कविता कन्यादान में प्रमाणिक शब्द का अर्थ क्या है? - kavita kanyaadaan mein pramaanik shabd ka arth kya hai?

मुख्यपृष्ठKanyadaan poem by Rituraajकन्यादान कविता/ऋतुराज की कविता कन्यादान/Kanyadaan poem by Rituraaj in Hindi/कन्यादान कविता की व्याख्या व अभ्यास के प्रश्न

मार्च 21, 2020

कविता कन्यादान में प्रमाणिक शब्द का अर्थ क्या है? - kavita kanyaadaan mein pramaanik shabd ka arth kya hai?

कन्यादान कविता/ऋतुराज की कविता कन्यादान/Kanyadaan poem by Rituraaj in Hindi/कन्यादान कविता की व्याख्या व अभ्यास के प्रश्न 

कविता - कन्यादान

कवि -ऋतुराज


कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो

प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक "क्षितिज भाग- 2" में संकलित कविता" कन्यादान" से लिया गया है। इसके रचयिता “ऋतुराज जी” हैं । यह कविता एक माँ के संचित अनुभवों की पीड़ा की प्रमाणिक अभिव्यक्ति है। वह जीवन में भोगी गई पीड़ा के परिपेक्ष में अपनी बेटी को स्त्री के परंपरागत रूप से हटकर सीख दे रही है।

व्याख्या : इस कविता में उस दृश्य का वर्णन है जब एक माँ अपनी बेटी का कन्यादान कर रही है। बेटियाँ ब्याह के बाद पराई हो जाती हैं। जिस बेटी को कोई भी माता पिता बड़े जतन से पाल पोसकर बड़ी करते हैं, वह शादी के बाद दूसरे घर की सदस्य हो जाती है। इसके बाद बेटी अपने माँ बाप के लिए एक मेहमान बन जाती है। इसलिए लड़की के लिए कन्यादान शब्द का प्रयोग किया जाता है। जाहिर है कि जिस संतान को किसी माँ ने इतने जतन से पाल पोस कर बड़ा किया हो, उसे किसी अन्य को सौंपने में गहरी पीड़ा होती है। बच्चे को पालने में माँ को कहीं अधिक दर्द का सामना करना पड़ता है, इसलिए उसे दान करते वक्त लगता है कि वह अपनी आखिरी जमा पूँजी किसी और को सौंप रही हो।


लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की


प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक "क्षितिज भाग- 2" में संकलित कविताकन्यादानसे लिया गया है। इसके रचयिता “ऋतुराज जी” हैं । यह कविता एक माँ के संचित अनुभवों की पीड़ा की प्रमाणिक अभिव्यक्ति है। वह जीवन में भोगी गई पीड़ा के परिपेक्ष में अपनी बेटी को स्त्री के परंपरागत रूप से हटकर सीख दे रही है।

व्याख्या : लड़की अभी सयानी नहीं हुई थी; इसका मतलब है कि हालाँकि वह बड़ी हो गई थी लेकिन उसमें अभी भी दुनियादारी की पूरी समझ नहीं थी। वह इतनी भोली थी कि खुशियाँ मनाने तो उसे आता था लेकिन यह नहीं पता था कि दुख का सामना कैसे किया जाए। उसके लिए बाहरी दुनिया किसी धुँधले तसवीर की तरह थी या फिर किसी गीत के टुकड़े की तरह थी। ऐसा अक्सर होता है कि जब तक कोई अपने माता पिता के घर को छोड़कर कहीं और नहीं रहना शुरु कर देता है तब तक उसका समुचित विकास नहीं हो पाता है।


माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के
माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।

प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक "क्षितिज भाग- 2" में संकलित कविताकन्यादानसे लिया गया है। इसके रचयिता “ऋतुराज जी” हैं । यह कविता एक माँ के संचित अनुभवों की पीड़ा की प्रमाणिक अभिव्यक्ति है। वह जीवन में भोगी गई पीड़ा के परिपेक्ष में अपनी बेटी को स्त्री के परंपरागत रूप से हटकर सीख दे रही है।

