पत्र के प्रमुख भाग कितने हैं स्पष्ट कीजिए? - patr ke pramukh bhaag kitane hain spasht keejie?

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पत्र सम्प्रेषण का एक सशक्त माध्यम हैं। दैनिक व्यवहार में पत्र दो व्यक्तियों में कम समय में कम से कम व्यय में एक ऐसा संपर्क सूत्र है, जिसमें पत्रों के माध्यम से व्यक्ति अपने मानस पटल के विभिन्न भावों को न केवल खोलता है अपितु अपने संबंधों को सुदृढ़ भी बनाता है।

पत्र लेखन हेतु आवश्यक बिन्दु

(1) पत्र - लेखन की भाषा शैली सरल, सुबोध, विषयानुकूल होनी चाहिए।
(2) उसकी भाषा मे विषयानुकुल, गरिमा, शालीनता, शिष्टता प्रकट होनी चाहिए।
(3) लेखन सुंदर, सुवाच्य, होना चाहिए तथा विचारों एवं भावों में स्पष्टता होनी चाहिए।
(4) विराम चिन्हों का आवश्यकतानुसार, यथास्थान प्रयोग होना चाहिए।
(5) शीर्षक, दिनांक, अभिवादन, विषय- वस्तु पत्र की समाप्ति क्रमानुसार होनी चाहिए।
(6) पत्र को पूर्ण रूप से प्रभावशाली बनाने के लिए, उसमें विषयोचित योग्यता, स्वास्थ्य दृष्टिकोण का भाव होना चाहिए।

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पत्र लेखन के महत्वपूर्ण अंग

(1) प्रेषक का पता और तिथि― पत्र - लेखन के लिए जिस कागज का प्रयोग किया जाता है उसके उपर के स्थान पर दाहिनी और प्रेषक का पता एवं पत्र लेखन की तिथि का उल्लेख होना चाहिए।
उदाहरण के लिए ― गाँधीचौक सिवनी म.प्र. दिनांक 30 -06- 2021

(2) मूल संबोधन – पत्र के बायीं और घनिष्ठता, श्रद्धा या स्नेह-सूचक संबोधन होना चाहिए।
जैसे- पूज्य, माननीय, श्रद्धेय, श्रीमान्।
1. प्रति,
श्रद्धेय गुरुदेव।
2. प्रति,
माननीय आयुक्त
3. प्रति,
कुलपति, रानी दुर्गावतीवि.वि. जबलपुर

जहाँ पर सम्बोधन स्पष्ट नहीं होते हैं, वहाँ पर सेवा में, प्रति, या पद नाम का नाम होता है। उसके आगे समासचिह्न देकर नीचे पद का नाम और संस्था का नाम एवं पता आदि लिखे जाते हैं।

(3) अभिवादन या शिष्टाचार – संबोधन की पंक्ति के अंतिम वर्ण के नीचे से एक नयी पंक्ति प्रारंभ करके अभिवादन या शिष्टाचार सूचक शब्द लिख जाते हैं। इसके अन्तर्गत बड़ों को प्रणाम, बराबर वालों को नमस्कार, नमस्ते, छोटे में को शुभाशीष, आशीर्वाद, प्रसन्न रहों आदि लिखा जाता है।
स्मरणीय है, कि यहाँ अभिवादन या शिष्टाचार– सूचक शब्द गुरुजनों के लिए प्रयुक्त होता है।

(4) विषय–वस्तु – विषय -वस्तु में पत्र की विषय - वस्तु को अनुच्छेदों में व्यवस्थित रूप में लिखा जाता है।

(5) पत्र की समाप्ति – पत्र की विषय- वस्तु या विषय सामग्री को पूरा करने के बाद पत्र को समाप्त करने के लिए, मंगल कामना सूचक या धन्यवाद सूचक उक्तियों का प्रयोग करके सम्बोधन वाले व्यक्ति के साथ अपने संबंध दर्शाते हुए, अंत में हस्ताक्षर किया जाता है ।
जैसे– धन्यवाद ! आपका आज्ञाकारी, शुभेच्छु, या भवदीय या प्राचार्य आदि लिखा जाता है।

