मनुष्य पशु से भी हीन कब और क्यों प्रतीत होता है? - manushy pashu se bhee heen kab aur kyon prateet hota hai?

पशु और मनुष्य के बीच अनेक भिन्नताएं हैं

पशु और मनुष्य के बीच अनेक भिन्नताएं हैं। इन भिन्नताओं में एक भिन्नता महत्वपूर्ण है कि मनुष्य को अपने पुण्यकर्मो और स्व-श्रम से विद्या, धन व शक्ति जिस रूप में प्राप्त हो जाती है वैसी प्राप्ति पशुओं को कभी नहीं होती।

पशु और मनुष्य के बीच अनेक भिन्नताएं हैं। इन भिन्नताओं में एक भिन्नता महत्वपूर्ण है कि मनुष्य को अपने पुण्यकर्मो और स्व-श्रम से विद्या, धन व शक्ति जिस रूप में प्राप्त हो जाती है वैसी प्राप्ति पशुओं को कभी नहीं होती। मनुष्य सामान्यत: इन प्राप्तियों से लोक जीवन में सुख पाने के लिए इनका प्रयोग एक विशेष साधन के रूप में करता है और यह भूल जाता है कि इन प्राप्तियों में यदि उसका श्रम इसके मूल में है तो ईश्वर कृपा भी इसके आधार में है, अन्यथा सभी अपनी-अपनी इच्छानुसार विद्या, धन व शक्ति पा लेते, किंतु ऐसा होता नहीं है। इसलिए यह कहा जाता है कि जिस पर भी ईश्वर कृपा होती है वही विद्या, धन व शक्ति सहज में ही पा लेने का अधिकारी बन जाता है। बुरे कर्मो से हमें नर्क और सुकर्मो से स्वर्ग, भक्ति व ज्ञान की प्राप्ति के साथ ही ईश्वर की प्राप्ति भी होती है। तब हम शाश्वत आनंद की प्राप्ति के अधिकारी बन जाते हैं। यही मनुष्य जीवन का परम लाभ व लक्ष्य भी है।

इसलिए हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि संसार में प्राप्त होने वाली जिन उपलब्धियों पर हम इतराते हैं उनका यदि हमने अपने पारलौकिक जीवन को संवारने के लिए साधन के रूप में प्रयोग नहीं किया तो उनसे विकृति का ही जीवन मिलेगा। जो लोग विद्या, धन और शक्ति से संपन्न होकर विकृति का जीवन जीते हैं वे विद्या से अहंकारी बन जाते हैं और अपने से वरिष्ठ लोगों और विद्वानों का अपमान करने लगते हैं। धन के घमंड में चूर होकर भोगों में लिप्त हो जाते हैं और प्रभु कृपा से इन्हें जो शक्ति मिली हुई है उससे ऐसे लोग दूसरों का उत्पीड़न करने लगते हैं। जीवन में प्राप्त श्रेष्ठ साधनों का ऐसा प्रयोग विकृति का प्रयोग है, जो हमारे पतन का कारण बनता है। सज्जन व्यक्ति अपनी विद्या से ज्ञान प्राप्ति की ओर बढ़ते हैं। वे यह निश्चय कर लेते हैं कि परम ज्ञान का आधार हमारी विद्या ही है। इसलिए न तो वे विद्या प्राप्ति के संदर्भ में अहंकार करते हैं और न ही किसी का अपमान करते हैं।

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Short Note

कुछ मनुष्य पशुओं से भी हीन होते हैं। पठित दोहे के आधार पर हिरन के माध्यम से स्पष्ट कीजिए।

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Solution

हिरन शिकारी की आवाज़ सुनकर उसे दूसरे हिरनों की आवाज़ समझ बैठता है और खुश हो जाता है। वह अपनी सुधि बुधि खोकर उस आवाज़ की ओर आकर अपना तन दे देता है परंतु मनुष्य खुश होकर भी दूसरों को कुछ नहीं देता है। इस तरह कुछ मनुष्य पशुओं से भी हीन होते हैं।

Concept: पद्य (Poetry) (Class 9 B)

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Chapter 8: रहीम - दोहे - अतिरिक्त प्रश्न

Q 3Q 2Q 4

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NCERT Class 9 Hindi - Sparsh Part 1

Chapter 8 रहीम - दोहे
अतिरिक्त प्रश्न | Q 3

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Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 8 एक कुत्ता और एक मैना Textbook Exercise Questions and Answers.

RBSE Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 एक कुत्ता और एक मैना

RBSE Class 9 Hindi एक कुत्ता और एक मैना Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1. 
गुरुदेव ने शान्तिनिकेतन को छोड़ कहीं और रहने का मन क्यों बनाया? 
उत्तर : 
गुरुदेव ने शान्तिनिकेतन को छोड़कर कहीं और रहने का मन इसलिए बनाया कि - 

  1. उनका स्वास्थ्य कुछ दिनों से ठीक नहीं था। 
  2. उन्हें आराम और एकान्त की जरूरत थी। 
  3. शान्ति-निकेतन में मिलने-जुलने वाले दिन भर आते रहते थे, जिसके कारण उनके आराम में व्यवधान पड़ता रहता था। इसलिए उन्होंने श्री निकेतन के अपने पुराने तिमंजिले मकान में रहने का निर्णय किया। 

