ओ नभ में मंडराते बादल कविता के कवि कौन हैं - o nabh mein mandaraate baadal kavita ke kavi kaun hain

ओ नभ के मंडराते बादल
तनिक ठहर तनिक ठहर

अभी-अभी तो आया है तू
विशाल गगन पर छाया है तू
लौट ना जाना तुम अपने घर
नई नवेली दुल्हन सी शरमा कर

ओ नभ के मंडराते बादल
तनिक ठहर तनिक ठहर

मैं भी एक मयूरा होता
देख कर तुमको बावला होता
पंख फैलाकर स्वागत करता
तुम्हें रिझाता नाच-नाच कर

ओ नभ के मंडराते बादल
तनिक ठहर तनिक ठहर

मैं भी प्यासा धरती भी प्यासी
तेरे बिन हैं नदियाँ भी प्यासी
बरस जरा तू थम-थम कर
नन्हीं बूंदों की लड़ियां सी बनकर

ओ नभ के मंडराते बादल
तनिक ठहर तनिक ठहर

मैं भी नटखट बच्चा बनकर
खुश हो जाता कागज की कश्ती तैरा कर
बहते पानी में कूद-फाँद कर
पपीहे-कोयल की बोली में गाकर

ओ नभ के मंडराते बादल
तनिक ठहर तनिक ठहर

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5 months ago

ओ नभ के मंडराते बादल कविता के कवि का नाम क्या है?

Ashish Kumar. - हम उम्मीद करते हैं कि यह पाठक की स्वरचित रचना है।

ओ नभ में मंडराते बादल कविता में कवि बादलों से क्या आग्रह कर रहा है?

Answer: बादलों से आग्रह करते हैं कि अरे श्याम घन! तुम खूब गरजो, खूब वज्र छिपा, नूतन कविता बरसो और सारी धरती को शीतल व तृप्त कर दो। , गरजो! (i) कवि अपने अनरोध के दवारा बादलों को बरसने के लिए विकल विकल, उन्मन थे उन्मन कहकर समस्त प्राणिजगत में नया जीवन और नया उत्साह विश्व के निदाघ के सकल जन, भरने का प्रयास करते हैं।