पल्लवन शब्द की उत्पत्ति किस शब्द से हुई है - pallavan shabd kee utpatti kis shabd se huee hai

किसी निर्धारित विषय जैसे सूत्र-वाक्य, उक्ति या विवेच्य-बिन्दु को उदाहरण, तर्क आदि से पुष्ट करते हुए प्रवाहमयी, सहज अभिव्यक्ति-शैली में मौलिक, सारगर्भित विस्तार देना पल्लवन (expansion) कहलाता है। इसे विस्तारण, भाव-विस्तारण, भाव-पल्लवन आदि भी कहा जाता है।

सूत्र रूप में लिखी या कही गई बात के गर्भ में भाव और विचारों का एक पुंज छिपा होता है। विद्वान् जन एक पंक्‍त‌ि पर घंटों बोल लेते हैं और कई बार तो एक पूरी पुस्तक ही रच डालते हैं। यही कला 'पल्लवन' कहलाती है।

पल्लवन के कुछ सामान्य नियम:- (1) पल्लवन के लिए मूल अवतरण के वाक्य, सूक्ति, लोकोक्ति अथवा कहावत को ध्यानपूर्वक पढ़िए, ताकि मूल के सम्पूर्ण भाव अच्छी तरह समझ में आ जायँ।

(2) मूल विचार अथवा भाव के नीचे दबे अन्य सहायक विचारों को समझने की चेष्टा कीजिए।

(3) मूल और गौण विचारों को समझ लेने के बाद एक-एक कर सभी निहित विचारों को एक-एक अनुच्छेद में लिखना आरम्भ कीजिए, ताकि कोई भी भाव अथवा विचार छूटने न पाय।

(4) अर्थ अथवा विचार का विस्तार करते समय उसकी पुष्टि में जहाँ-तहाँ ऊपर से कुछ उदाहरण और तथ्य भी दिये जा सकते हैं।

(5) भाव और भाषा की अभिव्यक्ति में पूरी स्पष्टता, मौलिकता और सरलता होनी चाहिए। वाक्य छोटे-छोटे और भाषा अत्यन्त सरल होनी चाहिए। अलंकृत भाषा लिखने की चेष्टा न करना ही श्रेयस्कर है।

(6) पल्लवन के लेखन में अप्रासंगिक बातों का अनावश्यक विस्तार या उल्लेख बिलकुल नहीं होना चाहिए।

(7) पल्लवन में लेखक को मूल तथा गौण भाव या विचार की टीका-टिप्पणी और आलोचना नहीं करनी चाहिए। इसमें मूल लेखक के मनोभावों का ही विस्तार और विश्लेषण होना चाहिए।

(8) पल्लवन की रचना हर हालत में अन्यपुरुष में होनी चाहिए।

(9) पल्लवन व्यासशैली की होनी चाहिए, समासशैली की नहीं। अतः इसमें बातों को विस्तार से लिखने का अभ्यास किया जाना चाहिए।

(10) पल्लवन में निबंधात्मकता का गुण होता है।

परिचय[संपादित करें]

भाव पल्लवन का अर्थ है- 'किसी भाव का विस्तार करना'। इसमें किसी उक्ति, वाक्य, सूक्ति, कहावत, लोकोक्ति आदि के अर्थ को विस्तार से प्रस्तुत किया जाता है। विस्तार की आवश्यकता तभी होती है, जब मूल भाव संक्षिप्त, सघन या जटिल हो। भाषा के प्रयोग में कई बार ऐसी स्थितियां आती है। जब हमें किसी उक्ति में निहित भावों को स्पष्ट करना पड़ता है। इसी को भाव-पल्लवन कहते है।

हम अपने भाषा व्यवहार में कई सूत्र वाक्य सूक्तियाँ, कहावतें, लोकोक्तियाँ आदि बोलते और सुनते रहते है। उदाहरण के लिये,

स्वाधीनता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।जहाँ सुमति तहँ संपति नाना। जहाँ कुमति तहँ बिपति निधाना।। परहित सरिस धरम नहीं भाई।

इन सूक्तियों ओर कहावतों में भाव या विचार गठे और एक दूसरे के साथ बंधे रहते है। इन विचारों या भावों के समझने के लिए इनका विस्तार से विवेचन करना होता है ताकि उस सूत्र, वाक्य, सूक्ति या कहावत में छिपे गहरे अर्थ को स्पष्ट किया जा सके।

