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रूस की 1905 की क्रांति के कारण उसकी राजनीतिक, सामाजिक परिस्थितियों में निहित थे। जापानी युद्ध ने केवल उत्प्रेरक का कार्य किया। युद्ध में पराजय के कारण रूस की जनता का असंतोष इतना बढ़ गया था कि उसने राज्य के विरूद्ध विद्रोह कर दिया। 1905 की रूसी क्रांति के कारणइस रूसी क्रांति के कारण ही सरकार को जापान से युद्ध बंद कर शांति संधि करनी पड़ी। इस रूसी क्रांति के कारण निम्नलिखित थे -
तात्कालिक पृष्ठभूमिरूस में जापान के विरूद्ध युद्ध को जनता का समर्थन प्राप्त नहीं था। रूस की जनता यह नहीं जानती थी कि युद्ध किस उद्देश्य से लड़ा जा रहा है। युद्ध का प्रबंधन कुशलता से नहीं किया गया था। भ्रष्टाचार इस सीमा तक बढ़ गया था कि जनता ने जो उपहार सैनिकों के लिए दिये थे, वे नगरों में खुले आम बेचे जा रहे थे। पराजय से जनता में निराशा बढ़ती जा रही थी। 27 दिसम्बर को सम्राट की दूसरी घोषणा प्रकाशित हुई। इसमें सुधार कार्यक्रम पर कई प्रतिबंध लगा दिये गये जैसे सभाओं की स्वतंत्रता नहीं दी जा सकती थी। इससे रूस की जनता को मालमू हो गया कि सरकार अपनी शक्ति निरंकुश रखना चाहती थी और सुधार करने के लिए उसकी इच्छा नहीं थी। खूनी रविवारजार की घोषणाओं से सुधारवादी संतुष्ट नहीं थे। अब इस आंदोलन में श्रमिक वर्ग भी सम्मिलित हो गया। जनवरी 1905 में राजधानी सेण्ट पीटर्सबर्ग में हड़ताले हुई। श्रमिक संगठन पर एक उदारवादी पादरी, फादर गेपन का प्रभाव। यह संगठन श्रमिकों की आर्थिक समस्याओं पर विचार करने के लिए बनाया गया था लेकिन श्रमिक वर्ग में राजनीतिक जागृति बढ़ रही थी। अत: फादर गेपन को अपना प्रभाव बनाये रखने के लिए आदोंलन को राजनीतिक रूप भी देना पड़ा। उसके नेतृत्व में राजधानी के श्रमिकों ने कई माँगें केा लेकर हडताल कर दी। वार्ता असफल होने के बाद गपे न ने जार के समक्ष याचिका प्रस्तुत करने का निश्चय किया। 22 जनवरी, 1905 को रविवार के दिन उसके नेतृत्व में हजारों श्रमिकों का जुलूस शांति और अनशाति था लेकिन महल के सामने मैदान में सैनिकों ने उस पर गोलियाँ चलायी जिससे सैकड़ों प्रदर्शनकारी मारे गये। इस घटना से क्रांति आरंभ हो गयी। जार द्वारा सुधारों की घोषणासुधारवादी आंदोलन अब स्पष्ट रूप से क्रांतिकारी आंदोलन बन चुका था। यातायात और संचार साधन हड़तालों के कारण अवरूद्ध हो गये। थे। जनता के बढ़ते हुए असंतोष के कारण जार ने 3 मार्च को फिर सुधारों की घोषणा की। जार ने कहा कि वह साम्राज्य के योग्यतम व्यक्तियों को कानून बनाने के कार्य में सम्बद्ध करना चाहता था। अप्रैल व जून में अनेक सुधारों की घोषणा भी की गयी और जनता से कहा गया कि वे सुधारों के विषय पर अपने स्मरण पत्र प्रस्तुत करें। क्रांति का प्रसारसुधारों की इन चर्चाओं के साथ हड़तालों का दौर भी चल रहा था। सारे देश के श्रमिकों ने हड़ताल कर दी थी। स्थान-स्थान पर पुलिस और श्रमिकों की मुठभेडं ़े भी हो रही थी। 14 जून को काला सागर के एक जहाज ‘प्रोटीओमकिन’ के नाविकों ने विद्रोह कर दिया। इस बीच सुदूरपूर्व के दो युद्धों में रूस की निर्णायक पराजय हो चुकी थी। मार्च 1905 में जापान ने मुदकन में रूसी सेना को पराजित कर दिया था। जल युद्ध में जापानियों ने रूस के जहाजी बेड़े की सुसीमा के युद्ध में नष्ट कर दिया था। अगस्त घोषणासुसीमा की पराजय के बाद सुधारवादियों ने पुन: सुधार की माँग प्रस्तुत की। इस बार जेम्सतेवों सुधारवादियों के दोनों वर्ग नरम-सुधारवादी और उदार-सुधारवादी एक हो गय।