लेखक के अनुसार धर्म किस प्रकार का होना चाहिए ? - lekhak ke anusaar dharm kis prakaar ka hona chaahie ?

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़ Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

JAC Class 9 Hindi धर्म की आड़ Textbook Questions and Answers

मौखिक –

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक- दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
आज धर्म के नाम पर क्या-क्या हो रहा है ?
उत्तर :
आज धर्म के नाम पर उत्पात हो रहे हैं। धर्म के नाम पर लोग जान लेने और देने के लिए तैयार हो जाते हैं। धर्म के नाम पर ज़िद की जाती है

प्रश्न 2.
धर्म के व्यापार को रोकने के लिए क्या उद्योग होने चाहिए ?
उत्तर :
धर्म के व्यापार को रोकने के लिए साहस और दृढ़ता के साथ उद्योग होने चाहिए। धर्म की उपासना के मार्ग में कोई रुकावट न हो तथा प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार अपने धर्म की आराधना कर सके।

लेखक के अनुसार धर्म किस प्रकार का होना चाहिए ? - lekhak ke anusaar dharm kis prakaar ka hona chaahie ?

प्रश्न 3.
लेखक के अनुसार स्वाधीनता आंदोलन का कौन-सा दिन सबसे बुरा था ?
उत्तर :
स्वाधीनता आंदोलन का वह दिन सबसे बुरा था जिस दिन स्वाधीनता के क्षेत्र में खिलाफ़त, मुल्ला, मौलवियों और धर्माचार्यों को स्थान देना आवश्यक समझा गया।

प्रश्न 4.
साधारण-से- साधारण आदमी तक के दिल में क्या बात अच्छी तरह घर कर बैठी है ?
उत्तर :
साधारण-से-साधारण आदमी तक के दिल में यह बात अच्छी तरह घर कर बैठी है कि धर्म और ईमान की रक्षा के लिए प्राण तक दे देना उचित है।

प्रश्न 5.
धर्म के स्पष्ट चिह्न क्या हैं ?
उत्तर :
धर्म के स्पष्ट चिह्न शुद्धाचरण और सदाचार हैं।

लिखित –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
चलते – पुरज़े लोग धर्म के नाम पर क्या करते हैं ?
उत्तर :
कुछ चलते – पुरज़े लोग अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए धर्म के नाम पर आम आदमी को भड़का देते हैं और वह बिना कुछ समझे-बूझे जिधर उन्हें हाँक दिया जाता है उधर ही उत्पात मचाने लगते हैं। वे धर्म-ईमान को जानें या न जानें, धर्म के नाम पर जान देने और जान लेने के लिए तैयार हो जाते हैं।

लेखक के अनुसार धर्म किस प्रकार का होना चाहिए ? - lekhak ke anusaar dharm kis prakaar ka hona chaahie ?

प्रश्न 2.
चालाक लोग साधारण आदमी की किस अवस्था का लाभ उठाते हैं ?
उत्तर :
चालाक लोग यह जानते हैं कि साधारण-से- साधारण आदमी के दिल में यह बात अच्छी तरह बैठी हुई है कि धर्म और ईमान की रक्षा के लिए अपने प्राण तक दे देना उचित है। वह धर्म के वास्तविक स्वरूप से परिचित नहीं होता और परंपरा को निभाना ही अपना धर्म समझता है। उसकी अवस्था का चालाक लोग नाजायज़ फ़ायदा उठाकर धर्म के नाम पर दंगे करवा देते हैं।

प्रश्न 3.
आनेवाला समय किस प्रकार के धर्म को नहीं टिकने देगा ?
उत्तर
आनेवाला समय आडंबरपूर्ण धर्म को टिकने नहीं देगा। वह पाँच समय नमाज़ पढ़ने, दो-दो घंटे पूजा-पाठ करने के बाद दिन-भर बेईमानी करने और दूसरों को तकलीफ़ पहुँचानेवाले धर्म को टिकने नहीं देगा। नमाज़ और रोज़े, पूजा और गायत्री के नाम पर देश में उत्पात नहीं होने दिए जाएँगे।

