ओ नभ के मंडराते बादल
अभी-अभी तो आया है तू
ओ नभ के मंडराते बादल
मैं भी एक मयूरा होता
ओ नभ के मंडराते बादल
मैं भी प्यासा धरती भी प्यासी
ओ नभ के मंडराते बादल
मैं भी नटखट बच्चा बनकर
ओ नभ के मंडराते बादल
- हम उम्मीद करते हैं कि यह पाठक की स्वरचित रचना है। अपनी रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें। 5 months ago ओ नभ के मंडराते बादल कविता के कवि का नाम क्या है?Ashish Kumar. - हम उम्मीद करते हैं कि यह पाठक की स्वरचित रचना है।
ओ नभ में मंडराते बादल कविता में कवि बादलों से क्या आग्रह कर रहा है?Answer: बादलों से आग्रह करते हैं कि अरे ओ श्याम घन! तुम खूब गरजो, खूब वज्र छिपा, नूतन कविता बरसो और सारी धरती को शीतल व तृप्त कर दो। , गरजो! (i) कवि अपने अनरोध के दवारा बादलों को बरसने के लिए विकल विकल, उन्मन थे उन्मन कहकर समस्त प्राणिजगत में नया जीवन और नया उत्साह विश्व के निदाघ के सकल जन, भरने का प्रयास करते हैं।
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