निम्नलिखित में से कौन सा कार्बनिक यौगिक है? - nimnalikhit mein se kaun sa kaarbanik yaugik hai?

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Last updated on Nov 2, 2022

The RRB Group D Results are expected to be out soon! The Railway Recruitment Board released the RRB Group D Answer Key on 14th October 2022. The candidates will be able to raise objections from 15th to 19th October 2022. The exam was conducted from 17th August to 11th October 2022. The RRB (Railway Recruitment Board) is conducting the RRB Group D exam to recruit various posts of Track Maintainer, Helper/Assistant in various technical departments like Electrical, Mechanical, S&T, etc. The selection process for these posts includes 4 phases- Computer Based Test Physical Efficiency Test, Document Verification, and Medical Test. 

निम्नलिखित में से कौन सा कार्बनिक यौगिक है? - nimnalikhit mein se kaun sa kaarbanik yaugik hai?

मिथेन सबसे सरल कार्बनिक यौगिक

कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक (organic compounds) कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परम्परागत कारणों से कार्बन के कुछ यौगिकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं।

इतिहास[संपादित करें]

प्राणतत्ववाद[संपादित करें]

पहले यह एक व्यापक संकल्पना थी कि जैवजगत में पाये जाने वाले पदार्थ रासायनिक तत्त्वों से एक "जैव-शक्ति" (vital force या life-force) के द्वारा बने हैं। इस संकल्पना को प्राणतत्ववाद (Vitalism) कहा जाता है। यह भी माना जाता था कि यह जैव-शक्ति केवल जीवित प्राणियों में होती है। प्राणतत्ववाद के अनुसार, जैव-यौगिकों ("organic" compounds) तथा अजैविक यौगिकों ("inorganic" compounds) में मूलभूत अन्तर है और अ-जैविक पदार्थ तत्वों को मिलाजुलाकर बनाये जा सकते हैं (किन्तु जैविक पदार्थ नहीं)।

हाइड्रोकार्बन[संपादित करें]

कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मिथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (=) है, ऐसीटिलीन में त्रिगुण बंध (º) वाले यौगिक अस्थायी हैं। ये आसानी से ऑक्सीकृत एवं हैलोजनीकृत हो सकते हैं। हाइड्रोकार्बनों के बहुत से व्युत्पन्न तैयार किए जा सकते हैं, जिनके विविध उपयोग हैं। ऐसे व्युत्पन्न क्लोराइड, ब्रोमाइड, आयोडाइड, ऐल्कोहाल, सोडियम ऐल्कॉक्साइड, ऐमिन, मरकैप्टन, नाइट्रेट, नाइट्राइट, नाइट्राइट, जलजन फास्फेट तथा जलजन सल्फेट हैं। असतृप्त हाइड्रोकार्बन अधिक सक्रिय होता है और अनेक अभिकारकों से संयुक्त हो सरलता से व्युत्पन्न बनाता है। ऐसे अनेक व्युत्पन्न औद्योगिक दृष्टि से बड़े महत्व के सिद्ध हुए हैं। इनसे अनेक बहुमूल्य विलायक, प्लास्टिक, कृमिनाशक ओषधियाँ आदि प्राप्त हुई हैं। हाइड्रोकार्बनों के ऑक्सीकरण से ऐल्कोहॉल ईथर, कीटोन, ऐल्डीहाइड, वसा अम्ल, एस्टर आदि प्राप्त होते हैं। ऐल्कोहॉल प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक हो सकते हैं। इनके एस्टर द्रव सुगंधित होते हैं। अनेक सुगंधित द्रव्य इनसे तैयार किए जा सकते हैं।

काष्ठ का भंजक आसवन[संपादित करें]

