टोपी पहनाना मुहावरे का अर्थ क्या है * क अपमानित होना ख आदर पाना ग आश्चर्य होना घ मूर्ख बनाना? - topee pahanaana muhaavare ka arth kya hai * ka apamaanit hona kh aadar paana ga aashchary hona gh moorkh banaana?

मुहावरों के प्रयोग से भाषा आकर्षक बनती है। मुहावरे वाक्य के अंग होकर प्रयुक्त होते हैं। इनका अक्षरश: अर्थ नहीं बल्कि लाक्षणिक अर्थ लिया जाता है। पाठ में अनेक मुहावरे आए हैं। टोपी को लेकर तीन मुहावरे हैं; जैसे-कितनों को टोपी पहनानी पड़ती है। शेष मुहावरों को खोजिए और उनका अर्थ ज्ञात करने का प्रयास कीजिए।


कितनों को टोपी पहनाना-अपने कार्य को करने हेतु बहुतों को मूर्ख बनाना।
टोपी के लिए कितनों का टाट उलटना - इज़्ज़त बचाने हेतु कई राजपाट बदल जाना। सत्ता प्राप्त करने हेतु राजपाट बदलना।
टोपी उछालना-बेइज़्ज़ती करना।
टोपी सलामत रहना-इज़्ज़त बनी रहना।

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गवरइया और गवरे की बहस के तर्कों को एकत्र करें और उन्हें संवाद के रूप में लिखें।


गवरइया और गवरे की बहस तीन तर्कों पर हुई-
1. आदमी के कपड़े पहनने पर।
2. गवरइया द्वारा टोपी पहनने की इच्छा व्यक्त करने पर।
3. गवरइया को रुई का फाहा मिलने पर।
इन विचारों को संवादों में निम्न रूप से लिखा जा सकता है-
गवरइया - आदमी रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर कितना जंचता है।
गवरा - बेवकूफ है आदमी, कपड़े पहनकर अपनी सुंदरता को ढक लेता है।
गवरइया - कपड़े मौसम से बचने हेतु भी पहने जाते हैं।
गवरा - कपड़े पहन लेने से तो उनकी मौसम को सहने की शक्ति समाप्त हो जाती है। साथ ही कपड़ों से उनकी हैसियत भी झलकती है।
गवरइया - आदमी की टोपी तो सबसे अच्छी होती है।
गवरा - टोपी। टोपी की तो बहुत मुसीबतें हैं। कितने ही राजपाट टोपी के दम पर बदल जाते हैं। टोपी इज़्ज़त का प्रतीक है। साथ ही जीवन की जरूरतें पूरी करने हेतु न जाने कितनी टोपियाँ घुमानी पड़ती हैं अर्थात् न जाने कितनों को मूर्ख बनाना पड़ता है।(गवरइया का कोई प्रतिक्रिया किए बिना अपनी पुन पर अड़े रहना)
गवरइया – गवरा! देखो मुझे रुई का फाह। मिल गया। अब मेरी टोपी बन जाएगी।
गवरा - तू तो बावरी हो गई है। रुई से टोपी तक का सफर तो बहुत लंबा है।
गवरइया - बस तुम तो देखते जाओ कैसे में टोपी बनवा कर ही दम लूँगी।

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गवरइया और गवरा के बीच किस बात पर बहस हुई और गवरइया को अपनी इच्छा पूरी करने का अवसर कैसे मिला?


गवरइया व गवरा के बीच आदमी के कपड़े पहनने पर बहस हुई। गवरइया का कहना था कि आदमी कपड़े पहनकर जँचता है जबकि गवरा का कहना था कि आदमी कपड़े पहनकर अपनी कुदरती सुंदरता को ढक लेता है।
गवरइया की इच्छा थी कि वह अपने सिर पर एक टोपी पहने। उसे अपनी इच्छा पूरी करने का अवसर तब मिला जब उसे कूड़े के ढेर पर चुगते-चुगते रुई का एक फाहा मिला।

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किसी कारीगर से बातचीत कीजिए और परिश्रम का उचित मूल्य नहीं मिलने पर उसकी प्रतिक्रिया क्या होगी? ज्ञात कीजिए और लिखिए।


