प्रयोजनमूलक हिंदी के विविध रूप कौन कौन से हैं? - prayojanamoolak hindee ke vividh roop kaun kaun se hain?

प्रयोजनमूलक हिन्दी का स्वरूप
प्रस्तावना:
जब हम प्रयोजनमूलक हिन्दी की बात करते हैं,तो हमें हिन्दी के विविध रूपों को समझने की आवश्यकता पड़ती है। प्रश्न उठता है कि ये विविध रूप कौन-कौन से हैं जबकि भाषा तो एक ही है? बिल्कुल भाषा तो एक ही है पर किसी भी भाषा के प्रकार्य स्थानानुसार परिवर्तित होते रहते हैं।जब से खड़ी बोली हिन्दी का विकास हुआ है,हिन्दी अपने प्रकार्य निश्चित करते हुए अपना सफर तय करती रही है। यह बात हर भाषा पर लागू होती है। चूँकि बात यहाँ प्रयोजनमूलक हिन्दी की बात हो रही है अतः हिन्दी के विविध रूपों का अर्थ हम परिभाषित करते हैं कि अलग-अलग स्थितियों या स्थानों में बोली जाने वाली हिन्दी का स्वरूप भी अलग-अलग होता है। सामान्य बोलचाल की भाषा साहित्य या सृजनात्मक लेखन की भाषा से भिन्न होती है,तो कार्यालयीन भाषा में औपचारिकता की अधिकता होती है। इसी तरह आज भाषा के संक्रमण काल के दौर में हमने एक ऐसी शैली विकसित कर ली है जिसे हम हिंग्लिश कह सकते हैं। हिन्दी और अंग्रेजी को मिला कर बोली जाने वाली भाषा को ही हिंग्लिश कहा जाने लगा।
इस प्रकार हिन्दी के मुख्यतः तीन रूप हमारे सामने आते हैं:
1. सामान्य बोलचाल और व्यवहार की हिन्दी

