शिक्षक की भूमिका क्या होती है? - shikshak kee bhoomika kya hotee hai?

शिक्षक शिक्षा क्या है? एक शिक्षक की भूमिका व महत्व, शिक्षक की विशेषताएँ

  • शिक्षक शिक्षा क्या है? एक शिक्षक की भूमिका व महत्व
  • वर्तमान सामाजिक परिवेश में अध्यापक की क्या स्थिति है?
  • शिक्षक की भूमिका और उसका महत्व
  • एक शिक्षक की विशेषताएँ-
      • Important Links
    • Disclaimer

शिक्षक शिक्षा क्या है? एक शिक्षक की भूमिका व महत्व

वर्तमान सामाजिक परिवेश में अध्यापक की क्या स्थिति है?

शिक्षक शिक्षा क्या है? एक शिक्षक की भूमिका व महत्व, शिक्षक की विशेषताएँ – श्री जॉन एडम्स के शब्दों में- “शिक्षक मनुष्य का निर्माता है।’

दूसरे शब्दों में शिक्षक शिक्षा क्या है इस प्रश्न पर विद्वानों में सब का अलग-अलग मत है। कुछ लोग इसका अर्थ केवल अध्यापक की शारीरिक क्रियाओं से न होकर मानसिक क्रियाओं से लगाते हैं। इसमे शिक्षा के मूल अधिकार जैसे राजनीतिक, मनोवैज्ञानिक, दार्शनिक, समाजशास्त्रीय व वैज्ञानिक समस्याओं के ज्ञान के साथ-साथ राष्ट्रीय शिक्षा के क्रमिक विकास तथा शिक्षा के प्रति अन्तदृष्टि का विकास करना है।

संक्षेप में शिक्षक शिक्षा के बारे में इस प्रकार समझाया गया है- किसी भी विद्यालय को संचारु रूप से संचालित करने तथा उसकी उन्नती एवं विकास में प्रधानाध्यापक, शिक्षक, विद्यार्थी तथा अन्य कर्मचारीगण सभी अपनी-अपनी भूमिका रखते हैं। इसके अतिरिक्त विद्यालय को भली प्रकार से चलाने के लिए भौतिक साधन जैसे विद्यालय- भवन, पाठ्यक्रम, पाठ्य पुस्तकें, निर्देशन, पाठ्य सहगामी क्रियाएँ, समय-सारिणी, सभी की भूमिका महत्वपूर्ण होती है परन्त इस सत्य को भी झुठलाया नहीं जा सकता कि विद्यालय के संचालन में, उसकी गतिविधियों में शिक्षक का स्थान बहुत ही प्रतिष्ठित, गरिमामय तथा महत्वपूर्ण होता है।

विद्यालय की सभी योजनाओं को कार्यान्वित करने में शिक्षकों की बहुत ही अहम् और महत्वपूर्ण भूमिका होती है। विद्यालय में बालकों अर्थात देश के भावी नागरिकों का निर्माण होता है और ये इस निर्माण के कर्णधार होते हैं। आज शिक्षा का उद्देश्य बालकों का केवल मानसिक या किसी एक पक्ष का विकास करना ही नहीं है बल्कि आज शिक्षा का उद्देश्य है बालकों के सभी पक्षों का विकास करके उनके व्यक्तित्व का सर्वागीण और सामंजस्य पूर्ण विकास करना है। इस उद्देश्य की पूर्ति पूर्णतया शिक्षकों पर ही निर्भर करती है। शिक्षक ही यह शक्ति है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बालकों पर अपना प्रभाव डालती है। यदि शिक्षक योग्य, अनुभवी और कर्त्तव्यपरायण हो तो बालक भी अवश्य हो उसी के अनुरूप बनेंगे। बालक के व्यक्तित्व के विकास में शिक्षक का अत्यधिक योगदान होता है। शिक्षक ही वह व्यक्ति है जो बालक के व्यक्तित्व का सर्वाङगीण विकास कर उसमे अच्छे मूल्यों और आदर्शों को विकसित करता है जिससे कि वो आगे चलकर देश के उत्तम नागरिक बनें और देश की उन्नति एवं विकास में अपना योगदान दे सकें। शिक्षकों के कन्धों पर बहुत बड़ा उत्तरदायित्व होता है। वास्तव में, वे ही देश के भाग्य-निर्माता होते हैं।

