रूस-यूक्रेन युद्ध का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव pdf - roos-yookren yuddh ka bhaarateey arthavyavastha par kya prabhaav pdf

यूक्रेन-रूस संकट का भारत में आम लोगों पर क्या असर पड़ेगा?

  • सरोज सिंह
  • बीबीसी संवाददाता

23 फ़रवरी 2022

अपडेटेड 24 फ़रवरी 2022

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यूक्रेन-रूस के बीच पिछले 24-48 घंटों में तेज़ी से घटनाक्रम बदले हैं.

एक तरफ़ रूस ने यूक्रेन में विद्रोहियों के क़ब्ज़े वाले इलाके दोनेत्स्क और लुहान्स्क को मान्यता दे दी है. इसकी प्रतिक्रिया में अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी जैसे देशों ने रूस पर सीमित प्रतिबंध लगाए हैं.

वहीं ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा है कि रूस, यूक्रेन पर पूरे प्रभाव से आक्रमण करने के अंतिम बिंदु पर है. संभव है कि वह अगले 24 घंटे के भीतर यूक्रेन पर हमला कर भी दे.

ऐसे में आशंका ये भी जताई जा रही है कि संकट के ये बादल काफ़ी दिनों तक यूं ही बने रह सकते हैं.

लेकिन अगर आप भारत में रह रहे हैं और ये सोच रहे हैं कि यहाँ से 5 हजार किलोमीटर दूर, रूस-यूक्रेन के बीच जो कुछ चल रहा है उसका असर भारत पर नहीं होगा, तो ऐसा भी नहीं है. वहाँ के घटनाक्रम से भारतीय अछूते नहीं रह सकते.

भारत का रूस और यूक्रेन दोनों के साथ व्यापारिक रिश्ता भी है और भारत के काफ़ी नागरिक इन दोनों देशों में रहते हैं. यूक्रेन में ज़्यादातर लोग पढ़ने जाते हैं. वही रूस में पढ़ाई के साथ-साथ कई भारतीय नौकरी के लिए भी जाते हैं.

दोनों देशों के बीच आपसी तनाव की वजह से ना सिर्फ़ भारतीय नागरिकों को आने वाले दिनों में दिक़्क़तों का सामना करना पड़ सकता है, बल्कि आपके और हमारे घर का बजट तक गड़बड़ा सकता है.

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मॉस्को का केंद्रीय विद्यालय

रूस में रहने वाले भारतीय

रूस में भारतीय दूतावास के मुताबिक़ तक़रीबन 14 हज़ार भारतीय रूस में रहते हैं. जिसमें से तक़रीबन 5 हज़ार छात्र हैं जो मेडिकल और दूसरे टेक्निकल कोर्स की पढ़ाई कर रहे हैं.

इसके अलावा 500 बिजनेसमैन हैं जो चाय, कॉफी, चावल, मसाले के व्यापार से जुड़े हैं.

वहाँ केंद्रीय विद्यालय संगठन से जुड़ा एक स्कूल भी है जिसका स्टॉफ़ भी भारत से जाता है. भारतीय दूतावास में काम कर रहे ज़्यादातर कर्मचारियों के बच्चे इस स्कूल में पढ़ते हैं, इस स्कूल में कुछ स्थानीय छात्र भी पढ़ते हैं.

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यूक्रेन में पढ़ने गए भारतीय छात्र

यूक्रेन में रहने वाले भारतीय

भारत से यूक्रेन जाने वालों में सर्वाधिक संख्या छात्रों की है. इनमें ज़्यादातर डॉक्टरी की पढ़ाई करने यूक्रेन जाते हैं.

मेडिकल की पढ़ाई यूक्रेन में भारत के मुकाबले आधे से भी कम ख़र्च पर हो जाती है. इस वजह से छात्र वहाँ जाकर पढ़ने के विकल्प को चुनते हैं.

यूक्रेन-रूस संकट के बीच भारत सरकार ने वहाँ रह रहे भारतीय नागरिकों को बहुत ज़रूरी ना हो तो देश वापस आने की सलाह दी है. पहला भारतीय विमान 242 यात्रियों को लेकर मंगलवार को दिल्ली पहुँचा है.

