प्रश्न 1 दिन जल्दी जल्दी ढलता है यह गीत कवि की किस रचना से उद्धत है उत्तर 1 - prashn 1 din jaldee jaldee dhalata hai yah geet kavi kee kis rachana se uddhat hai uttar 1

कवि का मानना है कि स्वयं को जानना दुनिया को जानने से ज्यादा कठिन है। समाज से व्यक्ति का नाता खट्टा-मीठा तो होता ही है। संसार से पूरी तरह निरपेक्ष रहना संभव नहीं। दुनिया अपने व्यंग्य-बाण तथा शासन-प्रशासन से चाहे जितना कष्ट दे, पर दुनिया से कटकर मनुष्य रह भी नहीं पाता। क्योंकि उसकी अपनी अस्मिता, अपनी पहचान का उत्स, उसका परिवेश ही उसकी दुनिया है।


कवि अपना परिचय देते हुए लगातार दुनिया से अपने द्रविधात्मक और द्वंद्वात्मक संबंधों का मर्म उद्घाटित करता चलता है। वह पूरी कविता का सार एक पंक्ति में कह देता है कि दुनिया से मेरा संबंध प्रीतिकलह का है, मेरा जीवन विरुद्धों का सामंजस्य है- उन्मादों में अवसाद, रोदन में राग, शीतल वाणी में आग, विरुद्धों का विरोधाभासमूलक सामंजस्य साधते-साधते ही वह बेखुदी, वह मस्ती, वह दीवानगी व्यक्तित्व में उत्तर आई है कि -


दुनिया का तलबगार नहीं हूँ। 

बाजार से गुजरा हूँ, खरीदार नहीं हूँ ||


जैसा कुछ कहने का ठस्सा पैदा हुआ है। यह ठस्सा ही छायावादोत्तर गीतिकाव्य का प्राण है।


किसी असंभव आदर्श की तलाश में सारी दुनियादारी ठुकराकर उस भाव से कि जैसे दुनिया से इन्हें कोई वास्ता ही नहीं है। 


आत्मपरिचय कविता का सारांश


इस कविता में कवि हरिवंश राय बच्चन ने अपने स्वभाव और व्यक्तित्त्व के बारे में बताया है। कवि का इस संसार से प्रीति-कलह का संबंध है क्योंकि वह जग जीवन से जुड़ा भी है और इससे अलग भी है। वह इस संसार का भार (जिम्मेदारियाँ) लिए फिरता है लेकिन उसके जीवन में प्यार की भावना भी है। कवि कहता है कि यह संसार लोगों को कष्ट ही देता है फिर भी वह संसार से अलग नहीं रह सकता है। इस कविता में कवि ने समाज एवं परिवेश से ‘प्रेम एवं संघर्ष’ का संबंध निभाते हुए जीवन में सामंजस्य स्थापित करने पर ज्यादा बल दिया है। कवि अपनी मस्ती में मस्त रहता है और कभी भी इस जग की परवाह नहीं करता है क्योंकि संसार अपने ढंग से लोगों को जीवन जीने का तरीका बताता है। कवि का अपना व्यक्तित्त्व है और जग का अपना। दोनों में कोई नाता नहीं है। इस कविता में ‘प्रीति-कलह’ और ‘शीतल वाणी’ में आग का विरोधाभास दिखाया गया है क्योंकि व्यक्ति और समाज का सम्बंध ‘प्रेम और संघर्ष’ की तरह ही है। ‘नादान वही है हाय, जहाँ पर दाना’ पंक्ति के माध्यम से कवि सत्य की खोज के लिए ‘अहंकार को त्याग कर नई सोच अपनाने पर जोर दे रहा है।



अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न


“मैं निज उर के उदगार लिए फिरता हूँ,

मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ;

है यह अपूर्ण संसार न मुझ को भाता

मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ।”


क. "निज उर के उदगार" से कवि का क्या आशय है?

उत्तर- ‘निज उर के उद्गार’ से कवि का आशय है- प्रेम से परिपूर्ण वाणी। यह वाणी वह अपने प्रिय को देना चाहता है।


ख. कवि को संसार प्रिय क्यों नहीं है?

उत्तर- संसार में प्रेम और आत्मीयता का कोई स्थान नहीं है। संसार में पूर्णता नहीं है, इसलिए कवि को संसार प्रिय नहीं है।


ग. संसार की विषमताओं के बीच भी कवि कैसे जी रहा है?

उत्तर- संसार में बहुत कष्ट हैं। संसार से किनारा करके ही कवि खुशी से जी रहा है।


सौंदर्यबोध संबंधी प्रश्न


“मैं और जग और, कहाँ का नाता

मैं बना-बना कितने जग रोज मिटाता;

जग जिस पृथ्वी पर जोडा करता वैभव,

मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता!”


