Our detailed NCERT Solutions for Class 12 Hindi नए और अप्रत्याशित विषयों पर रचनात्मक लेखन Questions and Answers help students in exams. प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. इससे हमारी अभिव्यक्ति की क्षमता विकसित नहीं होती। इसलिए हमें निबंधों के नए विषय पर अपने विचार अभिव्यक्त करने चाहिए। नए विषयों पर विचार अभिव्यक्त करने से . लेखक का मानसिक और आत्मिक विकास होता है। इससे लेखक की चिंतन शक्ति का विकास होता है। इससे लेखक को बौद्धिक विकास तथा अनेक विषयों की जानकारी होती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि अभिव्यक्ति के अधिकार में निबंधों के विषय बहुत सहायक सिद्ध होते हैं। प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. महाभारत के युद्ध में भीम और उसके पुत्र घटोत्कच ने अपनी शारीरिक शक्ति के बल पर बहुत-से कौरवों को मार गिराया किंतु उनकी शक्ति को भी दिशा-निर्देश देने वाली श्री कृष्ण की बुद्धि ही थी। नैपोलियन, लेनिन तथा मुसोलिनी जैसे महान् व्यक्तियों ने भी बुद्धि के बल पर ही सफलताएं अर्जित की थीं। राजनीति, समाज, धर्म, दर्शन, विज्ञान और साहित्य आज लगभग हर क्षेत्र में बुद्धि बल का ही महत्त्व है। पंचतंत्र की एक कहानी .. से भी इस कथन की पुष्टि हो जाती है कि शारीरिक बल से अधिक महत्त्व बुद्धि का होता है। इस कहानी में एक छोटा-सा खरगोश शक्तिशाली शेर को एक कुएँ के पास ले जाकर उससे कएँ में छलांग लगवाकर उसे मार डालता है। अपनी बदधि के बल पर ही उस नन्हें से खरगोश ने खूखार शेर से केवल अपनी ही नहीं अपितु जंगल के अन्य प्राणियों की भी रक्षा की थी। अतः शारीरिक शक्ति की अपेक्षा हमारे जीवन में बुद्धि का अधिक महत्त्व है। पाठ से संवाद प्रश्न 1. – लिखित अभिव्यक्ति की क्षमता का विकास नहीं होता क्योंकि हम कुछ नया सोचने-लिखने का प्रयास करने के स्थान पर किसी विषय पर पहले से उपलब्ध सामग्री पर निर्भर हो जाते हैं। – हमें विचार-प्रवाह को थोड़ा नियंत्रित रखना पड़ता है क्योंकि विचारों को नियंत्रित करने से ही हम जिस विषय पर लिखने जा रहे हैं उसका विवेचन उचित रूप से कर सकेंगे। – लेखन के लिए पहले उसकी रूपरेखा स्पष्ट होनी चाहिए क्योंकि जब तक यह स्पष्ट नहीं होगा कि हम ने क्या और कैसे लिखना है हम अपने विषय को सुसंबद्ध और सुसंगत रूप से प्रस्तुत नहीं कर सकते। – लेख में ‘मैं’ शैली का प्रयोग होता है क्योंकि लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने होते हैं और लेख पर लेखक के अपने व्यक्तित्व की छाप होती है। प्रश्न 2. झरोखा स्वयं कितना छोटा-सा होता है पर उसके पार बसने वाला संसार कितना व्यापक है जिसे देख तन-मन की भूख जाग जाती है और कभी-कभी शांत भी हो जाती है। किसी पर्वतीय स्थल पर किसी घर के झरोखे से गगन चुंबी पर्वत मालाएँ, ऊँचे-ऊँचे पेड़, गहरी-हरी घाटियाँ, डरावनी खाइयाँ यदि पर्यटकों को अपनी ओर खींचती हैं तो दूर-दूर तक घास चरती भेड़-बकरियाँ, बाँसुरी बजाते चरवाहे, पीठ पर लंबे टोकरे बाँधकर इधर-उधर जाते सुंदर पहाड़ी युवक-युवतियाँ मन को मोह लेते हैं। राजस्थानी महलों के झरोखों से दूर-दूर फैले रेत के टीले कुछ अलग ही रंग दिखाते हैं। गाँवों में झोंपड़ों के झरोखों के बाहर यदि हरे-भरे खेत लहलहाते दिखाई देते हैं तो कूड़े के ऊँचे-ऊँचे ढेर भी नाक पर हाथ रखने को मजबूर बे कमरों को हवा ही नहीं देते बल्कि भीतर से ही बाहर के दर्शन करा देते हैं। सजी-सँवरी दुल्हन झरोखे के पीछे छिप कर यदि अपने होनेवाले पति की एक झलक पाने को उतावली रहती है तो कोई विरहनी अपनी नज़ टिकी रहती है। माँ अपने बेटे के आगमन की इंतजार झरोखे पर टिककर करती है। झरोखे तो तरह-तरह के होते हैं पर झरोखों के पीछे बैठ प्रतीक्षारत आँखों में सदा एक ही भाव होता है-कुछ देखने का, कुछ पाने का। युद्ध-भूमि में मोर्चे पर डटा जवान भी तो खाई के झरोखे से बाहर छिप-छिप कर झाँकता है-अपने शत्रु को गोली से उड़ा देने के लिए। झरोखे तो छोटे-बड़े कई होते हैं पर उनके बाहर के दृश्य तो बहुत बड़े होते हैं जो कभी-कभी आत्मा तक को झकझोर देते हैं। 2. सावन की पहली झड़ी उठकर खिड़की से बाहर झाँका तो मन खुशी से झम उठा। आकाश तो काले बादलों : आकाश में कहीं नीले रंग की झलक नहीं। सूर्य देवता बादलों के पीछे पता नहीं कहाँ छिपे हुए थे। पक्षी पेड़ों पर बादलों के स्वागत में चहचहा रहे थे। मुहल्ले से सारे लोग अपने-अपने घरों से बाहर निकल मौसम के बदलते रंग को देख रहे थे। उमड़ते-घुमड़ते मस्त हाथियों से काले-कजरारे बादल मन में मस्ती भर रहे थे। अचानक बादलों में तेज़ बिजली कौंधी ज़ोर से बादल गरजे और मोटी-मोटी कुछ बूंदें टपकीं। कुछ लोग इधर-उधर भागे ताकि अपने-अपने घरों में बाहर पड़ा सामान भीतर रख लें। पलभर में ही बारिश का तेज़ सर्राटा आया और फिर लगातार तेज बारिश शुरू हो गई। महीनों से प्यासी धरती की प्यास बुझ गई। पेड़-पौधों के पत्ते नहा गए। उनका धूल-धूसरित चेहरा धुल गया और हरी-भरी दमक फिर से लौट आई। छोटे-छोटे बच्चे बारिश में नहा रहे थे, खेल रहे थे, एक-दूसरे पर पानी उछाल रहे थे। कुछ ही देर में सड़कें-गलियाँ छोटे-छोटे नालों की तरह पानी से भर-भरकर बहने लगी थीं। कल रात तक दहकने वाला दिन आज खुशनुमा हो गया था। तीन-चार घंटे बाद बारिश की गति कुछ कम हुई और फिर पाँच-दस मिनट के लिए बारिश रुक गई। लोग बाहर निकलें इससे पहले फिर से बारिश शुरू हो गई-कभी धीमी तो कभी तेज़। सुबह से शाम हो गई है पर बादलों का अँधेरा उतना ही है जितना सुबह था। रिमझिम बारिश हो रही है। घरों की छतों से पानी पनालों से बह रहा है। मेरी दादी अभी कह रही थी कि आज शनिवार को बारिश की झड़ी लगी है। यह तो अगले शनिवार तक ऐसे ही रहेगी। भगवान करे ऐसा ही हो। धरती की प्यास बुझ जाए और हमारे खेत लहलहा उठे। 3. इम्तहान के दिन जिस दिन इम्तहान का दिन था, उससे पहली रात मुझे तो बिलकुल नींद नहीं आई। पहला प्रश्न-पत्र हिंदी का था और विषय पर मेरी अच्छी पकड़ थी पर ‘इम्तहान’ का भूत सिर पर इस प्रकार सवार था कि नीचे उतरने का नाम ही नहीं लेता था। सुबह स्कूल जाने के लिए तैयार हुआ। स्कूल-बस में सवार हुआ तो हर रोज़ .. हो-हल्ला करने वाले साथियों के हाथों में पकड़ी पुस्तकें और उनकी झुकी हुई आँखों ने मुझे और अधिक डराया। सबके चेहरों पर … खौफ़-सा छाया था। खिलखिलाने वाले चेहरे आज सहमे हुए थे। मैंने भी मन ही मन अपने पाठों को दुहराना चाहा पर ऐसा लगा कि मुझे तो कुछ भी याद ही नहीं। सब कुछ भूलता-सा प्रतीत हो रहा था। मैंने भी अपनी पुस्तक खोली। पुस्तक देखते ही ऐसा लगा कि मुझे तो यह आती है। खैर, स्कूल पहुँच अपनी जगह पर बैठे। प्रश्न-पत्र मिला, आसान लगा। ठीक समय पर पूरा प्रश्न-पत्र हल हो गया। जब बाहर निकले तो सभी प्रसन्न थे। पर साथ ही चिंता आरंभ हो गई अगले पेपर की। अगला पेपर गणित का था। चाहे दो छुट्टियाँ थीं, पर ऐसा लगता था कि ये तो बहुत कम हैं। वह पेपर भी बीता, पर चिंता समाप्त नहीं हुई। पंद्रह दिन में सभी पेपर खत्म हुए दिन बहुत व्यस्त रहे थे। इन दिनों न तो भूख लगती थी और न खेलने की इच्छा होती थी। इन दिनों न तो मैं अपने किसी मित्र के घर गया और न ही मेरे किसी मित्र को मेरी सुध आई। इम्तहान के दिन बड़े तनाव भरे थे। 4. दीया और तूफ़ान महाराणा प्रताप ने सब कुछ खोकर अपना लक्ष्य प्राप्त करने की ठानी थी। हमारे पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने नन्हें-से दीये के समान जीवन की कठोरता का सामना किया। था और विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र भारत का प्रधानमंत्री पद प्राप्त कर लिया था। हमारे राष्ट्रपति कलाम ने अपना जीवन टिमटिमाते दीये के समान आरंभ किया था पर आज वही दीया हमारे देश को मिसाइलें प्रदान करने वाला प्रचंड अग्नि-पुंज है। उसने देश को जो शक्ति प्रदान की है वह स्तुत्य है। समुद्र में एक छोटी-सी नौका ऊँची-तूफानी लहरों से टकराती हुई अपना रास्ता बना लेती है और अपनी मंज़िल पा लेती है। एक छोटा-सा प्रवासी पक्षी साइबेरिया से उड़कर हज़ारों-लाखों मील दूर पहुँच सकता है तो हम इंसान भी कठिन से कठिन मंज़िल प्राप्त कर सकते हैं। अकेले अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में कौरवों जैसे महारथियों का डट कर सामना किया था। कभी-कभी तूफान अपने प्रचंड वेग से दीये की लौ को बुझा देता है पर जब तक दीया जगमगाता है तब तक तो अपना प्रकाश फैलाता है और अपने अस्तित्व को प्रकट करता है। मिटना तो सभी को है एक दिन। मनुष्य को चाहिए कि वह कठिनाइयों से डरकर छिपा न रहे और डट कर उनका मुकाबला करे। श्रेष्ठ मनुष्य वही है जो दीये के समान जगमगाता हुआ तूफानों की परवाह न करे और अपनी रोशनी से संसार को उजाला प्रदान करता रहे। 5. मेरे मोहल्ले का चौराहा चौराहे पर फलों की रेहड़ियाँ, कुछ सब्जी बेचने वाले, खोमचे वाले तो सारा दिन जमे ही रहते हैं। चूँकि चौराहे के आसपास घनी बस्ती है इसलिए लोगों की भीड़ कुछ न कुछ खरीदने के लिए यहाँ आती ही रहती है। सुबह-सवेरे स्कूल जाने वाले बच्चों से भरी रिक्शा और बसें जब गुज़रती हैं तो भीड़ कुछ अधिक बढ़ जाती है। कुछ रिक्शाओं में तो नन्हें-नन्हें बच्चे गला फाड़कर चीखते-चिल्लाते सबका ध्यान अपनी ओर खींचते हैं। चौराहे पर लगभग हर समय कुछ आवारा मजनूँ छाप भी मँडराते रहते हैं जिन्हें ताक-झाँक करते हुए पता नहीं क्या मिलता है। मैंने कई बार . पुलिस के द्वारा उनकी वहाँ की जाने वाली पिटाई भी देखी है पर इसका उन पर कोई विशेष असर नहीं होता। वे तो चिकने घड़े हैं। कुछ तो दिन भर नीम के पेड़ के नीचे घास पर बैठ ताश खेलते रहते हैं। मेरे मुहल्ले का चौराहा नगर में इतना प्रसिद्ध है कि मुहल्ले और आस-पास की कॉलोनियों की पहचान इसी से है। 6. मेरा प्रिय टाइम-पास जब कभी काम करते-करते मैं ऊब जाता हूँ और मन कोई काम नहीं करना चाहता तब मैं तैयार होकर घर से बाहर बाज़ार की ओर निकल जाता हूँ-विंडो-शॉपिंग के लिए। जिस नगर में मैं रहता हूँ वह काफ़ी बड़ा है। बड़े-बड़े बाज़ार, शॉपिंग मॉल्ज और डिपार्टमेंटल स्टोर्स की संख्या काफ़ी है। दुकानों की शो-विंडोज़ सुंदर ढंग से सजे-सँवरे सामान से ग्राहकों को लुभाते रहते हैं। नए-नए उत्पाद, सुंदर कपड़े, इलैक्ट्रॉनिक्स का नया सामान, तरह-तरह के खिलौने, सजावटी सामान आदि इनमें भरे रहते हैं। मैं इन सजी-सँवरी दुकानों की शो-विंडोज़ को ध्यान से देखता हूँ, मन ही मन खुश होता हूँ, उनकी सुंदरता और उपयोगिता की सराहना करता हूँ। जिस वस्तु को मैं खरीदने की इच्छा करता हूँ उसके दाम का टैग देखता हूँ और मन में सोच लेता हूँ कि मैं इसे तब खरीद लूँगा जब मेरे पास अतिरिक्त पैसे होंगे। ऐसा करने से मेरी जानकारी बढ़ती है। नए-नए उत्पादों से संबंधित ज्ञान बढ़ता है और मन नए सामान को लेने की तैयारी करता है और इसलिए मस्तिष्क और अधिक परिश्रम करने के लिए तैयार होता है। टाइम-पास की मेरी यह विधि उपयोगी है, और सार्थक है, जो परिश्रम करने की प्रेरणा देती है, ज्ञान बढ़ाती है और किसी का कोई नुकसान भी नहीं करती। 