प्रश्न 2. 
मूक प्राणी मनुष्य से कम संवेदनशील नहीं होते। पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
मूक प्राणी मनुष्य से कम संवेदनशील नहीं होते इस दृष्टि से रवीन्द्रनाथ के कुत्ते का व्यवहार दर्शनीय है। वह अपने मालिक के प्रति पूरी तरह से समर्पित है। जब गुरुदेव उसे शान्ति निकेतन में छोड़कर श्रीनिकेत में चले गये तो कत्ता भी उन्हें खोजता-खोजता वहाँ पहँच गया और गरुदेव का स्पर्श पाकर आनन्द से उमंगित हो। पर वह कुत्ता उनके चिता-भस्म के कलश के पास उदास बैठा रहा, मानो वह उनकी मृत्यु पर शोक प्रकट कर रहा हो। यह घटना मूक प्राणी की संवेदनशीलता का प्रमाण है। 

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प्रश्न 3. 
गुरुदेव द्वारा मैना को लक्ष्य करके लिखी कविता के मर्म को लेखक कब समझ पाया? 
उत्तर : 
श्रीनिकेतन में गुरुदेव ने एक लंगड़ी मैना को दिखाते हुए लेखक से कहा कि यह यूथभ्रष्ट है, रोज यहाँ आकर फुदकती है। मुझे इसकी चाल में करुण-भाव दिखाई पड़ता है। उस समय लेखक को उसका करुण भाव बिल्कुल भी नहीं दिखाई दिया था, परन्तु जब उसी मैना को लक्ष्य करके लिखी गई गुरुदेव की कविता को लेखक ने पढ़ा, तो तब वह. इस कविता का मर्म समझ पाया। 

प्रश्न 4. 
प्रस्तुत पाठ एक निबन्ध है। निबन्ध गद्य-साहित्य की उत्कृष्ट विधा है, जिसमें लेखक अपने भावों और विचारों को कलात्मक और लालित्यपूर्ण शैली में अभिव्यक्त करता है। इस निबन्ध में उपर्युक्त विशेषताएँ कहाँ झलकती हैं? किन्हीं चार का उल्लेख कीजिए। 
उत्तर : 
(i) कलात्मक शैली - मैना-दम्पती के प्रसंग में यह विशेषता झलकती है। यथा-दोनों के नाच-गान और आनन्द-नृत्य से सारा मकान मुखरित हो उठता है। इसके बाद ही पत्नीदेवी जरा हम लोगों की ओर मुखातिब होकर लापरवाही भरी अदा से कुछ बोल देती है। पति देवता भी मानो मुस्कराकर हमारी ओर देखते, कुछ रिमार्क करते और मुँह फेर लेते हैं। 

(ii) लालित्यपूर्ण शैली - लेखक बताता है कि जब कभी मैं गुरुदेव के पास जाता, तो प्रायः वे यह कहकर मुस्करा देते थे कि 'दर्शनार्थी हैं क्या?' शुरू-शुरू में मैं उनसे बंगला में बात करता था, जो वस्तुतः हिन्दी-मुहावरों का अनुवाद हुआ करती थी। 

(ii) सरस व्यंग्य - लेखक द्वारा कौओं की उपमा आधुनिक साहित्यकारों से देना, कौओं द्वारा प्रवास करने को बाध्य होना आदि प्रसंगों में व्यंग्य की प्रधानता है। 

(iv) कल्पनानुभूति - लेखक द्वारा मैना-दम्पती के संवाद तथा मैना के विधुर होने या विधवा होने के कारणों को बताने में सरस कल्पनाओं का सहारा लिया है। मैना के आंशिक रूप से घायल होने तथा लंगड़ी चाल से चलने के कारण भाव को भी लेखक ने सरस कल्पनानुभूति प्रदान की है। 

प्रश्न 5. 
आशय स्पष्ट कीजिए 
इस प्रकार कवि की मर्मभेदी दृष्टि ने भाषाहीन प्राणी की करुण दृष्टि के भीतर उस विशाल मानव-सत्य को देखा है, जो मनुष्य, मनुष्य के अन्दर भी नहीं देख पाता। 
उत्तर : 
गुरुदेव ने जब कुत्ते की पीठ पर हाथ फेरा तो कुत्ते का रोम-रोम उनके स्नेह-रस का अनुभव करने लगा। यद्यपि कुत्ते को ईश्वर ने भाषा नहीं दी, परन्तु कवि रवीन्द्र की दृष्टि उसके मर्म के भावों को समझती है। प्रेम-भाव का अनुभव विशाल मानव-सत्य है। साधारण मनुष्य दूसरे मनुष्य के हृदय को इस मानव-भावना का अनुभव नहीं कर पाते, किन्तु कवि की दृष्टि तो उस भाषाहीन मूक-प्राणी के भीतर की उस भावना को समझ कर अनुभव कर लेती है।

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रचना और अभिव्यक्ति - 

प्रश्न 6. 
पशु-पक्षियों से प्रेम इस पाठ की मूल संवेदना है। अपने अनुभव के आधार पर ऐसे किसी प्रसंग से जुड़ी रोचक घटना को कलात्मक शैली में लिखिए। 
उत्तर : 
छात्र अपने किसी पालतू पक्षी-तोता, मैना आदि तथा पालतू पशु-कुत्ता, बिल्ली, गाय, घोड़ी आदि को आधार बनाकर उनके प्रेम, भक्ति, करुणा जैसे अव्यक्त भावों का निरूपण कर स्वयं घटनाक्रम को लिखें। 

