द्वारपाल ने श्री कृष्ण को सुदामा के बारे में क्या बताया? - dvaarapaal ne shree krshn ko sudaama ke baare mein kya bataaya?

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लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1: सुदामा अपने मित्र श्री कृष्ण के पास किस वेश-भूषा में गए थे?
उत्तर:
जिस समय सुदामा अपने मित्र श्री कृष्ण के पास गए थे, उस समय उनके सिर पर पगड़ी नहीं थी। शरीर पर कुर्ता नहीं था। उनकी धोती जगह-जगह फटी थी। पैरों में जूते भी नहीं थे।

प्रश्न 2: द्वारपाल ने श्री कृष्ण को सुदामा के बारे में क्या बताया?
उत्तर: 
द्वारपाल ने श्री कृष्ण से सुदामा के बारे में बताते हुए कहा, ”प्रभु! दरवाजे पर एक गरीब तथा दुर्बल ब्राह्मण खड़ा है। वह आपसे मिलना चाहता है। वह अपना नाम सुदामा बता रहा है।“

प्रश्न 3: श्री कृष्ण ने सुदामा के दुख को महादुख क्यों कहा है?
उत्तर:
श्री कृष्ण ने सुदामा की दीनहीन दशा देखी तो वे दुखी हुए परंतु जब उन्होंने पैर धोने के लिए हाथ बढ़ाया और सुदामा के पैरों में फटी बिवाइयाँ तथा काँटों का जाल देखा तो ऐसे विकट दुःख को उन्होंने ‘महादुःख’ कहा।

प्रश्न 4: सुदामा अपने साथ लाए उपहार को श्री कृष्ण को देने में संकोच क्यों  कर रहे थे?
उत्तर:
द्वारका आते समय सुदामा की पत्नी ने कृष्ण के लिए उपहारस्वरूप थोड़े-से चावल एक पोटली में बाँधकर दिए थे। द्वारका पहुँचकर जब सुदामा ने कृष्ण का शाही वैभव तथा एशो-आराम देखा तो उन्होंने कृष्ण जैसे बड़े राजा के लिए चावल जैसा तुच्छ उपहार देना उचित न समझा। इसलिए वे संकोच कर रहे थे।

प्रश्न 5: कृष्ण ने सुदामा से अपनी पिछली आदत न छोड़ पाने की बात क्यों कही?
उत्तर:
श्री कृष्ण ने जब देखा कि सुदामा अपने साथ लाया उपहारस्वरूप तंदुल (चावल) भी छिपाते जा रहे हैं और वे देना नहीं चाहते हैं, तब उन्होंने ऐसा कहा, क्योंकि बचपन में एक बार सुदामा श्री कृष्ण के हिस्से के चने चोरी से खा गए थे।

प्रश्न 6: ‘कछू न जानी जात’ के माध्यम से सुदामा ने क्या कहना चाहा है?
उत्तर:
‘कूछ न जानी जात’ के माध्यम से सुदामा ने अपनी खीझ उतारते हुए यह कहना चाहा है कि कृष्ण ने आदर-सत्त्कार तो खूब किया पर वहाँ से आते समय मुझे कुछ दिया नहीं। यह बात मेरे समझ से परे है।

प्रश्न 7: सुदामा को कृष्ण के  बचपन की कौन-सी घटना याद आ गई?
उत्तर:
कृष्ण बचपन में घर-घर जाकर दही माँगते थे।

प्रश्न 8: कविता में आए अतिशयोक्ति अलंकार से युक्त पंक्ति को लिखकर उसका अर्थ लिखिए।
उत्तर:
“पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के  जल सों पग धोए” इस पंक्ति में बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ाकर चित्रित किया गया है। परात में जो जल सुदामा के चरण धोने के  लिए मँगवाया गया था उसे कृष्ण ने हाथ भी न लगाया। अपने आँसुओं के  जल से ही उनके  पाँव धो डाले।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1: कृष्ण ने सुदामा की मदद अप्रत्यक्ष रूप में क्यों की थी?
उत्तर:
कृष्ण सुदामा के  बारे में जान गए थे। उन्होंने सुदामा की मदद अप्रत्यक्ष रूप से इसलिए की, क्योंकि वे सुदामा को कुछ भी देकर उसे उसकी नजरों में नीचा नहीं करना चाहते थे और न ही हीनता की भावना उत्पन्न करना चाहते थे।

प्रश्न 2: श्रीकृष्ण ने सुदामा के  साथ सच्चे मित्र का कर्तव्य किस तरह निभाया?
उत्तर:
श्रीकृष्ण ने सुदामा की सहायता गरीबी के  दिनों में करके सच्चा मित्र होने का प्रमाण दिया। उन्होंने सुदामा की मदद अप्रत्यक्ष रूप में करके  सुदामा को अपनी ही नजरों में नीचा होने से बचा लिया। उनका यह कृत्य हमारे लिए सच्चा मित्र होने का संदेश दे जाता है।

