ने 1857 के विद्रोह का दमन करने के लिए क्या क्या कदम उठाए? - ne 1857 ke vidroh ka daman karane ke lie kya kya kadam uthae?

हिंदी न्यूज़1857 की क्रांति के दमन में कैमरन के पूर्वज भी

यह जानकर आपको हैरानी होगी कि ब्रिटेन के मौजूदा प्रधानमंत्री डेविड कैमरन के एक पूर्वज ने 1857 में भारत में अंग्रेजों के खिलाफ हुए विद्रोह को कुचलने में भूमिका निभाई थी। कैमरन के पूर्वज ब्रिटेन की...

एजेंसीMon, 02 Aug 2010 02:39 PM

यह जानकर आपको हैरानी होगी कि ब्रिटेन के मौजूदा प्रधानमंत्री डेविड कैमरन के एक पूर्वज ने 1857 में भारत में अंग्रेजों के खिलाफ हुए विद्रोह को कुचलने में भूमिका निभाई थी। कैमरन के पूर्वज ब्रिटेन की घुड़सवार सेना में शामिल थे।

1857 की क्रांति को अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता की पहली लड़ाई के रूप में जाना जाता है। द टेलीग्राफ में सोमवार को प्रकाशित खबर के अनुसार कैमरन के दादा के दादा विलियम लो ने ऐसे दस्तावेज छोड़े हैं जिनमें बकायदा रेखाचित्र के द्वारा दिखाया गया है कि किस तरह उन्होंने निहत्थे विद्रोहियों को अपनी तलवार से ढेर किया और 1857 के विद्रोह के दौरान नागरिकों को सामूहिक फांसी देने में भी शामिल रहे।

खबर के अनुसार लो ने इसमें बताया है कि विद्रोह को दबाने के दौरान उन्होंने कैसे अपना एक हाथ और कान खो दिया। समाचारपत्र में कहा गया है कि कैमरन की भारत यात्रा से पहले ही अगर उनके पूर्वज के बारे में इस खबर का खुलासा हो जाता तो इससे दोनों देशों के बीच कूटनीतिक उलझन पैदा होने का डर था। हालांकि, डाउनिंग स्ट्रीट ने समाचारपत्र में छपी खबर पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया है।

इस क्रांति की व्यापकता का अनुमान अंग्रेज अधिकारी नहीं लगा सके। अतः विद्रोह आरंभ होने के बाद भी दो दिन तक अंग्रेजी सेना ने कोई कार्यवाही नहीं की। विप्लव का दमन सर्वप्रथम दिल्ली से आरंभ हुआ। हेनरी बरनार्ड को सेना देकर दिल्ली की ओर भेजा गया। मुगल सम्राट बहादुरशाह की सेना ने आक्रमण कर अंग्रेजी सेना को पीछे हटा दिया।

कुशल युद्ध संचालन का अभाव एवं अंग्रेजी सेना के भारतीयों पर किये गये अत्याचार-

दिल्ली में भारतीय सैनिकों में कुशल युद्ध संचालन का अभाव था। अतः वे पंजाब से आने वाली सहायता को रोकने में असमर्थ रहे। इसके विपरीत अंग्रेजी पलटनें पूर्ण अनुभवी सेनापति की कमान में थी। अगस्त-सितंबर में पंजाब से बङी-2 तोपें दिल्ली पहुँच गई। 14सितंबर,1857 को कश्मीरी गेट को बारूद से उङा दिया गया तथा छः दिनों के भयंकर युद्ध के बाद 20सितंबर तक दिल्ली के विभिन्न स्थानों पर अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया। 21 सितंबर को बहादुरशाह, उसकी बेगम  जीनत महल और उसके पुत्र को बंदी बनाकर उन्हें भारत से निर्वासित करके रंगून भेज दिया, जहाँ बेबसी में दिन काटते हुए 1862 में अंतिम मुगल बादशाह की मृत्यु हो गयी। दिल्ली पर अधिकार करने के बाद अंग्रेजों ने निर्दोष व्यक्तियों का कत्लेआम कर खून की नदियाँ बहा दी। यद्यपि विद्रोहियों ने भी अंग्रेजों की हत्याएँ की थी किन्तु ये हत्याएँ विप्लव के काल में हुई थी, लेकिन अंग्रेजों ने रक्तपात विद्रोह की समाप्ति के बाद किया। अंग्रेजों ने केवल सैनिकों का नहीं बल्कि साधारण नागरिकों का भी रक्तपात किया। दिल्ली की लूट और विनाश का अमुमान टाइम्स पत्र के संवाददाता के इस कथन से लगाया जा सकता है, शाहजहाँ के शहर में नादिरशाह के कत्लेआम के बाद ऐसा दृश्य नहीं देखा गया था।