े उनका संयुक्त अधिवेशन हुआ जिसमें नगरों के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया। इस सम्मेलन ने जार के पास एक प्रतिनिधिमण्डल भेजा। प्रतिनिधिमण्डल ने जार से भंटे करके ‘सम्राट और जनता’ के सहयागे के लिए प्रार्थना की लेकिन इसका सरकार की प्रतिक्रियावादी नीति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। 28 जून को नगर परिषदों का एक वृहद सम्मेलन हुआ जिसमें माँग की गयी कि जेम्सतेवों सम्मेलन की योजना को स्वीकार किया जाये। 19 जुलाई को जेम्सतेवों तथा नगर परिषदों का संयुक्त सम्मेलन हुआ जिसमें संविधान की रूपरेखा स्वीकृत की गयी। सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया लेकिन अपनी ओर से 6 अगस्त को घोषणा प्रकाशित की जिसमें ड्यूमा की स्थापना के बारे में कहा गया था। इसे अत्यंत सीमित मताधिकार पर चुना जाना था और इसकी स्थिति परामर्श देने की थी। यह सरकार का अधूरा प्रयास था। अनुदारवादियों को छोड़कर किसी दल ने इस योजना को स्वीकार नहीं किया। 1905 की रूसी क्रांति की असफलता के कारण1905 की क्रांति असफल हो चुकी थी लेकिन सुधारवादियों को अभी ड्यूमा से आशा थी। शीघ्र ही यह स्पष्ट हो गया कि सरकार अपनी रूचि की ड्यूमा चाहती थी। प्रथम ड्यूमा को दो माह बाद भंग कर दिया गया। इसके सदस्यों ने देश से सरकार के प्रति असहयोग की अपील की लेकिन देश आंदोलनों से थक चुका था, अत: इसका प्रभाव नहीं पड़ा। सरकार ने छुटपुट विद्रोह को निर्दयता से कुचल दिया। दूसरी ड्यूमा में भी सरकार विरोधी सदस्यों का बहुमत था। इसे भी भंग कर दिया गया। इसके बाद सरकार ने मताधिकार सीमित करके चुनाव कराये। इससे तीसरी ड्यूमा में सरकार के समर्थकों को बहुमत प्राप्त हो गया। यद्यपि ड्यूमा बनी रही लेकिन वह सरकार से सहयागे करती रही और सरकार की इच्छा के अनुसार चालती रही। क्रांति की असफलता के कारण थे -
अर्द्ध संवैधानिकता का युग (1906-1917)1905 की क्रांति असफल होने के बाद रूस में स्वच्े छाचारी शासन पूर्ण रूप से स्थापित हो गया था। शासन की नीति प्रतिक्रियावादी और दमनात्मक थी लेकिन ड्यूमा का अस्तित्व बने रहने से शासन का स्वरूप अर्द्ध संवैधानिक था। 1912 ई. में चौथी ड्यमा चुनी गयी। वह भी शासन से सहयागे करती रही। उसके समय में प्रथम विश्वयुद्ध में रूस शामिल हुआ और 1917 में क्रांति हुई। युद्ध की असफलताओं के कारण अविश्वास का वातावरण बन गया। इससे ड्यूमा और सरकार के मध्य मतभेद उत्पé हो गये। इस संघर्ष में दोनों ही दुर्बल हो गये जिससे अंत में सत्ता बोल्शेविकों के हाथों में चली गयी। 1917 की रूसी क्रांति का महत्वरूस की क्रांति का महत्व न केवल यूरोप के इतिहास में वरन् विश्व के इतिहास में है। जिस प्रकार 18वीं शताब्दी के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना फ्रांस की राज्य क्रांति है उसी प्रकार बीसवीं शताब्दी की सबसे महत्वपूर्ण घटना रूस की 1917 ई. की बोल्शेविक क्रांति थी। रूस में सामाजिक समानता का नितांत अभाव था। इस समय रूस का समस्त समाज तीन विभिन्न श्रेणियों में विभक्त था, जिनमें आपस में किसी भी प्रकार की सद्भावना विद्यमान नहीं थी। वे एक दूसरे को अपने से पूर्णतया भिन्न और पृथक समझती थीें।