2. साहित्यिक हिन्दी

3. प्रयोजनमूलक हिन्दी

सामान्य हिन्दी के अंतर्गत हम अनौपचरिक भाषा का प्रयोग करते हैं। हम दैनिक कार्यों के संदर्भ में इसी भाषा का प्रयोग बहुत ही सरलता से करते रहते हैं क्योंकि इस भाषा का ज्ञान हमें बचपन से ही होता रहता है।
साहित्यिक हिन्दी में हमें साहित्य की विविध विधाओं के अनुरूप भाषा का स्वरूप प्रदान करना पड़ता है। सौन्दर्यानुभूति,सामाजिक,सांस्कृतिक मूल्यों का निर्वहन यह भाषा अपनी शब्दशक्तियों एवं अलंकारपूर्ण और कलात्मक शैली के द्वारा करती रहती है।
प्रयोजनमूलक हिन्दी में भाषा का प्रयोजनपरक उद्देश्य होता है।किसी कार्य-विशेष की प्रयोजन सिद्धी हेतु भाषा का प्रयोग ही प्रयोजनमूलक भाषा कहलाती है।जब हम हिन्दी का प्रयोग विभिन्न क्षेत्रों में जीविका चलाने हेतु करने लगते हैं तब हिन्दी प्रयोजनमूलक हिन्दी का स्वरूप ग्रहण कर लेती है।
प्रयोजनमूलक हिन्दी का स्वरूप:
प्रयोजनमूलक हिन्दी का इतिहास आज से लगभग 50 वर्ष पुराना है। अंग्रेजी शब्द Functional के पर्याय रूप में प्रयोजनमूलक शब्द ग्रहण किया गया। Functional Language के आधार पर प्रयोजनमूलक भाषा और functional Hindi के लिये प्रयोजनमूलक हिन्दी कहा गया। इसे Language for Specific Purpose भी कहा जाता है। कैलाश चन्द्र भाटिया जी इसे कामकाजी हिन्दी भी कहते हैं। प्रयोजनमूलक हिन्दी के क्षेत्र में बनारस में सन् 1974 में आयोजित एक संगोष्ठी के बाद से क्रांतिकारी विकास हुआ। आन्ध्र-प्रदेश के भाषा-विद् श्री मोटूरि सत्यनारायण के प्रयासों ने प्रयोजनमूलक हिन्दी को स्थापना दी। जब कई विद्वानों ने प्रयोजनमूलक हिन्दी नाम के सन्दर्भ में शंका जताई तो श्री सत्यनारायण ने अपने तर्कों द्वारा ही समझाया कि अगर भाषा का प्रयोग किसी प्रयोजन के लिये नहीं किया जा रहा हो तो वह निष्प्रयोजनपरक भाषा न हो कर आनन्दमूलक भाषा होगी। जैसा कि मैंने पहले भी कहा कि कोई भी व्यक्ति बिना प्रयोजन भाषा का प्रयोग नहीं करता यह उन्हीं के प्रयासों का फल है कि आज विविध क्षेत्रों में प्रयोजनमूलक हिंदी का प्रयोग निर्बाध गति से हो रहा है। अगर हम प्रयोजनमूलक हिन्दी के स्वरूप को देखें तो हमें जीविका के सभी क्षेत्रों पर नज़र डालनी पड़ती है। वाणिज्य,व्यापार की हिन्दी में मंडियों की भाषा,शेयर बाज़ार आदि की भाषा आती है। कार्यालयी हिन्दी के अंतर्गत प्रशासन और कार्यालयों में प्रयुक्त होने वाली हिन्दी आती है। ज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न शास्त्र आते हैं जैसे संगीत,इतिहास,राजनीति और भौतिक शास्त्र। सूची बहुत विस्तृत हो सकती है। तकनीकी हिन्दी इंजीनियरिंग की शब्दावली लिये होती है। जैसे बढ़ई,लुहार,प्रैस और कारखानों में प्रयुक्त होने वाली भाषा। साहित्य में कविता,कहानी की भाषा ही प्रयोजनमूलक भाषा का स्वरूप स्पष्ट करती है। चूँकि सभी क्षेत्रों की भाषा में भिन्न शब्दावली प्रयोग की जाती है। इसी भिन्नता को एक तकनीकी नाम दिया गया है प्रयुक्ति।
हिन्दी के प्रकार्य
आइये अब हम हिन्दी के प्रकार्यों की चर्चा करते हैं। जब हम विभिन्न क्षेत्रों में हिन्दी के स्वरूप को देखते हैं तो हिन्दी के मात्र तीन प्रकार्य ही हमारे सामने आते हैं -
राजभाषा हिन्दी
राष्ट्रभाषा हिन्दी
सम्पर्क भाषा हिन्दी
राजभाषा हिन्दी: अंग्रेजी शासन ने सन् 1947 में भारत को आज़ाद किया। देश को गणतंत्र बनाने के लिये जब संविधान की रचना की जा रही थी तब संविधान निर्माताओं ने हिन्दी को भी राजभाषा बनाने का प्रावधान रखा। 1950,26 जनवरी को जब भारतीय संविधान लागू हुआ तो हिन्दी,जिसने आज़ादी की लड़ाई का लंबा सफ़र तय किया था,को राजभाषा के पद पर बैठाया गया। राजभाषा का अर्थ है राजकाज की भाषा। भारत को संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य या संघ घोषित किया गया। संघ की राजभाषा होने के कारण हिंदी संसद,न्यायालय और प्रशासन की भाषा बनी। देश का दुर्भाग्य यह है कि देश का संविधान ही अंग्रेज़ी भाषा में लिखा गया। संविधान का हिन्दी अनुवाद उपलब्ध है किंतु न्यायिक ढाँचा अंग्रेज़ी का ही मान्य है। आज देश में राजभाषा हिन्दी मात्र अनुवाद की भाषा रह गयी है।
राष्ट्रभाषा और संपर्क भाषा हिन्दी: संविधान के अनुच्छेद 343 से 350 और 120 तथा 210 अनुच्छेदों में राजभाषा का उल्लेख़ किया गया है। राष्ट्रभाषा के विषय में धारा 351 निर्धारित की गयी है किंतु इस धारा में कहीं भी राष्ट्रभाषा हिन्दी नाम नहीं दिया गया क्योंकि इस धारा में एक ऐसी भाषा की संकल्पना है जिसे संपूर्ण देश आत्मसात कर सके। यही भाषा देश की राष्ट्रभाषा और संपर्क भाषा है। देश की भावना,संप्रेषण सभी कुछ इसी भाषा में होता है। इस भाषा का बोलित रूप इतना प्रभावशाली है कि संपूर्ण देश यह भाषा समझता है और बोलता है। यह राष्ट्रभाषा की ऐसी संकल्पना है जिसे संविधान ने परिभाषित तो किया किंतु उसे नियम या कायदे में बाँधना मुमकिन नहीं,क्योंकि राष्ट्रभाषा किसी भी देश की भावनात्मक उपज होती है।यही देश की राष्ट्रभाषा है,संपर्क भाषा है क्योंकि इस भाषा के माध्यम से हम संपूर्ण देश की संस्कृति को देखने का प्रयास करते हैं।