दोनों देशों के बीच स्थितियाँ बिगड़ी तो वहाँ रह रहे भारतीय भी अछूते नहीं रहेंगे. भारत में रहे रहे उनके परिवार वाले भी इसलिए चिंतित हैं. यही वजह है कि भारत सरकार भी पूरे घटनाक्रम पर नज़र बनाए हुए है.

डर के बीच तेल की बढ़ती कीमतें

इसके अलावा इस संकट का असर भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ने की आशंका जताई जा रही है.

भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को कहा है कि रूस-यूक्रेन तनाव का असर अभी भारतीय व्यापार पर नहीं पड़ा है. लेकिन इस वैश्विक तनाव की वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल की बढ़ती क़ीमत भारत की अर्थव्यवस्था के लिए चुनौतीपूर्ण है.

मंगलवार को कच्चे तेल की क़ीमत 93-94 डॉलर प्रति बैरल के क़रीब पहुँच गई.

ऊर्जा क्षेत्र के जाने माने विशेषज्ञ नरेंद्र तनेजा कहते हैं, "भारत 85 फ़ीसदी तेल आयात करता है, जिसमें से ज़्यादातर आयात सऊदी अरब और अमेरिका से होता है. इसके अलावा भारत, इराक, ईरान, ओमान, कुवैत, रूस से भी तेल लेता है."

तनेजा आगे कहते हैं, "दरअसल दुनिया में तेल के तीन सबसे बड़े उत्पादक देश - सऊदी अरब, रूस और अमेरिका हैं. दुनिया के तेल का 12 फ़ीसदी रूस में, 12 फ़ीसदी सऊदी अरब में और 16-18 फ़ीसदी उत्पादन अमेरिका में होता है."

तनेजा कहते हैं कि अगर इन तीन में से दो बड़े देश युद्ध जैसी परिस्थिति में आमने-सामने होंगे, तो जाहिर है इससे तेल की सप्लाई विश्व भर में प्रभावित होगी. ये युद्ध की आशंका ही तेल की कीमतें बढ़ने के पीछे की सबसे बड़ी वजह है.

तेल की कीमतों का सीधा असर महँगाई से भी है. डीजल-पेट्रोल के बढ़ते दाम, साग सब्ज़ी और रोज़मर्रा की चीज़ों की कीमतों पर सीधे असर करते है. इसी बात की चिंता भारत को सता रही है.

नरेंद्र तनेजा इसी बात को विस्तार से समझाते हुए कहते हैं, "पिछले डेढ़ महीने से भारत में तेल और पेट्रोल की कीमतें नहीं बढ़ी हैं. इसका एक कारण शायद चुनाव भी हो सकता है. परंतु इस डेढ़ महीने में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल के दाम 15 से 17 फ़ीसदी बढ़ चुके हैं. ऐसे में जब कभी भारत में तेल की कीमतें रिवाइज़ होंगी, तो एक साथ 6-10 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी भी देखी जा सकती है."

एक अनुमान के मुताबिक़ कच्चे तेल की कीमत में 1 डॉलर प्रति बैरल की बढ़ोतरी से भारतीय अर्थव्यवस्था पर 8000-10,000 करोड़ का बोझ बढ़ जाता है. जाहिर है, इसका असर आपकी जेब पर सीधे पड़ेगा.

प्राकृतिक गैस की कीमतें

भारत की कुल ईंधन खपत में प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी लगभग 6 प्रतिशत है और इस 6 फ़ीसदी का 56 फ़ीसदी, भारत आयात करता है.

ये आयात मुख्यत: क़तर, रूस,ऑस्ट्रेलिया, नॉर्वे जैसे देशों से होता है.

कुएं से पहले गैस निकाली जाती है, फिर उसे तरल किया जाता है और फिर समुद्री रास्ते से ये गैस भारत पहुँचती है. इस वजह से इसे लिक्विफाइड नेचुरल गैस यानी एलएनजी कहा जाता है. भारत लाकर इसे पीएनजी और सीएनजी में परिवर्तित किया जाता है. फिर इसका इस्तेमाल कारखानों, बिजली घरों, सीएनजी वाहनों और रसोई घरों में होता है.

