श्री कृष्ण कौन थे अहीर या राजपूत? - shree krshn kaun the aheer ya raajapoot?

Lord Krishna was Yadav or Rajput in Hindi? भगवान कृष्ण यादव थे या राजपूत ?

      • Lord Krishna was Yadav or Rajput in Hindi? भगवान कृष्ण यादव थे या राजपूत ?
  • आभीर/ अहीर क्या होता है?
  • ब्राह्मणों में भी अहीर होते हैं!
    • Wikipedia का यादव पेज
  • सम्राट सहस्त्रबाहु अर्जुन के लिए अहीर शब्द का उपयोग पद्मपुराण में
  • यादवों की वंशावली

सबसे पहले ये जानते हैं कि यादव होता कौन है ? पुराणों के अनुसार सोमवंशी राजा ययाति के बड़े पुत्र महाराज यदु के वंशजो को यादव कहा जाता है। यादवों अपना जीवन यापन किसी भी तरह से कर रहे हो किन्तु वे अपना मूल कार्य गोपालन नहीं छोड़ते। जैसा कि संसार को सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में महाराज यदु को गोप रूप में वर्णित किया गया है।

जबकि सम्पूर्ण यदुवंश की पृष्ठ-भूमि गोपालन वृत्ति से सम्बद्ध हैं ।

इसके लिए ऋग्वेद की यह प्राचीनत्तम ऋचा प्रमाण भूत है कि यदु को ऋग्वेद में गोप रूप वर्णन किया है ।👇

            ” उत् दासा परिविषे स्मद्दिष्टी
         गोपरीणसा यदुस्तुर्वश्च च मामहे ।।
                                   (ऋग्वेद-१० /६२ /१०)

इसीलिए प्रत्येक यादव गोप होता है | गौरतलब हो कि जो राजपूत अपने आपको यदुवंशी बताते हैं उनका गोपालन से कोई संबंध नहीं है। फिर भगवान कृष्ण राजपूत कैसे हो सकते हैं? सम्राट सहस्त्रबाहु अर्जुन के लिए भी मत्स्य पुराण में गोपालन करने की घटनाए वर्णित हैं। विदित हो कि हरिवंश पुराण में वासुदेव जी को भी गोप ( अहीर ) कहा गया है। नन्द को तो अहीर कहा ही गया है परन्तु वासुदेव जी को भी।

गोपाभीरयादवा एकैव वंशजातीनाम् त्रतये।

विशेषणा: वृत्तिभिश्च प्रवृत्तिभिर्वंशानां प्रकारा:सन्ति।

उपरोक्त श्लोक में गोप, आभीर ( अहीर ) और यादवों को एक ही वंश का सजातीय बताया गया है? जिनमें गोप और अभीर प्रवित्ति मूलक और यादव वंश मूलक विशेषण है।

और इसी अहीर / यादव / गोप कुल में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ़ था । भगवान कृष्ण विशुद्ध यादव थे। भगवान कृष्ण के पिता वासुदेव जी और और नन्द बाबा चचेरे भाई थे । भगवान कृष्ण को क्षत्रिय और वर्तमान यादवों को स्मृति ग्रंथो के आधार पर ईर्ष्या वश शूद्र बताने वाले देखे स्मृति ग्रन्थों के आधार पर तो भगवान कृष्ण को भी शूद्र कहा गया है। जो कि यादवों से ईर्ष्या मात्र का ही स्वरूप है यही ईर्ष्या अन्य लोगों की यादवों से आज भी विद्यमान है

श्री कृष्ण कौन थे अहीर या राजपूत? - shree krshn kaun the aheer ya raajapoot?
भगवान कृष्ण को क्षत्रिय और वर्तमान यादवों को स्मृति ग्रंथो के आधार पर ईर्ष्या वश शूद्र बताने वाले देखे स्मृति ग्रन्थों के आधार पर तो भगवान कृष्ण को भी शूद्र कहा गया है। जो कि यादवों से ईर्ष्या मात्र का ही स्वरूप है यही ईर्ष्या अन्य लोगों की यादवों से आज भी विद्यमान है ।