प्रयोजनमूलक हिन्दी के विविध रूप :
जब विभिन्न क्षेत्रों में हिन्दी का व्यवहार किया जाता है तो उसकी प्रयुक्तियों के आधार पर ही हम उसका वर्गीकरण करते हैं कि वह किस क्षेत्र की भाषा है। आइये वर्गीकरण पर एक नज़र डालते हैं।
कार्यालयी हिन्दी: कार्यालयी हिन्दी का तात्पर्य देश के समस्त राजकीय,सरकारी,अर्ध सरकारी और सार्वजनिक उपक्रमों के कार्यालयों में व्यवहार में होने वाली भाषा से है। कार्यालयी हिन्दी में औपचारिकता की अधिकता होती है और बोलचाल की भाषा से एकदम भिन्न होती है। सूचना,टिप्पणी,मसौदा,पत्र,निविदा आदि में इस भाषा का प्रयोग किया जाता है।
मुझे यह कहने का निदेश हुआ है।
मामला विचाराधीन है।
उचित कार्रवाई की जाये।
तत्काल लागू किया जाये।
ये कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो कि कार्यालयों के पत्राचार में दिखाई देते हैं। हम इनकी तुलना अपनी बोलचाल की भाषा से कर सकते हैं।
वाणिज्य और व्यापार की हिन्दी:
बाज़ार खामोश है।
सोना उछला,चाँदी गिरी।
गेंहूँ के भाव टूटे।
दालें नरम,तिलहन गरम।
क्या हम इन वाक्यों का सीधा अर्थ ग्रहण कर सकते हैं? यह भाषा व्यापार की मंडियों में बोली जाने वाली हिन्दी है। मंडियों और सट्टा बाज़ारों की इन प्रयुक्तियों का संबंध संपूर्ण देश के बाज़ारों से व अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारो से होता है।यहाँ हम हिन्दी को सम्पर्क भाषा भी कह सकते हैं। देश के समस्त राष्ट्रीय बैंको में तथा वाणिज्य की संस्थाओं में भी हिन्दी का व्यापक व्यवहार किया जाता है।
विधि की भाषा: देश में विधि के क्षेत्र के अंतर्गत समस्त न्यायालयों, उच्च-न्यायालयों और सर्वोच्य न्यायालय आते हैं। हिन्दी का सही मायने में हिन्दुस्तानी भाषा की शब्दावलियों का प्रयोग इन संस्थाओं में प्रचलित है। यह हिन्दी भी कई मायनों में कार्यालयी हिन्दी के समतुल्य होती है और इन संस्थाओं में भी अंग्रेज़ी लेखन को वरीयता दी जाती है बाद में हिन्दी में अनुवाद किया जाता है।
विज्ञान के क्षेत्र में हिन्दी: देश में आज वैज्ञानिक लेखन हिन्दी में तो लगभग बंद ही हो गया है। ज्ञान-विज्ञान का अधिकांश सूचनात्मक साहित्य अंग्रेजी में ही लिखा जाता और आवश्यकतानुसार उसे हिन्दी में अनूदित किया जाता है।
जनसंचार में हिन्दी: भूमंडलीकरण के द्वारा यदि बाज़ारवाद का भला हुआ है तो हिन्दी को भी सर्वाधिक लाभ भूमंडलीकरण से ही हुआ है। दूरदर्शन,इंटरनेट और आकाशवाणी हिन्दी के ऐसे सशक्त माध्यम बन कर उभरे कि हिन्दी आज देश में दृश्य और श्रृव्य माध्यम की शक्ति बन गयी।
शिक्षा में हिन्दी: जब हम बात करते हैं कि देश में शिक्षा का माध्यम कौन सी भाषा होना चाहिये तो नीतिविद् हमेशा ही अंग्रेज़ी के पक्षधर होते हैं। लोग अंग्रेज़ी को रोजगार की भाषा मान चुके हैं और इसी कारण आज देश की शिक्षा का पतन इस तरह से हो रहा है कि देश में सभी शिक्षा संस्थान अंग्रेज़ी में शिक्षा देने की दौड़ में तो शामिल हैं किन्तु अंग्रेज़ी का स्तर कहीं भी दिखाई नहीं देता। मातृभाषा में दी गयी शिक्षा ही हितकारी है यह संपूर्ण विश्व की मान्यता है। देश के कुछ अंतर्राष्ट्रीय विद्यालयों में तो अंग्रेज़ी का स्तर बहुत अच्छा है किंतु अगर सर्वेक्षण से प्राप्त आँकड़े की बात करें तो हमें अपनी व्यवस्था के भीतर झाँकने को मज़बूर होना पड़ता है। मेरे विचार से शिक्षा का माध्यम वह भाषा होना चाहिये जो विद्यार्थी की मातृभाषा हो या वह भाषा जिसमें विद्यार्थी स्वयं को सहज महसूस करे। सर्वेक्षण बताते हैं कि पूरे देश में मात्र 5% लोगों को ही अंग्रेज़ी का सम्यक ज्ञान है। 1% विद्यार्थी अंग्रेज़ी भाषा में, 55% हिन्दी माध्यम में और शेष विद्यार्थी अपनी-अपनी मातृभाषाओं में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं और सरकार हिन्दी विद्यालयों को बंद या परिवर्तित करने पर आमदा है। प्रयोजनमूलक हिन्दी में जब हम उच्च शिक्षा की बात करते हैं तो हम शिक्षा के आधारभूत ढ़ाँचे को कैसे नज़रअंदाज़ कर सकते हैं?
निष्कर्ष:
स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान संपूर्ण देश ने भाषा के माध्यम से एक सूत्र में जुड़कर अंग्रेजों से लोहा लिया।यह वह समय था जब हिन्दी ने देश की समस्त भाषाओं की प्रतिनिधि बन कर आज़ादी की लड़ाई में योगदान दिया। आज़ाद भारत के संघ के रूप में स्थापित होते ही हिन्दी राजभाषा घोषित की गयी। संपूर्ण देश में हिन्दी ने अपने प्रकार्यों की स्थापना करते हुए अपने प्रयोजनमूलक स्वरूप को स्पष्ट किया। आज जीविका के अनेक साधनों में हिन्दी का क्रांतिकारी योगदान है। देश की विधायिका,प्रशासन,व्यापार,जनसंचार के साधन और शिक्षा में हिन्दी अपने उफान पर है। अनेक संस्थाओं में हिन्दी की शब्दावलियों को विकसित और मानक रूप प्रदान किया जा रहा है ताकि हिन्दी एक सरल और सहज व्यवस्था प्राप्त कर सके। रोजगार और जीविका के इन्हीं साधनों में हम जब हम हिन्दी के भिन्न रूपों का प्रयोग करते हैं तो वह प्रयोजनमूलक हिन्दी कहलाती है।

