लखनवी अंदाज पाठ के आधार पर बताइए कि लेखक ने किया खाने से मना क्यों किया? - lakhanavee andaaj paath ke aadhaar par bataie ki lekhak ne kiya khaane se mana kyon kiya?

'लखनवी अंदाज़' पाठ के आधार पर बताइए कि लेखक ने खीरा खाने से मना क्यों किया ?

लेखक कुछ समय पहले नवाब साहब द्वारा रखे गए खीरे खाने के आमंत्रण को ठुकरा चुके थे, अतः अब आत्मसम्मान निभाना आवश्यक समझने के कारण उन्होंने खीरा खाने से इंकार कर दिया। 

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विषयसूची

  • 1 लखनवी अंदाज पाठ के आधार पर बताइए कि लेखक ने खीरा खाने से मना क्यों किया?
  • 2 नवाब साहब का मुंह प्लावित क्यों हो रहा था?
  • 3 लेखक खीरा क्यों नहीं खाना चाहता था?
  • 4 लेखक ने क्या कह कर खीरा खाने से मना कर दिया?
  • 5 ठाली बैठने पर लेखक की क्या आदत थी?
  • 6 लेखक को देखकर नवाब साहब को असुविधा क्यों हुई?

लखनवी अंदाज पाठ के आधार पर बताइए कि लेखक ने खीरा खाने से मना क्यों किया?

इसे सुनेंरोकेंलेखक ने खीरा खाने से मना इसलिए कर दिया है क्योंकि जिस तरह नवाब साहब ने उनसे खीरा खाने के लिए पुछा था उससे साफ-साफ पता लगता है कि नवाब साहब बिल्कुल भी इछुक नहीं थे उन्हें खीरा देने में तो लेखक उनका यही व्यवहार देखकर खीरा खाने से मना कर दिया होगा।

लखनवी अंदाज में लेखक ने किस वर्ग पर कटाक्ष किया है और क्यों?

इसे सुनेंरोकें’लखनवी अंदाज़’ व्यंग्य किस सामाजिक वर्ग पर कटाक्ष करता है? उत्तरः ‘लखनवी अंदाज़’ व्यंग्य सामंती वर्ग पर कटाक्ष करता है, जो आज भी अपनी झूठी शान बनाए रखना चाहता है।

नवाब साहब का मुंह प्लावित क्यों हो रहा था?

इसे सुनेंरोकेंनवाब साहब ने बहुत करीने से खीरे की फाँकों पर जीरा-मिला नमक और लाल मिर्च की सुर्खी बुरक दी। उनकी प्रत्येक भाव-भंगिमा और जबड़ों के स्फुरण से स्पष्ट था कि उस प्रक्रिया में उनका मुख खीरे के रसास्वादन की कल्पना से प्लावित हो रहा था।

नवाब साहब को क्या गवारा न था?

इसे सुनेंरोकेंAnswer: नवाब साहब की असुविधा और संकोच के कारण का अनुमान करने लगे। संभव है, नवाब साहब ने बिल्कुल अकेले यात्रा कर सकने के अनुमान में किफ़ायत के विचार से सेकंड क्लास को टिकट खरीद लिया हो और अब गवारा न हो कि शहर का कोई सफेदपोश उन्हें मँझले दर्जे में सफर करता देखे। …

लेखक खीरा क्यों नहीं खाना चाहता था?

इसे सुनेंरोकेंनवाब साहब की भाव-भंगिमा देखकर लेखक के मन में यह विचार आया कि नवाब साहब का मुँह खीरे के स्वाद की कल्पना से ही भर गया है। पूर्व में इनकार कर चुकने के कारण आत्मसम्मान की रक्षा के लिए लेखक ने खीरा खाने से इंकार कर दिया।

लेखक ने नवाब साहब के खीरे खाने के आग्रह को क्यों नकार दिया था जबकि लेखक के मुँह में पानी भर आया था?

इसे सुनेंरोकें➲ लेखक ने नवाब साहब के खीरे खाने के आग्रह को इसलिए नकार दिया क्योंकि लेखक को नवाब साहब का व्यवहार पसंद नहीं आया था। जब लेखक डिब्बे में दाखिल हुआ था तो नवाब साहब ने लेखक से बात करने में कोई रुचि नहीं दिखाई। लेखक की बात का कोई उत्तर नहीं दिया, इसी कारण लेखक के आत्मसम्मान को ठेस पहुंची।

लेखक ने क्या कह कर खीरा खाने से मना कर दिया?

