पश्च स्वर की संख्या कितनी होती है? - pashch svar kee sankhya kitanee hotee hai?

इसे सुनेंरोकेंमध्य स्वर का क्या परिभाषा होता है जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का मध्य भाग प्रयोग होता है उसे मध्य स्वर कहते हैं जैसे: अ (1). मध्य स्वर कितने होते हैं? हिंदी वर्णमाला किए गाना स्वर में से मात्र एक मध्य स्वर अ है. जैसा कि आप पहले से जानते होंगे हिंदी वर्णमाला में कुल वर्णों की संख्या 11 है.

संवृत स्वर कौन से हैं?

इसे सुनेंरोकेंस्वर उच्चारण की वह अवस्था है जिसमें मुख विवर कम से कम खेलते हैं | इस अवस्था में उच्चरित होने वाले स्वरे को संवृत स्वर कहते हैं ।

अर्ध स्वर कौन से होते हैं?

इसे सुनेंरोकेंहिन्दी में ( य, व )अर्धस्वर हैं। ईषत/अंत:स्थ व्यंजन अथवा अर्ध स्वर व्यंजन कहलाते है – य, र, ल, व को अंत:स्थ व्यंजन कहते है। यह आधे स्वर और आधे व्यंजन कहलाते है।

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स्पर्श व्यंजन से क्या तात्पर्य है?

इसे सुनेंरोकेंस्वनविज्ञान में स्पर्श व्यंजन (plosive consonant या stop consonant) ऐसा व्यंजन होता है जिसमें व्यंजन उच्चारित करते हुए मुख के किन्हीं दो भागों का स्पर्श कराने से वायु-प्रवाह पूरी तरह से रोक दिया जाए।

संयुक्त स्वर क्या है?

इसे सुनेंरोकेंहिन्दी में केवल निम्नलिखित ।। स्वर-ध्वनियां हैं- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए.

वृत्ताकार स्वरों की संख्या कितनी है?

इसे सुनेंरोकेंनोट : मानक रूप से हिंदी में स्वरों की संख्या 11 मानी गई है।

आ स्वर कौन सा है?

इसे सुनेंरोकेंआ, ई, ऊ, ॡ, ॠ ये दीर्घ स्वर हैं।

हिंदी में अर्ध स्वर कितने हैं?

इसे सुनेंरोकेंहिंदी भाषा में अर्द्ध स्वरों की संख्या दो होती है- य तथा व । पहले य, र, ल, व को अर्ध स्वर माना जाता था परंतु आधुनिक भाषाविदों ने केवल य और व को ही अर्ध स्वर की मान्यता दी है।

हिंदी वर्णमाला में स्वरों की संख्या कितनी है?

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इसे सुनेंरोकेंहिंदी में वर्णों (स्वर और व्यंजन) की कुल संख्या 52 है, जिसमें 11 स्वर और 41 व्यंजन होते हैं। इन वर्णों के व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध समूह को वर्णमाला कहते हैं। वर्ण हिन्दी भाषा में प्रयुक्त सबसे छोटी इकाई होती है।

क्ष त्र ज्ञ को क्या कहा जाता है?

इसे सुनेंरोकेंक्ष, त्र और ज्ञ तीनों संयुक्ताक्षर व्यंजन कहा जाता हैं, क्योंकि ये दो वर्णों को जोड़कर संयुक्त वर्ण बनते हैं। क्ष = क् + ष ! क में हलन्त ( ् ) और ष ( मूर्धन्य ) को एक साथ लिखने पर क्ष वर्ण बन जाता है।

त्र में कितनी मात्रा है?

इसे सुनेंरोकें(2) दीर्घ स्वरों की मात्रा 2 होती है जिसे गुरु कहते हैं, जैसे-आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ की मात्रा 2 है। गुरु को 2 या S या गा से व्यक्त किया जाता है। (3) व्यंजनों की मात्रा 1 होती है , जैसे -क,ख,ग,घ / च,छ,ज,झ / ट,ठ,ड,ढ,ण / त,थ,द,ध,न / प,फ,ब,भ,म /य,र,ल,व,श,ष,स,ह।

इसे सुनेंरोकेंजिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का आगे का भाग सक्रिय रहता है, उन्हें ‘अग्र स्वर’ कहते हैं। जैसे– अ, इ, ई, ए, ऐ।

