Lord Krishna was Yadav or Rajput in Hindi? भगवान कृष्ण यादव थे या राजपूत ?
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सबसे पहले ये जानते हैं कि यादव होता कौन है ? पुराणों के अनुसार सोमवंशी राजा ययाति के बड़े पुत्र महाराज यदु के वंशजो को यादव कहा जाता है। यादवों अपना जीवन यापन किसी भी तरह से कर रहे हो किन्तु वे अपना मूल कार्य गोपालन नहीं छोड़ते। जैसा कि संसार को सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में महाराज यदु को गोप रूप में वर्णित किया गया है। जबकि सम्पूर्ण यदुवंश की पृष्ठ-भूमि गोपालन वृत्ति से सम्बद्ध हैं । इसके लिए ऋग्वेद की यह प्राचीनत्तम ऋचा प्रमाण भूत है कि यदु को ऋग्वेद में गोप रूप वर्णन किया है ।👇
” उत् दासा परिविषे स्मद्दिष्टी इसीलिए प्रत्येक यादव गोप होता है | गौरतलब हो कि जो राजपूत अपने आपको यदुवंशी बताते हैं उनका गोपालन से कोई संबंध नहीं है। फिर भगवान कृष्ण राजपूत कैसे हो सकते हैं? सम्राट सहस्त्रबाहु अर्जुन के लिए भी मत्स्य पुराण में गोपालन करने की घटनाए वर्णित हैं। विदित हो कि हरिवंश पुराण में वासुदेव जी को भी गोप ( अहीर ) कहा गया है। नन्द को तो अहीर कहा ही गया है परन्तु वासुदेव जी को भी। गोपाभीरयादवा एकैव वंशजातीनाम् त्रतये। विशेषणा: वृत्तिभिश्च प्रवृत्तिभिर्वंशानां प्रकारा:सन्ति। उपरोक्त श्लोक में गोप, आभीर ( अहीर ) और यादवों को एक ही वंश का सजातीय बताया गया है? जिनमें गोप और अभीर प्रवित्ति मूलक और यादव वंश मूलक विशेषण है। और इसी अहीर / यादव / गोप कुल में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ़ था । भगवान कृष्ण विशुद्ध यादव थे। भगवान कृष्ण के पिता वासुदेव जी और और नन्द बाबा चचेरे भाई थे । भगवान कृष्ण को क्षत्रिय और वर्तमान यादवों को स्मृति ग्रंथो के आधार पर ईर्ष्या वश शूद्र बताने वाले देखे स्मृति ग्रन्थों के आधार पर तो भगवान कृष्ण को भी शूद्र कहा गया है। जो कि यादवों से ईर्ष्या मात्र का ही स्वरूप है यही ईर्ष्या अन्य लोगों की यादवों से आज भी विद्यमान है यादव वर्ण व्यवस्था का पालन नहीं करते हैं। अतः लोग अपने अपने मत के अनुसार कभी क्षत्रिय, कभी वैश्य तो कभी शूद्र बोल देते हैं । परन्तु इन बातों का कोई वास्तविक स्वरूप नहीं है। यादव के पूर्वज ईसा से पूर्व भागवत धर्म का पालन करते थे जिसमें वर्ण व्यवस्था नहीं थी। गुप्त राजाओं ( गोप / अहीर) ने अपने आपको परम भगवतेय कहा है। यादवों का पारंपारक कार्य गोपालन ही है। शास्त्र सम्मत बात यह है कि गावो जगतस्य मातरम् अर्थात गाय जगत की माता होती है और माता की सेवा करना नीच कार्य केसे हो सकता है ? यादवों को शूद्र कहने का मूल कारण ही यहीं है कि यादव वर्ण व्यवस्था को कभी स्वीकार ही नहीं किए । बाद में भागवत धर्म के दर्शनों को संग्रहीत करके तथा उनमें कुछ अपने अनुसार प्रक्षिप्त करके 5 वीं शताब्दी में भागवत गीता लिखी गया। उदाहरण :जैसे वर्ण व्यवस्था / यदि भागवत धर्म मे वर्ण व्यवस्था होती तो भागवत धर्म नष्ट ना हुआ होता , भागवत धर्म के बारे सबसे ज्यादा बुरा भला बौद्ध ग्रंथों में लिखा गया । गोपायनं य: कुरुते जगत: सर्वलौककम् । आभीर/ अहीर क्या होता है?