पहले तीन आम चुनाव में कांग्रेस का प्रभुत्व क्यों बना रहा? - pahale teen aam chunaav mein kaangres ka prabhutv kyon bana raha?

नई दिल्ली: आजादी के बाद अगले 50 वर्षों तक देश के सियासी पटल पर कांग्रेस पार्टी का दबदबा रहा। 2014 के बाद वह स्थान भाजपा ने ले लिया है। 'द न्यू बीजेपी' के लेखक और स्कूल ऑफ मॉडर्न मीडिया, UPES के डीन नलिन मेहता ने कांग्रेस और भाजपा के दबदबे को लेकर हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में एक विश्लेषण किया है। वह लिखते हैं कि 1964 में जवाहरलाल नेहरू की मौत के कुछ महीने बाद एक युवा राजनीतिक विचारक रजनी कोठारी ने 'भारत में कांग्रेस सिस्टम' नाम से एक आर्टिकल लिखा था। इसमें उन्होंने तर्क दिया था कि भारत की राजनीतिक व्यवस्था पर 'एक पार्टी का प्रभुत्व' है। यह एक प्रतिस्पर्धी राजनीति थी लेकिन दूसरे राजनीतिक दल मजबूत नहीं हो सके।

रजनी ने कांग्रेस को एक आम सहमति वाली पार्टी बताया था। तब कांग्रेस के वर्चस्व के कारण विपक्षी दलों का दबाव प्रभावी नहीं रह सका। इस राजनीतिक व्यवस्था में चुनाव के समय दबाव का मार्जिन घटा या बढ़ा। हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर खंडित और विभाजित विपक्ष ने कांग्रेस की 'सहमति' को और अधिक वैध बना दिया। यह पुरानी कांग्रेस प्रणाली मोटे तौर पर नेहरू से लेकर नरसिम्हा राव तक चलती रही और आजादी के 50वें वर्ष तक काफी हद तक ध्वस्त हो गई। दो दशकों के संक्रमण के बाद, अब इसकी जगह 'नई भाजपा प्रणाली' ने ले ली है।

भाजपा vs अन्य
यह नई भाजपा प्रणाली भारत की आजादी के 75वें वर्ष तक अपनी जड़ें जमा चुकी है। हालांकि प्रणाली की रूपरेखा अब भी उभर रही है। 2014 के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में आकार लेने वाली यह प्रणाली भारतीय राजनीति में दो दशकों के राजनीतिक मंथन और प्रयोग का अनुसरण कर आगे बढ़ी है। यह अगले तीन दशकों यानी आजादी के 100वें वर्ष 2047 तक भारतीय राजनीति में अपना प्रभुत्व कायम रख सकती है। अलग-अलग चुनाव में जीत या हार हो सकती है लेकिन चुनावी संग्राम बीजेपी के लिए या बीजेपी के खिलाफ ही होगा। कुछ वैसा ही, जैसा कांग्रेस के समय कभी हुआ करता था।

यह शिफ्ट कितना मजबूत है?
भारत की आजादी की गोल्डन जुबिली मनाए जाने से एक साल पहले 1996 में पहली बार आम चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर 30 प्रतिशत से नीचे चला गया था। इसके बाद इसने इस आंकड़े को पार नहीं किया। सोनिया गांधी ने 1998 में पार्टी की कमान अपने हाथों में लेकर इस गिरावट को संभाला। कांग्रेस को दो बार सत्ता भी दिलाई लेकिन वोट शेयर बढ़ नहीं सका।

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आम चुनावों में भाजपा-कांग्रेस का वोट शेयर।


उधर, 1990 के दशक से देखें तो भाजपा का वोट शेयर लगातार 20 प्रतिशत के ऊपर रहा और पहली बार 2014 के चुनाव में 30 प्रतिशत के आंकड़े को पार किया। पिछले चुनाव में तो भगवा दल 37.6 प्रतिशत पर पहुंच गया।