1917 की रूसी क्रांति के कारण1917 की रूसी क्रांति के कारण इस रूसी क्रांति के कारण निम्नलिखित थे - व्यावसायिक क्रांति और उसके परिणामअन्य देशों के समान रूस में भी व्यावसायिक क्रांति हुई, यद्यपि यहां पर क्रांति अन्य देशों की अपेक्षा काफी समय के उपरांत हुई किन्तु इसके होने पर रूस में बहुत से कारखानों की स्थापना हो गई थी। इस प्रकार रूस का औद्योगीकरण होना आरंभ हुआ। इसमें काम करने के कारण लाखों की संख्या में मजदूर देहातों और गांवों का परित्याग कर उन नगरों तथा शहरों में निवास करने लगे, जिनमें कल कारखानों की स्थापना हुई थी। नगरों और शहरों में निवास करने के कारण अब वे पहले के समान सीधे-सादे नहीं रह गये थे। नगरों में रहने से उनमें न केवल चलता-पुरजापन ही आ गया था, अपितु ये राजनीतिक मामलों में भी रूचि लेने लगे थे। इनको अपने राजनीतिक तथा सामाजिक अधिकारों का भी ध्यान हुआ। इन्होनें अपने क्लबों का निर्माण किया, जहां ये सब प्रकार के मामलों पर विचार करते थे और आपस में वाद-विवाद करते थे इनको यहां रहकर नवीन विचारधाराओं तथा प्रवृत्तियों का भी ज्ञान हुआ। इन्होंने श्रमिक सगंठनों की स्थापना भी करनी आरंभ कर दी। 1905 ई. की रूसी क्रांतिरूस मे 1905 ई. में एक क्रांति हुई थी, जिसके द्वारा रूस में वैधानिक राजतंत्र की स्थापना करने का पय्र ास किया गया था किन्तु पारस्परिक झगड़ों के कारण यह क्रांति सफल नहीं हो सकी और शासन पर पुन: जार का आधिपत्य स्थापित हो गया। इस क्रांति का स्पष्ट परिणाम यह हुआ कि उसने रूस की साधारण जनता को राजनीतिक अधिकारों का परिचय करा दिया था। उनको ज्ञात हो गया कि वाटे का क्या अर्थ है? ड्यूमा या दूसरे शब्दों में पार्लियामंटे के सदस्यों का निर्वाचन किस प्रकार जाना चाहिये? सरकार को लोकमत के
अनुसार अपनी नीति का निर्धारण कर जनहित के कार्यों को करने के लिये अग्रसर होना चाहिये। अपने राजनीतिक अधिकारों से परिचित हो जाने के कारण रूस की जनता समझ गई कि रूस में भी पूर्णतया लाके तंत्र शासन की स्थापना होनी चाहिये जहां साधारण जनता के हाथ में शासन सत्ता हो। पश्चिमी यूरोप का प्रभावपश्चिमी यूरोप के लोकतंत्र राज्यों का प्रभाव भी रूस पर पड़ा, यद्यपि रूस के सम्राटों ने पाश्चात्य प्रगतिशील विचारों का रूस में प्रचार रोकने के लिये विशेष रूप से प्रयत्न किया, किन्तु
विचारों का रोकना बहुत ही कठिन कार्य है, क्यांेक विचार हवा के समान होते हैं। महायुद्ध के समय में जर्मनी और उसके साथियों के विरूद्ध जो प्रचार-कार्य मित्र राष्ट्रों की ओर से किया जा रहा था, उसमें मुख्यत: यही कहा जाता था कि वे लोकतंत्र शासन, जनता की स्वतंत्रता और राष्ट्रीयता के आधार पर नवीन राष्ट्रों का निर्माण करने के अभिप्राय से युद्ध कर रहे हैं। रूस मित्र-राष्ट्रों के अंतर्गत था। अत: वहां की जनता पर भी इस प्रचार का बहुत असर पड़ा। मध्यम वर्ग के विचारों में परिवर्तनरूसी में मध्य श्रेणी के व्यक्तियों में शिक्षा का प्रचार हो गया था। जिस प्रकार फ्रांस की क्रांति का श्रेय फ्रांस के दार्शनिक, शिक्षित वर्ग आदि को प्राप्त है उसी प्रकार रूस में भी क्रांति का वेग इसी श्रेणी के लोगों ने तीव्र किया। वे लागे नई-नई पुस्तकों का अध्ययन करते थ।े पश्चिमी यूरोप के विचारों की लिखी हुई पुस्तकें रूसी भाषा में अनुवादित हुई थी। अनेक एशियन लेखकों ने भी अपने ग्रन्थों द्वारा नये तथा प्रगतिशील विचारों का प्रतिपादन किया। शिक्षित वर्ग पर उन नये विचारों का बहुत अधिक
