दीपावली के दिन लक्ष्मी जी की पूजा कैसे की जाती है? - deepaavalee ke din lakshmee jee kee pooja kaise kee jaatee hai?

दीपावली के द‍िन लक्ष्‍मी पूजन का ऐसा है व‍िधान

प्रत्‍येक वर्ष कार्तिक कृष्‍ण अमावस्‍या के द‍िन लक्ष्‍मी पूजन करने का व‍िधान है। इस द‍िन भगवान श्रीराम रावण का वध करके लंका व‍िजय प्राप्‍त करके अयोध्‍या लौटे थे। इसी द‍िन भगवान व‍िष्‍णु ने दैत्‍यराज बलि की कैद से लक्ष्‍मी सह‍ित अन्‍य देवताओं की छुड़वाया तो उनका सारा धन-धान्‍य, राजपाठ और वैभवलक्ष्‍मीजी की कृपा से पुन: पर‍िपूर्ण हुआ था। इसल‍िए दीपावली के द‍िन लक्ष्‍मी पूजन क‍िया जाता है। मां लक्ष्‍मी भोग की अध‍िष्‍ठात्री देवी हैं इनकी स‍िद्धी से ही जीवन में भौत‍िक सुख-सुव‍िधाएं प्राप्‍त होती हैं। यहां लक्ष्‍मी का वास होता है। वहां सुख-समृद्धि का वास होता है। तो आइए जानते हैं क्‍या है पूजा का व‍िध‍ि-व‍िधान?

लक्ष्‍मी पूजन व‍िध‍ि-व‍िधान

लक्ष्‍मी पूजन की तैयारी सायंकाल से शुरू की जाती है। एक चौकी पर लक्ष्‍मी और गणेश की मूर्तियां इस प्रकार रखें क‍ि लक्ष्‍मी के दायीं द‍िशा में गणेश रहें और उनका मुख पूर्व द‍िशा की ओर रहे। उनके सामने बैठकर चावलों पर कलश की स्‍थापना करें। वरुण के प्रतीक इस कलश पर एक नार‍ियल लाल वस्‍त्र में लपेटकर इस प्रकार रखें क‍ि केवल अग्रभाग ही द‍िखाई दे। दो बड़े दीपक लेकर एक में घी और दूसरे में तेल भरकर रखें। एक को मूर्तियों के चरणों में और दूसरे को चौकी की दाई तरफ रखें।

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गणेशजी के पास यह जरूर रखें

चौकी पर रखें गणेशजी के सामने एक छोटा सा दीपक रखें। इसके बाद शुभ मुहूर्त के समय जल, मौली, अबीर, चंदन, गुलाल, चावल, धूपबत्‍ती, गुड़, फूल, नैवेद्य आद‍ि लेकर सबसे पहले पव‍ित्रीकरण करें। फ‍िर सारे दीपकों को जलाकर उन्‍हें नमस्‍कार करें। उनपर चावल छोड़ दें। पहले पुरुष और बाद में स्त्रियां गणेशजी, लक्ष्‍मीजी व अन्‍य देवी-देवताओं का व‍िध‍िवत् षोडशोपचार पूजन, श्रीसूक्‍त, लक्ष्‍मी सूक्‍त व पुरुष श्रीसूक्‍त का पाठ करें और आरती उतारें।

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इसका भोग लगाकर बांटे प्रसाद

बही खातों की पूजा करने के बाद नए ल‍िखने की शुरुआत करें। तेल के अनेक दीपक जलाकर घर के हर कमरे में, त‍िजोरी के पास, आंगन और गैलरी आद‍ि जगह पर रखें। ताकि क‍िसी जगह पर अंधेरा न रह जाए। खांड की म‍िठाइयां, पकवान और खीर आद‍ि का भोग लगाकर सबको प्रसाद बांटे।