फ्रोबेल ने बगीचे का उदाहरण देकर शिक्षक की भूमिका पर बहुत सुन्दर ढग से प्रकाश डाला है। उनके अनुसार विद्यालय एक बगीचे के समान होता है, बालक छोटे-छोटे पौधे के समान और शिक्षक की भूमिका एक कुशल माली के रूप में होती है। वह पौधों की देखभाल बहुत सावधानी से करता है। उन्हें हरा-भरा रखता है तथा सही दिशा में विकसित होने का अवसर देता है ताकि वह सौंदर्य और पूर्णता प्राप्त कर सके। शिक्षक भी यही कार्य करता है। वह अपने अनुभव और कौशल द्वारा बालकों के वांछनीय एवं उत्तम विकास में सहायता करता है।

विद्यार्थी जिस ज्ञान एवं सत्यों की प्राप्ति करता है वे विश्वसनीय हैं या नहीं इसकी परीक्षा के लिए भी शिक्षक की आवश्यकता होती है। प्रत्येक विद्यार्थी की बुद्धि इतनी परिपक्व नहीं होती कि वह अपने किए गए कार्यों की जाँच स्वयं भली प्रकार से कर सके। इसके लिए भी शिक्षक होना आवश्यक है। इस प्रकार बालक के मार्ग-दर्शक के रूप में कार्य करता है।

शिक्षक की भूमिका और उसका महत्व

शिक्षक की भूमिका और उसके महत्व के सम्बन्ध में विभिन्न शिक्षाशास्त्रियों ने अपने विचार प्रकट किए हैं जिनका उल्लेख नीचे किया जा रहा है-

प्रो. हुमायूँ कबीर-“अच्छे अध्यापकों के बिना सर्वोत्तम शिक्षा-पद्धति का भी असफल होना आवश्यम्भावी है। अच्छे अध्यापकों द्वारा शिक्षा-पद्धति के दोषों को भी दूर किया जा सकता है।”

डॉ. राधाकृष्णन के अनुसार-“अध्यापक का समाज में बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है। वह उस धुरी के समान है जो बौद्धिक परम्पराओं तथा तकनीकी क्षमताओं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तान्तरित करता है और सभ्यता की ज्योति को प्रज्वलित रखता है।”

माध्यमिक शिक्षा आयोग के अनुसार-“शिक्षा के पुनर्निर्माण में सबसे अधिक महत्वपूर्ण तत्व शिक्षक उसे व्यक्तित्क गुण, उसकी शैक्षिक योग्यताएँ, उसका व्यावसायिक प्रशिक्षण तथा उसका स्कूल एवं समुदाय में स्थान, ही है। विद्यालय की प्रतिष्ठा तथा समाज के जीवन पर उसका प्रभाव निःसन्देह रूप से उन शिक्षकों पर निर्भर है जो कि उस विद्यालय में कार्य कर रहे हैं।”

एच. जी वेल्स के शब्दों में- “इतिहास का वास्तविक निर्माता अध्यापक ही होता है।” उपरोक्त विवरण से शिक्षा की प्रक्रिया में शिक्षक का महत्व स्पष्ट हो जाता है। विद्यालय का भवन, साज-सज्जा तथा अन्य उपकरण कितने भी अच्छे हों, प्रधानाध्यापक कितना भी दक्ष एवं कुशल प्रशासक हो परन्तु यदि शिक्षक योग्य एवं कुशल नहीं हैं, उनमें अपने कार्य के प्रति सच्ची लगन, ईमानदारी एवं समर्पण के भाव नहीं है तो विद्यालय में शिक्षाप्रद वातावरण का निर्माण नहीं किया जा सकता। विद्यालय की व्यवस्था, उसका संचालन भी ठीक प्रकार से नहीं हो सकता।

विद्यालय की इमारत उसके उपकरण तथा वातावरण चाहे कितने ही अच्छे प्रधानाचार्य और समिति कितनी ही अच्छी क्यों न हो, यदि उस विद्यालय में कुशल शिक्षक नहीं है, उनके अपने कार्य के प्रति विश्वास नहीं है, विद्यालय में वे अपना निकट का सम्बन्ध नहीं मानते तथा व्यवसायिक कुशलता तथा पेशे के प्रति आस्था का अभाव है तो उस विद्यालय में भौतिक सुविधाएँ चाहे जैसी भी हों शिक्षा का वातावरण अनुकूल नहीं बन सकता और उस विद्यालय में निकले हुए छात्र समाज के लिए भार होंगे। इसीलिए कहा जाता है कि शिक्षक का व्यक्तित्व वह धुरी है जिस पर शिक्षा व्यवस्था घूमती हुई नजर आती है।

