधन के रूप में अधिक उपयुक्त माना जाता है। यह धीरे-धीरे जलता है तथा धुआं कम देता है। इसका ताप बहुत अधिक होता है। Bituminous coal लोहा पिघलाने में प्रयुक्त होता है। Lignite ब्राउन रंग का होता है। इसकी उत्पत्ति भूमिगत स्रोतों से है। कोयला विश्व के सभी देशों में मिलता है। विश्व में कोयले का उत्पादन विभिन्न देशों में भिन्न-भिन्न है जैसे अमेरिका (23%), चीन (20%), यू.के. (8%), पोलैंड (6%) पश्चिमी जर्मनी (5%), भारत (3%), अन्य देश (15%)।

कोयले के दहन में कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बनडाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड, हाइड्रोकार्बन जैसी विषाक्त गैसें निकलती हैं जो वायुमंडल की जल की मात्रा से मिलकर अम्ल का निर्माण करती हैं। सल्फर डाइऑक्साइड से सल्फ्यूरिक अम्ल तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड से नाइट्रिक अम्ल बनता है। ये अम्ल बारिश के पानी के साथ पृथ्वी पर आकर स्थानीय एवं जलीय जीव-जंतुओं को हानि पहुंचाते हैं। मिट्टी में रासायनिक क्रिया से दलदल बन जाती है तथा मिट्टी के ऑक्सीजन की मात्रा क्षीण होने से ऑक्सीजन का उपयोग करने वाले जीव जंतु एवं बैक्टीरिया मर जाते हैं तथा पानी सड़ जाता है।

प्राकृतिक गैस आज के रसोईघर का मुख्य ऊर्जा स्रोत है। इसे एल.पी.जी. भी कहते हैं। इस गैस में ब्यूटेन (C4H10) प्रोपेन (C3H8) तथा पैन्टेन (C2H12) उपस्थित हैं। इसे (Pressured) दबाव युक्त गैस सिलेंडर में भरकर अनेक गैस एजेंसियों द्वारा बेचा जा रहा है। अधिक दबाव पर गैस द्रवीभूत हो जाती है तथा हवा के सम्पर्क में आकर जलने लगती है। एल.पी.जी. से कारें भी चलाई जा रही हैं तथा वायुप्रदूषण नहीं होता। एल.पी.जी. ने लकड़ी, कोयला तथा मिट्टी के तेल की खपत काफी हद तक कम कर दी है। इस गैस को पर्यावरण का मित्र कहा जा सकता है। धुआं-रहित ईंधन के रूप में इसका उपयोग सफलता से हो सकता है। यह गैस बिजली से सस्ती साबित हो रही है। (C.N.G (compresses natural gass) का उपयोग वाहनों के ईंधन के रूप में दिल्ली तथा अन्य महानगरों में होने लगा है। इससे वायु प्रदूषण कम हुआ है।

रेडियोधर्मी कचरा ऐसा नहीं है जो अन्य कचरे की तरह कहीं भी खुला फेंक दिया जाए। यह अत्यधिक खतरनाक होता है। न्यूक्लियर कचरे का निस्तारण बहुत बड़ी समस्या है। ठोस कचरे में धातु की छीलन, राल, पौंछा, दस्ताने, प्लास्टिक ऐप्रिन प्रमुख हैं। मद्रास एटॉमिक पावर स्टेशन जो 470 Mwe विद्युत उत्पादन करता है, से 100 m3 (100 घन मीटर) कचरा निकालता है। यह लगभग प्रति दिन 50 घन मीटर के आयतन में निकलता है।

ऊर्जा स्रोतों में से कौन पर्यावरण प्रदूषण नहीं उत्पन्न करता है?

सही उत्तर सौर ऊर्जा है। सीधे सूर्य से प्राप्त ऊर्जा को सौर ऊर्जा कहा जाता है। इसका उपयोग सौर सेलों के साथ बिजली उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। सौर ऊर्जा ऊर्जा का एक स्वच्छ स्रोत है और इसलिए इससे वायुमंडलीय प्रदूषण नहीं होता है।

कौन पर्यावरण के अनुकूल ऊर्जा का स्रोत नहीं है?

c)कोयला पर्यावरण के अनुकूल ऊर्जा का स्रोत नहीं है कोयला जलाने वाले ऊर्जा संयंत्र वायु प्रदूषण और ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के प्रमुख स्रोत हैं।

क्या कोई ऊर्जा स्रोत प्रदूषण मुक्त हो सकता है क्यों अथवा क्यो नहीं?

उत्तर : नहीं, कोई भी ऊर्जा स्रोत पूर्ण रूप से प्रदूषण मुक्त नही हो सकता, चाहे ऊर्जा स्रोत स्वच्छ हो पर फिर भी वह पर्यावरण को किसी न किसी प्रकार क्षति पहुँचाता है

ऊर्जा और पर्यावरण का क्या संबंध है?

Explanation: किसी भी कार्य को करने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं| ऊर्जा के ज्यादा इस्तेमाल से पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ता है| इस प्रतिकूल प्रभाव को कम करने हेतु हमें ऊर्जा का उपभोग कुशलतापूर्वक करना होगा व पर्यावरण के अनुकूल ऊर्जा संसाधनों का उपयोग करना प्रारम्भ करना होगा।