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माता लक्ष्मीजी के पूजन की सामग्री अपने सामर्थ्य के अनुसार होना चाहिए। इसमें लक्ष्मीजी को कुछ वस्तुएँ विशेष प्रिय हैं। उनका उपयोग करने से वे शीघ्र प्रसन्न होती हैं। इनका उपयोग अवश्य करना चाहिए। वस्त्र में इनका प्रिय वस्त्र लाल-गुलाबी या पीले रंग का रेशमी वस्त्र है।

माताजी को पुष्प में कमल व गुलाब प्रिय है। फल में श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़े प्रिय हैं। सुगंध में केवड़ा, गुलाब, चंदन के इत्र का प्रयोग इनकी पूजा में अवश्य करें। अनाज में चावल तथा मिठाई में घर में बनी शुद्धता पूर्ण केसर की मिठाई या हलवा, शिरा का नैवेद्य उपयुक्त है।

प्रकाश के लिए गाय का घी, मूंगफली या तिल्ली का तेल इनको शीघ्र प्रसन्न करता है। अन्य सामग्री में गन्ना, कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, बिल्वपत्र, पंचामृत, गंगाजल, ऊन का आसन, रत्न आभूषण, गाय का गोबर, सिंदूर, भोजपत्र का पूजन में उपयोग करना चाहिए।

तैयारी

चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियां इस प्रकार रखें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहे। लक्ष्मीजी, गणेशजी की दाहिनी ओर रहें। पूजनकर्ता मूर्तियों के सामने की तरफ बैठें। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक है।

दो बड़े दीपक रखें। एक में घी भरें व दूसरे में तेल। एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें व दूसरा मूर्तियों के चरणों में। इसके अतिरिक्त एक दीपक गणेशजी के पास रखें।

मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं। कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से लाल वस्त्र पर नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियां बनाएं। गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियां बनाएं। ये सोलह मातृका की प्रतीक हैं। नवग्रह व षोडश मातृका के बीच स्वस्तिक का चिह्न बनाएं।

इसके बीच में सुपारी रखें व चारों कोनों पर चावल की ढेरी। सबसे ऊपर बीचोंबीच ॐ लिखें। छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश रखें। थालियों की निम्नानुसार व्यवस्था करें- 1. ग्यारह दीपक, 2. खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप, सिन्दूर, कुंकुम, सुपारी, पान, 3. फूल, दुर्वा, चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी-चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक।

इन थालियों के सामने यजमान बैठे। आपके परिवार के सदस्य आपकी बाईं ओर बैठें। कोई आगंतुक हो तो वह आपके या आपके परिवार के सदस्यों के पीछे बैठे।

चौकी

(1) लक्ष्मी, (2) गणेश, (3-4) मिट्टी के दो बड़े दीपक, (5) कलश, जिस पर नारियल रखें, वरुण (6) नवग्रह, (7) षोडशमातृकाएं, (8) कोई प्रतीक, (9) बहीखाता, (10) कलम और दवात, (11) नकदी की संदूकची, (12) थालियां, 1, 2, 3, (13) जल का पात्र, (14) यजमान, (15) पुजारी, (16) परिवार के सदस्य, (17) आगंतुक।

पूजा की संक्षिप्त विधि

सबसे पहले पवित्रीकरण करें।

आप हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा सा जल ले लें और अब उसे मूर्तियों के ऊपर छिड़कें। साथ में मंत्र पढ़ें। इस मंत्र और पानी को छिड़ककर आप अपने आपको पूजा की सामग्री को और अपने आसन को भी पवित्र कर लें।

ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।

यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥

पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः

कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥

अब पृथ्वी पर जिस जगह आपने आसन बिछाया है, उस जगह को पवित्र कर लें और मां पृथ्वी को प्रणाम करके मंत्र बोलें-

ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।

त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्‌॥

पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः

अब आचमन करें

पुष्प, चम्मच या अंजुलि से एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-