यादव वर्ण व्यवस्था का पालन नहीं करते हैं। अतः लोग अपने अपने मत के अनुसार कभी क्षत्रिय, कभी वैश्य तो कभी शूद्र बोल देते हैं । परन्तु इन बातों का कोई वास्तविक स्वरूप नहीं है। यादव के पूर्वज ईसा से पूर्व भागवत धर्म का पालन करते थे जिसमें वर्ण व्यवस्था नहीं थी। गुप्त राजाओं ( गोप / अहीर) ने अपने आपको परम भगवतेय कहा है। यादवों का पारंपारक कार्य गोपालन ही है। शास्त्र सम्मत बात यह है कि गावो जगतस्य मातरम् अर्थात गाय जगत की माता होती है और माता की सेवा करना नीच कार्य केसे हो सकता है ? यादवों को शूद्र कहने का मूल कारण ही यहीं है कि यादव वर्ण व्यवस्था को कभी स्वीकार ही नहीं किए । बाद में भागवत धर्म के दर्शनों को संग्रहीत करके तथा उनमें कुछ अपने अनुसार प्रक्षिप्त करके 5 वीं शताब्दी में भागवत गीता लिखी गया।

उदाहरण :जैसे वर्ण व्यवस्था / यदि भागवत धर्म मे वर्ण व्यवस्था होती तो भागवत धर्म नष्ट ना हुआ होता , भागवत धर्म के बारे सबसे ज्यादा बुरा भला बौद्ध ग्रंथों में लिखा गया ।

गोपायनं य:  कुरुते जगत: सर्वलौककम् ।
स कथं गां गतो देशे विष्णु: गोपत्वम् आगत ।।९।  (हरिवंश पुराण ख्वाजा कुतुब वेद नगर बरेली संस्करण अनुवादक पं० श्री राम शर्मा आचार्य)
अर्थात् :- जो प्रभु विष्णु पृथ्वी के समस्त जीवों की रक्षा करने में समर्थ है ।
वही गोप (आभीर) के घर (अयन)में गोप बनकर आता है ।९। हरिवंश पुराण १९ वाँ अध्याय ।

आभीर/ अहीर क्या होता है?

अत्रि गोत्र से संबंधित सभी लोगों का मूल सम्बन्ध अभीर जनजाति से ही है। पौराणिक दृष्टि से अत्रि गोत्र के लोग अभीर / अहीर हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से मूल अभीर जनजाति के लोगों को ही पुराणों में अत्रि गोत्र में समाहित किया गया है। दूसरे शब्दों में सभी सोमवंशी आभीर जनजाति से संबद्ध हैं। अर्थात यादव, पौरव, नागवंशी, यवन, मलेक्षा और आनव सभी मूलतः अहीर ही हैं। अहीर / अभीर शब्द आर्य के समतुल्य ही अर्थ रखता है जिसका अर्थ वीर या शक्तिशाली ही होता है। जैसे अहीर को गुजराती में आयर ओर दक्षिण भारत में अय्यर ।

अहीर शब्द का विश्लेषण भाई योगेश कुमार रोहि जी द्वारा भी किया गया है।

विदित हो प्रत्येक यादव अहीर होता है, परन्तु प्रत्येक अहीर यादव नहीं होता। परन्तु जो अहीर ना हो कर शब्द स्वयं को यादव कहता हो, निश्चित ही उनके पूर्वज यहूदी बंजारे समूहों में रहते थेे|