लकड़ी या काष्ठ में दो पदार्थ मुख्यतया होते हैं, सेलुलोस और लिगनिन। सेलुलोस का साधारण सूत्र [(C6H10O5)n] है। (n) का मान इस सूत्र में ३,००० तक हो सकता है। इस प्रकार सेलुलोस के अणु बड़े लंबे आकार के होते हैं और सेलुलोस के धागे बन सकते हैं। लिगनिन प्लास्टिक बंधक का काम करता है। इसकी रचना अज्ञात है। इसमें बैन्ज़ीन वलय, मेथॉक्सी मूलक, (-OCH3), पार्श्व श्रृंखलाएँ हैं। लकड़ी को ३८०°C तक गरम करें तो इसमें से काफी मात्रा में एक द्रव निकलता है, जिसमें ऐसीटिक अम्ल, मेथिल ऐल्कोहॉल, ऐसीटोन आदि पदार्थ होते हैं। ये पदार्थ सेल्यूलोस और लिगनिन के विभाजन से बनते हैं (देखें, काठकोयला)। काष्ठ के भंजक आसवन से निम्न यौगिक पृथक्‌ किए जा सकते हैं : फॉर्मिक अम्ल, कई वसा अम्ल, असंतृप्त अम्ल, ऐसेटैल्डिहाइड, सेलिल ऐल्कोहॉल, मेथिल एथिल कीटोन, फरफरॉल, मेथिलाल, डाइमेथिल ऐसीटॉल, बेन्ज़ीन, ज़ाइलीन, क्यूमीन, सायमीन, फिनाॅल आदि। ऐसीटिक अम्ल, मेथिल एल्कोहॉल और ऐसीटोन, ये तीन पदार्थ पाइरोलिग्निअस अम्ल से विशेष रूप से प्राप्त किए जाते हैं।

पाइरोलिग्निअस अम्ल से प्राप्त मेथिल ऐल्कोहॉल के आक्सीकरण से फॉर्मेल्डिहाइड बनता है, जिसका आविष्कार हॉफमन ने सन् १८६७ ई• में किया था। फार्मेल्डिहाइड व्यापारिक मात्रा में तैयार करने की विधि पर्किन ने निकाली और इस पदार्थ की उपयोगिता का महत्व उत्तरोत्तर बढ़ता ही गया।

ऐल्कोहलीय किण्वन[संपादित करें]

सुरा, आसव, मद्य, मैरेय आदि मादक पदार्थों को किण्वन विधि से तैयार करने की प्रथा बहुत पुरानी है और अच्छी सुराओं के लिए विशेष बीज-किण्व तैयार किए जाते थे, जिनकी उपस्थिति में यव (जौ), महुआ, गुड़, अंगूर के रस आदि से शराबें तैयार होती थीं। इन किण्वों के जो शराब बनाने वाले प्रेरकाणु होते हैं, उन्हें साधारण भाषा में यीस्ट कहा जाता है।

कोयला, अलकतरा और उससे प्राप्त पदार्थ[संपादित करें]

देखें कोयला, अलकतरा, बेंजीन, नैफ्थेलीन।

ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बनों के व्युत्पन्न[संपादित करें]

बेन्जीन के क्लोरिनेशन से क्लोरो व्युत्पंन, ब्रोमीनेशन से ब्रोमो व्युत्पंन, नाइट्रेशन से मोनोनाइट्रेट, डाइनाइट्रेट और ट्राइनाइट्रो व्युत्पन्न तथा सल्फोनीकरण से सल्फोनिक अम्ल व्युत्पंन प्राप्त होते हैं। फिर इनसे ऐनिलीन, फिनोल, ऐल्डिहाइड, कार्बोक्सिलिक अम्ल, सैलिसिलिक अम्ल, सैलोल, ऐस्पिरिन इत्यादि अनेक बड़े उपयोगी पदार्थ प्राप्त हो सकते हैं।

एक और प्रसिद्ध यौगिक सोडियम ऐमिनोसैलिसिलेट (PAS) है, जिसका उपयोग स्ट्रेप्टोमाइसीन के साथ राजयक्ष्मा (टीबी) के उपचार में करते हैं।

बेन्ज़ीन वलय में एक से अधिक हाइड्रॉक्सिमूलक भी संस्थापित किए जा सकते हैं और इस प्रकार डाइहाइड्रिक, ट्राइहाइड्रिक फीनोलें तैयार की जा सकती हैं।

