निर्धनता सबसे प्रमुख आर्थिक समस्या है - nirdhanata sabase pramukh aarthik samasya hai

हमारी मुख्य आर्थिक समस्याएं क्या हैं ?: Our financial problems

1947 से पूर्व भारत ब्रिटिश शासन के अधीन होने के कारण हमारे देश का धन, अंधाधुंध तरीके से लूटा गया. जिससे भारत की अर्थव्यवस्था को गहरा धक्का पहुंचा ब्रिटिश शासन की नीति थी कि भारत का उपयोग कच्चे माल के विशाल स्रोत के रूप में करना है और तैयार माल के लिए उसे बाजार के रूप में प्रयोग करना है. वह भारत से कच्चा माल सस्ते दाम पर खरीदते थे और अपने तैयार माल को कहीं ऊंची दर पर बेचते थे इन नीतियों के परिणाम स्वरूप भारत बहुत गरीब हो गया.

         स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात से हमारे देश को अनेक आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है .जिनमें प्रमुख रूप से निर्धनता, बेरोजगारी और मूल्य वृद्धि है अतः यह आवश्यक है कि हमें अपने देश की आर्थिक समस्याओं के विषय में जानकारी होनी चाहिए.

निर्धनता सबसे प्रमुख आर्थिक समस्या है - nirdhanata sabase pramukh aarthik samasya hai

यदि हम बात करें कि हमारे देश में मुख्य आर्थिक समस्याएं क्या है तो -

( 1) पहले आर्थिक और सबसे बड़ी समस्या है निर्धनता

( 2) बेरोजगारी

( 3) मूल्यों का बढ़ना

निर्धनता क्या होती है?

निर्धनता कि समस्या अति जटिल समस्या है. साधारण अर्थ में निर्धनता उस स्थिति को कहते हैं. जिसमें कोई व्यक्ति अपने जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता  जैसे भोजन कपड़ा मकान शिक्षा और स्वास्थ्य संबंधित आवश्यकता ओं को प्राप्त करने में असमर्थ रहता है. देश में नियोजकों  द्वारा इस स्थिति के लिए गरीबी रेखा शब्द का प्रयोग किया गया जिसका तात्पर्य है कि जो व्यक्ति अपने जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा करने में समर्थ है. उन्हें गरीबी रेखा के ऊपर माना जाएगा और जो ऐसा करने में असमर्थ है उन्हें गरीबी रेखा के नीचे माना जाएगा.

निर्धनता क्या प्रभाव: -

निर्धनता का प्रभाव लोगों के सामान्य स्वास्थ्य पर पड़ता है स्वास्थ्य का स्तर घट जाने से लोगों की कार्य क्षमता अर्थात उत्पादन क्षमता निम्न स्तर पर आ जाती है और जब उत्पादन क्षमता निम्न स्तर पर होती है तो उसका प्रत्यक्ष प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है पर्याप्त आर्थिक विकास ना होने पर लोगों की गरीबी बनी रहती है.

निर्धनता उन्मूलन के सरकारी प्रयास:

सरकार निर्धनता उन्मूलन के लिए विभिन्न योजनाएं जैसे मनरेगा स्वर्ण जयंती ग्राम स्वराज योजना प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना इंदिरा आवास योजना आदि महत्वपूर्ण योजनाओं का पालन कर रही है.

क्या सरकारी सहायता निर्धन लोगों तक पहुंच रही है?

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी श्रमिक वर्ग को ही माना जाता है अगर श्रमिक वर्ग अपना श्रम औद्योगिक घरानों को उपलब्ध नहीं कराएगा तो बड़ी-बड़ी कंपनियां वैसे भी बेकार हो जाएंगे लेकिन अगर श्रमिक वर्ग को अच्छा भोजन और अच्छा स्वास्थ्य नहीं मिल पाता है तो इससे औद्योगिक घरानों की ही नहीं बल्कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था को भी झटका लग सकता है . सरकार  की नियत और मनसा को सही तरीके से उसके अधिकारियों के द्वारा अगर नीचे तबके तक पहुंचा दिया जाता है तो सरकार निर्धनता और गरीबी रेखा से लोगों के जीवन स्तर को भी ऊपर उठा सकने का प्रयास किया जा सकता है .लेकिन  अगर सरकारी आंकड़े सिर्फ यह बयां करते हैं और सरकारी आंकड़ों के माध्यम से ही गरीबी उन्मूलन की बात करते हैं तो यह एकमात्र हास्यास्पद बात बनकर ही रह जाएगी. गरीबी को कम करने के लिए सबसे बड़ी बात है कि आप लोगों के पेट तक भोजन उपलब्ध कराएं अगर आदमी को उचित आहार और अच्छी कैलोरी का भोजन सही उपलब्ध हो जाएगा तो उसका शरीर स्वस्थ रहेगा जिसके कारण स्वस्थ शरीर में ही कार्य करने की क्षमता का विकास होता है अगर आदमी भोजन की मात्रा नहीं मिलेगी तो वह उसका कार्य करने में भी और कार्यक्षमता को भी प्रभावित करेगा.