व्याख्या : जाते-जाते माँ अपनी बेटी को कई नसीहतें दे रही है। माँ कहती हैं कि कभी भी अपनी सुंदरता पर इतराना नहीं चाहिए क्योंकि असली सुंदरता तो मन की सुंदरता होती है। वह कहती हैं कि आग का काम तो चूल्हा जलाकर घरों को जोड़ने का है ना कि अपने आप को और अन्य लोगों को दुख में जलाने का। माँ कहती है कि अच्छे वस्त्र और महँगे आभूषण बंधन की तरह होते हैं इसलिए उनके चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए। आखिर में माँ कहती है कि लड़की जैसी दिखाई मत देना। इसके कई मतलब हो सकते हैं। एक मतलब हो सकता है कि माँ उसे अब एक जिम्मेदार औरत की भूमिका में देखना चाहती है और चाहती है कि वह अपना लड़कपन छोड़ दे। दूसरा मतलब हो सकता है कि उसे हर संभव यह कोशिश करनी होगी कि लोगों की बुरी नजर से बचे। हमारे समाज में लड़कियों की कमजोर स्थिति के कारण उनपर यौन अत्याचार का खतरा हमेशा बना रहता है। ऐसे में कई माँएं अपनी लड़कियों को ये नसीहत देती हैं कि वे अपने यौवन को जितना हो सके दूसरों से छुपाकर रखें।

 अभ्यास के प्रश्न: 

प्रश्न:  आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखाई देना?

उत्तर: इसके कई मतलब हो सकते हैं। एक मतलब हो सकता है कि माँ उसे अब एक जिम्मेदार औरत की भूमिका में देखना चाहती है और चाहती है कि वह अपना लड़कपन छोड़ दे। दूसरा मतलब हो सकता है कि उसे हर संभव यह कोशिश करनी होगी कि लोगों की बुरी नजर से बचे। हमारे समाज में लड़कियों की कमजोर स्थिति के कारण उनपर यौन अत्याचार का खतरा हमेशा बना रहता है। ऐसे में कई माँएं अपनी लड़कियों को ये नसीहत देती हैं कि वे अपने यौवन को जितना हो सके दूसरों से छुपाकर रखें।

प्रश्न: आग रोटियाँ सेंकने के लिए है

            जलने के लिए नहीं’

 इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है?

उत्तर: समाज में स्त्री की बहुत ही अहम लेकिन कमजोर स्थिति है। एक लड़की से यह उम्मीद की जाती है कि शादी होने के बाद वह अपने पति के घर को सजाए और सँवारे और अपने रिश्तेदारों से तालमेल रखे। लेकिन दूसरी ओर उसे निर्णय लेने की स्वतंत्रता नहीं दी जाती है। कई बार स्त्रियाँ इसी घुटन में अंदर ही अंदर जलती रहती हैं।

      प्रश्न: माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों जरूरी समझा?


उत्तर: यह हर माँ का कर्तव्य होता है कि ससुराल भेजने से पहले उसे अच्छे बुरे की सीख दे। माँ अपने इसी कर्तव्य का पालन कर रही है और अपनी बेटी को नसीहत दे रही है।

        प्रश्न:    ‘पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की

                     कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की’
इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छवि आपके सामने उभरकर आ रही है उसे शब्दबद्ध कीजिए।


उत्तर: लड़की बड़ी हो गई थी लेकिन उसमें अभी भी दुनियादारी की पूरी समझ नहीं थी। वह इतनी भोली थी कि खुशियाँ मनाने तो उसे आता था लेकिन यह नहीं पता था कि दुख का सामना कैसे किया जाए। उसके लिए बाहरी दुनिया किसी धुँधले तसवीर की तरह थी या फिर किसी गीत के टुकड़े की तरह थी।

प्रश्न: माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी’ क्यों लग रही थी?

उत्तर: जाहिर है कि जिस संतान को किसी माँ ने इतने जतन से पाल पोस कर बड़ा किया होउसे किसी अन्य को सौंपने में गहरी पीड़ा होती है। बच्चे को पालने में माँ को कहीं अधिक दर्द का सामना करना पड़ता हैइसलिए उसे दान करते वक्त लगता है कि वह अपनी आखिरी जमा पूँजी किसी और को सौंप रही हो।

प्रश्न:  माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी?

