मानवों में प्रजनन हेतु जननांग होते हैं, जो स्त्रियों और पुरुषों में भिन्न होते हैं। पुरूष के जनन अंगों को दो भागों में बांटा जा सकता है। पहला बाहरी भाग जैसे लिंग और अंडकोश तथा भीतरी भाग एपीडिडायमिस, टाकटिस नालिका, सैमिनाल वेसाइकल इजैक्यूलेटरी नलिका, गदूद और मूत्र नलिका आदि।
- पुरूष के जनन अंगों के तीन प्रमुख कार्य होते है।
- अंडकोषों के द्वारा शुक्राणु का निर्माण करना।
- लिंग द्वारा शुक्राणुओं को योनि में डालना।
- शरीर में पुरूष उत्तेजित द्रव बनाना।
पुरूष अपने शिश्न या लिंग के द्वारा शुक्राणु को स्त्री के योनि में डालता है। लिंग की लम्बाई 7.5 सेटीमीटर से लेकर 10 सेंटीमीटर तथा इसकी चौड़ाई 2.5 सेंटीमीटर होती है। पुरूश के लिगं के मध्य में एक नलिका होती है। इस नली को मूत्र नलिका कहते है जो इसमें से होती हुई मूत्राशय की थैली तक जाती है। इसी नलिका द्वारा मूत्र और वीर्य की निकासी होती है। पुरूषों के लिंग में तीन मांसपेशियां होती है। दाहिनी व बांई कोरपस कैवरनोसम तथा बीच में कोरपस स्पैनजीऔसम। इन मांसपेशियों में रक्त की नलिकांए होती है। पुरूष लिंग की कठोरता के समय इन मांसपेशियों से अधिक रक्त का संचार होता है व इसके कारण लिंग की लम्बाई 10-15 सेमी और चौड़ाई 3.5 सेमी के लगभग हो जाती है। लिंग की सुपारी की त्वचा आसानी से ऊपर-नीचे खिसक सकती है तथा कठोरता के समय लिंग को चौड़ाई में बढ़ने के लिए स्थान भी देती है। लिंग के अगले भाग को ग्लैस कहते है जो काफी संचेतना पूर्ण होता है।
अंडकोष पुरूष के नीचे एक थैली होती है। इसे स्क्रौटम कहा जाता है। इस थैली की त्वचा ढीली होती है। जो गर्मियों में अधिक बढ़कर लटक जाती है तथा सर्दियों में सिकुड़कर छोटी होती है। इसके अंदर अंडकोष होते है इनका मुख्य कार्य शुक्राणु और पुरूष उत्तेजित द्रव को बनाना होता है। वे पुरूष जो आग के सामने कार्य करते है, अधिक गर्म पानी से नहाते है। यह कच्छा को अधिक कसकर बांधते है। उनके अंडकोष से शुक्राणु कम मात्रा में या नहीं बन पाते है।
अंडकोश की लंबाई 3.5 सेमी और चौड़ाई 2.5 सेमी होती है। इसमें रक्त का संचार बहुत अधिक होता है। दोनों तरफ के अंडकोष एक नलिका के द्वारा जुड़े होते है। जिसको वास डिफेरेन्स कहते है तथा दूसरी तरफ ये अन्य ग्रंथि से जुड़े रहते है। जिनको सेमिनाल वेसाईकल कहते है।
प्रोस्टेट ग्रन्थि मूत्राशय व पुरूष लिंग के नीचे होता है तथा सेमिनाइकल वैसाइड भी प्रोस्टेट से लगा रहता है। संभोग के समय सेमिनाल वैसाइकल से द्रव निकलता है। यह द्रव छार होता है जिसमें शुक्राणु काफी समय तक जीवित रहते है। पुरूष उत्तेजना के समय लिंग से एक चिकना द्रव निकलता है जिसे प्रोस्टेटिक द्रव कहते है। जिसमें कभी-कभी शुक्राणु भी देखे गये हैं। इसी कारण परिवार नियोजन का वह तरीका सफल नहीं जिसमें वीर्य निकलने से पहले ही लिंग को योनि से बाहर निकाल लिया जाता है।
पुरूष के एक शुक्राणु की लम्बाई 1/25 मिलीमीटर होती है। इसके तीन भाग होते है सिर, गर्दन और पूंछ। शुक्राणु लगभग अंडाकार होता है। गर्दन लम्बी जो सिर और पूंछ को जोड़ती है। पूंछ पतली और मुलायम होती है। इसी से शुक्राणु गतिशील होता है जिससे शुक्राणु 10 सेकेंड में 1 मिलीमीटर की दूरी तक जा सकता है।
शुक्राणुओं का निर्माण अंडकोष में होता है तथा ये सेमीनल वैसाईकल में रहते है। शुक्राणु दो से तीन महीने तक जीवित रह सकते है। यह अंडकोष में बनकर पहले छोटी-छोटी नलिकाओं द्वारा ईपीडिडायमीस में इकट्ठे होते है और वहां से वास डिफेरेन्स द्वारा सेमीनल वैसाइकल में जाते है। संभोग के समय मांसपेशियोनं के सिकुड़ने के कारण यह सेमिनल द्रव के साथ मूत्र नलिका में निकलते है। यह द्रव लगभग 3-5 सी.सी. होता है और प्रत्येक सी.सी.में 50 से 200 मिलियन शुक्राणु होते है।