वर्ण- भाषा की सबसे छोटी इकाई जिसके खंड या टुकड़े नहीं किए जा सकते हैं, उसे वर्ण कहते हैं। जैसे- अ, आ, इ, ई आदि।

वर्णमाला- वर्णों की व्यवस्थित समूह को ‘वर्णमाला’ कहते हैं। वर्णमाला में वर्णों की कुल संख्या 52 है। हिन्दी वर्णमाला के समस्त वर्णों को दो भागों में विभक्त किया गया है-

1.स्वर और 2. व्यंजन

  1. स्वर- स्वतंत्र रूप से बोले जाने वाले वर्ण को ‘स्वर’ कहते हैं। इसका उच्चारण बिना किसी दूसरे वर्ण की सहायता से होता है। अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ ( स्वर की संख्या 11 हैं)

अयोगवाह- अयोगवाह दो होते हैं- अं को अनुस्वार कहते हैं और अ: को विसर्ग कहते हैं।

स्वरों का वर्गीकरण- मात्रा / उच्चारण और काल के आधार पर स्वरों को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है।

हर्स्व स्वर (लघु स्वर)- जिनके उच्चारण में कम से कम एक मात्रा का समय लगता है, उसे हर्स्व स्वर कहते है। हर्स्व स्वर चार हैं – अ, इ, उ, ऋ,- इन्हें ‘मूल स्वर’ या एकमात्रिक स्वर भी कहते हैं।

दीर्घ स्वर- इनके उच्चारण में हर्स्व स्वर से दो गुणा अधिक समय लगता है। इनकी संख्या सात हैं। इन्हें गुरु स्वर भी कहते हैं। आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।

आगत या प्लुत स्वर- जिन स्वरों के उच्चारण में हर्स्व स्वर से तीन गुणा अधिक समय लगता है, उसे प्लुत स्वर कहते हैं जैसे – हे राम, ओम (ॐ)।

स्वर वर्णों के उच्चारण के स्थान

अ, आ- कंठ

इ, ई- तालु

उ, ऊ- ओष्ठ

ऋ- मूर्धा

ए, ऐ- कंठ, तालु,

ओ औ- कंठ, ओष्ठ

जीभ के प्रयोग के आधार पर-

अग्र स्वर- जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का अग्र या अगला भाग काम करता है, उसे अग्र स्वर कहते हैं। जैसे- इ, ई, ए, ऐ। इनका उच्चारण जीभ के अगले भाग से होता है।

मध्य स्वर- जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का मध्य यानी बीच का भाग काम करता है, उसे मध्य स्वर कहते हैं। जैसे- ‘अ’। हिन्दी में ‘अ’ स्वर केन्द्रीय स्वर है।

पश्च स्वर- जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का पश्च यानी पिछला भाग काम करता है, उसे पश्च स्वर कहते हैं। जैसे- आ, उ, ऊ, ओ, औ, अं, अ:। इनका उच्चारण जीभ के पिछले भाग से किया जाता है।

मुँह के खुलने के आधार पर स्वरों का उच्चारण-

विवृत (open)- जिन स्वरों का उच्चारण करते समय मुँह पूरा खुलता है। उसे विवृत कहते हैं। ‘आ’ विवृत स्वर है।

अर्धविवृत (half open)- जिन स्वरों का उच्चारण करते समय मुँह आधा खुलता है. उसे अर्ध विवृत कहते है। जैसे- अ, ए, औ, अं। ये चारों स्वर अर्धविवृत हैं।

संवृत (close)- जिन स्वरों का उच्चारण करते समय मुँह सबसे कम खुलता है, उसे संवृत कहते हैं। जैसे- इ, ई, उ, ऊ। इन स्वरों का उच्चारण करते समय मुँह कम खुलता है।

अर्धसंवृत- (half close) जिन स्वरों का उच्चारण करते समय मुँह-द्वार आधा बंद रहता है, उसे अर्धसंवृत कहते हैं। जैसे- ‘ए’ और ‘ओ’ ये स्वर अर्धसंवृत हैं।

ओष्ठ की गोलाई के अधार पर स्वर दो प्रकार के माने गए हैं

अवृतामुखी- जिन स्वरों के उच्चारण करते समय होठ अवृतामुखी या गोलाकार नहीं होता है, उसे अवृतामुखी स्वर कहते हैं। जैसे- अ, आ, इ, ई, ए, ऐ। इनके उच्चारण के समय ओष्ठ का आकार गोल नहीं होता है।

