इस काल का आधारभूत तत्त्व है- खाद्य उत्पादन तथा पशुओं को पालतू बनाये जाने की जानकारी का विकास। नियोलिथिक शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग सर जॉन लुबाक ने 1865 ई. में किया था। नवपाषाण काल की अग्रलिखित महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ हैं- कृषि कार्य का प्रारम्भ, पशुपालन का विकास, पत्थर के औजारों का घर्षित एवं पॉलिशदार उपकरणों का निर्माण तथा ग्राम समुदाय का प्रारम्भ। Show विश्वस्तरीय संदर्भ में नवपाषाण युग की शुरूआत लगभग 9000 ई.पू. में मानी जाती है परन्तु भारत में बलूचिस्तान के मेहरगढ़ से कृषि का प्रारम्भिक साक्ष्य मिलता है। यह लगभग 7000 ई.पू. पुराना है। प्राय: ऐसा माना जाता था कि हस्त निर्मित मृदभांडों की उपस्थिति सर्वप्रथम खाद्य उत्पादक बस्तियों का अनिवार्य लक्षण थी परन्तु नवीन अनुसंधानों ने यह सिद्ध कर दिया है कि बहुत से क्षेत्रों में आरभिक खाद्य उत्पादक स्थलों पर मृदभांड के साक्ष्य नहीं मिलते। इन्हें मृदभांड पूर्वनवपाषाण स्थल कहा जाता है। उसी तरह हाल तक यह विचार था कि सर्वप्रथम पश्चिम एशिया में कृषि व पशुपालन की शुरूआत हुयी और वहीं से विसरण (Diffusion) द्वारा विश्व के अन्य क्षेत्रों में इसका प्रसार हुआ। परन्तु अब यह धरना अपरिवर्तित हो गयी है और ऐसा मन जाने कागा है कि विभिन्न क्षेत्रों में इसका विकास स्वतंत्र रूप में हुआ है। भारतीय उपमहाद्वीप में कृषि का प्राचीनतम प्रमाण नवपाषाण काल में मिलता तो है, पर यहाँ कृषि की विशिष्ट तकनीक का प्रमाण नहीं मिलता है। यहाँ दो तकनीक से खेती की जाती थी जिसकी शुरूआत सर्वप्रथम अफ्रीका से हुई। गेहूँ और जो आयातित श्रेणी में आता है, जबकि रागी और धान निर्यातित श्रेणी में। इसी प्रकार पशुपालन नवपाषाण कालीन अर्थव्यवस्था का आधार बन गया। नागार्जुनकोंडा से घोड़ा, गधा, खच्चर जैसे मालवाहक पशुओं का प्रमाण मिला है। नवपाषाण युग के लोगों के द्वारा व्यवहार में लाए गए कुल्हाड़ियों के आधार पर बस्तियों के तीन भाग निर्धारित किए गए-
उत्तर पश्चिमी- कश्मीर एक महत्त्वपूर्ण नवपाषाण स्थल है। कश्मीर में बुर्जहोम एवं गुफाक्कराल ये दो महत्त्वपूर्ण स्थल हैं। कश्मीर के स्थलों की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ निम्न हैं- गर्त्तनिवास, मृदभांडों की विविधता, पत्थर व हड्डियों के भिन्न औजारों का प्रयोग तथा सूक्ष्म पाषाण (माइक्रोलिथ) उपकरणों का अभाव। बुर्जहोम में भूमि के नीचे निवास का साक्ष्य मिलता है। यहाँ के लोग शिकार करते व मछली पकड़ते थे परन्तु संभवतः यहाँ के लोग कृषि से भी परिचित थे। यहाँ से प्राप्त सबसे महत्त्वपूर्ण साक्ष्य है- पालतू कुत्ते का मालिक के शव के साथ दफनाया जाना। उत्तर पश्चिम में मेहरगढ़ भी एक महत्त्वपूर्ण नवपाषाण कालिक स्थल है। यहाँ गेहूँ की तीन व जौ की दो किस्में प्राप्त हुयी हैं। यहाँ के लोग संभवत: खजूर का भी उत्पादन करते थे। यहाँ के लोग कच्ची ईंटों के आयताकार मकान में रहते थे। उत्तर पश्चिम में स्वात घाटी में सरायखोला एक महत्त्वपूर्ण स्थल था। बेलनघाटी में कुछ महत्त्वपूर्ण नवपाषाण कालीन स्थल निम्नलिखित हैं- कोल्डीहवा, चौपानीमांडो और महागरा। कोल्डीहवा से वन्य एवं धान की इस प्रजाति का नाम ऐरिजा सेरिवा था। कृषिजन्य दोनों प्रकार के चावल के साक्ष्य मिलते हैं। इनकी कालावधि 6000 ई.