प्रयोजनमूलक हिंदी के कितने रूप होते हैं?

इसी संदर्भ में प्रयोजनमूलक हिन्दी का अर्थ हुआ; ऐसी विशिष्ट हिन्दी जिसका प्रयोग किसी विशिष्ट प्रयोजन (उद्देश्य) के लिए किया जाता है। समान्यत: प्रयोजनमूलक हिन्दी पर विचार करने पर हिन्दी के मुख्यत: तीन रूप सामने आते हैं- बोलचाल की हिन्दी, साहित्यिक हिन्दी, प्रायोगिक हिन्दी

प्रयोजनमूलक हिंदी के विविध रूपों का आधार क्या है?

प्रयोजनमूलक हिन्दी के विविध रूपों का आधार उनका प्रयोग क्षेत्र होता है। भिन्न-भिन्न कार्यक्षेत्रों के लिए जिन भाषा रूपों का प्रयोग किया जाता है उन्हें प्रयुक्ति (Register) कहा जाता है-"वस्तुतः भाषा अपने आपमें समरूपी होती है, परन्त प्रयोग में आने पर वह विषमरूपीं बन जाती है।

डॉ भोलानाथ तिवारी के अनुसार प्रयोजनमूलक हिंदी के कितने रूप है?

डॉ. भोलानाथ तिवारी ने प्रयोजनमूलक के सात रूप बताये है

प्रयोजनमूलक हिंदी से आप क्या समझते हैं समझाइए एवं इसके रूपों पर प्रकाश डालिए?

प्रयोजनमूलक हिन्दी(Prayojanmulak hindi) हिंदी में प्रयोजनमूलक हिन्दी शब्द ' functional language ' के रूप में प्रयुक्त किया जा रहा है, जिसका तात्पर्य है- जीवन की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपयोग में लायी जाने वाली भाषा। ' इसका प्रमुख लक्ष्य जीविकोर्पान का साधन बनना होता है