7. एक कामकाजी औरत की शाम दिन-भर की थकी-हारी औरत कुछ आराम करना चाहती है पर उससे पहले चाय तैयार करती है। यदि वह औरत संयुक्त परिवार में रहती है तो कुछ और तैयार रमाइशें भी उसे पूरी करनी पड़ती हैं। चाय पीते-पीते वह बच्चों से, बड़ों से बातचीत करती है। यदि उस समय कोई घर में मिलने-जुलने वाला आ जाता है तो सारी शाम आगंतुकों की सेवा में बीत जाती है। लेकिन यदि ऐसा नहीं हुआ तो भी उसे फिर से बाजार या कहीं और जाना पड़ता है ताकि घर के लोगों की फरमाइशों को पूरा कर सके। लौटकर बच्चों को होमवर्क करने में सहायता देती है और फिर रात के खाने की तैयारी में लग जाती है। कभी-कभी उसे आस-पड़ोस के घरों में भी औपचारिकतावश जाना पड़ता है। कामकाजी औरत तो चक्करघिन्नी की तरह हर पल चक्कर ही काटती रहती है। उसकी शाम अधिकतर दूसरों की फरमाइशों को पूरा – करने में बीत जाती है। वह हर पल चाहती है कि उसे भी घर में रहने वाली औरतों के समान कभी शाम अपने लिए मिले पर प्रायः ऐसा हो नहीं पाता, क्योंकि कामकाजी औरत का जीवन तो घड़ी की सुइयों से बँधा होता है। प्रश्न 3. प्रश्न 4. कहीं हम पैसे देकर पानी के नाम पर जहर तो नहीं पी रहे ? इन कोल्ड वॉटर बेचने वालों के ‘वाटर’ की जांच स्वास्थ्य विभाग का कार्य है परंतु वे तो तब तक नहीं जागते हैं जब तक इनके दूषित पानी पीने से सैंकड़ों व्यक्ति दस्त के, हैज़े के शिकार नहीं हो जाते। आशा है इन गर्मियों में स्वास्थ्य विभाग जायेगा और पानी के नाम पर जहर बेचने वाली इन ‘कोल्ड वाटर’ की रेहड़ियों की जाँच करेगा। अभ्यास हेतु कुछ अन्य प्रश्न प्रश्न 1. वह एक ही कक्षा में जब अनेक बार असफल हुआ तो उनके गुरु ने उन्हें अपने आश्रम से मूर्ख कहकर निकाल दिया था। जब वह जंगल से गुजर रहे थे तो वह एक कुँए पर अपनी प्यास बुझाने के लिए गए। वहाँ उन्होंने देखा कि पानी खींचने की रस्सी से कुएँ की मेड़ पर भी निशान पड़ रहे थे। उसी समय उन्होंने संकल्प कर लिया कि जब लगातार प्रयोग से एक कठोर वस्तु पर भी निशान पड़ सकते हैं तो फिर वह भी मूर्ख से विद्वान् बन सकता। यह निश्चय कर वे वापस अपने गुरु की शरण में चले गए। वही पाणिनी आगे चलकर महान विद्वान् महर्षि पाणिनी बने। अभ्यास करने से संसार में कोई असाध्य कार्य भी साध्य बन जाता है। अभ्यास असंभव को भी संभव बना देता है। इसीलिए यह सच कहा गया है कि करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान। प्रश्न 2. प्रकृति ने सबको अपनी इच्छा के अनुसार जीवनयापन करने का जन्मसिद्ध अधिकार दिया है। वह कहीं भी आ-जा सकता है; घूम सकता है। स्वाभिमान और आत्मविश्वास से स्वाधीनता को प्राप्त किया जा सकता है। जो मनुष्य स्वाभिमानी होता है वह कभी भी दूसरों के अधीन रहना पसंद नहीं करता। आत्मविश्वास के बल पर ही स्वाधीनता प्राप्त की जा सकती है। इसलिए हमें सदा स्वाभिमानी और आत्मविश्वासी बनना चाहिए। पराधीन होकर जीवन में कोई रस नहीं रहता। इस जीवन में सुख की कल्पना भी नहीं कर सकते। अतः यह सत्य है कि पराधीन व्यक्ति को तो सपने में भी सुख की अनुभूति नहीं होती। प्रश्न 3. उन्हें अपनी संकीर्णता को त्याग कर व्यापक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। पुरुषों को नारी को किसी भी रूप में कम नहीं समझना …… चाहिए क्योंकि नारी का स्थान सबसे बड़ा होता है। समाज में लड़कियों को विशेष लाभ मिलना चाहिए। यदि लड़कियों को विशेष दर्जा दिया जाएगा तो समाज में वे आगे बढ़ सकेंगी। इतना ही नहीं समाज के हर क्षेत्र में उनका विकास होगा। लड़कियों के लिए विशेष शिक्षा दी जानी चाहिए। यदि लड़कियां शिक्षित होंगी तभी समाज का कल्याण होगा। लड़कियों को सुशिक्षित होने से ही समाज सभ्य सुसंस्कृत और संस्कारवान बन पाएगा। इसलिए समाज में नारी शिक्षा का बहुत महत्त्व है। प्रश्न 4. सैर करना, योगा, भागदौड़, टहलना आदि व्यायाम के ही रूप होते हैं। सुबह शाम .. सैर करनी चाहिए, योगाभ्यास करना चाहिए। अनुलोम-विलोम, सूर्य नमस्कार आदि नियमित रूप से करने चाहिए। जीवन में व्यायाम के अनेक लाभ हैं। व्यायाम करने से शरीर चुस्त रहता है। व्यायाम करने से शरीर स्वस्थ और रोग रहित रहता है। शरीर में चुस्ती-फुर्ती आ जाती है। आलस्य गायब हो जाता है। चेहरे पर चमक आ जाती है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए नियमित व्यायाम करना चाहिए। नियमित व्यायाम करने से ही अधिक लाभ … होता है। इससे रोगों से लड़ने की शक्ति आती है। शरीर का पूर्ण विकास होने लगता है। प्रश्न 5. सदा बच्चों की भलाई करता। मैं अपने स्कूल की कमियों को दूर करने का प्रयास करता। छोटी-छोटी कमियों को ढूँढ़कर उन्हें दूर करने का प्रयास करता। मैं पुस्तकालय, विज्ञान, प्रयोगशालाओं, खेल आदि के उत्थान के प्रयास … अवश्य करता। खेलों को बढ़ावा देने के लिए बच्चों को जागरूक बनाता। मैं सदा संपूर्ण शिक्षा स्तर के उत्थान पर बल देता। शिक्षा का स्तर बच्चों के जीवन को विकसित कर सके ऐसे प्रयास करता। मैं एक अध्यापक होने के नाते सदा ईमानदारी, सत्यनिष्ठ एवं कर्तव्य भावना से अपना कर्म करता। प्रश्न 6. पटरी से उतरकर ट्रेन अनेक घरों को तोड़ती-रौंदती हुई एक गहरे गड्ढे में जा गिरी उसके बाद घटनास्थल पर अनेक लोग जमा हो गए। रेलवे पुलिस के अनेक जवान आ गए। आग बुझाने वाली गाड़ियां आ गईं। इस दुर्घटना में अनेक यात्रियों की मौत हो गई। यह एक भयानक दृश्य था। इस भयानक दृश्य को देखकर मन डर गया। स्थानीय लोगों ने मौके पर पहुँचकर यात्रियों की मदद की। फँसे यात्रियों को बाहर निकाला। उन्हें पानी पिलाया। कुछ खाने की वस्तुएं दी। इस भयानक दृश्य को देखकर हर व्यक्ति सहम गया। यात्रियों की लाशें देखकर मुझे सदमा लगा। यह दृश्य मेरे मन में बैठ गया। प्रश्न 7. उससे कभी मीठे आम प्राप्त नहीं होंगे। यह सच ही है मनुष्य जैसे कर्म करता है उसे संसार में वैसा ही फल भोगना पड़ता है। कर्मफल का यही सिद्धांत है जो कभी भी निष्फल नहीं होता। इसीलिए इस संसार में जो मनुष्य अच्छे काम करता है उसे अच्छा फल मिलता है। जो बुरे काम करता है उसे बुरा फल ही मिलता है। फल की प्राप्ति मनुष्य के कर्मों पर निर्भर करती है। इसलिए मनुष्य को सदा अच्छे कर्म करने चाहिए। उसे जीवन में कभी भूलकर भी बुरा कर्म नहीं करना चाहिए क्योंकि बुरे कर्म करने पर मनुष्य सदा पश्चात्ताप करता है। प्रश्न 8. सच्चा मित्र केवल सुख में ही नहीं बल्कि दुःख में भी सहयोग देता है। वह भयंकर समय में भी हमारा साथ नहीं छोड़ता। सच्चा मित्र एक मार्गदर्शक प्रेरक होता है। वह एक गुरु के समान हमारा सच्चा मार्गदर्शन करता है। वह सदा अच्छाई की ओर प्रेरित करता है। वह सदा सच्चाई के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। सद्कर्म करने की प्रेरणा देता है। हमें सद्मार्ग पर चलने का सुझाव देता है। इसलिए जीवन में हमें एक मित्र का चुनाव सोच-समझकर और परखकर करना चाहिए। बुरे लोगों को कभी भी अपना मित्र नहीं बनाना चाहिए क्योंकि ये अपना ही नहीं बल्कि दूसरों का भी जीवन बर्बाद कर देते हैं। प्रश्न 9. जैसे-होली, दीपावली, ईद, दशहरा, वैशाखी, रामनवमी, गुरुपर्व, बसंत पंचमी आदि। ये सभी त्योहार हमें समता और भाईचारे का प्रचार करने पर बल देते हैं। भारतीय त्योहार .एक अलग अंदाज में एक अलग तरीके से मनाए जाते हैं। यह हमें प्रसन्न रहने की प्रेरणा देते हैं। हमारे जीवन में उत्साह, उमंग एवं जोश का संचार करते हैं। ये आशा और उम्मीद को जन्म देने का काम भी करते हैं। त्योहार आपसी प्रेमभाव तथा सौहार्द को बढ़ाने का काम करते हैं। ये व्यक्ति में नई जागृति और चेतना पैदा करने का काम करते हैं। ये हमें शिक्षा देते हैं कि हमें कभी भी अत्याचार के सामने नहीं झुकना चाहिए। एक-दूसरे को साथ लेकर चलने तथा एकता के प्रसार पर बल देते हैं। हम सभी को बड़ी ही उत्सुकता के साथ त्योहारों का इंतजार रहता है। ये हमारी एकता एवं अखंडता को बनाए रखने का काम करते हैं। प्रश्न
10. हम सभी पूरे जोश तथा उत्साह के साथ नाटक मंचन के अभ्यास में लगे रहते थे। हमारे नाटक और उत्साह की सभी ने सराहना भी की थी। अभिनय करने के लिए किया जाने वाला मेकअप हमारे लिए सबसे ज्यादा उत्साहवर्धक काम था। हम सभी चरित्रों तथा उनकी आवश्यकतानुसार मेकअप करने में उत्साह दिखा रहे थे। नाटक में अभिनय करने के बाद मुझे आत्म-संतुष्टि का अनुभव हुआ। मैंने स्वयं को नाटक के चरित्र में डूबो दिया था। मेरी इस अभिनय कला की सभी ने सराहना भी की थी। प्रश्न 11. मैं पहली बार बस में बैठकर स्कूल गया। पहली बार बस में बैठकर मुझे बहुत अच्छा लगा। स्कूल जाते ही हम प्रार्थना सभा में पहुँच गए। प्रार्थना सभा में स्कूल के प्रधानाचार्य ने नए छात्रों का स्वागत किया। उन्होंने हमें जीवन में निरंतर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दी। इसके बाद स्कूल के पुराने छात्रों ने नए छात्रों का स्वागत किया। उन्होंने हमें पुस्तकालय, कंप्यूटर कक्ष, कैंटीन तथा खेल का मैदान दिखाया। पहले दिन ही कक्षा में नए मित्र बन गए। मैंने उनके साथ कैंटीन में चाय पी। खेल के पीरियड में मैंने अपने मित्रों के साथ क्रिकेट मैच खेला। छुट्टी होने पर पंक्तिबद्ध होकर बस में बैठ गए और हँसते-हँसते घर चले गए। सचमुच नए स्कूल में मेरा पहला दिन बहुत यादगार है। प्रश्न 12. विद्यार्थी अपनी मनचाही सामग्री को डाउनलोड भी कर सकते हैं। इससे प्रिंट भी निकाल सकते हैं। आज मोबाइल जीवन के लिए जितना उपयोगी है उतना हानिकारक भी है। कुछ विद्यार्थी ऐसे भी हैं जो मोबाइल का दुरुपयोग भी करते हैं ये व्यर्थ में ही घंटों गप्पें हांकते रहते हैं। एक-दूसरे को संदेश भेजने में समय गंवाते हैं। वे चैट करके अपना समय नष्ट करते हैं। ऐसे विद्यार्थियों को मोबाइल की उपादेयता समझनी चाहिए। इसका दुरुपयोग न करके केवल सदुपयोग करना चाहिए। प्रश्न 13. इससे व्यावहारिक ज्ञान ले सकते हैं। इससे बड़े-बड़े वैज्ञानिकों के बारे में पढ़ सकते हैं। इससे संत कबीर, सूरदास, तुलसीदास, दादूदयाल आदि कवियों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इससे हमें भारतीय ही नहीं बल्कि विश्व इतिहास का ज्ञान होता है। पुस्तकालय से हमें अपनी प्राचीन संस्कृति, सभ्यता एवं परंपराओं का ज्ञान मिल सकता है। इससे कला संस्कृति की विस्तृत जानकारी प्राप्त हो सकती है। यदि हम पुस्तकालय का सदुपयोग करें तो यह हमारे जीवन में वरदान सिद्ध हो सकता है। हमें पुस्तकालय में शांत होकर ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। प्रश्न 14. व्यायाम करने से हमारा शरीर स्वस्थ रहता है और रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ती है। नियमित व्यायाम से शरीर सुंदर और शक्तिशाली बनता है। इससे तन-मन में कभी आलस्य नहीं आता। सदा चुस्ती-फुर्ती बनी रहती है। हमें अपना स्वास्थ्य ठीक रखने के लिए नियमित व्यायाम करना चाहिए। सुबह-शाम सैर करनी चाहिए। योगा भी करना चाहिए। संभवतः अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्यायाम बहुत ज़रूरी है। स्वस्थ शरीर का व्यायाम ही मूल आधार है। स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन निवास करता है। प्रश्न 15. दूसरी रात राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न के बालरूप के मनोरम दृश्य तथा अयोध्या के अनेक प्राकृतिक दृश्य दिखाए। तीसरी रात राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न की शिक्षा-दीक्षा का दृश्य दिखाया। चौथी रात सीता स्वयंवर तथा लक्ष्मण-परशुराम संवाद के दृश्य दिखाए। पांचवीं रात राम वनवास तथा भरत-राम मिलाप को दिखाया गया। भरत और राम के मिलन के दृश्य बहुत ही मार्मिक थे। उन्हें रोता देखकर मेरी आँखों में भी आँसू आ गए थे। छठी रात सीता हरण, राम का सुग्रीव तथा हनुमान जी से मिलन दिखाया