कवि ने दिल की तुलना किससे की है और क्यों की है? - kavi ne dil kee tulana kisase kee hai aur kyon kee hai?

कवि अपने दिल की तुलना किससे करता है और क्यों?

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कवि अपने दिल की तुलना मीठे पानी के झरने (सोता) से करता है। वह इसमें से जितना भी प्रेम उँडेलता है उतना ही यह और भर जाता है। उसके हृदय में अपार प्रेम भावना विद्यमान है।

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तुम्हें भूल जाने की

दक्षिण ध्रुवि अंधकार-अमावस्या

शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं

झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं

इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित

रहने का रमणीय उजेला अब

सहा नहीं जाता है

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इस कविता में और भी टिप्पणी-योग्य पद-प्रयोग हैं। ऐसे किसी एक प्रयोग का अपनी ओर से उल्लेख कर उस पर टिप्पणी करें।


ऐसा ही एक अन्य पद है-मीठे पानी का सोता जिस प्रकार झरने का जल शीतल और मीठा होता है उसी तरह कवि के हृदय में मृदु-कोमल-प्रेम भावनाओं का झरना बहता रहता है। कवि का हृदय मधुर संबंधों का उद्गम स्थल है। यहाँ हृदय के लिए सोता (स्रोत) शब्द का प्रयोग किया गया है।

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बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है-और कविता के शीर्षक सहर्ष स्वीकारा है में आप कैसे अंतर्विरोध पाते हैं? चर्चा कीजिए।


यद्यपि दोनों में विरोधाभास वाली स्थिति है, पर वास्तव में इनमें अंतर्विरोध है नहीं। कवि प्रिय की बहलाती सहलाती आत्मीयता को बरदाश्त भी नहीं कर पाता फिर भी उसे सहर्ष स्वीकार कर लेता है। कवि भाव प्रवणता की मन:स्थिति में है। वह अति से उकताता है पर सहज रूप को सहर्ष स्वीकार कर लेता है। अत: हम इनमें अंतर्विरोध की स्थिति त नहीं पाते।

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व्याख्या कीजिए-

जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है।

जितना भी उँडेलता हूँ, भर-भर फिर आता है।

दिल मैं क्या झरना है?

मीठे पानी का सोता है

भीतर वह, ऊपर तुम

मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात भर

मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है।

उपर्युक्त पंक्तियों की व्याख्या करते हुए यह बताइए कि यहाँ चाँद की तरह आत्मा पर झुका चेहरा भूलकर अंधकार-अमावस्या में नहाने की बात क्यों की गई?


व्याख्या: हे प्रिय! न जाने मेरा तुम्हारे हृदय के साथ कैसा गहरा रिश्ता (संबंध) है कि अपने हृदय के प्रेम को जितनी मात्रा में उडेलता हूँ, मेरा मन उतना ही प्रेममय होता चला जाता है अर्थात् मैं अपने हृदय के भावों को कविता आदि के माध्यम से जितना बाहर निकालने का प्रयास करता हूँ, उतना ही पुन: अंत:करण में भर-भर आता है। अपने हृदय की इस अद्भुत स्थिति को देखकर मैं यह सोचने पर विवश हो जाता हूँ कि कहीं मेरे हृदय में प्रेम का कोई झरना तो नहीं बह रहा है जिसका जल समाप्त होने को ही नहीं आता। मेरे हृदय में भावों की हलचल मची रहती है। इधर मन में प्रेम है और ऊपर से तुम्हारा चाँद जैसा मुस्कराता हुआ सुंदर चेहरा अपने अद्भुत सौंदर्य के प्रकाश से मुझे नहलाता रहता है। यह स्थिति उसी प्रकार की है जिस प्रकार आकाश में मुस्कराता हुआ चंद्रमा पृथ्वी को अपने प्रकाश से नहलाता रहता है।

यहाँ चाँद की तरह आत्मा पर झुका चेहरा भूलकर अँधकार-अमावस्या में नहाने की बात इसलिए कही गई है क्योंकि कवि कल्पना लोक से निकल यथार्थ के धरातल में जीना चाहता हैं जीवन में सभी कुछ अच्छा ही अच्छा नहीं है, यहाँ दु:खों का अंधकार भी है।

भाव यह है कि कवि की समस्त अनुभूतियाँ प्रिय की सुंदर मुस्कानयुक्त स्वरूप से आलोकित हैं।

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टिप्पणी कीजिए; गरबीली गरीबी, भीतर की सरिता, बहलाती सहलाती आत्मीयता, ममता के बादल।