क. काव्यांश का भाव सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर- प्रस्तुत काव्यांश हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित ‘आत्म-परिचय’कविता से लिया गया है,जिसमे कवि का दार्शनिक, मौलिक तथा कल्पनामयी रूप सामने आया है। इस काव्यांश में स्वयँ और जग के मध्य प्रेम और संघर्ष रूपी संबंधोँ के बारे में बात की गई है।


ख. प्रस्तुत काव्यांश की शिल्प संबंधी कोई दो विशेषताएँ लिखिए ।

उत्तर- ‘कहाँ का नाता’ में प्रश्नालंकार का प्रयोग है।

‘बना-बना’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।


विषयवस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर 


1. ‘आत्मपरिचय’ कविता दुनिया के साथ कवि की प्रीति-कलह की कविता है – कथन पर टिप्पणी कीजिए ।

उत्तर- ‘आत्मपरिचय’ शीर्षक कविता में कवि अपना परिचय देता है और कहता है कि वह समाज का अंग होते हुए भी उससे अलग है। स्वयं को जानना संसार को जानने से अधिक कठिन है। समाज से व्यक्ति का नाता कुछ खट्टा-मीठा तो होता ही है, पर जगजीवन से पूरी तरह निरपेक्ष रहना संभव नहीं है। कवि कहता है कि इस जग से हमारा संबंध द्विधात्मक और द्वंद्वात्मक रूप में होता है। कवि दुनिया में रहकर इसी से संघर्ष करता है। इस जीवन को अनेक विरोधाभासों के मध्य जीना पडता है। कवि इन विरोधाभासों के साथ सामंजस्य बिठाते हुए जीवन में मस्ती उतार लेता है। इसीलिए कवि इसे दुनिया के साथ प्रीति कलह की कविता कहता है।






कविता के साथ


प्रश्न 1 दिन जल्दी जल्दी ढलता है यह गीत कवि की किस रचना से उद्धत है उत्तर 1 - prashn 1 din jaldee jaldee dhalata hai yah geet kavi kee kis rachana se uddhat hai uttar 1



प्रश्न 1 : कविता में कवि एक ओर जग-जीवन का भार लिए घूमने की बात करता है और दूसरी ओर मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ की बात की गई है- विपरीत से लगने वाले इन कथनों का क्या आशय है?

उत्तर- प्रस्तुत कविता आत्मपरिचय में हरिवंशराय बच्चन ने कहा है कि वह स्वयं को जग से जोड़कर भी और जग से अलग भी महसूस करता है। वह इस बात को भली प्रकार से जानता है कि जग-जीवन से पूरी तरह से निरपेक्ष नहीं रहा जा सकता है। वह दूनिया से कटकर नहीं रह सकता। वह भी इसी दूनिया का एक अंग है। इसके बावजूद भी कवि जग की ज्यादा परवाह नहीं करता है। वह संसार के बताए इशारोँ पर नहीं चलता है। उसका अपना अलग व्यक्तित्त्व है और वह अपने मन के भावों को निडरता से प्रकट करता है कवि की स्थिति ऐसी है कि ‘मैं दुनिया में हूँ, पर दुनिया का तलबगार नहीं हूँ’


जग-जीवन का भार लेने से कवि का अभिप्राय यह है कि वह सांसारिक दायित्वों का निर्वाह कर रहा है। आम व्यक्ति से वह अलग नहीं है तथा सुख-दुख, हानि-लाभ आदि को झेलते हुए अपनी यात्रा पूरी कर रहा है।दूसरी तरफ कवि कहता है कि वह कभी संसार की तरफ ध्यान नहीं देता। यहाँ कवि सांसारिक दायित्वों की अनदेखी की बात नहीं करता। वह संसार की निरर्थक बातों पर ध्यान न देकर केवल प्रेम पर केंद्रित रहता है। आम व्यक्ति सामाजिक बाधाओं से डरकर कुछ नहीं कर पाता। कवि सांसारिक बाधाओं की परवाह नहीं करता। अत: इन दोनों पंक्तियों के अपने निहितार्थ हैं। ये एक-दूसरे के विरोधी न होकर पूरक हैं।



प्रश्न 2 : ‘जहाँ दाना रहते हैं, वहीं नादान भी होते हैं’- कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा?


उत्तर- इस कविता में कवि ने ऐसा इसलिए कहा होगा क्योकि यह संसार स्वार्थी है और इसे जहाँ कुछ मिलता है वहीं जम जाता है। 

प्रस्तुत कविता में दाना के दो अर्थ हैं -

  • अनाज
  • चतुर व बुद्धिमान लोग 

इस दृष्टि से इसका अर्थ हुआ कि जहाँ पर बुद्धिमान और चतुर लोग रहते हैं वहीं पर कुछ नादान (मूर्ख) भी रहते हैं। कवि कहना चाहते हैं कि इस संसार में सभी प्रकार के व्यक्ति रहते हैं कवि के अनुसार सांसारिक मोह-माया में लगा रहने वाला व्यक्ति ही नादान है और स्वविवेक से काम लेने वाला व्यक्ति ही चतुर है। फिर भी विरोधी होते हुए सभी प्राणी एक साथ सुखपूर्वक रहते हैं.