    भारत सरकार द्वारा कई योजनाएं अभी पिछले जब से कोविड-19 का दौर शुरू हुआ है काफी योजनाएं चर्चा में है जिनमें से मुफ्त में अनाज सबसे बड़ी चर्चा का विषय बना हुआ है. मुफ्त अनाज से उन बेरोजगारों और कामगारों जो कि गरीबी स्तर के नीचे और जो कि अपना कोविड-19 में रोजगार खो चुके हैं उनको काफी सहायता मिल सकती है लेकिन सरकार को यह देखना होगा कि इस मुफ्त अनाज योजना के लाभार्थियों में कितने लोग लाभ उठा पा रहे हैं और कितनों के साथ यह आंकड़े सही है.

       सरकार निर्धनता को कैसे कम कर सकती है?

सरकार निर्धनता को कम करना चाहती है तो उसकी सबसे बड़ी समस्या है बेरोजगारी की. बेरोजगारी ही निर्धनता की जननी है . मेरे शब्दों में अगर बात की जाए तो बेरोजगारी वही स्थिति है जिसमें कोई व्यक्ति जीविकोपार्जन के लिए कार्य करने के लिए इच्छुक होते हुए भी कार्य पाने में असमर्थ रहता है.

   अगर सरकारें बेरोजगारी दूर कर देंगे तो निर्धनता अपने आप दूर हो जाएगी लोगों को उचित आहार अपने आप ही उपलब्ध हो जाएगा और लोगों के खर्च और उनका जीवन स्तर में अपने आप ही सुधार हो जाएगा तो इसलिए सरकारों को ध्यान देना चाहिए देना चाहिए कि वह बेरोजगारी को खत्म कर सकें. बेरोजगारी भारत में सबसे बड़ी समस्या जब से देश आजाद हुआ तब से बेरोजगारी और अब तक हम 21वीं सदी में मैं भी हम बेरोजगारी की बात कर रहे हैं जबकि दुनिया के कई देशों में बेरोजगारी पूरी तरह से खत्म हो चुकी है अगर हम जनसंख्या की बात करते हैं तो एक आंकड़े के मुताबिक चाइना में भी बेरोजगारों की संख्या की बात की जाए तो वहां पर मात्र बेरोजगार लोगों की संख्या उनकी कुल आबादी का मात्र 0.3 परसेंट ही है जो कि एक तरह से हम कह सकते हैं कि यह नगण्य.

बेरोजगारी के प्रमुख कारण: -

  • अर्थव्यवस्था का धीमी गति से विकास

  • श्रम शक्ति की अधिकता

  • शिक्षा का रोजगार पारक ना होना

  • औद्योगिक एवं कृषि क्षेत्रों में अत्यधिक मशीनों का प्रयोग

  • उधमिता की भावना में कमी 

लोकतंत्र में शिक्षा का महत्व: -

                        लोकतंत्र की सफलता विभिन्न कार्य क्षेत्रों में नागरिक की सहभागिता पर मुख्य रूप से निर्भर है. यह सहभागिता तभी प्रभाव कारी हो सकती है जबकि नागरिक उचित और अनुचित में भेद करने में समर्थ हो उसे अपने अधिकारों की जानकारी हो और वह अपने कर्तव्य के प्रति सजग हो वह सार्वजनिक प्रश्न पर अधिक संतुलित ढंग से विचार करने की क्षमता रखता हो तथा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्व की समस्याओं को अधिक अच्छी तरह समझ सकता हो ।यह सब गुण शिक्षा के द्वारा ही विकसित हो सकते हैं अतः लोकतंत्र को सफल बनाने के लिए शिक्षा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

शिक्षा में व्यक्ति जागरूक एवं दूरदृष्टि होकर उत्तम नागरिक बन जाता है ऐसा ही उत्तम नागरिक लोकतंत्र की सरकार के तहत संचालन में सहयोग देता.