गया। सातवीं रात राम द्वारा बाली वध, हनुमान-रावण संवाद, लंका दहन के दृश्य दिखाए गए। आठवीं रात रावण-अंगद संवाद में अंगद की वीरता दिखाई गई। लक्ष्मण मूर्छा तथा राम का सामान्य आदमी की तरह विलाप दिखाया गया। अंतिम रात में राम-रावण युद्ध के दृश्य दिखाए गए। तभी यह घोषणा की गई कि श्रीराम द्वारा रावण वध दशहरा ग्राउंड में किया जाएगा। रामलीला के ये आठ दिन बहुत खुशी में बीते। रामलीला का यह अनुभव बहुत अच्छा लगा। प्रश्न 16. संत कबीरदास ने कहा है कि हमें सदा मीठी वाणी बोलनी चाहिए। मीठी वाणी केवल सुनने वालों को ही शीतलता नहीं देती बल्कि वक्ता को भी शीतल बना देती हैं। जीवन में मधर वाणी के अनेक लाभ हैं। कडवी वाणी दूसरों को अपना शत्र बना देती है। ऐसे व्यक्ति से कोई भी बात करना पसंद नहीं करता। वह धीरे-धीरे अकेला पड़ जाता है। इतना ही मनुष्य के जीवन में अनेक अवगण पैदा हो जाते हैं। किंत मधुर वाणी सदा लाभ ही लाभ देती है। मधुर वाणी बोलने वाले मनुष्य के सभी लोग मित्र बन जाते हैं। सभी उसको सुनना पसंद करते हैं। वह सबका प्रिय बन जाता है। उसका जीवन गुणों से भरपूर बन जाता है। वह सदा तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ता जाता है। इसलिए व्यक्ति को सदा मधुर वाणी बोलनी चाहि इसीलिए भर्तृहरि ने कहा है-कि मधुर वाणी मनुष्य का सच्चा आभूषण है। प्रश्न 17. यह जनसंचार का प्रमुख माध्यम है। यह मीडिया, दूरदर्शन, सिनेमा, शिक्षा जनसंचार आदि क्षेत्रों की प्रमुख भाषा है। आज इस भाषा में अनूठा साहित्य उपलब्ध है। इसमें कविता, कहानी, उपन्यास, निबंध, यात्रावृत्त, रेखाचित्र, संस्मरण आदि अनेक विधाओं में श्रेष्ठ साहित्य लिखा जा रहा है। इसमें विदेशों में भी साहित्य लिखा जा रहा है। क्लर्क से लेकर आई० ए० एस० तक की परीक्षाएँ हिंदी माध्यम में ली जाती हैं। वैश्वीकरण के युग में हिंदी की उपयोगिता भारत में ही नहीं बल्कि संपूर्ण संसार में है। प्रश्न 18. उन्होंने मेरा बैग ठीक करके दिया। उन्होंने सभी के लिए नाश्ता बनाया। दोपहर में स्कूल से आया तो माँ को देखा कि वे उठ भी नहीं पा रही थीं। तब पिता जी ने खाना बनाया लेकिन वह बिलकुल कच्चा पका था। उनके खाने में कोई स्वाद नहीं आया। घर के प्रत्येक सदस्य ने मन मारकर खाया। रात को दूध गर्म किया तो उसमें हम चीनी डालना भूल गए। आज माँ के बिना पूरा घर अस्त-व्यस्त लग रहा था। चारों तरफ सामान बिखरा पड़ा था। सभी बहुत उदास हो गये। मैंने प्रभु से माँ के लिए जल्दी स्वस्थ होने की प्रार्थना की। प्रभु कृपा से अगले दिन माँ बिल्कुल स्वस्थ हो गई। उन्हें सुबह काम में लगा देखकर सभी का हृदय गद्-गद् हो उठा। ऐसा लग रहा था कि हमारे घर की खुशियाँ लौट आईं। प्रश्न 19. मेरे मामा जी भी मेरे साथ थे। हम वहाँ बस से गये। जाते हुए रास्ते में शिव मंदिर पर रुककर मंदिर को देखा। उसके बाद मसूरी पहुंचे। वहाँ जाकर मैंने बर्फ से ढके पहाड़ों का खूब आनंद उठाया। मैंने वहाँ के प्रसिद्ध कैंप की फॉल को देखा। ऊँचाई से नीचे गिरता झरना मन को मोह लेता है। उसमें अपने मामा के साथ कंपनी बाग देखा। तीसरे सप्ताह मैं ऋषिकेश घूमने गया। मैंने वहाँ बहती गंगा को समीप से देखा। बहती गंगा बहुत सुंदर लग रही थी। छुट्टियाँ खत्म होने से दो दिन पहले हम वहाँ से लौट आए। सचमुच इन गर्मियों की छुट्टियों का मैंने खूब आनंद लिया। प्रश्न 20. चौथी मंजिल पर इलेक्ट्रॉनिक्स तथा पाँचवीं मंजिल पर आभूषण का सामान था। मैंने इस शॉपिंग मॉल को अच्छी तरह देखा। मैं इस मॉल में एक पार्टी ड्रेस तथा जूते खरीदने गई थी। लेकिन वहाँ अलग-अलग प्रकार की ड्रेस देखकर मैं समझ ही नहीं पाई कि कौन-सी खरीदूं। फिर भी मैंने वहाँ से अपने लिए एक ड्रैस खरीदी। अपने मम्मी-पापा के लिए भी एक-एक ड्रेस खरीदी। मैंने अपनी छोटी बहन के लिए कुछ खिलौने भी लिए। इसके बाद हमने वहाँ घूमकर खूब आनंद लिया। प्रश्न 21. हमें दूसरों को उपदेश देने के नहीं बल्कि स्वयं अपने आपको देना चाहिए। जब ऐसे लोगों का पर्दाफाश होता है तब सच्चाई सामने आती है। तब उनके सामने पछतावे के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं रहता। इस संसार में जो स्वयं में झांककर देखते हैं जो अपने अवगुण देखकर उन्हें गुणों में बदल लेते हैं वहीं लोग महान बनते हैं। इसलिए हमें दूसरों को नहीं बल्कि स्वयं को उपदेश देना चाहिए। हमें दूसरों का नहीं अपना उपदेशक बनना चाहिए। हमें दीपक की तरह बनना चाहिए। प्रश्न 22. मेरी माता जी एवं पिता जी ने मेरा धैर्य बंधाया और मुझे इस परीक्षा में पास होने का आशीर्वाद दिया। उनका आशीर्वाद लेकर मेरा आत्मविश्वास जाग उठा। तब मुझे लगा कि मैं तो आज तक किसी भी परीक्षा में असफल नहीं हुआ। पिता जी ने कहा कि उन्हें मुझ पर गर्व हैं क्योंकि मैं सदा स्कूल में प्रथम रहा। इतना ही नहीं पिता जी ने मेरे साथ बैठकर मेरी करवाई दोहराई फिर मुझे कोई डर नहीं लगा। इसके बाद मैं अपना पेन, पेंसिल, रोल नंबर आदि सब चीजें बैग में रखकर शांत होकर सो गया। प्रश्न 23. अर्थात् जीवन में सुख-दुःख सब पर आते-जाते हैं किंतु हमें अपना पुरुषार्थ नहीं छोड़ना चाहिए। मनुष्य की हार-जीत तो मन पर निर्भर करती है जिसका मन हार गया तो हार है और यदि मन जीत गया तो उसकी सदा विजय ही होती है। जो मनुष्य जीवन में दुखों और मुसीबतों से डर जाता है उसे दुःख और मुसीबतें जकड़ लेती हैं। जो कठिन मुसीबतों में भी हार नहीं मानता और हिम्मत से उनका सामना करता है, वह सदा विजयी होता है। ऐसे व्यक्ति के सामने मुसीबतें भी घुटने टेक देती हैं। इस प्रकार मन ही मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति है। हमें अपने मन की शक्ति को समझना …. चाहिए। अपने मन में कभी भी नकारात्मक सोच नहीं लानी चाहिए। हमें सदैव सकारात्मक सोच रखनी चाहिए। जो मनुष्य सदा सकारात्मक सोचता है वह कभी भी हार नहीं मानता। उसे हर जगह विजय ही मिलती है। इसलिए हमें मन को अपने काबू में रखकर उसे मज़बूत बनाना चाहिए। यदि मन कमजोर पड़ गया तो हार और मजबूत हुआ तो अवश्य ही जीत होगी। प्रश्न 24. कुछ लोग तो वधुओं को अनेक कठोर यातनाएँ भी देते हैं। यहाँ तक सास अपनी बहुओं को जलाकर मार देती हैं। इसी से तंग आकर कुछ लड़कियाँ आत्महत्या तक भी कर लेती है। इस प्रकार दहेज प्रथा एक सामाजिक कलंक का रूप धारण कर चुकी है। इस सामाजिक कलंक को मिटाने के लिए युवाओं को आगे आना चाहिए। उन्हें प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि वे बिना दहेज ही शादी करेंगे। जब हमारे समाज का प्रत्येक व्यक्ति इस बात को कहेगा कि न हम दहेज देंगे और न लेंगे तभी इस समस्या को पूरी तरह से दूर किया जा सकता है। . प्रश्न 25. कपड़े धोने के लिए कम-से-कम जल का प्रयोग करना चाहिए। अपने घर, स्कूल आदि के नल कभी भी खुले नहीं छोड़ने चाहिए। अपनी गाड़ियाँ धोने के लिए अमूल्य जल को नष्ट नहीं करना चाहिए। बाग बगीचे में पाइप की अपेक्षा फव्वारे से पानी देना चाहिए। रसोईघर में बर्तन साफ करने और सब्जियां धोते समय व्यर्थ जल नहीं बहाना चाहिए। घर का फर्श धोते समय जल को नहीं बहाना चाहिए। किसी भी जगह पर नल को खुला चलते देखकर उसे बंद कर देना चाहिए अथवा उसकी सूचना तुरंत नज़दीकी जल विभाग से देनी चाहिए। अपने नल खराब होने पर उसी समय ठीक करवाने चाहिए। इस प्रकार हमें सदा जल का सदुपयोग करना चाहिए। प्रश्न 26. फिर अपना बस्ता तैयार करके स्कूल के लिए साइकिल पर निकल जाता हूँ। दोपहर दो बजे तक विद्यालय पढ़ाई करने के बाद घर आकर भोजन करता हूँ। शाम को दोस्तों के साथ खेलने के लिए पार्क में जाता हूँ। वहाँ हम सभी दोस्त मिलकर खेलते हैं। इसके बाद घर आकर अपना पढ़ाई का काम करता हूँ। फिर कुछ देर टी० वी० भी देखता हूँ। इतने में माँ रात का भोजन लगा देती है। रात का भोजन करने के बाद मैं बिस्तर में जाकर सो जाता हूँ। प्रश्न 27. हम घर पर छुट्टियों का आनंद उठा रहे थे कि एक दिन पिता जी दफ्तर से घर आए और कहा कि हम सब दो दिन बाद बैंगलुरु घूमने जा रहे हैं। उन्होंने इसके लिए पूरे परिवार की जेट एयर से उड़ान की टिकट बुक करवा ली थीं। ये सुनते ही मेरी खुशी का तो कोई ठिकाना न था। निश्चित दिन हम सभी टैक्सी से एयरपोर्ट पहुँच बावजूद भी मुंशी प्रेमचंद दुनिया के अमर उपन्यासकार के रूप में जाने जाते हैं। इसी प्रकार अनेक क्रिकेटर, खिलाड़ी, संगीतकार, नेता, अभिनेता, गायक आदि हुए हैं जो अपने अकादमिक रूप में नहीं बल्कि अच्छे प्रदर्शन के लिए प्रसिद्ध हैं। सचमुच परीक्षा में केवल अच्छे अंक पाना ही जीवन में सफलता की प्राप्ति का मापदंड नहीं है। गए। काउंटर पर हमने अपना सामान जमा करवाया। कंप्यूटर से सारे सामान की जाँच हुई। उसके बाद हमें यात्री पास मिले। हमारी भी चेकिंग हुई। इसके बाद हम विमान के अंदर गए। वहाँ विमान परिचारिकाओं ने हमें हमारी निश्चित सीट पर बैठाया। उड़ान से पूर्व हमें बताया गया कि हमारी उड़ान कहाँ और कितनी देर की है। हमें सीट बेल्ट बाँधने को कहा गया। मेरी सीट खिड़की के साथ थी। मैं आकाश से धरती के लगातार बदलते रूपों को देख रहा था। यह एक ऐसा निर्वचनीय आनंद था जिसकी अनुभूति तो हो सकती है पर वर्णन नहीं। यह मेरे जीवन की एक रोमांचक यात्रा भी जिसे मैं कभी नहीं भुला सकता। प्रश्न 28. प्रश्न 29. इसलिए हमें भी घर के किसी-न-किसी कार्य में माता-पिता का सहयोग ज़रूर करना चाहिए। हम अनेक छोटे-बड़े कार्यों में माता पिता का सहयोग कर सकते हैं; जैसे-दुकान से फल-सब्जियां तथा रसोई का सामान लाना, लांड्री से कपड़े लाना, खाना परोसना आदि। हम अपने छोटे भाई-बहनों को उनके पढ़ाने में उनकी मदद कर सकते हैं। अपने बगीचे की साफ-सफाई तथा घर की सफाई में सहयोग दे सकते हैं। पौधों में खाद-पानी दे सकते हैं तथा उनकी नियमित देख-रेख कर सहयोग दे सकते हैं। इस प्रकार घर में सहयोग की भावना का विकास होगा जिससे पारस्परिक सद्भाव एवं प्रेम की भावना बढ़ेगी और घर खुशहाल बन जाएगा। प्रश्न 30. इस मेले का उद्घाटन राज्य खेल मंत्री के कर कमलों से हुआ। खेल प्रारंभ होने से पूर्व खेल मंत्री ने सभी टीमों से मुलाकात की तथा उन्हें संबोधित करते हुए कहा कि खिलाड़ियों को खेल-भावना से खेलना चाहिए। प्रथम दिवस कबड्डी, खो-खो तथा साइकिल दौड़ का आयोजन किया गया तथा दूसरे दिन सौ-दो सौ तथा पाँच सौ मीटर दौड़ आयोजित की गई। क्रिकेट मैच ने सब दर्शकों का मन मोह लिया। खेल मेले के समापन अवसर पर मुख्य अतिथि शिक्षा अधिकारी ने प्रत्येक वर्ग में प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान पर रहे सभी खिलाड़ियों को मेडल प्रदान किए। वास्तव में हमारे गाँव का खेल मेला अत्यंत रोचक, मनोरंजकपूर्ण रहा। यह हमारे लिए अविस्मरणीय रहेगा। प्रश्न 31. सफलता के लिए आत्मविश्वास, साहस, विवेक, इच्छाशक्ति, सकारात्मक सोच होनी चाहिए। कम अंक पाने वाले लोग भी इन बिंदुओं के आधार पर सफलता की ऊँचाइयों को छू सकते हैं। इसके लिए आदमी को अपनी क्षमता की पहचान अवश्य होनी चाहिए। दुनिया में ऐसे बहुत उदाहरण हैं जिन्हें कम अंक पाने के बावजूद भी श्रेष्ठ स्तर की सफलता को प्राप्त किया है। दुनिया के श्रेष्ठ वैज्ञानिक आइंस्टाइन स्कली स्तर पर औसत विद्यार्थी रहे लेकिन आगे चल तरह मुंशी प्रेमचन्द ने दसवीं की परीक्षा मुश्किल से द्वितीय श्रेणी में पास की और कई बार फेल होने के बाद बी०ए० की परीक्षा पास की थी। इसके प्रश्न 32. प्रश्न 33. वे इतने विन्रम होते हैं कि फल आने पर स्वयं