नादान यानी मूर्ख व्यक्ति सांसारिक मायाजाल में उलझ जाता है। मनुष्य इस मायाजाल को निरर्थक मानते हुए भी इसी के चक्कर में फँसा रहता है। संसार असत्य है। मनुष्य इसे सत्य मानने की नादानी कर बैठता है और मोक्ष के लक्ष्य को भूलकर संग्रहवृत्ति में पड़ जाता है। इसके विपरीत, कुछ ज्ञानी लोग भी समाज में रहते हैं जो मोक्ष के लक्ष्य को नहीं भूलते। अर्थात संसार में हर तरह के लोग रहते हैं।


प्रश्न 3 . मैं और, और जग और कहाँ का नाता- पंक्ति में 'और' शब्द की विशेषताएँ बताइए।


उत्तर- यहाँ ’और’ शब्द का प्रयोग तीन अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। पहले ‘और’ का अर्थ है- अन्य या भिन्न। पहले और तीसरे ‘और’ का अर्थ है- विशेष व सांसारिकता में डूबा हुआ आम मनुष्य। दूसरे ‘और’ का तात्पर्य है ‘तथा’ । इस प्रकार यह शब्द अनेकार्थी शब्दों के रूप में प्रयुक्त हुआ है।


मैं औरऔर जग और कहाँ का नाता


यहाँ ‘और’ शब्द का तीन बार प्रयोग हुआ है। अत: यहाँ यमक अलंकार है।

  • पहले ‘और’ में कवि स्वयं को आम व्यक्ति से अलग बताता है। वह आम आदमी की तरह भौतिक चीजों के संग्रह के चक्कर में नहीं पड़ता। 
  • दूसरे ‘और’ के प्रयोग में संसार की विशिष्टता को बताया गया है। संसार में आम व्यक्ति सांसारिक सुख-सुविधाओं को अंतिम लक्ष्य मानता है। यह प्रवृत्ति कवि की विचारधारा से अलग है। 
  • तीसरे ‘और’ का प्रयोग ‘संसार और कवि में किसी तरह का संबंध नहीं’ दर्शाने के लिए किया गया है।


अलंकार के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए क्लिक करें - अलंकार प्रकरण 



प्रश्न 4: 

‘शीतल वाणी में आग’ के होने का क्या अभिप्राय हैं?

अथवा 

‘शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ’-इस कथन से कवि का क्या आशय है?

अथवा 

‘आत्मपरिचय’ में कवि के कथन- 'शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ' -का विरोधाभास स्पष्ट कीजिए ।


उत्तर- ‘शीतल वाणी में आग लिए फिरने’ का अभिप्राय है यह है कि उसकी वाणी में शीतलता भले ही दिखाई देती हो, पर उसमे आग जैसे जोशीले विचार भी भरे रहते हैं। उसके दिल में इस जग के प्रति विद्रोह की भावना तो है फिर भी वह जोश में होश नहीं खोता है। वह अपनी वाणी में शीतलता बनाए रखता है। यहाँ आग से अभिप्राय कवि की आंतरिक पीड़ा से है। वह अपने किसी प्रिय के वियोग की वेदना को ह्रदय में समाए फिरता है और यही वियोग की वेदना उसे निरंतर जलाती रहती है। पंक्ति ‘शीतल वाणी में आग’ में भले ही विरोधाभास है किंतु यह विरोधमूलक न होकर केवल विरोध का आभास मात्र ही है।


कवि ने यहाँ विरोधाभास अलंकार का प्रयोग किया है। कवि की वाणी यद्यपि शीतल है, परंतु उसके मन में विद्रोह, असंतोष का भाव प्रबल है। वह समाज की व्यवस्था से संतुष्ट नहीं है। वह प्रेम-रहित संसार को अस्वीकार करता है। अत: अपनी वाणी के माध्यम से अपनी असंतुष्टि को व्यक्त करता है। वह अपने कवित्व धर्म को ईमानदारी से निभाते हुए लोगों को जाग्रत कर रहा है।


प्रश्न 5: बच्चे किस बात की आशा में नीड़ों से झाँक रहे होंगे?


उत्तर – पक्षी दिन भर भोजन की तलाश में भटकते फिरते हैं। उनके बच्चे घोंसलों में माता-पिता की राह देखते रहते हैं कि मातापिता उनके लिए दाना लाएँगे और उनका पेट भरेंगे। साथ-साथ वे माँ-बाप के स्नेहिल स्पर्श पाने के लिए प्रतीक्षा करते हैं। छोटे बच्चों को माता-पिता का स्पर्श व उनकी गोद में बैठना, उनका प्रेम-प्रदर्शन भी असीम आनंद देता है। इन सबकी पूर्ति के लिए वे नीड़ों से झाँकते हैं।


प्रश्न 6: दिन जल्दी-जल्दी ढलता हैं- की आवृति से कविता की किस विशेषता का पता चलता हैं?


उत्तर – ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’-की आवृत्ति से यह प्रकट होता है कि लक्ष्य की तरफ बढ़ते मनुष्य को समय बीतने का पता नहीं चलता। पथिक लक्ष्य तक पहुँचने के लिए आतुर होता है। इस पंक्ति की आवृत्ति समय के निरंतर चलायमान प्रवृत्ति को भी बताती है। समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। अत: समय के साथ स्वयं को समायोजित करना प्राणियों के लिए आवश्यक है।



कविता के आस-पास


प्रश्न 1 दिन जल्दी जल्दी ढलता है यह गीत कवि की किस रचना से उद्धत है उत्तर 1 - prashn 1 din jaldee jaldee dhalata hai yah geet kavi kee kis rachana se uddhat hai uttar 1



प्रश्न 1 : संसार में कष्टों को सहते हुए भी खुशी और मस्ती का माहौल कैसे पैदा किया जा सकता है?