          हमारे देश में बहुसंख्यक लोग अभी भी निरक्षर है प्रमुख रूप से इस स्त्रीयां ।स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से साक्षर व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि करने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन इस क्षेत्र में जो कुछ भी प्रगति हुई है वह जनसंख्या में अधिक वृद्धि दर के कारण नगण्य मालूम होती है।

हमारे देश का संविधान राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के अंतर्गत 14 वर्ष की आयु तक के बालक बालिकाओं की निशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था करने के लिए निर्देशित करता है.

                ब्रिटिश शासन काल में भारतीयों की शिक्षा के लिए अधिक महत्व नहीं दिया गया और तत्कालीन शिक्षा की व्यवस्था तो लगभग 0 थी अतः स्वतंत्रता के पश्चात भारत में बड़ी संख्या में विद्यालय खोलकर और हजारों को प्रशिक्षित करके साक्षरता की दर वृद्धि करने की वृहद समस्या का सामना किया गया.

वर्तमान में भारत अब तक निराशा पूर्ण स्थिति में नहीं रहा जिसमें वह आजादी के समय था परंतु अभी भी निरक्षरता का उन्मूलन करना भारत के सामने एक मुख्य चुनौती बना हुआ है.

शिक्षा की प्रगति: -

  • स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात स्कूल कॉलेज इंजीनियरिंग कॉलेज औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान तथा केंद्र के अतिरिक्त चिकित्सा कृषि एवं अन्य विषयों से संबंधित संस्थाएं काफी बड़ी संख्या में खोली गई है.

  • देश में प्रौढ़ शिक्षा को बढ़ावा देने दूर शिक्षा के कार्यक्रम एवं विश्वविद्यालयों के साथ उन बच्चों के लिए एक व्यापक अनौपचारिक शिक्षा प्रणाली प्रारंभ की गई है जो किसी न किसी कारण व शिक्षा से वंचित रह गए हैं

  • केवल प्रबुद्ध नागरिक ही लोकतंत्र के विकास में सहायक हो सकते हैं यदि नागरिक निरीक्षण रहेंगे तो वे राजनीतिक दृष्टि से ना तो जागरूक हो पाएंगे और ना ही सरकार के कार्यकलापों में प्रभावकारी ढंग से भाग ले सकेंगे आता अज्ञानता और निरक्षरता को जो लोकतंत्र को गति बना देती है हर कीमत पर समाप्त करना ही होगा.

            अगर हम बात करें बेरोजगारी बढ़ने का सबसे प्रमुख कारण है कि शिक्षा का व्यवसायिक रूप ना लेना: - शिक्षा का व्यवसायिक रूप से मेरा तात्पर्य है कि अगर कोई टेक्नोलॉजी से अपना इंजीनियरिंग पूरी करता है तो वह रोजगार की तलाश में B.ed और टीचर की भी नौकरी करने के लिए तत्पर रहता है. ऐसी शिक्षा व्यवस्था प्रमुख कारण है कि एक अच्छे रोजगार की तलाश में आदमी इंजीनियरिंग तो कर लेता है लेकिन वह टाइप के लिए अपनी इंजीनियरिंग को छोड़कर बीच निकली हुई वैकेंसी में भी अप्लाई कर देता और जो टीचर की वैकेंसी के लिए क्वालिफिकेशन होती है .उस क्वालिफिकेशन से भी उसकी हाई क्वालीफिकेशन के कारण उसका सिलेक्शन वहां हो जाता है और उसका बीटेक करना एक तरह से बेकार ही हो जाता है जो कि किसी पूरा जीवन भर उसके किसी काम नहीं आता है ना ही उसके और ना ही देश के काम आता है.

                          अब अगर हम दूसरी बात करें कि अगर हम किसी भी जगह पढ़ते हैं यार प्यार को करने की चेष्टा करते हैं तो भारत में शिक्षा व्यवस्था सबसे बड़ी रुकावट है क्योंकि भारतीय शिक्षा व्यवस्था एक रोजगार उपलब्ध कराने की शिक्षा व्यवस्था नहीं है .बल्कि यहां पर वही रता रता या इतिहास ही पढ़ाया जाता है यहां पर प्रैक्टिकल नॉलेज कम और पिता ज्यादा बात होती है .यहां पर हम अगर बात करते हैं स्कूल और इंटरमीडिएट की भी तो यहां पर सिर्फ किताबों नहीं चर्चा की जाती है बल्कि अगर आपको रोजगार पाना है तो एक सब्जेक्ट के रूप में हमें बचपन से ही रोजगार के हुनर सिखाए जाने चाहिए चाहे वह किसी भी सेक्टर में हो जो आपको पसंद हो उसमें आप का बचपन से ही प्रयास लगे रहना चाहिए लेकिन और हमारे देश की सरकारों की नीतियों के कारण ऐसी व्यवस्थाएं भारत देश में उपलब्ध नहीं है.