वृतामुखी- जिन स्वरों के उच्चारण के समय होठ वृतामुखी या गोलाकार हो जाता है, उसे वृतामुखी स्वर कहते हैं। जैसे- उ, ऊ, ओ, औ। इनका उच्चारण करते समय ओष्ठ आगे से गोलाकार हो जाता है।

हवा के नाक और मुहं के उच्चारण के आधार पर स्वरों को दो भागों में विभाजित किया गया है।

निरनुनासिक स्वर- (मौखिक स्वर)- जिन स्वरों के उच्चारण में वायु केवल मुख से निकलती है उसे निरनुनासिक स्वर कहते है। जैसे- अ, आ, इ, ई आदि। वैसे सभी 11 स्वर निरनुनासिक स्वर हैं।

अनुनासिक स्वर- जिन स्वरों के उच्चारण करते समय हवा मुँह के साथ-साथ नाक से भी निकलता है, उसे अनुनासिक स्वर कहते हैं। स्वर के ऊपर चंद्रबिंदु लगाकर अनुनासिक बनाया जाता है जैसे- अं, अ:।

घोष के आधार पर-

घोष का अर्थ होता है, स्वरतंत्रियों में स्वास का कम्पन होना। स्वरतंत्री में जब कम्पन होता है, तब संघोष ध्वनियाँ उत्पन्न होती हैं। सभी स्वर संघर्ष ध्वनियाँ हैं।                

व्यंजन- व्यंजनों का उच्चारण स्वरों की सहायता से होता है। हिन्दी में 33 व्यंजन हैं।

‘क’ वर्ग-  क, ख, ग, घ, ङ  (5) उच्चारण स्थान- कंठ्य।

‘च’ वर्ग-  च, छ, ज, झ, ञ  (5) उच्चारण स्थान- तालव्य।

‘ट’ वर्ग-  ट, ठ, ड, ढ, ण   (5) उच्चारण स्थान- मूर्धन्य। ‘ट’ से ‘ण’ को कठोर

    व्यंजन कहते हैं। ‘ड’ और ‘ढ’ को उत्क्षिप्त व्यंजन  कहते हैं।

‘त’ वर्ग–  त, थ, द, ध, न  (5) उच्चारण स्थान- दन्त्य।

       ‘प’ वर्ग-   प, फ, ब, भ, म (5) उच्चारण स्थान- ओष्ठ्य।

‘क’ से लेकर ‘म’ तक 25 अक्षर हैं। इन सभी व्यंजनों को स्पर्श व्यंजन कहते हैं।

य, र, ल, व, श को अन्तस्थ व्यंजन कहते हैं।

श, ष, स, ह को उष्ण व्यंजन कहते हैं। इनका उच्चारण (काकल्य) घर्षण से होता है।

क्ष, त्र, ज्ञ, श्र को संयुक्त व्यंजन कहते हैं। दो या दो से अधिक व्यंजनों के मिलने से जो व्यंजन बनते हैं उन्हें संयुक्त व्यंजन कहते हैं।

पश्च स्वरों की संख्या कितनी होती है?

पश्च स्वरों का उच्चारण करते समय जीभ के पिछले भाग में कम्पन होता है, जिसके कारण इन स्वरों को पश्च स्वर कहते हैं। पश्च स्वरों की संख्या पाँच होती है। हिंदी वर्णमाला में आ, उ, ऊ, ओ, औ को पश्च स्वर कहते हैं।

पश्च स्वर कौन कौन होते हैं?

पश्च स्वर- जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का पश्च यानी पिछला भाग काम करता है, उसे पश्च स्वर कहते हैं। जैसे- आ, उ, ऊ, ओ, औ, अं, अ:। इनका उच्चारण जीभ के पिछले भाग से किया जाता है।

प्लुत स्वर की संख्या कितनी होती है?

प्लुत स्वर की संख्या नहीं होती है, अर्थात हिन्दी व्याकरण के स्वर वर्ण में यह नहीं होता है, लेकिन इसमें स्वर के ही गुण होते हैं। इसे लिखते समय (ऽ) से दर्शया जाता है।

5 स्वर कितने होते हैं?

हिंदी भाषा में स्वरों की संख्या 5 होती है जो इस प्रकार है- ए, ऐ, ओ, औ, ऋ।