कैटिकोल कत्थे में होता है। आलू, सेब और बहुत सी तरकारियों चाकू से काटने पर काली पड़ जाती हैं। इन सब में कुछ कैटिकोल की मात्रा होती है, जो हवा के संपर्क में आक्सीकृत और बहुलीकृत होकर श्याम वर्ण के यौगिक देता है।

ऐल्केलॉइड (Alkaloid)[संपादित करें]

पौधों में से प्राप्त क्षारीय प्रवृत्ति के यौगिकों को पहले तो ऐल्केलॉइड कहा जाता था। अब उन सब पदार्थों को हम ऐल्केलाइड कहेंगे जिनकी प्रवृत्ति क्षारीय हो, जो वनस्पतिजगत्‌ से उपलब्ध किए गए हों और जिनमें कम से कम एक नाइट्रोजन वाला विषमचक्रीय वलय हो। क्विनीन, मॉर्फीन, सिंकोनीन आदि ओषधियाँ ऐल्केलॉइड के उदाहरण हैं (देखें ऐलकालॉयड

प्रोटीन, पालिपेप्टाइड और एमिनो अम्ल[संपादित करें]

वानस्पतिक और जंतव जगत्‌ से प्राप्त ये उपयोगी पदार्थ हैं और भोजन के परम आवश्यक अंग हैं। प्रोटीनों के जल अपघटन से ऐमिनों अम्ल मिलते हैं। कई ऐमिनों अम्ल मिलकर पोलिपेप्टाइड (बहु पेप्टाइड) बनाते हैं।

डाइऐज़ो यौगिक और ऐज़ो रंजक[संपादित करें]

१८५८ ई. में पीटर ग्रीस (Peter Griess) ने यह देखा कि ऐरोमैटिक ऐमिनो नाइट्रस अम्ल का प्रभाव उससे भिन्न है जो ऐलिफैटिक ऐमिनो पर साधारणतया देखा जाता है। उसने देखा कि ऐनिलीन नाइट्रस अम्ल (अथवा सोडियम नाइट्राइट और हाइड्रोक्लोरिक अम्ल) से क्रिया करके एक नवीन यौगिक देता है, जिसका नाम वेन्ज़ीन डाइऐज़ोनियम क्लोराइड है। (देखें डायज़ोयौगिक तथा ऐज़ोयौगिक रंजक (कृत्रिम)।

संश्लेषित औषिधियाँ[संपादित करें]

कार्बनिक रसायन के क्षेत्र में संश्लेषित यौगिकों का बड़ा सफल प्रयोग औषधियों के रूप में हुआ। वृक्ष और वनस्पतियों से प्राप्त ओषधियाँ वस्तुत: कार्बनिक ही हैं। इन औषधियों के सक्रिय अवयवों की रसायनज्ञों ने परीक्षा की। इनकी रासायनिक संरचना जानने के अनंतर उन्होंने इनका संश्लेषण किया और फिर इनके व्युत्पन्नों की ओषधि की दृष्टि से परीक्षा की। हम केवल कुछ ऐतिहासिक संश्लेषणों का यहाँ उल्लेख करेंगे।

पूतिनाशक' (antisepic)[संपादित करें]

१८६७ ई. में लिस्टर (Lister) ने फीनोल में पूतिनाशक, या रोगाणुनाशक, गुण देखे। शौचालयों में "फिनायल' का, जिसमें कोलतार से प्राप्त अवयवों का मिश्रण है, जैसे क्रिसोल, क्रेसिलिक अम्ल, क्रिओसोट, क्लोरोज़ाइलीनोल इत्यादि, आज तक उपयोग किया जाता है। डेटोल (Dettol) में, जिसका इतना प्रचार है, क्लोरोजाइलीनोल, टर्पिनिओल, एल्कोहॉल और थोड़ा अरंडी के तेल का साबुन है। डी सी एम एक्स (DCMX) नाम से डाइक्लोरो-ज़ाइलीनोल का उपयोग १९५२ ई. से बहुत होने लगा है। कुछ रंगों का उपयोग भी चिकित्सा में पूतिनाशकों के रूप में होता है, जैसे जेनशियम वॉयलेट (क्रिस्टल वायलेट), ब्रिलिएंट ग्रीन, मेलेकाइट ग्रीन आदि, जो ट्राइफीनिल मेथेन वर्ग के रंग हैं।