             मान लीजिए आपका बचपन से ही ऑटो सेक्टर, music aur bhi bhut si hobbies  में इंटरेस्ट है तो आपके कॉलेज में जब आप कक्षा आठ में से आठवीं में प्रवेश करते हैं तो आपके कॉलेज वाले आपको ऑटो सेक्टर का एक सब्जेक्ट के रूप में बल्कि स्कूल प्रैक्टिकल क्लासेस उपलब्ध कराएं और वहां पर और मकैनिक मैकेनिकल सैनिक के द्वारा आपको अच्छा ज्ञान उपलब्ध हो सके जिससे कि आप अगर हाई स्कूल इंटर करने के बाद भी आप कॉलेज में एडमिशन नहीं लेते हैं तो भी आप ऑटो सेक्टर में अपना रोजगार अभी दे सकते हैं हिंदुस्तान में ऐसा कोई भी सोच नहीं है.

        सबसे बड़ी बात है कि आदमी ग्रेजुएशन करने के बाद भी सोचता है कि उसे लाइफ में करना क्या है बल्कि हमारी शिक्षा व्यवस्था में ऐसी कोई उचित व्यवस्था ही नहीं है पर अब दे कि आदमी को करना क्या है .यह उसको बचपन से ही नहीं सिखाया जाता बताया जाता है बल्कि अगर सरकारी नौकरियां निकली है तो उन सरकारी रोजगार के पीछे लड़का 2- 3 साल नहीं बल्कि पूरी जीवन भर भागता रहता है जब तक कि उसकी ओवरेज नहीं हो जाती है फार्म भरने के लिए औरover age  होने के बाद जब उसके हाथ में कुछ नहीं milta  है तो वह एक तरह से बेरोजगारी की चपेट में आ जाता है और उसकी सोचने और समझने की क्षमता पूरी तरह से खत्म हो जाती है.

बेरोजगारी दूर करने के सरकारी प्रयास: -

                        सरकार अनेक कार्यक्रमों के माध्यम से बेरोजगारी की समस्या दूर करने का प्रयास कर रही है बेरोजगारों को लाभ दिलाने के लिए सरकार रोजगार कार्यालय खुलवाए हैं जो बेरोजगारों को काम दिलाने में सहायक होंगे ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत से बेरोजगार व्यक्ति ऐसे भी है जो अपना बेरोजगार कार्यालय में पंजीकृत नहीं कराते हैं जिससे देश में बेरोजगारों की सही संख्या मालूम नहीं पड़ती है जो कार्यक्रमों की विफलता का प्रमुख कारण है.

मूल्य वृद्धि सबसे अगर हम  बात करें तो यह भी एक जिम्मेदार कारण है -

               देश के सामने मूल्य वृद्धि की समस्या का मुख एक मुख्य समस्याएं निरंतर मूल्य वृद्धि से अनिश्चितता उत्पन्न होती है ऐसी स्थिति आर्थिक विकास में सहायक नहीं हो पाती है लंबी अवधि तक मूल्य वृद्धि होने रहने से अधिकांश लोगों को विशेषकर निर्धनों को हानि पहुंचती है वेतन भोगी कर्मचारियों को भी अपनी सीमित आय के भीतर निर्वाह करना कठिन हो जाता है हमारे देश में वस्तुओं के मूल्य लगातार बढ़ने से विभिन्न वर्गों के लोगों को आर्थिक असमानता उत्पन्न होती है निर्धन और अधिक में धन हो जाते हैं. इस प्रकार मूल्यवृद्धि निर्धनता बनाती है जिससे देश के आर्थिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

मूल वृद्धि रोकने के सरकारी प्रयास: -

                  मूल वृद्धि रोकने के लिए सरकार ने उचित मूल्य की दुकान है और सरकारी भंडार खोलें ताकि लोगों को उचित दर पर वस्तुएं मिल सके जमाखोरों तस्करों और चोर बाजारी करने वालों के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए सरकार ने कठोर कानून बनाए साथ ही सरकार लोगों को देश के विकास में पूंजी लगाने को भी प्रोत्साहित करती रहती है.

