स्वास्थ्य प्रकृति की स्वाभाविक देन है। स्वास्थ्य जीवन का सबसे अनमोल निधि है। इसी पर मनुष्य की प्रसन्नता, Show
खुशहाली, समृद्धि एवं क्रिया-कलाप निर्भर होते हैं। मनुष्य की शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, बौद्धिक तथा सामाजिक सुखावह अवस्था को स्वास्थ्य (Health) कहते हैं । स्वास्थ्य जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है। व्यक्ति को स्वस्थ तब कहा जाता है जब उसे कोई रोग नहीं होता है अर्थात् रोग न होने की अवस्था स्वास्थ्य है। व्यक्ति के शरीर को निरोगी होना ही ‘स्वास्थ्य’’ समझा जाता है। जबकि शरीर का निरोगी होना ‘स्वास्थ्य’ का एक पहलू मात्र है। स्वास्थ्य एक सम्पूर्ण शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक कुशलक्षेम की अवस्था है, केवल रोग और अशक्तता की अनुपस्थिति मात्र नहीं। स्वास्थ्य का अर्थस्वास्थ्य शब्द स्वस्थ शब्द से बना है जो व्यक्ति के स्वस्थ होने के गुण या विशेषता को दर्शाता है। स्वस्थ शब्द स्व+स्थ से मिलकर बना है जिसका अर्थ है जो स्वयं में स्थित हो। तात्पर्य यह है कि वह अवस्था जिसमें व्यक्ति अपने में स्थित हो, स्वास्थ्य कहलाता है। जब हम अपने मूल स्वरूप में नहीं होते हैं तो हमारे अन्दर कई प्रकार की विकृत आने लगती है, तो हम अस्वस्थ हो जाते हैं। अस्वस्थ होने पर नाना प्रकार की बीमारियाँ हमें घेर लेती है, और शरीर की शक्ति धीरे-धीरे क्षीण होने लगती है और हम काम करने के अयोग्य हो जाते है। स्वास्थ्य की परिभाषाअनेक विचारकों ने समय-समय पर स्वास्थ्य की परिभाषा दी हैं। उनमें से कुछ महत्वपूर्ण परिभाषा निम्न प्रकार हैं। 1. वेब्सटर - शरीर, मन तथा चेतना की ओजस्वी अवस्था, जिसमें समस्त शारीरिक बीमारी और दर्द का अभाव हो, की स्थिति को स्वास्थ्य कहते है। 2. पर्किन्स - शरीर की रचना और क्रिया की ऐसी सापेक्ष साम्यावस्था जो किसी भी प्रतिकूल स्थिति में शरीर को सफलतापूर्वक, संतुलित एवं जीवन्त रखती है, स्वास्थ्य कहलाती है। स्वास्थ्य शरीर के आन्तरिक अवयवों और इन्हें आहत करने वाले कारकों के बीच निष्क्रिय प्रक्रिया न होकर इन दोनों के बीच सामंजस्य स्थापित करने की सक्रिय प्रक्रिया है। 3. ऑक्सफोर्ड इंग्लिश कोष - शरीर और मन की तेजपूर्ण स्थिति, ऐसी अवस्था जिसमें समस्त शारीरिक और मानसिक कार्य समय से और पूरी क्षमता से सम्पादित हो रहे हों, ऐसी अवस्था को स्वास्थ्य कहते है। 4. जे.एफ. विलियम्स - स्वास्थ्य जीवन का वह गुण है, जो व्यक्ति को अधिक सुखी ढंग से जीवित रहने तथा सर्वोत्तम रूप से सेवा करने के योग्य बनाता है। 5. विश्व स्वास्थ्य संगठन (नं. 137) 1957 - किसी आनुवांशिक और पर्यावरणीय स्थिति में मनुष्य के जीवन चर्या का ऐसा गुणवत्तापूर्ण स्तर, जिसमें उसके द्वारा सारे कार्य यथोचित समय और सुचारू रूप से सम्पादित किये जा रहे हों, स्वाथ्य कहलाता है। 6. टैबर मेडिकल इंसाइक्लोपीडिया - स्वास्थ्य वह दशा है, जिससे शरीर और मस्तिष्क के समस्त कार्य सामान्य रूप से सक्रियतापूर्वक सम्पन्न होते है। 