प्रश्न 6. पत्राचार का अर्थ बताते हुए एक अच्छे पत्र की विशेषताएँ बताइए। Show अथवा ‘’ पत्र लिखते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ? उत्तर- मन्तव्य को गन्तव्य तक पहुँचाने के लिए पत्राचार किया जाता है। पत्र द्वारा भावों, विचारों या अपेक्षित सूचनाओं का संप्रेषण एवं सम्पर्क स्थापित करना ही पत्राचार कहलाता है । पत्र हमारे दैनिक एवं सामाजिक जीवन का अंग होते हैं। इनका सम्बन्ध शिक्षित-अशिक्षित, धनी-निर्धन प्रत्येक से है। आज का युग कम्प्यूटर का युग है जिसके कारण पत्र के क्षेत्र में विस्तार एवं विविधता दिखलाई देने लगी है। पहले जहाँ प्रेषक अपना पता बाई ओर लिखता था वहीं आज प्रेषक का पता पत्र के प्रारम्भ में दायीं ओर ही लिखा जाता है। पत्र मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं 1.औपचारिक, 2. अनौपचारिक कार्यालयी पत्रों में औपचारिकता का प्राधान्य रहता है; जबकि गैर-सरकारी पत्रों में अनौपचारिकता का। पत्र व्यक्तित्व का दर्पण होते हैं अत: एक अच्छे पत्र में निम्नलिखित विशेषताओं का होना आवश्यक है 1. सरलता-पत्र की भाषा सरल,स्पष्ट तथा स्वाभाविक होनी चाहिए। कठिन शब्दों का प्रयोग एवं भाषा की जटिलता पत्र को नीरस बना देते हैं। 2. संक्षिप्तता-पत्रों में संक्षिप्तता आवश्यक होती है इसके लिए सटीक एवं सार्थक शब्दों में बात कहनी चाहिए अनर्गल शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए। इसके लिए विषय एवं भाषा की पूर्ण जानकारी अनिवार्य है। 3. शुद्धता-शुद्धता से तात्पर्य भाषागत एवं तथ्यगत शुद्धि से है। पत्र में जो भी बात लिखी जाए अथवा जिसकी भी सूचना दी जाए वह स्पष्ट होनी चाहिए। द्विअर्थक शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए तथा पूर्वापर प्रकरण पत्रों आदि को ध्यान में रखकर तथ्य दिये जाने चाहिए। 4.विनम्रता-विनम्रता एवं शिष्टता शिक्षा की पहचान है। शील एवं विनम्रता शिक्षित होने का प्रथम लक्षण है.। शिष्टता और शालीनता से बिगड़े हुए एवं दुष्कर कार्य भी सहज में पूरे हो जाते हैं। अतः पत्र की भाषा संयत एवं शिष्ट होनी चाहिए। 5. पूर्णता-विषय से सम्बद्ध सभी आवश्यक बातों को एक ही बार में कह देना पत्र लेखक की सफलता है जबकि पुनश्च जोड़ना उसकी कमजोरी। 6. क्रमबद्धता-जब पत्र में कई विचार एक साथ-प्रयुक्त किए जा रहे हों तो सभी विचारों को पृथक्-पृथक् अनुच्छेदों में क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत करना चाहिए। ध्यान रखना चाहिए कि सबसे आवश्यक बात सर्वप्रथम और सामान्य बात सबसे अन्त में लिखी जानी चाहिए। निष्कर्षतःएक अच्छे पत्र में चार 'C' अपेक्षित हैं अर्थात् Clarity (स्पष्टता), Conciseness (संक्षिप्तता), Correctness (शुद्धता), Courtesy (शिष्टता)। इन चारों विशेषताओं से युक्त पत्र को श्रेष्ठ पत्र की कोटि में गिना जाता है।
