संज्ञानात्मक विकास और सीखना क्या है जीन पियाजे के सिद्धांत के विशेष संदर्भ में इसकी व्याख्या करें? - sangyaanaatmak vikaas aur seekhana kya hai jeen piyaaje ke siddhaant ke vishesh sandarbh mein isakee vyaakhya karen?

संज्ञानात्मक विकास और सीखना क्या है जीन पियाजे के सिद्धांत के विशेष संदर्भ में इसकी व्याख्या करें? - sangyaanaatmak vikaas aur seekhana kya hai jeen piyaaje ke siddhaant ke vishesh sandarbh mein isakee vyaakhya karen?

                                        जीन पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत दिया।

संज्ञान विचार, अनुभव और ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने और चीज़ों को समझने की मानसिक प्रक्रिया है। इसके माध्यम से हमारे मन में विचार पैदा होते हैं और किसी चीज़ के बारे में पूर्वानुमान भी लगा पाते हैं। मनोविज्ञान में संज्ञान की अवधारणा काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सीखने को लेकर हमारी समझ को व्यापक व बहुआयामी बनाती है।

संज्ञान का अध्ययन हमें अर्थपूर्ण ढंग से सीखने की प्रक्रिया को समझने में मदद करता है। अगर हम इस बात को समझते हैं तो रट्टा मारने और अर्थ ग्रहण करते हुए समझने के बीच में फर्क कर पाते हैं। उदाहरण के तौर पर जब कोई सूचना हमारी दीर्घकालीन स्मृति में पहले से मौजूद होती है और उसको हम नवीन सूचना या संवेदी इनपुट से जोड़ पाते हैं तो यह एक तरह का सार्थक संबंध निर्मित करता है जो किसी सूचना को समझ के साथ ग्रहण करने में मदद करता है।

संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत में संज्ञान का काफी विस्तृत अध्ययन किया जाता है। संज्ञानात्मक शब्द का अंग्रेजी रूपांतरण है कॉगनेटिव। हमारी ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से हम वाह्य जगत तो जानने समझने की जो कोशिश करते हैं उसे ही संज्ञान कहते हैं। संज्ञान का अर्थ है जानना। इसको विशेष महत्व देने वाले मनोवैज्ञानिकों ने संज्ञानावादी समूह का निर्माण किया।

इसके अनुसार व्यक्ति अपने वातावरण एवं परिवेश के साथ मानसिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए सीखता है। इसके संस्थापक स्विटजरलैंड के मनोवैज्ञानिक जीन पियाजे माने जाते हैं। उन्होंने संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत का प्रतिपादन मनोविज्ञान में किया। इसके अनुसार सीखना उस समय ज्यादा अर्थपूर्ण होता है जब वह विद्यार्थी की रुचि और जिज्ञासा के अनुरूप हो।

संज्ञात्मक विकास क्या है

जीन पियाजे का मानना है कि संज्ञानात्मक विकास अनुकरण की बजाय खोज पर आधारित है। इसमें व्यक्ति अपनी ज्ञानेंद्रियों के प्रत्यक्ष अनुभव के आधार पर अपनी समझ का निर्माण करता है। उदाहरण के तौर पर कोई छोटा बच्चा जब जलते हुए दीपक को जिज्ञासावश छूता है तो उसे जलने के बाद अहसास होता है कि यह तो डरावनी चीज़ है, इससे दूर रहना चाहिए। उसके पास अपने अनुभव को व्यक्त करने के लिए पर्याप्त शब्द नहीं होते पर वह जान लेता है कि इसको दूर से देखना ही ठीक है। वह बाकी लोगों की तरफ इशारा करता है अपने डर को अभिव्यक्ति देने वाले इशारों में।

संज्ञानात्मक विकास और सीखना क्या है जीन पियाजे के सिद्धांत के विशेष संदर्भ में इसकी व्याख्या करें? - sangyaanaatmak vikaas aur seekhana kya hai jeen piyaaje ke siddhaant ke vishesh sandarbh mein isakee vyaakhya karen?

                                              मिट्टी के खिलौने बनाते बच्चे।

इस प्रकार का सीखना सक्रिय रूप से सीखना होता है। इसके व्यक्ति अपने परिवेश और वातावरण के साथ सक्रिय रूप से अंतर्क्रिया करता है। इसमें किसी कार्य को करते हुए व्यक्ति किसी एक विचार में नए विचारों को शामिल करता है। उससे उसका स्पष्ट जुड़ाव देख और समझ पाता है। इस प्रक्रिया को सात्मीकरण या फिर assimilation कहते हैं।

इसके साथ ही दूसरी प्रक्रिया भी साथ-साथ चलती है जिसे व्यवस्थापन व संतुलन कहते हैं। इसमें नई वस्तु व विचार के समायोजन की प्रक्रिया होती है। इस तरह का समायोजन आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है। वर्तमान दौर में बदलाव की रफ्तार काफी तेज़ है, ऐसे में यह प्रक्रिया बेहद अहम हो जाती है। मनोविज्ञानिक नज़रिये से पूरी प्रक्रिया को समझना हमें व्यक्तियों के व्यवहार को समझने में मदद करता है।

 जरूर पढ़ेंः संज्ञानात्मक विकास: सीखने, संज्ञान और स्मृति के बीच क्या संबध है?

संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाएं

पियाजे के अनुसार विकास की अवस्थाएं क्रमिक होती हैं

  1. संवेदी प्रेरक अवस्था – जन्म से 2 वर्ष तक यह अवस्था चलती है। इसमें बच्चे का शारीरिक विकास तेज़ी से होता है। उसके भीतर भावनाओं का विकास भी होता है।
  2. पूर्व संक्रियात्मक अवस्था – जन्म से 7 वर्ष तक। इस अवस्था में बच्चा नई सूचनाओं व अनुभवों का संग्रह करता है। इसी अवस्था में बच्चे में आत्मकेंद्रित होने का भाव अभिव्यक्ति पाता है। पियाजे कहते हैं कि छह साल के कम उम्र के बच्चे में संज्ञानात्मक परिपक्वता का अभाव पाया जाता है।
  3. मूर्त संक्रियात्मक अवस्था – यह सात से 11 वर्ष तक चलती है। इस उम्र में बच्चा विभिन्न मानसिक प्रतिभाओं का प्रदर्शन करता है। उदाहरण के दौर पर पहली कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे ने तोते से जुड़ी एक कविता सुनी जिसमें डॉक्टर तोते को सुई लगाता है और तोता बोलता है ऊईईई…। यह सुनकर पहली कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे ने कहा, “यह तो झूठ है। डॉक्टर तोते को सुई थोड़ी ही लगाते हैं।“ यहां एक छह-सात साल का बच्चा अपने अनुभवों के आईने में कविता में व्यक्त होने वाले विचार को बहुत ही यथार्थवादी ढंग से देखने की प्रतिभा का प्रदर्शन कर रहा है, जिसे ग़ौर से देखने-समझने की जरूरत है।
  4. औपचारिक-संक्रियात्मक अवस्था – यह अवस्था 11 साल से शुरू होकर प्रौढ़ावस्था तक जारी रहती है। इस अवस्था में बालक परिकल्पनात्मक ढंग से समस्याओं के बारे में विचार कर पाता है। उदाहरण के तौर पर सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली एक छात्रा कहती है कि सर ने हमें पढ़ाया कि गांधी के तीन बंदर थे। उनसे हमें सीख मिलती है कि हमें बुरा देखना, सुनना और कहना नहीं चाहिए। मैंने कहा बिल्कुल ठीक है। इस उम्र के बच्चे भी सुनी हुई बातों पर सहज यकीन कर लेते हैं। फिर बात हुई कि बग़ैर देखे हमें कैसे पता चलेगा कि सही और ग़लत क्या है, यही बात सुनने के संदर्भ में लागू होती है। बोलने के संदर्भ में हम एक चुनाव कर सकते हैं मगर वह पहले की दो चीज़ों के बाद ही आती है। यानि हमें अपने आसपास के परिवेश को समझने के लिए अपनी ज्ञानेंद्रियों का प्रयोग करना चाहिए ताकि हम समझ सकें कि वास्तव में क्या हो रहा है और सही व गलत का फैसला हम तभी कर सकते हैं।

(एजुकेशन मिरर की इस पोस्ट को पढ़ने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। आप एजुकेशन मिरर को फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो कर सकते हैं। अपने आलेख और सुझाव भेजने के लिए ई-मेल करें पर और ह्वाट्सऐप पर जुड़ें 9076578600 )

संज्ञानात्मक विकास और सीखना क्या है?

अभ्यास के कारण व्यवहार में बदलाव ही सीखना है । अभ्यास और अनुभव दोनों के कारण व्यवहार में बदलाव ही सीखना है ।

संज्ञानात्मक विकास का क्या अर्थ है इसके सिद्धांतों का वर्णन करें?

संज्ञानात्मक विकास (Cognitive development) तंत्रिकाविज्ञान तथा मनोविज्ञान का एक अध्ययन क्षेत्र है जिसमें बच्चों द्वारा सूचना प्रसंस्करण, भाषा सीखने, तथा मस्तिष्क के विकास के अन्य पहलुओं पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है।

पियाजे के संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाओं का वर्णन कीजिए इसके शैक्षिक निहितार्थ क्या है?

पियाजे अपने संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत में कहते हैं । कि बालक भारत में वास्तविकता के स्वरूप के बारे में चिंतन करने तथा उसे खोज करने की शक्ति ना तो बालक के परिपक्वता स्तर पर और न ही सिर्फ उसके अनुभवों पर निर्भर करती है। बल्कि इन दोनों की अंतः क्रिया द्वारा निर्धारित होती है।

संज्ञानात्मक विकास की विशेषताएं क्या है?

संज्ञानात्मक विकास (Cognitive development) के बारें में : संज्ञानात्मक विकास का मतलब बच्चों के सीखने और सूचनाएँ एकत्रित करने के तरीके से है। आपको बता दे की इसमें अवधान में वृद्धि प्रत्यक्षीकरण, भाषा, चिन्तन, स्मरण शक्ति और तर्क शामिल हैं।