रूस-यूक्रेन संकट के बीच एलएनजी की कीमतों में भी बढ़ोतरी देखने को मिली है. रूस, पश्चिम यूरोप प्राकृतिक गैस का बड़ा निर्यातक है. इसी क्षेत्र में सारी पाइप लाइन बिछी हुई हैं. दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव को देखते हुए आशंका है कि बमबारी ना शुरू हो जाए, सप्लाई बाधित ना हो जाए. इसी आशंका की वजह से एलएनजी की कीमतें बढ़ रही है.

इंद्राणी बागची अनंता सेंटर की सीईओ डेजिग्नेट है. अनंता सेंटर, भारत के विकास और सुरक्षा मुद्दों पर काम करने वाली नॉन प्रॉफ़िट संस्था है. इंद्राणी पूर्व में टाइम्स ऑफ़ इंडिया की डिप्लोमेटिक एडिटर भी रह चुकी हैं.

बीबीसी से बातचीत में वो कहती हैं, "रूस 40 फ़ीसदी तेल और प्राकृतिक गैस, यूरोप को बेचता है. अगर उसने भी ये बंद कर दिया, तो स्थिति ख़राब हो सकती है. इस तनाव के बीच अमेरिका कोशिश कर रहा है कि दूसरे देश जैसे क़तर से एलएनजी का डाइवर्जन यूरोप की तरफ़ करा सके. एलएनजी के लिए क़तर के सबसे बड़े ग्राहक देश हैं - भारत, चीन और जापान. अगर क़तर अमेरिका के दबाव में एलएनजी यूरोप को देने के लिए तैयार हो जाए, तो वो किसके हिस्से से जाएगा? ज़ाहिर है भारत का हिस्सा भी कुछ कटेगा."

हालांकि इंद्राणी इस संकट के बीच ये भी कहती हैं कि आने वाले दिनों में हो सकता है कोई देश अपनी तेल और प्राकृतिक गैस के उत्पादन की क्षमता बढ़ाएं और वैश्विक किल्लत ना हो और स्थिति नियंत्रण में ही रहे.

नरेंद्र तनेजा कहते हैं कि एलएनजी की कीमतों में उतनी तेजी नहीं आई है, जितनी तेल की कीमतों में. इसकी एक वजह ये है कि एलएनजी की कीमतें क्षेत्रीय बाज़ार में तय होती हैं ना कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में. भारत का जिन देशों के साथ एलएनजी कॉन्ट्रैक्ट है वो लंबे समय के लिए है और कीमतें कई सालों के लिए पहले से तय है.

खाद्य तेल

तेल और नेचुरल गैस के बाद इस संकट का तीसरा बड़ा असर खाद्य तेल पर पड़ सकता है.

यूक्रेन, विश्व का सबसे बड़ा रिफ़ाइन्ड सूरजमुखी के तेल का निर्यातक देश है. दूसरे स्थान पर रूस है.

इंद्राणी बागची कहती हैं, "दोनों देशों के बीच तनाव इसी तरह से अगर लंबे समय तक जारी रहे तो घरों में इस्तेमाल होने वाले सूरजमुखी के तेल की किल्लत भारत में हो सकती है."

इसके अलावा यूक्रेन से भारत फर्टिलाइज़र भी बड़ी मात्रा में ख़रीदता है. भारतीय नेवी के इस्तेमाल के लिए कुछ टर्बाइन भी यूक्रेन भारत को बेचता है.

इंद्राणी कहती हैं कि फर्टिलाइजर की क़िल्लत की भरपाई तो भारत दूसरे देशों से फिर भी कर सकता है. नेवी के लिए ख़रीदे गए टर्बाइन हाल-फिलहाल में ही भारत पहुँचे हैं. इस वजह से आने वाले दिनों में समस्या केवल खाने के तेल की हो सकती है.

