संकटग्रस्त प्रजातियों को विलुप्त होने से बचाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर क्या प्रयास किए जा सकते हैं - sankatagrast prajaatiyon ko vilupt hone se bachaane ke lie raashtreey star par kya prayaas kie ja sakate hain

Updated: | Wed, 25 Sep 2019 10:08 PM (IST)

यह समझने की जरूरत है कि हमारे आसपास रहने वाले वन्यजीवों के साथ हमारा जीवन जुड़ा हुआ है। बहुत छोटे से जीव का भी हमारे जीवन पर गहरा असर पड़ता है। इसलिए जब हम लुप्त हो रहे गैंडों, व्हेल मछली या कुछ खास तरह की लोमड़ियों को बचाने की बात करते हैं तो हम जीवन को संपूर्णता में बनाएरखने की बात करते हैं। सरकार अपनी तरफ से प्रयास करती है लेकिन वे नाकाफी हैं। आम आदमी को भी अपने स्तर पर प्रयास करने होंगे। नागरिक इस तरह अपना दायित्व जीवों को बचाने में निभा सकते हैं।

1- संकटग्रस्त जीवों के बारे में जानकारी बढ़ाना

परिवार के सदस्यों को उन जीवों के बारे में बताएं जिनका जीवन संकट में है। अपने दोस्तों और परिजनों से आसपास के परिवेश के वन्यजीवों को लेकर बात करें। उन्हें बचाने के लिए किए जाने वाले प्रयासों की बात करें। बगीचे में नजर आने वाले कीटों की ही नहीं बल्कि उन चमगादड़ों की बात भी करें जो परागण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और मच्छरों का सफाया करते हैं। घर-परिवार में जो आदतें होती हैं उनका भी इन जीवों से गहरा संबंध होता है।

2- टिकाऊ चीजें खरीदें

जब भी लोग नई-नई चीजों का तेजी से उपयोग करते हैं तो उसके लिए कच्चा माल प्रकृति से ही आता है। वर्षा वनों से आने वाली लक़डी का फर्नीचर लेना लोग पसंद करते हैं लेकिन यह भूल जाते हैं कि यह किस कीमत पर उन्हें हासिल होता है। बहुत जल्दी-जल्दी सेलफोन बदलना भी प्रकृति को नुकसान पहुंचाता है क्योंकि उसमें जो मिनरलउपयोग होता है वह गोरिल्ला के निवास स्थान से आता है। जितने ज्यादा संसाधनों का मनुष्य उपयोग करता है उतना ही प्रकृति और जीवों के आवास पर दबाव पड़ता है।

3- स्थानीय पौधे लगाइए-

यह बहुत सीधी-सी बात है कि स्थानीय जीवों की प्रजातियां स्थानीय पौधों पर ही निर्भर होती हैं। जब आप स्थानीय पौधों को लगाते हैं तो उस पर आश्रित जीवों को भी रहने के लिए घर मिलता है। तितलियों की भूमिका हमारे पर्यावरण में बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे परागण की अहम जिम्मेदारी निभाती हैं। जब विदेशी किस्मों को आप अपने क्षेत्र में लगाते हैं तो वे एक तरह से स्थानीय प्रजातियों की जगह लेने का काम करती हैं और विविधता खत्म होने लगती है। जैव-विविधता बचाने के लिए अपने स्थानीय पेड़ों और जीवों की प्रजातियों की जानकारी होना चाहिए।

4- जल का उपयोग कम करें

जिन इलाकों में पानी का संकट होता है वहां लोग पानी को बहुत संभालकर खर्च करते हैं। मगर जहां पानी प्रचुरता में उपलब्ध है वहां इसके उपयोग को लेकर लोग बहुत कम सतर्क होते हैं। धरती के शुद्ध जल पर सिर्फ मनुष्यों का ही कब्जा नहीं है बल्कि इस पर पशु और अन्य जीवों का पूरा अधिकार है।जरूरी है कि मनुष्य जल का बहुत सोच-समझकर उपयोग करे। नालियों में रसायन या दवाइयों को बहाना भी बंद करना चाहिए क्योंकि इससे अंततः जलस्रोत ही दूषित होते हैं।

5- कार्बन फुटप्रिंट के बारे में सोचें

गाड़ी कम चलाइए और पैदल ज्यादा चलिए। सार्वजनिक यातायात का उपयोग कीजिए क्योंकि उससे ईंधन की खपत कम होती है और आप संसाधनों को बचाने में अपना योगदान देते हैं। ऐसी चीजों का उपयोग करना चाहिए जिसका अपघटन आसानी से हो जाए। जितनी कम बिजली या ईंधन की खपत आप करेंगे उतना ही आप प्रकृति को बचाने में अपना योगदान देंगे।