भाषा-अध्ययन - 

प्रश्न 7. 
गुरुदेव जरा मुस्करा दिए। 
मैं जब यह कविता पढ़ता हूँ। 
ऊपर दिये गये वाक्यों में एक वाक्य में अकर्मक क्रिया है और दूसरे में सकर्मक। इस पाठ को ध्यान से पढ़कर सकर्मक और अकर्मक क्रिया वाले चार-चार वाक्य छाँटिए। 
उत्तर : 
सकर्मक वाक्य -  

  • मैं उनसे ऐसी बांग्ला में बात करता था। 
  • गुरुदेव ने बाद में एक कविता लिखी। 
  • गुरुदेव ने उस 'दर्शन' शब्द को पकड़ लिया था। 
  • संगीहीन होकर भी कीड़ों का शिकार करती फिरती है। 

अकर्मक वाक्य -  

  • तिमंजले मकान में कुछ दिन रहें। 
  • वे जरा मुस्करा दिये।
  • बड़ी कठिनाई से उन्हें वहाँ लाया जा सका। 
  • गुरुदेव वहाँ बड़े आनंद में थे। 

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प्रश्न 8. 
निम्नलिखित वाक्यों में कर्म के आधार पर क्रिया-भेद बताइए। 
उत्तर :
बाक्य क्रिया-भेद 
(क) मीना कहानी सुनाती है। - सकर्मक 
(ख) अभिनव सो रहा है। - अकर्मक 
(ग) गाय घास खाती है। - सकर्मक 
(घ) मोहन ने भाई को गेंद दी। - सकर्मक 
(ङ) लड़कियाँ रोने लगीं। - अकर्मक 

प्रश्न 9. 
नीचे पाठ में से शब्द-युग्मों के कुछ उदाहरण दिये गये हैं, जैसे-समय-असमय, अवस्था-अनवस्था। इन शब्दों में 'अ' उपसर्ग लगाकर नया शब्द बनाया गया है। 
पाठ में से कुछ शब्द चुनिए और 'अ' एवं 'अन्' उपसर्ग लगाकर नये शब्द बनाइए। 
उत्तर :  

  • अ + चेतन = अचेतन - अन् + उपस्थित = अनुपस्थित 
  • अ + करुण = अकरुण - अन् + एक = अनेक 
  • अ + न्याय = अन्याय - अन् + अधिकार = अनधिकार 
  • अ + चल = अचल - अन् + आवश्यक = अनावश्यक 
  • अ + तिथि = अतिथि - अन् + अन्त = अनन्त 
  • अ + सम्भव = असम्भव - अन् + उत्तर = अनुत्तर 
  • अ + समय = असमय - अन् + उत्तीर्ण = अनुत्तीर्ण
  • अ + ज्ञात = अज्ञात - अन् + आरोग्य = अनारोग्य 
  • अ + सत्य = असत्य - अन् + आदर = अनादर 
  • अ + विश्वास = अविश्वास - अन् + आचार = अनाचार

RBSE Class 9 Hindi एक कुत्ता और एक मैना Important Questions and Answers

प्रश्न 1. 
गुरुदेव ने शान्तिनिकेतन छोड़कर अन्यत्र रहने का निर्णय लिया था - 
(क) मिलने आने वालों से ऊबने के कारण 
(ख) स्वास्थ्य अच्छा न होने के कारण 
(ग) मौज-मस्ती में आकर के 
(घ) शान्ति से रहने के कारण। 
उत्तर :
(ग) मौज-मस्ती में आकर के

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प्रश्न 2. 
ऐसे दर्शनार्थियों से गुरुदेव कुछ भीत-भीत से रहते थे - 
(क) जो समय-असमय मिलने आते थे। 
(ख) जो बिना बुलाये आ जाते थे। 
(ग) जो केवल दर्शन पाने के लिए ही आते थे। 
(घ) जो भीड़ के साथ उपस्थित हो जाते थे। 
उत्तर :
(क) जो समय-असमय मिलने आते थे। 

प्रश्न 3. 
लेखक गुरुदेव से शुरू-शुरू में बात किया करता था - 
(क) हिन्दी में 
(ख) बांग्ला में 
(ग) मराठी में 
(घ) अंग्रेजी में
उत्तर :
(ख) बांग्ला में

प्रश्न 4. 
गुरुदेव ने कुत्ते में दर्शन किए थे - 
(क) आत्म-शक्ति के 
(ख) परा शक्ति के 
(ग) समर्पण शक्ति के 
(घ) प्रेम-शक्ति के। 
उत्तर :
(घ) प्रेम-शक्ति के। 

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प्रश्न 5. 
आधुनिक साहित्यकारों की तुलना लेखक ने की है -
(क) मैना से 
(ख) कुत्ते से 
(ग) कौओं से 
(घ) प्रवासी पक्षी से। 
उत्तर :
(ग) कौओं से

अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्न - 

निर्देश-निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर दिये गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए 

1. आज से कई वर्ष पहले गुरुदेव के मन में आया कि शान्तिनिकेतन को छोड़कर कहीं अन्यत्र जायें। स्वास्थ्य बहुत अच्छा नहीं था। शायद इसलिए, या पता नहीं क्यों, तैय पाया कि वे श्रीनिकेतन के पुराने तिमंजिले मकान में कुछ दिन रहें। शायद मौज में आकर ही उन्होंने यह निर्णय किया हो। वे सबसे ऊपर के तल्ले में रहने लगे। उन दिनों ऊपर तक पहुँचने के लिए लोहे की चक्करदार सीढ़ियाँ थीं, और वृद्ध और क्षीणवपु रवीन्द्रनाथ के लिए उस पर चढ़ सकना असम्भव था। फिर भी बड़ी कठिनाई से उन्हें वहाँ ले जाया जा सका। 

