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लेखक का मन पढ़ाई में नहीं लगता था क्यों कि?Answer: लेखक का मन पढ़ाई में न लगकर मनोरंजन और खेल-कूद में लगता था । उसकी रूचि कंकरियाँ उछालने गुल्लीडंडा खेलने तथा पतंगबाज़ी में थी।
छोटे भाई का मन पढ़ाई में क्यों नहीं लगता था?छोटे भाई की रूचि की रुचि खेल-कूद, मैदानों की सुखद हरियाली, कनकौए उड़ाने,कंकरियाँ उछालने, कागज़ की तितलियाँ बनाकर उड़ाने, चहारदीवारी पर चढ़कर ऊपर-नीचे कूदने, फाटक पर सवार होकर मोटर गाडी का आनंद तथा मित्रों के साथ बाहर फुटबॉल और बॉलीबॉल खेलने में थी। और इन्हीं सब कारणों से उसका मन पढ़ाई में नहीं लगता था।
लेखक की हिम्मत टूटने के क्या कारण थे?उत्तर: बड़े भाई साहब उपदेश देने की कला में बहुत निपुण थे। वे लेखक को समझाने के लिए ऐसे-ऐसे सूक्ति बाणों का प्रयोग करते थे कि लेखक के पास उनका कोई जवाब नहीं होता। लेखक की हिम्मत टूट जाती थी और उसका दिल पढ़ाई से उचट जाता था। उनकी बातों और डाँट के भय के कारण ही लेखक उनके साये से भी भागता था।
लेखक के दिल के टुकड़े कब हो जाते थे?लेखक के दिल के टुकड़े भाई साहब के उपदेश सुनने से हो जाते थे। लेखक को लगता था कि भाई साहब उपदेश देने की कला में माहिर है। उन्हें सिर्फ मौका चाहिए होता था लेखक को उपदेश देने का।
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