क़ीमती पत्थर और धातु

इसके अलावा भारत, रूस से मोती, क़ीमती पत्थर, धातु भी आयात करता है. इनमें से कुछ का इस्तेमाल फ़ोन और कंप्यूटर बनाने में भी होता है.

भारत की इन दोनों देशों से आयात निर्यात की लिस्ट वैसे तो लंबी है. रिपोर्ट में लगे ग्राफ़िक्स से इसे आसानी से समझा जा सकता है.

शिपिंग इंश्योरेंस की कीमतें

व्यापार के साथ ही, व्यापार के रास्ते भी संकट में काफ़ी अहम हो जाते हैं.

प्रोफ़ेसर प्रबीर डे इंटरनेशनल ट्रेड के जानकार हैं. भारत में रिसर्च एंड इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर डेवलपिंग कंट्री (आरआईएस) में प्रोफ़ेसर हैं.

बीबीसी से बातचीत में वो कहते हैं, "फिलहाल तो बहुत दिक़्क़त वाली स्थिति नहीं है. अगर युद्ध होता है और फिर नेटो देश भी सक्रिय होते हैं तो शिपिंग लेन से लेकर पूर्वी और पश्चिमी देश कोई भी इससे अछूता नहीं रहेगा. इन देशों के साथ ज़्यादातर व्यापार समुद्री रास्ते से ही होता है.

ऐसे हालात में शिपिंग इंश्योरेंस की कीमतें भी बढ़ जाती है, जिनका असर भी आयात और निर्यात होने वाले सामान की कीमतों पर पड़ता है. ऐसा तब होता है जब समुद्री जहाज़ उन तनाव युक्त क्षेत्रों के समुद्री रास्ते में पड़ता हो या फिर उन देशों पर प्रतिबंध लगा दिए गए हों.

रूस यूक्रेन संघर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित कर सकता है?

मूडीज ने कहा, “रूस-यूक्रेन सैन्य संघर्ष से उपजी वैश्विक आर्थिक गिरावट भारत में मुद्रास्फीति और ब्याज दरों को बढ़ाएगी. साथ ही सप्लाई की समस्या पैदा करेगी. रेटिंग एजेंसी ने चेतावनी दी है कि खाद्य पदार्थों की ऊंची कीमतों का सीधा असर महंगाई पर पड़ेगा, जबकि कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी का और भी बड़ा असर होगा.

1 रशिया और यूक्रेन की लड़ाई का भारत की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा इस विषय पर अपने विचार व्यक्त कीजिए?

कोरोना ने भारत की अर्थव्यवस्था को गहरी चोट जरूर पहुंचाई थी, लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध ने स्थिति को बद से बदतर करने का काम कर दिया है. जो रुपया 24 फरवरी को डॉलर के मुकाबले 75.3 स्तर पर चल रहा था, युद्ध के तीन महीने बाद ही मई में वो आंकड़ा 77.7 पर पहुंच गया. यानी की सीधे-सीधे रुपया 4 फीसदी तक कमजोर हो गया.

रूस यूक्रेन युद्ध का कारण क्या है?

वर्ष 2014 में रूस समर्थक माने जाने वाले यूक्रेन के तत्कालीन राष्ट्रपति को सत्ता छोड़नी पड़ी थी। उसके बाद रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था। 2- इसके बाद रूसी राष्‍ट्रपति पुतिन ने यह दावा किया कि यूक्रेन का गठन कम्युनिस्ट रूस ने किया था। पुतिन का मानना है कि वर्ष 1991 में सोवियत संघ का विघटन रूस के टूटने के जैसा था।

यूक्रेन से भारत में क्या आयात होता है?

वहीं, इस साल के करीब 11 महीने में फरवरी तक ही 3.09 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कारोबार हो चुका है. बता दें कि भारत यूक्रेन को भी टेलीकॉम प्रोडक्ट, आयरन, स्टील और फार्मासुटिकल्स प्रोडक्ट भेजता है. वहीं, यूक्रेन से वेजिटेबल ऑयल, फर्टिलाइजर्स, कैमिकल्स, प्लास्टिक और प्लाईवुड आदि आइटम आयात किए जाते हैं.

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