ह्रासमान सीमांत उपयोगिता का नियम क्या है उदाहरण सहित? - hraasamaan seemaant upayogita ka niyam kya hai udaaharan sahit?

प्रश्न: सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम की व्याख्या कीजिए।

सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम की व्याख्या (Law of Diminishing Marginal Utility in Hindi): एक ही वस्तु की उपयोगिता विभिन्न व्यक्तियों के लिए विभिन्न हो सकती है और एक ही व्यक्ति के लिए अलग-अलग समय में विभिन्न हो सकती है। लेकिन एक ही व्यक्ति के लिए एक ही समय पर एक ही वस्तु की विभिन्न इकाइयों से मिलने वाली उपयोगिता भी समान नहीं होती। जब आप पहला संतरा खरीदते हैं तो आपको कुछ उपयोगिता प्राप्त होती है। यदि आप एक और संतरा खरीदते हैं तो इस दूसरे संतरे से आपको पहले संतरे की तुलना में कम उपयोगिता प्राप्त होगी।

इस प्रकार जैसे-जैसे कोई उपभोक्ता किसी वस्तु की अधिकाधिक इकाइयाँ खरीदता है, वैसे-वैसे प्रत्येक अगली इकाई से मिलने वाली उपयोगिता (सीमांत उपयोगिता) घटती जाती है। इस प्रवृत्ति को अर्थशास्त्र में सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम (Law of Diminishing Marginal Utility) कहते हैं।

सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम की व्याख्या (Law of Diminishing Marginal Utility in Hindi): सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम यह बताता है कि जैसे-जैसे हम किसी वस्तु की अधिक इकाइयों का उपयोग करते हैं वैसे-वैसे उत्तरोत्तर इकाइयों से प्राप्त सीमांत उपयोगिता क्रमशः घटती जाती है। यद्यपि हर अगली इकाई से मिलने वाली उपयोगिता (अर्थात् सीमांत उपयोगिता) घटती है, लेकिन कुल उपयोगिता बढ़ती जाएगी परंतु कुल उपयोगिता में वृद्धि की दर घटती जाएगी।

इसे एक उदाहरण के द्वारा समझ सकते हैं। मान लीजिए आप 6 संतरे खरीदते हैं। जैसे-जैसे आप संतरों का प्रवेग करते हैं वैसे-वैसे संतरों की उत्तरोत्तर इकाईयों से आपको प्राप्त सीमांत उपयोगिता घटती जाती है। जैसा कि तालिका 4.6 में दिखाया गया है। सीमांत उपयोगिता (Marginal Utility) एक अतिरिक्त इकाई में मिलने वाली उपयोगिता को सीमांत उपयोगिता कहते हैं। पहला संतरा सीमांत संतरा है और इससे मिलने वाली उपयोगिता सीमांत उपयोगिता है। दूसरा संतरा सीमांत संतरा है और इससे मिलने वाली उपयोगिता सीमांत उपयोगिता है सीमांत स्थिर नहीं है बल्कि बदलती है।

क्योंकि सारी इकाइयों समरूप है इसलिए प्रत्येक इकाई सीमांत इकाई है और उससे मिलने वाली उपयोगिता सीमांत उपयोगिता होगी। तालिका 4.6 से स्पष्ट है कि उपभोक्ता को प्रत्येक अतिरिक्त संतरे से मिलने वाली सीमांत उपयोगिता घट रही है। सीमांत उपयोगिता घटकर शून्य भी हो सकती है और ऋणात्मक भी। जब प्रत्याशित संतुष्ट धनात्मक की बजाय ऋणात्मक होती है तो इसे ऋणात्मक उपयोगिता कहते हैं।

कुल उपयोगिता (Total Utility in Hindi):

किसी वस्तु की विभिन्न इकाइयों के उपभोग से जो उपयोगिता प्राप्त होती है उसके योग को कुल उपयोगिता (Total Utility in Hindi) कहते हैं। सीमांत उपयोगिता का योग ही कुल उपयोगिता होती है।

कुल उपयोगिता (Total Utility)

जब आप प्रथम संतरे का प्रयोग करते हैं तो प्रथम संतरे से प्राप्त उपयोगिता सीमांत उपयोगिता तथा कुल उपयोगिता होगी। जब दूसरे संतरे का उपयोग करते हैं तो दूसरे से प्राप्त उपयोगिता (5) सीमांत उपयोगिता कहलायेगी तथा प्रथम और दूसरे संतरों की सीमांत उपयोगिता का योग कुल उपयोगिता (4+3=7) होगी।