प्रभाव पड़ा, विशेषत: नवयुवक विद्याथ्र्ाी नये विचारों का अध्ययन कर यह भली-भांति समझने लगे थे कि उनका देश उन्नति की दौड़ में बहुत पिछड़ा हुआ है, जिसका प्रमुख कारण जार की निरंकुशता है। उनके हृदय में यह भावना जागतृ हुई कि उनका कर्तव्य है कि वे अपने देश को उन्नत करने के लिये घारे प्रयत्न करें। महायुद्ध का प्रभावमहायुद्ध में रूस मित्र राष्ट्रों की ओर से सम्मिलित हुआ। उनकी विशाल सेना ने युद्ध के आरंभ में बड़ी क्षमता तथा योग्यता का प्रदर्शन किया, परन्तु दो वर्ष तक निरंतर युद्ध करते हुये उसमें शिथिलता के चिन्ह स्पष्ट दृष्टिगोचर होने लगे। रूस की सेना बहादुर अवश्य थी, किन्तु उसमें देश-भक्ति और राष्ट्रीयता की वे भावनायें विद्यमान नहीं थी, जो अपूर्व त्याग और मर मिटने के लिये प्रेरणा प्रदान करती है। रूस की सेनायें संख्या की पूर्ति के लिये भरती की गई थी। उनमें वीर सैनिकों की परम्परा अवश्य थी, पर उनके सम्मुख कोई आदर्श विशेष नहीं था। यही दशा रूस की नौकरशाही की थी। रूस के कर्मचारी यह नहीं समझते थे कि वे देश की उन्नति और राष्ट्र सेवा के लिये नियुक्त किये गये हैं। उनका आदर्श था सम्राट को प्रसन्न कर उच्च पदों पर आसीन होना। 1917 की रूसी क्रांति की घटनाएं तथा परिणाम1917 की रूसी क्रांति की घटनाएं तथा परिणाम इस रूसी क्रांति के घटनाएं तथा परिणाम निम्नलिखित थे - सेना द्वारा जनता पर गोली चलाने से इनकारअंत में 7 मार्च 1917 ई. को जनता की दशा बहुत ही शोचनीय हो गई थी। उसके पास न पहनने को कपड़ा था और न खाने को अनाज था। वह भख्ू ा और कपड़ा से व्याकुल हो चुकी थी। परेशान होकर भूखे और ठण्ड से ठिठुरते हुए गरीब और मजबूरों ने 7 मार्च दिन पेट्रोग्रेड की सड़कों पर घूमना आरंभ किया। रोटी की दुकानों पर ताजी और गरम रोटियों के ढेर लगे पड़े थे। भूखी जनता का मन ताजी और गरम चाय व रोटियों को देखकर ललचा गया और वह अपने आपको नियंत्रण में नहीं रख सकी। उन्होंने बाजार में लूट-मार करनी आरंभ कर दी। सरकार ने सेना को उन पर गोली चलाने का आदेश दिया कि वह गाले ी चलाकर लूटमार करने वालों को तितर-बितर कर दे, किन्तु सैनिकों ने जिनको उनसे सहानुभूति थी गाले ी चलाने से साफ मना कर दिया। उनमें भी क्रांति की भावना प्रवेश कर चुकी थी। जब मजदूरों ने यह देखा कि सैनिक उन पर गोली चलाने को तैयार नहीं हैं, तो उनका साहस बहुत बढ़ गया। अत: अब क्रान्ति अवश्यम्भावी हो गई थी। जार का शासन त्यागना-दूसरी ओर ड्यूमा ने विसर्जित होने से मना कर दिया। उसका पेट्रोग्रेड सोबियत के समझौता हो गया, जिसके आधार पर 14 मार्च 1917 ई. को उदारवादी नेता जार्ज स्लाव की अध्यक्षता में एक सामाजिक सरकार की स्थापना की गई। उसने 14 मार्च को जार से शासन का परित्याग करने की मांग की। परिस्थिति से बाध्य होकर उसने उनकी मांग को स्वीकार कर शासन से त्यागपत्र दे दिया। इस प्रकार रूस में जारशाही का अंत हुआ। क्रांति में मजदूरों को सफलता प्राप्त हुई, किन्तु उन्होनें शासन की बागडोर को अपने हाथ में रखना उचित न समझ, समस्त शक्ति मध्य वर्ग के हाथ में सौंप दी। |