प्रश्न 1. गुरुदेव शान्तिनिकेतन छोड़कर कहाँ रहने लगे थे? 
प्रश्न 2.गुरुदेव ने शान्तिनिकेतन से अन्यत्र जाने का निश्चय क्यों किया? 
प्रश्न 3. गुरुदेव को वहाँ ले जाना कठिन क्यों था? 
प्रश्न 4. गुरुदेव श्रीनिकेतन में सबसे ऊपर के तल्ले में क्यों रहने लगे? 
उत्तर : 
1. गुरुदेव शान्तिनिकेतन छोड़कर श्रीनिकेतन में रहने लगे थे। 

2. गुरुदेव का स्वास्थ्य ठीक नहीं था। शान्तिनिकेतन में मिलने-जुलने वालों की भीड़ लगी रहती थी और एकान्त में रहने का अवसर नहीं मिलता था। वे एकान्त स्थान पर या अपना निवास-स्थान बदल कर शायद मौज में रहना चाहते थे। इन्हीं कारणों से उन्होंने अन्यत्र जाने का निश्चय किया। 

3. श्रीनिकेतन का जो पुराना तिमंजिला मकान था, गुरुदेव उसके सबसे ऊपर वाले तल्ले में रहना चाहते थे, परन्तु ऊपर तक जाने के लिए लोहे की चक्करदार सीढ़ियाँ थीं, जिन पर चढ़ पाना अस्वस्थ और कमजोर शरीर वाले वृद्ध गुरुदेव के लिए सम्भव नहीं था। इसी कारण उन्हें ऊपर के तल्ले तक ले जाना कठिन था। 

4. गुरुदेव का स्वास्थ्य ठीक नहीं था। वे आने-जाने तथा मिलने वालों की भीड़ से बचना चाहते थे। एकान्त तथा सभी के लिए कुछ अगम्य स्थान पर रहने की इच्छा से ही वे सबसे ऊपर के तल्ले में रहने लगे। 

मनुष्य पशु से भी हीन कब और क्यों प्रतीत होता है? - manushy pashu se bhee heen kab aur kyon prateet hota hai?

2. गुरुदेव वहाँ बड़े आनन्द में थे। अकेले रहते थे। भीड़-भाड़ उतनी नहीं होती थी, जितनी शान्तिनिकेतन में। जब हम लोग ऊपर गए तो गुरुदेव बाहर एक कुर्सी पर चुपचाप बैठे अस्तगामी सूर्य की ओर ध्यान-स्तिमित नयनों हम लोगों को देखकर मस्कराए, बच्चों से जरा छेडछाड की, कशल प्रश्न पछे और फिर चप हो रहे। ठीक उसी समय उनका कुत्ता धीरे-धीरे ऊपर आया और उनके पैरों के पास खड़ा होकर पूँछ हिलाने लगा। गुरुदेव ने उसकी पीठ पर हाथ फेरा। वह आँखें मूंदकर अपने रोम-रोम से उस स्नेह-रस का अनुभव करने लगा। गुरुदेव ने हम लोगों की ओर देख कर कहा, "देखा तुमने, यह आ गए। कैसे इन्हें मालूम हुआ कि मैं यहाँ हूँ, आश्चर्य है! और देखो, कितनी परितृप्ति इनके चेहरे पर दिखाई दे रही है।" 

प्रश्न 1. लेखक जब गुरुदेव के पास पहुँचा, तो वे क्या कर रहे थे? 
प्रश्न 2. गुरुदेव श्रीनिकेतन में किस तरह रहते थे? 
प्रश्न 3. गुरुदेव के द्वारा कुत्ते की पीठ पर हाथ फेरने से उसने क्या अनुभव किया? 
प्रश्न 4. गुरुदेव ने कुत्ते के बारे में लेखक से क्या कहा? 
उत्तर : 
1. लेखक जब श्रीनिकेतन के मकान में गुरुदेव के पास पहुँचा, तो उस समय वे अस्ताचल की ओर जाते हुए सूर्य को ध्यान-मुद्रा में देख रहे थे। 

2. गुरुदेव श्रीनिकेतन में अकेले रहते थे, वहाँ पर शान्तिनिकेतन जैसी भीड़-भाड़ नहीं थी। इस कारण वे वहाँ पर आनन्द से रहते थे। 

3. गुरुदेव ने जब कुत्ते की पीठ पर हाथ फेरा, तो वह आँखें मूंदकर अपने रोम-रोम से स्नेह-रस का अनुभव करने लगा। उस समय वह एकदम शान्त तथा परितृप्त-सा हो गया और स्वयं को अहोभागी-सा मानने लगा। 

4. गुरुदेव ने कुत्ते को लक्ष्य कर लेखक से कहा कि इस कुत्ते को कैसे यह मालूम पड़ा कि मैं यहाँ श्रीनिकेतन के तीसरे तल्ले में रह रहा हूँ। यह कुत्ता यहाँ आकर तथा मेरे हाथ का स्पर्श पाकर जो स्नेहानुभूति कर रहा है, जिससे इसके चेहरे पर अत्यधिक परितृप्ति दिखाई दे रही है। इस तरह यह मानवीय संवेदना का परिचय दे रहा है। 