ही नीचे की तरफ झुक जाते हैं। पेड़-पौधे वातावरण को शुद्ध बनाते हैं। धरा की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाते हैं। भूमि को पानी के कटाव से रोकते हैं। पेड़-पौधों से हमें लकड़ियाँ, औषधियाँ, छाल आदि अनेक अमूल्य उपहार प्राप्त होते हैं। संभवतः पेड़-पौधे प्रकृति का अनूठा वरदान हैं। हमें भी पेड़-पौधों का संरक्षण करना चाहिए। अधिक-से-अधिक पेड़-पौधे लगाने चाहिए। प्रश्न 34. इसके बाद हवन-यज्ञ किया गया जिसमें परिवार के सभी लोग सम्मिलित हुए। पंडित जी ने नारियल फोड़कर परिवार से गृह-प्रवेश करवाया। पूजा-विधान के पश्चात् दोपहर के भोजन का प्रबंध किया गया था। हमारे सभी मित्रों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों ने आनंदपूर्वक भोजन किया और जाते समय सभी ने गृह-प्रवेश पर लाखों बधाइयां दीं। हमने सपरिवार सभी मेहमानों का धन्यवाद किया। वास्तव में नए गृह-प्रवेश के अवसर पर हम सब बहुत उत्साहित थे। प्रश्न 35. अपनी पसंद, क्षमता, पुरुषार्थ, विवेक, बुद्धि कौशल और आत्म-विश्वास को ध्यान में रखकर अपने कैरियर का चुनाव करना अति महत्त्वपूर्ण है। यदि विद्यार्थी अपनी क्षमता, पुरुषार्थ, विवेक बुद्धि-कौशल और आत्मविश्वास को ध्यान में रखकर अपने कैरियर का चुनाव करता है तो वह अवश्य ही सफल होता है। उसे अपने कैरियर के चुनाव में किसी बात की कोई कठिनाई नहीं आती। वह अपनी रुचि के अनुकूल अपना कैरियर बनाने में सफल हो सकता है। अतः कैरियर चुनाव में दूसरों की राय की अपेक्षा स्वमूल्यांकन अत्यावश्यक है। प्रश्न 36. प्रश्न 37. चूंकि हर कोई अपने को सिद्ध करने के लिए कोचिंग संस्थानों की ओर भागता है। परिणामस्वरूप छोटे से लेकर बड़े शहरों तक कोचिंग संस्थानों ने अपना जाल बिछा दिया है। दिल्ली, मुंबई, बैंगलुरु जैसे शहरों में तो जगह-जगह बड़े-बड़े संस्थान खुले हुए हैं जिनमें लाखों लोग पढ़ रहे हैं। ये संस्थान लाखों की फीस ऐंठकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं क्योंकि कोचिंग से बढ़कर स्वाध्ययन ज़रूरी है। स्वाध्ययन से ही प्रतियोगी के अंदर आत्मविश्वास की भावना उत्पन्न होती है और आत्मविश्वास ही सफलता होती है। इसलिए हमें स्वाध्ययन को ही आधार बनाना चाहिए। प्रश्न 38. सभी उसके चारों तरफ इकट्ठे हो गए। पूरी श्रद्धा एवं आनंद के साथ लकड़ियों में अग्नि प्रज्वलित की गई। तत्पश्चात् सबने लोहड़ी की पूजा अर्चना की। सब उसकी परिक्रमा कर रहे थे और गीत गा रहे थे। पूजा के बाद सबको रेवड़ी, मूंगफली आदि का प्रसाद बांटा गया। इसके बाद ढोल-नगाड़े बजने लगे तो सभी लोग झूम उठे। लड़कियाँ गिद्दा पाने लगी तो लड़के भांगड़ा करने लगे। सचमुच यह लोहड़ी का त्योहार मैंने खूब आनंदपूर्वक मनाया। यह मेरे लिए अविस्मरणीय रहेगा। प्रश्न 39. प्रश्न 40. आज कुछ स्वार्थी लोग अपनी स्वार्थपूर्ति हेतु उनका गलत कार्यों के लिए उपयोग कर रहे हैं। वे माता-पिता को जन्म से पूर्व ही अल्ट्रासांऊड के माध्यम से यह बता देते हैं कि गर्भ में पल रहा भ्रूण बेटा है अथवा बेटी। हालांकि ऐसा करना हमारे देश में कानूनी अपराध है किन्तु फिर भी कुछ लोग अपने लालच के कारण ऐसा कर रहे हैं जिससे माता-पिता एक बेटे की चाह में उस कन्या को जन्म से पहले ही गर्भ में मरवा देते हैं। इसका दुष्परिणाम यह है कि देश में लड़कियों की संख्या दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है। कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए सरकार को कड़े कानून बनाने चाहिए। इसके लिए ज़िम्मेदार व्यक्ति को कड़ी सजा देनी चाहिए। प्रश्न 41. जब तक हम स्नानादि करते हैं, माँ हमारे लिए नाश्ता तैयार करने में लग जाती है। नाश्ता तैयार करके वह हमारे स्कूल जाने के लिए कपड़े निकालकर हमें देती है। जब हम स्कूल जाने के लिए तैयार हो जाते हैं तो वह हमें नाश्ता परोसती है। स्कूल जाते समय वह हमें दोपहर के भोजन के लिए कुछ खाने के लिए डिब्बों में बंद करके हमारे बस्तों में रख देती है। स्कूल में हम आधी छुट्टी के समय मिलकर भोजन करते हैं। कई बार हम अपना खाना एक-दूसरे से भी बाँट लेते हैं। मेरे सभी मित्र मेरी माँ के बनाए भोजन की बहुत तारीफ़ करते हैं। सचमुच मेरी माँ बहुत स्वादिष्ट भोजन बनाती है। मेरी माँ हमारे सहपाठियों को भी उतना ही प्यार करती हैं जितना हमसे। मेरे सहपाठी ही नहीं हमारे मुहल्ले के सभी बच्चे भी उनका आदर करते हैं। हम सब भाई-बहन अपनी माँ का कहना मानते हैं। छुट्टी के दिन हम घर की सफ़ाई में अपनी माँ का हाथ बँटाते हैं। मेरी माँ इतनी अच्छी है कि मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि उस जैसी माँ सबको मिले। प्रश्न 42. उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार और महाराष्ट्र के मंडपों में गन्ने और गेहूँ की पैदावार से संबंधित विभिन्न चित्रों का प्रदर्शन किया गया था। केरल, गोवा के काजू और मसालों, असम में चाय, बंगाल में चावल, गुजरात, मध्य प्रदेश और पंजाब में रूई की पैदावार से संबंधित सामग्री प्रदर्शित की थी। अनेक व्यावसायिक एवं औद्योगिक कंपनियों ने भी अपने अलग-अलग मंडप सजाए थे। इसमें रासायनिक खाद, ट्रैक्टर, डीज़ल पंप, मिट्टी खोदने के उपकरण, हल, अनाज की कटाई और छटाई के अनेक उपकरण प्रदर्शित किए गए थे। यह मेला एशिया में अपनी तरह का पहला मेला था। इसमें अनेक एशियाई देशों ने भी अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए मंडप लगाए थे। इनमें जापान का मंडप सबसे विशाल था। इस मंडप को देखकर हमें पता चला कि जापान जैसा छोटा-सा देश कृषि के क्षेत्र में कितनी उन्नति कर चुका है। हमारे प्रदेश के बहुत-से कृषक यह मेला देखने आए थे। मेले में उन्हें अपनी खेती के विकास संबंधी काफ़ी जानकारी प्राप्त हुई। इस मेले का सबसे बड़ा आकर्षण था मेले में आयोजित विभिन्न प्रांतों के लोकनृत्यों का आयोजन। सभी नृत्य एक से बढ़कर एक थे। मुझे पंजाब और हिमाचल प्रदेश के लोकनृत्य सबसे अच्छे लगे। इन नृत्यों को आमने-सामने देखने का मेरा यह पहला ही अवसर था। प्रश्न 43. हमने प्रदर्शनी के मुख्य द्वार से टिकट खरीदकर भीतर प्रवेश किया। सबसे पहले हम जापान के पंडाल में गए। जापान ने अपने पंडाल में कृषि, दूर-संचार, कंप्यूटर आदि से जुड़ी वस्तुओं का प्रदर्शन किया था। हमने वहाँ इक्कीसवीं सदी में टेलीफ़ोन एवं दूर-संचार सेवा कैसी होगी इसका एक छोटा-सा नमूना देखा। जापान ने ऐसे टेलीफ़ोन का निर्माण किया था जिसमें बातें करने वाले दोनों व्यक्ति एक-दूसरे की फ़ोटो भी देख सकेंगे। वहीं हमने एक पॉकेट टेलीविज़न भी देखा जो माचिस की डिबिया जितना था। सारे पंडाल का चक्कर लगाकर हम बाहर आए। उसके बाद हमने दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी के पंडाल देखे। उस प्रदर्शनी को देखकर हमें लगा कि अभी भारत को उन देशों का मुकाबला करने के लिए काफ़ी मेहनत करनी होगी। हमने वहाँ भारत में बनने वाले टेलीफ़ोन, कंप्यूटर आदि का पंडाल भी देखा। वहाँ यह जानकारी प्राप्त करके मन बहुत खुश हुआ कि भारत दूसरे बहुत-से देशों को ऐसा सामान निर्यात करता है। भारतीय उपकरण किसी भी हालत में विदेशों में बने सामान से कम नहीं थे। हमने प्रदर्शनी में ही बने रेस्टोरेंट में – चाय-पान किया और इक्कीसवीं सदी में दुनिया में होने वाली प्रगति का नक्शा आँखों में बसाए विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में होने वाली अत्याधुनिक जानकारी प्राप्त करके घर वापस आ गए। प्रश्न 44. ढलते सूर्य की लाल-लाल किरणें पश्चिम क्षितिज पर ऐसे लग रही थीं मानो प्रकृति रूपी युवती लाल-लाल वस्त्र पहने मचल रही हो। पक्षी अपने-अपने घोंसलों की ओर लौटने लगे थे। खेतों में हरियाली छायी हुई थी। ज्यों ही हम नदी किनारे पहुँचे सूर्य की सुनहरी किरणें नदी के पानी पर पड़ती हुई बहुत भली प्रतीत हो रही थीं। ऐसे लगता था मानों नदी के जल में हजारों लाल कमल एक साथ खिल उठे हों। नदी तट पर लगे वृक्षों की पंक्ति देखकर ‘तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए’ कविता की पंक्ति याद हो आई। नदी तट के पास वाले जंगल से ग्वाले पशु चराकर लौट रहे थे। पशुओं के पैरों से उठने वाली धूलि एक मनोरम दृश्य उपस्थित कर रही थी। हम सभी मित्र बातें कम कर रहे थे, प्रकृति के रूप रस का पान अधिक कर रहे थे। थोड़ी ही देर में सूर्य अस्ताचल की ओर में जाता हुआ प्रतीत हुआ। नदी का जो जल पहले लाल-लाल लगता था अब धीरे-धीरे नीला पड़ना शुरू हो गया था। उड़ते हुए बगुलों की सफ़ेद-सफ़ेद पंक्तियाँ उस धूमिल वातावरण में और भी अधिक सफ़ेद लग रही थीं। नदी तट पर सैर करते-करते हम गाँव से काफ़ी दूर निकल आए थे। प्रकृति की सुंदरता निहारते-निहारते ऐसे खोए थे कि समय का ध्यान ही न रहा। हम सब गाँव की ओर लौट पड़े। नदी तट पर नृत्य करती हुई प्रकृति रूपी नदी की यह शोभा विचित्र थी। नदी किनारे सैर करते हुए बिताई यह शाम हमें जिंदगी-भर नहीं भूलेगी। प्रश्न 45. वे आपस में ठहाके मार-मारकर बातें कर रहे थे। कुछ ऐसे भी विद्यार्थी थे जो अभी तक किताबों या नोट्स से चिपके हुए थे। मैं अकेला ऐसा विद्यार्थी था जो अपने साथ घर से कोई किताब या सहायक पुस्तक नहीं लाया था। क्योंकि मेरे पिताजी कहा करते हैं कि परीक्षा के दिन से पहले की रात को ज़्यादा पढ़ना नहीं चाहिए। सारे साल का पढ़ा हुआ भूल नहीं जाता। वे परीक्षा के दिन से पूर्व की रात को जल्दी सोने की भी सलाह देते हैं जिससे सवेरे उठकर विद्यार्थी ताज़ा दम होकर परीक्षा देने जाए न कि थका-थका महसूस करे। परीक्षा भवन के बाहर लड़कों की अपेक्षा.. लड़कियाँ अधिक खुश नज़र आ रही थीं। उनके खिले चेहरे देखकर ऐसा लगता था मानो परीक्षा के भूत का उन्हें कोई डर नहीं। उन्हें अपनी … स्मरण-शक्ति पर पूरा भरोसा था। थोड़ी ही देर में घंटी बजी। यह घंटी परीक्षा भवन में प्रवेश की घंटी थी। इसी घंटी को सुनकर सभी ने परीक्षा भवन की ओर जाना शुरू कर दिया। हँसते हुए चेहरों पर अब गंभीरता आ गई थी। परीक्षा भवन के बाहर अपना अनुक्रमांक और स्थान देखकर मैं परीक्षा भवन में प्रविष्ट हुआ और अपने स्थान पर जाकर बैठ गया। कुछ विद्यार्थी अब भी शरारतें कर रहे थे। मैं मौन हो धड़कते दिल से प्रश्न-पत्र बँटने की प्रतीक्षा करने लगा। प्रश्न 46. बंदरिया ने. घाघरा-चोली पहन रखी थी और सिर पर चुनरी भी ओढ़ रखी थी। बंदर ने भी धोती-कुरता पहन रखा था। बंदरिया ने गले में मोतियों की माला और हाथों में चूड़ियाँ भी पहन रखी थीं। मदारी बंदर से पूछ रहा था कि क्या तुम ने विवाह करवाना है। बंदर हाँ में सिर हिलाता। फिर वह यही प्रश्न बंदरिया से करता। बंदरिया भी हाँ में सिर हिलाती। फिर मदारी ने पूछा कि कैसी लड़की से विवाह करवाएगा। बंदर ने हाव-भाव से बताया। उसके हाव-भाव को देखकर सभी हँसने लगे। फिर बंदर दूल्हा बनकर विवाह करने चला और बंदरिया को ब्याह कर लाया। इस सारे तमाशे में बंदर की हरकतों, बंदरिया के शर्माने के अभिनय को देखकर लोगों ने कई बार तालियाँ बजाईं। मदारी ने डुगडुगी बजाकर नाच समाप्त होने की घोषणा की। बंदर-बंदरिया का नाच दिखाने के बाद मदारी ने एक चौंका देने वाला तमाशा दिखाया। मदारी ने अपने साथ एक छोटे लड़के को जमीन पर लिटाकर उसकी एक तेज़ छुरी से जीभ काट ली। बच्चा खून से लथपथ ज़मीन पर छटपटा रहा था। उस भीड़ में मौजूद स्त्रियाँ यह दृश्य देखकर काँप उठीं। कुछ स्त्रियों ने तो उस मदारी को बुरा-भला भी कहना शुरू कर