(6) संबोधन वाले व्यक्ति का पता – पत्र के अंत में संबोधन वाले व्यक्ति या पद के नाम का पूरा पता पत्र की बायीं और लिखा जाता है।

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पत्रों के प्रकार

पत्र लेखन अनेक प्रकार से होता है, जिसमें, कुछ आदेशात्मक कुछ निवेदनात्मक, सूचनात्मक, विवरणात्मक, व्यावसायिक आदि पत्र होते हैं, तो कुछ निजी, पारिवारिक पत्र भी होते हैं। इन पत्रों को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है।
(1) औपचारिक पत्र।
(2) अनौपचारिक पत्र।

औपचारिक पत्रों के अंतर्गत– अधिकारियों, कार्यालय प्रमुखों, किसी संस्था या फर्म के नियंत्रको या किसी दुकानदार को पत्र लिखे जाते हैं। सामान्य व्यक्ति के रूप में लिखे जाने वाले पत्र आधिकारिक पत्र की श्रेणी में आते हैं।
उदाहरण के लिए गैस कनेक्शन, आदि लगाने हेतु, व्यापार, व्यवसाय, शासकीय कार्य आदि विषयों से संबंधित पत्र, अधिकारिक पत्र कहलाते हैं।
अनौपचारिक पत्रों के अंतर्गत पारिवारिक या निजी पत्र नहीं आते हैं। इसमें आत्मीयता वैयक्तिकता, विश्वसनीयता, एवं निकटता का भाव व्यक्त होता है, इन पत्रों को व्यक्तिगत पत्र भी कहा जाता है।
उदाहरण– पति-पत्नी के मध्य लिखे जाने वाले पत्र

व्यवसायिक– पत्र
व्यवसायिक जगत में दो पक्षों के बीच होने वाला पत्र – व्यवहार व्यवसायिक पत्र – लेखन की श्रेणी में आता है।
(1) व्यवसायिक पत्रों पर सर्वप्रथम प्रेषक संस्था का नाम, टेलीफोन नंबर, और डाक का पूरा पता होना चाहिए।
(2) पत्र के दाये तरफ दिनांक होना चाहिए।
(3) संबोधन, के पश्चात् विषय – संकेत प्राप्तकर्ता का नाम पता लिखा जाना चाहिए। नीचे पत्र प्रेषक का पूरा नाम, पद, नाम के नीचे प्रबंधक व्यवस्थापक की सील अंकित की जानी चाहिए।

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शासकीय – पत्र
शासकीय – पत्र एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय में अथवा दो राज्य सरकारों के बीच, विदेशी कार्यालयों, सरकारी, गैर सरकारी संगठनों के बीच संबंध स्थापित करने हेतु परस्पर प्रेषित किये जाते हैं । इसे अंग्रेजी में ऑफिस ऑर्डर कहते हैं शासकीय पत्र को ऑफिशियल-पत्र कहते हैं।