गरबीली गरीबी: गरीबी में प्राय: मनुष्य हताश निराश और दुखी होकर अपना धैर्य खो बैठता है। तब उसका जीवन के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण हो जाता है। यहाँ कवि ने गरीबी को गरबीली बताकर उसे आत्म सम्मान का रूप दे दिया है।

- भीतर की सरिता: इस कथन का तात्पर्य यह है कि हृदय के भीतर प्रेम भाव की नदी (झरना) बहती है। यहाँ भावनाओं के प्रवाह को ही सरिता कहा है। कवि के हृदय में भावनाओं का अंत-प्रवाह बह रहा है। इसमें पवित्र जल है।

- बहलाती सहलाती आत्मीयता: इसका आशय यह है कि प्रेयसी का प्रेमपूर्ण व्यवहार उसे हर समय बहलाता-सहलाता रहता है। उसका व्यवहार अत्यंत आत्मीयतापूर्ण है। उसका निश्छल प्रेम कवि के दु:ख को कम करने का काम तो करता है पर वह उसे सहन नहीं कर पाता। अति बुरी होती है।

- ममता के बादल: प्रिया कवि के ऊपर ममता भरे बादल बरसाती है। यह उसे अंदर तक पिरा जाती है क्योंकि कवि की आत्मा कमजोर हो गई है। ममता उससे सहन नहीं होती।

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कवि अपने दिल की तुलना किससे करता है और क्यों? (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});

Solution

कवि अपने दिल की तुलना मीठे पानी के झरने (सोता) से करता है। वह इसमें से जितना भी प्रेम उँडेलता है उतना ही यह और भर जाता है। उसके हृदय में अपार प्रेम भावना विद्यमान है।

Some More Questions From गजानन माधव मुक्तिबोध Chapter

प्रस्तुत पक्तियों की सप्रंसग व्याख्या करेंजिंदगी में जो कुछ है, जो भी है सहर्ष स्वीकारा है,इसलिए कि जो कुछ भी मेरा हैवह तुम्हें प्यारा है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

कवि ने सहर्ष क्या स्वीकार किया है?

कवि ने इसे क्यों स्वीकार कर लिया है?

यह कविता क्या प्रेरणा देती है?

प्रस्तुत पक्तियों की सप्रंसग व्याख्या करेंगरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब यह विचार-वैभव सब (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनय सबमौलिक है, मौलिक है,इसलिए कि पल-पल मेंजो कुछ भी जागृत है, अपलक है-संवेदन तुम्हारा है!!

कवि किस-किसको मौलिक मानता है और क्यों?

इन पर किसकी संवेदना का प्रभाव है?

इस कविता पर किस बाद का प्रभाव झलकता है?

प्रस्तुत पक्तियों की सप्रंसग व्याख्या करेंजाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है जितना भी उँडेलता हूँ, भर-भर फिर आता हैदिल में क्या झरना है?मीठे पानी का सोता हैभीतर वह, ऊपर तुममुस्काता चाँद ज्यों धरती पर रात-भरमुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है।

कवि ने अपने प्रिय की तुलना किससे की है और क्यों?

प्रश्न (क) कवि अपने दिल की तुलना किससे करता है तथा क्यों ? (ख) कवि प्रिय को अपने जीवन में किस प्रकार अनुभव करता है ? के जीवन पर सदा उसके प्रिय का मुस्कराता हुआ चेहरा जगमगाता रहता है। उत्तर (क) कवि ने 'गरीबी' के लिए 'गरबीली' विशेषण का प्रयोग किया है। 'गरबीली' से तात्पर्य 'स्वाभिमान' से है।

मीठे पानी का सोता कहाँ है?

मीठे पानी का सोता है भीतर वह, ऊपर तुम मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है! छटपटाती छाती को भवितव्यता डराती है बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है !! इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है वह तुम्हें प्यारा है।

सहर्ष स्वीकारा है कविता किसको व क्यों स्वीकार की प्रेरणा देती है लिखिए?

(ख) कवि ने व्यक्तिगत संदर्भ में दुख के समय को अमावस्या कहा है। जिस प्रकार अंधकार पूरे संसार को ढक लेता है, वैसे ही दुख रूपी अंधकार कवि के शरीर तथा आत्मा को ढक लेना चाहता है। (ग) वह रमणीय उजेला को झेले और उसी में नहा ले। – स्थिति का वर्णन पहले कविता में किया गया है।

मुस्काता चाँद ज्यों धरती पर रात भर पंक्ति में कौन सा अलंकार है?

4. 'जितना भी उँडेलता हूँ, भर-भर फिर आता है' में विरोधाभास अलंकार है। 5. प्रिय के मुख की चाँद के साथ समता करने में उपमा अलंकार है।