पर्दे पर वक्त की कीमत है क्या कर कवि ने पूरे साक्षात्कार के प्रति अपना नजरिया किस रूप में रखा है? - parde par vakt kee keemat hai kya kar kavi ne poore saakshaatkaar ke prati apana najariya kis roop mein rakha hai?

‘परदे पर वक्त की कीमत हे’ कहकर कवि ने पूरे साक्षात्कार के प्रति अपना नजरिया किस रूप में रखा है?


‘परदे पर वक्त की कीमत है’ अर्थात् टेलीविजन के परदे पर किसी कार्यक्रम को दिखाना काफी महँगा पड़ता है। इसमें कम-से-कम समय लगाने की कोशिश की जाती है।

अपंग व्यक्ति और प्रश्नकर्त्ता के मध्य हुए साक्षात्कार के प्रति कवि ने यह नजरिया दर्शाया है कि साक्षात्कार लेकर टेलीविजन वाले अपने लिए रोचक कार्यक्रम बनाने के चक्कर में रहते हैं। वे दूरदर्शन के समय एवं परदे का इस्तेमाल अपने उद्देश्य की पूर्ति हेतु करते हैं, उन्हें उस व्यक्ति की कोई परवाह नहीं होती जिसका साक्षात्कार लिया जा रहा होता है (विशेष सामान्य व्यक्ति का) कार्यक्रम संचालक के सामने अपना हित सर्वोपरि होता है। उसकी सहानुभूति बनावटी होती है।

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यदि आप इस कार्यक्रम के दर्शक हैं तो टी. वी. पर ऐसे सामाजिक कार्यक्रम को देखकर एक पत्र में अपनी प्रतिक्रिया दूरदर्शन निदेशक को भेजें।


सेवा में,

निदेशक,

दूरदर्शन कार्यक्रम

नई दिल्ली।

विषय: 2० जनवरी, 2008 को डी.डी.-I पर प्रसारित साक्षात्कार कार्यक्रम पर प्रतिक्रिया

महोदय,

आपके उपर्युक्त चैनल पर इस तिथि को अपंग व्यक्ति से संबधित साक्षात्कार प्रसारित किया गया। इस कार्यक्रम को मैंने भी बड़े ध्यानपूर्वक देखा। इस कार्यक्रम पर दर्शकों की प्रतिक्रियाएँ आमंत्रित की गई हैं। मेरी प्रतिक्रिया इस प्रकार है-

यह साक्षात्कार कार्यक्रम बनावटीपन का शिकार होकर रह गया। इसमें मानवीय संवेदना का पहलू पूरी तरह नदारद था। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि साक्षात्कारकर्त्ता महोदय कार्यक्रम को पूरी तरह से अपनी मनमर्जी से चला रहे हैं। उन्हें अपंग व्यक्तियों की मनोदशा का ज्ञान कतई नहीं है। वे तो उसे अपनी व्यथा-कथा बताने का मौका तक नहीं दे रहे थे।

आशा है भविष्य में संवेदनशील कार्यक्रम बनाए जाएँगे।

भवदीय

पूजा दलाल

निशात पार्क, नई दिल्ली

दिनांक............

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कविता में कुछ पंक्तियाँ कोष्ठकों में रखी गई हैं-आपकी समझ से इनका क्या औचित्य है?


कविता में कोष्ठकों में रखी पंक्तियाँ वैसे तो संचालक के संकेत हैं: जैसे-

वह अवसर खो देंगे - अपंग व्यक्ति को

यह प्रश्न पूछा नहीं जाएगा प्रश्नकर्त्ता को

आशा है आप उसे उसकी अपंगता की पीड़ा मानेंगे - दर्शकों को

कैमरा इसे दिखाओ बड़ा-बड़ा - कैमरामैन को

कैमरा बस करो.. - कैमरामैन को

हमारी समझ से इनका औचित्य यह है कि ये कथन टेलीविजन कार्यक्रम के संचालक के छद्म रूप को उजागर करते हैं। ये सामने वाले व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार बुलवाने का प्रयास करते हैं। कार्यक्रम का बहाना सामाजिक उद्देश्य की पूर्ति होता है जबकि वे अपना उन्न सीधा करते हैं।

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नीचे दिए गए खबर के अंश को पढ़िए और बिहार के इस बुधिया से एक काल्पनिक साक्षात्कार कीजिए-

उम्र पाँच साल, संपूर्ण रूप से विकलाग और दौड़ गया पाँच किलोमीटर। सुनने में थोड़ा अजीब लगता है लेकिन यह कारनामा कर दिखाया है पवन ने। बिहारी बुधिया के नाम से प्रसिद्ध पवन जन्म से ही विकलाग है। इसके दोनों हाथ का पुलवा नहीं है, जबकि पैर में सिर्फ एड़ी ही है।