अत्रि गोत्र से संबंधित सभी लोगों का मूल सम्बन्ध अभीर जनजाति से ही है। पौराणिक दृष्टि से अत्रि गोत्र के लोग अभीर / अहीर हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से मूल अभीर जनजाति के लोगों को ही पुराणों में अत्रि गोत्र में समाहित किया गया है। दूसरे शब्दों में सभी सोमवंशी आभीर जनजाति से संबद्ध हैं। अर्थात यादव, पौरव, नागवंशी, यवन, मलेक्षा और आनव सभी मूलतः अहीर ही हैं। अहीर / अभीर शब्द आर्य के समतुल्य ही अर्थ रखता है जिसका अर्थ वीर या शक्तिशाली ही होता है। जैसे अहीर को गुजराती में आयर ओर दक्षिण भारत में अय्यर । अहीर शब्द का विश्लेषण भाई योगेश कुमार रोहि जी द्वारा भी किया गया है। विदित हो प्रत्येक यादव अहीर होता है, परन्तु प्रत्येक अहीर यादव नहीं होता। परन्तु जो अहीर ना हो कर शब्द स्वयं को यादव कहता हो, निश्चित ही उनके पूर्वज यहूदी बंजारे समूहों में रहते थेे| क्योंकी अहीर / अभीर का मूल संबंध सोमवंशी के गोत्र अत्रि / अभ्री से ही है। जिनमें आगे चलकर यादव, पौरव, नागवंशी, यवन, मलेक्षा, आनव आदि महत्त्वपूर्ण जातियों का उदय हुआ। इसीलिए यदुवंशी अहीर, नागवंशी अहीर आदि नाम आज भी सुनाई देते हैं। अहीर एक खनिज है जिससे यादव, पौरव, नागवंशी, यवन, मलेक्षा, आनव आदि तत्वों का जन्म हुआ है। परन्तु कुछ लोग कहेंगे की केवल यादव ही अहीर होते हैं परन्तु अवेस्ता में राजा ययाति को भी अवीर / अभीर बोला गया है वे तो यदु के पिता थे । यदुवंशी तो थे नहीं। मत्स्य पुराण / हरिवंश पुराण में बार बार ययाति के चरित्र विशेषण के रूप में आभीर शब्द का प्रयोग किया गया है। पुरुरवा केे भी चरित्र विशेषण के रुप में अभीर शब्द का उच्चारण पुराणों में बार बार किया गया है।
ब्राह्मणों में भी अहीर होते हैं!“Garg distinguishes a Brahmin community who use the Abhira name and are found in the present-day states of Maharashtra and Gujarat. That usage, he says, is because that division of Brahmins were priests to the ancient Abhira tribe.” from wikipedia तो क्या ब्राह्मण यादव जाति से संबद्ध हैं? हो भी सकते हैं और नहीं भी | क्यों कि अत्रि गोत्र से संबंधित प्रत्येक व्यक्ति अहीर / अभीर ही है। कौरव, पांडव, कृष्ण आदि सभी अहीर थे किन्तु कृष्ण अहीर के साथ यादव भी थे क्योंकी वे यदु के वंशज थे। परन्तु कौरव पांडव अहीर होने के साथ पौरव भी थे क्योंकि वे पुरू के वंशज थे। Wikipedia का यादव पेजWikipedia का यादव पेज पर यही लिखा गया है कि अहीर/ आभीर से यादव उत्पन्न हुए हैं परन्तु लोग पढ़कर समझ ही नहीं पाते| अहीर एक खनिज है जिससे यादव, पौरव, नागवंशी, यवन, मलेक्षा, आनव आदि तत्वों का जन्म हुआ है। सम्राट सहस्त्रबाहु अर्जुन के लिए अहीर शब्द का उपयोग पद्मपुराण मेंसहस्त्रबाहु को अहीर कहा जाना इस श्लोक के प्रभाव को कम कर देता । आहुक वंशात समुद्भूता आभीरा इति प्रकीर्तिता। (शक्ति संगम तंत्र, पृष्ठ 164) जिसमें ये कहा जा रहा कि अहुक के वंशज अहीर हुए। जबकि कार्तवीर्यार्जुन आहुक के पूर्वज थे। भागवत में भी वसुदेव