उत्तर -सामाजिक प्राणी होने के नाते मनुष्य हर संबंध का निर्वाह करता है। उसे जीवन में अनेक तरह के कष्टों का सामना करना पड़ता है। कष्ट सहना मानव की नियति है। सुख-दुख समय के अनुसार आते-जाते रहते हैं। मनुष्य को दुख से परेशान नहीं होना चाहिए क्योंकि दुखों के बिना सुख की सच्ची अनुभूति नहीं पाई जा सकती। अत: मनुष्य को संतुलित तथा सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर जीवन को उल्लासपूर्ण बनाना चाहिए। निरंतर काम में लगे रहकर कष्टों को भुलाया जा सकता है।


 परीक्षा के लिए उपयोगी प्रश्न 


प्रश्न 1: ‘आत्मपरिचय’ कविता में कवि हरिवंश राय बच्चन ने अपने व्यक्तित्व के किन पक्षों को उभारा है?

उत्तर –‘आत्मपरिचय’ कविता में कवि हरिवंश राय बच्चन ने अपने व्यक्तित्व के निम्नलिखित पक्षों को उभारा है-

  • कवि अपने जीवन में मिली आशाओं-निराशाओं से संतुष्ट है।
  • वह (कवि) अपनी धुन में मस्त रहने वाला व्यक्ति है।
  • कवि संसार को मिथ्या समझते हुए हानि-लाभ, यश-अपयश, सुख-दुख को समान समझता है।
  • कवि संतोषी प्रवृत्ति का है। वह वाणी के माध्यम से अपना आक्रोश प्रकट करता है।

प्रश्न 2: ‘आत्मपरिचय’ कविता पर प्रतिपाद्य लिखिए।

उत्तर – ‘आत्मपरिचय’ कविता के रचयिता का मानना है कि स्वयं को जानना दुनिया को जानने से ज्यादा कठिन है। समाज से व्यक्ति का नाता खट्टा-मीठा तो होता ही है। संसार से पूरी तरह निरपेक्ष रहना संभव नहीं। दुनिया अपने व्यंग्य-बाण तथा शासन-प्रशासन से चाहे जितना कष्ट दे, पर दुनिया से कटकर मनुष्य रह भी नहीं पाता क्योंकि उसकी अपनी अस्मिता, अपनी पहचान का उत्स, उसका परिवेश ही उसकी दुनिया है। वह अपना परिचय देते हुए लगातार दुनिया से अपने द्विधात्मक और द्वंद्वात्मक संबंधों का मर्म उद्घाटित करता चलता है। वह पूरी कविता का सार एक पंक्ति में कह देता है कि दुनिया से मेरा संबंध प्रीति-कलह का है, मेरा जीवन विरुद्धों का सामंजस्य है।



प्रश्न 3 :‘आत्मपरिचय’ कविता को दृष्टि  में रखते हुए कवि के कथ्य को अपने शब्दों में प्रस्तुत कीजिए ।

उत्तर - ‘आत्मपरिचय’ कविता में कवि कहता है कि यद्यपि वह सांसारिक कठिनाइयों से जूझ रहा है, फिर भी वह इस जीवन से प्यार करता है। वह अपनी आशाओं और निराशाओं से संतुष्ट है। वह संसार से मिले प्रेम व स्नेह की परवाह नहीं करता, क्योंकि संसार उन्हीं लोगों की जयकार करता है जो उसकी इच्छानुसार व्यवहार करते हैं। वह अपनी धुन में रहने वाला व्यक्ति है। कवि संतोषी प्रवृत्ति का है। वह अपनी वाणी के जरिये अपना आक्रोश व्यक्त करता है। उसकी व्यथा शब्दों के माध्यम से प्रकट होती है तो संसार उसे गाना मानता है। वह संसार को अपने गीतों, द्वंद्वों के माध्यम से प्रसन्न करने का प्रयास करता है। कवि सभी को सामंजस्य बनाए रखने के लिए कहता है।




प्रश्न 4 : निम्नलिखित पद्यांश  को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-



मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,

मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ,

जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते,

मैं अपने मन का गान किया करता हूँ।



मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ.

मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ.

है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता

मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ।



(क) कवि ने ‘स्नेह’ को ‘सुरा’ क्यों कहा है? संसार  के प्रति उसके नकारात्मक दृष्टिकोण का क्या कारण है?

उत्तर -कवि ने ‘स्नेह’ को ‘सुरा’ इसलिए कहा है क्योंकि वह प्रेम की मादकता में डूब जाता है। इस मादकता के कारण उसे सांसारिक कष्टों की परवाह नहीं रह जाती।


(ख) संसार  किनकी महत्व देता हैं? कवि को वह महत्व क्यों नहीं दिया जाता?

उत्तर -संसार उन लोगों को महत्त्व देता है जो सांसारिकता में डूबे रहते हैं और सांसारिकता को ही सर्वोत्तम मानते हैं। कवि सांसारिकता से दूर रहता है, इसलिए संसार कवि को महत्व नहीं देता।


(ग) ‘उद्गार’ और ‘उपहार’ कवि को क्यों प्रिय हैं?