पवन ने रविवार को पटना के कारगिल चौक से सुबह 8.40 पर दौड़ना शुरू किया। डाकबंगला रोड, तारामंडल और आर ब्लाक होते हुए पवन का सफर एक घटे बाद शहीद स्मारक पर जाकर खत्म हुआ। पवन द्वारा तय की गई इस दूरी के दौरान ‘उम्मीद स्कूल’ के तकरीबन तीन सौ बच्च साथ दौड़ कर उसका हौसला बड़ा रहे थे। सड़क किनारे खड़े दर्शक यह देखकर हतप्रभ थे कि किस तरह एक विकलांग बच्चा जोश एवं उत्साह के साथ दौड़ता चला आ रहा है। जहानाबाद जिले का रहने वाला पवन नव रसना एकेडमी, बेउर में कक्षा एक का छात्र है। असल में पवन का सपना उड़ीसा के बुधिया जैसा करतब दिखाने का है। कुछ माह पूर्व बुधिया 65 किलोमीटर दौड़ चुका है। लेकिन बुधिया पूरी तरह से स्वस्थ है जबकि पवन पूरी तरह से विकलांग। पवन का सपना कश्मीर से कन्या कुमारी तक की दूरी पैदल तय करने का है।

(9 अक्टूबर, 2006 हिंदुस्तान से साभार)


साक्षात्कार

स्नेहलता

(प्रश्नकर्त्ता)

:

बुधिया, तुम कबसे विकलांग हो?

बुधिया

:

जब मैं पाँच वर्ष का था तभी से मै विकलांग हूँ।

स्नेहलता

:

क्या तुम्हें दौड़ने में कष्ट नहीं होता?

बुधिया

:

होता तो है, पर अब मुझे इसकी आदत-सी हो गई है।

स्नेहलता

:

तुम अब तक सबसे ललंबीदौड़ कितने किलोमीटर की दौड़ चुके हो?

बुधिया

:

मैं अब तक सबसे लंबी दौड़ पाँच किलोमीटर की लगा चुका हूँ।

स्नेहलता

:

क्या तुमने पी.टी. उषा का नाम सुना है?

बुधिया

:

हाँ सुना है। मैंने उसी से प्रेरणा ली है।

स्नेहलता

:

वह कितनी लंबी दौड़ लगा चुका है?

बुधिया

:

वह 65 किलोमीटर दौड़ चुका है।

स्नेहलता

:

बुधिया, तुम्हारा सपना क्या है?

बुधिया

:

मेरा सपना कश्मीर से कन्याकुमारी तक की दूरी पैदल तय करने का है।

स्नेहलता

:

बुधिया, हमारी शुभकामना तुम्हारे साथ है।

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हम समर्थ शक्तिमान और हम एक दुर्बल को लाएँगे पंक्ति के माध्यम से कवि ने क्या व्यंग्य किया है?


इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने यह व्यंग्य किया है कि हम टेलीविजन (मीडिया) के लोग तो बहुत ताकतवर हैं। हम जो चाहें, जैसे चाहें कार्यक्रम को दर्शकों को दिखा सकते हैं। कार्यक्रम का निर्माण एवं प्रस्तुति उनकी मर्जी से ही होती है। वे करुणा को बेच भी सकते हैं।

जिसके ऊपर कार्यक्रम केंद्रित होता है वह एक दुर्बल व्यक्ति है। वह दुर्बल इस मायने में है कि वह अपनी मर्जी से न तो कुछ बोल सकता है न कुछ कर सकता है। उसे वही कुछ करना पड़ता है जो कार्यक्रम का संचालक/निर्देशक बताता है। वह विवश है।

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‘कैमरे में बंद अपाहिज’ करुणा के मुखौटे में छिपी क्रूरता की कविता है’-विचार कीजिए।


यह कथन बिल्कुल सच है कि यह कविता करुणा के मुखौटे में छिपी क्रूरता की कविता है। ऊपर से तो करुणा दिखाई देती है कि संचालक महोदय अपंग व्यक्ति के प्रति सहानुभूति दर्शा रहा है, पर उसका वास्तविक उद्देश्य कुछ और ही होता है। वह तो उसकी अपंगता बेचना चाहता है। उसे एक रोचक कार्यक्रम चाहिए जिसे दिखाकर वह दर्शकों की वाह-वाही लूट सके। उसे अपंग व्यक्ति से कुछ लेना-देना नहीं है। यह कविता यह बताती है कि दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले इस प्रकार के अधिकांश कार्यक्रम कारोबारी दबाव के तहत संवेदनशील होने का ढोग भर करते हैं। कई बार उनके प्रश्न क्रूरता की सीमा तक पहुँच जाते हैं। अत: यह कहना उचित ही है कि ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ के मुखौटे में छिपी क्रूरता की कविता है।

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पर्दे पर वक्त की कीमत है ऐसा कहकर कवि ने साक्षात्कार का कौन सा रूप व्यक्त किया है?

उत्तर :- पर्दे पर वक्त की कीमत है कहकर कवि ने पूरे साक्षात्कार के प्रति अपना नजरिया इस प्रकार रखा है कि ,परदे पर वक्त की कीमत है' अर्थात् टेलीविजन के परदे पर किसी कार्यक्रम को दिखाना काफी महँगा पड़ता है। इसमें कम-से-कम समय लगाने की कोशिश की जाती है।

पर्दे पर वक्त की कीमत है के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?

इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने यह व्यंग्य किया है कि हम टेलीविजन (मीडिया) के लोग तो बहुत ताकतवर हैं। हम जो चाहें, जैसे चाहें कार्यक्रम को दर्शकों को दिखा सकते हैं। कार्यक्रम का निर्माण एवं प्रस्तुति उनकी मर्जी से ही होती है। वे करुणा को बेच भी सकते हैं।