शासकीय – पत्रों के लेखन में आवश्यक बातें

(1) शासकीय पत्र के सबसे ऊपर दायी और संबंधित कार्यालय, संस्था या सरकार का नाम अंकित होता हैं।
(2) उसके नीचे कार्यालय से पत्र भेजने की तिथि रजिस्टर (आवक जावक ) में अंकित संख्या का उल्लेख होता है।
(3) इसके पश्चात बायीं और पहले प्रेषक का पद, नाम पता लिखा रहता है, उसके नीचे बायीं ओर ही पत्र - प्राप्तकर्ता का नाम तथा पत्र लिखा जाता है।
(4) इसके पश्चात स्थान तथा दिनांक का उल्लेख होता हैं। उसके नीचे की पंक्ति से पत्र के प्राय: बीच बीच में विषय का उल्लेख होता है, जैसे छात्रवृत्ति अनुदान हेतु।
(5) पत्र के वर्णित विषय - के पूर्व संबोधन किया जाता है जैसे - महोदय, प्रिय महोदय, मान्यवर ।
(6) पत्र का प्रारंभ संदर्भ देते हुए, किया जाता है।
(7) प्रतिपादित की गई विषय - वस्तु को परिच्छेदों में विभाजित कर लिया लिखना चाहिए।
(8) पत्र में संबंधित वरिष्ठ अधिकारी के आदेश का पूर्णतः समावेश होना चाहिए। शासकीय पत्र की भाषा शिष्ट संयत व विषयनुकूल होनी चाहिए।
(9) शासकीय पत्र सदैव अन्य पुरुष या प्रथम पुरुष में लिखा जाता है । क्योंकि यह पत्र पूर्ण रूप से औपचारिक होता है।
(10) पत्र की समाप्ति पर दायीं और आपका भवदीय, या यथोचित लिखना चाहिए ।
(11) अंत में प्रेषक का नाम, पद लिखकर पद मुद्रा अंकित की जानी चाहिए तथा जिन संबंधित व्यक्तियों को प्रतिलिपियाँ भेजी जानी है तथा अंत में उनकी संख्या का उल्लेख किया जाना चाहिए।

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शासकीय या सरकारी पत्रों के आवश्यक के गुण
1. यथार्थ विषय वस्तु का पूर्णरूपेण प्रतिपादन।
2. संक्षिप्तता होनी चाहिए ।
3. महत्वपूर्ण बातों को इस प्रकार लिखें कि उसमें पूर्णता का भाव आ जाये।
4. सरकारी पत्रों का प्रत्येक अनुच्छेद सुस्पष्ट, क्रमबद्ध, होना चाहिए।
5. पत्र की भाषा सदैव नम्र होनी चाहिए।
6. पत्रों के प्रारूपों में निश्चिता होनी चाहिए।
7. पत्र की भाषा शैली सरल सहज प्रभावोत्पादक परिमार्जित, रोचक, तथा छोटे सुस्पष्ट वाक्यों की शब्दावली से युक्त होनी चाहिए।

अर्ध्दशासकीय पत्र

शासकीय पत्रों की औपचारिक शैली पहेली अर्ध्दसरकारी पत्रों के व्यवहार में प्रयुक्त होती है, इसमें एक अधिकारी, दूसरे अधिकारी को व्यक्तिगत नामों से पत्र - व्यवहार करता है। इसमें औपचारिकता का निर्वाह होता है। इसकी भाषा मैत्रीपूर्ण, संयत, सहज होती है। पत्रों में संबोधन के स्थान पर उपनाम का प्रयोग होता है।इसकी भाषा का स्वरूप कुछ इस प्रकार होता है।
जैसे मुझे आदेश हुआ है, के स्थान पर - मुझे इस बात की प्रसन्नता है, का प्रयोग होता है, तथा अंत में - आपका शुभेच्छु या आपका, अपना का प्रयोग होता है।

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पत्र लेखन एक कला है । इससे जहाँ विचारों को व्यक्त करने की शैली का विकास होता है, वहीं भाषा ज्ञान भी समृद्ध होता है। आज हर क्षेत्रों में पत्रों द्वारा कार्य होते हैं। हम अपने रोजमर्रा के जीवन में अपने रिश्तेदारों, सगे संबंधियों और मित्रों को पत्र लिखते रहते हैं।

शासकीय, अशासकीय, व्यवसायिक, पारिवारिक सभी काम प्रायः पत्रों के द्वारा ही होते हैं। पत्र समाचार आदान एवं प्रदान का प्रमुख माध्यम है।

पत्र लेखन कला पर विचार करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि–
1.पत्र किसे लिखा जा रहा है ।
2.पत्र का विषय (अन्तर्वस्तु) उसका कलेवर क्या है?
3. पत्र की संरचना कैसी है?
4. एक अच्छा पत्र कैसे लिखा जाये।