क्योंकी अहीर / अभीर का मूल संबंध सोमवंशी के गोत्र अत्रि / अभ्री से ही है। जिनमें आगे चलकर यादव, पौरव, नागवंशी, यवन, मलेक्षा, आनव आदि महत्त्वपूर्ण जातियों का उदय हुआ। इसीलिए यदुवंशी अहीर, नागवंशी अहीर आदि नाम आज भी सुनाई देते हैं। अहीर एक खनिज है जिससे यादव, पौरव, नागवंशी, यवन, मलेक्षा, आनव आदि तत्वों का जन्म हुआ है।

परन्तु कुछ लोग कहेंगे की केवल यादव ही अहीर होते हैं परन्तु अवेस्ता में राजा ययाति को भी अवीर / अभीर बोला गया है वे तो यदु के पिता थे । यदुवंशी तो थे नहीं। मत्स्य पुराण / हरिवंश पुराण में बार बार ययाति के चरित्र विशेषण के रूप में आभीर शब्द का प्रयोग किया गया है।

पुरुरवा केे भी चरित्र विशेषण के रुप में अभीर शब्द का उच्चारण पुराणों में बार बार किया गया है।

श्री कृष्ण कौन थे अहीर या राजपूत? - shree krshn kaun the aheer ya raajapoot?
गोपाभीरयादवा एकैव वंशजातीनाम् त्रतये। विशेषणा: वृत्तिभिश्च प्रवृत्तिभिर्वंशानां प्रकारा:सन्ति। अर्थ : गोप, अहीर , यादव ये सब एक ही वंश के सजातीय है। ये इनकी वृत्ति, जीवन जीने कि शैली और प्रवित्ति के अनुसार एक ही वंश के लोगों के विभिन्न विशेषण हैं।

विदित हो कभी इक्ष्वाकु वंश के किसी भी राजा के लिए अभीर शब्द पुराणों में विशेषण के रूप में भी नहीं प्रयोग किया गया है।

ब्राह्मणों में भी अहीर होते हैं!

“Garg distinguishes a Brahmin community who use the Abhira name and are found in the present-day states of Maharashtra and Gujarat. That usage, he says, is because that division of Brahmins were priests to the ancient Abhira tribe.” from wikipedia तो क्या ब्राह्मण यादव जाति से संबद्ध हैं? हो भी सकते हैं और नहीं भी | क्यों कि अत्रि गोत्र से संबंधित प्रत्येक व्यक्ति अहीर / अभीर ही है। कौरव, पांडव, कृष्ण आदि सभी अहीर थे किन्तु कृष्ण अहीर के साथ यादव भी थे क्योंकी वे यदु के वंशज थे। परन्तु कौरव पांडव अहीर होने के साथ पौरव भी थे क्योंकि वे पुरू के वंशज थे।

Wikipedia का यादव पेज

Wikipedia का यादव पेज पर यही लिखा गया है कि अहीर/ आभीर से यादव उत्पन्न हुए हैं परन्तु लोग पढ़कर समझ ही नहीं पाते| अहीर एक खनिज है जिससे यादव, पौरव, नागवंशी, यवन, मलेक्षा, आनव आदि तत्वों का जन्म हुआ है।

श्री कृष्ण कौन थे अहीर या राजपूत? - shree krshn kaun the aheer ya raajapoot?

सम्राट सहस्त्रबाहु अर्जुन के लिए अहीर शब्द का उपयोग पद्मपुराण में

श्री कृष्ण कौन थे अहीर या राजपूत? - shree krshn kaun the aheer ya raajapoot?
सम्राट सहस्त्रबाहु अर्जुन के लिए अहीर शब्द का उपयोग

सहस्त्रबाहु को अहीर कहा जाना इस श्लोक के प्रभाव को कम कर देता । आहुक वंशात समुद्भूता आभीरा इति प्रकीर्तिता। (शक्ति संगम तंत्र, पृष्ठ 164) जिसमें ये कहा जा रहा कि अहुक के वंशज अहीर हुए। जबकि कार्तवीर्यार्जुन आहुक के पूर्वज थे।