7. डयूवोस, आर., 1968 - जीवन का ऐसा उपक्रम, जो व्यक्ति को प्रतिकूल परिस्थितियों और अपूर्व विश्व में सुखपूर्वक जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त करता है, स्वास्थ्य कहलाता है। 8. आयुर्वेद - समदोष: समानिश्य समधातुमल क्रिया। प्रसन्नत्येन्द्रियमना: स्वस्था इत्ययिधीयते।। अर्थ-वात, पित्त एवं कफ-ये त्रिदोष सम हों, जठराग्नि, भूताग्नि आदि अग्नि सम हो, धातु एवं मल, मूत्र आदि की क्रिया विकार रहित हो तथा जिसकी आत्मा, इन्द्रिय और मन प्रसन्न हों, वही स्वस्थ है। 9. संस्कृत व्युत्पत्ति के अनुसार-’’स्वस्मिन् तिष्ठति इति स्वस्था:’’ जो स्व में रहता है, वह स्वस्थ है। 10. विश्व स्वास्थ्य संगठन, 1948 - स्वास्थ्य पूर्ण शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक संतुलन की अवस्था है, केवल रोग या अपंगता का अभाव नहीं। 11. महर्षि चरक के अनुसारः- स्वास्थ्य का शाब्दिक अर्थ है ‘‘ शरीर एवं मस्तिष्क का ऐसी अवस्था में होना जिससे वह सभी कार्य सुचारू रूप से कर सके। 12. प्रैक्लीन पी.. एडम्ज के अनुसार- स्वास्थ्य वह वस्तु है जिससे मनुष्य संसार के सुख भोगते हुए सदैव आनन्दित रहता है। 13. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं कि ‘‘जिस काम के करने में किसी प्रकार की तकलीफ न हो, मन में काम करने के प्रति उत्साह बना रहे, और मन प्रसन्न रहे और मुख पर आशा की झलक हो तो यही शरीर के स्वाभाविक स्वास्थ्य की पहचान है।’’ 14. आयुर्वेद के अनुसार स्वास्थ्य - जिस पुरुष के दोष, धातु मल तथा अग्नि व्यापार सम हों अर्थात् समान (विकार रहित) हों तथा जिसकी इन्द्रियाँ, मन तथा आत्मा प्रसन्न हों वही स्वस्थ है। जिस मनुष्य के तीनों दोष वात-पित-कफ सम हो, अग्नियाँ सम हों, अग्नियाँ तेरह प्रकार की कही गयी है, सात धात्वाग्नि, पाँच भूताग्नि और एक जठराग्नि। इनमें भोजन पाचन के लिये जठराग्नि प्रमुख है, जठराग्नि सम हो। सात धातु - रस, रक्ता, मांस, मेद्, अस्थि, मज्जा एवं शुक्र। ये सम अपनी साम्यास्थिति में हो, एवं मल जिसमें पुरुष, मूत्र एवं स्वेद ये तीनों प्रमुख मल हैं, यह भी अपने साम्यावस्था में हो, क्योंकि इनके कम या अधिक होने से रोग की उत्पत्ति मानी जाती है, अतः ये भी साम्यावस्था में हो, तथा आत्मा इन्द्रियाँ और मन (मानसिक स्वास्थ्य) ठीक हो, उसी को स्वस्थ पुरुष कहा जा सकता है और उसी का स्वास्थ्य पूरी तरह ठीक माना जायेगा। स्वास्थ्य के प्रकारस्वास्थ्य के प्रमुख प्रकार या अंग है।
1. शारीरिक स्वास्थ्य - यदि सामान्य रूप से शरीर के बाह्य तथा आन्तरिक अंग कार्य करते रहते हैं, तो शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा माना जाता है। 2. मानसिक स्वास्थ्य- जब व्यक्ति किसी भी तरह की मानसिक बीमारी से मुक्त होता है तो उसे मानसिक रूप से स्वस्थ समझा जाता है और उसकी इस अवस्था को मानसिक स्वास्थ्य की संज्ञा दी जाती है। 3. सामाजिक स्वास्थ्य - सामाजिक स्थिति का व्यक्ति के जीवन में विशेष महत्व है। बिना समाज का मनुष्य एकाकी जीवन नहीं जी सकता, अतः समाज में रहने हेतु उसका सामाजिक स्वास्थ्य का ठीक रहना परम आवश्यक है। सामाजिक स्वास्थ्य वह दशा है, जो व्यक्ति की सामाजिक पर्यावरण से समायोजन की स्थिति तथा सम्बन्धों को स्पष्ट करती है। सामाजिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति की विशेषताएँ हैं-
