सेब के पेड़ में कौन सी खाद डालनी चाहिए? - seb ke ped mein kaun see khaad daalanee chaahie?

सेब के पेड़ में कौन सी खाद डालनी चाहिए? - seb ke ped mein kaun see khaad daalanee chaahie?

Apple farming in hindi: स्वस्थ रहने के लिए संतुलित आहार बहुत जरूरी है। स्वस्थ रहने के लिए हमें कई प्रकार की विटामिन और पोषक तत्वों की जरूरत पड़ती है। इन सब के लिए सेब(Apple) का नाम लें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा। क्योंकि स्वस्थ रहने के लिए डॉक्टर भी हमें प्रतिदिन सेब खाने की सलाह देते हैं। रोजाना एक सेब खाने से आप स्वस्थ और हेल्थी रह सकते हैं। 

सेब की खेती (Apple farming) किसानों की आर्थिक स्वास्थ को सुधारने में बेहद अहम भूमिका निभाती है। फलों में सेब की मांग बाजार में सबसे अधिक होती है। कम लागत में सेब की खेती (Seb ki kheti) से अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। सेब की खेती ठंडे प्रदेशों में अधिक होती है। लेकिन अब तो सेब की कई किस्में विकसित हो गई है, जिसकी खेती आप मैदानी प्रदेशों में भी आसानी से कर सकते हैं। 

तो आइए, द रुरल इंडिया के इस लेख में सेब की खेती (Seb ki kheti) को करीब से जानें। 

इस लेख में आप जानेंगे

  • सेब की खेती पर एक नजर

  • सेब की खेती के लिए जरूरी जलवायु

  • खेती के लिए उपयुक्त भूमि

  • सेब की खेती के लिए उन्नत किस्में

  • खेत की तैयारी

  • खाद और उर्वरक प्रबंधन

  • सिंचाई व्यवस्था

  • सेब की कटाई और छटाई

  • फसल में लगने वाले कीट और रोग

  • सेब की खेती में लागत और कमाई

सेब की खेती पर एक नजर

  • भारत विश्व में सेब के उत्पादन में 9वें स्थान पर है। 

  • हमारे देश में प्रतिवर्ष लगभग 1.48 मिलियन टन उत्पादन होता है। 

  • हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल और सबसे अधिक जम्मू कश्मीर में सेब का उत्पादन होता है।

  • सेब में पेक्टिन जैसे फायदेमंद फाइबर्स पाए जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक होते हैं। 

सेब की खेती (Seb ki kheti) के लिए जरूरी जलवायु

सेब एक शीतोष्ण जलवायु वाला फल है। इस फसल को ठंडे क्षेत्रों में ही लगाया जाता है। जहां पर पर्वतों की ऊंचाई लगभग 1600 से 2700 मीटर हो। इसके अलावा सेब की खेती के लिए 100 से 150 सेंटीमीटर बारिश वाले इलाकों को उत्तम माना जाता है। मार्च-अप्रैल के समय में सेब के पौधों पर फूल आना शुरू हो जाते है। ज्यादा तापमान का फसल पर बुरा प्रभाव पड़ता है। सेब की बागवानी के लिए लगभग 100 से 150 सेंटीमीटर वार्षिक बारिश की जरूरत होती है। 

सेब की खेती के लिए उपयुक्त भूमि 

सेब की खेती (Seb ki kheti)के लिए सूखी दोमट मिट्टी को सही माना जाता है, जिसकी गहराई कम से कम 45 सेंटीमीटर होनी चाहिए। इस गहराई में किसी भी तरह की कोई चट्टान न हो, ताकि पेड़ अपनी जड़े जमीन से अच्छे से फैलकर अच्छे से वृद्धि हो सके। इसके अलावा मिट्टी का पीएचमान 5.5 से 6.5 होना चाहिए। सेब की खेती जलभराव वाले स्थानों पर नहीं होती है, अतः खेत में जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। 

सेब की खेती के लिए उन्नत किस्में

सेब की बागवानी के लिए कई अलग-अलग तरह की किस्में है। लेकिन भारत में व्यापारिक खेती के लिए किसान सेब की कुछ ही किस्मों का सबसे अधिक उत्पादन करते हैं। जिन्हें मौसम की जलवायु के हिसाब से तैयार किया जाता है। 

सेब की किस्में

सन फ्यूजी 

इस किस्म के सेब दिखने में बेहद आकर्षक होते हैं। यह धारीदार गुलाबी रंग के सेब होते हैं। सन फ्यूजी किस्म के सेब स्वाद में मीठा, ठोस और थोड़ी कुरकुरा होता है। 

रेड चीफ

इस किस्म के सेब आकार में छोटे होते हैं। रैड चीफ किस्म के सेब लाल रंग के होते है। लेकिन इन पर सफेद रंग के बारीक धब्बे पाए जाते है। यह पौधे एक दूसरे से लगभग 5 फीट की दूर पर लगाए जाते हैं। 

