ललद्यदवाखरस्सी कच्चे धागे की, खींच रही मैं नाव। Show इस कविता में रोजमर्रा की साधारण चीजों को उपमा के तौर पर उपयोग करके गूढ़ भक्ति का वर्णन किया गया है। नाव का मतलब है जीवन की नैया। इस नाव को हम कच्चे धागे की रस्सी से खींच रहे होते है। कच्चे धागे की रस्सी बहुत कमजोर होती है और हल्के दबाव से ही टूट जाती है। हालाँकि हर कोई अपनी पूरी सामर्थ्य से अपनी जीवन नैया को खींचता है। लेकिन इसमें भक्ति भावना के कारण कवयित्री ने अपनी रस्सी को कच्चे धागे का बताया है। भक्त के सारे प्रयास वैसे ही बेकार हो रहे हैं जैसे कोई मिट्टी के कच्चे सकोरे में पानी भरने की कोशिश करता हो और वह इधर उधर बह जाता है। भक्त इस उम्मीद से ये सब कर रहा है कि कभी तो भगवान उसकी पुकार सुनेंगे और उसे भवसागर से पार लगायेंगे। उसके दिल में भगवान के नजदीक पहुँचने की इच्छा बार बार उठ रही है। Chapter Listदो बैलों की कथा ल्हासा की ओर उपभोक्तावाद की संस्कृति साँवले सपनों की याद देवी मैना प्रेमचंद के फटे जूते बचपन के दिन एक कुत्ता और एक मैना कबीर ललद्यद रसखान माखनलाल चतुर्वेदी सुमित्रानंदन पंत केदारनाथ अग्रवाल सर्वेश्वरदयाल सक्सेना चंद्रकांत देवताले स्पर्श कृतिका संचयन
खा खाकर कुछ पाएगा नहीं, यदि कोई आडम्बर से भरी हुई पूजा करता है तो उससे कुछ नहीं मिलता है। पूजा नहीं करने वाला अपने अहंकार में डूब जाता है। यदि आप अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर लेते हैं तो समझिये कि आपने असली पूजा की। इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने से ही ज्ञान के बंद दरवाजे आपके लिए खुल जाते हैं। हमारी ज्ञानेंद्रियाँ हमें हमारे शरीर से बाहर की दुनिया से तालमेल और संपर्क बिठाने में मदद करती हैं। देखना, सुनना, सूंघना, स्पर्श करना और स्वाद लेना; ये सारी क्रियाएँ हमारे लिए बहुत जरूरी हैं। लेकिन यदि आपने इन किसी पर से भी अपना नियंत्रण खो दिया तो बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है। उदाहरण के लिए स्वाद को लीजिए। मिठाई यदि ज्यादा खाई जाये तो उससे मधुमेह जैसी खतरनाक बीमारी हो जाती है। आई सीधी राह से, गई न सीधी राह्। किसी का जब इस संसार में जन्म होता है तो वह एक युगों से चल रहे सीधे तरीके से होता है। ऊपर वाला सबको एक ही जैसा बनाकर भेजता है। लेकिन जब हम अपनी जीवन यात्रा तय करते हैं तो बीच में कई बार भटक जाते हैं। योग में सुषुम्ना नाड़ी पर नियंत्रण को बहुत महत्व दिया गया है। कहा गया है कि योग से इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है और उससे शारीरिक और मानसिक फायदे होते हैं। ये भी बताया जाता है कि यह नियंत्रण आपको ईश्वर के करीब पहुँचने में मदद करता है। आखिर में जब भक्त की नाव को भगवान पार लगा देते हैं तो वह कृतध्न होकर उन्हें कुछ देना चाहता है। लेकिन भक्त की श्रद्धा की पराकाष्ठा ऐसी है कि उसे लगता है कि उसके पास देने के लिए कुछ भी नहीं है। जो कुछ उसने जीवन में पाया वो सब तो भगवान का दिया हुआ है। वह तो खाली हाथ इस संसार में आया था और खाली हाथ ही वापस गया। थल थल में बसता है शिव ही, ईश्वर तो हर जगह और हर प्राणी में वास करते हैं। वे हिंदू या मुसलमान में भेद नहीं करते। यदि आप अपने अंदर टटोलने की कोशिश करेंगे तो आपको ईश्वर मिल जाएंगे।
रस्सी कच्चे धागे की खींच रही में नाव में कौन सा अलंकार है?´ करें देव भवसागर पार', 'रस्सी कच्चे धागे की, खींच रही मैं नाव' - पंक्तियों में रूपक अलंकार है । आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है ।
रस्सी कच्चे धागों की खींच रही मैं नाव उपर्युक्त पंक्ति में नाव किसका प्रतीक है?के उत्तर लिखिए- उत्तर : नाव मनुष्य के जीवन ( जिंदगी ) का प्रतीक है । (ग) कवयित्री के स्वर में क्या है? उत्तर : कवयित्री के स्वर में वेदना है। रस्सी कच्चे धागे की, खींच रही मैं नाव ।
कच्चे धागे की रस्सी तथा नाव से क्या तात्पर्य है?नाव का मतलब है जीवन की नैया। इस नाव को हम कच्चे धागे की रस्सी से खींच रहे होते है। कच्चे धागे की रस्सी बहुत कमजोर होती है और हल्के दबाव से ही टूट जाती है। हालाँकि हर कोई अपनी पूरी सामर्थ्य से अपनी जीवन नैया को खींचता है।
कविता में नाव किसका प्रतीक है?उत्तर: नाव इस नश्वर शरीर का प्रतीक है।
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