इसे सुनेंरोकेंलेखक ने ‘शुक्रिया’ कहकर मना कर दिया। लेखक ने सोचा कि जब खीरे के स्वाद और गंध की कल्पना से पेट नवाब ने बहुत तरीके से खीरे धोकर छीले, काटे और जीरा मिला भर जाने की डकार आ सकती है तो बिना विचार, घटना और पात्रों नमक-मिर्च बुरककर तौलिए पर सजाते हुए पुनः लेखक से खाने का के इच्छा मात्र से नई कहानी भी बन सकती है।

नवाब साहब की कौन सी बात लेखक को अच्छी नहीं लगी?

इसे सुनेंरोकेंलेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं? लेखक ने डिब्बे में प्रवेश किया तो वहाँ पहले से ही एक सज्जन पुरुष पालथी लगाए सीट पर बैठे थे। उनके सामने खीरे रखे थे। लेखक को देखते ही उनके चेहरे के भाव ऐसे हो गए जैसे लेखक का आना अच्छा नहीं लगा।

ठाली बैठने पर लेखक की क्या आदत थी?

इसे सुनेंरोकेंAnswer: यशपाल-लखनवी अन्दाज़ ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है। लेखक की यह पुरानी आदत थी कि वह जब अकेला होता अथवा खाली होता तो अनेक प्रकार की कल्पनाएं करने लग जाता था क्योंकि वह एक लेखक है इसलिए कल्पना के आधार पर अपनी रचनाएँ करता है।

अंततः नवाब साहब ने खीरे की फाँकों का क्या किया?

इसे सुनेंरोकेंनवाब साहब ने बहुत नजाकत और सलीके से खीरा काटा, उन पर नमक-मिर्च लगाया। उन नमक-मिर्च लगी खीरे की फाँकों को खाया नहीं अपितु सूँघकर खिड़की से बाहर फेंक दिया था। उनकी इस हरकत का यह कारण होगा कि वे एक नवाब थे, जो दूसरों के सामने खीरे जैसी आम खाद्‌य वस्तु खाने में शर्म भव करते थे।

लेखक को देखकर नवाब साहब को असुविधा क्यों हुई?

इसे सुनेंरोकेंलेखक को देखकर उन्हें असुविधा और संकोच हो रहा था। लेखक ने उनकी असुविधा और संकोच के कारण का अनुमान लगाया कि नवाब साहब यह नहीं चाहते होंगे कि कोई उन्हें सेकंड क्लास में यात्रा करते देखें। यह उनकी रईसी के विरुद्ध था। नवाब साहब ने आम लोगों द्वारा खाए जाने वाले खीरे खरीद रखे थे।

लेखक ने खीरा खाने से मना क्यों कर दिया?

नवाब साहब की भाव-भंगिमा देखकर लेखक के मन में यह विचार आया कि नवाब साहब का मुँह खीरे के स्वाद की कल्पना से ही भर गया है। पूर्व में इनकार कर चुकने के कारण आत्मसम्मान की रक्षा के लिए लेखक ने खीरा खाने से इंकार कर दिया।

लखनवी अंदाज पाठ के आधार पर बताइए कि लेखक ने मुँह में पानी आने पर भी खीरा खाने से इंकार क्यों किया?

लेखक नवाब साहब के जबड़ों के स्फुरण से यह जान गया कि नवाब सहाब खीरा खाने को लालायित हो रहे हैं। लेखक नवाब साहब की असलियत भाँप चुका था। लेखक खीरा खाने को पहले मना कर चुका था, इसलिये मुँह में पानी आने पर भी आत्म-सम्मान की खातिर खीरा नहीं खाया

लखनवी अंदाज पाठ के आधार पर बताइए कि लेखक ने खीरा खाने से इनकार क्यों कर दिया?

लेखक ने खीरा खाने से मना इसलिए कर दिया है क्योंकि जिस तरह नवाब साहब ने उनसे खीरा खाने के लिए पुछा था उससे साफ-साफ पता लगता है कि नवाब साहब बिल्कुल भी इछुक नहीं थे उन्हें खीरा देने में तो लेखक उनका यही व्यवहार देखकर खीरा खाने से मना कर दिया होगा।

लखनवी अंदाज़ पाठ के आधार पर बताइए कि लेखक ने यात्रा करने के लिए सेकेंड क्लास का टिकट क्यों खरीदा?

Solution : लेखक ने सेकंड क्लास का टिकट इसलिए खरीदा क्योंकि लेखक का अनुमान था कि सेकंड क्लास का डिब्बा खाली होगा, जिससे वे भीड़ से बचकर नई कहानी के विषय में एकांत में चिंतन करने के साथ-साथ प्राकृतिक दृश्यों की शोभा भी निहार सकेंगे।