किसी राज्य की भौगोलिक संरचना के आधार पर शुद्ध बोये जाने वाले क्षेत्र का प्रारूप एक राज्य से दूसरे राज्य में बदल जाता है। पंजाब की भूमि समतल होने के कारण यहाँ 80% क्षेत्र शुद्ध बोये जाने वाले क्षेत्र के अंतर्गत आता है। लेकिन अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मणिपुर और अंदमान निकोबार द्वीप समूह की भूमि समतल नहीं होने के कारण इन क्षेत्रों में 10% क्षेत्र ही शुद्ध बोये जाने वाले क्षेत्र के अंतर्गत आता है।
राष्ट्रीय वन नीति (1952) का कहना है कि पारिस्थितिकी में संतुलन बनाए रखने के लिए कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 33% हिस्सा वन के रूप में होना चाहिए। लेकिन भारत में वन का क्षेत्र इससे कम है। गैर कानूनी ढ़ंग से जंगल की कटाई और निर्माण कार्य में तेजी आने से ऐसा हो रहा है। जंगल के आसपास एक बड़ी आबादी रहती है जो वन संपदा पर निर्भर करती है।
भूमि प्रबंधन और संरक्षण के समुचित उपायों के बगैर ही हम भूमि का लगातार और लंबे समय से उपयोग कर रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप भूमि का निम्नीकरण हो रहा है, कृषि पैदावार में कमी आई है। इससका समाज और पर्यावरण दोनों पर बुरा असर हो रहा है।
हमारे पूर्वजों द्वारा जमीन का दोहन नहीं हुआ था, इसलिए हमें विरासत में अच्छी स्थिति में जमीन मिली थी। अब यह हमारी जिम्मेदारी बनती है कि आने वाली पीढ़ियों के लिए अच्छी स्थिति में जमीन रहने दें। हाल के दशकों में जनसंख्या तेजी से बढ़ने के कारण भू संसाधन का दोहन तेजी से बढ़ा है। इससे भूमि का निम्नीकरण तेज हो गया है। मानव गतिविधियों के दुष्परिणामों से प्राकृतिक शक्तियाँ और भयानक हो गई हैं जिससे भू संसाधन का निम्नीकरण हो रहा है।
ताजा आँकड़ों के अनुसार भारत में लगभग 13 करोड़ हेक्टेअर भूमि निम्नीकृत है। इसमें से लगभग 28% वनों के अंतर्गत आता है और 28% जल अपरदित क्षेत्र में आता है। निम्नीकृत भूमि का बाकी 44% हिस्सा लवणीय और क्षारीय हो चुका है। भू निम्नीकरण के कुछ मुख्य कारण हैं, वनोन्मूलन, अति पशुचारण, खनन, जमीन का छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजन, आदि।
झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और मध्य प्रदेश जैसे राज्य खनिज संपदा में धनी हैं। लेकिन इन राज्यों में खनन कार्य समाप्त हो जाने के बाद खानों को वैसे ही छोड़ दिया जाता है। वहाँ पर या तो मलबे के ढ़ेर होते हैं या गहरी खाइयाँ बन जाती हैं। उसके बाद ऐसी जमीन किसी काम की नहीं रह जाती है। इन राज्यों में खनन के अलावा वनोन्मूलन के कारण भी भूमि का निम्नीकरण तेजी से हुआ है।
उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा जैसे कृषि के मामले में अग्रणी हैं। इन राज्यों में अत्यधिक सिंचाई के कारण पानी की कमी हो रही और जलजमाव के कारण भूमि का अम्लीकरण या क्षारीकरण हो रहा है।
बिहार, असम और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में बाढ़ की वजह से भूमि का निम्नीकरण हो रहा है। मानव गतिविधियों के दुष्परिणामों के कारण बाढ़ अब पहले से अधिक भयानक होने लगी है।
कुछ राज्यों में खनिजों का परिष्करण होता है, जैसे चूना पत्थर तोड़ना, सीमेंट उत्पादन, आदि। इन क्षेत्रों में भारी मात्रा में धूल का निर्माण होता है। धूल के कारण मिट्टी द्वारा जल सोखने की प्रक्रिया में बाधा पड़ती है जिससे भूमि का निम्नीकरण हो रहा है।
भू निम्नीकरण से कई समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं; जैसे बाढ़, घटती उपज, आदि। इसके परिणामस्वरूप घरेलू सकल उत्पाद घट जाता है और देश को कई आर्थिक समस्याओं से जूझना पड़ता है।
भू संसाधनों के संरक्षण के उपाय:
भू निम्नीकरण को निम्न तरीकों से रोका जा सकता है:
- वनारोपण
- चारागाहों का समुचित प्रबंधन
- काँटेदार झाड़ियाँ लगाकर रेतीले टीलों स्थिर बनाना
- बंजर भूमि का उचित प्रबंधन
- सिंचाई का समुचित प्रबंधन
- फसलों की सही तरीके से कटाई
- खनन प्रक्रिया पर नियंत्रण
- खनन के बाद भूमि का समुचित प्रबंधन
- औद्योगिक जल के परिष्करण के बाद जल का विसर्जन
- सड़कों के किनारों पर वृक्षारोपण
- वनोन्मूलन की रोकथाम