हमारी कहावतें या लोकोक्तियाँ हमारे समाज के अनुभव को अपने में समेटे होती हैं। ये लोकोक्तियां वस्तुतः पूरे समाज के विचारों का सार प्रस्तुत करती हैं। इसी प्रकार कई विचारक, विद्वान या संत-महात्मा ऐसे सूत्र वाक्य प्रस्तुत करते हैं, जिनमें वे कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक बात कह जाते हैं। इस बात को समझाने और समझाने के लिए हमें सोचना भी पड़ता है और उसका विस्तार भी करना पड़ता है। इसी को भाव-पल्लवन कहते हैं। वास्तव में भाषा व्यवहार में निपुण होने के लिए हमें भाव पल्लवन का अभ्यास करना आवश्यक है, जिससे हम ऐसी अभिव्यक्तियों में निहित भाव का इस प्रकार विस्तार करें कि सुनने वाले या पढ़ने वाले व्यक्ति को अपनी बात समझा सकेंं।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • संक्षेपण
  • अनुच्छेद
  • निबन्ध

पल्लवन किसे कहते हैं? अर्थ, परिभाषा, इसके नियम, उदाहरण सहित |
Pallavan Meaning, Definition, Rules and Example in Hindi

पल्लवन का अर्थ, परिभाषा | Pallavan Meaning, Definition in hindi

पल्लवन शब्द का शाब्दिक अर्थ है - विस्तार.  अर्थात कोई दिया हुआ निर्धारित विषय जैसे की लोकोक्ति, उक्ति, सूक्ति, वाक्य, कहावत आदि के भावों को समझना व विस्तार देना ‘पल्लवन’ कहलाता है. 

इसमें किसी विषय को विस्तारपूर्वक बताया जाता है ताकि उस सूत्र-वाक्य में छिपे हुए गहरे भाव को सरलता से सामने प्रस्तुत किया जा सके. ‘पल्लवन’ संक्षेपण का विपरीतार्थक शब्द है.  संत, महात्मा, विद्वान आदि संक्षिप्त और प्रतीक संबंधी शब्दों का प्रयोग करते हुए ऐसी जटिल बात कह देते हैं जो उनके लिए तो सरल होती है पर सामान्य व्यक्ति के लिए इसके भावों को समझने में कठिनाई होती है. अर्थात इसलिए ऐसे वाक्यों को पल्लवन की सहायता से स्पष्ट किया जाता है.

पल्लवन के कुछ नियम | Rules For Pallavan

  • पल्लवन के लिए मूल अवतरण के उक्ति, वाक्य, सूक्ति, लोकोक्ति तथा कहावत को ध्यानपूर्वक पढ़े ताकि मूल के सम्पूर्ण भाव अच्छी तरह समझ में आ जाए.
  • मूल विचार अथवा भाव के नीचे दबे अन्य विचारों को समझने का प्रयत्न करें.
  • प्रधान और अप्रधान विचारों को समझ लेने के बाद एक-एक कर सभी स्थापित विचारों को एक-एक अनुच्छेद में लिखना आरंभ कीजिए ताकि कोई भी भाव तथा विचार छूटने न पाए.
  • अर्थ तथा विचार का विस्तार करते समय उसकी दृढ़ता में जहाँ-तहाँ ऊपर से कुछ उदाहरण और वास्तविक घटना भी दिये जा सकते हैं.
  • पल्लवन के लेखन में प्रसंग के विरुद्ध बातों का अनावश्यक विस्तार या वर्णन बिलकुल भी नहीं होना चाहिए.
  • पल्लवन में लेखक को प्रधान और अप्रधान भाव या विचार की टीका – टिप्पणी और विवेचना नहीं करनी चाहिए. इसमें मूल लेखक के मनोभावों का ही विस्तार और तत्वसंधान होना चाहिए.
  • भाव और भाषा की प्रकाशन में पूरी सरलता, मौलिकता और स्पष्टता होनी चाहिए एवं वाक्य छोटे-छोटे और भाषा अत्यन्त सरल होनी चाहिए.
  • पल्लवन(Pallavan) की रचना हर परिस्थिति में अन्यपुरुष में होना चाहिए.
  • पल्लवन व्यास शैली की होनी चाहिए ना की समास शैली में. अर्थात इसमें बातों को विस्तार से लिखने का अभ्यास किया जाना चाहिए.

शैली किसे कहते हैं ?

विचारों तथा भावों का उचित संग्रह कर उस विषय की अभिव्यक्ति को सुंदर एवं प्रभावपूर्ण प्रस्तुत करना ही शैली कहलाता है. 
  • व्यास शैली – व्यास शैली में पहले भाव को विस्तार से लिखा जाता है तथा अंत में उसको सूत्र रूप में संग्रह कर दिया जाता है. सरल भाषा में कहे तो किसी प्रशिक्षक के भांति विस्तारपूर्वक बात समझाई जाती है और पाठक के सामने प्रस्तुत किया जाता है.
  • समास शैली– यह शैली में सहज, कठिन, दुरूह, संधि व समास पदों से सम्मिलित भाषा का प्रयोग किया जाता है. मिश्र वाक्यों से युक्त जटिल भाषा में पहले महत्त्वपूर्ण व सूत्र रूप में बात कहकर उसका विस्तार किया जाता है.