प्रश्न 4.
कौन-सा कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाएगा ?
उत्तर :
देश में प्रत्येक व्यक्ति को उसके मन के अनुसार धर्म चुनकर अपनी इच्छा के अनुसार पूजा-पाठ करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। दो भिन्न धर्मों के माननेवालों को एक-दूसरे के धार्मिक अनुष्ठानों में बाधा नहीं डालनी चाहिए। यदि किसी धर्म के माननेवाले किसी दूसरे के धार्मिक मामलों में ज़बरदस्ती टाँग अड़ाते हैं तो उनका इस प्रकार का कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाएगा।

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प्रश्न 5.
पाश्चात्य देशों में धनी और निर्धन लोगों में क्या अंतर है ?
उत्तर :
पाश्चात्य देशों में धनी और निर्धन लोगों में बहुत अंतर है। बड़े-बड़े आलीशान महलों में धनी रहते हैं और निर्धन मामूली-सी झोंपड़ी में जीवन व्यतीत करते हैं। धनी निर्धनों की कमाई से ही दिन-प्रतिदिन और अधिक धनवान होते जाते हैं। वे सदा निर्धनों का शोषण करते रहते हैं।

प्रश्न 6.
कौन-से लोग धार्मिक लोगों से अच्छे हैं ?
उत्तर
वे लोग धार्मिक लोगों से अच्छे हैं, जो नास्तिक हैं तथा दूसरों के सुख-दुख का ध्यान रखते हैं। ऐसे लोग धर्म के नाम पर अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए आम आदमी को उकसाते नहीं हैं। इनका आचरण अच्छा होता है। वे मानवतावादी होते हैं। उनमें पशुत्व नहीं होता है।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (पचास-साठ शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले भीषण व्यापार को कैसे रोका जा सकता है ?
उत्तर :
धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले भीषण व्यापार को रोकने के लिए हमें साहस और दृढ़तापूर्वक प्रयास करने होंगे। इसके लिए धर्म की उपासना के मार्ग में किसी प्रकार की बाधा नहीं होनी चाहिए। जो जैसे चाहे उसी प्रकार से अपने धर्म को अपनाकर पूजा-अर्चना करे। दो भिन्न धर्मों को माननेवाले आपस में द्वेष-भाव न रखें। यदि कोई किसी धर्म के माननेवाले के धार्मिक कार्यों में बाधा डाले तो उसे दंडित किया जाए।

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प्रश्न 2.
‘बुद्धि की मार’ के संबंध में लेखक के क्या विचार हैं ?
उत्तर :
‘बुद्धि की मार’ से लेखक का यह तात्पर्य है कि एक साधारण व्यक्ति को धर्म के तत्वों का वास्तविक ज्ञान नहीं होता है। वह तो अपने धर्म गुरुओं द्वारा बताए हुए नियमों तथा परंपराओं के अनुसार आचरण करता रहता है। कुछ स्वार्थी तथा चालाक धर्मांध लोग अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए ऐसे आम लोगों को दूसरे धर्मवालों के विरुद्ध इस प्रकार भड़का देते हैं कि वे बिना सोचे-समझे धर्म के नाम पर मरने-मारने के लिए तैयार हो जाते हैं। इस प्रकार उनकी बुद्धि पर परदा पड़ जाता है और वे उत्पात मचाना शुरू कर देते हैं। इसी को ‘बुद्धि की मार’ कहा गया है। इस स्थिति में सोचने-समझने की शक्ति समाप्त हो जाती है।