3. "प्रतिदिन प्रातःकाल यह भक्त कुत्ता स्तब्ध होकर आसन के पास तब तक बैठा रहता है, जब तक अपने हाथों के स्पर्श से मैं इसका संग नहीं स्वीकार करता। इतनी-सी स्वीकृति पाकर ही उसके अंग-अंग में आनन्द का प्रवाह बह उठता है। इस वाक्य-हीन प्राणिलोक में सिर्फ यही एक जीव अच्छा-बुरा सबको भेदकर सम्पूर्ण मनुष्य को देख सका है, उस आनन्द को देख सका है, जिसे प्राण दिया जा सकता है, जिसमें अहैतुक प्रेम ढाल दिया जा सकता है, जिसकी चेतना असीम चैतन्य लोक में राह दिखा सकती है।

जब भी मैं इस मूक-हृदय का प्राणपण आत्म निवेदन देखता हूँ, जिसमें वह अपनी दीनता बताता रहता है, तब मैं यह सोच ही नहीं पाता कि उसने अपने सहज बोध से मानव-स्वरूप में कौनसा मूल्य आविष्कार किया है, इसकी भाषाहीन दृष्टि की करुण व्याकुलता जो कुछ समझती है, उसे समझा नहीं पाती और मुझे इस सृष्टि में मनुष्य का सच्चा परिचय समझा देती है।" 

प्रश्न 1.गुरुदेव ने कुत्ते में कौनसी शक्ति के दर्शन किये? बताइए।
प्रश्न 2. गुरुदेव कुत्ते का संग कैसे स्वीकारते थे और उसका कुत्ते पर क्या प्रभाव पड़ता था? 
प्रश्न 3. 'मूक हृदय का प्राणपण आत्मनिवेदन' का क्या अर्थ है?
प्रश्न 4. किसने मनुष्य का सच्चा प्रेम समझाने में गुरुदेव की सहायता की और कैसे? 
उत्तर : 
1. गुरुदेव ने कुत्ते में समर्पण भावना और निःस्वार्थ प्रेम को देखकर उसकी अहैतुक प्रेम-शक्ति के दर्शन किये अर्थात् निःस्वार्थ प्रेम-भावना का हर तरह से प्रदर्शन-आचरण करने में उसकी चेतना-शक्ति अनुपम थी। 

2. गुरुदेव अपने हाथों से स्पर्श करके या पीठ सहला करके कुत्ते का संग स्वीकारते थे। इससे कुत्ता रोम-रोम से आनन्द का अनुभव करने लगता था। 

3. 'मूक हृदय का प्राणपण आत्मनिवेदन' का आशय है अपने प्राणों की बाजी लगाकर चुपचाप अपने को समर्पित करना। कुत्ते में यह गुण होता है कि वह चुपचाप अपने आपको अपने स्वामी के लिए समर्पित कर देता है। 

4. गुरुदेव के भक्त कुत्ते ने गुरुदेव को मनुष्य का सच्चा स्वरूप समझाने में सहायता की। सच्चा मनुष्य वही है जो स्वयं को चुपचाप परमात्मा के लिए अर्पित कर दे। उसमें नि:स्वार्थ प्रेम हो। कुत्ते ने यह नि:स्वार्थ प्रेम अपने चरित्र से प्रकट कर दिया। 

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4. एक दूसरी बार मैं सवेरे गुरुदेव के पास उपस्थित था। उस समय लंगड़ी मैना फुदक रही थी। गुरुदेव ने कहा, "देखते हो, यह यूथभ्रष्ट है। रोज फुदकती है, ठीक यहीं आकर। मुझे इसकी चाल में एक करुण-भाव दिखाई देता है।"गुरुदेव ने अगर कह न दिया होता, तो मुझे उसका करुण-भाव एकदम नहीं दीखता मेरा अनुमान था कि मैना करुण भाव दिखाने वाला पक्षी है ही नहीं। वह दूसरों पर अनुकम्पा ही दिखाया करती है। तीन-चार वर्ष से मैं एक नये मकान में रहने लगा हूँ। मकान के निर्माताओं ने दीवारों में चारों ओर एक-एक सूराख छोड़ रखी है। यह कोई आधुनिक वैज्ञानिक खतरे का समाधान होगा। सो, एक मैना-दम्पती नियमित भाव से प्रतिवर्ष यहाँ गृहस्थी जमाया करते हैं, तिनके और चीथड़ों का अम्बार लगा देते हैं। भले मानस गोबर के टुकड़े तक ले आना नहीं भूलते। 

प्रश्न 1. 'यह यूथभ्रष्ट है।' यह किसके लिए और किस आशय से कहा गया है? 
प्रश्न 2. गुरुदेव ने लंगड़ी मैना को लक्ष्य करके लेखक से क्या कहा? 
प्रश्न 3. मैना-दम्पति अपनी गृहस्थी जमाने के लिए क्या करते थे?
प्रश्न 4. लंगडी मैना की चाल को देखकर लेखक क्या सोचने लगा? 
उत्तर : 
1. यह अकेली फुदकने वाली लंगड़ी मैना के लिए कहा गया है। वह मैना अकेली ही थी, उसका कोई साथी नहीं था। इससे लगता था कि वह अपने झुण्ड अथवा समुदाय से अलग हो गई थी। 