दिया। मदारी पर उनका कोई प्रभाव न पड़ा। वह शांत बना रहा। उसने लोगों को बताया कि यह तो मात्र एक तमाशा है। क्या कोई अपने बच्चे की जीभ काट सकता है। उसने ज़मीन पर पड़े अपने बच्चे का नाम लेकर पुकारा और लड़का हँसता हुआ उठ खड़ा हुआ। उसने अपना मुँह खोल कर लोगों को दिखाया तो उसकी जीभ सही सलामत थी। यह खेल दिखा कर मदारी ने बंदर और बंदरिया के हाथों में दो टोपियाँ पकड़ाकर लोगों से पैसा माँगने के लिए कहा—बंदर और बंदरिया लोगों के सामने मटकते हुए जाते और उनके आगे अपनी टोपी करते। सभी लोगों ने उनकी टोपी में कुछ-न-कुछ ज़रूर डाला जिन्होंने कुछ नहीं डाला उन्हें बंदरों ने घुड़की मारकर डराया और भागने पर विवश कर दिया। मदारी का तमाशा खत्म हुआ। भीड़ छट गई। प्रश्न 47. सुबह के घर से निकले शाम को ही घर लौटते हैं। कोई कुछ कहे तो उत्तर मिलता कि आज तो छुट्टी है। लड़कियों के लिए छुट्टी का दिन घरेलू काम-काज का दिन होता है। छुट्टी के दिन मुझे सुबह-सवेरे उठकर अपनी माताजी के साथ कपड़े धोने में सहायता करनी पड़ती है। मेरी माताजी एक स्कूल में पढ़ाती हैं अत: उनके पास कपड़े धोने के लिए केवल छुट्टी का दिन ही उपयुक्त होता है। कपड़े धोने के बाद मुझे अपने बाल धोने होते हैं, बाल धोकर स्नान करके फिर रसोई में माताजी का हाथ बटाना पड़ता है। इस दिन ही हमारे घर में विशेष व्यंजन पकते हैं। दूसरे दिनों में तो सुबह-सवेरे सबको भागम-भाग लगी होती है। किसी को स्कूल जाना होता है तो किसी को दफ़्तर। दोपहर के भोजन के पश्चात् थोड़ा आराम करते हैं। फिर माताजी मुझे लेकर बैठ जाती हैं। कुछ सिलाई, बुनाई या कढ़ाई की शिक्षा देती हैं। उनका मानना है कि लड़कियों को ये सब काम आने चाहिए। शाम होते ही शाम की चाय का समय हो जाता है। अवकाश के दिन शाम की चाय में कभी समोसे, कभी पकौड़े बनाए जाते हैं। चाय पीने के बाद फिर रात के खाने की चिंता होने लगती है और इस तरह अवकाश का । दिन एक लड़की के लिए अवकाश का नहीं बल्कि अधिक काम का दिन होता है। प्रश्न 48. करने लगा। इसी दौरान मैंने अपनी नज़र रेलवे प्लेटफॉर्म पर दौड़ाई। मैंने देखा कि अनेक युवक और युवतियाँ अत्याधुनिक पोशाक पहने इधर-उधर घूम रहे थे। कुछ यात्री टी-स्टाल पर खड़े चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे, परंतु उनकी नज़रें बार-बार उस तरफ़ उठ जाती थीं, जिधर से गाड़ी आने वाली थी। कुछ यात्री बड़े आराम से अपने सामान के पास खड़े थे, लगता था कि उन्हें गाड़ी आने पर जगह प्राप्त करने की कोई चिंता नहीं। उन्होंने पहले से ही अपनी सीट आरक्षित करवा ली थी। कुछ फेरीवाले भी अपना माल बेचते हुए प्लेटफॉर्म पर घूम रहे थे। सभी लोगों की नजरें उस तरफ़ थीं जिधर से गाड़ी ने आना था। तभी लगा जैसे गाड़ी आने वाली हो। प्लेटफॉर्म पर भगदड़-सी मच गई। सभी यात्री अपना-अपना सामान उठाकर तैयार हो गए। कुलियों ने सामान अपने सिरों पर रख लिया। सारा वातावरण उत्तेजना से भर गया। देखते-ही-देखते गाड़ी प्लेटफॉर्म पर आ पहुँची। कुछ युवकों ने तो गाड़ी के रुकने की भी प्रतीक्षा न की। वे गाड़ी के साथ दौड़ते-दौड़ते गाड़ी में सवार हो गए। गाड़ी रुकी तो गाड़ी में सवार होने के लिए धक्कम-पेल शुरू हो गई। हर कोई पहले गाड़ी में सवार हो जाना चाहता था। उन्हें दूसरों की नहीं अपनी केवल अपनी चिंता थी। मेरे भाई मेरे सामने वाले डब्बे में थे। उनके गाड़ी से नीचे उतरते ही मैंने उनके चरण-स्पर्श किए और उनका सामान उठाकर स्टेशन से बाहर की ओर चल पड़ा। चलते-चलते मैंने देखा जो लोग अपने प्रियजनों को गाड़ी में सवार कराकर लौट रहे थे। उनके चेहरे उदास थे और मेरी तरह जिनके प्रियजन गाड़ी से उतरे थे उनके चेहरों पर खुशी थी। प्रश्न 49. लाउडस्पीकर से भजन-कीर्तन के कार्यक्रम प्रसारित होने लगते हैं। भक्तजन स्नानादि से निवृत्त हो पूजा-पाठ में लग जाते हैं। स्कूली बच्चों की माताएँ उन्हें झिंझोड़-झिंझोड़कर जगाने लगती हैं। दफ्तरों को जाने वाले बाबू जल्दी-जल्दी तैयार होने लगते हैं जिससे समय पर बस पकड़कर अपने दफ्तर पहुँच सकें। थोड़ी देर पहले जो शहर सन्नाटे में लीन था आवाजों के घेरे में घिरने लगता है। सड़कों पर मोटरों, स्कूटरों, कारों के चलने की आवाजें सुनाई देने लगती हैं। ऐसा लगता है मानो सड़कें भी नींद से जाग उठी हों। सूर्योदय के समय की प्राकृतिक सुषमा का वास्तविक दृश्य तो किसी गाँव, किसी पहाड़ी क्षेत्र अथवा किसी नदी तट पर ही देखा जा सकता है। प्रातः वेला में सोये रहने वाले लोग प्रकृति की इस सुंदरता के दर्शन नहीं कर सकते। कौन उन्हें बताए कि सूर्योदय के समय सूर्य के सामने आँखें बंदकर दो-चार मिनट खड़े रहने से आँखों की ज्योति कभी क्षीण नहीं होती। प्रश्न 50. अपने घर में आप जो चाहें करें, जो चाहें खाएँ, जहाँ चाहें बैठें, जहाँ चाहें लेटें पर दूसरे के घर में यह सब संभव नहीं। इसीलिए तो किसी ने कहा है-‘जो सुख छज्जू दे चौबारे वह न बलख, न बुखारे।’ शायद यही कारण है कि आजकल नौकरी करने वाले प्रतिदिन मीलों का सफ़र करके नौकरी पर जाते हैं परंतु रात को अपने घर वापस आ जाते हैं। पुरुष तो पहले भी नौकरी करने बाहर कई मील दूर जाती है परंतु आजकल सभी अपने-अपने घरों को लौटना पंसद करते हैं। मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी तक भी अपने घर के महत्त्व को समझते हैं। सारा दिन जंगल में चरने वाली गाएँ, भैंसें, भेड़, बकरियाँ संध्या होते ही अपने-अपने घरों को लौट आते हैं। पक्षी भी दिनभर दाना-दुनका चुगकर संध्या होते ही अपने-अपने घोंसलों को लौट आते हैं। घर का मोह ही उन्हें अपने घोंसलों में लौट . आने के लिए विवश करता है क्योंकि जो सुख अपने घर में मिलता है वह और कहीं नहीं मिलता। इसीलिए कहा गया है कि घरों में घर अपना घर। प्रश्न 51. आकाश में चीलें मँडराने लगीं। चारों ओर शोर मच गया कि आँधी आ रही है। हम सब ने तेज़-तेज़ चलना शुरू किया जिससे आँधी आने से पूर्व सुरक्षित अपने-अपने घर पहुँच जाएँ। देखते-ही-देखते तेज़ हवा के झोंके आने लगे। दूर आकाश धूलि से अट गया लगता था। हम सब साथी एक दुकान के .. छज्जे के नीचे रुक गए और प्रतीक्षा करने लगे कि आँधी गुज़र जाए तो चलें। पलक झपकते ही धूल का एक बहुत बड़ा बवंडर उठा। दुकानदारों ने.. अपना सामान सहेजना शुरू कर दिया। आस-पास के घरों की खिड़कियाँ, दरवाज़े ज़ोर-ज़ोर से बजने लगे। धूल भरी उस आँधी में कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। हम सब आँखें बंद करके खड़े थे जिससे हमारी आँखें धूल से न भर जाएँ। राह चलते लोग रुक गए। स्कूटर, साइकिल और कार चलाने वाले भी अपनी-अपनी जगह रुक गए थे। अचानक सड़क के किनारे लगे एक वृक्ष की एक बहुत बड़ी टहनी टूटकर हमारे सामने गिरी। दुकानों के बाहर लगी कनातें उड़ने लगीं। बहुत-से दुकानदारों ने जो सामान बाहर सजा रखा था, वह उड़ गया। धूल भरी आँधी में कुछ भी दिखाई न दे रहा था। चारों तरफ़ अफरा-तफरी मची हुई थी। आँधी का यह प्रकोप करीब घंटा भर रहा। धीरे-धीरे स्थिति सामान्य होने लगी। यातायात फिर से चालू हो गया। हम भी उस दुकान के छज्जे के नीचे से बाहर आकर अपने-अपने घरों की ओर रवाना हुए। सच ही उस आँधी का दृश्य बड़ा ही डरावना था। घर पहुँचते-पहुँचते मैंने देखा रास्ते में बिजली के कई खंबे, वृक्ष आदि उखड़े पड़े थे। सारे शहर में बिजली भी ठप्प हो गई थी। मैं कुशलतापूर्वक अपने घर पहुँच गया। घर पहुँचकर मैंने सुख की साँस ली। प्रश्न 52. इस बार पहली बार इलेक्ट्रॉनिक मशीनों का प्रयोग किया जा रहा था। अब मतदाताओं को मतदान केंद्र पर मत-पत्र नहीं दिए जाने थे और न ही उन्हें अपने मत मतपेटियों में डालने थे। अब तो मतदाताओं को अपनी पसंद के उम्मीदवार के नाम और चुनाव-चिह्न के आगे लगे बटन को दबाना भर था। इस नए प्रयोग के कारण भी मतदाताओं में काफी उत्साह देखने में आया। मतदान प्रात: आठ बजे शुरू होना था किंतु मतदान केंद्रों के बाहर विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने-अपने पंडाल समय से काफ़ी पहले सजा लिए थे। उन पंडालों में उन्होंने अपनी-अपनी पार्टी के झंडे एवं उम्मीदवार के चित्र भी लगा रखे थे। दो-तीन मेजें भी पंडाल में लगाई गई थीं। जिन पर उम्मीदवार के कार्यकर्ता मतदान सूचियाँ लेकर बैठे थे और मतदाताओं को मतदाता सूची में से उनकी क्रम संख्या तथा मतदान केंद्र की संख्या तथा मतदान केंद्र का नाम लिखकर एक पर्ची दे रहे थे। आठ बजने से पूर्व ही मतदान केंद्रों पर मतदाताओं की लंबी-लंबी पंक्तियाँ लगनी शुरू हो गई थीं। मतदाता खूब सज-धज कर आए थे। ऐसा लगता था कि वे किसी मेले में आए हों। दोपहर होते-होते मतदाताओं की भीड़ में कमी आने लगी। राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ता मतदाताओं को घेर-घेर कर ला रहे थे। चुनाव आयोग ने मतदाताओं को किसी प्रकार के वाहन में लाने की मनाही की है किंतु सभी उम्मीदवार अपने-अपने मतदाताओं को रिक्शा, जीप या कार में बैठाकर ला रहे थे। सायं पाँच बजते-बजते यह मेला उजड़ने लगा। भीड़ मतदान केंद्र से हटकर उम्मीदवारों के पंडालों में जमा हो गई थी और सभी अपने अपने उम्मीदवार की जीत के अनुमान लगाने लगे। प्रश्न 53. अभी मैं इन्हीं बातों पर विचार कर ही रहा था कि मुझे लगा जैसे मेरी चारपाई को कोई हिला रहा है अथवा किसी ने मेरी चारपाई को झुला दिया हो। क्षण भर में ही मैं समझ गया कि भूचाल आया है। यह झटका भूचाल का ही था। मैंने तुरंत अपने भाइयों को जगाया और उन्हें छत से शीघ्र नीचे उतरने को कहा। छत से उतरते समय हम ने परिवार के अन्य सदस्यों को भी जगा दिया। तेजी से दौड़कर हम सब बाहर खुले मैदान में आ गए। वहाँ पहुँचकर हमने शोर मचाया कि भूचाल आया है। सब लोग घर से बाहर आ जाओ। सभी गहरी नींद में सोये पड़े थे, हड़बड़ाहट में सभी बाहर की ओर दौड़े। मैंने उन्हें बताया कि भूचाल के झटके कभी-कभी कुछ मिनटों के बाद भी आते हैं। अतः हमें सावधान रहना चाहिए। अभी यह बात मेरे मुँह में ही थी कि भूचाल का एक ज़ोरदार झटका और आया। सारे मकानों की खिड़कियाँ, दरवाजे खड़-खड़ा उठे। हमें धरती हिलती महसूस हुई। हम सब धरती पर लेट गए। तभी पड़ोस से मकान ढहने की आवाज़ आई। साथ ही बहुत-से लोगों के चीखने-चिल्लाने की आवाजें भी आईं। हम में से कोई भी डर के मारे अपनी जगह से नहीं हिला। कुछ देर बाद जब हम ने सोचा कि जितना … भूचाल आना था आ चुका, हम उस जगह की ओर बढ़े। निकट जाकर देखा तो काफ़ी मकान क्षतिग्रस्त हुए थे। ईश्वर कृपा से जान-माल की कोई हानि न हुई थी। वह रात सारे गाँववासियों ने पुनः भूचाल के आने की अशंका में घरों से बाहर रहकर ही बिताई। प्रश्न 54. मैं भी एक बार रेलगाड़ी में मुंबई जाने के लिए स्टेशन पर गाड़ी की प्रतीक्षा कर रहा था। गाड़ी दो घंटे लेट थी। यात्रियों की बेचैनी देखते ही बनती थी। गाड़ी आई तो गाड़ी में सवार होने के लिए जोर आज़माई शुरू हो गयी। किस्मत अच्छी थी कि मैं गाड़ी में सवार होने में सफल हो सका। गाड़ी चले अभी घंटा भर ही हुआ था कि कुछ यात्रियों के मुख से मैंने सुना कि यह डब्बा जिसमें मैं बैठा था अमुक स्थान पर कट जाएगा। यह सुनकर मैं तो दुविधा में पड़ गया। गाड़ी रात के एक बजे उस स्टेशन पर पहुंची जहाँ हमारा वह डब्बा मुख्य गाड़ी से कटना था और हमें दूसरे डब्बे में सवार होना था। उस समय अचानक तेज वर्षा होने लगी। स्टेशन पर को अपना-अपना सामान उठाए वर्षा में भीगते हुए दूसरे डब्बे की ओर भागने लगे। मैं अपना अटैची लेकर