भारत निर्वाचन आयोग (अंग्रेज़ी: Election Commission of India) एक स्वायत्त एवं अर्ध-न्यायिक संस्थान है जिसका गठन भारत में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से विभिन्न से भारत के प्रातिनिधिक संस्थानों में प्रतिनिधि चुनने के लिए किया गया था। भारतीय चुनाव आयोग की स्थापना 25 जनवरी 1950 को की गयी थी। संरचनाआयोग में वर्तमान में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त होते हैं। जब यह पहले पहल 1950 में गठित हुआ तब से और 15 अक्टूबर, 1989 तक केवल मुख्य निर्वाचन आयुक्त सहित यह एक एकल-सदस्यीय निकाय था। 16 अक्टूबर, 1989 से 1 जनवरी, 1990 तक यह आर. वी. एस. शास्त्री (मु.नि.आ.) और निर्वाचन आयुक्त के रूप में एस.एस. धनोवा और वी.एस. सहगल सहित तीन-सदस्यीय निकाय बन गया। 2 जनवरी, 1990 से 30 सितम्बर, 1993 तक यह एक एकल-सदस्यीय निकाय बन गया और फिर 1 अक्टूबर, 1993 से यह तीन-सदस्यीय निकाय बन गया।[2] मुख्य चुनाव आयुक्तचुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एवं कार्यावधिमुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति भारत का राष्ट्रपति करता है। मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 वर्ष या आयु 65 साल, जो पहले हो, का होता है जबकि अन्य चुनाव आयुक्तों का कार्यकाल 6 वर्ष या आयु 62 साल, जो पहले हो, का होता हैं। चुनाव आयुक्त का सम्मान और वेतन भारत के सर्वोच्च न्यायलय के न्यायधीश के सामान होता है। मुख्य चुनाव आयुक्त को संसद द्वारा महाभियोग के जरिए ही हटाया जा सकता हैं। भारत निर्वाचन आयोग के पास विधानसभा, लोकसभा, राज्यसभा और राष्ट्रपति आदि चुनाव से सम्बंधित सत्ता होती है जबकि ग्रामपंचायत, नगरपालिका, महानगर परिषद् और तहसील एवं जिला परिषद् के चुनाव की सत्ता सम्बंधित राज्य निर्वाचन आयोग के पास होती है। निर्वाचन आयोग का कार्य तथा कार्यप्रणाली1 निर्वाचन आयोग के पास यह उत्तरदायित्व है कि वह निर्वाचनॉ का
पर्यवेक्षण, निर्देशन तथा आयोजन करवाये वह राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति, संसद, राज्यविधानसभा के चुनाव करता है निर्वाचन आयोग की शक्तियाँसर्वोच्च न्यायालय के निर्णयानुसार अनु 324[1] मे निर्वाचन आयोग की शक्तियाँ कार्यपालिका द्वारा नियंत्रित नहीं हो सकती उसकी शक्तियां केवल उन निर्वाचन संबंधी संवैधानिक उपायों तथा संसद निर्मित निर्वाचन विधि से नियंत्रित होती है निर्वाचन का पर्यवेक्षण, निर्देशन, नियंत्रण तथा
आयोजन करवाने की शक्ति मे देश मे मुक्त तथा निष्पक्ष चुनाव आयोजित करवाना भी निहित है जहां कही संसद विधि निर्वाचन के संबंध मे मौन है वहां निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिये निर्वाचन आयोग असीमित शक्ति रखता है यधपि प्राकृतिक न्याय, विधि का शासन तथा उसके द्वारा शक्ति का सदुपयोग होना चाहिए भारत मे निर्वाचन सुधारनिम्न चरणों के माध्यम से समझ सकते है- प्रथम चरण-(1950 -1996) 1.मतदान की आयु 18 वर्ष निर्धारित(61 वे संविधान संशोधन 2.फोटोयुक्त पहचान पत्र 3.evm का प्रचलन 4. दो से अधिक निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने पर पाबन्दी 5.उम्मीदवार की death पर चुनाव कैंसिल नही होना द्वितीय चरण-1996-2000 1.राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति के चुनाव में क्रमसः 50-50,20-20 अनुमोदक व प्रस्तावक 2.जमानत धन 15000 रू तय 3.1999 में पोस्टल बैलेट की सुरुआत तृतीय चरण(2000-अबतक) 1.vvpat 2.प्रॉक्सी मतदान 3exitpoll प्रतिबंध 4.nota का प्रावधान 5.25 जनवरी राष्ट्रीय मतदाता दिवस 6.20000 से ज्यादा चुुुनन o खर्च पर निर्वाचन आयोग को जानकारी 7.पिंक बूथ 8.जीपीएस आधारित evm 9.vvpat से मत गड़ना 10.c- विजिल app(100 मिन.विवाद निपटने हेतु) अधिनियम संशोधन 1988 से इस प्रकार के संशोधन किये गये हैं।
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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