नए इलाकों में विस्तार
वैसे तो हिंदी भाषी क्षेत्र ने भाजपा को आगे बढ़ाने में काफी मदद की है लेकिन भगवा दल की दूसरे क्षेत्रों में ग्रोथ भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। पूर्वोत्तर में, भाजपा 2009 में 12.8 प्रतिशत से 2019 में 33.7 प्रतिशत पर आ गई। पूर्वी भारत में 9.3 प्रतिशत से बढ़कर जनाधार 39.7 प्रतिशत पहुंचा। पश्चिम भारत में 27.6 प्रतिशत से 39.8 प्रतिशत और दक्षिण भारत में 11.9 प्रतिशत से 17.9 प्रतिशत पहुंच गया।

2047 तक, ऐसा अनुमान है कि तेलंगाना, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में भी भाजपा के पहले मुख्यमंत्री बन चुके होंगे। यहां तक कि तमिलनाडु में भी भगवा दल का कमाल देखने को मिल सकता है। मर्जर और अधिग्रहण के चलते भाजपा कमल खिला सकती है जिसके दम पर पूर्वोत्तर में आज उसका प्रभाव दिखता है।

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आम चुनावों में भाजपा-कांग्रेस का शीट शेयर


सामाजिक गठजोड़, हिंदुत्व पर आम सहमति
कांग्रेस के अच्छे दिनों में भाजपा के आगे बढ़ने में हिंदुत्व एक बड़ा अवरोधक था। लेकिन विचारधारा अब डिस्क्वॉलिफायर नहीं है। आज यह बीजेपी की कोर ब्रांड का महत्वपूर्ण हिस्सा है और सटीक सामाजिक गठजोड़ के साथ उसका चुनावी रथ आगे बढ़ता जा रहा है। राजनीतिक रूप से संभावना जताई जा सकती है कि भाजपा अगले दो दशकों तक हिंदुत्व के एजेंडे पर मजबूती से आगे बढ़ेगी।

कई महत्वाकांक्षी भाजपा क्षत्रपों के लिए योगी मॉडल एक उदाहरण पेश कर सकता है।

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भाजपा, आरएसएस और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी।


आरएसएस से भी बड़ी
भाजपा का आरएसएस के साथ लंबा सहजीवी रिश्ता रहा है लेकिन यह आगे बढ़ते हुए काफी हद तक उस निर्भरता को पीछे छोड़ चुकी है। 2014 से 2019 के बीच भाजपा का पांच गुना विस्तार हुआ, यह चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की साइज से लगभग डबल हो गई। 2019 तक भाजपा में 174 मिलियन सदस्य थे, जो संघ के अनुमानित आकार से 29 गुना है। नई महिला वोटर, सोशल इंजीनियरिंग और ग्रामीण भारत में पैठ बनाने के साथ भाजपा ने 1950 के दशक में कांग्रेस के बाद अपनी तरह का पहला राष्ट्रीय स्तर का सबसे बड़ा काडर खड़ा कर लिया। भारत के करीब दो तिहाई जिलों में भाजपा ने 522 पार्टी ऑफिस बनाए। ये पार्टी के गहरी पैठ बनाने का महत्वपूर्ण केंद्र हैं।

नया विपक्ष?
पुरानी कांग्रेस प्रणाली की तरह राष्ट्रीय स्तर पर कमजोर विपक्ष से भाजपा को फायदा हो रहा है। व्यावहारिक रूप से देखें तो असली विपक्ष अब क्षेत्रीय स्तर पर है। मोदी युग के बाद एक नया राष्ट्रीय विपक्ष आकार ले सकता है। उदाहरण के लिए आम आदमी पार्टी प्रमुख विपक्षी ताकत के रूप में कांग्रेस की जगह ले सकती है।

हालांकि ऐसा होता है या नहीं, यह कई अलग-अलग फैक्टरों पर निर्भर करेगा। राजनीति में एक हफ्ते का समय भी लंबा टाइम होता है। इतिहासकार ई. एच. कार ने कहा था कि इतिहास की भविष्यवाणी करना 'पार्लर गेम' से ज्यादा कुछ नहीं है लेकिन भारत के राजनीतिक बदलाव की दिशा स्पष्ट है।