उतरने लगा कि एकदम से वह डब्बा चलने लगा। मैं गिरते-गिरते बचा और अटैची मेरे हाथ से छूटकर प्लेटफॉर्म पर गिर पड़ी। मैंने जल्दी-जल्दी अपना सामान समेटा और दूसरे डब्बे की ओर बढ़ गया। गरमी का मौसम और उस डब्बे के पंखे बंद थे। गाड़ी चली तो थोड़ी हवा लगी और कुछ राहत मिली। प्रश्न 55. कोई पता नहीं कि कब आएगी। गरमी के मारे सब का बुरा हाल था। छोटे बच्चों की हालत देखी न जाती थी। गरमी के कारण माताजी को खाना पकाने में भी बड़ा कष्ट झेलना पड़ा। गला प्यास के मारे सूख रहा था। खाना खाने से पहले तक कई गिलास पानी पी चुके थे। इसलिए खाना भी ठीक ढंग से नहीं खाया गया। उस दिन हमें पता चला कि हम कितने बिजली पर निर्भर हो चुके हैं। मैं बार-बार सोचता था कि जिन दिनों बिजली नहीं थी तब लोग कैसे रहते होंगे। घर में हाथ से चलाने वाले पंखे भी नहीं थे। हम अखबार या कापी के गत्ते को ही पंखा बनाकर हवा ले रहे थे। सूर्य छिप जाने पर गरमी की प्रचंडता में कुछ कमी तो हुई किंतु हवा बंद होने के कारण बाहर खड़े होना भी कठिन लग रहा था। हमें चिंता हुई कि यदि बिजली रातभर न आई तो रात कैसे कटेगी। बिजली आने पर लोगों ने घरों के बाहर या छत पर सोना छोड़ दिया था। सभी कमरों में ही पंखों, कूलरों को लगाकर ही सोते थे। बाहर सोने पर मच्छरों के प्रकोप को सहना पड़ता था। रात के लगभग नौ बजे बिजली आई और मुहल्ले के हर घर में बच्चों ने ज़ोर से आवाज़ लगाई–’आ गई, आ गई’ और हम सब ने सुख की साँस ली। प्रश्न 56. लड़कियाँ इसी आत्मविश्वास के कारण परीक्षा में लड़कों से बाज़ी मार जाती हैं। मैं अपने सहपाठियों से उस दिन के प्रश्न-पत्र के बारे में बात कर ही रहा था कि परीक्षा भवन में घंटी बजनी शुरू हो गई। यह संकेत था कि हमें परीक्षा भवन में प्रवेश कर जाना चाहिए। सभी विद्यार्थियों ने परीक्षा भवन में प्रवेश करना शुरू कर दिया। भीतर पहुँचकर हम सब अपने-अपने अनुक्रमांक के अनुसार अपनी-अपनी सीट पर जाकर बैठ गए। थोड़ी ही देर में अध्यापकों द्वारा उत्तर-पुस्तिकाएँ बाँट दी गयीं और हम ने उस पर अपना-अपना अनुक्रमांक आदि लिखना शुरू कर दिया। ठीक नौ बजते ही एक घंटी बजी और अध्यापकों ने प्रश्न-पत्र बाँट दिए। कुछ विद्यार्थी प्रश्न-पत्र प्राप्त करके उसे माथा टेकते देखे गए। मैंने भी ऐसा ही किया। माथा टेकने के बाद मैंने प्रश्न-पत्र पढ़ना शुरू किया। मेरी खुशी का कोई ठिकाना न था क्योंकि प्रश्न-पत्र के सभी प्रश्न मेरे पढ़े हुए प्रश्नों में से थे। मैंने किए जाने वाले प्रश्नों पर निशान लगाए और कुछ क्षण तक यह सोचा कि कौन-सा प्रश्न पहले करना चाहिए और फिर उत्तर लिखना शुरू कर दिया। मैंने देखा कुछ विद्यार्थी अभी बैठे सोच ही रहे थे शायद उनके पढ़े में से कोई प्रश्न न आया हो। तीन घंटे तक मैं बिना इधर-उधर देखे लिखता रहा। मैं प्रसन्न था कि उस दिन मेरा पर्चा बहुत अच्छा हुआ था। प्रश्न 57. मेरी माँ यह सुनकर रोने लगी। उसने कहा कि बडी मश्किल से तीन हजार रुपया खर्च करके तुम्हें साइकिल लेकर दी थी तुम ने वह भी गँवा दी। मेरी साइकिल चोरी हो गयी है, यह बात सारे मुहल्ले में फैल गयी। किसी ने सलाह दी . कि पुलिस में रिपोर्ट अवश्य लिखवा देनी चाहिए। मैं पुलिस से बहुत डरता हूँ। मैं डरता-डरता पुलिस चौकी गया। मैं इतना घबरा गया था, मानो मैंने ही साइकिल चुराई हो। पुलिस वालों ने कहा साइकिल की रसीद लाओ, उसका नंबर बताओ, तब हम तुम्हारी रिपोर्ट लिखेंगे। साइकिल खरीदने की रसीद मुझ से गुम हो गयी थी और साइकिल का नंबर मुझे याद नहीं था। मुझे क्या यह मालूम था कि मेरी साइकिल चोरी हो जाएगी? निराश हो मैं घर लौट आया। लौटने पर पता चला कि मेरी साइकिल चोरी होने का समाचार सारे मुहल्ले में फैल गया है। हमारे देश में शोक प्रकट करने का कुछ ऐसा चलन है कि लोग मामूली-से-मामूली बात पर भी शोक प्रकट करने आ पहुँचते हैं। हर आने वाला मुझ से साइकिल कैसे चोरी हुई? प्रश्न का उत्तर जानना चाहता था। मैं एक ही उत्तर सभी को देता उकता-सा गया। कुछ लोग मुझे सांत्वना देते हुए कहते-जो होना था सो हो गया। ईश्वर चाहेंगे तो साइकिल ज़रूर मिल जाएगी। मेरा एक मित्र विशेष रूप से शोक-ग्रस्त था। क्योंकि यदाकदा वह मुझसे साइकिल मांगकर ले जाता था। कुछ लोग मुझे यह भी सलाह देने लगे कि मुझे अब कौन-सी कंपनी की बनी साइकिल खरीदनी चाहिए और किस दकान से खरीदन तथा रसीद सँभालकर रखनी चाहिए। एक तरफ़ मुझे अपनी साइकिल चोरी हो जाने का दुःख था तो दूसरी तरफ़ संवेदना प्रकट करने वालों की ऊल-जलूल बातों से परेशानी हो रही थी। प्रश्न 58. बड़ी मुश्किल से बस ने चलने का नाम लिया। बस चलने के बाद कंडक्टर ने टिकटें बाँटना शुरू किया। थोड़ी देर में ही पीछे खड़े यात्रियों में से दो यात्रियों ने शोर मचाया कि उनकी किसी ने जेब काट ली है। कंडक्टर ने उन्हें बस रोककर बस से उतार दिया। कंडक्टर जब मेरे पास आया तो मैंने पैंट की पिछली जेब से जैसे ही बटुआ निकालने के लिए हाथ बढ़ाया। मैंने अनुभव किया कि मेरी जेब में बटुआ नहीं है। मैंने कंडक्टर को बताया कि मेरी जेब भी किसी ने काट ली है। सौभाग्य से मेरी दूसरी जेब में इतने पैसे थे कि मैं टिकट के पैसे दे सकता। कंडक्टर ने मुझे टिकट देते हुए कहा तुम फ़ैशन के मारे बटुए पैंट की पिछली जेब में रखोगे तो जेब कटेगी ही। मैं थोड़ा शर्मिंदा अनुभव कर रहा था। दूसरे यात्री हँस रहे थे कि मैं बस से उतारे जाने से बच गया। मुझे यह समझते देर न लगी कि जो फ़ैशनेबल-सी लड़की मेरे पीछे खड़ी थी उसी ने मेरी जेब साफ़ की है। मेरी ही नहीं बल्कि दूसरे यात्रियों की जेबों की वही सफ़ाई कर गई है। मैं सोचने लगा कि बस अड्डे पर तो सरकार ने लिखा है कि जेबकतरों से सावधान रहें बसों में भी ऐसे बोर्ड लगवा देने चाहिए या फिर बस चालक गिनती से अधिक सवारियाँ बस में न चढ़ाएँ। इतनी भीड़ में तो किसी की भी जेब कट सकती है। प्रश्न 59. संसार में किसका समय है एक सा रहता सदा, संसार के बड़े-बड़े शासकों का समय भी एक-सा नहीं रहा है। अंतिम मुगल सम्राट बहादुरशाह जफ़र का करुण अंत इस बात का प्रमाण है कि मनुष्य का समय हमेशा एक-सा नहीं रहता। जो आज दीन एवं दुखी है वह कल वैभव के झूले में झूलता दिखाई देता है। जो आज सुख-संपदा एवं ऐश्वर्य में डूबा हुआ है, संभव है भाग्य के विपरीत होने के कारण उसे दर-दर की ठोकरें खाने पर विवश होना पड़े। जो वृक्ष, लताएँ एवं पौधे वसंत ऋतु में वातावरण को मादकता प्रदान करते हैं, वही पतझड़ में वातावरण को नीरस बना देते हैं। जीवन सुख-दुख, आशा-निराशा एवं हर्ष-विषाद का समन्यव है। एक ओर जीवन का उदय है तो दूसरी ओर जीवन का अस्त। अतः ठीक ही कहा गया है-‘सब दिन होत न एक समान।’ प्रश्न 60. जननी एवं जन्मभूमि के प्रति प्रेम की भावना जीवधारियों की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। मनुष्य संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। अतः उसके हृदय में देशानुराग की भावना का उदय स्वाभाविक है। मरुस्थल में रहने वाले लोग हाँफ-हाँफ कर जीते हैं, फिर भी उन्हें अपनी : जन्मभूमि से अगाध प्रेम है। ध्रुववासी अत्यंत शीत के कारण अंधकार तथा शीत में काँप-काँप कर तो जीवन व्यतीत कर लेते हैं, पर अपनी मातृभूमि का बाल-बाँका नहीं होने देते। मुग़ल साम्राज्य के अंतिम दीप सम्राट बहादुरशाह जफ़र की रंगून के कारागार से लिखी ये पंक्तियाँ कितनी मार्मिक हैं कितना है बदनसीब जफ़र दफ़न के लिए, जिस देश के लोग अपनी मातृ-भूमि से जितना अधिक स्नेह करते हैं, वह देश उतना ही उन्नत माना जाता है। देश-प्रेम की भावना ने ही भारत की पराधीनता की जंजीरों को काटने के लिए देश-भक्तों को प्रेरित किया है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद देश के प्रति हमारा कर्तव्य और भी बढ़ गया है। इस कर्तव्य की पूर्ति हमें जी-जान लगाकर करनी चाहिए। प्रश्न 61. इसीलिए यह कहा गया है-नेता नहीं नागरिक चाहिए। नागरिक को अपने कर्तव्य एवं अधिकारों के बीच समन्वय रखना पड़ता है। यदि नागरिक अपने समाज के प्रति अपने कर्तव्य का समुचित पालन करता है तो राष्ट्र किसी संकट का सामना कर ही नहीं सकता। नेता बनने की तीव्र लालसा ने नागरिकता के भाव को कम कर दिया है। नागरिक के पास राजनीतिक एवं सामाजिक दोनों अधिकार रहते हैं। अधिकार की सीमा होती है। हमारे ही नहीं दूसरे नागरिकों के भी अधिकार होते हैं। अत: नागरिक को अपने कर्तव्यों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। नेता अधिकारों की बात ज्यादा जानता है, लेकिन कर्तव्यों के प्रति उपेक्षा भाव रखता है। उत्तम नागरिक ही उत्तम नेता होता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति का यह परम कर्तव्य है कि वह अपने आपको एक अच्छा नागरिक बनाए। नागरिक में नेतृत्व का भाव स्वयंमेव आ जाता है। नेता का शाब्दिक अर्थ है जो दूसरों को आगे ले जाए अर्थात् अपने साथियों के प्रति सहायता एवं सहानुभूति का भाव अपनाए। अतः देश को नेता नहीं नागरिक चाहिए। प्रश्न 62. उसने अपना सुख, अपने ही भुजबल से पाया है। भगवान् ने मुख के साथ-साथ दो हाथ भी दिए हैं। इन हाथों से काम लेकर मनुष्य अपनी दरिद्रता को दूर कर सकता है। हाथ पर हाथ धरकर बैठे रहने वाला व्यक्ति आलसी होता है। जो आलसी है वह दरिद्र और परावलंबी है क्योंकि आलस्य दरिद्रता का मूल है। आज इस संसार में जो कुछ भी दिखाई दे रहा है, वह श्रम का ही परिणाम है। यदि सभी लोग आलसी बने रहते तो ये सड़कें, भवन, अनेक प्रकार के यान, कला-कृतियाँ कैसे बनती? श्रम से उगले मिट्टी सोना परंतु आलस्य से सोना भी मिट्टी बन जाता है। अपने परिवार, समाज और राष्ट्र की दरिद्रता दूर करने के लिए आलस्य को परित्याग कर परिश्रम को अपनाने की आवश्यकता है। हमारे राष्ट्र में जितने हाथ हैं, यदि वे सभी काम में जुट जाएँ तो सारी दरिद्रता बिलख-बिलखकर विदा हो जाएगी। आलस्य ही दरिद्रता का मूल है। प्रश्न 63. मन की शक्ति मनुष्य को अनवरत साधना की प्रेरणा देती है और विजयश्री उनके सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो जाती है। जब तक मन में संकल्प एवं प्रेरणा का भाव नहीं जागता तब तक हम किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त नहीं कर सकते। एक ही काम में एक व्यक्ति सफलता प्राप्त कर लेता है और दूसरा असफल हो जाता है। इसका कारण दोनों के मन की शक्ति की भिन्नता है। जब तक हमारा मन शिथिल है तब तक हम कुछ भी नहीं कर सकते। अत: ठीक ही कहा गया है-“मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।” प्रश्न 64. परिवार जैसे सीमित क्षेत्र में भी प्रायः यह देखने को मिलता है कि जो धनवान हैं, उनके प्रति सत्कार एवं सहायता की भावना अधिक होती है। घर में जब कभी कोई धनवान आता है तो उसकी खूब सेवा की जाती है, लेकिन जब द्वार पर भिखारी आता है तो उसको दुत्कार दिया जाता है। निर्धन ईमानदारी एवं सत्य के पथ पर चलता.. हुआ भी अनेक कष्टों का सामना करता है जबकि शक्तिशाली दुराचार एवं अन्याय के पथ पर बढ़ता हुआ भी दूसरों की सहायता प्राप्त करने में समर्थ होता है। इसका कारण यही है कि उसके पास शक्ति है तथा अपने कुकृत्यों को छिपाने के लिए साधन हैं। अतः वृंदकवि का यह कथन बिलकुल सार्थक प्रतीक होता है-“सबै सहायक सबल के, कोऊ न निबल सहाय।”