प्रश्न 3.
लेखक की दृष्टि में धर्म की भावना कैसी होनी चाहिए ?
उत्तर :
लेखक का मानना है कि धर्म की उपासना के मार्ग में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए। जिसका मन जिस प्रकार चाहे, उसी प्रकार धर्म की भावना को अपने मन में जगाने के लिए स्वतंत्र हो। धर्म मन का सौदा हो, ईश्वर और आत्मा के बीच का संबंध हो, आत्मा को शुद्ध करने और ऊँचे उठाने का साधन हो। दो भिन्न धर्मों के माननेवालों के बीच टकराव नहीं होना चाहिए। जो व्यक्ति जैसा धर्म अपनाना चाहे उसे वैसा धर्म अपनाने और मानने की आज़ादी मिलनी चाहिए।

प्रश्न 4.
महात्मा गांधी के धर्म संबंधी विचारों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
महात्मा गांधी ने धर्म को सर्वत्र मान्यता दी है। वे जीवन का प्रत्येक कार्य धर्म के अनुसार करते थे। धर्म से उनका तात्पर्य आडंबरों से नहीं था। वे धर्म का अर्थ जीवन में ऊँचे तथा उदार भावों को अपनाना मानते थे। वे ऐसी पूजा-पाठ, नमाज़ पढ़ना आदि व्यर्थ मानते थे जिसके बाद मनुष्य दिन-भर बेईमानी करता रहे। वे शुद्ध आचरण तथा सज्जनतापूर्वक जीवन-यापन करने को ही धर्म मानते थे।

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प्रश्न 5.
सबके कल्याण हेतु अपने आचरण को सुधारना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर :
लेखक का मानना है कि यदि हम समाज को धर्मानुसार चलाना चाहते हैं तो हमें अपने आचरण को सुधारना होगा। यदि हमारा आचरण अच्छा नहीं होगा तो सारा समाज ही भ्रष्ट हो जाएगा। लोग मुँह में राम बगल में छुरी जैसा आचरण करने लगेंगे। सर्वत्र उत्पात होंगे। एक दूसरे का गला काटने को सब तैयार हो जाएँगे। यदि हम अपना आचरण सुधार लेंगे तो हमारी देखा-देखी अन्य लोग भी अपना आचरण सुधार लेंगे। इस प्रकार एक के आचरण के सुधरने से सारा समाज सुधर जाएगा तथा सबका कल्याण होगा।

(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1.
उबल पड़ने वाले साधारण आदमी का इसमें केवल इतना ही दोष है कि वह कुछ भी नहीं समझता-बूझता, और दूसरे लोग उसे जिधर जोत देते हैं, उधर जुत जाता है।
उत्तर :
लेखक का मानना है कि आम आदमी को धर्म के संबंध में कुछ भी पता नहीं होता। उसे कुछ स्वार्थी लोग दूसरे धर्मावलंबियों के विरुद्ध इतना अधिक भड़का देते हैं कि वह उनके प्रति गुस्से से भर उठता है। वह गुस्से में अपने समझने-बूझने की शक्ति खो बैठता है और स्वार्थी लोग उसे जिस ओर हाँक देते हैं वह उधर ही चल पड़ता है।

प्रश्न 2.
यहाँ है बुद्धि पर परदा डालकर पहले ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए लेना, और फिर धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के नाम पर अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए लोगों को लड़ाना-भिड़ाना।
उत्तर :
इन पंक्तियों में लेखक उन धर्माचार्यों पर कटाक्ष कर रहा है जो आम आदमी को अपने आडंबरपूर्ण धार्मिक अनुष्ठानों से इतना मोहित कर लेते हैं कि वे उन्हें ही ईश्वर का दूत समझने लगते हैं। वे अपनी सोचने-विचारने की शक्ति खो बैठते हैं। तब ये धर्माचार्य अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए इन आम आदमियों को ईश्वर, धर्म, आत्मा, ईमान आदि का नाम लेकर अन्य धर्मों के माननेवालों के विरुद्ध भड़का कर दंगा-फसाद करा देते हैं।