 सबसे बड़ा कारण है पेट्रोल-डीजल का डीजल का मूल्य बढ़ना: -

जिस प्रकार से भारत में पेट्रोल डीजल की कीमतें लगातार बढ़ती जा रही है उस प्रकार से निर्धनता चपेट में मिडिल क्लास फैमिली के साथ साथ वह कामगार लोग भी आ रहे हैं जो कि सिर्फ अपना पेट पालने के लिए ही दिन भर रोजगार करते हैं और इस रोजगार के से मिलने वाली कमाई के फल स्वरुप ही वह अपना पेट पालते हैं.

     पेट्रोल डीजल बढ़ने से सबसे बड़ा उन्हीं व्यक्तियों को होता है जो कि रोज कुआं खोदकर के पानी पीते हैं क्योंकि दामों में निरंतरता बड़ोती हो रही है उनके खान-पान उनके दिनचर्या में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं की कीमतें लगातार आसमान छूती हुई नजर आ रहे हैं सरकार को इस बारे में विशेष रुप से ध्यान देना ही चाहिए कि अगर उसे एक अच्छा और मजबूत हिंदुस्तान चाहिए तो हर गरीब के पेट में भोजन जरूर उसकी जिम्मेदारी है हर गरीब के पेट में भोजन पहुंचाने की और इस जिम्मेदारी से सरकार पूरी तरह से सक्षम है क्योंकि एक आंकड़े के मुताबिक जिस प्रकार से डीजल और पेट्रोल के दाम बढ़ रहे हैं लोगों की कमाई बिल्कुल उसी जिस हिसाब से दाम बढ़ रहे हैं उसी हिसाब से लोगों की कमाई का स्तर भी नीचे गिरता चला जा रहा है . महामारी के दौर में लोगों के रोजगार dene ke  liye यहां लोगों के पास अपनी जमा पूंजी खर्च करने का जो दौर चला रहा है उस दौर से सरकार ही इन लोगों को निकाल सकती है सरकार को एक रोजगार के लिए उचित लोन देने की सुविधा बैंकों को देनी चाहिए जिस जिस पर से ब्याज की बात की जाए तो सरकार को उस पर ब्याज बहुत ही कम दर पर लेना चाहिए और एक तरह से मैं कहता हूं कि सब्सिडी के माध्यम से लोगों को रोजगार के लिए सरकारी बैंकों से धन को मुहैया कराए जाने के लिए सरकार को आगे आना चाहिए.

निर्धनता के दो मुख्य आयाम कौन से हैं?

निर्धनता की गणना सापेक्ष एवं निरपेक्ष दोनों रूपों में की जाती है। सापेक्ष दृष्टि से निर्धनता का मापन विभिन्न वर्गों देशों के निर्वाह स्तर की तुलना करके की जाती है। निर्वाह स्तर का अर्थ है आय/उपभोग व्यय निरपेक्ष दृष्टि से निर्धनता मापन में निर्वाह की न्यूनतम जरूरतों- भोजन, वस्त्र, कैलोरी, आवास आदि को रखा जाता है।

निर्धनता का आर्थिक कारण क्या है?

सामान्यतया प्रयोग किए जाने वाले सूचक वे हैं, जो आय और उपभोग के स्तर से संबंधित हैं, लेकिन अब निर्धनता को निरक्षरता स्तर, कुपोषण के कारण रोग प्रतिरोधी क्षमता की कमी, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, रोज़गार के अवसरों की कमी, सुरक्षित पेयजल एवं स्वच्छता तक पहुँच की कमी आदि जैसे अन्य सामाजिक सूचकों के माध्यम से भी देखा जाता है।

निर्धनता की समस्या क्या है?

निर्धनता का संबंध आर्थिक पहलुओं से भी है, आर्थिक दशा का वर्णन आय और व्यय के संबंध में किया जाता है। अपर्याप्त उत्पादन असमान वितरण आर्थिक उच्च वचन निर्धनता एवं बेरोजगारी आदि को जन्म देता है। भारत में उत्पादन के लिए परंपरागत साधनों का प्रयोग किया जाता है जिसके कारण यहां पर्याप्त उत्पादन नहीं हो पाता है।

निर्धनता के प्रमुख कारण कौन कौन से हैं?

जनसंख्या के अत्यधिक बढ़ जाने से सबकी आवश्यकताओं की भली प्रकार पूर्ति नहीं हो पाती और देश में निर्धनता फैलती है । यातायात के साधनों का अभाव आदि उद्योग और व्यापार की उन्नति में बाधक जितने भी कारक हैं उन सभी से निर्धनता बढ़ती है । अतः निर्धनता स्वयं निर्धनता बढ़ने का सबसे बड़ा कारण है ।