2. यह मैना यहाँ आकर रोज फुदकती है, यह यूथभ्रष्ट है। इसकी चाल में मुझे करुण भाव दिखाई देता है। 

3. मैना-दम्पति अपनी गृहस्थी जमाने के लिए दीवार के सुराख में तिनके, चिथड़ों का अम्बर लगा लेते थे। घोंसला अच्छा बने इसके लिए गोबर के टुकड़ों को भी लगा लेते थे। 

4. लंगड़ी मैना की चाल देख कर गुरुदेव के बताये अनुसार लेखक सोचने लगा कि मेरे अनुसार यह करुण भाव दिखाने वाला पक्षी नहीं है, पर यह तो दूसरों पर अनुकम्पा ही दिखाया करती है। 

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5. इस प्रकार की मैना कभी करुण हो सकती है, यह मेरा विश्वास ही नहीं था। गुरुदेव की बात पर मैंने ध्यान से देखा तो मालूम हुआ कि सचमुच ही उसके मुख पर एक करुण भाव है। शायद वह विधुर पति था, जो पिछली स्वयंवर-सभा के युद्ध में आहत और परास्त हो गया था। या विधवा पत्नी है, जो पिछले बिडाल के आक्रमण के समय पति को खोकर युद्ध में ईषत् चोट खाकर एकान्त-विहार कर रही है। हाय, क्यों इसकी ऐसी दशा है! शायद मैना को लक्ष्य करके गुरुदेव ने बाद में एक कविता लिखी थी। 

प्रश्न 1. लेखक की मैना के विषय में क्या राय थी? उसे क्या विश्वास न हो सका? 
प्रश्न 2. मैना के मुख पर व्याप्त करुण भाव का ज्ञान लेखक को कब हुआ? 
प्रश्न 3. लेखक किन कारणों से लंगड़ी मैना को विधुर या विधवा मानने लगा? 
प्रश्न 4. गुरुदेव ने मैना की किन विशेषताओं को लेकर उस पर कविता लिखी? 
उत्तर : 
1. लेखक की मैना के विषय में यही राय थी कि वह क्या करुण हो सकती है। परन्तु गुरुदेव की बात पर जब ध्यान से देखा तो मैना के चेहरे पर करुण भाव था। 

2. मैना के मुख पर व्याप्त करुण भाव का ज्ञान लेखक को तब हुआ, जब उसने गुरुदेव की बात पर ध्यान से विचार किया और पक्षियों के प्रति संवेदनशीलता अपनायी। 

3. लेखक ने देखा कि मैना लंगड़ी है और अकेले घूम रही है। उसके मुख पर करुणा और स्वाभिमान दोनों ही हैं। उसकी आँखों में न धोखा खाने का विरोध है, न वैराग्य। इसलिए उसकी यह कल्पना ठीक है कि वह अवश्य घायल विधवा पत्नी है या विधुर पति। 

4. लंगड़ी मैना करुण भाव से पूरित थी। वह निडर और स्वाभिमानी विधवा पत्नी या विधुर पति था। एकाकी जीवन जीते हुए भी निडर होकर चहल-पहल करती हुई निर्वासन का दण्ड भोग रही है।

बोधात्मक प्रश्न - 

प्रश्न 1. 
"पशुओं में भी मानवीय संवेदना होती है।" इस कथन को सप्रमाण स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
पशुओं में भी मानवीय संवेदना होती है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि गुरुदेव का स्वामिभक्त कुत्ता उनके जीते-जी उनका प्रेम पात्र बना रहा बल्कि उनकी मृत्यु के बाद भी उनसे जुड़ा रहा। वह शोकग्रस्त समाज के समान गम्भीर रूप से गुरुदेव की चिता भस्म के साथ दूसरे आश्रमवासियों के साथ उत्तरायण तक गया फिर वह चिता-भस्म के कलश के पास थोड़ी देर तक चुपचाप बैठा भी रहा। इससे स्पष्ट होता है कि पशुओं में भी मानवीय संवेदना होती है।

  प्रश्न 2. 
"दर्शनार्थी लेकर आए हो क्या?" रवीन्द्रनाथ टैगोर लेखक से ऐसा क्यों पूछा करते थे? 
उत्तर : 
लेखक प्रायः देर-सवेर किसी दर्शनार्थी को लेकर रवीन्द्रनाथ टैगोर के पास पहुँच जाता था। पर वे नहीं चाहते थे लेखक असमय किसी को मेरे पास लाये, वह भी केवल दर्शन पाने के लिए। उन्हें दर्शन देना व्यंग्य जैसा प्रतीत होता था। इसलिए जब कभी लेखक उनके पास पहुँचता था तब वे व्यंग्य में उससे यही पूछा करते थे-"दर्शनार्थी लेकर आए हो क्या?"

प्रश्न 3. 
श्रीनिकेतन में कुत्ते को आया देखकर आश्चर्य होने का क्या कारण था? 
उत्तर : 
श्रीनिकेतन से शान्तिनिकेतन की दूरी लगभग दो मील है। गुरुदेव कहाँ रह रहे हैं। यह भी उस कुत्ते को किसी ने नहीं बताया था और न किसी ने उसे श्रीनिकेतन के पुराने मकान तक जाने का रास्ता बताया था। फिर भी अपने स्वामी का स्नेह पाने के लिए वह वहाँ पहुँच गया था और गुरुदेव के हाथ के स्पर्श को पाकर स्नेह-रस का अनुभव करने लगा था। इसी बात पर गुरुदेव तथा लेखक आदि सभी को आश्चर्य हो रहा था। 

मनुष्य पशु से भी हीन कब और क्यों प्रतीत होता है? - manushy pashu se bhee heen kab aur kyon prateet hota hai?