पत्राचार से आप क्या समझते हैं ?मनुष्य की भावनाओं की स्वाभाविक अभिव्यक्ति पत्राचार से ही होती है। निश्छल भावों और विचारों का आदान-प्रदान पत्रों द्वारा ही सम्भव है। पत्र लेखन दो व्यक्तियों के बीच होता है। इसके द्वारा दो हृदयों का सम्बन्ध दृढ़ होता है। अतः पत्राचार ही एक ऐसा साधन है, जो दूरस्थ व्यक्तियों को भावना की एक संगमभूमि पर ला खड़ा करता है और दोनों में आत्मीय सम्बन्ध स्थापित करता है। पति-पत्नी, भाई-बहन, पिता-पुत्र- इस प्रकार के हजारों सम्बन्धों की नींव यह सुदृढ करता है। व्यावहारिक जीवन में यह वह सेतु है, जिसमें मानवीय सम्बन्धों की परस्परता सिद्ध होती है। अतएव पत्राचार का हमारे जीवन में बड़ा महत्त्व है। आधुनिक युग में पत्र लेखन को कला की संज्ञा दी गयी है। पत्रों में आज कलात्मक अभिव्यक्तियाँ हो रही हैं। साहित्य में भी इनका उपयोग होने लगा है। जिस पत्र में जितनी स्वाभाविकता होगी। वह उतना ही प्रभावकारी होगा। एक अच्छे पत्र के लिए कलात्मक सौन्दर्यबोध और अंतरंग भावनाओं का अभिव्यंजन आवश्यक है। एक पत्र में उसके लेखक की भावनाएँ ही व्यक्त नहीं होतीं, बल्कि उसका व्यक्तित्व भी उभरता है। इससे लेखक के चरित्र, दृष्टिकोण, संस्कार, मानसिक स्थिति, आचरण इत्यादि सभी एक साथ झलकते हैं। अतः पत्र-लेखन एक प्रकार की कलात्मक अभिव्यक्ति है। पत्रों के प्रकारसामान्यतः पत्र तीन प्रकार के होते हैं- 1. सामाजिक पत्र, 2. व्यापारिक पत्र, 3. सरकारी पत्र 1. सामाजिक पत्रगैरसरकारी पत्रव्यवहार को ‘सामाजिक पत्राचार’ कहते हैं। इसके अन्तर्गत वे पत्रादि आते हैं, जिन्हें लोग अपने दैनिक जीवन के व्यवहार में लाते हैं। इस प्रकार के पत्रों के अनेक ऊपर प्रचलित हैं, जैसे 1.सम्बन्धियों के पत्र, 2. बधाई पत्र, 3. शोक पत्र, 4. परिचय पत्र, 5. निमंत्रण पत्र, 6. विविध-पत्र । पत्र-लेखन सभ्य समाज की एक कलात्मक देन है। मनुष्य चूँकि सामाजिक प्राणी है इसलिए वह दूसरों के साथ अपना सम्बन्ध किसी-न-किसी माध्यम से बनाये रखना चाहता है। मिलते-जुलते रहने पर पत्र लेखन की तो आवश्यकता नहीं होती, पर एक-दूसरे से दूर रहने पर एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के पास पत्र लिखता है। सरकारी पत्रों की अपेक्षा सामाजिक पत्रों में कलात्मकता अधिक रहती है, क्योंकि इनमें मनुष्य के हृदय के सहज उद्गार व्यक्त होते हैं। इन पत्रों को पढ़कर हम किसी भी व्यक्ति के अच्छे या बुरे स्वभाव या मनोवृत्ति का परिचय आसानी से पा सकते हैं। एक अच्छे सामाजिक पत्र में सौजन्य, सहृदयता और शिष्टता का होना आवश्यक है। तभी इस प्रकार के पत्रों का अभीष्ट प्रभाव हृदय पर पड़ता है। 