पू. से 5000 ई.पू. निर्धारित की गयी है। उसी तरह चौपानीमांडो से संसार में मृदभांड के प्रयोग के प्राचीनतम साक्ष्य मिले हैं। मध्य गंगा घाटी में भी कुछ महत्त्वपूर्ण नवपाषाण स्थल प्राप्त हुए हैं, जो निम्न हैं- चिरांद (छपरा), चैचर, सेनुआर, तारादीह आदि। इसी तरह पूर्वी भारत में असम, मेघालय व गारो की पहाड़ी में कुछ नवपाषाण कालीन स्थल मिले हैं। दक्षिण भारत में कुछ नवपाषाण स्थल निम्न हैं, कर्नाटक में मस्की, ब्रह्मगिरि, हल्लूर, कोडक्कल, पिकलीहल, संगेनकलन, तेकलकोट्टा तथा तमिलनाडु में पय्यमपल्ली और आध्रप्रदेश में उत्नूर। मेहरगढ़- वर्तमान पाकिस्तान में स्थित इस स्थल के उत्खनन से तीन सांस्कृतिक कारण इस स्थल को नवपाषाण कालीन मेहरगढ़ कहा गया। यह भारतीय उपमहाद्वीप की प्राचीनतम कृषक बस्ती थी और यहाँ 6000 ई.पू. के लगभग कृषि का साक्ष्य प्राप्त हुआ है। यहाँ से गेहूँ, जौ और मसूर की खेती का साक्ष्य मिला है। चौपानी मांडो- बेलनघाटी क्षेत्र में स्थित कोल्डीहवा से नवपाषाणिक और मांडो से विश्व का प्राचीनतम मृदभांड 7000 ई.पू. के लगभग प्राप्त हुआ है। यह नवपाषाण काल की तिथि को कुछ पीछे ले जाता है। महगढ़ा- बेलनघाटी क्षेत्र में स्थित इस स्थल से पशुपालन का स्पष्ट प्रमाण मिलता है। यहाँ से पशुओं का विशाल बाड़ा मिला है जिसमें तीन बहुत बड़े दरवाजे हैं तथा 28 स्तंभगर्त्त। इसमें बीस से अधिक पशु बाँधे जाते रहे होंगे। चिराँद- बिहार के छपरा जिला में स्थित यह स्थल नवपाषाण काल और ताम्रपाषाणिक संस्कृति के तीसरे चरण से संबद्ध है। इसका काल-निर्धारण (2500-1400 ई.पू.) किया गया है। कालखण्ड और अस्थि-उपकरण की दृष्टि से इसका बुर्जहोम से साम्य है। यहाँ से पाषाण और पशु-श्रृंगों से निर्मित उपकरण प्राप्त हुए हैं। यह उत्तम कृषक बस्ती थी जहाँ से गेहूँ, जौ और धान की खेती के प्रमाण मिले हैं। डेओजली हेडिंग- यह स्थल मेघालय में स्थित है। यहाँ से तथा मेघालय के अन्य स्थलों-सरूतरू एंव मइक डोला और असम से ढ़लवे जगह पर मकान बनाने के प्रयास किये जाने का संकेत मिलता है। यहाँ से झूम की खेती का प्राचीनतम प्रमाण मिला है। यहीं ढलवे जगह पर खेती प्रारंभ हुई थी। ब्रझगिरि- इस जगह पर उत्खनन 1947 में मार्टिमर ह्वीलर (Martimer wheeler) के नेतृत्व में प्रारंभ हुआ। यह स्थल तीन सांस्कृतिक चरणों से सम्बद्ध है- नवपाषाण काल, मध्य पाषाण काल और आंध्र-सातवाहन चरण। यहाँ से 1500 ई.