Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़ Textbook Exercise Questions and Answers. Show
JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़JAC Class 9 Hindi धर्म की आड़ Textbook Questions and Answersमौखिक – निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक- दो पंक्तियों में दीजिए – प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. लिखित – (क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए – प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. (ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (पचास-साठ शब्दों में) लिखिए – प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. (ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए – प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. भाषा-अध्ययन – प्रश्न 1.
प्रश्न 2.
प्रश्न 3.
प्रश्न 4.
प्रश्न 5. योग्यता – विस्तार – प्रश्न 1. JAC Class 9 Hindi धर्म की आड़ Important Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. धर्म की आड़ Summary in Hindiलेखक परिचय : जीवन-परिचय – गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म मध्यप्रदेश के ग्वालियर नगर में सन् 1891 ई० में हुआ था। इन्होंने एंट्रेंस परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद कानपुर के करेंसी कार्यालय में नौकरी कर ली थी। सन् 1921 ई० में इन्होंने ‘प्रताप’ साप्ताहिक – पत्र निकाला था। इन्होंने आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी को अपना साहित्यिक गुरु मानकर आज़ादी के लिए संघर्ष करने की प्रेरणादायक रचनाओं की रचना की थी। इन्होंने ऐसी कुछ रचनाओं का अनुवाद भी किया था। स्वतंत्रता आंदोलनों में सक्रिय रूप में भाग लेने के कारण इन्हें कई बार जेल यात्राएँ करनी पड़ी थीं। सन् 1931 ई० में कानपुर में हुए सांप्रदायिक दंगों को शांत करवाते हुए इनकी मृत्यु हो गई थी। इनकी मृत्यु पर गांधी जी ने कहा था कि ‘काश ! ऐसी मौत मुझे मिली होती !’ रचनाएँ – गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपनी रचनाओं में ग़रीबों, किसानों, मज़दूरों तथा समाज के अन्य शोषित वर्गों के प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त करते हुए उनकी दयनीय दशा का यथार्थ चित्रण किया है ‘प्रताप’ साप्ताहिक में इनके लेख देश को आजादी दिलाने के लिए युवा वर्ग को प्रेरित करते थे। इनकी रचनाओं में सांप्रदायिक सद्भाव का स्वर मुखरित होता था। भाषा-शैली – गणेश शंकर विद्यार्थी की भाषा – शैली अत्यंत सरल, सहज, व्यावहारिक तथा प्रभावपूर्ण है। ‘ धर्म की आड़’ लेख में इन्होंने व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग किया है। इनका व्यंग्य अत्यंत तीक्ष्ण तथा मर्मभेदी होता है, जैसे – ‘ इस समय, देश में धर्म की धूम है। उत्पात किए जाते हैं, तो धर्म और ईमान के नाम पर, और ज़िद की जाती है, तो धर्म और ईमान के नाम पर।’ लेखक ने तत्सम प्रधान और लोक प्रचलित उर्दू के शब्दों का भरपूर प्रयोग किया है, जैसे- दुरुपयोग, नेतृत्व, अट्टालिकाएँ, पाश्चात्य, स्वार्थ, शुद्धाचरण, ईश्वरत्व, कायम, दीनदार, मज़हब, बेईमानी, एतराज़, खिलाफ़त, जाहिल, वाजिब। लेखक ने कहीं-कहीं उद्बोधनात्मक शैली का प्रयोग भी किया है, जैसे- ‘सबके कल्याण की दृष्टि से आपको अपने आचरण को सुधारना पड़ेगा और यदि आप अपने आचरण को नहीं सुधारेंगे तो नमाज़ और रोज़े, पूजा और गायत्री आपको देश के अन्य लोगों की आज़ादी को रौंदने और देश-भर में उत्पातों का कीचड़ उछालने के लिए आज़ाद न छोड़ सकेगी।’ इस प्रकार लेखक ने अपने विषय को सहज भाव से व्यक्त करने में सफलता प्राप्त की है। पाठ का सार : ‘धर्म की आड़’ गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा रचित निबंध है। इस पाठ में लेखक ने धर्म के नाम पर लोगों को आपस में लड़ाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करनेवालों पर कटाक्ष किया है। लेखक का मानना है कि इस समय देश में धर्म की धूम है। धर्म और ईमान के नाम पर उत्पात किए जाते हैं। रमुआ पासी और मियाँ धर्म और ईमान की वास्तविकता चाहे जानें या न जानें पर उनके नाम पर मरने-मारने को तैयार हो जाते हैं। देश के सभी शहरों की यही दशा है। आम आदमी बिना कुछ समझे-बूझे कुछ स्वार्थी तत्वों के संकेतों पर उत्पात मचाने लग जाता है। इससे उन स्वार्थी लोगों को नेतृत्व मिल जाता है। वे अपना स्वार्थ सिद्ध कर लेते हैं। आम आदमी धर्म के तत्वों को जानता नहीं है। वह तो यही समझता है कि धर्म और ईमान की रक्षा के लिए अपने प्राण तक दे देना उचित है। इसी का लाभ उठाकर चालाक स्वार्थी लोग उन्हें भड़का देते हैं। पाश्चात्य देशों में धनी और गरीबों के संघर्ष के कारण साम्यवाद, बोल्शोविज़्म आदि का जन्म हुआ था। हमारे देश में ऐसी स्थिति तो नहीं है परंतु धर्म के नाम पर करोड़ों लोगों की शक्ति का दुरुपयोग हो रहा है और इसका लाभ कुछ स्वार्थी लोग उठा रहे हैं। धर्म और ईमान के नाम पर किए जानेवाले इस भीषण व्यापार को रोकने के लिए जब तक साहस और दृढ़ता के साथ प्रयास नहीं किया जाएगा तब तक भारतवर्ष में ऐसे झगड़े बढ़ते ही रहेंगे। लेखक का विचार है कि देश में प्रत्येक व्यक्ति अपने धर्म की उपासना अपने ढंग से करने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए। धर्म और ईमान मन का सौदा हो, ईश्वर और आत्मा के बीच संबंध हो, आत्मा को शुद्ध करने और ऊँचा उठाने का साधन हो। इससे किसी दूसरे व्यक्ति की स्वाधीनता को हानि नहीं पहुँचनी चाहिए। दो भिन्न धर्मों के माननेवालों में टकराव नहीं होना चाहिए। यदि कोई ऐसा कार्य करता है तो उसका यह कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध माना जाए। लेखक ने स्वाधीनता संग्राम के दिनों में उस दिन को सबसे बुरा दिन माना है जब स्वाधीनता आंदोलन में मौलवियों और धर्माचार्यों को स्थान दिया गया था। इसी के परिणामस्वरूप मौलाना अब्दुल बारी तथा शंकराचार्य जैसे लोगों ने देश में मज़हबी पागलपन, प्रपंच और उत्पात का राज्य स्थापित कर दिया था। महात्मा गांधी ने धर्म को सर्वत्र महत्त्व दिया है। उनके अनुसार धर्म का अर्थ ऊँचे और उदार विचारों से था। वे आवाज़ देने, शंख बजाने के स्थान पर शुद्धाचरण और सदाचार को धर्म मानते थे। लेखक भी पाँच समय नमाज़ पढ़ने अथवा दो घंटे तक पूजा करने के बाद दिन-भर बेईमानी करने को उचित नहीं मानता। वह आचरण को सुधारने पर बल देता है। ऐसे आडंबरी धार्मिक और दीनदार व्यक्तियों से तो वह उन नास्तिकों को अच्छा और ऊँचा मानता है, जिनका आचरण अच्छा है जो दूसरों के सुख-दुख का ध्यान रखते हैं और धर्म-ईमान के नाम पर उत्पात मचाना ग़लत समझते हैं। ईश्वर भी ऐसे ही नास्तिकों को प्यार करता है जो मानवता को आदर देते हैं तथा पशुता को त्याग देते हैं। लेखक के अनुसार धर्म क्या होना चाहिए?लेखक के अनुसार धर्म क्या होना चाहिए? D. धर्म, ईश्वर और आत्मा के बीच का संबंध होना चाहिए। Ans: धर्म, ईश्वर और आत्मा के बीच का संबंध होना चाहिए।
धर्म की आड़ पाठ के माध्यम से लेखक क्या संदेश देना चाहते हैं?'धर्म की आड़' पाठ में निहित संदेश यह है कि सबसे पहले हमें धर्म क्या है, यह समझना चाहिए। पूजा-पाठ, नमाज़ के बाद दुराचार करना किसी भी रूप में धर्म नहीं है। अपने स्वार्थ के लिए लोगों को गुमराह कर शोषण करना और धर्म के नाम पर दंगे फसाद करवाना धर्म नहीं है। सदाचार और शुद्ध आचरण ही धर्म है, यह समझना चाहिए।
लेखक की दृष्टि में धर्म और ईमान को किसका सौदा कहा गया है और क्यों?लेखक ने दृष्टि में धर्म और ईमान को मन का सौदा कहा गया है क्योंकि यह व्यक्ति का अधिकार है कि उसका मन किस धर्म को मानना चाहता है। इसके लिए व्यक्ति को पूरी आज़ादी होनी चाहिए। व्यक्ति को कोई धर्म अपनाने या त्यागने के लिए विवश नहीं किया जाना चाहिए।
धर्म की आड़ पाठ के अनुसार धर्म के स्पष्ट चिह्न क्या हैं?धर्म की आड़ पाठ के अनुसार धर्म के दो स्पष्ट चिह्न हैं-शुद्ध आचरण और सदाचार। आज धर्म और ईमान के नाम पर उपद्रव किए जाते हैं और आपसी झगड़े करवाए जाते हैं। स्वार्थ सिद्धि के लिए लड़ाया जाता है। धर्म के नाम पर दंगे होते हैं और धर्म तथा ईमान पर जिद की जाती है।
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