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प्रश्न 3.
अब तो, आपका पूजा-पाठ न देखा जाएगा, आपकी भलमनसाहत की कसौटी केवल आपका आचरण होगी।
उत्तर :
लेखक का मानना है कि आनेवाले समय में आडंबरपूर्ण तथा बेईमानी भरे धर्म-ईमान के लिए कोई स्थान नहीं रहेगा। इस युग में कोई किसी के पूजा-पाठ के आधार पर उसे सम्मान नहीं देगा बल्कि यह देखा जाएगा कि उसका आचरण कैसा है ? आपके अच्छे आचरण के आधार पर ही आपकी सज्जनता का मूल्यांकन किया जाएगा

प्रश्न 4.
तुम्हारे मानने ही से मेरा ईश्वरत्व कायम नहीं रहेगा, दया करके, मनुष्यत्व को मानो, पशु बनना छोड़ो और आदमी बनो!
उत्तर :
लेखक बेईमान, धोखेबाज़ धर्माचार्यों तथा धार्मिक लोगों की अपेक्षा उन नास्तिकों को श्रेष्ठ मानता है जो अच्छे आचरणवाले हैं तथा दूसरों सुख-दुख में उनका साथ देते हैं। उन पाखंडियों से तो ईश्वर भी यही कहता है कि आप जैसे पाखंडियों के मानने से मेरा ईश्वरत्व दुनिया में कायम नहीं रह सकता। इसलिए तुम मुझपर दया करो और मानवता को मानो। तुम्हें पशुत्व त्याग कर मानव बनना होगा तभी तुम्हें भी ईश्वर मिल सकेगा।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
उदाहरण के अनुसार शब्दों के विपरीतार्थक लिखिए –
उदाहरण: सुगम – दुर्गम
धर्म, ईमान, साधारण, स्वार्थ, दुरुपयोग, नियंत्रित, स्वाधीनता।
उत्तर :

  • धर्म – अधर्म
  • ईमान – बेईमान
  • साधारण – असाधारण
  • स्वार्थ – निःस्वार्थ
  • दुरुपयोग – सदुपयोग
  • नियंत्रित – अनियंत्रित
  • स्वाधीनता – पराधीनता।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित उपसर्गों का प्रयोग करके दो-दो शब्द बनाइए –
ला, बिला, बे, बद, ना, खुश, हर, गैर।
उत्तर :

  • ला – लाचार, लापता।
  • बिला- बिलावजह, बिलाकसूर।
  • बे – बेईमान, बेरहम।
  • बद – बदनाम, बदनियत।
  • ना – नाचीज़, नापसंद।
  • खुश – खुशबू, खुशहाल।
  • हर – हरतरह, हरसाल।
  • गैर- गैरकानूनी, गैरमुल्क।

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प्रश्न 3.
उदाहरण के अनुसार ‘त्व’ प्रत्यय लगाकर पाँच शब्द बनाइए –
उदाहरण: देव + त्व = देवत्व
उत्तर :

  • लघु + त्व = लघुत्व
  • गुरु + त्व गुरुत्व
  • प्रभु + त्व प्रभुत्व
  • देव + त्व = देवत्व
  • ईश्वर + त्व = ईश्वरत्व।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित उदाहरण को पढ़कर पाठ में आए संयुक्त शब्दों को छाँटकर लिखिए –
उदाहरणः चलते-पुरज़े
उत्तर :

  • समझता – बूझता
  • पढ़े – लिखे
  • इने – गिने
  • मन – माना
  • लड़ाना – भिड़ाना
  • भली – भाँति
  • पूजा – पाठ।

प्रश्न 5.
‘भी’ का प्रयोग करते हुए पाँच वाक्य बनाइए –
उदाहरण : आज मुझे बाज़ार होते हुए अस्पताल भी जाना है।
उत्तर :
(क) सलमा तो वहीदा को भी अपने साथ विद्यालय ले जाएगी।
(ख) रोहित भी सैम्सन के साथ मुंबई जाएगा।
(ग) शांता भी कांता के साथ सुबह नौ बजे की लोकल से अँधेरी जाती है।
(घ) अहमद भी अशोक के साथ ट्यूशन पढ़ने जाता है।
(ङ) हमें भी गांधी जी की तरह सत्यवादी बनना चाहिए।