मानव में जनन तंत्र – यह दो प्रकार के होते है नर जनन तंत्र एवं मादा जनन तंत्र आज हम इसके बारे में देखेगे की नर जनन तंत्र में कोनसे अंग होते है और मादा जनन तंत्र में कोनसे आज उन अंगो के बारे में थोडा विस्तार से जानेंगे ताकि आपको आसानी से समज आ सके की मानव में जनन तंत्र किस प्रकार से होते है और उनका क्या नाम होता है और किस तरह से कार्य करते है।
नर जनन तंत्र
नर में पाए जाने वाले प्रमुख जनन अंग निम्न प्रकार हैं।
- वृषण – यह संख्या में 2 होते हैं इनका प्रमुख कार्य नर युग्मक शुक्राणु का निर्माण करना होता है यह नर हार्मोन टेस्टेस्टिरोन को स्त्रावित करते हैं जो नर के द्वितीय लेंगिक लक्षणों का निर्धारण करते हैं ।नर जनन तंत्र
- वृषण कोष – उधर गृह के आवरण में गिरे वृषण कोष स्थिर होते हैं वृषण कोष का ताप शारीरिक ताप से 2-3 डिग्री सेंटीग्रेड कम होता है जो शुक्राणुओं के परिपक्व में सहायक है ।
- सेमिनोफेरस नलिकाए – वृषण में उपस्थित कुंडलित नलिकाए जो शुक्र जनन के लिए उतरदायी है । इन्ही के मध्य लेंडिंग या अंतराली कोशिकाए पायी जाती है टेस्टेस्टोरेन का निर्माण करती है ।
- एपिडाइडेमिस – इससे सरचना में नलिकाए खुलती हैं यहां शुक्राणुओं के परिपक्वन करने के लिए वातावरण मिलता है शुक्र वाहिनी में प्रवेश करने से पहले शुक्राणु इसमें सुरक्षित किए जाते हैं।
- शुक्र वाहिनी – शुक्राणु का संग्रहण शुक्र वाहिनी में किया जाता है तथा एपीडाएडेमीस को शुक्राशय से जोडने का कार्य करती है
- मूत्रमार्ग- यह यहां नलिका मूत्राशय से मूत्र एवं शुक्र वाहिनी से शुक्राणुओं को उत्सर्जित करती हैं।
- शुक्राशय – शुक्राशय के उच्च ऊर्जा स्त्रोत के के रूप में फ्रक्टोज नामक शर्करा पाई जाती है शुक्राशय से स्त्रावित तरल पदार्थों से मिलकर शुक्राणु वीर्य का निर्माण करते हैं जिसकी प्रकृति क्षारीय होती है।
- प्रोटेस्ट ग्रंथि – प्रोटेस्ट ग्रंथि में हल्का क्षारीय द्रव उपस्थित रहता है जो जननांगो के अन्य वातावरण को उदासीन करता है प्रोटेस्ट ग्रंथि मूत्राशय के नीचे स्थित होती है।
- काउपर्स ग्रंथि- इसका कार्य मूत्र के अम्लीय प्रभाव को अपने क्षारीय स्त्राव द्वारा उदासीन करना है।
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मादा जनन तंत्र
मादा के मूत्र मार्ग एवं जनन मार्ग में कोई संबंध नहीं होता है मादा में पाए जाने वाले प्रमुख जनन अंग निम्न प्रकार के हैं ।
- अंडाशय – यह मादा जनन तंत्र है यह संख्या में 2 होते हैं तथा मादा युग्मको का निर्माण करते हैं जिन्हें अंडाणु कहते हैं इससे मादा हार्मोन एस्ट्रोजन एवं प्रोजेस्ट्रोन स्त्रावित होता है । जो मादा में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों एवं ऋतु स्त्राव के लिए उत्तरदाई हैं यह लक्षण लैंगिक लक्षण कहलाता है ।मादा जनन तंत्र
- अंडवाहिनी – निषेचन की क्रिया अंडवाहिनी मैं संपन्न होती है यह नलिकाकार रचनाएं फैलोपियन नलिकाए भी कहलाती है । इनका कार्य अंडाशय से अंडे को गर्भाशय तक पहुंचाना है। इनके अंडाशय के समीप खुलने वाले भाग में अंगूलिनुमा प्रवर्ध पाए जाते हैं जिन्हे फिम्ब्री कहां जाता है इनका कार्य अंडे को अंड वाहिनी में धकेलना है।
- गर्भाशय – निषेचन के पश्चात युग्मनज गर्भाशय में आता है यहां प्रसव के समय तक भ्रूण का समस्त विकास होता है। गर्भाशय की भित्ति लचीली होती है
- माहवारी- यह स्वाभाविक प्रक्रिया है जो 11 से 14 वर्ष की आयु के बीच आरंभ होती है। एक माहवारी के रक्त स्त्राव के पहले दिन से दूसरे माहवारी के रक्तस्त्राव के पहले दिन तक के समय को मासिक चक्र कहते हैं। यह सामान्यतः 28 दिन का होता है। महावारी 42 से 50 वर्ष की आयु के मध्य अनियमित हो जाती है। तथा बाद में पूर्ण रूप से बंद हो जाती है इस अवस्था को रजोनिवृत्ति कहते हैं।
साथियों यह कुछ जानकारी थी मानव में जनन तंत्र नर जनन तंत्र एवं मादा जनन तंत्र के बारे में अगर कुछ बताना बाकि रह गया है तो आप निचे कमेन्ट करे हम उस टॉपिक को अवश्य जोड़ेगे