2. व्यापारिक पत्रआज का युग अर्थ-प्रधान है। प्रत्येक युग में अर्थ को सत्ता और व्यवसाय की महत्ता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सर्वोपरि रही है, तदनुरूप भाषा भी उसी के अनुकूल व्यावहारिक या व्यावसायिक रही है। व्यवसायी एक दूसरे क्षेत्र या प्रदेश की यात्रा करते रहते हैं। फलस्वरूप एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक अपना सम्बन्ध बनाये रखने के लिए पत्र लेखन की आवश्यकता पड़ती है। व्यापार या व्यवसाय से सम्बन्धित जो पत्र लिखे जाते हैं, उसे व्यापारिक पत्र कहते हैं। व्यावसायिक पत्रों की भाषा-शैली औपचारिक हो तथा बात को एकदम नपे-तुले ढंग से कहा जाना चाहिए। सभी प्रकार के पत्र में एक बात का ध्यान रखा जाना चाहिए पत्र में जो कुछ लिखा जाय अर्थात् उसमें लिखी हुई बात पढ़ने वाले की समझ में एकदम आ जानी चाहिए। आधुनिककाल में व्यवसाय की सफलता बहुत कुछ सफल पत्र-लेखन पर निर्भर रहती है, क्योंकि समस्त व्यवसाय, व्यापार पत्रों के माध्यम से ही चलाया जाता है। विश्वव्यापी व्यापारिक क्षेत्र में व्यक्तिगत सम्पर्क की सम्भावना बहुत कम होती है। 3. सरकारी पत्रराष्ट्र के कार्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए एक सुसंगठित सरकार की आवश्यकता होती है, यह सरकार कार्य संचालन की सुविधा के लिए अनेक कार्यालय खोलती है। ये कार्यालय देश के कोने-कोने में एक छोर से दूसरे छोर तक फैले होते हैं, इन सबका आपसी सम्बन्ध पत्रों द्वारा स्थापित होता है। शासकीय कर्मचारियों अथवा अधिकारियों द्वारा एक कार्यालय या विभाग से दूसरे कार्यालय अथवा विभाग को लिखे गये पत्र शासकीय अथवा सरकारी पत्र कहलाते हैं। इन पत्रों का ज्ञान सरकारी कर्मचारियों से ही नहीं अपितु व्यावसायिक संस्थाओं के कर्मचारियों के लिए भी आवश्यक होता है। प्रायः व्यावसायिक संस्थाएँ सरकारी कार्यालयों को परमिट, लाइसेन्स और ठेके आदि के लिए पत्र भेजती हैं। अतः किसी-न-किसी व्यक्ति को इसके प्रारूप तैयार करने ही पड़ते हैं। अतः प्रतिष्ठानों के लिए इस पत्र व्यवहार का ज्ञान भी उपयोगी है। सरकारी पत्र एक विशिष्ट शैली में लिखे जाते हैं। इनमें न तो पारिवारिक पत्रों के समान आत्मीयतापूर्ण वाक्य होते हैं और न ही व्यावसायिक पत्रों की भाँति औपचारिकता। ये पत्र पूर्णतः अनौपचारिक होते हैं। अतः इन पत्रों की भाषा अपेक्षाकृत सुस्त महसूस होती है। संदेह, अनिश्चय और अतिशयोक्ति, इन पत्रों के दोष माने जाते हैं। ये पत्र यथासंभव संक्षिप्त, स्पष्ट एवं निष्पक्ष होते हैं।
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पत्राचार क्या है और इसके प्रकार?पत्र लेखन दो व्यक्तियों के बीच होता है। इसके द्वारा दो हृदयों का सम्बन्ध दृढ़ होता है। अतः पत्राचार ही एक ऐसा साधन है, जो दूरस्थ व्यक्तियों को भावना की एक संगमभूमि पर ला खड़ा करता है और दोनों में आत्मीय सम्बन्ध स्थापित करता है। पति-पत्नी, भाई-बहन, पिता-पुत्र-इस प्रकार के हजारों सम्बन्धों की नींव यह सुदृढ़ करता है।
पत्राचार का मीनिंग क्या होता है?[सं-पु.] - पत्र-व्यवहार; ख़तोकिताबत; लिखा-पढ़ी; (कॉरेस्पांडेंस)।
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