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चैत्र पूर्णिमा के दिन होते हैं ये कार्य
पूर्णिमा का व्रत तो हर महीना आता है लेकिन सनातन धर्म में चैत्र पूर्णिमा का विशेष महत्व है। चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को चैत्र पूर्णिमा कहते हैं, जो कि आज है। चैत्र हिंदी वर्ष का प्रथम मास होता है इसलिए इसे प्रथम चंद्रमास भी कहा जाता है। चैत्र पूर्णिमा को भाग्यशाली पूर्णिमा भी माना गया है। कहते हैं इस दिन व्रत रखने से न सिर्फ मनोकामना की पूर्ति होती है बल्कि ईश्वर की भी अपार कृपा बरसती है। इस दिन विशेष रूप से चंद्रमा की पूजा जाती है। आइए जानते हैं चैत्र पूर्णिमा के महत्व के बारे में…
चैत्र पूर्णिमा की महिमा
- पुराणों के अनुसार चैत्र पूर्णिमा पर विधि-विधान से पूजा करने पर श्री हरि विष्णु की विशेष कृपा मिलती है।
- चंद्र देव व्रती को मनोवांछित फल देते हैं और दान करने से चंद्र देव प्रसन्न होते हैं और जीवन में समृद्धि का आर्शीवाद देते हैं।
- पतितपावनी गंगा में स्नान से सभी दु:ख दूर हो जाते हैं।
- पुराणों में वर्णित है कि इस दिन आप तुलसी स्नान करके मां लक्ष्मी की विशेष कृपा पा सकते हैं।
चैत्र पूर्णिमा व्रत विधि
व्रत कोई भी हो पूरी श्रद्धा और आस्था से इसका पालन नहीं किया जाए तो उसका फल नहीं मिलता। चैत्र पूर्णिमा में भी इसी नियम का पालन किया जाता है। इसके लिए पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके व्रत का संकल्प करना चाहिए। इस दिन माता लक्ष्मी की भी उपासना करना चाहिए। इसके लिए आप कनकधारा स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं। इसके बाद रात्रि के समय चंद्रमा को जल अर्पित करें और पूजा करें। इसके बाद अन्न से भरे घड़े को किसी ब्राह्मण या फिर किसी गरीब व्यक्ति को दान कर देना चाहिए। इस तरह से चंद्रदेव प्रसन्न होते हैं और व्रती की सभी मनोकामनाएं पूरी होने का आशीर्वाद देते हैं।
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सत्यनारायण भगवान की होती है पूजा
चैत्र पूर्णिमा के दिन ही सत्यनारायण भगवान की पूजा की जाती है और इस दिन उपवास भी रखा जाता है। जो लोग रामायण या भागवत कथा का आयोजन करवाने में असर्मथ होते हैं, वह इस दिन सत्यनारायण भगवान की कथा करवाते हैं। यह कथा पूर्णिमा के दिन घर पर करवाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
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महारास का होता है समापन
चैत्र पूर्णिमा को चैती पूनम के नाम से भी जानी जाती है। धार्मिक पुराणों के अनुसार, इस दिन भगवान कृष्ण ने ब्रज में रास के उत्सव का समापन किया था। यह उत्सव महारास के नाम से जाना जाता है। यह महारास कार्तिक पूर्णिमा को शुरू होकर चैत्र पूर्णिमा को समाप्त हुआ था। बताया जाता है कि इस महारास में हाजरों गोपियों ने भाग लिया था और भगवान कृष्ण ने हर गोपी के साथ नृत्य किया था।
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चैत्र पूर्णिमा का धार्मिक महत्व
हर पूजा-पाठ की तरह चैत्र पूर्णिमा का अपना अलग महत्व है। जिस दिन आकाश में पूरा चांद दिखाई देता है, उसे पूर्णिमा की रात कहा जाता है। मतलब अंधाकर पर प्रकाश की जीत और बुराई पर अच्छाई की जीत। माना जाता है कि इस दिन पूजा करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है और भगवान भक्त के हर कष्ट को दूर करते हैं। इस दिन दान-पुण्य का भी विशेष महत्व बताया गया है। दान करने मनोवांछित फल की प्राप्ति भी होती है।
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इस दिन होगा कुंभ का अंतिम शाही स्नान
चैत्र पूर्णिमा के दिन कुंभ का अंतिम शाही स्नान किया जाएगा। इस दिन अखाड़े के सन्यासी कुंभ का अंतिम शाही स्नान करेंगे। हालांकि कोरोना वायरस की वजह से यह स्नान सांकेतिक होगा। पुराणों में बताया गया है कि देवी-देवता कुंभ में अदृश्य होकर स्नान करते हैं और धन्य मानते हैं। कुंभ का अंतिम स्नान तीनों बैरागी अणियों के लिए सबसे बड़ा माना जाता है। इस दिन वैष्णवों का तिलक वैभव दर्शनीय होगा।
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हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 12 जुलाई दिन मंगलवार को शाम 06 बजकर 30 मिनट पर शुरू होगी। वहीं इस तिथि का समापन अगले दिन 13 जुलाई बुधवार को दोपहर 02 बजकर 36 मिनट पर होगा। ऐसे में उदयातिथि के अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा व्रत 13 जुलाई को रखा जाएगा।
अश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा यानी कि शरद पूर्णिमा तिथि 9 अक्टूबर 2022 को सुबह 03 बजकर 41 मिनट से शुरू होगी.