उत्तर -कवि को उद्गार इसलिए पसंद है क्योंकि इस उद्गार में उसके मन के भाव समाए हुए हैं, जिन्हें वह दुनिया को देना चाहता है। उसे उपहार इसलिए पसंद हैं, क्योंकि उसके हृदय रूपी उपहार में कोमल भाव समाए हुए हैं।


(घ) आशय स्पष्ट कीजिए :

है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता

मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ।

उत्तर -आशय-कवि को लगता है कि बाहरी संसार प्रेम के बिना अपूर्ण है। संसार में प्रेम का अभाव है, इसलिए संसार द्रु नाहीं भाता। कवि के मना में प्रेम से पिरपूर्ण संसार का एक सपना है जिसे वह साकर रूप देना चाहता है।


प्रश्न 5 : कवि को संसार अपूर्ण क्यों लगता है?


उत्तर -कवि भावनाओं को प्रमुखता देता है। वह सांसारिक बंधनों को नहीं मानता। वह वर्तमान संसार को उसकी शुष्कता एवं नीरसता के कारण नापसंद करता है। वह बार-बार वह अपनी कल्पना का संसार बनाता है तथा प्रेम में बाधक बनने पर उन्हें मिटा देता है। वह प्रेम को सम्मान देने वाले संसार की रचना करना चाहता है।





दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!


प्रश्न 1 दिन जल्दी जल्दी ढलता है यह गीत कवि की किस रचना से उद्धत है उत्तर 1 - prashn 1 din jaldee jaldee dhalata hai yah geet kavi kee kis rachana se uddhat hai uttar 1



1.


हो जाए न पथ में रात कहीं, 

मंजिल भी तो है दूर नहीं-


यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता हैं!

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!



2..


बच्चे प्रत्याशा में होंगे,

नीड़ों से झाँक रहे होंगे-


यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है !

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !


3.

मुझसे मिलने को कौन विकल?

मैं होऊँ किसके हित चंचल?


यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता  है!

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!


din jaldi jaldi dhalta hai geet ka pratipadya

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है कविता का प्रतिपाद्य

निशा-निमंत्रण से उद्धृत इस गीत में कवि प्रकृति की दैनिक परिवर्तनशीलता के संदर्भ में प्राणी-वर्ग के धड़कते हृदय को सुनने की काव्यात्मक कोशिश व्यक्त करता है। किसी प्रिय आलंबन या विषय से भावी साक्षात्कार का आश्वासन ही हमारे प्रयास के पगों की गति में चंचल तेजी भर सकता है-अन्यथा हम शिथिलता और फिर जड़ता को प्राप्त होने के अभिशिप्त हो जाते हैं। यह गीत इस बड़े सत्य के साथ समय के गुजरते जाने के एहसास में लक्ष्य-प्राप्ति के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा भी लिए हुए है।



दिन जल्दी-जल्दी ढलता है  कविता का सारांश



‘एक गीत’ शीर्षक कविता में कवि हरिवंश राय बच्चन कहते हैं कि समय हमेशा चलता रहता है और उसके बीतने का अहसास हमें लक्ष्य-प्राप्ति के लिए और अधिक प्रयास करने की प्रेरणा देता है। रास्ते में चलने वाला राहगीर यही सोचकर अपनी मंजिल की ओर तेज गति से कदम बढ़ाता है कि कही रास्ते में ही रात ना हो जाए। पक्षियों को भी दिन बीतने के साथ यह अहसास होता है कि उनके बच्चें भोजन पाने की आशा में नीड़ों से झाँक रहे होंगे। यह सोचकर चिड़ियाँ के पंखों में तेजी आ जाती है। इन पंक्तियों में आशावादी स्वर है। आशा की किरण जीवन की जड़ता को समाप्त कर देती है और पाठकों को सकारात्मक सोच तक ले जाने का प्रयास करती हैं। लेकिन कवि का जीवन तो एकाकी है और घर पर उसकी प्रतीक्षा करने वाला कोई भी नहीं है। घर पर ऐसा कोई भी नहीं है जो कि उसके लिए व्याकुल होगा और इसी निराशा के कारण कवि का मन कुंठा से भर जाता है, उसकी गति मंद पड़ जाती है। इन पंक्तियों के द्वारा कवि ने अपने जीवन के अकेलेपन की पीड़ा को वाणी दी है।



 परीक्षा के लिए उपयोगी प्रश्न 


प्रश्न 1: काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-


दिन जल्दी जल्दी ढलता है

हो जाए न पथ में रात कहीं

मंजिल भी तो है दूर नहीं

यह सोच थका दिन का पंथी भी 

जल्दी-जल्दी चलता है.


(क) काव्यांश का भाव सौंदर्य लिखिए.

उत्तर- भाव सौंदर्य - यह काव्यांश श्री हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित ‘एकगीत’ नामक कविता से अवतरित है इसमें कवि ने समय की परिवर्तनशीलता एवं जीवन की क्षणभंगुरता का स्पष्ट चित्रण किया है समय निरंतर चलायमान एवं परिवर्तनशील है वह प्रतिपल बदलता है यही धारणा लेकर थका हुआ यात्री शीघ्रता से अपनी मंजिल की तरफ चलता है कि लक्ष्य पर पहुंचने से पहले देर ना हो जाए|


(ख) काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य लिखिए .