काष्ठ, सेलुलोस आदि से बने पदार्थों को यदि कीटाणुओं ओर फफूँदियों स बचाना हे, तो सैलिसित ऐनिलाइड (व्यापारिक नाम शिरलान (Shirlan)) का उपयोग करें, अथवा धातु साबुनों का उपयोग करें, जैसे जिंग नैफ्थीनेट और पारद के यौगिक, पेंटाक्लोराफ़ीनोल, डाइक्लोरोफीन [डी डी डी एम (DDDM) या डी डी एम (DDM): डाइहाइड्रॉक्सि डाइक्लोरो-डाइफेनिल मीथेन] आदि

सामान्य और स्थानिक निश्चेतक, या मूर्च्छोत्पादी[संपादित करें]

ईथर नामक द्रव का निश्चेतक के रूप में पहली बार प्रयोग हुआ और इसने प्रसव और शल्यकर्म दोनों में बड़ी सहायता दी। ईथर का क्वथनांक कम, अर्थात्‌ ३५°सें. है। यह इसका अवगुण हैं। १९५३ ई. में ट्राइफ्लोरो एथिल विनिल ईथर, CF3. CH2. OCH=CH2, को ईथर से कहीं अधिक श्रेष्ठ पाया गया। क्लोरोफ़ार्म, (CHCl3), एथिलक्लोराइड (CH3CH2Cl) और साइक्लोप्रोपेन, [(CH2)3], तो प्रसिद्ध है ही।

सामानय निश्चेतना या मूर्च्छा पैदा करने की अपेक्षा स्थानिक निश्चेतना साधारण शल्यकर्म में बड़ी उपयोगी हैं। १८८४ ई. में कोलर (Koller) और फ्रॉयड (Freud) ने कोकेन का इस दृष्टि से प्रयोग किया। यह देखा गया कि पेराऐमिनो बेन्ज़ोइक अम्ल के व्युत्पन्न अच्छे स्थानिक निश्चेतक हैं। वेन्ज़ोकेन, ओकेन (नोवोकेन), एमीथोकेन आदि इसी वर्ग के यौगिक हैं।

निद्राकारी[संपादित करें]

रोगी को अधिक कष्ट के समय निद्राकारियों का सेवन कराया जाता है, जिससे रोगी सो जाए। क्लोरलहाइड्रेट, [CCl3. CH(OH)2], का उपयोग इस कार्य में सबसे पुराना है। क्लोरोक्यूटोल [(CH3)2 C (CCl3) OH.] के गुण भी क्लोरल हाइड्रेट के समान ही हैं। सबसे प्रसिद्ध निद्राकारी बार्विट्यूरिक अम्ल के व्युत्पंन हैं (यह अम्ल यूरिया और मैलोनिक अम्ल के संघनन से बनाया जाता है)।

इसका द्वि ऐमिल व्युत्पंन वार्विटोन नाम से विख्यात है और एथिल फेनिल व्युत्पन्न फीनोवार्विटोन (ल्यूमिनाल) नाम से। कोडीन, मॉर्फीन आदि ऐल्कैलायड भी निद्राकारी हैं, जो अफीम से निकाले जाते हैं। मॉर्फीन से पीड़ा की अनुभूति कम हो जाती है और कोडोन शमनकारी है।

तंत्रोत्तेजक[संपादित करें]