एक मज़दूर था जो मकान बनाने का काम करता था। उसके मालिक ने एक दिन उसके द्वारा थोड़ा-सा सही कार्य न करने पर पूरे दिन की मज़दूरी काट ली, जबकि उसे सौ रुपए प्रतिदिन के हिसाब से मिलते थे। उस दिन वह बेचारा बहुत परेशान था। वह मेरे घर के पास ही रहता था। इसलिए उसके रोते बच्चे को देखकर मैं पूछ ही बैठा कि बच्चा इतना क्यों रो रहा है? उसने मुझे बात बताई और कहा कि आज उसे मजदूरी नहीं मिली। घर में खाना खाने को पैसे नहीं। में तो ताजा कमाता हूँ और ताजा ही खाता हूँ। में अब कहाँ से कुछ खाने को लाऊँ वह बेचारा अपने-आप में पछतावा कर रहा था। उसकी आँखें आँसुओं से भरी थीं। ऐसे में वह मालिक को भी भला-बुरा कह रहा था। लेकिन वह लाचार था क्योंकि अगले दिन फिर उसे वहीं काम करने जाना था।

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गवरइया की इच्छा पूर्ति का क्रम घूरे पर रुई के मिल जाने से प्रारंभ होता है। उसके बाद वह क्रमश: एक-एक कर कई कारीगरों के पास जाती है और उसकी टोपी तैयार होती है। आप भी अपनी कोई इच्छा चुन लीजिए। उसकी पूर्ति के लिए योजना और कार्य-विवरण तैयार कीजिए।


मुझे एक छोटा-सा सुंदर मोती मिला। मन में इच्छा जागृत हुई कि सुंदर रुमाल हो उस पर में यह मोती टाँक लूँ। मैं एक कपड़े वाले बजाज के पास गया उससे थोड़ा कपड़ा माँगा उसने मुझे बचे कपड़ों में से बिना दाम के ही दे दिया। फिर में एक दर्जी के पास गया उसे अपनी दिनभर की मिली दस रुपए की खर्ची में से दो रुपए देने तय हुए और उसने कपड़े को रुमाल के रूप में काटकर सिल दिया। फिर मैंने ढूँढा मोती टाँकने वाले को, उसने एक रुपए पचास पैसे में मेरा सुंदर मोती रुमाल पर टाँक दिया। फिर मैंने रुमाल को राजाना भी चाहा, मैं मनियारे वाले के पास गया और दो रुपए की सुंदर लैस खरीदी। फिर से मुझे दर्जी के पास जाना पड़ा उसने दो रुपए और लिए और उस रुमाल पर सुंदर लैस लगा दी। मेरा रुमाल खिल उठा। मेरी प्रसन्नता का ठिकाना न था। मेरे सात रुपए पचास पैसे तो लग गए लेकिन रुमाल बहुत सुंदर बना।

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टोपी बनवाने के लिए गवरइया किस किस के पास गई? टोपी बनने तक के एक-एक कार्य को लिखें।


गवरइया को कूड़े के ढेर पर चुगते-चुगते कई का एक फाहा मिल गया। उसे लगा कि अब वह अपनी टोपी पहनने की इच्छा पूरी कर सकेगी। सबसे पहले वह धुनिए के पास गई। उसने रुई को धुनवाया, इसके बाद वह कोरी के पास सूत कतवाने गई। सूत कत जाने पर वह बुनकर को खोजने लगी। बुनकर के मिलने पर उसने बहुत सुंदर कपड़ा बुनवाया फिर गई वह दर्जी के पास। दर्जी से प्रार्थना करने पर गवरइया की फुँदने वाली सुंदर टोपी तैयार हो गई। इन सबके कार्यों के लिए गवरइया ने सही पारिश्रमिक भी दिया।

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टोपी पहनाना मुहावरे का अर्थ क्या है *?

बेवकूफ़ बनाना; झाँसा देना।

टोपी उछालना * मुहावरे का क्या अर्थ है?

टोपी उछालना मुहावरे का अर्थ topi uchalna muhavare ka arth – अपमानित करना‌‌‌ या निरादर करना ।

कितनों को टोपी पहनानी पड़ती है

नहीं कि टोपी उछलते देर नहीं लगती। अपनी टोपी सलामत रहे, इसी फिकर में कितनों को टोपी पहनानी पड़ती है। ...

टोपी सलामत रहना मुहावरे का अर्थ क्या है?

1 . टोपी सलामत रखना- अपनी इज़्ज़त बचाना। 2. इसकी टोपी उसके सिर- लोगों को मूर्ख बनाना।