उत्तर- शिल्प-सौंदर्य - भाषा सरल एवं हिंदी की खड़ी बोली है, तत्सम तद्भव शब्दों का प्रयोग’ जल्दी-जल्दी में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है’ सार्थक एवं सटीक बिम्ब योजना है, मुक्तक छंद है |


प्रश्न 2. ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ कविता में “एक ओर प्रकृति की वत्सलता झलकती है तो दूसरी ओर कविता की उदासी” टिप्पणी कीजिए।

उत्तर- यह कविता हरिवंश राय बच्चन के काव्य संग्रह ‘एक गीत’ में से ली गई है। इस कविता में कवि ने अपने व्यक्तिगत दुख को कविता का माध्यम बनाया है। यह कविता उनकी पहली पत्नी की अकाल मृत्यु से उत्पन्न दुख, वेदना, पीड़ा और एकाकीपन के बोध की अभिव्यक्ति है। कवि को लगता है कि उसकी पत्नी स्वर्ग से आमंत्रित कर रही है, दिशा बोध दे रही है और कर्मपथ पर आगे बढने की प्ररणा दे रही है। इस कविता के दूसरे पहलू में प्रकृति की वत्सलता को भी दर्शाता है। उसके अनुसार पक्षी भी संध्या के समय अपने-अपने घोंसलों में पहुंचने की जल्दी में हैं। उन्हे घोंसलों में प्रतीक्षा करते अपने बच्चों की चिंता और आतुरता है। इसी से उनके पंखों में ताजगी और स्फूर्ति आ जाती है, जो उसे दिन ढलने से पहले ही घोंसलों में पहुंचने के लिए प्रेरित करती है। कवि कहता है कि उसे पता ही नहीं चल पाता है कि कब दिन ढल गया है। रात भी लम्बी है। पथिक को भय है कि कही रास्ते में ही रात न हो जाए। दिन भर का थका मांदा पथिक रात के अंधकार के विषाद के आने से पहले ही अपनी मंजिल पर पहुंचना चाहता है। दिन जल्दी-जल्दी बीतता है अर्थात समय परिवर्तनशील है और वह किसी के लिए नहीं रुकता है।


प्रश्न 3. कविता ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ में पक्षी तो घर लौटने को विकल है, पर कवि में उत्साह नहीं है। ऐसा क्यो?

उत्तर- प्रस्तुत कविता ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ में शाम को घर लौटते हुए पक्षियों को व्याकुल और आतुर बच्चों की याद आने लगती है और उनसे मिलने के लिए वे भी बेचैन हो जाते हैं, जिसकी वजह से उनके पंखों में तेजी व चंचलता आ जाती है और वे शीघ्र ही घर पहुंचने का प्रयास करने लगते हैं। इस कविता में आगे बताया गया है कि कवि के घर में उसकी प्रतीक्षा करने वाल कोई भी नहीं है। घर में उसके आने के इंतजार में कोई व्याकुल नहीं होगा और वह सोचने लगता है कि वह घर जाने की शीघ्रता क्यो करे। अतः पक्षी तो घर लौटने को व्याकुल है परंतु कवि में कोई उत्साह नहीं है.


प्रश्न 4 : "दिन जल्दी – जल्दी ढलता है" :कविता का उद्येश्य  बताइए।

उत्तर - यह गीत प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन की कृति निशा-निमंत्रण से उद्धृत है। इस गीत में कवि प्रकृति की दैनिक परिवर्तनशीलता के संदर्भ में प्राणी-वर्ग के धड़कते हृदय को सुनने की काव्यात्मक कोशिश को व्यक्त करता है। किसी प्रिय आलंबन या विषय से भावी साक्षात्कार का आश्वासन ही हमारे प्रयास के पगों की गति में चंचलता यानी तेजी भर सकता है। इससे हम शिथिलता और फिर जड़ता को प्राप्त होने से बच जाते हैं। यह गीत इस बड़े सत्य के साथ समय के गुजरते जाने के एहसास में लक्ष्य-प्राप्ति के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा भी लिए हुए है।


प्रश्न 5  : कौन-सा विचार दिन ढलने के बाद लौट रहे पंथी के कदमों को धीमा कर देता हैं? ‘बच्चन’ के गीत के आधार पर उत्तर दीजिए।

उत्तर - कवि एकाकी जीवन व्यतीत कर रहा है। शाम के समय उसके मन में विचार उठता है कि उसके आने के इंतजार में व्याकुल होने वाला कोई नहीं है। अत: वह किसके लिए तेजी से घर जाने की कोशिश करे। शाम होते ही रात हो जाएगी और कवि की विरह-व्यथा बढ़ने से उसका हृदय बेचैन हो जाएगा। इस प्रकार के विचार आते ही दिन ढलने के बाद लौट रहे पंथी के कदम धीमे हो जाते हैं।



प्रश्न 6 : यदि संजिल दूर हो तो लोगों की वहाँ पहुँचने की मानसिकता कैसी होती हैं?

उत्तर - मंजिल दूर होने पर लोगों में उदासीनता का भाव आ जाता है। कभी-कभी उनके मन में निराशा भी आ जाती है। मंजिल की दूरी के कारण कुछ लोग घबराकर प्रयास करना छोड़ देते हैं। कुछ व्यर्थ के तर्क-वितर्क में उलझकर रह जाते हैं। मनुष्य आशा व निराशा के बीच झूलता रहता है।


प्रश्न 7 :निम्नलिखित काव्य-पक्तियों के काव्य-सौन्दर्य  पर प्रकाश डालिए-


मुझसे मिलने को कौन विकल?

मैं होऊँ किसके हित चंचल?