पल्लवन के कुछ उदाहरण | Pallavan Example

  1. मूल कथन – “दय नहीं वह पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं.”

पल्लवन – हर एक व्यक्ति अपनी जन्मभूमि और अपने देश से उसी प्रकार स्नेह रखता है जिस प्रकार वह माता – पिता के प्रति श्रद्धा तथा स्नेह रखता है. हर एक व्यक्ति के हृदय में अपने देश के प्रति अपनापन की भावना रहती है. इसे ही देशप्रेम या देशभक्ति कहा जाता है. जो व्यक्ति अपने देश से प्रेम नहीं करता है वह पत्थर दिल का होता है क्योंकि उसमें अपनेपन की भावना का कमी रहता है. 

2. मूल कथन – “कर्ता से बढ़कर कर्म का स्मारक दूसरा नहीं.”

पल्लवन – किसी कर्म का सबसे बड़ा स्मारक उस काम या कर्म को करने वाला अर्थात कर्ता होता है. जब हम किसी काम की प्रशंसा करते हैं तो हमारी नज़र उस कार्य को करने वाले की ओर जाती है. जब हमें उसी प्रकार के कार्य करने का अच्छा अवसर मिलता होता है तो पथप्रदर्शन के लिए उसके कर्ता की ओर ध्यान चला जाता है अर्थात वह कर्ता हमारा आदर्श बन जाता है. कर्मों द्वारा ही समाज में कर्ता की स्थिति बहुत मजबूत और प्रभावित बनती है. अतः इसलिए कर्म का स्मारक कर्ता के सिवाय कोई दूसरा नहीं हो सकता है.

3. मूल कथन – “नर और नारी जनमते और मरते हैं, परन्तु राष्ट्र सदा अमर रहता है.”

पल्लवन – संसार में अगणित नर तथा नारियों का जन्म प्रत्येक क्षण होता रहता है और हर क्षण मृत्यु भी होती है. मनुष्य के साथ जीना – मरना सदा लगा रहता है. यह निश्चित है की जन्म होता है तो मृत्यु भी होगी. परंतु राष्ट्र हमेशा अमर है इसकी आत्मा भी. राष्ट्र मनुष्य की तरह जीता या मरता नहीं है. व्यक्तियों के मरने से राष्ट्र नहीं मरता. जब तक राष्ट्र की अंतरंग एकता बहुत मजबूत रहती है उसपर कोई भी बाहरी शक्ति उँगली उठाने की हिम्मत नहीं कर सकता उसका अमरत्व बना रहता है. अतः नर-नारी के जनम – मरण पर भी राष्ट्र अमर है बल्कि राष्ट्र की जो संस्कृति और राष्ट्रीयता है वह सारे राष्ट्र के नागरिकों के धर्म परिवर्तन तक कर लेने पर वही रहती है बदलती नहीं.

इसे भी पढ़े :

  • संबंधबोधक अव्यय की परिभाषा, भेद और उदाहरण
  • उपवाक्य की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण

पल्लवन का दूसरा नाम क्या है?

इसे विस्तारण, भाव-विस्तारण, भाव-पल्लवन आदि भी कहा जाता है।

पल्लवन का शाब्दिक अर्थ क्या होता है?

किसी निर्धारित विषय जैसे सूत्र-वाक्य, उक्ति या विवेच्य-बिन्दु को उदाहरण, तर्क आदि से पुष्ट करते हुए प्रवाहमयी, सहज अभिव्यक्ति-शैली में मौलिक, सारगर्भित विस्तार देना पल्लवन (expansion) कहलाता है।

पल्लवन का मूल आधार क्या है?

पल्लवन में मूल लेखक के मनोभावों का ही विस्तार होना चाहिये। टीका-टिप्पणी या आलोचना नहीं करनी चाहिये। पल्लवन समास-शैली की जगह व्यास-शैली में लिखना चाहिये अर्थात् इसमें तथ्य को विस्तार से लिखा जाना चाहिये। इसमें सामासिक शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिये।

पल्लवन कौन सी विधा में लिखा है?

गद्य तथा पद्य, दोनों का संक्षेपण तो होता है, पर पल्लवन का रूप गद्यात्मक ही होता है। पल्लवन कर्ताओं को सृजनशील होना चाहिए। सृजनशीलता के लिए प्रतिभा और अभ्यास दोनों की आवश्यकता होती है। जिसमें सृजनात्मक क्षमता नहीं होती, पल्लवन उसके सामर्थ्य के बाहर की विधा है।