. प्रश्न 65. सुदामा एवं कृष्ण की तथा राम एवं सुग्रीव की आदर्श मित्रता को कौन नहीं जानता। श्रीकृष्ण ने अपने दरिद्र मित्र सुदामा की सहायता कर उसके जीवन को ऐश्वर्यमय बना दिया था। राम ने सुग्रीव की सहायता कर उसे सब प्रकार के संकट से मुक्त कर दिया। सच्चा मित्र कभी एहसान नहीं जतलाता। वह मित्र की सहायता करना अपना कर्तव्य .. समझता है। वह अपनी दरिद्रता एवं अपने दुख की परवाह न करता हुआ अपने मित्र के जीवन में अधिक-से-अधिक सौंदर्य लाने का प्रयत्न करता है। सच्चा मित्र जीवन के बेरंग खाके में सुखों के रंग भरकर उसे अत्यंत आकर्षक बना देता है, अत: ठीक ही कहा गया है, “सच्चे मित्र से जीवन में सौंदर्य आता है।” प्रश्न 66. जब लगि भक्ति सकाम है, तब लेगि निष्फल सेव। निष्काम सेवा के द्वारा ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। समाज एवं देश को उन्नति की ओर ले जाने का श्रेष्ठतम तथा सरलतम साधन निष्काम सेवा है। हमारे संत कवियों तथा समाज-सुधारकों ने इसी भाव से प्रेरित होकर अपनी चिंता छोड़ देश और जाति के कल्याण की चिंता की। इसलिए वे समाज और राष्ट्र के लिए कुछ कर सके। अपने लिए तो सभी जीते हैं। जो दूसरों के लिए जीता है, उसका जीवन अमर हो जाता है। तभी तो गुप्तजी ने कहा है-‘वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे।” प्रश्न 67. खड़े हुए यात्री की तो दुर्दशा हो जाती है, एक यात्री दूसरे यात्री पर गिरने लगता है। कभी-कभी तो लड़ाई-झगड़े की नौबत पैदा हो जाती है। लोगों की जेबें कट जाती हैं। जिन लोगों के कार्यालय दूर हैं, उन्हें प्राय: बस का सहारा लेना ही पड़ता है। बस-यात्रा एक प्रकार से रेल-यात्रा का लघु रूप है। जिस प्रकार गाड़ी में विभिन्न जातियों एवं प्रवृत्तियों के लोगों के दर्शन होते हैं, उसी प्रकार बस में भी अलग-अलग विचारों के लोग मिलते हैं। इनसे मनुष्य बहुत कुछ सीख भी सकता है। भीड़ भरी बस की यात्रा जीवन की कठिनाइयों का सामना करने का छोटा-सा शिक्षालय है। यह यात्रा इस तथ्य की परिचायक है कि भारत अनेक क्षेत्रों में अभी तक भरपूर प्रगति नहीं कर सका। जो व्यक्ति बस-यात्रा के अनुभव से वंचित है, वह एक प्रकार से भारतीय जीवन के बहुत बड़े अनुभव से ही वंचित है। प्रश्न 68. उक्त उक्ति जीवन संबंधी गहन अनुभव का निष्कर्ष है। जो व्यक्ति जीवन के सुखद एवं दुखद अनुभवों का भोक्ता बन चुका है, वह बिना किसी तर्क के इस उक्ति का समर्थन करेगा-“हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ” मनुष्य सोचता कुछ है पर विधाता और भाग्य को कुछ और ही स्वीकार होता है। मनुष्य लाभ के लिए काम करता है, दिन-रात परिश्रम करता है, वह काम की सिद्धि के लिए एड़ी-चोटी का पसीना एक कर देता है, लेकिन परिणाम उसकी आशा के सर्वथा विपरीत भी हो सकता है। मनुष्य जीने की लालसा में न जाने क्या कुछ करता है पर जब मौत अनायास ही अपने दल-बल के साथ आक्रमण करती है तो सब कुछ धरे का . धरा रह जाता है। मनुष्य समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर देता है, पर उसे मिलती है बदनामी और निराशा। इतिहास में असंख्य उदाहरण हैं जो उक्त कथन के साक्षी रूप में प्रस्तुत किए जा सकते हैं। राम, कृष्ण, जगत जननी सीता एवं सत्य के उपासक राजा हरिश्चंद्र तक विधि की विडंबना से नहीं बच सके। तब सामान्य मनुष्य की बात ही क्या है? वह व्यर्थ में ही अपनी शक्ति एवं साधनों की डींगे हाँकता है। उक्त उक्ति में यह संदेश निहित है कि मनुष्य को अपने जीवन में आने वाली प्रत्येक आपदा का सामना करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। कबीरजी ने भी कहा है कि-“करम गति टारे नाहिं टरे।” प्रश्न 69. प्रश्न 70. बिजली के अनेक चमत्कार, टेलीफ़ोन आदि भी मनुष्य की आवश्यकता की पूर्ति करने वाले साधन हैं। इन आविष्कारों की कोई सीमा नहीं। जैसे-जैसे मानव-जाति की आवश्यकता बढ़ती है वैसे-वैसे नए आविष्कार हमारे सामने आते हैं। मनुष्य की बुद्धि के विकास के साथ ही आविष्कारों की भी संख्या बढ़ती जाती है। अत: यह ठीक ही कहा है कि ‘आवश्यकता आविष्कार की जननी है।’ प्रश्न 71. प्रश्न 72. सच तो यह है कि अभ्यास सबके लिए आवश्यक है। कोई भी कलाकार बिना अभ्यास के सफलता की चरम-सीमा को नहीं छू सकता। परिपक्वता अभ्यास से ही आती है। जब हम किसी भी काम को सीखना चाहते हैं तो उसके लिए अभ्यास अनिवार्य है। एक अच्छा खिलाड़ी बनने के लिए नित्य प्रति खेलने का अभ्यास आवश्यक है तो एक अच्छा संगीतकार बनने के लिए निरंतर स्वर-साधना का अभ्यास अपेक्षित है। प्रश्न 73. यही कारण है कि मध्यमवर्गीय व्यक्तियों के जीवन जितने आडंबरपूर्ण, प्रपंचपूर्ण एवं लचर होते हैं उतने निम्न या उच्चवर्ग के नहीं। उच्चवर्ग में शिक्षा, धन और समृद्धि रच जाती है। इस कारण ये चीजें महत्त्व को बढ़ाने का साधन नहीं बनती। मध्यमवर्गीय व्यक्ति अपनी हर समृद्धि को, अपने गुण को, अपने महत्त्व को हथियार बनाकर चलाता है। प्राय: यह व्यवहार देखने में आता है कि अंग्रेजी की शिक्षा से अल्प परिचित लोग अंग्रेजी बोलने तथा अंग्रेज़ी में निमंत्रण-पत्र छपवाने में अधिक गौरव अनुभव करते हैं। अत: यह सत्य है कि अपूर्ण समृद्धि प्रदर्शन को जन्म देती है अर्थात् अधजल गगरी छलकत जाय। 74. निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल। प्रश्न 75. तत्कालीन राजा लड़ते थे, भोगते थे, मर जाते थे। इतिहास साक्षी है कि भोग के साधनों को उसी जाति या राजा ने विपुल मात्रा में जुटाया जो जूझारू थे, संघर्षशील थे। यह सामान्य मानव-प्रकृति है कि व्यक्ति युवावस्था में सांसारिक द्रव्यों . पीछे भागता है, उन्हें एकत्र करता है, किंतु वृद्धावस्था में उन्हीं द्रव्यों को मायामय कहकर तिरस्कृत करने लगता है। उस तिरस्कार के पीछे द्रव्य का मायामय हो जाना नहीं, अपितु उसकी भोग की इच्छा का शिथिल पड़ जाना है, उसकी पाचन-शक्ति मंद पड़ जाना है। युवावस्था में शरीर हर प्रकार की तेजस्विता से संपन्न होता है, इसलिए उस समय भोग की इच्छा सर्वाधिक उठती है। अतः यह प्रमाणित सत्य है कि वीर लोग ही धरती का त धरती के समस्त भोगों का रसपान करते हैं, कर पाते हैं। प्रश्न 76. प्राचीन भारत में ऋषि-मुनि घर-बार सभी त्याग कर सभी भौतिक सुखों से रहित होकर भी परमानंद की प्राप्ति इसीलिए कर लेते थे कि उनकी मन-आत्मा पर व्यर्थ के पापों का बोझ नहीं होता था। बुरे मन का स्वामी चाहे कितना भी प्रयास कर ले कि उसे आत्मिक शांति मिले, परंतु वह उसे प्राप्त नहीं कर सकता। भक्त यदि परमात्मा को पाना चाहते हैं तो भगवान् स्वयं भी उसकी भक्ति से प्रभावित हो उसके निकट आना चाहता है। वह भक्त के निष्कपट, निष्पाप और निष्कलुष हृदय में मिल जाना चाहता है। प्रश्न 77. यदि संसार के अधिकांश व्यक्ति अपव्ययी होते तो इस संसार का निर्माण भी संभव न होता। सरकार का भी कर्तव्य है कि वह व्यय करने में अपनी आय की मर्यादा का उल्लंघन न करे अन्यथा जनता को संतुलित रखने के लिए स्वयं को असंतुलित बनाना पड़ेगा। आय के अनुरूप व्यय करने से मनुष्य को कभी आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पड़ता। मितव्ययिता के अभ्यास द्वारा उसका भविष्य भी सुरक्षित हो जाता है। उसे किसी की खुशामद नहीं करनी पड़ती। मितव्ययी बनने के लिए आवश्यक है कि अपना हर एक काम योजना बनाकर किया जाए। कहीं भी आवश्यकता . से अधिक व्यय न करें। अपनी आय के अनुसार खर्च करने वाला व्यक्ति स्वयं भी आनंद उठाता है और उसका परिवार भी प्रसन्नचित्त दिखाई देता है। यह आदत समाज में प्रतिष्ठा दिलाती है। अत: प्रत्येक को अधोलिखित सूक्ति के अनुसार अपने जीवन को ढालने का प्रयत्न करना चाहिए तेते पाँव पसारिए जेती लंबी सौर। प्रश्न 78. संस्कृत में एक कथन है कि ‘उद्यमेनहि सिद्धयंति कार्याणि न मनोरथः’ अर्थात् परिश्रम से ही कार्य की सिद्धि होती है। परिश्रम मनुष्य तब करता है जब उसके मन में परिश्रम करने की इच्छा उत्पन्न होती है। जिस मनुष्य के मन में कार्य करने की इच्छा ही नहीं होगी वह कुछ भी नहीं कर सकता। जैसे पानी पीने की इच्छा होने पर हम नल अथवा कुएँ से पानी लेकर पीते हैं। यहाँ पानी पीने की इच्छा ने पानी को प्राप्त करने के लिए हमें नल अथवा कुएँ तक जाने का मार्ग बनाने की प्रेरणा दी। अत: कहा जाता है कि जहाँ चाह वहाँ राह। प्रश्न 79. उस अवसर को खो देने पर केवल लोहे की टन-टन की आवाज़ के अतिरिक्त कुछ लाभ नहीं मिल सकता। अतः मनुष्य को चाहिए कि वह उचित समय की प्रतीक्षा में हाथ-पर-हाथ धरकर न बैठा रहे, अपितु समय की आवश्यकता को पहले से ध्यान करके उसके लिए उचित तैयारी करे। हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है कि समय एक ऐसी स्त्री है जो अपने लंबे बाल मुँह के आगे फैलाए हुए निरंतर दौड़ती चली जा रही है। जिसे भी समय रूपी उस स्त्री को वश में करना हो, उसे चाहिए कि वह समय के आगे-आगे दौड़कर उस स्त्री के बालों से उसे पकड़े। उसके पीछे-पीछे दौड़ने से मनुष्य उसे नहीं पकड़ पाता। आशय यह है कि उचित समय पर उचित साधनों का होना ज़रूरी है। जो लोग आग लगाने पर कुआँ खोदते हैं, वे आग में अवश्य झुलस जाते हैं। उनका कुछ भी शेष नहीं बचता। प्रश्न 80. प्रसिद्ध उक्ति है कि निरंतर घिसाव से पत्थर पर भी चिह्न पड़ जाते हैं। जड़मति व्यक्ति परिश्रम द्वारा ज्ञान उपलब्ध कर लेता है। जहाँ परिश्रम तथा प्रतिभा दोनों एकत्र हो जाते हैं वहाँ किसी अद्भुत कृति का सृजन होता है। शेक्सपीयर ने महानता को दो श्रेणियों में विभक्त किया है-जन्मजात महानता तथा अर्जित महानता। यह अर्जित महानता परिश्रम के बल पर ही अर्जित की जाती है। अत: जिन्हें ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त नहीं है, उन्हें अपने श्रम-बल का भरोसा रखकर. . कर्म में जुटना चाहिए। सफलता अवश्य ही उनकी चेरी बनकर उपस्थित होगी। प्रश्न
81. कभी-कभी पशु का सद्व्यवहार भी मनुष्य को भ्रांति में डाल देता है। अनेक कहानियाँ ऐसी हैं जिनके अध्ययन से पता चलता है कि पशुओं ने मनुष्य-जाति के लिए अनेक बार अपने बलिदान और त्याग का परिचय दिया है पर वाक् -शक्ति के अभाव के कारण उसे मनुष्य के द्वारा निर्मम मृत्यु का भी सामना करना पड़ा है। इसके विपरीत मनुष्य अपनी वाणी के दुरुपयोग के कारण अनेक बार कष्ट उठाता है। रहीम ने अपने दोहे में व्यक्त किया है कि जीभ तो अपनी मनचाही बात कहकर मुँह में छिप जाती है पर जूतियाँ का सामना करना पड़ता है बेचारे सिर को। अभिप्राय यह है कि मनुष्य को अपनी वाणी पर संयम रखना चाहिए। इस संसार में बहुत-से झगड़ों का कारण वाणी का दुरुपयोग है। एक नेता के मुख से निकली हुई बात सारे देश को युद्ध की ज्वाला में झोंक सकती है। अत: यह ठीक ही कहा गया है कि पशु न बोलने से कष्ट उठाता है और मनुष्य बोलने से। कोई भी बात कहने से पहले उसके परिणाम पर विचार कर लेना चाहिए। प्रश्न 82. प्रश्न 83. प्रश्न 84. प्रश्न 85. प्रश्न 86. कर्मठता का उपदेश देता है जबकि वह स्वयं भ्रष्टाचार के पथ पर बढ़ता रहता है। नेता मंच पर आकर कितनी सारगर्भित बातें कहते हैं, पर उनका आचरण हमेशा उनकी बातों के विपरीत होता है। माता-पिता तथा गुरुजन बच्चों को नियंत्रण में रहने का उपदेश देते हैं-पर वे यह भूल जाते हैं कि उनका अपना जीवन अनुशासनबद्ध एवं नियंत्रित ही नहीं। प्रश्न 87. पुण्य से परिपूर्ण कर्म कभी भी व्यर्थ नहीं जाते। जो दूसरों का शोषण करता है, वह कभी सुख की नींद नहीं सो सकता। ‘जैसी करनी वैसी भरनी’ वाली बात प्रसिद्ध है। मनुष्य को हमेशा अच्छे कर्मों में रुचि लेनी चाहिए। दूसरों का हित करना तथा उन्हें संकट से मुक्त करने का प्रयास मानवता की पहचान है। मानवता के पथ पर बढ़ने वाला व्यक्ति मानव तथा दानवता के पथ पर बढ़ने वाला व्यक्ति दानव कहलाता है। मानवता की पहचान मनुष्य के शुभ कर्म हैं। प्रश्न 88. देर से उठना, व्यर्थ की बातचीत करना, खेल, शतरंज आदि में रुचि का होना आदि के द्वारा समय का नष्ट करना। यदि हम चाहते हैं तो पहले अपना काम पूरा करें। बहुत-से लोग समय को नष्ट करने में आनंद का अनुभव करते हैं। मनोरंजन के नाम पर समय नष्ट करना बहुत बड़ी भूल है। समय का सदुपयोग करने के लिए आवश्यक है कि हम अपने दैनिक कार्य को करने का समय निश्चित कर लें। फिर उस कार्य को उसी काम में करने का प्रयत्न करें। इस तरह का अभ्यास होने से समय का मूल्य समझ जाएँगे और देखेंगे कि हमारा जीवन निरंतर प्रगति की ओर बढ़ता जा रहा है। समय के सदुपयोग से ही जीवन का पथ सरल हो जाता है। महान् व्यक्तियों के महान बनने का रहस्य समय का सदुपयोग ही है। समय के सदुपयोग के द्वारा ही मनुष्य अमर कीर्ति का पात्र बन सकता है। समय का सदुपयोग ही जीवन का सदुपयोग है। इसी में जीवन की सार्थकता है-“कल करै सो आज कर, आज करै सो अब, पल में परलै होयगी, बहुरि करोगे कब।” प्रश्न 89. आज शिक्षा मानव-जीवन का एक अंग बन गई है। शिक्षा के बिना मनुष्य ज्ञान पंगु कहलाता है। पुरुष के साथ-साथ नारी को भी शिक्षा की आवश्यकता है। नारी शिक्षित होकर ही बच्चों को शिक्षा प्रदान कर सकती है। बच्चों पर पुरुष की अपेक्षा नारी के व्यक्तित्व का प्रभाव अधिक पड़ता है। अत: उसका शिक्षित होना ज़रूरी है। ‘स्त्री का रूप क्या हो?’ यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है। इतना तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि नारी और पुरुष के क्षेत्र अलग-अलग हैं। पुरुष को अपना अधिकांश जीवन बाहर के क्षेत्र में बिताना पड़ता है जबकि नारी को घर और बाहर में समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता होती है। सामाजिक कर्तव्य के साथ-साथ उसे घर के प्रति भी अपनी भूमिका का निर्वाह करना पड़ता है। अतः नारी को गृह-विज्ञान की शिक्षा में संपन्न होना चाहिए। अध्ययन के क्षेत्र में भी वह सफल भूमिका का निर्वाह कर सकती है। शिक्षा के साथ-साथ चिकित्सा के क्षेत्र में भी उसे योगदान देना चाहिए। सुशिक्षित माताएँ ही देश को अधिक योग्य, स्वस्थ और आदर्श नागरिक दे सकती हैं। स्पष्ट हो जाता है कि स्त्री-शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार होना चाहिए। नारी को फ़ैशन से दूर रहकर सादगी के जीवन का समर्थन करना चाहिए। उसकी शिक्षा समाजोपयोगी हो। प्रश्न 90. कम्प्यूटर ने तो मेरी पढ़ाई मे परिवर्तन कर दिया है। एक समय था जब मुझे छोटी-छोटी बातों को समझने के लिए इधर-उधर से सहायता लेनी पड़ती थी लेकिन अब तो कम्प्यूटर पलभर में उस समस्या को हल कर देता है। अब तो मोटी-मोटी किताबों का बोझ भी इसने कम कर दिया है। इससे सारे संसार के ज्ञान को एक ही जगह पर प्राप्त कर लेने का कार्य पलक झपकते ही हो जाता है। कम्प्यूटर ने । दूर-दूर रहने वाले मित्रों और रिश्तेदारों को एक साथ जोड़ दिया है। मेरा जीवन तो अब मुझे कम्प्यूटर के बिना अधूरा लगता है। प्रश्न 91. रते हैं, उसके बारे में लोग यही समझते हैं कि इनमें सदभावना विद्यमान है। मधुर-वाणी मित्रों की संख्या में वृद्धि करती है। कोमल और मधुर वाणी से शत्रु के मन पर भी विजय प्राप्त की जा सकती है। वह भी अपनी द्वेष और ईर्ष्या की भावना को विस्तृत करके मधुर संबंध बनाने के इच्छुक हो जाता है। यदि कोई अच्छी बात भी कठोर और कर्कश वाणी में कही जाए तो लोगों पर उसकी प्रतिक्रिया विपरीत होती है। लोग यही समझते हैं कि यह व्यक्ति अहंकारी है। इसलिए वाणी मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ अलंकार है तथा उसे उसका सदुपयोग करना चाहिए। प्रश्न 92. नारी प्राचीनकाल से आधुनिक काल तक अपनी महत्ता एवं श्रेष्ठता प्रतिपादित करती आई है। नारियाँ ज्ञान, कर्म एवं भाव सभी क्षेत्रों में अग्रणी रही हैं। यहाँ तक कि पुरुष वर्ग के लिए आरक्षित कहे जाने वाले कार्यों में भी उसने अपना प्रभुत्व स्थापित किया है। चाहे एवरेस्ट की चोटी ही क्यों न हो, वहाँ भी नारी के चरण जा पहुंचे हैं। एंटार्कटिका पर भी नारी जा पहुँची है। प्रशासनिक क्षमता का प्रदर्शन वह अनेक क्षेत्रों में सफलतापूर्वक कर चुकी है। आधुनिक काल की प्रमुख नारियों में श्रीमती इंदिरा गांधी, विजयलक्ष्मी पंडित, सरोजिनी नायडू, बजेंद्री पाल, सानिया मिर्जा आदि का नाम गर्व के साथ लिया जा सकता है। प्रश्न 93. यदि उनका समाचार-पत्र आ गया हो तो वे अपने समाचार-पत्र वाले को कोसने लगते हैं। उन्हें लगता है आज का उनका दिन अच्छा नहीं व्यतीत होगा। उनका अपने काम पर जाने का मन भी नहीं होता। वे पुराना अखबार उठाकर पढ़ने का प्रयास करते हैं किंतु पढ़ा हुआ होने पर उसे फेंक देते हैं तथा समाचार-पत्र वाहक पर आक्रोश व्यक्त करने लगते हैं। कई लोग तो समाचार-पत्र के अभाव में अपनी नित्य क्रियाओं से भी मुक्त नहीं हो पाते। वास्तव में जिस दिन समाचार-पत्र नहीं आता वह दिन अत्यंत फीका-फीका, उत्साह रहित लगता है। प्रश्न 94. हवा में भी थोड़ी ठंडक आ गई। धीरे-धीरे हल्की-हल्की बूंदा-बाँदी शुरू हो गई। मैं अपने साथियों के साथ गाँव की गलियों में निकल पड़ा। साथ ही हम नारे लगाते जा रहे थे, ‘बरसो राम धड़ाके से, बुढ़िया मर गई फाके से’। किसान भी खुश थे। उनका कहना था-‘बरसे सावन तो पाँच के हों बावन’ नववधुएँ भी कह उठीं ‘बरसात वर के साथ’ और विरहिणी स्त्रियाँ भी कह उठी कि ‘छुट्टी लेके आजा बालमा, मेरा लाखों का सावन जाए।’ वर्षा तेज़ हो गई थी। खुले में वर्षा में भीगने, नहाने का मज़ा ही कुछ और है। वर्षा भी उस दिन कड़ाके से बरसी। मैं उन क्षणों को कभी भूल नहीं सकता। मैं उसे छू सकता था, देख सकता था और पी सकता था। मुझे अनुभव हुआ कि कवि लोग क्योंकर ऐसे दृश्यों से प्रेरणा पाकर अमर काव्य का सृजन करते हैं। प्रश्न 95. बस अड्डे में कई रेहड़ी वालों को भी फल बेचने की आज्ञा दी गई है। ये लोग पोलीथीन के काले लिफ़ाफ़े रखते हैं जिनमें वे सड़े गले फल पहले से ही तोल कर रखते हैं और लिफ़ाफ़ा इस चालाकी से बदलते हैं कि यात्री को पता नहीं चलता। घर पहुँचकर ही पता चलता है कि उन्होंने जो फल चुने थे वे बदल दिए गए हैं। बस अड्डे की शौचालय की साफ़-सफ़ाई न होने के बराबर है। यात्रियों को टिकट देने के लिए लाइन नहीं लगवाई जाती। लोग भाग-दौड़ कर बस में सवार होते हैं। औरतों, बच्चों और वृद्ध लोगों का बस में सवार होना ही कठिन होता है। अनेक बार देखा गया है कि जितने लोग बस के अंदर होते हैं उतने ही बस के ऊपर चढ़े होते हैं। अनेक बस अड्डों का हाल तो उनसे भी गया-बीता है। जगह-जगह गंदा पानी, कीचड़, मक्खियाँ, मच्छर और न जाने किस-किस गंदगी की भरमार है। सभी बस अड्डे जेबकतरों के अड्डे बने हुए हैं। हर यात्री को अपने-अपने घर पहुँचने की जल्दी होती है इसलिए कोई भी बस अड्डे की इस बुरी हालत की ओर ध्यान नहीं देता। प्रश्न 96. भगवान् कृष्ण ने पांडवों को अधिकार दिलाने की कितनी कोशिश की पर कौरव उन्हें पाँच गाँव तक देने के लिए सहमत नहीं हुए थे। तब पांडवों को अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए युद्ध का रास्ता अपनाना पड़ा। भारत को अपनी आज़ादी तब तक नहीं मिली थी जब तक उसने शक्ति का प्रयोग नहीं किया। देशवासियों ने सत्य और अहिंसा के बल पर अंग्रेज़ सरकार से टक्कर ली थी। तभी उन्हें सफलता प्राप्त हुई थी और देश को आजादी प्राप्त हो गयी। कहावत है कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते। व्यक्ति हो अथवा राष्ट्र उसे शक्ति का प्रयोग करना ही पड़ता है। तभी अधिकारों की प्राप्ति होती है। शक्ति से ही अहिंसा का पालन किया जा सकता है, सत्य का अनुसरण किया जा सकता है, अत्याचार और अनाचार को रोका जा सकता है। इसी से अपने अधिकारों को प्राप्त किया जा सकता है। वास्तव में ही शक्ति अधिकार की जननी है। प्रश्न 97. यह व्यवस्था का दोष है। इन नेताओं पर हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और वाली कहावत चरितार्थ होती है। जनता को भाषण की नहीं राशन की आवश्यकता है। सरकार की ओर से ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि जनता को ज़रूरत की वस्तुएँ प्राप्त करने में कठिनाई का अनुभव न हो। उसे रोटी, कपड़ा, मकान की समस्या का सामना न करना पड़े। सरकार को अपनी कथनी के अनुरूप व्यवहार भी करना चाहिए। उसे यह बात गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि जनता को भाषण नहीं राशन चाहिए। भाषणों की झूठी खुराक से जनता को बहुत लंबे समय तक मूर्ख नहीं बनाया जा सकता। प्रश्न 98. हमारे पड़ोस में एक प्रौढ़ महिला भी रहती है जिन्हें सारे मुहल्ले वाले मौसी कहकर पुकारते हैं। यह मौसी मुहल्ले भर के लड़के-लड़कियों की खोज-खबर रखती है। यहाँ तक कि किसकी लड़की अधिक फ़ैशन करती है, किसका लड़का अवारागर्द है। मौसी को सारे मुहल्ले की ही नहीं, सारे शहर की खबर रहती है। हम मौसी को चलता-फिरता अखबार कहते हैं। वह कई बार झठी चुगली करके कुछ पडोसियों को आपस में लडवाने की कोशिश भी कर चकी है। परंत सब उसकी चाल को समझ सारे पड़ोसी बहुत अच्छे हैं। एक-दूसरे का ध्यान रखते हैं और समय पड़ने पर उचित सहायता भी करते हैं। प्रश्न 99. उनसे वार्तालाप में मैंने स्वयं को जब भारत का नागरिक बताया तो उन्होंने मेरा सफ़ेद रसगुल्लों जैसी मिठाई से स्वागत किया। वहाँ सभी कुछ अत्यंत निर्मल और पवित्र था। मैंने मिठाई खानी शुरू ही की थी कि मेरी मम्मी ने मेरी बाँह पकड़कर मुझे उठा दिया और डाँट पड़ी कि चादर क्यों खा रहा है ? मैं हैरान था कि यह क्या हो गया? कहाँ तो मैं चंद्रलोक का आनंद ले रहा था और यहाँ चादर खाने पर डाँट पड़ रही है। मेरा स्वप्न भंग हो गया था और मैं भाग कर बाहर की ओर चला गया। प्रश्न 100. नए एवं अप्रत्याशित विषयों पर लेखन में क्या क्या बाधाएँ आती हैं?प्रश्न 6.. सामान्य रूप से लेखक आत्मनिर्भर होकर अपने विचारों को लिखित रूप देने का अभ्यास नहीं करता।. लेखक में मौलिक प्रयास तथा अभ्यास करने की प्रवृत्ति का अभाव होता है।. लेखक के पास विषय से संबंधित सामग्री और तथ्यों का अभाव होता है।. अप्रत्याशित विषय का अर्थ क्या है?अप्रत्याशित विषयों पर लेखन क्या है? ऐसे विषय जिसकी आपने कभी आशा भी न की हो उस पर लेखन कार्य करना ही अप्रत्याशित विषयों पर लेखन कहलाता है। विषय कोई भी हो सकता है जो पहले से पढ़ा नहीं यानी रटा रटाया नहीं हो वही अप्रत्याशित लेखन का विषय हो सकता है।
क्या नए और अप्रत्याशित विषयों का लेखन अभिव्यक्ति कौशल में सहायक है स्पष्ट करें?1. अधूरे वाक्यों को अपने शब्दों में पूरा करें- हम नया सोचने-लिखने का प्रयास नहीं करते क्योंकि... ● लिखित अभिव्यक्ति की क्षमता का विकास नहीं होता क्योंकि... हमें विचार - प्रवाह को थोड़ा नियंत्रित रखना पड़ता है क्योंकि.. लेखन के लिए पहले उसकी रूपरेखा स्पष्ट होनी चाहिए क्योंकि...
लेखन का क्या आशय है अप्रत्याशित विषयों पर लेखन एक चुनौती क्यों है?पाँचवाँ, अप्रत्याशित विषयों पर लेखन कम समय में अपने विचारों को संकलित कर उन्हें सुंदर और सुघड़ ढंग से अभिव्यक्त करने की चुनौती है। ऐसी चुनौतियों का सामना करके आप दृढ़ व्यक्तित्व वाले व्यक्ति बनेंगे।
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