4. आध्यात्मिक स्वास्थ्य - आध्यात्मिक स्वास्थ्य वह अवस्था है जो व्यक्ति की ईश्वरीय सत्ता से संबन्ध स्पष्ट करते हुए जन कल्याण की ओर अग्रसित होने की स्थिति स्पष्ट करता है। आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति की विशेषताएँ है।
स्वास्थ्य की विशेषताएंस्वास्थ्य की विशेषताएं स्पष्ट होती हैं-
स्वास्थ्य की आवश्यकतासंसार के सारे काम स्वास्थ्य पर ही निर्भर है। केवल स्वस्थ मनुष्य ही धन कमा सकता है, जातीय सामाजिक, नैतिक, वैयक्तिक, पारिवारिक और सब प्रकार के कर्तव्यों का पालन कर सकता है, जीवन और संसार के सुख उठा सकता है रोगी व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता । रोगी तो दूसरों पर बोझ है। स्वस्थ व्यक्ति ही किसी परिवार समाज व राष्ट्र का मेरुदण्ड है। स्वस्थ व्यक्ति ही अपना व दूसरों का कल्याण कर सकता है। सबसे बड़ा सुख निरोगी काया को माना गया है। अच्छे स्वास्थ्य के संकेतनीचे कुछ शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक स्वास्थ्य के संकेत दिये गये हैं। ये किसी भी व्यक्ति के स्वास्थ्य के बारे में बता सकते हैं। 1. शारीरिक स्वास्थ्य के संकेतयदि आप शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं तो
स्वस्थ व्यक्ति क्रियाशील, संवेदनशील और प्रसन्नचित होते हैं और कड़ी मेहनत कर सकते हैं तथा अपने कार्य को भली भांति संपन्न कर सकते हैं। 2. मानसिक स्वास्थ्य के संकेतयदि आप मानसिक रूप से स्वस्थ हैं तो -
3. सामाजिक स्वास्थ्य के संकेतयदि आप सामाजिक दृष्टि से स्वस्थ हैं तब -
शारीरिक स्वास्थ्य की परिभाषा क्या है?1. शारीरिक स्वास्थ्य - यदि सामान्य रूप से शरीर के बाह्य तथा आन्तरिक अंग कार्य करते रहते हैं, तो शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा माना जाता है। स्वस्थ समझा जाता है और उसकी इस अवस्था को मानसिक स्वास्थ्य की संज्ञा दी जाती है। दूसरों के साथ उचित व्यवहार करना।
शारीरिक स्वास्थ्य का क्या महत्व है?मनुष्य के जीवन में स्वास्थ्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है। स्वास्थ्य व्यक्ति की अमूल्य निधि है। यह केवल व्यक्ति विशेष को प्रभावित नहीं करता, बल्कि जिस समाज में वह रहता है उस सम्पूर्ण समाज को प्रभावित करता है। स्वस्थ मनुष्य ही सामाजिक उत्तरदायित्वों का निर्वाह कुशलतापूर्वक कर सकता है।
स्वास्थ्य कितने प्रकार के होते हैं?स्वास्थ्य कितने प्रकार का होता हैं. शारीरिक स्वास्थ्य. मानसिक स्वास्थ्य. सामाजिक स्वास्थ्य. बौद्धिक स्वास्थ्य. अध्यात्मिक स्वास्थ्य. अच्छे स्वास्थ्य का क्या अर्थ है?उत्तम स्वास्थ्य से आशय स्वस्थ विचार, सामान्य व्यवहार, निहित ऊर्जा शक्ति का अपनी योग्यता, क्षमता के अनुरूप उपयोग एवं आचरण ही शारीरिक, मानसिक भावनात्मक रूप से स्वस्थ होने की पहचान हो सकती है । सामान्यतया हमारा बीमार न होना, शारीरिक रूप से अपंग न होना, अच्छा भोजन, अच्छे रहन सहन को हम उत्तम स्वास्थ्य नहीं कह सकते।
|