ॐ केशवाय नमः

और फिर एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-

ॐ नारायणाय नमः

फिर एक तीसरी बूंद पानी की मुंह में छोड़िए और बोलिए-

ॐ वासुदेवाय नमः

फिर ॐ हृषिकेशाय नमः कहते हुए हाथों को खोलें और अंगूठे के मूल से होंठों को पोंछकर हाथों को धो लें। पुनः तिलक लगाने के बाद प्राणायाम व अंग न्यास आदि करें। आचमन करने से विद्या तत्व, आत्म तत्व और बुद्धि तत्व का शोधन हो जाता है तथा तिलक व अंग न्यास से मनुष्य पूजा के लिए पवित्र हो जाता है।

आचमन आदि के बाद आंखें बंद करके मन को स्थिर कीजिए और तीन बार गहरी सांस लीजिए। यानी प्राणायाम कीजिए क्योंकि भगवान के साकार रूप का ध्यान करने के लिए यह आवश्यक है फिर पूजा के प्रारंभ में स्वस्तिवाचन किया जाता है। उसके लिए हाथ में पुष्प, अक्षत और थोड़ा जल लेकर स्वतिनः इंद्र वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुए परम पिता परमात्मा को प्रणाम किया जाता है। फिर पूजा का संकल्प किया जाता है। संकल्प हर एक पूजा में प्रधान होता है।

संकल्प - आप हाथ में अक्षत लें, पुष्प और जल ले लीजिए। कुछ द्रव्य भी ले लीजिए। द्रव्य का अर्थ है कुछ धन। ये सब हाथ में लेकर संकल्प मंत्र को बोलते हुए संकल्प कीजिए कि मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान व समय पर अमुक देवी-देवता की पूजा करने जा रहा हूं जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हों। सबसे पहले गणेशजी व गौरी का पूजन कीजिए। उसके बाद वरुण पूजा यानी कलश पूजन करनी चाहिए।

हाथ में थोड़ा सा जल ले लीजिए और आह्वान व पूजन मंत्र बोलिए और पूजा सामग्री चढ़ाइए। फिर नवग्रहों का पूजन कीजिए। हाथ में अक्षत और पुष्प ले लीजिए और नवग्रह स्तोत्र बोलिए। इसके बाद भगवती षोडश मातृकाओं का पूजन किया जाता है। हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प ले लीजिए। सोलह माताओं को नमस्कार कर लीजिए और पूजा सामग्री चढ़ा दीजिए।

सोलह माताओं की पूजा के बाद रक्षाबंधन होता है। रक्षाबंधन विधि में मौली लेकर भगवान गणपति पर चढ़ाइए और फिर अपने हाथ में बंधवा लीजिए और तिलक लगा लीजिए। अब आनंदचित्त से निर्भय होकर महालक्ष्मी की पूजा प्रारंभ कीजिए।

दीपावली के दिन महालक्ष्मी की पूजा कैसे करें?

पूजा स्थल पर एक चौकी रखें और लाल कपड़ा बिछाकर उस पर लक्ष्मी जी और गणेश जी की मूर्ति रखें या दीवार पर लक्ष्मी जी का चित्र लगाएं। चौकी के पास जल से भरा एक कलश रखें। माता लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्ति पर तिलक लगाएं और दीपक जलाकर जल, मौली, चावल, फल, गुड़, हल्दी, अबीर-गुलाल आदि अर्पित करें और माता महालक्ष्मी की स्तुति करें

लक्ष्मी जी की पूजा में क्या क्या लगता है?

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दीपावली में कलश स्थापना कैसे करें?

बुधवार, 7 नवंबर दिवाली है।.
लक्ष्मीजी, गणेशजी के दाहिनी ओर स्थापित करें। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावल पर रखें।.
नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटे कि नारियल का आगे का भाग दिखाई दे और इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुणदेव का प्रतीक है।.
कलश स्थापित करने के बाद दो बड़े दीपक रखें।.

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