भागवत में भी वसुदेव ने आभीर पति नन्द को अपना भाई कहकर संबोधित किया है व श्रीक़ृष्ण ने नन्द को मथुरा से विदा करते समय गोकुलवासियों को संदेश देते हुये उपनन्द, वृषभान आदि अहीरों को अपना सजातीय कह कर संबोधित किया है।

ऐसा हो सकता है यादव, पौरव, नागवंशी, यवन, मलेक्षा, आनव अहिरो में यादव सबसे अधिक शिक्षित रहें हों जिससे वे अपनी प्राचीन विरासतों को सहेजने में सफल रहे। संभवतः इनका माध्यम गीत रहें होंगे क्योंकी यादव अपने पूर्वजों की चरित्र को बिरहा आदि गीतों में अधिकतर गाते रहते हैं जो इनके इतिहास सहेजने का एक जरिया/ माध्यम रहा हो। आज यदुवंश के अलावा अहीर शब्द का विरासत नागवंशी लोगो के पास है जो अत्रि गोत्र से ही संबंधित राजा नहुष के पुत्रों के वंशज ही है पुराणों में एक कथा है जिसमें नहुष ऋषियों के श्राप से सर्प हो जाते हैं और वहां से नागवंशी अहिरो की उत्पत्ति होती है।

अहीर (आभीर) वंश के राजा, सरदार व कुलीन प्रशासक इस लेख में सभी अहीर राजाओं के बारे में लिखा गया है। जिस में यादव, पौरव, नागवंशी, यवन, मलेक्षा, आनव अहीर हो सकते हैं

तथा और भी देखें—यदु को गायों से सम्बद्ध होने के कारण ही यदुवंशी (यादवों) को गोप कहा गया है ।
देखें— महाभारत का खिल-भाग हरिवंश पुराण
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” इति अम्बुपतिना प्रोक्तो वरुणेन अहमच्युत ।
गावां कारणत्वज्ञ: सतेनांशेन जगतीं गत्वा गोपत्वं एष्यति ।।२२।।
द्या च सा सुरभिर्नाम् अदितिश्च सुरारिण: ते$प्यमे तस्य भुवि संस्यते ।।२४।।