पू. के लगभग रागी और कुल्थी की खेती का प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त हुआ है। यहाँ से कलश शवाधान के साथ-साथ इस बात का साक्ष्य भी प्राप्त हुआ है कि छोटे बच्चे को आवासीय स्थल में या उसके करीब दफनाया जाता था। उत्नूर और पय्यमपल्ली- उत्नूर आंध्र प्रदेश में स्थित है और पय्यमपल्ली तमिलनाडु में। दोनों जगह से कपड़े के निर्माण और कपड़े के उपयोग का प्रथम साक्ष्य प्राप्त हुआ है। यहाँ से हड्डी का बना हुआ सूआ मिला है जो वस्त्र निर्माण में उपयोगी था। नागार्जुनकोंडा- आंध्र प्रदेश में स्थित नागार्जुनकोंडा बुर्जहोम और गुफक्कराल के अतिरिक्त गर्त्तनिवास का साक्ष्य एकमात्र स्थल है। यह स्थल भी ब्रह्मगिरि (1500 ई.पू.) का समकालीन था और इसी समय में यहाँ रागी और कुल्थी की खेती की जाती थी। ब्रह्मगिरि की तरह यहाँ भी छोटे बच्चे को आवासीय स्थल या उसके करीब दफनाने का साक्ष्य मिला है। यहाँ से मालवाहक पशुओं यथा घोड़ा, गधा, खच्चर का प्रमाण भी मिला है। दक्षिण भारत में प्रयुक्त होने वाली पहली फसल रागी थी। नवपाषाण काल में कृषि यहाँ गौण ही थी। दक्षिण भारत में नवपाषाण 2000 ई.पू. से 1000 ई.पू. तक जारी रही। नवपाषाण काल में कृषि उपकरण में खन्ती एवं कुदाल का प्रयोग होता था। ताम्रपाषाण काल में कृषि कार्य पूर्णत: स्थापित हो गया। ताम्रपाषाण एवं सिन्धु घाटी सभ्यता दोनों में पत्थर के उपकरणों का ही अधिक प्रयोग हुआ। ताम्रपाषाण काल तकनीकी दृष्टि से काँस्ययुग से प्राचीन है परन्तु कुछ ताम्रपाषाणकालिक स्थल काँस्ययुग से प्राचीन थे, कुछ उसके समकालीन थे एवं कुछ परवर्ती थे। नवपाषाण काल की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि क्या थी?नवपाषाण काल के उद्योग धंधे
इस युग मे चाक का अविष्कार हुआ जिससे मिट्टी के बर्तन बनाए जाने लगे। पहिए के अविष्कार से यातायात के साधनों का विकास हुआ। मानव ने घोड़ों तथा बैलों की सहायता से खींची जाने वाली गाड़ियां बनाई। कृषि के विकास से कपास उगाई जाने लगी जिससे वस्त्र निर्माण उद्योग भी विकसित हुआ।
नवपाषाण काल कब प्रारम्भ हुआ?नियोलिथिक युग, काल, या अवधि, या नव पाषाण युग मानव प्रौद्योगिकी के विकास की एक अवधि थी जिसकी शुरुआत मध्य पूर्व में 9500 ई. पू. के आसपास हुई थी, जिसे पारम्परिक रूप से पाषाण युग का अंतिम हिस्सा माना जाता है।
नवपाषाण का मतलब क्या होता है?इस काल की समय सीमा 3500 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व मानी जाती हैं। यूनानी भाषा में "Neo" शब्द का अर्थ होता है-नवीन तथा lithos शब्द का अर्थ होता है- पाषाण। अतः इन्ही शब्दों को मिलाकर Neolithic शब्द बना है जिसका अर्थ है -नवपाषाण। इस काल की सभ्यता भारत के विशाल क्षेत्र में फैली हुई थी।
नवपाषाण काल में निम्नलिखित में से किसका आविष्कार हुआ था?नवपाषाण काल में किसका आविष्कार हुआ था? इसे सुनेंरोकेंपहिये का आविष्कार- इसी युग में किसी बुद्धिमान व्यक्ति ने पहिये का आविष्कार किया और यह आविष्कार मानव सभ्यता की समृद्धि का सबसे बड़ा कारण बन गया । इससे यातायात के साधनों का विकास हुआ ।
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