स्नायुओं और मस्तिष्क की तंत्रिकाओं को उत्तेजन देनेवाली चीजों में चाय, काफी आदि प्रसिद्ध हैं। इनमें कैफीन, ज़ैन्थीन और इनसे मिलते जुलते प्यूरीन (Purine) वर्ग के यौगिक पाए जाते हैं। कोला के बीजों में कैफीन और थिओब्रोमीन होता है। एरगोट (Ergot) वर्ग के ऐल्कैलायडों में पेशियों को उत्तेजित करने का गुण है। ये ऐल्कैलॉइड लिसर्गिक अम्ल (lysergic acid) के व्युत्पन्न हैं। यह अम्ल अब संश्लेषित कर लिया गया है। मस्तिष्क के विकारों के उपचार में इससे सहायता मिलती है।

ज्वरनाशी और वेदनानाशी[संपादित करें]

ज्वर से ग्रस्त रोगी के शरीर का ताप जिन ओषधियों से कम हो जाए (ज्वर का कारण चाहे दूर न हो), वे इस वर्ग में आती हैं। कुछ ओषधियाँ केवल वेदना दूर करती हैं। सैलिसिलिक अम्ल, ज्वरहारियों में, सबसे पुराना है। इसका एक ऐसीटिल व्युत्पन्न ऐस्पिरिन है, जो शिर पीड़ा की अनुभूति दूर करने में बड़ा उपयोगी सिद्ध हुआ है। फिनैसीटिन में ज्वर के ताप को कम कर देने के अच्छे गुण हैं। फिनैसिटीन ऐसीटो ऐनिलाइड का व्युत्पन्न है।

सल्फोनैमाइड और सल्फोन[संपादित करें]

१९३० ई. में यह देखा गया कि प्रोंटोसिल (prontosil) नामक लाल रंग में शाकाणु या वैक्टीरिया के मारने के गुण विद्यमान हैं। बाद को देखा गया कि एक सरल यौगिक सल्फऐनिलैमाइड में भी वैक्टीरिया मारने के गुण हैं। तब से इस वर्ग के सैकड़ों यौगिकों और व्युत्पन्नों की इस दृष्टि से परीक्षा की गई। ये सब यौगिक सल्फोनैमाइड वर्ग के कहे जाते हैं।

एफीड्रिन (ephedrine), [C6H5. CH(OH). CH(NHCH3). CH3] और ऐड्रिनैलिन (adrenaline), [(OH)2 C6H4-CH (OH) CH2. NH. CH3], का उपयोग भी तंत्रोत्तेजना के सल्फा पिरिडिन, (M & B 693) नाम से विख्यात है। पिरिमिडिन व्युत्पन्न भी (जैसे सल्फडाइऐज़ीन) बड़े गुणकारी सिद्ध हुए हैं।

मलेरियानाशी[संपादित करें]

कुछ ओषधियाँ मलेरिया ज्वर दूर करने में बड़ी गुणकारी सिद्ध हुई हैं। सिनकोना की छाल से प्राप्त क्विनीन का नाम तो विख्यात है ही, इसका प्रचार अब भी बहुत है। १९२० ई से इस बात का प्रयत्न जर्मनी में होता रहा कि मलेरिया ज्वर को दूर करने की और भी ओषधियाँ प्राप्त की जाएँ। फलत: पेमाक्विन नामक यौगिक इस बात में सफल पाया गया (१९२४ ई.)। यह प्रथम संश्लेषित मलेरियानाशी था। १९३० ई. में एट्रीबिनश् (मेपाकिन और क्विनाक्रिन) भी अच्छे पाए गए। पेमाक्विन क्विनोलिन वर्ग का यौगिक है और मेपाक्रिन पीला एक्रिडिन रंग है।

द्वितीय महायुद्ध में जिन मलेरियानाशियों पर अमरीका में विशेष अनुसंधान हुए, उनमें प्रिमाक्विन और क्लोरोक्विन विशेष महत्व के पाए गए। पैलूड्रिन (Paludrine) प्रोग्वानिल हाइड्रोक्लोराइड का व्यापारी नाम है, यह भी मलेरिया रोग में काम आता है।

एंटिबायोटिक[संपादित करें]