वसुदेव: इति ख्यातो गोषुतिष्ठति भूतले ।
गुरु गोवर्धनो नामो मधुपुर: यास्त्व दूरत:।।२५।।
सतस्य कश्यपस्य अंशस्तेजसा कश्यपोपम:।
तत्रासौ गोषु निरत: कंसस्य कर दायक: तस्य भार्या द्वयं जातमदिति: सुरभिश्चते ।।२६।।
देवकी रोहिणी चैव वसुदेवस्य धीमत:
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अर्थात्  हे विष्णु ! महात्मा वरुण के एैसे वचन सुनकर
तथा कश्यप के विषय में सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त करके
उनके गो-अपहरण के अपराध के प्रभाव से
कश्यप को व्रज में गोप (आभीर) का जन्म धारण करने का शाप दे दिया ।।२६।।
कश्यप की सुरभि और अदिति नाम की पत्नीयाँ क्रमश:
रोहिणी और देवकी हुईं ।
गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित श्री रामनायण दत्त शास्त्री पाण्डेय ‘ राम’  द्वारा अनुवादित हरिवंश पुराण में वसुदेव को गोप ही बताया है ।
इसमें यह 55 वाँ अध्याय है । पितामह वाक्य नाम- से पृष्ठ संख्या [ 274 ]
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षड्यन्त्र पूर्वक पुराणों में  कृष्ण को गोपों से पृथक दर्शाने के लिए कुछ प्रक्षिप्त श्लोक समायोजित किये गये हैं । जैसे भागवतपुराण दशम् स्कन्ध के आठवें अध्याय में
यदूनामहमाचार्य: ख्यातश्च भुवि सर्वत: ।
सुतं मया मन्यते देवकी सुतम् ।।७।
अर्थात् गर्गाचार्य जी कहते हैं कि नन्द जी मैं सब जगह यादवों के आचार्य रूप में प्रसिद्ध हूँ ।
यदि मैं तुम्हारे पुत्र का संस्कार करुँगा । तो लोग समझेगे यह तो वसुदेव का पुत्र है ।७।
एक श्लोक और
” अयं हि रोहिणी पुत्रो रमयन् सुहृदो गुणै: ।
आख्यास्यते राम इति बलाधिक्याद् बलं विदु:।
यदूनाम् अपृथग्भावात् संकर्षणम् उशन्ति उत ।।१२
अर्थात् गर्गाचार्य जी ने कहा :-यह रोहिणी का पुत्र है ।इस लिए इसका नाम रौहिणेय ।
यह अपने लगे सम्बन्धियों  और मित्रों को  अपने गुणों से आनन्दित करेगा इस लिए इसका नाम राम होगा।इसके बल की कोई सीमा नहीं अत: इसका एक नाम बल भी है ।
यह यादवों और गोपों में कोई भेद भाव नहीं करेगा इस लिए इसका नाम संकर्षणम् भी है ।१२।
परन्तु भागवतपुराण में ही परस्पर विरोधाभास है ।
देखें—
” गोपान् गोकुलरक्षां निरूप्य मथुरां गत ।
नन्द: कंसस्य वार्षिक्यं करं दातुं कुरुद्वह।।१९।
वसुदेव उपश्रुत्य भ्रातरं नन्दमागतम्।
ज्ञात्वा दत्तकरं राज्ञे ययौ तदवमोचनम् ।२०।
अर्थात् कुछ समय के लिए गोकुल की रक्षा का भाव नन्द जी दूसरे गोपों को सौंपकर कंस का वार्षिक कर चुकाने के लिए मथुरा चले गये ।१९। जब वसुदेव को यह मालुम हुआ कि मेरे भाई नन्द मथुरा में आये हैं ।जानकर कि भाई कंस का कर दे चुके हैं ; तब वे नन्द ठहरे हुए थे बहाँ गये ।२०।
और ऊपर हम बता चुके हैं कि वसुदेव स्वयं गोप थे ,
तथा कृष्ण का जन्म गोप के घर में हुआ।
फिर यह कहना पागलपन है कि कृष्ण यादव थे नन्द गोप थे । भागवतपुराण बारहवीं सदी की रचना है ।