उत्तर: जाते-जाते माँ अपनी बेटी को कई नसीहतें दे रही है। माँ कहती हैं कि कभी भी अपनी सुंदरता पर इतराना नहीं चाहिए क्योंकि असली सुंदरता तो मन की सुंदरता होती है। वह कहती हैं कि आग का काम तो चूल्हा जलाकर घरों को जोड़ने का है ना कि अपने आप को और अन्य लोगों को दुख में जलाने का। माँ कहती है कि अच्छे वस्त्र और महँगे आभूषण बंधन की तरह होते हैं इसलिए उनके चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए। आखिर में माँ कहती है कि लड़की जैसी दिखाई मत देना।

प्रश्न: आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक उचित है?

उत्तर: बेटियाँ ब्याह के बाद पराई हो जाती हैं। जिस बेटी को कोई भी माता पिता बड़े जतन से पाल पोसकर बड़ी करते हैंवह शादी के बाद दूसरे घर की सदस्य हो जाती है। इसके बाद बेटी अपने माँ बाप के लिए एक मेहमान बन जाती है। इसलिए लड़की के लिए कन्यादान शब्द का प्रयोग किया जाता है।

 प्रश्न: प्रस्तुत कविता की भाषागत विशेषताएं बताइए ? 

 उत्तर:  प्रस्तुत पद्यांश की भाषागत विशेषताएं निम्नलिखित हैं:-

 1 भाषा आम बोलचाल की सरल सहज खड़ी बोली है।

 2 तत्सम तद्भव शब्दावली का प्रयोग है।

 3  प्रसाद गुण सर्वत्र व्याप्त है।

 4  व्यंजना शब्द शक्ति की प्रधानता है।

 5 उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग हुआ है।

 6 क्तियां छंद मुक्त है।

 7 वर्णनात्मक शैली का प्रयोग है।

 प्रश्न: काव्य सौंदर्य/शिल्प सौंदर्य

 उत्तर: इस कविता में कवि ने नारी जीवन के यथार्थ का संवेदनशील वर्णन किया है। कवि ने स्पष्ट किया है कि नारी का सारा जीवन परंपरागत रूढ़ियों के बंधनों से जकड़ा रहता है। एक मां अपनी पुत्री का कन्यादान करते समय उसका दुख बहुत प्रमाणिक होता है क्योंकि एक तो वह उसके जीवन के सुख-दुखों की सांझी थी॥ दूसरे वह अत्यंत भोली एवं सरल थी। मां को चिंता थी कि उसकी पुत्री को उसके भोलेपन के कारण ससुराल में परंपरागत रूढ़ियों की आड़ में कहीं कष्ट न झेलने पड़े।

कन्यादान के समय मां के दुख को प्रमाणिक क्यों कहा गया है?

Solution : विवाह के अवसर पर कन्यादान करते समय माँ जो दुःख अनुभव करती थी वह दुःख प्रामाणिक था, क्योंकि बेटी को कन्यादान स्वरुप वर - पक्ष के हाथों सौंपते समय माँ के ह्रदय की पीड़ा स्वाभाविक होती है उसमे किंचित भी कृत्रिमता नहीं होती है।

कन्यादान कविता में शाब्दिक भ्रम किसे और क्यों कहा गया है?

ससुराल में अच्छे वस्त्राभूषणों के मोह में स्त्री प्राय: दासतामय बन्धन में पड़ जाती है। इसलिए वस्त्राभूषणों को शाब्दिक भ्रम कहा गया है।

कन्यादान कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहते हैं?

Solution : कन्यादान कविता का सन्देश यह है कि हमारे समाज में स्त्रियों के लिए कुछ प्रतिमान स्थापित कर दिए जाते हैं। समाज उनको कमजोर समझता है और अत्याचार करता है।

कन्यादान कविता का मूल भाव क्या है?

'कन्यादान' कविता में माँ द्वारा बेटी को स्त्री के परंपरागत 'आदर्श' रूप से हटकर सीख दी गई है। कवि का मानना है। कि सामाजिक-व्यवस्था द्वारा स्त्रियों के आचरण संबंधी जो प्रतिमान गढ़ लिए जाते हैं वे आदर्श होकर भी बंधन होते हैं। कोमलता' में कमजोरी का उपहास, लड़की जैसा न दिखाई देने में आदर्श का प्रतिकार है।