ने आभीर पति नन्द को अपना भाई कहकर संबोधित किया है व श्रीक़ृष्ण ने नन्द को मथुरा से विदा करते समय गोकुलवासियों को संदेश देते हुये उपनन्द, वृषभान आदि अहीरों को अपना सजातीय कह कर संबोधित किया है। ऐसा हो सकता है यादव, पौरव, नागवंशी, यवन, मलेक्षा, आनव अहिरो में यादव सबसे अधिक शिक्षित रहें हों जिससे वे अपनी प्राचीन विरासतों को सहेजने में सफल रहे। संभवतः इनका माध्यम गीत रहें होंगे क्योंकी यादव अपने पूर्वजों की चरित्र को बिरहा आदि गीतों में अधिकतर गाते रहते हैं जो इनके इतिहास सहेजने का एक जरिया/ माध्यम रहा हो। आज यदुवंश के अलावा अहीर शब्द का विरासत नागवंशी लोगो के पास है जो अत्रि गोत्र से ही संबंधित राजा नहुष के पुत्रों के वंशज ही है पुराणों में एक कथा है जिसमें नहुष ऋषियों के श्राप से सर्प हो जाते हैं और वहां से नागवंशी अहिरो की उत्पत्ति होती है। अहीर (आभीर) वंश के राजा, सरदार व कुलीन प्रशासक इस लेख में सभी अहीर राजाओं के बारे में लिखा गया है। जिस में यादव, पौरव, नागवंशी, यवन, मलेक्षा, आनव अहीर हो सकते हैं तथा और भी देखें—यदु को गायों से सम्बद्ध होने के कारण ही
यदुवंशी (यादवों) को गोप कहा गया है । यादवों की वंशावलीपरमपिता नारायण चक्रवर्ती सम्राट सहस्त्रबाहु अर्जुन के लिए भी अहीर / आभीर शब्द का प्रयोग पद्म पुराण में चक्रवर्ती सम्राट सहस्त्रबाहु अर्जुन के लिए भी अहीर / आभीर शब्द का प्रयोग पद्म पुराण में किया गया है जो यह प्रमाणित करता है कि यादव / अभीर एक ही होते है यदुकुले चंद्रवंशी अभीर महाराज कार्तावीर्यत्मर्जुना । Post Views: 477 क्या भगवान श्री कृष्ण राजपूत थे?दरअसल श्रीकृष्ण का जन्म यदुवंशी क्षत्रियों में हुआ था,परिस्थितिवश उनका लालन पालन गोकुल में आभीर ग्वालों के बीच हुआ था,जबकि उन ग्वालो का यदुवंश से कोई सम्बन्ध नही था। आज के जादौन, भाटी, जाड़ेजा, चुडासमा, सरवैया, रायजादा,सलारिया, छोकर, जाधव राजपूत ही श्रीकृष्ण के वास्तविक वंशज हैं ।
क्या श्री कृष्ण अहीर थे?हा, श्री कृष्ण अहीर थे. यदुकुल में श्री कृष्ण का जन्म वासुदेव जी के पुत्र के रूप में हुआ था. वासुदेव जी यदुवंशी और यादव राजकुमार थे. अत्री गोत्र से संबंधित प्रत्येक व्यक्ति अहीर है.
भगवान श्री कृष्ण का असली वंशज कौन है?इस बीजक के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के 181 वे वंशज के रूप में करौली राजपरिवार सहित यदुवंशी जादौन परिवारों को माना जाता है। कृष्ण के वंशज के रूप में जो ऐतिहासिक तथ्य मिलते हैं उसके अनुसार भगवान कृष्ण के परपोते के वंशज में वज्र नाभ का नाम प्रमुख रूप से सामने आता है, जो चंद्र वंश या चंद्रवंश के उप-कबीले हैं ।
भगवान श्री कृष्ण को ठाकुर जी क्यों कहा जाता है?इसे सुनेंरोकेंशब्दकोश में इसे ठाकुर लिखा गया है, जो देवता का पर्याय है। ब्राह्मणों के लिए भी इसका उपयोग किया गया है। अनंत संहिता में “श्री दामनामा गोपालः श्रीमान सुंदर ठाकुरः” का उपयोग भी किया गया है, जो भगवान कृष्ण संदर्भ में है। इसलिए विष्णु के अवतार की देव मूर्ति को ठाकुर कहते हैं।
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