इसी प्रकार तीसरे संतरे से प्राप्त उपयोगिता (2) सीमांत उपयोगिता तथा प्रथम, दूसरे तथा तीसरे संतरों से प्राप्त उपयोगिता का योग (4+3+2=9) कुल उपयोगिता कहलायेगी। ऊपर दी गई तालिका के दूसरे और तीसरे कालम को ध्यान से देखें तो आपको यह स्पष्ट हो जाएगा कि कुल उपयोगिता चौथे संतरे तक बढ़ रही है। यद्यपि सीमांत उपयोगिता कम हो रही है। छठे संतरे से क्योंकि नकारात्मक (Negative) सीमांत उपयोगिता मिलती है इसलिए कुल उपयोगिता (Total Utility) कम हो जाती है।

अतः हम कह सकते हैं चूंकि कुल उपयोगिता सीमांत उपयोगिता का योग होती है इसलिए जब तक सीमांत उपयोगिता धनात्मक (Positive) होगी, कुल उपयोगिता बढ़ेगी और जब सीमांत उपयोगिता शून्य होगी तो कुल उपयोगिता स्थिर रहेगी और अधिकतम होगी और जब सीमांत उपयोगिता नकारात्मक (Negative) होगी, तो कुल उपयोगिता घटने लगेगी।

सीमांत उपयोगिता तथा कुल उपयोगिता के संबंध में हम निम्न चित्र द्वारा समझा सकते हैं-

चित्र में X अक्ष पर संतरों की मात्रा तथा Y अक्ष पर उपयोगिता (सीमांत तथा कुल उपयोगिता) दिखाते हैं। जैसे-जैसे संतरों की मात्रा बढ़ती जाती है सीमांत उपयोगिता घटती जाती है। चित्र में सीमांत उपयोगिता वक्र का ढलान ऋणात्मक है जिसका अर्थ है कि प्रत्येक अतिरिक्त संतरे से मिलने वाली उपयोगिता घटती जाती है। उपभोक्ता को पाँचवें संतरे से शून्य उपयोगिता प्राप्त होने की आशा है और छठे संतरे से ऋणात्मक उपयोगिता प्राप्त होने की आशा है।

सीमांत उपयोगिता वक्र बाएँ से दाएँ नीचे की ओर आती हुई है और X-अक्ष को काटती है।
दूसरी ओर कुल उपयोगिता वक्र ऊपर की ओर जाती है जिससे यह पता चलता है कि अतिरिक्त इकाइयों का उपयोग करने से कुल उपयोगिता L बिंदु तक बढ़ती है। लेकिन कुल उपयोगिता में होने वाली वृद्धि स्थिर नहीं है बल्कि घटती जाती है। कुल उपयोगिता वक्र एक अधिकतम बिंदु L पर पहुँचकर घटने लगती है।

सीमांत उपयोगिता और कुल उपयोगिता के संबंध को निम्नलिखित रूप में लिखा जा सकता है:

  • जब सीमांत उपयोगिता घटती है तथा धनात्मक होती है तो घटती हुई दर पर कुल उपयोगिता बढ़ती है। 
  • जब सीमांत उपयोगिता शून्य होती है तो कुल उपयोगिता अधिकतम होती है।
  • जब सीमांत उपयोगिता ऋणात्मक होती है तो कुल उपयोगिता अधिकतम स्तर से घटने लगती है।

सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम की मान्यताएँ (Assumptions of Law of Diminishing Marginal Utility in Hindi):

सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम निम्न मान्यताओं पर आधारित है:

  1. वस्तु की विभिन्न इकाइयों समरूप (Homogenous) अर्थात् उनके आकार, किस्म व स्वाद आदि में कोई अंतर नहीं है
  2. वस्तु की इकाइयों के उपभोग के बीच समय अंतराल नहीं है अर्थात् विभिन्न इकाइयों का उपभोग लगातार किया जाता है।
  3. वस्तु की विभिन्न इकाइयों के उपभोग के दौरान उपभोक्ता की मानसिक स्थिति, रुचि, फैशन आदि में परिवर्तन नहीं होता है।

सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम के अपवाद (Exceptions to the Law of Diminishing Marginal Utility in Hindi):

सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम एक मूलभूत नियम है जो कि सब व्यक्तियों व सब वस्तुओं पर लागू होता है। वास्तव में इसका कोई अपवाद नहीं है। फिर भी इस नियम के कुछ अपवादों की चर्चा की जाती जो निम्न है:

(i) मुद्रा का संचय: यह कहा जाता है कि यह नियम मुद्रा पर लागू नहीं होगा। इस धारणा का आधार यह बताया जाता है कि किसी व्यक्ति के पास जितनी अधिक मुद्रा होगी उतनी ही तीव्र उसकी और अधिक मुद्रा प्राप्त करने की इच्छा होगी। इस अपवाद को साबित करने के लिए एक कंजूस का उदाहरण दिया जाता है जिसकी मुद्रा संचव की इच्छा असीमित होती है। लेकिन यह कहना गलत है कि प्रथम रुपये और सौवें रुपये की सीमांत उपयोगिता समान है।

यदि एक व्यक्ति के पास सिर्फ एक ही रुपया है तो वह उसे काफी सोच समझकर व्यय करेगा। लेकिन यदि उसके पास 100 रुपये हैं तो उसमें से एक रुपया व्यय करते समय उतना सोच-विचार नहीं करेगा। इसका तात्पर्य है कि साँव रुपये की सीमांत उपयोगिता पहले रुपये की सीमांत उपयोगिता से कम होती है। कंजूस को भी भोजन आदि पर व्यय करना पड़ता है।

अतः भोजन आदि की उपयोगिता मुद्रा की उपयोगिता से अधिक है। लेकिन वस्तु की तुलना में मुद्रा की सीमांत उपयोगिता में एक अंतर है। साधारणतया मुद्रा की उपयोगिता बहुत धीरे-धीरे घटती है तथा शून्य या ऋणात्मक नहीं हो सकती क्योंकि एक व्यक्ति के पास चाहे जितनी मुद्रा की मात्रा हो, वह मुद्रा की अंतिम इकाई से कुछ-न-कुछ अवश्य खरीद सकता है।

(ii) नशीली वस्तुओं का उपभोग: यह कहा जाता है कि शराब आदि पर भी यह नियम लागू नहीं होता। कोई व्यक्ति जितनी शराब पीता है, उतना ही वह अधिक शराब पीना चाहता है। अतः शराब की सीमांत उपयोगिता घटने के स्थान पर बढ़ती है। यह विचार भी गलत है। शराबी के लिए भी एक स्थिति के पश्चात शराब की सीमांत उपयोगिता पटेगी और अंत में ऋणात्मक हो जाएगी। यदि ऐसा नहीं होता तो शराबी अधिक उपयोगिता प्राप्त करने के लिए शराब पीता ही जाता है। लेकिन एक स्थिति पर वह भी पीना बंद कर देता है।

(iii) दुर्लभ वस्तुओं का संग्रह: तीसरा अपवाद डाक टिकट, सिक्के, चित्र एकत्रित करना आदि के संबंध में बताया जाता है। जितने अधिक डाक टिकट कोई इकट्ठे करता है उतनी ही उसकी और टिकट इकट्ठे करने की इच्छा होती है। लोग दुर्लभ टिकट या तस्वीर आदि के लिए काफी मात्रा में पैसा खर्च करने को तैयार होते हैं अतः यह कहा जा सकता है कि यह नियम ऐसी वस्तुओं के शौक (Hobbies) पर लागू नहीं होता।

यह धारणा भी गलत है। डाक टिकट इकट्ठे करने वाला उसी प्रकार की टिकट के लिए जो कि पहले से ही उसके पास है, पैसे नहीं खर्चना चाहेगा। लेकिन नई किस्म या दुर्लभ टिकट के लिए वह बड़ी रकम भी खर्चने को तैयार होगा जब एक ही प्रकार की टिकटों की संख्या बढ़ती है तो उसकी सीमांत उपयोगिता घटेगी। अतः यह नियम हाबी पर भी लागू होता है। वास्तव में इस नियम का कोई अपवाद नहीं है। अन्य बातें समान रहने पर यह नियम अंततः लागू होता है।

उम्मीद है आपको सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम (Law of Diminishing Marginal Utility in Hindi) के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी। Economics Notes in Hindi, Daily Current AffairsLatest Government Recruitments एवं Economic World की खबरों के लिए The Economist Hindi के साथ जुड़े रहें। हमारा टेलीग्राम चैनल ज्वॉइन करें और फेसबुकट्विटर और इंस्टाग्राम पर फॉलो जरूर करें।

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