BSEB Bihar Board 12th Home Science Important Questions Long Answer Type Part 5 are the best resource for students which helps in revision. Show Bihar Board 12th Home Science Important Questions Long Answer Type Part 5प्रश्न 1.
प्रश्न 2. 2. गुणवत्ता- विभिन्न किस्म के वस्त्रों की भरमार बाजार में होती है। हमें अपनी आवश्यकता के अनुसार उत्तम गुण वाले कपड़े का चयन करना चाहिए। उत्तम किस्म के कपड़ों का चयन करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए। जैसे-टिकाऊपन, धोने में सुविधाजनक, पसीना सोखने की क्षमता, रंग का पक्कापन, बुनाई, विभिन्न प्रकार की परिसज्जा आदि। 3. मूल्य- वस्त्रों को खरीदते समय उसके मूल्य पर भी ध्यान देना चाहिए। सदैव अपने बजट के अनुसार ही कपड़ा खरीदनी चाहिए। 4. ऋतु- सदैव मौसम के अनुसार वस्त्र खरीदनी चाहिए। गर्मी में सूती तथा लिनन के वस्त्र खरीदनी चाहिए, क्योंकि इसमें कोमलता, नमी सोखने की क्षमता तथा धोने में सरलता होती है। सर्दियों में ऊनी तथा रेशम के बने वस्त्रों का प्रयोग करना चाहिए। 5. विश्वसनीय दुकान- सदैव विश्वसनीय दुकान से वस्त्र खरीदना चाहिए, क्योंकि इसमें धोखा की संभावना कम होती है। प्रश्न 3. 2. लयबद्धता- लय का अर्थ है-गति। अर्थात् एक छोर से दूसरे छोर तक बिना बाधा के घूम सके। परिधान में किनारे, कंधों, कॉलर, गला सबसे अधिक आकर्षित करते हैं। यदि ये रेखाएँ अव्यवस्थित हों तो पहनने वाले का व्यक्तित्व भी नहीं उभरता। 3. बल या दबाव- किसी भी परिधान के जिस विचार को प्रमुखता दी जाती है उसे दबाव कहते हैं। केन्द्रीय भाव या भांव की एकता दबाव होती है तथा बाकी नमूनों के गौण भाग होते हैं। कोई भी डिजाइन बल के अभाव में आकर्षक नहीं लगती है। 4. अनुपात- डिजाइन में समानुपात का सिद्धान्त शेष सभी सिद्धान्तों से महत्त्वपूर्ण है। समानुपात के सिद्धान्त के अनुसार किसी भी पोशाक के विभिन्न भागों के बीच अनुपात हो जिससे पोशाक सुन्दर और आकर्षक लगे। वस्त्रों में ठीक माप और अनुपात द्वारा ही उन्हें आकर्षक बनाकर व्यक्तित्व को आकर्षक बनाया जा सकता है। 5. एकता तथा अनुरूपता- डिजाइन के सभी मूल तत्त्वों यानि रेखाएँ, आकृतियाँ, रंग, रचना आदि पहनने वाले व्यक्ति तथा जिस अवसर पर उसे पहनना हो, एक साथ चले तथा व्यक्तित्व, गुण तथा अवसर के अनुरूप हो तो ऐसे डिजाइन को सुगठित डिजाइन कहते हैं। अतः किसी भी नमूने में एकता होना आवश्यक है। प्रश्न 4.
प्रश्न 5. घरेलू प्रयोग में तथा सभी पारिवारिक सदस्यों के परिधानों में तरह-तरह के वस्त्र प्रयोग भी आते हैं। सूती, ऊनी, रेशमी, लिनन, रेयन और रासायनिक वस्त्र तथा मिश्रण से बने वस्त्र भी रहते हैं। वस्त्रों के चयन सम्बन्धी किस्में भी एक-दूसरे से अलग रहती है। अतः धुलाई सिद्धान्तों का अवलोकन अनिवार्य है। उनका अनुसरण आवश्यकतानुसार ही करना चाहिए। अनुचित विधि के प्रयोग से वस्त्र के कोमल रेशों की घोर क्षति पहुँचाती है। उचित विधि के प्रयोग से वस्त्रों का प्रयोग सौन्दर्य स्थायी और अक्षुण्ता रहता है और वह टिकाऊ होता है, साथ ही कार्यक्षमता बढ़ती है। धुलाई क्रिया दो प्रक्रियाओं के निम्नलिखित सम्मिलित रूप का ही नाम है- गन्दगी जो वस्त्रों में होती है वह दो प्रकार की होती है- (a) रेशों पर ठहरे हुए अलग धूल-कण तथा (b) चिकनाई के साथ लगे धूल-कण। कपड़े धोने की विधियाँ (a) रगड़ने का क्रिया हाथों से घिसकर- रगड़ने का काम हाथों से भी किया जा