प्राचीन काल में शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षक को बहुत अधिक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। उस समय शिक्षक का स्थान प्रमुख था तथा बालक का स्थान गौड़ था परन्तु आज स्थिति बदल गयी है। आज बालक शिक्षा का केन्द्र माना जाता है। आज के शिक्षाशास्त्री बाल केन्द्रित शिक्षा पर बल देते हैं। यद्यपि आज शिक्षा में बालक का स्थान मुख्य है, आज बालक की जन्मजात  शक्तियों के विकास के शिक्षा माना जाता है फिर भी शिक्षक का उत्तरदायित्व, उसका महत्व आज भी कम नहीं है। शिक्षक के बिना शिक्षा की प्रक्रिया चल सकती है इस बात की हम कल्पना भी नहीं कर सकते। यदि अध्यापक ही योग्य नहीं होंगे तो शिक्षा की प्रक्रिया भली-भाँति नहीं चल सकेगी। आज शिक्षक के लिए केवल अपने विषय का ज्ञान होना ही पर्याप्त नहीं है वरन् बच्चों को समझने के लिए आज उसे बाल-मनोविज्ञान का ज्ञान होना भी परम् आवश्यक है। आज शिक्षक कार्य केवल अपने व्यक्तित्व के बालकों के आकर्षित करना ही नहीं है वरन् इसके साथ-साथ आज उसका कार्य ऐसे वातावरण का निर्माण करना भी है जिसमे रहकर बालक अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें साथ ही साथ समाज के कल्याण और राष्ट्र की उन्नति एवं विकास में भी अपना योगदान दे सकें। यही कारण है कि आज विश्व के समस्त राष्ट्र शिक्षा की प्रक्रिया में शिक्षक के महत्व को स्वीकार करते हैं।