एक आदर्श पत्र की संरचना में निम्नलिखित बातें ध्यान रखनी चाहिए-

1. जहाँ पत्र लिखा जा रहा है, वहाँ का नाम, दिनांक, साधारण पत्रों में तो केवल दिनांक पत्र के दाहिनी तरफ लिखा जाता है।
2. पत्र के बाँयी और जिसे पत्र लिखा जा रहा है उसके लिए संबोधन के शब्द तथा अभिवादन लिखा जाता है। जैसे ही अपने से बड़े को– 'आदरणीय', 'पूजनीय', 'पूज्य', 'माननीय', 'मान्यवर', 'महोदय', आदि बराबरी वालों को 'नमस्ते' छोटों के लिए चिरंजीवी 'सस्नेह', आशीष, शुभार्शीवाद आदि

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1. प्राथमिक शाला के विद्यार्थियों हेतु 'गाय' का निबंध लेखन
2. निबंध- मेरी पाठशाला

पत्र लेखन हेतु उदाहरण सारणी

जिस को पत्र लिखा – पिता, चाचा, नाना, फूफा, मौसा, बड़े भाई, मामा, जीजा
संबोधन – पूज्य /पूज्यनीय
अभिवादन – सादर चरण स्पर्श
प्रेषक परिचय – आपका आज्ञाकारी

जिस को पत्र लिखा – मां,चाची, बुआ, मौसी, भाभी, बहन को
संबोधन – पूज्या /पूज्यनीया
अभिवादन – सादर चरण स्पर्श
प्रेषक परिचय – आपका आज्ञाकारी

जिस को पत्र लिखा – मित्र को, बराबरी वाले
संबोधन – प्रिय मित्र
अभिवादन – सप्रेंम नमस्ते, मधुर स्मृति
प्रेषक परिचय – तुम्हारा मित्र

जिस को पत्र लिखा – सखी को, सहेली को
संबोधन – प्रिय सखी
अभिवादन – सादर वंदे, सप्रेंम नमस्ते
प्रेषक परिचय – तुम्हारी सखी

जिस को पत्र लिखा – छोटे बच्चों को
संबोधन – प्रिय चिंटू, चिरंजीव
अभिवादन – शुभाशीष, प्रसन्न हो!
प्रेषक परिचय – तुम्हारा चाचा, तुम्हारा मामा

जिस को पत्र लिखा – गुरू को
संबोधन – श्रध्देय, गुरुवर, महोदय, मान्यवर, महोदय
अभिवादन – सादर चरण स्पर्श, सादर अभिवादन
प्रेषक परिचय – आपका आज्ञाकारी

जिस को पत्र लिखा – अपरिचित को
संबोधन – महोदय
अभिवादन – सादर अभिवादन
प्रेषक परिचय – भवदीय

अंत में शुभकामना एवं पत्र समाप्ति पर सम्मान व्यक्त करते हुए हस्ताक्षर करना है।
1. पत्र की भाषा, स्पष्ट एवं स्पष्ट हो।
2. भावनुकुल हो ।
3. जानकारी पूर्ण हो।
4. अनावश्यक बातों का दुहराव ना हो।
5. वांछित/अपेक्षित जानकारी हो।

हाईस्कूल एवं हायर सेकेण्डरी स्तर पर पूछे जाने वाले कुछ परीक्षापयोगी महत्वपूर्ण पत्रों एवं उनका संक्षिप्त विवरण

पारिवारिक पत्र

1. पिताजी को पत्र अध्ययन संबंधी जानकारी एवं समस्या विषयक।
2. पिताजी को पत्र पुस्तकें क्रय करने हेतु राशि भेजने विषयक।
3. परीक्षा में असफल होने पर छोटे - भाई को सांत्वना पत्र।
4. कुसंगति में फंसे हुए छोटे - भाई को मार्गदर्शन देते हुए पत्र।
5. परीक्षा में सफल होने पर मित्र को बधाई पत्र।
6. अपनी बहन के विवाह में सम्मिलित होने हेतु मित्र को पत्र।