ऑरिगन स्पर

इस किस्म के सेब भी लाल रंग के होते हैं। लेकिन इन पर धारियां बनी होती है। लेकिन इनका रंग गहरा लाल होने पर धारियां नहीं दिखाई देती है। 

रॉयल डिलीशियस

इस किस्म के सेब गोल आकार के होते है। यह सेब पकने में सबसे अधिक समय लेते है। लेकिन इसकी पैदावार बाकी सेबों के मुकाबले बेहद अच्छी होती है। इसका पेड़ गुच्छे की तरह फल देते है। बाजार में इनकी मांग काफी अधिक है। 

हाइब्रिड 11-1/12

इस किस्म के फल अगस्त महीने में बाजार में आना शुरू हो जाते है। यह अख संकर किस्म का फल है। इस किस्म के सेब लाल रंग और धारियां बनी होती है। 

इसके अलावा भी कई और किस्में सेब की पाई जाती है। जैसे- टाप रेड, रेड स्पर डेलिशियस, रेड जून, रेड गाला, रॉयल गाला, रीगल गाला, अर्ली शानबेरी, फैनी, विनौनी, चौबटिया प्रिन्सेज, ड फ्यूजी, ग्रैनी स्मिथ, ब्राइट-एन-अर्ली, गोल्डन स्पर, वैल स्पर, स्टार्क स्पर, एजटेक, राइमर आदि। 

जम्मू-कश्मीर में अगेती किस्म के सेब का उत्पादन किया जाता है। इसमें  बिनौनी, आइस्पीक आदि किस्में प्रमुख हैं। 

खेत की तैयारी

  • सेब की बागवानी करने के लिए सबसे पहले खेत में दो से तीन बार अच्छे से जुताई करें। 

  • इसके बाद खेत में रोटावेटर चलाएं। जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाएं। 

  • इसके बाद खेत में ट्रैक्टर की सहायता से पाटा लगाकर चलाएं। जिससे खेत समतल हो जाएं। 

  • इसके बाद पौधरोपण के लिए 10 से 15 फीट की दूर पर गड्ढे बनाएं। हर एक गड्ढा कम से कम 2 फीट गहरा होना चाहिए। 

  • इसके बाद खेत में बने गड्ढे में गोबर खाद और रासायनिक खाद डालकर अच्छे से मिलाएं। 

  • इसके बाद खेत की सिंचाई करें। 

  • ध्यान रहे कि यह सब खेत में पौधा रोपण से एक से डेढ़ महीने पहले करना है। जिससे खेत अच्छे से तैयार हो सकें।

खाद और उर्वरक प्रबंधन

सेब की खेती (Seb ki kheti) के लिए आपको हर एक पेड़ के लिए 10 किलोग्राम गोबर खाद, 1 किलोग्राम नीम की खली, 70 ग्राम नाइट्रोजन, 35 ग्राम फास्फोरस और 720 ग्राम पोटेशियम हर साल उनकी आयु के अनुसार 10 साल तक खादों की मात्रा बढ़ाकर डालनी चाहिए। इसके अलावा एग्रोमीन या मल्टीप्लेक्स जैसे सूक्ष्म तत्वों का मिश्रण, जिंक सल्फेट, कैल्शियम सल्फेट, बोरेम्स आदि को मिट्टी की आवश्यकता के अनुसार समय समय पर देते रहना चाहिए। इसे फसल की उत्पादन में वृद्धि होती है। 

सिंचाई व्यवस्था

सेब की खेती ठंडी के मौसम की खेती है। इसलिए इनके खेत की अधिक सिंचाई करने की जरूरत नहीं होती है। सर्दी के महीने में आप 2 से 3 बार सिंचाई कर सकते है। लेकिन पौधा रोपण से बाद तुरंत पहली सिंचाई करनी चाहिए। वहीं गर्मी के मौसम में इसकी हर हफ्ते सिंचाई करनी की जरूर होती है। बारिश के मौसम में जरूरत के हिसाब से सिंचाई करें। 

सेब की फसल में लगने वाले रोग

सेब की बागवानी के समय बेहद ध्यान रखना होता है। इसकी फसल में कई तरह के रोग लग सकते हैं, जिससे पौधा का विकास होना बंद हो जाता है। अगर इन रोगों का सही समय पर इलाज नहीं किया गया तो फसल बर्बाद हो सकती है। 

सेब की फसल में लगने वाले रोग और उसका इलाज

क्लियरविंग मोठ रोग

यह रोग फसल के पूरी तरह विकसित होने के बाद लगता है। जो अपने लार्वा से पौधों की छाल में छेद कर  देता है, जिससे फसल नष्ट हो जाती है। इसके बचाव के लिए पौधों पर 20 दिनों तक तीन बार क्लोरपीरिफॉस का छिड़काव करें। 

