नाखून क्यों बढ़ते हैं निबंध में लेखक ने मनुष्य की किस मूलभूत समस्या पर विचार किया है स्पष्ट कीजिए? - naakhoon kyon badhate hain nibandh mein lekhak ne manushy kee kis moolabhoot samasya par vichaar kiya hai spasht keejie?

Acharya Hazari Prasad Dwivedi ने अपने साहित्य के माध्यम से भारतीय संस्कृति की मानवातावादी को अखण्ड बनाए रखने का सराहनीय प्रयास किया है। इस पोस्ट में हम इनके निबंध नाख़ून क्यों बढ़ते हैं (Nakhun Kyu Badhte Hai ) सारांश के बारे में बता रहे हैं

वर्तमान समय में नाखून का बढ़ना एवं मनुष्यों द्वारा उनको काटना नियमित ढंग से गतिमान हैं। नाखून की इस प्रकार उपेक्षा से में कोई अवरोध उत्पन्न नहीं हुआ है। प्राचीन युग में जब मानव में ज्ञान का अभाव था, अस्त्रों-शस्त्रों से उसका परिचय नहीं था, तब इन्हीं नाखूनों को उसने अपनी रक्षा हेतु सबल अस्त्र समझा, किंतु समय के साथ उसकी मानसिक शक्ति में विकास होता गया। उसने अपनी रक्षा हेतु अनेक विस्फोटक एवं विध्वंसकारी अस्त्रों का आविष्कार कर लिया और अब नाखूनों की उसे आवश्यकता नहीं रही, किंतु प्रकृति-पदत्त यह अस्त्र आज भी अपने कर्तव्य को भूल नहीं सका है।

मनुष्य की नाखून के प्रति उपेक्षा से ऐसा प्रतीत होता है कि वह अब पाशविकता का त्याग एवं मानवता का अनुसरण करने की ओर उन्मुख है, किंतु आधुनिक मानव के क्रूर कर्मों, यथा हिरोशिमा का हत्याकांड से उपर्युक्त कथन संदिग्ध प्रतीत होता है, क्योंकि यह पाशविकता की मानवता को चुनौती है । वात्सायन के कामसूत्र से ऐसा मालूम होता है कि नाखून को विभिन्न ढंग से काटने एवं सँवारने का भी एक युग था । प्राणी विज्ञानियों के अनुसार नाखून के बढ़ने में सहज वृत्तियों का प्रभाव है। नाखून का बढ़ना इस बात का प्रतीक है कि शरीर में अब भी पाशविक गुण वर्तमान है। अस्त्र -शस्त्र में वृद्धि भी उसी भावना की परिचायिका है। मानव आज सभ्यता के शिखर पर अधिष्ठित होने के लिए कृत-संकल्प है। विकासोन्मुख है किन्तु मानवता की ओर नहीं, अपितु पशुता की ओर। इसका भविष्य उज्ज्वल है किन्तु अतीत का मोहपाश सशक्त है। स्वका बंधन तोड़ देना आसान प्रतीत नहीं होता है। कालिदास के विचारानुसार मानव को अव्वाचीन अथवा प्राचीन से अच्छाइयों को ग्रहण करना चाहिए तथा बुराइयों का बहिष्कार करना चाहिए। मूर्ख इस कार्य में अपने को असमर्थ पाकर दूसरों के निर्देशन पर आश्रित होकर भटकते रहते हैं।

भारत का प्राचीन इतिहास इस बात का साक्षी है कि विभिन्न जातियों के आगमन से संघर्ष होता रहा, किन्तु उनकी धार्मिक प्रवृति में अत्याचार, बर्बरता और क्रूरता को कहीं आश्रय नहीं मिला। उनमें तप, त्याग, संयम और संवेदना की भावना का ही बाहुल्य था। इसलिए की मनुष्य विवेकशील प्राणी हैं। अत: पशुता पर विजय प्राप्त करना ही मानव का विशिष्ट धर्म है। वाह्य उपकरणों की वृद्धि पशुता की वद्धि है। महात्मा गांधी की हत्या इसका ज्वलन्त प्रमाण है। इससे सुख की प्राप्ति कदापि नहीं हो सकती।

जिस प्रकार नाखून का बढ़ना पशुता का तथा उनका काटना मनुष्यत्व का प्रतीक है, उसी प्रकार अस्त्रशस्त्र की वृद्धि एवं उनकी रोक में पारस्परिक संबंध है। इससे सफलता का वरण किया जा सकता है, किंतु चरितार्थकता की छाया भी स्पर्श नहीं की जा सकती। अत: आज मानव का पुनीत कर्तव्य है कि वह हृदय-परिवर्तन कर मानवीय गुणों को प्रचार एवं प्रसार के साथ जीवन में धारण करे क्योंकि मानवता का कल्याण इसी से सत्य एवं अहिंसा का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा।

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नाखून क्यों बढ़ते हैं निबंध की मूल संवेदना क्या है?

नाखूनों का बढ़ना मनुष्य की उस अंध सहजात वृत्ति का परिणाम है, जो उसके जीवन में सफलता ले आना चाहती है, उसको काट देना उस स्व-निर्धारित, आत्म-बन्धन का फल है, जो उसे चरितार्थता की ओर ले जाता है ।

नाखून क्यों बढ़ते हैं निबंध के आधार पर मनुष्य किस और बढ़ रहा है?

नाखून का बढ़ना मनुष्य की उस अंध सहजात वृत्ति का परिणाम है जो उसके जीवन में सफलता ले आना चाहती है, उसको काट देना आत्मबंधन का फल है जो उसे चरितार्थता की ओर ले जाती है।

नाखून क्यों बढ़ते हैं किस निबंध संग्रह से है?

'नाखून क्यों बढ़ते है',निबंध हज़ारीप्रसाद द्विवेदी के कल्पलता निबंध-संग्रह में है। कल्पलता निबन्ध संग्रह 1951ई. में लिखा गया। यह विचार-प्रधान व्यक्तिनिष्ठ निबन्ध है।

आदमी के नाखून क्यों बढ़ते हैं प्रश्न लेखक से किसने किया?

Ans :- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने हिन्दी का एक उत्तम ललित निबंध 'नाखून क्यों बढ़ते हैं लिखा है। “प्रस्तुत निबंध में निबंधकार का मानववादी दृष्टिकोण प्रकट होता ।

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