प्रश्न 4. 
कुत्ते को लक्ष्य करके लिखी गई कविता पढ़ते समय लेखक के सामने कौनसी घटना प्रत्यक्ष हो जाती थी? 
उत्तर : 
गुरुदेव द्वारा कुत्ते को लक्ष्य करके लिखी गई कविता को पढ़ते समय लेखक श्रीनिकेतन के तितल्ले पर घटित वह घटना प्रत्यक्ष-सी हो जाती थी, जिसमें गुरुदेव ने सामने आकर पूँछ हिलाने वाले अपने कुत्ते की पीठ पर हाथ फेरा और वह आँखें मूंद कर अपने रोम-रोम से उस अपरिमित स्नेह-रस का अनुभव करने लगा। उस समय उस मूक-हृदय का प्राणपण आत्म-निवेदन उनकी आँखों के सामने साकार हो जाता था। 

प्रश्न 5. 
"एक आश्चर्य की बात और इस प्रसंग में उल्लेख की जा सकती है।" वह आश्चर्यजनक उल्लेखनीय बात क्या है? 
उत्तर : 
गुरुदेव के निधन के बाद उनका चिता-भस्म कोलकाता से आश्रम में लाया गया। उस समय भी उनका पालतू कुत्ता सहज-बोध के बल पर आश्रम के द्वार तक आया और चिता-भस्म के साथ सभी आश्रमवासियों के साथ शान्त गम्भीर भाव से उत्तरायणं तक गया। सबसे आगे आचार्य क्षितिमोहन सेन चल रहे थे। उन्होंने लेखक को बताया कि वह कुत्ता चिता-भस्म के कलश के पास थोड़ी देर चुप भी बैठा रहा। उस कुत्ते के प्रसंग में यह आश्चर्यजनक और उल्लेखनीय बात थी। 

प्रश्न 6. 
लंगड़ी मैना को लक्ष्य करके गुरुदेव ने लेखक से क्या कहा? 
उत्तर : 
एक बार लेखक गुरुदेव के साथ उनके बगीचे में गया। वहाँ पर एक लंगड़ी मैना फुदक रही थी। उसे लक्ष्य करके गुरुदेव ने लेखक से कहा कि "देखते हो, यह यूथभ्रष्ट है। रोज फुदकती है, ठीक यहीं आकर। मुझे इसकी चाल में एक करुण भाव दिखाई देता है।" इस तरह गुरुदेव ने उस मैना के स्वभाव एवं अनुभूति आदि को लेकर बताया कि पक्षी जैसी मूक प्राणी होकर भी मैना प्रेम, दया आदि भावों को सहजता से व्यक्त कर देती है। 

मनुष्य पशु से भी हीन कब और क्यों प्रतीत होता है? - manushy pashu se bhee heen kab aur kyon prateet hota hai?

प्रश्न 7. 
लेखक ने लंगड़ी मैना के बारे में क्या-क्या सोचा? बताइये। 
उत्तर : 
लेखक ने लंगड़ी मैना के बारे में सोचा कि शायद वह कोई विधुर पति है, जो पिछली स्वयंवर सभा के युद्ध में घायल और पराजित हो गया था। दूसरी बात यह भी सोची कि वह कोई शायद विधवा पत्नी है जिसका पति बिडाल से लड़ते-लड़ते शहीद हो गया है और वह भी थोड़ी घायल होकर अकेले दिन काट रही है। 

प्रश्न 8. 
लेखक ने रवीन्द्रनाथ के सन्दर्भ में किस घटना को आश्चर्यजनक कहा और क्यों? 
उत्तर : 
लेखक ने गुरुदेव की चिता भस्म को कोलकाता से उनके आश्रम में लाते समय उनके भक्त कुत्ता को भस्म के साथ-साथ चलते देखा। साथ ही वह अन्य लोगों के साथ-साथ उत्तरायण दिशा तक गया और वह कुछ देर तक चिता भस्म के कलश के पास बैठा भी रहा। कुत्ते के मन में जागी ऐसी मानवीय सहानुभूति आश्चर्यजनक थी। 

प्रश्न 9. 
'एक कुत्ता और एक मैना' निबन्ध का मूल भाव या केन्द्रीय भाव स्पष्ट कीजिए। . 
उत्तर : 
'एक कुत्ता और एक मैना' निबन्ध में यह व्यंजित है कि केवल मानव ही पशु-पक्षियों के प्रति संवेदनशील एवं प्रेम-भाव नहीं रखता है, अपितु पशु-पक्षी भी परिचितों के प्रति प्रेम, भक्ति, विनोद और करुणा जैसे मानवीय भावों का प्रदर्शन करते हैं। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर का पालतू कुत्ता उनसे जितना समर्पण भाव और आत्मीयता रखता था, एक लंगड़ी मैना. जितनी निडर होकर नजदीक आती रहती थी, उससे भी यही प्रतीत होता है कि मानवों की तरह पशु-पक्षियों में भी संवेदनशीलता होती है। इस तरह प्रस्तुत निबन्ध के द्वारा सभी जीवों से प्रेम करने की प्रेरणा दी गई है। यही मल भाव या केन्द्रीय भाव है।