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योग्यता – विस्तार –

प्रश्न 1.
‘धर्म एकता का माध्यम है’ – इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi धर्म की आड़ Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘धर्म की आड़’ निबंध का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘धर्म की आड़’ निबंध के लेखक गणेश शंकर विद्यार्थी हैं। इस निबंध में लेखक ने उन धर्माचार्यों की पोल खोली है जो धर्म की आड़ लेकर जनता को भड़काते हैं तथा एक-दूसरे धर्मावलंबियों को आपस में लड़वाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। लेखक का मानना है कि एक सामान्य व्यक्ति धर्म के रहस्य को समझ नहीं पाता। इसलिए उसके भोलेपन का लाभ तथाकथित धर्म गुरु उठाते हैं। वे उन्हें गुमराह कर दूसरे धर्मवालों से लड़ाते रहते हैं और अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं। लेखक ऐसे लोगों से बचकर मानव-धर्म को अपनाने पर बल देता है। हम सुख-दुख में एक-दूसरे की सहायता करें। हमारा आचरण शुद्ध हो। हम किसी के धार्मिक अनुष्ठानों में बाधक न बनें। हम सबको अपने-अपने धर्म के अनुसार पूजा-पाठ की स्वतंत्रता हो। यही सच्चा धर्म है।

प्रश्न 2.
हमारे देश और पश्चिमी देशों में आम आदमी की डोर किसके हाथ में है और उसमें क्या अंतर है ?
उत्तर :
सभी जगह आम आदमी की शक्ति का दुरुपयोग किया जाता है। हमारे देश में आम आदमी की डोर धर्म के ठेकेदारों के हाथ में है और पश्चिमी देशों में आम आदमी की डोर धनपतियों के हाथ में है। यहाँ आम आदमी को ईश्वर धर्म-कर्म और आत्मा का डर दिखाकर उसे बुद्धिहीन कर दिया जाता है और वह अपने धर्मगुरु के बताए मार्ग पर चलकर उसकी स्वार्थ सिद्धि के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। पश्चिमी देशों में धनपति धन की शक्ति दिखाकर लोगों को अपने प्रभाव में लेते हैं और अपनी इच्छानुसार उनसे और अधिक धन कमाने के लिए काम करवाते हैं।

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प्रश्न 3.
लेखक धार्मिक झगड़ों को समाप्त करने के लिए क्या सुझाव देता है ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार धार्मिक झगड़ों को समाप्त करने के लिए हमें साहस और दृढ़ता के साथ स्वार्थी तत्वों को बेनकाब करना होगा। धर्म और उपासना के मार्ग में किसी भी प्रकार की कोई रुकावट नहीं आने देनी चाहिए। धर्म और ईमान, ईश्वर और आत्मा के मध्य संबंध होना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म की पूजा-अर्चना करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए और कोई भी व्यक्ति किसी के धार्मिक कार्यों में अड़चन न डाले।

प्रश्न 4.
देश की स्वाधीनता के लिए किए जा रहे उद्योग में कौन-सा दिन सबसे बुरा था ? क्यों ?
उत्तर :
देश की स्वाधीनता के लिए किए जा रहे उद्योग में सबसे बुरा दिन वह था जिस दिन स्वाधीनता के क्षेत्र में खिलाफ़त, मुल्ला, मौलवियों और धर्माचार्यों को स्थान देना आवश्यक समझा गया। ऐसा करने से मौलाना अब्दुल बारी और शंकराचार्य जैसे लोगों ने देश में धर्म के नाम पर ढोंग, पागलपन और उत्पात आरंभ कर दिए थे और देश को एक अलग ही दिशा दे दी।