जुलाई, 1857 में अंग्रेजों ने कानपुर पर अधिकार कर लिया, किन्तु तांत्या टोपे ने संघर्ष जारी रखा। अंग्रेजों ने उसे पकङने में सारी शक्ति लगा दी। 1859 के अंत तक वह अंग्रेजों से जूझता रहा, लेकिन अंत में देशद्रोही मानसिंह ने अलवर के जंगलों में तांत्या टोपे को रात में सोते हुए पकङवा दिया। कहा जाता है कि तांत्या टोपे को फाँसी दे दी गई, किन्तु अनेक इतिहासकारों का कहना है कि जिस व्यक्ति को फाँसी दी गई थी, वह तांत्या टोपे नहीं था। जून,1858 तक अधिकांश क्षेत्रों पर अंग्रेजों ने पुनः अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था। जनरल नील तथा जनरल हेवलाक ने, जिस रास्ते से भी वे गुजरे, निरीह पुरुषों,स्त्रियों और बच्चों का कत्लेआम करवाया। झांसी और लखनऊ में भी साधारण नागरिकों के साथ ऐसा ही व्यवहार किया गया। रस्सियों से लटकवा कर गोली से उङा देना सामान्य बात थी। जिन-2 रास्तों से अंग्रेजी सेना गुजरती थी, वहाँ लाशों के अतिरिक्त कुछ दिखाई नहीं देता था।

अंग्रेजों द्वारा किये गये अत्याचार-

जनरल नील ने इलाहाबाद और बनारस पहुँच कर गाँव के गाँव जला दिये और किसानों की खङी फसलें बर्बाद कर दी। जून,1857 में बनारस और इलाहाबाद के क्षेत्रों में बिना मुकदमा चलाये लोगों को मृत्युदंड दे दिया गया। बाजार में खङे वृक्षों  पर सहस्त्रों व्यक्तियों को फाँसी दे दी गई। इतिहासकार जॉन ने लिखा है कि तीन महीनों तक 8 गाङियाँ सुबह से शाम तक शवों को चौराहों व बाजारों से हटाकर ले जाने में व्यस्त रहीं।

किसी भी व्यक्ति को भागकर जाने नहीं दिया गया,क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति उन्हें विद्रोही दिखाई दे रहा था। संभवतः वे भारतीयों को बता देना चाहते थे कि ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह करना सरल नहीं है। आश्चर्य तो इस बात पर होता है कि ये अत्याचार उन भारतीय अंग्रेज प्रशासकों द्वारा किये गये जो अपने आपको सभ्य,प्रगतिशील और शिक्षित कहते थे।

Reference ://www.indiaolddays.com/

अंग्रेजों ने 1857 के विद्रोह का दमन करने के लिए क्या क्या कदम?

अंग्रेजों ने कूटनीति का सहारा लेकर शिक्षित वर्ग और जमींदारों को विद्रोह से दूर रखा। उन लोगों ने जमींदारों को जागीरें वापस लौटाने का आश्वासन दिया। अंग्रेजों ने संचार सांधनों पर अपना पूर्ण नियंत्रण बनाए रखा। परिणामस्वरूप विद्रोह की सूचना मिलते ही वे उचित कार्यवाही करके विद्रोहियों की योजनाओं को विफल कर देते थे।

1857 के विद्रोह का दमन कैसे हुआ?

1857 की क्रांति का दमन :- . 20 सितंबर 1857 को अंग्रेजों ने दिल्ली पर फिर से कब्जा कर लिया। और बहादुर शाह द्वितीय को बंदी बनाकर रंगून भेज दिया गया, जहां सन 1862 में उनकी मृत्यु हो गई।

1857 के विद्रोह का दमन करने में सहयोग करने वाले भारतीयों को अंग्रेजों ने कैसे सम्मानित किया?

क्रांति में शामिल नहीं होने वाले रियासतों के मालिकों और जमींदारों को लॉर्ड कैनिंग ने 'तूफान में बांध' की संज्ञा दी. उन्हें ब्रिटिश शासन की ओर से सम्मानित भी किया गया. उन्हें आधिकारिक रूप से अलग पहचान और ताज दिया गया. कुछ बड़े किसानों के लिए भूमि-सुधार कार्य भी किए गए.

1857 के विद्रोह के लिए क्या मजबूर किया?

1857 के विद्रोह के तात्कालिक कारण सैनिक थे। एक अफवाह यह फैल गई कि नई 'एनफिल्ड' राइफलों के कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी का प्रयोग किया जाता है। सिपाहियों को इन राइफलों को लोड करने से पहले कारतूस को मुँह से खोलना पड़ता था। हिंदू और मुस्लिम दोनों सिपाहियों ने उनका इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया।

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