एक कुत्ता और एक मैना Summary in Hindi

लेखक-परिचय - ललित-निबन्धकार आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1907 में गाँव आरत दूबे का छपरा, जिला बलिया (उ.प्र.) में हुआ। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने शान्तिनिकेतन, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय तथा पंजाब विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया। साहित्य का इतिहास, आलोचना, शोध, उपन्यास और निबन्ध-लेखन के क्षेत्र में इनका योगदान विशेष उल्लेखनीय है। ललित-निबन्धों के लेखन में इनकी अनुपम विशेषता मानी जाती है। इनका निधन सन् 1979 में हुआ। 

पाठ-सार - एक कृत्ता और एक मैना' नामक संस्मरण निबन्ध गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के आवास के कुत्ते तथा मैना के विषय में लिखा गया है। एक बार स्वास्थ्य ठीक न रहने से गुरुदेव शान्तिनिकेतन छोड़कर श्रीनिकेतन के तिमंजिले मकान में आ गये। एक दिन लेखक सपरिवार उनसे मिलने गया तभी गुरुदेव का कुत्ता उनके पास आया, तो उन्होंने उसकी पीठ सहलाई। इसी कुत्ते पर उन्होंने एक कविता भी लिखी, जिसमें पशु-पक्षियों के प्रति मानवीय प्रेम को प्रदर्शित किया गया है। जब गुरुदेव का निधन हुआ, तब उनकी चिता की भस्म को आश्रम में लाया गया। उस समय भी वह कुत्ता आया और भस्म के कलश के पास कुछ देर बैठा रहा। इस घटना से पूर्व लेखक गुरुदेव के साथ बगीचे में टहल रहा था। वहाँ पर एक लंगड़ी मैना को देखकर गुरुदेव ने कहा कि यह यूथभ्रष्ट है।

इसकी चाल में करुणा का भाव है। उन्होंने बताया शायद यह विधुर पति है अथवा विधवा पत्नी, जिससे इसे एकाकी भटकना पड़ रहा है। इसी मैना को लक्ष्यकर गुरुदेव ने एक कविता लिखी कि "इनके जीवन में कहाँ गाँठ पड़ी है। यही सोच रहा हूँ। इसकी चाल में वैराग्य का गर्व भी तो नहीं है। दो आग-सी जलती आँखें भी तो नहीं दिखतीं।" इस कविता को पढ़ने पर लेखक को गुर मर्मभरी दृष्टि का आभास हुआ और वह सोचने लगा कि कवि की दृष्टि कितनी संवेदनामय होती है। 

मनुष्य पशु से भी हीन कब और क्यों प्रतीत होता है? - manushy pashu se bhee heen kab aur kyon prateet hota hai?

कठिन-शब्दार्थ : 

  • तल्ला = मंजिल। 
  • क्षीणवपु = कमजोर शरीर वाला। 
  • प्रगल्भ = वाचाल। 
  • अनवस्था = कठिन अवस्था। 
  • ध्यान-स्तिमित = ध्यान की मुद्रा में स्थित। 
  • आरोग्य = नीरोग। 
  • अहतुक = बिना कारण। 
  • प्राणपण = जान की बाजी। 
  • तितल्ला = तीसरी मंजिल। 
  • अपरिसीम = असीमित। 
  • मोटो = उद्देश्य। 
  • यूथभ्रष्ट = अपने समूह से अलग हुआ। 
  • मुखरित = प्रकट। 
  • आहत = घायल। 
  • बिडाल = बिलाव। 
  • ईषत् = कुछ, थोड़ी। 
  • अभियोग = आरोप।
  • मर्मस्थल = कोमल स्थान। 

मनुष्य पशु से भी हीन क्यों है?

चाणक्य इस श्लोक के माध्यम से बताते हैं कि मनुष्य किस प्रकार पशुओं से अलग है और कौन सी प्रवृति मनुष्य को श्रेष्ठ बनाती है. संसार के सभी जीवों की तरह मनुष्य भी उदार-पोषण, भय, निद्रा, संभोग और संतानोत्पति का काम करता है.

रहीम ने मनुष्य को पशु से भी तुच्छ क्यों माना है?

सहृदयता नहीं होती, वे पशु से भी तुच्छ होते हैं। (ग) रैदास ने 'गरीब निवाजु' ईश्वर को कहा है। उनके अनुसार ईश्वर दीन-दयालु हैं, वे दोनों की रक्षा करते हैं।

मनुष्य और पशु में क्या अंतर है मनुष्य कहलाने का सच्चा अधिकारी कौन है?

पशु और मनुष्य के बीच अनेक भिन्नताएं हैं। इन भिन्नताओं में एक भिन्नता महत्वपूर्ण है कि मनुष्य को अपने पुण्यकर्मो और स्व-श्रम से विद्या, धन व शक्ति जिस रूप में प्राप्त हो जाती है वैसी प्राप्ति पशुओं को कभी नहीं होती।

मनुष्य को पशु बनने से कौन रोकती है?

हिंसा और पापाचार का दानवी साम्राज्य इस बात का द्योतक है कि मानव की विचार-शक्ति, जो उसे पशु बनने से रोकती है, उसका साथ देती है। )