शिकायती पत्र

7. डाक वितरण की अनियमितता संबंधी डाक अधीक्षक को पत्र ।
8. नगर के स्वास्थ्य 'अधिकारी' को शिकायती पत्र।
9. निगम अध्यक्ष को 'पानी की किल्लत' समस्या विषय पत्र।
10. श्रीमान जिलाधीश को ध्वनि विस्तारक यंत्र के (परीक्षाकाल अवधि में) प्रतिबंध हेतु।
11. 'पुलिस अधीक्षक' को चोरी की घटनाओं में निरंतर वृद्धि समस्या विषयक।

विद्यालयीन पत्र

12. शाला के प्रधानाचार्य महोदय को, अवकाश छुट्टी हेतु आवेदन पत्र।
13. शुल्क माफी हेतु शाला के प्रचार प्रधानाचार्य को आवेदन पत्र।
14. शाला के 'प्रधान अध्यापक' महोदय को स्थानांतरण प्रमाणपत्र प्रदान करने में विषयक पत्र।
15. सचिव मा.शिक्षा मंडल भोपाल (म.प्र.) को बोर्ड परीक्षा की अंकसूची की द्वितीय प्रति उपलब्ध कराने हेतु पत्र।

कुछ अन्य पत्र

16. 'प्रकाशक' को अपनी कक्षा हेतु पूस्तके क्रय करने हेतु पत्र।
17. जिला शिक्षा अधिकारी को शिक्षक पद पर नियुक्ति हेतु आवेदन पत्र।

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1. व्याकरण क्या है
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3. वर्ण और अक्षर में अन्तर
4. स्वर के प्रकार
5. व्यंजनों के प्रकार-अयोगवाह एवं द्विगुण व्यंजन
6. व्यंजनों का वर्गीकरण
7. अंग्रेजी वर्णमाला की सूक्ष्म जानकारी

I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
infosrf.com

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(संबंधित जानकारी नीचे देखें।)

पत्र के कितने भाग होते हैं?

पत्र लेखन के मूल रूप से तीन भाग होते हैं। प्रारंभ – यानि पत्र के आरंभ में पत्र लिखकर हम प्रेषक के पते का अभिवादन करने लगते हैं। मध्य भाग – यानी पत्र-लेखन में मूल विषय के बारे में व्यक्त करने के लिए कि हम अपने पत्र में मुख्य समाचार विस्तार से लिखते हैं, जो कि 150 से 200 शब्दों में है।

पत्र कितने प्रकार के होते हैं उनके नाम लिखिए?

औपचारिक पत्र और अनौपचारिक दोनों ही इस प्रकार से लिखा जाता है-

पत्र के मुख्य अंग कौन कौन से हैं?

औपचारिक पत्रों में यह प्रायः 'मान्यवर', 'महोदय' आदि शब्द-सूचकों से दर्शाया जाता हैं जबकि अनौपचारिक पत्रों में यह 'पूजनीय' 'स्नेहमयी', 'प्रिय' आदि शब्द-सूचकों से दर्शाया जाता हैं। (3) विषय-वस्तु- किसी भी पत्र में विषय-वस्तु ही वह महत्त्वपूर्ण अंग हैं, जिसके लिए पत्र लिखा जाता हैं। इसे पत्र का मुख्य भाग भी कहते हैं।

पत्र लेखन क्या है पत्र के प्रकारों का वर्णन कीजिए?

औपचारिक पत्र लेखन हिंदी लिखते समय ध्यान रखने योग्य बातें इस प्रकार के पत्रों में नपी-तुली भाषा का प्रयोग किया जाता है। इसमें अनावश्यक बातों (कुशलक्षेम आदि) का उल्लेख नहीं किया जाता। पत्र का आरंभ व अंत प्रभावशाली होना चाहिए। पत्र की भाषा-सरल, लेख-स्पष्ट व सुंदर होना चाहिए।

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