१९२८ ई. में सर ऐलेग्जेंडर फ्लेमिंग (A.Fleming) ने देखा कि कुछ वैक्टीरिया विशेष फफूँदियों की विद्यमानता में मरने लगते हैं। इसी परंपरा में पेनिसिलिन का आविष्कार हुआ। १९४६ ई. में पेनिसिलिन के बेन्ज़िल व्युत्पंन (पेनिसिलिन-g) का संश्लेषण भी कर लिया गया। इसकी रासायनिक संरचना निम्न है:

पेनिसिलिन-जी में, (R=C6H5 CH2), बेन्जिल मूलक है। दूसरे मूलक भी प्रतिस्थापित किए जा सकते हैं। भूमि, या मिट्टी के भीतर पाए जानेवाले अनेक सूक्ष्म जीवाणुओं का परीक्षण किया गया। सबसे पहली बार १९३९ ई. में ड्यूबॉस (Dubos) को सफलता मिली और उसने वैसिलस ब्रेविस (Bacillus brevis) नामक जीवाणु में से ग्रैमिसिडिन (Gramicidin) नामक पदार्थ प्राप्त किया जो पॉलिपेप्टाइडों का मिश्रण था। १९४४ ई. में स्ट्रेप्टोमाइसीज़ ग्रिसियस (Streptomyces griseus) नाम जीवाणु का पता चला, जो राजयक्ष्मा के प्रति भी क्रियाशील था। १९४७ ई. में वेनिज़्वीला में एक जीवाणु का पता चला, जिससे क्लोरैफेनिकोल (Chloramphenicol) नाक यौगिक प्राप्त किय गया। इस प्रकार ऐसे एेंटिबायोटिक द्रव्य का पता चला जो अनेक रोगों में अकेले ही का आ सकता था। इन सब अध्ययनों के फलस्वरूप क्लोरोमाइसेटिन का संश्लेषण किया गया। प्रोफेसर डुग्गर (Duggar) ने उस जीवाणु का पता चलाया जो एक सुनहरे रंग का पदार्थ भी देता था और जिसका नाम स्ट्रेप्टोमाइसीज़ ऑरिओफेसियन्स (Streptomyces aureofaciens) था। इस जीवाणु से जो पदार्थ मिला उसे आरिओमाइसीन (Aureomycin) नाम से प्रयोग में लाया गया। १९४९ ई. में नेओमाइसीन (Neomycin) की खोज वैक्समैन और लेकेवेलियर (Waksman and Lechevalier) ने की। टेरामाइसीन (Terramycin) का आविष्कार बाद में फिजर समुदाय की प्रयोगशालाओं में हुआ। इस प्रकार पेनिसिलिन युग का आरंभ हुआ।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • अकार्बनिक यौगिक
  • कार्बनिक संश्लेषण
  • औषधि
  • प्रकार्यात्मक समूह (functional groups)

निम्नलिखित में से कौन सा कार्बनिक यौगिक है l?

इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं।

निम्नलिखित में कौन सा यौगिक कार्बनिक यौगिक नहीं है?

निम्नलिखित बहुपदों में से कौन-सा बहुपद रैखिक है ? निम्नलिखित में कौन उद्देश्य फलन नहीं है ? निम्नलिखित बीजीय व्यंजकों में कौन-सा एक बहुपद है ?

कार्बन के कितने यौगिक होते हैं?

यही कारण है कि कार्बन के यौगिकों की बहुत संख्या होती है। मीथेन (CH4), एथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8), ब्यूटेन (C4H10, ), पेन्टेन (C5H12), इथाइलीन (C2H4), एसीटिक अम्ल (CH3COOH) एथिल एल्कोहल (C2H5OH) इत्यादि कार्बन के यौगिक हैं और ये बहुत से रासायनिक उद्योगों में काम आते हैं

कौन सा तत्व सभी कार्बनिक यौगिकों में पाया जाता है?

सही उत्तर कार्बन है। कार्बन सभी कार्बनिक यौगिकों में पाया जाता है