प्रश्न 3: ‘प्रभु के परताप तें दाख न भावत’ कहकर कवि ने किस ओर संके त किया है?
उत्तर: 
‘प्रभु के परताप तें दाख न भावत’ के  माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि सुदामा अब पहले वाले सुदामा नहीं रहे, उनके  पास स्वर्ण जड़ित भवन, आने-जाने के  लिए हाथी-घोड़े, मुलायम बिस्तर तथा स्वादिष्ट पकवान व व्यंजन हैं।

प्रश्न 4: अपने गाँव आकर सुदामा यह सोचने पर विवश क्यों हो रहे थे कि कहीं वे मार्ग भूलकर द्वारका वापस तो नहीं आ गए हैं?
उत्तर: सुदामा जब द्वारका से अपने गाँव वापस आए तो जहाँ पर उनका गाँव था, वहाँ सब कुछ बदला-बदला नजर आ रहा था। उन्हें अपने आस-पास द्वारका जैसे ही राजभवन, सुख, समृद्धि, हाथी-घोड़े आदि दिख रहे थे। ऐसे में वे यह सोचने पर विवश हो गए कि कहीं वे मार्ग भूलकर अपने गाँव जाने की बजाय द्वारका वापस तो नहीं आ गए।

प्रश्न 5: गुरुमाता कौन थीं? उन्होंने चने किसे दिए थे और कब?
उत्तर:
गुरुमाता ऋषि संदीपनि की पत्नी थीं जिनके आश्रम में कृष्ण और सुदामा पढ़ा करते थे। एक बार जब आश्रम में लकड़ियाँ खत्म हो गई थीं, तब गुरुमाता ने उन्हें लकड़ियाँ लाने जंगल भेजा। उस समय रास्ते में खाने के लिए उन्होंने कृष्ण और सुदामा को चने दिए थे, ताकि भूख लगे तो उसे खाकर वे अपनी भूख शांत कर सकें। सुदामा यह चने चोरी से अकेले ही खा गए थे और कृष्ण को कुछ न मिला।

मूल्यपरक प्रश्न
प्रश्न 1: कविता ‘सुदामा-चरित’ में ‘अतिथि देवो भव’ की भावना चरितार्थ होती है। क्या वर्तमान समय में भी इस भावना की उतनी ही आवश्यकता है? तर्क सहित उत्तर लिखिए।
उत्तर:
कविता ‘सुदामा चरित’ में श्री कृष्ण ने अपने गरीब सखा सुदामा के दुःख को अपना दुःख माना। जब सुदामा उनके पास आए तो उनका देवतुल्य स्वागत किया, आदर-सत्कार किया और अपने अभिन्न मित्र के दुःख दूर करने में कोई कसर न छोड़ी। उन्होंने सुदामा के साथ अपनी मित्रता निभाई। और यह मित्रता की भावना और अतिथि-स्वागत की भावना वर्तमान समय में भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी इस समय थी, क्योंकि ये सभी गुण हमारे आदर्श हैं। इनको अपनाने से ही हमारा विश्व में एक अलग स्थान दिखाई देता है। वर्तमान समय में ये अवधारणाएँ अपना औचित्य खोती हुई सी प्रतीत होती हैं। थोड़ा मूल्यों का विघटन हुआ है। स्वार्थ हावी होता जा रहा है। ऐसे में कृष्ण और सुदामा की मित्रता हमें एक बहुत बड़ी सीख देती है कि हमें अपने जीवन में भी इसे पूरी तरह उतारना चाहिए इससे हमारी कई समस्याओं का हल निकल सकता है।

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द्वारपाल ने कृष्ण को सुदामा के बारे में क्या बताया?

उत्तर: द्वारपाल ने श्री कृष्ण से सुदामा के बारे में बताते हुए कहा, ”प्रभु! दरवाजे पर एक गरीब तथा दुर्बल ब्राह्मण खड़ा है। वह आपसे मिलना चाहता है। वह अपना नाम सुदामा बता रहा है।

द्वारपाल ने श्रीकृष्ण को जाकर क्या बताया *?

द्वारपाल ने श्रीकृष्ण को जाकर क्या बताया? Answer: द्वारपाल ने अंदर जाकर बताया कि दरवाजे पर एक फटेहाल गरीब-दुबले पतले ब्राह्मण खड़े हैं और आपके धाम का पता पूछ रहे हैं और वे अपना नाम सुदामा बता रहे हैं।

द्वारपाल ने श्रीकृष्ण को क्या कहकर सुदामा के आने का समाचार दिया?

उत्तर: द्वारपाल ने सुदामा के आने की सूचना अपने स्वामी श्रीकृष्ण को दी। उसने कहा कि द्वार पर एक गरीब ब्राह्मण आया हुआ है। उसके सिर पर न तो पगड़ी है और न शरीर पर कोई कुरता या अंगरखा है।

सुदामा ने द्वारपाल से क्या कहा?

वे प्रवेश द्वार पर द्वारपाल से भगवान कृष्ण से मिलने की इच्छा बताते हैं, द्वारपाल कृष्ण जी से सुदामा का परिचय इन मार्मिक पंक्तियों से देते हैं" ! धोती फटी सी लट्टी दुपट्टी और पाँव उपानऊ की नहीं सामा ! पूछत दीन दयाल को धाम बटावत आफ्नो नाम सुदामा " ! विप्र सुदामा बसत हैं, सदा आपने धाम।