यह प्रश्न शिथिल करता पद को, 

भरता उर में विह्वलता है!

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!


उत्तर -


भावसौंदर्य 

शाम निकट जानकर प्राणी अपने-अपने घर आने को उद्धृत हैं, क्योंकि उनके घर पर कोई-न-कोई उनकी प्रतीक्षा कर रहा होता है। पर कवि के आने के इंतजार में कोई प्रतीक्षारत नहीं है, इसलिए उसके कदम शिथिल हैं।


शिल्पसौंदर्य

प्रश्न अलंकार का प्रयोग है।

‘जल्दी-जल्दी’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

सरल, सहज, प्रवाहमयी भाषा भावाभिव्यक्ति के अनुकूल है।

तत्सम शब्दों का प्रयोग है।



प्रश्न 8 : ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।


उत्तर - ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ कविता प्रेम की महत्ता पर प्रकाश डालती है। प्रेम की तरंग ही मानव के जीवन में उमंग और भावना की हिलोर पैदा करती है। प्रेम के कारण ही मनुष्य को लगता है कि दिन जल्दी-जल्दी बीता जा रहा है। इससे अपने प्रियजनों से मिलने की उमंग से कदमों में तेजी आती है तथा पक्षियों के पंखों में तेजी और गति आ जाती है। यदि जीवन में प्रेम हो तो शिथिलता आ जाती है।



प्रायः पूछे जाने वाले महत्त्वपूर्ण प्रश्न 


  • मैं और,और जग और , कहाँ का नाता........ भाव स्पष्ट कीजिए .
  • कवि के ह्रदय के तारों को किसने छूकर झंकृत कर दिया होगा ?
  • कवि कैसे जीवन की कामना करता है ?
  • कवि और संसार के मध्य कैसा संबंध है?
  • शीतल वाणी में आग होने का क्या तात्पर्य है?
  • जहाँ पर दाना रहते हैं वहीं नादान भी होते हैं- आशय स्पष्ट कीजिए.
  • कवि ने अपने आप को किसका दीवाना कहा है और क्यों?
  • बच्चें किस बात की आशा में नीड़ों से झाँक रहे होंगे?
  • दिन जल्दी-जल्दी ढलता है – का अर्थ स्पष्ट कीजिए.
  • घर लौटते हुए कवि के कदम शिथिल क्यों हो जाते हैं?


 स्वयं करें 


  • कवि का कहना है कि उसने स्नेह-सुरा का पान किया है। इस पान का उस पर क्या प्रभाव पड़ा है?
  • कवि बच्चन को कैसा संसार अच्छा नहीं लगता, और क्यों?
  • ‘सत्य किसी ने नहीं जाना’-कवि ने ऐसा क्यों कहा है?
  • कवि ने किस पृथ्वी को ठुकराने की बात कही है? कवि के कथन से आप कितना सहमत हैं और क्यों?
  • राही दिन ढलने से पूर्व ही मंजिल पर पहुँच जाना चाहता है, ऐसा क्यों?
  • चिड़िया के परों में चंचलता आने के क्या-क्या कारण हो सकते हैं?
  • उस प्रश्न का उल्लेख कीजिए जो कवि-मन को विह्वलता से भर देता है। इससे उस पर क्या प्रभाव पड़ता है?

  • निम्नलिखित काव्यांशों के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए.


मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ,

मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ,

है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता

मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ!


(क) भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

(ख) अतिम पक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

(ग) काव्यांश कीभाषिक – शिल्प संबंधी विशेषताएँ लिखिए-



बच्चे प्रत्याशा में होंगे

नीड़ों से झाँक रहे होंगे

यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!



(क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ।

(ख) काव्य की भाषा संबंधी दो विशेषताएँ लिखिए।

(ग) अलंकार एवं बिंब विधान स्पष्ट कीजिए ।



आरोह भाग-2

पाठ-1 एक गीत : दिन जल्दी-जल्दी ढलता है 

(हरिवंश राय बच्चन)



पठित पद्यांश- 1



हो जाए न पथ में रात कहीं,

मंजिल भी तो है दूर नहीं-

यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!



प्रश्न-1 पंथी को कहाँ रात होने की संभावना है?


(I)पथ में      (II)घर में 

(III)बाज़ार में (IV)गली में


उत्तर- (I)पथ में


प्रश्न-2 क्या दूर नहीं है?


(I)विद्यालय (II)दुकान 

(III)मंजिल (IV)शहर


उत्तर- (III)मंजिल


प्रश्न-3 कौन जल्दी-जल्दी चलता है?


(I)शिक्षक (II)पंथी 

(III)विद्यार्थी (IV)अभिभावक


उत्तर- (II)पंथी


प्रश्न-4 पंथी कैसे चलता है?


(I)धीरे-धीरे (II)दौड़कर 

(III)हँसकर (IV)जल्दी-जल्दी


उत्तर- (IV)जल्दी-जल्दी


प्रश्न-5 दिन कैसे ढलता है?


(I)जल्दी-जल्दी (II)धीरे-धीरे 

(III)मंद गति से (IV)आस्य से


उत्तर- (I)जल्दी-जल्दी



पठित पद्यांश-2



बच्चे प्रत्याशा में होंगे,

नीड़ों से झाँक रहे होंगे-

यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!



प्रश्न-1 बच्चे कैसे होंगे?