प्रश्न 5.
महात्मा गांधी के अनुसार धर्म क्या है ? हमें उनसे क्या सीखना चाहिए ?
उत्तर :
महात्मा गाँधी जीवन में उच्च विचार और उदार गुण को अपनाने को धर्म मानते हैं। इसके लिए मनुष्य को सदाचारी, सत्यवादी, परोपकारी, सज्जन और सहनशील होना चाहिए। अपने आचरण को शुद्ध रखते हुए सबसे मेल-मिलाप बनाए रखें। सदा दूसरों के सुख-दुख में सहयोगी बनें। हमें गाँधी जी के जीवन से यह सीखना चाहिए कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में धर्म के अनुसार आचरण करना है, जिससे हम एक अच्छा समाज बना सकें। इससे समाज में धर्म के नाम पर उत्पात नहीं होंगे तथा सब परस्पर मिल-जुलकर रहेंगे।

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प्रश्न 6.
ला- मज़हब से क्या अभिप्राय है और ईश्वर इन लोगों से अधिक प्यार क्यों करेगा?.
उत्तर :
ला – मज़हब से अभिप्राय यह है कि ‘जिसका कोई धर्म न हो’ अथवा ‘जो किसी भी धर्म को नहीं मानता हो’ ऐसे लोगों को नास्तिक भी कहा जाता है। ऐसे व्यक्ति किसी भी प्रकार से धार्मिक आडंबरों को नहीं मानते हैं। ईश्वर ऐसे लोगों से अधिक प्यार करेगा जो धर्म के नाम पर दिखावा नहीं करते। जो अच्छे और ऊँचे विचारोंवाले हों। जिनका आचरण शुद्ध हो। जो सुख-दुख में सबका साथ देते हों। इन लोगों की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं होता है।

प्रश्न 7.
‘मनुष्यत्व को मानो, पशु बनना छोड़ो’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
लेखक इस कथन के माध्यम से यह संदेश देना चाहता है कि हमें मानवता को बढ़ावा देना चाहिए। इसके लिए हमें अपने आचरण में मानवतावादी गुणों का विकास करना चाहिए। पशुओं के समान आचरण नहीं करना चाहिए। यदि हम ऐसा आचरण करने लगेंगे तो समाज में धार्मिक उत्पात बंद हो जाएँ, विश्वबंधुत्व की भावना को बल मिलेगा और पशुता का नाश होगा।

धर्म की आड़ Summary in Hindi

लेखक परिचय :

जीवन-परिचय – गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म मध्यप्रदेश के ग्वालियर नगर में सन् 1891 ई० में हुआ था। इन्होंने एंट्रेंस परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद कानपुर के करेंसी कार्यालय में नौकरी कर ली थी। सन् 1921 ई० में इन्होंने ‘प्रताप’ साप्ताहिक – पत्र निकाला था। इन्होंने आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी को अपना साहित्यिक गुरु मानकर आज़ादी के लिए संघर्ष करने की प्रेरणादायक रचनाओं की रचना की थी। इन्होंने ऐसी कुछ रचनाओं का अनुवाद भी किया था। स्वतंत्रता आंदोलनों में सक्रिय रूप में भाग लेने के कारण इन्हें कई बार जेल यात्राएँ करनी पड़ी थीं। सन् 1931 ई० में कानपुर में हुए सांप्रदायिक दंगों को शांत करवाते हुए इनकी मृत्यु हो गई थी। इनकी मृत्यु पर गांधी जी ने कहा था कि ‘काश ! ऐसी मौत मुझे मिली होती !’