यादवों की वंशावली

परमपिता नारायण
|
ब्रह्मा
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अत्रि ( अभीर / अहीर जनजाति की उत्पत्ति )
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चन्द्रमा / सोम सर्वमान्य है
( चन्द्रमा से चद्र वंश चला)
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बुध
|
पुरुरवा
|
आयु
|
नहुष
|
ययाति
|
यदु
(यदु से यादव वंश चला)
|
क्रोष्टु
|
वृजनीवन्त
|
स्वाहि (स्वाति)
|
रुषाद्धगु
|
चित्ररथ
|
शशविन्दु
|
पृथुश्रवस
|
अन्तर(उत्तर)
|
सुयग्य
|
उशनस
|
शिनेयु
|
मरुत्त
|
कन्वलवर्हिष
|
रुक्मकवच
|
परावृत्
|
ज्यामघ
|
विदर्भ्
|
कृत्भीम
|
कुन्ती
|
धृष्ट
|
निर्वृति
|
विदूरथ
|
दशाह
|
व्योमन
|
जीमूत
|
विकृति
|
भीमरथ
|
रथवर
|
दशरथ
|
येकादशरथ
|
शकुनि
|
करंभ
|
देवरात
|
देवक्षत्र
|
देवन
|
मधु
|
पुरूरवस
|
पुरुद्वन्त
|
जन्तु (अन्श)
|
सत्वन्तु
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भीमसत्व
भीमसत्व के बाद यदवो की मुख्य दो शाखाए बन गयी
(1)-अन्धक ……और….(2)-बृष्णि
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कुकुर……………………….देविमूढस-(देविमूढस के दो रानिया थी)
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धृष्ट ………………………..|
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कपोतरोपन………………….|
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विलोमान……………………|
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अनु…………………………..|
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दुन्दुभि………………………|
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अभिजित…………………….|
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पुनर्वसु………………………..|
|
आहुक…………………………|
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उग्रसेन/देवक ……………….शूर
|
कन्स/देवकी ……………….वासदेव
|
………………………………श्रीकृष्ण
वृष्णि वंश
भीमसत्व के बाद यादव राजवंशो की प्रधान शाखा से दो मुख्य शाखाए बन गई-पहला अन्धक वंश और दूसरा वृष्णि वंश |अन्धक वंश में कंस का जन्म हुआ तथा वृष्णि वंश में भगवान श्रीकृष्ण का अवतार हुआ था|
वृष्णि वंश का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है :-
ऊपर तालिका में बताया गया है कि देविमूढस (देवमीढ़) के दो रानिया थी पहली मदिषा और दूसरी वैश्यवर्णा| पहली रानी मदिषा के गर्भ से शूर उत्पन्न हुए| शूर की पत्नी भोज राजकुमारी से दस पुत्र तथा पांच पुत्रियाँ उत्पन्न हूई, जिनके नाम नीचे नाम नीचे लिखे गए है| उनके नामो के आगे उनसे उत्पन्न प्रसिद्द पुत्रो के नाम भी लिखे गए है:-
१. वासुदेव ..वासुदेव -से श्रीकृष्ण और बलराम
२. देवभाग .. देवभाग-से उद्धव नामक पुत्र
३. देवश्रवा.. देवश्रवा-से शत्रुघ्न(एकलव्य) नामक पुत्र
४. अनाधृष्टि.. अनाधृष्टि-से यशस्वी नामक पुत्र हुआ
५. कनवक .. कनवक -से तन्द्रिज और तन्द्रिपाल नामक दो पुत्र
६. वत्सावान .. वत्सावान-के गोद लिए पुत्र कौशिक थे.
७. गृज्जिम.. गृज्जिम- से वीर और अश्वहन नामक दो पुत्र हुए
८. श्याम.. श्याम -अपने छोटे भाई शमीक को पुत्र मानते थे|
९. शमीक-के कोइ संतान नही थी।
१०. गंडूष .. गंडूष -के गोद लिए हुए चार पुत्र थे.
इनके अतिरिक्त शूर के पांच कन्याए भी उत्पन्न हुई थी जिनके नाम नीचे लिखे है| उनके नामो के आगे उनसे उत्पन्न प्रसिद्द पुत्रो के नाम भी लिखे गए है:-
१. पृथुकी .. पृथुकी -से दन्तवक्र नामक पुत्र
२. पृथा (कुंती)
.. पृथा (कुंती)- से युधिष्ठिर, भीमसेन, अर्जुन नामक तीन पुत्र
३. श्रुतदेवा .. श्रुतदेवा – से जगृहु नामक पुत्र
४. श्रुतश्रवा .. श्रुतश्रवा – से चेदिवंशी शिशुपाल नामक पुत्र
५. राजाधिदेवी राजाधिदेवी – से विन्द और अनुविन्द नामक दो पुत्र हुए
देविमूढस (देवमीढ़) की दूसरी रानी वैश्यवर्णा से पर्जन्य नामक पुत्र हुआ| पर्जन्य के नौ पुत्र हुए जिनके नाम इस प्रकार है:-
१.धरानन्द
२. ध्रुवनन्द
३. उपनंद
४. अभिनंद
५. सुनंद
६. कर्मानन्द
७. धर्मानंद
८. नन्द
.९. वल्लभ
इसे यों समझे:
(इस तालिका में कुछ नाम छोड़ दिए गए है केवल महत्वपूर्ण नामो का उल्लेख है)
प्रकार है:-
देवमीढ
की
दो रानिया