(I)सुख में (II)प्रत्याशा 

(III)दुख में (IV)घर में


उत्तर- (II) प्रत्याशा


प्रश्न-2 बच्चे कहाँ से झाँकते होंगे?


(I)नीड़ों से (II)दरवाजे से 

(III)आसमान से (IV)शहर से


उत्तर- (I)नीड़ों से


प्रश्न-3 चिड़ियों के परों में क्या भरती है?


(I)उड़ान (II)गति 

(III)चंचलता (IV)तेजी


उत्तर- (III)चंचलता


प्रश्न-4 बच्चे किसकी प्रत्याशा में होंगे?


(I)दोस्त की (II)पिता की 

(III)भाई की (IV)चिड़ियों की


उत्तर- (IV)चिड़ियों की


प्रश्न-5 दिन कैसे ढलता है?


(I)जल्दी-जल्दी (II)धीरे-धीरे 

(III)मंद गति से (IV)आलस्य से 


उत्तर- (I)जल्दी-जल्दी



लघुत्तरीय प्रश्न


प्रश्न- 1पंथी को कहाँ रात होने की संभावना है?

उत्तर-पंथी को कहाँ रास्ते में होने की संभावना है क्योंकि उसे जल्दी अपनी मंजिल तक पहुँचना है.


प्रश्न -2पंथी के लिए क्या दूर नहीं है?

उत्तर-पंथी के लिए मंजिल दूर नहीं है क्योंकि उसके मन में अपनी मंजिल तक पहुँचने का उत्साह और उमंग है.


प्रश्न-3 कौन जल्दी-जल्दी चलता है?

उत्तर-पंथी जल्दी-जल्दी चलता है क्योंकि उसे अपनी मंजिल को पाना है.


प्रश्न-4 बच्चे किसकी प्रत्याशा में होंगे?

उत्तर-बच्चे अपनी माँ की प्रत्याशा में होंगे क्योंकि माँ उन्हें दाना देगी और माँ से उन्हें प्यार भी मिलेगा.


प्रश्न-5 चिड़ियों के परों में चंचलता क्यों आती है?

उत्तर-जब चिड़ियों को अपने बच्चों की याद आती है तब उनके परों में चंचलता आती है, वे अपने बच्चों से जल्दी ही मिलना चाहती है और उन्हें बहुत सारा प्यार देना चाहती है.




कवि परिचयहरिवंश राय बच्चन


हरिवंश राय बच्चन का जीवन परिचय


कविवर हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर सन 1907 को इलाहाबाद में हुआ था। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी विषय में एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा 1942-1952 ई० तक यहीं पर प्राध्यापक रहे। उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय, इंग्लैंड से पी-एच०डी० की उपाधि प्राप्त की। अंग्रेजी कवि कीट्स पर उनका शोधकार्य बहुत चर्चित रहा। वे आकाशवाणी के साहित्यिक कार्यक्रमों से संबंद्ध रहे और फिर विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ रहे। उन्हें राज्यसभा के लिए भी मनोनीत किया गया। 1976 ई० में उन्हें ‘पद्मभूषण’ से अलंकृत किया गया। ‘दो चट्टानें’ नामक रचना पर उन्हें साहित्य अकादमी ने भी पुरस्कृत किया। उनका निधन 2003 ई० में मुंबई में हुआ।


 

हरिवंश राय बच्चन की प्रमुख रचनाएँ 


काव्य-संग्रह-

मधुशाला (1935), मधुबाला (1938), मधुकलश (1938), निशा-निमंत्रण, एकांत संगीत, आकुल-अंतर, मिलनयामिनी, सतरंगिणी, आरती और अंगारे, नए-पुराने झरोखे, टूटी-फूटी कड़ियाँ।


आत्मकथा-

क्या भूलूँ क्या याद करूं, नीड़ का निर्माण फिर, बसेरे से दूर, दशद्वार से सोपान तक।


अनुवाद-

हैमलेट, जनगीता, मैकबेथ।


डायरी-

प्रवासी की डायरी।


हरिवंश राय बच्चन की काव्यगत विशेषताएँ 

बच्चन हालावाद के सर्वश्रेष्ठ कवियों में से एक हैं। दोनों महायुद्धों के बीच मध्यवर्ग के विक्षुब्ध विकल मन को बच्चन ने वाणी दी। उन्होंने छायावाद की लाक्षणिक वक्रता की बजाय सीधी-सादी जीवंत भाषा और संवेदना से युक्त गेय शैली में अपनी बात कही। उन्होंने व्यक्तिगत जीवन में घटी घटनाओं की सहज अनुभूति की ईमानदार अभिव्यक्ति कविता के माध्यम से की है। यही विशेषता हिंदी काव्य-संसार में उनकी प्रसिद्धी  का मूलाधार है। 


भाषा-शैली


कवि ने अपनी अनुभूतियाँ सहज स्वाभाविक ढंग से कही हैं। इनकी भाषा आम व्यक्ति के निकट है। बच्चन का कवि-रूप सबसे विख्यात है उन्होंने कहानी, नाटक, डायरी आदि के साथ बेहतरीन आत्मकथा भी लिखी है। इनकी रचनाएँ ईमानदार आत्मस्वीकृति और प्रांजल शैली के कारण आज भी पठनीय हैं।