सकता है। हाथों से उन्हीं कपड़ों को रगड़ा जा सकता है जो हाथों में आ सके अर्थात् छोटे कपड़े। (b) रगड़ने का क्रिया मार्जक ब्रश द्वारा- कुछ बड़े वस्त्रों को, जो कुछ मोटे और मजबूत भी होते हैं, ब्रश से मार्जन के द्वारा गंदगी से मुक्त किया जाता है। (c) रगड़ने का क्रिया घिसने और सार्जन द्वारा- मजबूत रचना के कपड़ों पर ही इस विधि का प्रयोग किया जा सकता है। (ii) सक्शन विधि का प्रयोग- सक्शन (चूषण) विधि का प्रयोग भारी कपड़ों को धोने के लिए किया जाता है। बड़े कपड़ों को हाथों से गूंथकर (फींचकर) तथा निपीडन करके धोना कठिन होता है। जो वस्त्र रगड़कर धोने से खराब हो सकते हैं, जिन्हें गूंथने में हाथ थक जा सकते हैं और वस्त्र भी साफ नहीं होता है, उन्हें सक्शन विधि की सहायता से स्वच्छ किया जाता है। (iv) मशीन से धुलाई करना- वस्त्रों को मशीन से धोया जाता है। धुलाई मशीन कई प्रकार की मिलती है। कार्य-प्रणाली के आधार पर ये तीन टाइप की होती है-सिलेंडर टाइप, वेक्यूम कप टाइप और टेजीटेटर टाइप मशीन की धुलाई तभी सार्थक होती है जब अधिक वस्त्रों को धोना पड़ता है और समय कम रहता है। प्रश्न 6.
प्रश्न 7.
प्रश्न 8.
प्रश्न 9.
प्रश्न 10.
प्रश्न 11.
डिटर्जेन्ट:
प्रश्न 12.
प्रश्न 13.
प्रश्न 14.
प्रश्न 15. 2. आहार- प्रसव में काफी रक्तस्राव होता है। प्रसव के बाद भी एक माह तक रक्त स्राव होते रहता है। इससे वह कमजोर हो जाती है तथा शरीर में खून की कमी हो जाती है। साथ ही उसे शिशु को स्तनपान करना होता है। इसलिए उसके आहार पर विशेष ध्यान देना चाहिए। उसका आहार संतुलित एवं उत्तम होना चाहिए। उसके आहार में दूध, बादाम, अण्डा, दलिया, छिलके वाली दाले तथा माँस का समावेश होना चाहिए। फलों तथा हरी सब्जियों का सेवन करना चाहिए। अधिक मिर्च-मसाले तथा तले-भूने गरिष्ठ आहार से परहेज करना चाहिए। 3. सफाई का ध्यान- प्रसव के बाद स्त्री के प्रजनन अंगों की सफाई होनी चाहिए। बाद में भी नियमित रूप से इसकी सफाई होनी चाहिए। मूत्राशय एवं आँतों की सफाई का भी ध्यान रखना चाहिए। सफाई नहीं होने पर संक्रामक रोग होने की संभावना रहती है। प्रसूता के वस्त्र साफ तथा धुला होना चाहिए। 4. नियमित व्यायाम- प्रसव के साथ शरीर के कुछ भागों में विशेष परिवर्तन आ जाता है। यदि उचित व्यायाम न किया जाए तो शरीर बेडॉल हो जाता है। प्रसव के उपरान्त व्यायाम करने से शरीर स्वाभाविक रूप में आ जाता है तथा स्वस्थ रहता है। सूती व ऊनी वस्त्रों की धुलाई में क्या अंतर है?रेशमी वस्त्रों को (UPBoardSolutions.com) अपेक्षाकृत कम ताप, दबाव व नमी की आवश्यकता होती है। थोड़े नम रेशमी वस्त्रों को चादर बिछी मेज पर फैलाकर इनकी उल्टी सतह पर मध्यम गर्म इस्त्री की जाती है। ऊनी वस्त्रों पर मोटा व नम सूती कपड़ा बिछाकर इनकी उल्टी सतह पर मध्यम गर्म इस्त्री की जाती है।
वस्त्रों में कड़ापन लाने के लिए क्या लगाया जाता है?(ग) वस्तुओं में कड़ापन लाने के लिए कलफ लगाते हैं।
वस्त्र धोने के पूर्व क्या तैयारी करना चाहिए?वस्त्र धोने से पूर्व ध्यान देने योग्य बातें
इससे वस्त्र जंग लगने से सुरक्षित रहते हैं। फटे वस्त्रों की धुलाई से पूर्व ही मरम्मत कर लेनी चाहिए। यदि वस्त्रों के बटन आदि टूट गये हों तो उनमें भी प्रारम्भ में ही टाँके लगा देने चाहिए। वस्त्रों में यदि दाग अथवा धब्बे लगे हों, तो उन्हें धुलाई से पूर्व ही साफ करना चाहिए।
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