रचनाएँ – गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपनी रचनाओं में ग़रीबों, किसानों, मज़दूरों तथा समाज के अन्य शोषित वर्गों के प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त करते हुए उनकी दयनीय दशा का यथार्थ चित्रण किया है ‘प्रताप’ साप्ताहिक में इनके लेख देश को आजादी दिलाने के लिए युवा वर्ग को प्रेरित करते थे। इनकी रचनाओं में सांप्रदायिक सद्भाव का स्वर मुखरित होता था।

भाषा-शैली – गणेश शंकर विद्यार्थी की भाषा – शैली अत्यंत सरल, सहज, व्यावहारिक तथा प्रभावपूर्ण है। ‘ धर्म की आड़’ लेख में इन्होंने व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग किया है। इनका व्यंग्य अत्यंत तीक्ष्ण तथा मर्मभेदी होता है, जैसे – ‘ इस समय, देश में धर्म की धूम है। उत्पात किए जाते हैं, तो धर्म और ईमान के नाम पर, और ज़िद की जाती है, तो धर्म और ईमान के नाम पर।’

लेखक ने तत्सम प्रधान और लोक प्रचलित उर्दू के शब्दों का भरपूर प्रयोग किया है, जैसे- दुरुपयोग, नेतृत्व, अट्टालिकाएँ, पाश्चात्य, स्वार्थ, शुद्धाचरण, ईश्वरत्व, कायम, दीनदार, मज़हब, बेईमानी, एतराज़, खिलाफ़त, जाहिल, वाजिब। लेखक ने कहीं-कहीं उद्बोधनात्मक शैली का प्रयोग भी किया है, जैसे- ‘सबके कल्याण की दृष्टि से आपको अपने आचरण को सुधारना पड़ेगा और यदि आप अपने आचरण को नहीं सुधारेंगे तो नमाज़ और रोज़े, पूजा और गायत्री आपको देश के अन्य लोगों की आज़ादी को रौंदने और देश-भर में उत्पातों का कीचड़ उछालने के लिए आज़ाद न छोड़ सकेगी।’ इस प्रकार लेखक ने अपने विषय को सहज भाव से व्यक्त करने में सफलता प्राप्त की है।

लेखक के अनुसार धर्म किस प्रकार का होना चाहिए ? - lekhak ke anusaar dharm kis prakaar ka hona chaahie ?

पाठ का सार :

‘धर्म की आड़’ गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा रचित निबंध है। इस पाठ में लेखक ने धर्म के नाम पर लोगों को आपस में लड़ाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करनेवालों पर कटाक्ष किया है। लेखक का मानना है कि इस समय देश में धर्म की धूम है। धर्म और ईमान के नाम पर उत्पात किए जाते हैं। रमुआ पासी और मियाँ धर्म और ईमान की वास्तविकता चाहे जानें या न जानें पर उनके नाम पर मरने-मारने को तैयार हो जाते हैं।

देश के सभी शहरों की यही दशा है। आम आदमी बिना कुछ समझे-बूझे कुछ स्वार्थी तत्वों के संकेतों पर उत्पात मचाने लग जाता है। इससे उन स्वार्थी लोगों को नेतृत्व मिल जाता है। वे अपना स्वार्थ सिद्ध कर लेते हैं। आम आदमी धर्म के तत्वों को जानता नहीं है। वह तो यही समझता है कि धर्म और ईमान की रक्षा के लिए अपने प्राण तक दे देना उचित है। इसी का लाभ उठाकर चालाक स्वार्थी लोग उन्हें भड़का देते हैं।

पाश्चात्य देशों में धनी और गरीबों के संघर्ष के कारण साम्यवाद, बोल्शोविज़्म आदि का जन्म हुआ था। हमारे देश में ऐसी स्थिति तो नहीं है परंतु धर्म के नाम पर करोड़ों लोगों की शक्ति का दुरुपयोग हो रहा है और इसका लाभ कुछ स्वार्थी लोग उठा रहे हैं। धर्म और ईमान के नाम पर किए जानेवाले इस भीषण व्यापार को रोकने के लिए जब तक साहस और दृढ़ता के साथ प्रयास नहीं किया जाएगा तब तक भारतवर्ष में ऐसे झगड़े बढ़ते ही रहेंगे।