6- प्लास्टिक के अति-उपयोग से बचें

अगर आप किसी कचराघर का मुआयना करें तो पाएंगे कि उसमें सबसे ज्यादा कचरा प्लास्टिक की वस्तुओं का ही है। बहुत सारी चीजें ऐसी भी होती हैं जिनका पुनर्उपयोग किया जा सकता है और हम उन्हें कचरे के हवाले कर देते हैं। हल्के प्लास्टिक की चीजों से बचें क्योंकि वे जल्दी अनुपयोगी हो जाती हैं। प्लास्टिक के रैपर और बोतलों के कारण इस समय समुद्री जीवों पर बहुत संकट है।

7- जीवों को बचाने का संदेश दीजिए

अपने इलाके में पाए जाने वाले जीवों कोबचाने के लिए जागरूकता फैलाइए। बीते दिनों गौरैया को बचाने के लिए देश के कई शहरों में अभियान चलाए गए। अगर आपके आसपास कोई खास तरह का जीव पाया जाता है और वह लुप्त हो रहा है तो उसे बचाने के प्रयास कीजिए। उसकी जान सिर्फ आपके लिए ही नहीं बल्कि पूरी धरती के लिए जरूरी है।

8- जिम्मेदारों को याद दिलाएं

जैव-विविधता की रक्षा करना आम आदमी के साथ उन लोगों की जिम्मेदारी भी है जो अहम पदों पर बैठे हैं। अगर आपके आसपास कोई उद्यान या खुली जगह है जहां पक्षी आते-जाते हैं तो उसे बचाने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों और राजनेताओं पर दबाव बनाने की कोशिश की जाना चाहिए। तालाबों या नदियों की जमीन पर निर्माण रोकने के लिए पहल करना ही चाहिए। कैचमेंट एरिया में अतिक्रमण न हो इसके लिए भी जागरूकता जरूरी है।

9- जैविक उत्पादों को बढ़ावा दें

उन उत्पादों को बढ़ावा देना चाहिए जिन्हें उगाने में किसी भी तरह के रसायनों या कीटनाशक का उपयोग नहीं किया जाता है। रसायनों और कीटनाशकों के उपयोग के कारण जल और मिट्टी बहुत तेजी से प्रदूषित होती जा रही है और इससे पक्षियों और अन्य जीवों के जीवन पर भीसंकट खड़ा हुआ है। ऐसे में रसायनों का कम उपयोग हो उसके लिए कदम उठाना चाहिए।

10- प्रकृति विरोधी कंपनियों का बहिष्कार

वे कंपनियां जो प्रकृति को भारी नुकसान पहुंचाती हैं उनके उत्पादों का बहिष्कार करना भी एक जागरूक नागरिक की जिम्मेदारी है। जब आप किसी कंपनी को यह जताते हैं तो धीरे-धीरे यह मुहिम में बदलकर कंपनी को अपनी नीतियों में बदलाव के लिए बाध्य भी करता है।

Posted By: Navodit Saktawat

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प्रजातियों के विलुप्त होने का क्या कारण है?

लुप्तप्राय प्रजातियां, ऐसे जीवों की आबादी है, जिनके लुप्त होने का जोखिम है, क्योंकि वे या तो संख्या में कम है, या बदलते पर्यावरण या परभक्षण मानकों द्वारा संकट में हैं। साथ ही, यह वनों की कटाई के कारण भोजन और/या पानी की कमी को भी द्योतित कर सकता है।

संकटग्रस्त प्रजातियों से आप क्या समझते हैं?

Solution : संकटग्रस्त जातियाँ-वे जातियाँ हैं, जिनके संरक्षण के उपाय नहीं किये गये तो वे निकट भविष्य में समाप्त हो जायेंगी। जैसे-गैण्डा, गोडावन आदि।

भारत में विलुप्त होने वाले किसी एक वन्य प्राणी के बारे में और उसे बचाने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं?

इसके तहत 2020 के बाद जैव विविधता को बचाने के लिए इसके द्वारा अपनाई जाने वाली रणनीति को एक प्रमुख लक्ष्य के रूप में प्रस्तावित किया गया है। 2010 में, सीबीडी ने प्रकृति के लिए एक रणनीतिक योजना बनाई थी, जिसमें वर्ष 2020 तक 20 समयबद्ध, मापने योग्य लक्ष्य रखे गए थे, जिसे एची जैव विविधता लक्ष्य कहते है।

भारत में कौन से पक्षी की प्रजाति समाप्त होने के कगार पर है?

अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) ने 2013 के लिए भारत में देखी जाने वाली पक्षियों की दस प्रजातियों को गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजातियों की सूची में शामिल किया है। इनमें ग्रेट साइबेरियन क्रेन, गोडावण (Indian Bustard), सफेद पीठ वाला गिद्ध, लाल– सिर वाला गिद्ध, जंगली उल्लू और सफेद पेट वाला बगुला आदि शामिल हैं।

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