सफ़ेद रूईया कीट रोग

यह रोग पत्तियों का सारा रस चूस कर उसे नष्ट कर देता है। इसके बचाओ के लिए इमिडाक्लोप्रिड या मिथाइल डेमेटान का छिड़काव करना चाहिए। 

पपड़ी रोग

यह रोग सेब की बागवानी के लिए बेहद हानिकारक होता है। इस रोग में फलों पर धब्बे दिखाई देते है, जिससे सेब फटा-फटा सा हो जाता है। इसके अलावा यह रोग पौधे की पत्तियों पर भी अपना प्रभाव डालता है। जिससे समय से पहले ही पत्तियां टूट कर गिर जाती है। पपड़ी रोग से बचने के लिए उचित मात्रा में बाविस्टिन या मैंकोजेब छिड़काव करें। 

इन सब के अलावा भी सेब की खेती में कई तरह के और भी रोग देखने को मिलते है। जैसे- पाउडरी मिल्ड्यू,कोडलिंग मोठ,रूट बोरर आदि। 

सेब की कटाई और छंटाई

खेत में सेब के पेड़ लगाने के बाद 4 साल में पेड़ पर फल आना शुरू हो जाते है। इन फलों की कटाई सेब की किस्म और मौसम पर निर्भर करते है। आमतौर पर सितंबर और अक्टूबर में सेब की कटाई की जाती है।

आपको बता दें, सेब के पेड़ों पर फूल आने के बाद से लगभग 5 से 6 महीनों में सेब पककर कटाई के लिए तैयार हो जाते है। जब आपको सेब पूरी तरह से लाल रंग और आकार भी ठीक हो जाए तो यही समय सेब की तुड़ाई का होता है। सभी सेबों को एक बार तोड़ने पर उनके आकार और चमक के आधार पर अलग-अलग किया जाता है। इसे बाद यह सेब बाजार में बिकने को तैयार हो जाते है। 

सेब के पेड़ में कौन सी खाद डालनी चाहिए? - seb ke ped mein kaun see khaad daalanee chaahie?

सेब की खेती में लागत और कमाई

सेब की एक हेक्टेयर खेती में सिंचाई से लेकर कटाई तक हर साल लगभग 1.5 से 2 लाख रुपए तक की लागत लगती है। पौधे लगाने के 4 साल बाद इसमें 80 प्रतिशत तक सेब आ जाते है।  

बाजार में इसकी मांग अधिक है और कीमत भी अच्छी होने से किसान इसे अच्छा मुनाफा कमा सकता हैं। वर्तमान समय में सेब की कीमत (Apple price) 140 रुपए प्रति किलो है। प्रतिहेक्टेयर सेब की खेती से आप 4 से 5 लाख आराम से कमा सकते हैं। 

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संक्षेप में कहें तो किसान सेब की खेती (seb ki kheti) करके अच्छा लाभ कमा सकते हैं। 

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सेब में कौन सी खाद डाली जाती है?

सेब के पौधे/पेड़ को खाद व उर्वरक और हर साल इसी मात्रा में पौधों को उवर्रक देना चाहिए। पौधों के विकास के साथ उवर्रक की मात्रा को बढ़ा देना चाहिए।

Apple तोड़ने के बाद कौन सी खाद डाली जाती है?

बागवानी विभाग ने सेब के बागीचों में होने वाली स्प्रे के लिए शैड्यूल जारी कर दिया है। इसके जारी होने से अब बागवान स्प्रे शैड्यूल के तहत अपने बागीचों में स्प्रे कर सकते हैं। इससे बागवान सेब के पौधो मेें उत्पन्न होने वाले रोगों से सेब की फसल को सुरक्षित रख सकते हैं।

सेब के पेड़ों के लिए महत्वपूर्ण उर्वरक क्या है?

सेब में पोटेशियम (K) की भूमिका – Lets Grow Apple. यह पौधों की वृद्धि और उसके समग्र विकास के लिए आवश्यक है। यह फल आकार और फलों के रंग को बढ़ा देता है। यह पानी का उपयोग क्षमता बढ़ा देता है जिससे कि पौधों की सूखा प्रतिरोध क्षमता बढ़ जाती है।

सेब के पौधे में फूल कब आते हैं?

ऊंचाई वाले इलाकों में अभी फूल आने में 15 दिन का समय बाकी है लेकिन निचले मध्यम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में यह प्रक्रिया शुरू होने की वाली है। इस साल मार्च में ठंड के कारण इस प्रक्रिया में थोड़ा विलंब हो रहा है। उधर ठियोग क्षेत्र में अधिकतर किसान बेमौसमी सब्जी उत्पादन से जुड़े हैं