लेखक का विचार है कि देश में प्रत्येक व्यक्ति अपने धर्म की उपासना अपने ढंग से करने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए। धर्म और ईमान मन का सौदा हो, ईश्वर और आत्मा के बीच संबंध हो, आत्मा को शुद्ध करने और ऊँचा उठाने का साधन हो। इससे किसी दूसरे व्यक्ति की स्वाधीनता को हानि नहीं पहुँचनी चाहिए। दो भिन्न धर्मों के माननेवालों में टकराव नहीं होना चाहिए। यदि कोई ऐसा कार्य करता है तो उसका यह कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध माना जाए।

लेखक ने स्वाधीनता संग्राम के दिनों में उस दिन को सबसे बुरा दिन माना है जब स्वाधीनता आंदोलन में मौलवियों और धर्माचार्यों को स्थान दिया गया था। इसी के परिणामस्वरूप मौलाना अब्दुल बारी तथा शंकराचार्य जैसे लोगों ने देश में मज़हबी पागलपन, प्रपंच और उत्पात का राज्य स्थापित कर दिया था। महात्मा गांधी ने धर्म को सर्वत्र महत्त्व दिया है। उनके अनुसार धर्म का अर्थ ऊँचे और उदार विचारों से था।

वे आवाज़ देने, शंख बजाने के स्थान पर शुद्धाचरण और सदाचार को धर्म मानते थे। लेखक भी पाँच समय नमाज़ पढ़ने अथवा दो घंटे तक पूजा करने के बाद दिन-भर बेईमानी करने को उचित नहीं मानता। वह आचरण को सुधारने पर बल देता है। ऐसे आडंबरी धार्मिक और दीनदार व्यक्तियों से तो वह उन नास्तिकों को अच्छा और ऊँचा मानता है, जिनका आचरण अच्छा है जो दूसरों के सुख-दुख का ध्यान रखते हैं और धर्म-ईमान के नाम पर उत्पात मचाना ग़लत समझते हैं। ईश्वर भी ऐसे ही नास्तिकों को प्यार करता है जो मानवता को आदर देते हैं तथा पशुता को त्याग देते हैं।

लेखक के अनुसार धर्म क्या होना चाहिए?

लेखक के अनुसार धर्म क्या होना चाहिए? D. धर्म, ईश्वर और आत्मा के बीच का संबंध होना चाहिए। Ans: धर्म, ईश्वर और आत्मा के बीच का संबंध होना चाहिए

धर्म की आड़ पाठ के माध्यम से लेखक क्या संदेश देना चाहते हैं?

'धर्म की आड़' पाठ में निहित संदेश यह है कि सबसे पहले हमें धर्म क्या है, यह समझना चाहिए। पूजा-पाठ, नमाज़ के बाद दुराचार करना किसी भी रूप में धर्म नहीं है। अपने स्वार्थ के लिए लोगों को गुमराह कर शोषण करना और धर्म के नाम पर दंगे फसाद करवाना धर्म नहीं है। सदाचार और शुद्ध आचरण ही धर्म है, यह समझना चाहिए।

लेखक की दृष्टि में धर्म और ईमान को किसका सौदा कहा गया है और क्यों?

लेखक ने दृष्टि में धर्म और ईमान को मन का सौदा कहा गया है क्योंकि यह व्यक्ति का अधिकार है कि उसका मन किस धर्म को मानना चाहता है। इसके लिए व्यक्ति को पूरी आज़ादी होनी चाहिए। व्यक्ति को कोई धर्म अपनाने या त्यागने के लिए विवश नहीं किया जाना चाहिए।

धर्म की आड़ पाठ के अनुसार धर्म के स्पष्ट चिह्न क्या हैं?

धर्म की आड़ पाठ के अनुसार धर्म के दो स्पष्ट चिह्न हैं-शुद्ध आचरण और सदाचार। आज धर्म और ईमान के नाम पर उपद्रव किए जाते हैं और आपसी झगड़े करवाए जाते हैं। स्वार्थ सिद्धि के लिए लड़ाया जाता है। धर्म के नाम पर दंगे होते हैं और धर्म तथा ईमान पर जिद की जाती है।