एक शिक्षक की विशेषताएँ-

एक अच्छे शिक्षक की विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

(1)विषय पर पूर्ण अधिकार

(2) जिज्ञासा और अध्ययनशीलता

(3) शिक्षण कला का ज्ञान

(4) अभिनव शिक्षण पद्धतियों और प्रयोगों से परिचित

(5) वाणी से ओज और स्पष्टता

(6) आकर्षक शारीरिक व्यक्तित्व

(7) विनोद प्रियता

(8) अन्य विषयों पर सामान्य ज्ञान

(9) दृढ़ चरित्र और नैतिकता

(10) पेशे में दृढ़ निष्ठा और स्वाभिमान

(11) पाठ्य सहगामी क्रियाओं मैं विशेष रुचि

(12) आदर्शवादिता

(13) निष्पक्षता

(14) प्रभावोत्पादक भाषण शक्ति

(15) सत्यप्रेम

(16) नेतृत्व शक्ति

(17) छात्रों से पुत्रवत् व्यवहार

(18) पाठ्य विषयों पर अधिकार

(19) अनुगामिता

(20) उच्च कोटि की नैतिकता।

Important Links

  • विद्यालय समय सारणी का अर्थ और आवश्यकता
  • विद्यालय पुस्तकालय के प्रकार एवं आवश्यकता
  • प्रधानाचार्य के आवश्यक प्रबन्ध कौशल
  • पुस्तकालय का अर्थ | पुस्तकालय का महत्व एवं कार्य
  • सामाजिक परिवर्तन (Social Change): अर्थ तथा विशेषताएँ –
  • जॉन डीवी (1859-1952) in Hindi
  • डॉ. मेरिया मॉण्टेसरी (1870-1952) in Hindi 
  • फ्रेडरिक फ्रॉबेल (1782-1852) in Hindi 
  • रूसो (Rousseau 1712-1778) in Hindi
  • प्लेटो के अनुसार शिक्षा का अर्थ, उद्देश्य, पाठ्यक्रम, विधियाँ, तथा क्षेत्र में योगदान
  • शिक्षा के प्रकार | Types of Education:- औपचारिक शिक्षा, अनौपचारिकया शिक्षा.
  • शिक्षा का महत्त्व | Importance of Education in Hindi
  • शिक्षा का अर्वाचीन अर्थ | Modern Meaning of Education
  • शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषा Meaning and Definition of Education in Hindi
  • प्राचीनकाल (वैदिक कालीन) या गुरुकुल शिक्षा के उद्देश्य एवं आदर्श in Hindi d.el.ed
  • राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2005 का स्वरूप | Form of National Curriculum 2005
  • वैदिक कालीन शिक्षा की विशेषताएँ | Characteristics of Vedic Period Education 
  • प्लेटो प्रथम साम्यवादी के रूप में (Plato As the First Communist ),
  • प्लेटो की शिक्षा प्रणाली की विशेषताएँ (Features of Plato’s Education System),
  • प्लेटो: साम्यवाद का सिद्धान्त, अर्थ, विशेषताएँ, प्रकार तथा उद्देश्य,
  • प्लेटो: जीवन परिचय | ( History of Plato) in Hindi
  • प्लेटो पर सुकरात का प्रभाव( Influence of Socrates ) in Hindi
  • प्लेटो की अवधारणा (Platonic Conception of Justice)- in Hindi
  • प्लेटो (Plato): महत्त्वपूर्ण रचनाएँ तथा अध्ययन शैली और पद्धति in Hindi
  • प्लेटो: समकालीन परिस्थितियाँ | (Contemporary Situations) in Hindi
  • प्लेटो: आदर्श राज्य की विशेषताएँ (Features of Ideal State) in Hindi
  • प्लेटो: न्याय का सिद्धान्त ( Theory of Justice )
  • प्लेटो के आदर्श राज्य की आलोचना | Criticism of Plato’s ideal state in Hindi
  • प्लेटो के अनुसार शिक्षा का अर्थ, उद्देश्य, पाठ्यक्रम, विधियाँ, तथा क्षेत्र में योगदान
  • प्रत्यक्ष प्रजातंत्र क्या है? प्रत्यक्ष प्रजातंत्र के साधन, गुण व दोष
  • भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं
  • भारतीय संसद के कार्य  (शक्तियाँ अथवा अधिकार)

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us:

शिक्षक की भूमिका क्या है?

क्योंकि उसे ना केवल बच्चों का बौद्धिक, नैतिक, मनोवैज्ञानिक ,शारीरिक विकास करना है अपितु सामाजिक, चारित्रिक, एवं सांवेगिक विकास करना भी आज शिक्षक का ही कर्तव्य है। आदर्श शिक्षक का कार्य बहुत ही महत्वपूर्ण है। एक बात और कि जिस प्रकार शिक्षा एक अंतहीन प्रक्रिया है। उसी प्रकार शिक्षण भी अंतहीन प्रक्रिया है।

एक अच्छे शिक्षक का सबसे महत्वपूर्ण गुण क्या है?

एक अच्छा और प्रभावशाली अध्यापक वह है जो विद्यार्थियों, प्रधानाध्यापक तथा अन्य के सामने किसी भी गलत बात के लिए झुकता नहीं हो। किसी प्रकार का अन्याय सहन करता नहीं हो और किसी भी गलत बात से समझौता नहीं करता है। जो अध्यापक अपने कर्तव्यों और अधिकारों के प्रति सचेत रहता है वही अपने आत्मसम्मान की रक्षा कर पाता है।

शिक्षक का क्या अर्थ होता है?

शिक्षा देने वाले को शिक्षक ( अध्यापक ) कहते हैं। शिक्षिका ( अध्यापिका ) शब्द 'शिक्षक' ( अध्यापक ) का स्त्रीलिंग रूप है। यह एकवचन अथवा बहुवचन दोनों तरह से प्रयुक्त किया जा सकता है। शिष्य के मन में सीखने की इच्छा को जो जागृत कर पाते हैं वे ही शिक्षक कहलाते हैं

बच्चों के विकास में शिक्षक की क्या भूमिका होती है अपने शब्दों में लिखिए?

शिक्षक ही बालकों की योग्यता, क्षमता, रूचि, अभिरूचि आदि के अनुसार शिक्षा प्रदान करता है। वह छात्रों को ज्ञान व क्रिया का अधिगम कराने के लिए उचित वातावरण की तैयारी करता है। ताकि छात्र भविष्य में सफलता प्राप्त कर सके । उसी का कर्तव्य होता है।

संबंधित पोस्ट

Toplist

नवीनतम लेख

टैग