१- मदिषा…………………………………………………२-वैश्यवर्णा
से………………………………………………………………से
शूरसेन………………………………………………………. पर्जन्य
से ………………………………………………………………..से
..वसुदेव..देवभाग….पृथा…श्रुतश्रवा——————-धरानन्द…ध्रुव…उप…अभि…सुनन्द
..v………v……….v…….–.–.–.-.-………………..–कर्मा…धर्मा…नन्द…बल्लभ्
..से …….से ……से ……से..
श्रीकृष्ण…उद्धव..पाण्डव..शिशुपाल

प्रदुम्न

अनिरुद्ध

ब्रजनाभि
श्रीकृष्ण आठ भाई थे| उनके नाम इस प्रकार है:-१.कीर्तिमान, २.सुषेण,३.भद्रसेन, ४. भृगु, ५.सम्भवर्दन, ६. भद्र,७. बलभद्र और ८. श्रीकृष्ण | इनमे से छः पुत्रो को कंस ने जन्म के तुरंत बाद मार दिया था|

चक्रवर्ती सम्राट सहस्त्रबाहु अर्जुन के लिए भी अहीर / आभीर शब्द का प्रयोग पद्म पुराण में

चक्रवर्ती सम्राट सहस्त्रबाहु अर्जुन के लिए भी अहीर / आभीर शब्द का प्रयोग पद्म पुराण में किया गया है जो यह प्रमाणित करता है कि यादव / अभीर एक ही होते है

यदुकुले चंद्रवंशी अभीर महाराज कार्तावीर्यत्मर्जुना ।

श्री कृष्ण कौन थे अहीर या राजपूत? - shree krshn kaun the aheer ya raajapoot?
यदुकुले चंद्रवंशी अभीर महाराज कार्तावीर्यत्मर्जुना ।

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क्या भगवान श्री कृष्ण राजपूत थे?

दरअसल श्रीकृष्ण का जन्म यदुवंशी क्षत्रियों में हुआ था,परिस्थितिवश उनका लालन पालन गोकुल में आभीर ग्वालों के बीच हुआ था,जबकि उन ग्वालो का यदुवंश से कोई सम्बन्ध नही था। आज के जादौन, भाटी, जाड़ेजा, चुडासमा, सरवैया, रायजादा,सलारिया, छोकर, जाधव राजपूत ही श्रीकृष्ण के वास्तविक वंशज हैं ।

क्या श्री कृष्ण अहीर थे?

हा, श्री कृष्ण अहीर थे. यदुकुल में श्री कृष्ण का जन्म वासुदेव जी के पुत्र के रूप में हुआ था. वासुदेव जी यदुवंशी और यादव राजकुमार थे. अत्री गोत्र से संबंधित प्रत्येक व्यक्ति अहीर है.

भगवान श्री कृष्ण का असली वंशज कौन है?

इस बीजक के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के 181 वे वंशज के रूप में करौली राजपरिवार सहित यदुवंशी जादौन परिवारों को माना जाता है। कृष्ण के वंशज के रूप में जो ऐतिहासिक तथ्य मिलते हैं उसके अनुसार भगवान कृष्ण के परपोते के वंशज में वज्र नाभ का नाम प्रमुख रूप से सामने आता है, जो चंद्र वंश या चंद्रवंश के उप-कबीले हैं ।

भगवान श्री कृष्ण को ठाकुर जी क्यों कहा जाता है?

इसे सुनेंरोकेंशब्दकोश में इसे ठाकुर लिखा गया है, जो देवता का पर्याय है। ब्राह्मणों के लिए भी इसका उपयोग किया गया है। अनंत संहिता में “श्री दामनामा गोपालः श्रीमान सुंदर ठाकुरः” का उपयोग भी किया गया है, जो भगवान कृष्ण संदर्भ में है। इसलिए विष्णु के अवतार की देव मूर्ति को ठाकुर कहते हैं